शनिवार, 16 जनवरी 2010

साहित्यिक कृतियां

जादूगरनी

दीदी की सगाई के दिन हम अपने नये कपडे पहनकर इतरा रहे थे। हमें देखकर वह नाक-भौं सिकोडकर बोली, अरे भगवान जी ने मुझे सोने की एक फ्राक दी थी जिस पर हीरे के बटन लगे हुए हैं। दिखाओ-दिखाओ! हमारे पूछने पर मीनू चंद लम्हे कुछ बोल न सकी।

मैं तुम लोगों को जरूर दिखाती, क्या करूं? भगवान जी ने मना किया है। मैंने सोने की फ्राक पहनकर फोटो खिंचवायी है। जब आ जाएगी तुम लोगों को जरूर दिखाऊंगी। उसकी बात सुनकर हमारे चेहरे उतर गये। हमने कभी सोने की फ्राक नहीं देखी थी। कितनी अच्छी लगती होगी?

मैं मीनू के घर पहुंची। मीनू ने चुपके से मेरे हाथों पर एक पीपल का पत्ता रख दिया। मेरे चेहरे पर नासमझी के भाव उभरे। किसी को दिखाना नहीं। जब तुम अकेले में मुझे दिल से पुकारोगी कि आओ मीनू मुझसे बात करो, इस पत्ते में मेरा चेहरा नजर आएगा। मैंने कृतज्ञता से मीनू की ओर देखा और वह पत्ता संभालकर रख लिया। पत्ता लेकर मैं पपीते के पेड के नीचे पहुंची। देर तक पत्ते को हाथ में लेकर पुकारती रही, आओ, मीनू मुझसे बातें करो। कुछ नहीं दिखा। फिर मैंने चिल्लाना शुरू कर दिया।

मैं तो पत्ते में से तुम्हें देखा करती थी। तुम मुझे दिल से याद नहीं करती थी। इसलिए मैं तुम्हें दिखाई नहीं दी। उसके इस उत्तर ने मुझे निरुत्तर कर दिया। जब मीनू मुझे देख पा रही थी तो मैंने ही उसे दिल से याद नहीं किया होगा। वे हमारी जिंदगी के सबसे अच्छे दिन थे, जब हमारी मासूमियत उरूज पर थी। हमने संदेह करना जाना ही नहीं था। बात आई गई हो गयी। मीनू के प्रति श्रद्धा बरकरार थी। सर्दियों में एक दिन मैं, रोहिणी और मीनू की छत पर रेलिंग से सटे बैठे थे। हम मीनू की बातों की चासनी में अच्छी तरह चिपक गये थे। भगवान जी ने बोला है कि अब तुम अपनी सहेलियों को भी उडनखटोले पर घुमा सकती हो। उसने खुशखबरी दी।

उसने पहला मौका मुझे दिया था, यह मेरे लिये गौरव की बात थी। तीन बार ताली बजाओ। उडनखटोला आ जाएगा। वह बोली। मैंने तालियां बजायी। उडनखटोला नहीं आया। वैसे नहीं, ऐसे बजाओ। उसने खास अंदाज में ताली बजाकर दिखाई। मैंने पूरे यत्न से तालियां बजायीं। फिर भी नहीं आया। मैं रुआंसी हो उठी। तुम सही से नहीं बजा रही हो। मीनू झुंझलाये हुए अंदाज में बोली। एक बार, दो बार.. दसियों बार तालियां बजायीं। दूर-दूर तक उडनखटोले जैसा कुछ नजर नहीं आ रहा था। मैं ताली बजाती हूं। उडनखटोला आ जाता है। तुम्हारे बजाने से नहीं आता। जरूर तुम्हारे दिल में खोट है। उसकी बात सुनकर मैं रोने लगी।

