शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

जुस्तजू जिसकी थी

प्यार
प्यार किया नहीं जाता, बस हो जाता है। मशहूर शायर मिर्जा गालिब के शब्दों में, 'इश्क वो आतिश है गालिब, जो लगाए न लगे और बुझाए न बुझे' और जब इश्क हो ही गया है तो कब तक इसे छिपाकर रखा जा सकता है। कहते हैं कि प्यार तो प्यार करने वाले की आँखों से झलकता है। कहा भी गया है-
'इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते।'
प्यार, इश्क और मोहब्बत महज शब्द नहीं हैं। इन शब्दों में निहित हैं कई अहसास और कई कड़वी-मीठी स्मृतियाँ। कई ऐसे अहसास जो कि कभी तो नयनों को सजल कर दें तो कभी होठों पर एक मुस्कुराहट तैर जाए। प्यार तो एक फूल के माफिक है, जिस तरह फूल अपनी खुशबू से पूरी बगिया को महका देता है, उसी तरह प्यार रूपी फूल भी अपनी स्मृति रूपी खुशबू से जीवन की बगिया को सुगंधित कर देता है।
पहला प्यार तो पहली बारिश की तरह है। जिस तरह बारिश की बूँदें तपती धरती के कलेजे पर पड़कर शीतलता प्रदान करने के साथ-साथ अपनी सौंधी सुगंध से मानव मन को महका देती हैं। बिल्कुल उसी तरह पहले प्यार की मधुर स्मृतियाँ जब प्यार करने वालों के मन मस्तिष्क पर पड़ती हैं तो प्यार करने वालों के हृदय को हर्ष विभोर कर देती हैं।
जिंदगी के सफर में चलते-चलते नजरें मिलीं और हो गया प्यार। बस होना था सो हो गया। और प्यार के अथाह समंदर में तैरते, डूबते हुए कुछ ऐसे आनंदित पलों को महसूस भी कर लिया जो किसी भी अमूल्य निधि से बढ़कर हैं लेकिन जिस तरह एक सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी तरह प्यार के भी दो पहलू होते हैं। सुखद और दुखद।
लेकिन यह क्या एक ही राह पर चलते-चलते पता नहीं क्या हुआ, किसने वफा निभाई और किसने की बेवफाई। शायद किसी ने न की हो पर, कुछ परिस्थितियाँ ही ऐसी बन आईं कि छूट गया हो एक-दूसरे का हाथ, एक-दूसरे का साथ। प्यार की राहों में उतरना तो बड़ा आसान है, परन्तु उन राहों पर निरंतर साथ चलते रहना बड़ा ही मुश्किल है गालिब कहते हैं,

ये इश्क नहीं आसां, इतना समझ लीजै
एक आग का दरिया है और डूबकर जाना है।

इसलिए बड़े खुशनसीब होते हैं वे लोग जिनका पहला प्यार ही उनके जीवन के सफर में हमसफर बनकर मंजिल तक साथ रहता है। कुछ लोगों का पहला प्यार बीच सफर में ही अपना दामन छुड़ाकर अपनी राह बदल लेता है और बदले में दे जाता है, चंद आँसू, मुट्ठीभर यादें और कुछ आहें।
फिर जब प्यार जिंदगी को इस दोराहे पर लाकर खड़ा कर दे तो अच्छा हो कि उस सफर को उसी मोड़ पर छोड़, अपनी राह बदलकर अपनी मंजिल की तलाश कर ली जाए।
'वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन,
उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा।'

जो लोग अपने प्यार को पा लेते हैं वे तो ताउम्र ही ईश्वर का शुक्रिया अदा करते हैं, परन्तु वे लोग जो कि किसी कारणवश अपने प्यार को नहीं पा सके वे अक्सर ही खुद से, औरों से और ईश्वर से यही शिकायत करते हैं :
'जुस्तजू जिसकी थी, उसको तो न पाया हमने'
परन्तु यह शिकायत, यह शिकवा क्यों? यह दुनिया तो एक मेले के समान है और व्यक्ति उसमें घूमने या भटकने वाला प्राणी मात्र। ईश्वर हम सबका परमपिता परमात्मा है। जिस तरह एक बच्चा मेले में घूमते हुए हर उस खिलौने को लेने की जिद करता है, लालायित रहता है जो उसे पसंद आता है लेकिन एक पिता अपने बच्चे को वही खिलौना दिलाता है जो उसके लिए बना होता है और जो नुकसानदेह नहीं होता। ठीक उसी तरह व्यक्ति भी वही सब कुछ पाना चाहता है जो कि उसके मन को लुभाता है, परंतु ईश्वर उसे वही देता है जो उसने उसके लिए बनाया होता है।
अंततः ईश्वर ने उन प्यार करने वालों को, शिकायत करने वालों को और सबको वही दिया जो कि उसने उनके लिए बनाया है। फिर कैसे गिले-शिकवे। जो मिल न सका या जिसे पा ही न सके, उसका गम मनाने से अच्छा हो जिसे पा लिया है, उसको पाने की खुशियाँ मनाई जाएँ। वही आपका है जिसे ईश्वर ने आपके लिए बना दिया है। फिर ऐसा भी तो हो सकता है कि आपने ही गलत दिल के दरवाजे पर दस्तक दी हो और फिर-

कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता
कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता।
सपने का सच तुम्हारा सच
ठीक पचास साल पहले के कल्पनापुरम की बात है। गर्मियों के दिन थे। बैशाख-जेठ के आकाश में बादल फाड़कर गर्मी बरस रही थी। सौ-पचास घरों के धूल भरे कस्बे में मनुष्य और पशु-पक्षी भाड़ में झोंके गए चनों की तरह अनुभव कर रहे थे। कोयल-कबूतरों के मुँह से बोल नहीं फूट रहे थे।
आम-जामुन की पत्तियाँ असमय सूख कर गिर रही थीं। जमीन में ये बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गई थीं। नलों की टोंटियाँ सूखे के दर्द से कराह रही थीं। धूप में इतनी तेजी थी कि अगर दाल-चावल में पानी डालकर पतीला खुले में रख दो तो घड़ीभर बाद खिचड़ी तैयार मिलती।
टीले के परली तरफ, जहाँ अब्बू और सुहानी अपनी अम्मी-दादू के साथ रहते, यही हालत थी। लेकिन दोनों बच्चों की चटर-पटर के कारण उनके टीन-टापरे के नीचे खुशनुमा माहौल बना रहता। दादू कहते कि गर्मी तो प्रकृति का फेर है। आज गर्मी है तो कल वर्षा होगी, फिर सर्दी आएगी। इसलिए खुश रहो। दादू का कहा मानकर अम्मी खुश रहती।

घर में जिस दिन जो है उसे ठीक-ठीक सबको परोस देती। यानी बच्चों को थोड़ा ज्यादा, बापू को ज्यादा। उसके बाद कम-ज्यादा कहने के लिए बचता ही बहुत थोड़ा। फिर भी यह देखकर खुश रहती कि सब खुश हैं।

ऐसे ही एक दिन सुबह अब्बू और सुहानी चाय-रोटी का नाश्ता कर रहे थे। गर्मी अभी बढ़ी नहीं थी। अब्बू और सुहानी लाल फूलों से लदे सेमल के नीचे बैठे थे। छोटी-छोटी चिड़ियाँ हल्की-मीठी चहकती टहनियों पर फुदक रही थीं। अब्बू को लगा कि उसने कहीं घंटियों को बजते हुए सुना।

यह आभास नहीं था क्योंकि सुहानी को भी घंटियों की आवाज सुनाई दी और साथ में गीत की पंक्तियाँ भी- आओ मेरे साथ चलो, जहाँ मैं जाऊँ तुम भी साथ रहो। न रहो तुम यदि संग तो, जान न पाओगे कभी जगह वो॥ यह अपने आप में काफी अटपटा गीत था, खासकर जिस तरह से इसे गाया जा रहा था। शरारती और सुनने वाले को बहकाता सा हुआ।

पहले तो अब्बू और सुहानी इसे सुनते रहे फिर हकबका कर अहाते के दरवाजे की ओर भागे। बाहर सड़क पर से कोई गुजर रहा था जो घंटियाँ बजाते हुए इस गीत को गा रहा था। सदर दरवाजे से बाहर निकल कर दोनों ने देखा कि एक साइकल रिक्शा धीमे-धीमे दूर होता जा रहा है। चार साँसों में वह सड़क मोड़ पर आँखों से ओझल हो गया।

इस इलाके में साइकल रिक्शा यों भी कभी नजर नहीं आता था। रंग-बिरंगी पताकाओं से सजा यह एक अजूबा था। मानो किसी दिलखुश राजकुमारी की सवारी हो। अब्बू और सुहानी कुछ दूर उस रिक्शा के पीछे दौड़े लेकिन जल्दी ही उन्हें समझ में आ गया कि ऐसा करना बेकार है।

घर लौटने के बाद उन्होंने हाँफते हुए दादू और अम्मी को अनोखे रिक्शे के बारे में बताया। धूप तेज होने से पहले दादू को काम जाना था सो वे मुस्कुराए और घर से बाहर निकल गए। अम्मी वैसे ही खुश, मुस्कुराती रहती थी इसलिए उनके चेहरे पर खास बदलाव नहीं आया। दिन चढ़ आने के बाद रोज की तरह अब्बू और सुहानी इमली सर्कस पहुँचे।

पहाड़ी का ऊपरी हिस्सा सुनसान रहता था। वहाँ इमली का एक बहुत बड़ा पेड़ था। अभी तक किसी ने उसकी पतली से पतली टहनी तक काटी नहीं थी। इसलिए इमली का यह पेड़ इतना विशाल हो गया था मानो सर्कस का तंबू हो। हालाँकि कल्पनापुरम में कभी कोई सर्कस नहीं आया था, न ही किसी बच्चे ने देखा था। यह नाम ताऊ मास्टर का दिया हुआ था।