बहुत सालों बाद मैंने उस रोचक वाक्ये का जिक्र रोहिणी से किया, तुम दोनों मिलकर मुझे बेवकूफ बना रही थीं। मुझे क्या पता? जैसी तुम वैसी मैं! हम दोनों बेवकूफ बन रहे थे। उसने मासूमियत से जवाब दिया। हमारी शायरी करने की उम्र शुरू हो चुकी थी। हम जावेद अख्तर के गीतों को गुनगुनाया करते थे। मीनू मिर्जा गालिब की दीवानी थी। वक्त के साथ मिलने-जुलने का अंतराल बढा, जिसका सीधा असर हमारे ताल्लुकात पर हुआ। अब मैं बी-एस.सी. कर चुकी थी और मीनू बी.ए.। संयोगवश आस-पास के गांवों का परीक्षाकेंद्र हमारा डिग्री कॉलेज हुआ करता था। परीक्षा के समय हम अपने नोट्स लेकर आखिरी समय तक कुछ न कुछ पढते रहते थे। कॉलेज के गेट के सामने बस रुकती, उसमें से ढेर सारी लडकियां हास-परिहास करती हुई उतरतीं। मीनू सबसे अलग नजर आती थी। लम्बा कद, खूबसूरत बाल, गहरी आंखों वाला खुशी से गुलनार चेहरा.. वह मुझसे भी तुनककर बात किया करती थी। कॉलेज का परीक्षा हॉल बहुत बडा था, जिसमें तकरीबन पांच सौ बच्चे एक साथ बैठकर परीक्षा दिया करते थे। वह केंद्र अपनी पारदर्शी व्यवस्था के लिए सुविख्यात था।

इम्तिहान का आखिरी दिन था। पेपर खत्म होने के बाद किसी को घर जाने की जल्दी नहीं थी। बस रुकी, लडकियां बस में चढने लगीं। हम सभी मीनू की दबंगई देखकर हैरान थे। मीनू उस वक्त बिल्कुल जादूगरनी लग रही थी। अगर बस नहीं रुकती तो क्या होता? मीनू ड्राइवर को तोता बनाकर उडा देती या बस को दियासलाई का डिब्बा बना देती। मीनू से आखिरी मुलाकात उसकी सगाई के दिन हुई थी। अच्छे पडोसी होने के नाते मैं और रोहिणी सगाई में शरीक हुए। मीनू पूरे समय खामोश बैठी रही।

मेहमानों के जाने के बाद अनायास उसकी आंखों की कंदीलें दोबारा चमक उठीं। कुछ दिनों बाद पता चला कि मीनू गांव के एक विधर्मी लडके के साथ भाग गई। तब हमें सगाई के बाद की खुशी समझ में आयी क्योंकि, मेमसाहब पूरा माल-असबाब साथ लेकर भागी थी। बडा हंगामा हुआ। कोई मामूली लडकी यह कदम कतई नहीं उठा सकती थी। मीनू के भाइयों ने खोजबीन की तो पता चला कि लडका अरब देश चला गया। हमें पूरा विश्वास था कि मीनू अब तक बिक-बिका गई होगी। मति की मारी लडकी। उसने अपने दुर्भाग्य को खुद बुलावा दिया था। इसमें कोई क्या कर सकता है? ट्रैफिक के शोर ने मुझे फिर हकीकत की दुनिया में ला पटका। मीनू अभी भी ऑटो में बैठी थी। रह-रह कर हमारी नजरें एक-दूसरे से टकरा जाती और झेंपकर या नजरअंदाज कर वह दूसरी तरफ देखने लगती। उसका जादूगर भी साथ था। वह किसी सपनीली दुनिया का सुंदर-सजीला शहजादा लग रहा था। जाम खुला, वाहन अपनी-अपनी मंजिलो की ओर दौडने लगे। मीनू ने मुझे देखकर एक कटीली मुस्कान फेंकी और अपने गंतव्य की ओर रवाना हो गई। हां, मैं जादूगरनी ही थी जिसने अपने राजकुमार को हासिल करके ही दम लिया। मैं अपनी जन्नतनशीं दुनिया की मल्लिका हूं जहां मेरी सारी इच्छाएं पूरी होती हैं। उसकी मुस्कराहट में बस यही लिखा था जिसे मैं हर्फ -ब-हर्फ पढ सकती थी।

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