ताऊ-मास्टर कस्बे के सबसे बूढ़े व्यक्ति थे। कस्बे की इकलौती पाठशाला में वे पढ़ाते और गर्मी की छुट्टियों में बकरियाँ चराने के लिए इस पेड़ की छाँव में आ बैठते। कितने ही तरह के फुरसती जीव गर्मी की दोपहर काटने के लिए इस पेड़ तले इकठ्ठा होते और सर्कस-सा मजमा लग जाता।

पहले तो बच्चे इस वाकए को मजेदार सपना मानकर सुनते रहे। ऐसा सच में हुआ होगा। मानने के लिए कोई तैयार न हुआ। इस घटना को लेकर सब बच्चे ताऊ-मास्टर के पास पहुँचे। ताऊ-मास्टर ने पहले सारी बात ध्यान से सुनी और चुपचाप अपनी सफेद मुलायम दाढ़ी पर हाथ फेरते रहे।

काफी देर बाद उन्होंने अपना गला साफ किया। फिर आहिस्ता से बोले-यदि अब्बू और सुहानी ने सच में ऐसा कोई रिक्शा देखा है तो वह रिक्शा सच है। अगर बाकी बच्चे सोचते हैं कि रिक्शा एक सपना है तो वह सपना है।

ताऊ मास्टर का कहा किसी को समझ में नहीं आया और सब बच्चे यहाँ-वहाँ बिखर गए और थोड़ी ही देर में रिक्शे वाली बात आई-गई हो गई। अब्बू और सुहानी बड़े निराश हुए। चेहरों पर छाई उदासी देखकर माँ ने उन्हें समझाया- देखो, यदि वह रिक्शा सच में है तो वह तुम्हें फिर से दिखाई देगा। और ऐसा ही हुआ। एक सुबह फिर से घंटियों के स्वर गूँजने लगे।
अब्बू और सुहानी अपनी चाय-रोटी छोड़कर बाहर की ओर भागे। सड़क पर रिक्शा आगे बच्चे पीछे भाग रहे थे। देखने में तो रिक्शा धीमे-धीमे और बच्चे तेज भाग रहे थे फिर भी वे उसे पकड़ नहीं पा रहे थे। थोड़ी दूर तक भागने के बाद सुहानी थक कर रुक गई।

अब्बू दौड़ता रहा। वह नहीं चाहता था कि रिक्शा छूट जाए और सपना बनकर रह जाए।

सब कुछ भूलकर, या यों कहें कि भुलाकर अब्बू रिक्शे के पीछे दौड़ता जा रहा था। धीरे-धीरे वह कल्पनापुरम से दूर होता गया। सड़क की दोनों ओर के सूखे खेत खत्म हुए और बंजर जमीन आ गई। कहीं-कहीं चरती हुई गाय-भैंसें और गधे दिखाई दे रहे थे, वे भी गायब हो गए। निर्जन रास्ते पर वे दोनों ही थे। आते-जाते ताँगे और बैलगाड़ियाँ भी नहीं।

अब्बू को ध्यान में ही नहीं आया कि आसपास की सारी वस्तुएँ-नजारे कब अदृश्य हो गए और चारों ओर नीला-नीला छा गया। अब्बू को लगा मानो वह बादलों पर बैठा है। तभी जोर की गड़गड़ाहट होने लगी। बिजलियाँ चमकने लगीं और वर्षा होने लगी। वर्षा के साथ हवा में तैरते हुए अब्बू नीचे आने लगा। आश्चर्य की बात यह रही कि वह ठीक कल्पनापुरम में जा उतरा।

वर्षा आने की खुशी में नाच-गा रहे लोगों के ऐन बीच में। लोग उत्तेजित थे कि उनका अपना अब्बू आकाश से पानी लेकर आया है। सुहानी नाच रही थी कि उनकी बातों को अब कोई झूठ नहीं कहेगा। अब्बू के दोस्त पानी में भीगते हुए कूद रहे थे।

दूर खड़े दादू-अम्मी के चेहरों पर वैसी ही खुशी दिखाई दे रही थी। फिर भीड़ में से ताऊ-मास्टर निकले। धीरे-धीरे वे अब्बू के पास आए। अपनी दाढ़ी पर से पानी की बूँदें सोरते हुए उन्होंने कहा कि तुम अगर सपने को सच मानते हो तो वह सच होकर ही रहेगा।

कहानी सपने का सच तुम्हारा सच
ठीक पचास साल पहले के कल्पनापुरम की बात है। गर्मियों के दिन थे। बैशाख-जेठ के आकाश में बादल फाड़कर गर्मी बरस रही थी। सौ-पचास घरों के धूल भरे कस्बे में मनुष्य और पशु-पक्षी भाड़ में झोंके गए चनों की तरह अनुभव कर रहे थे। कोयल-कबूतरों के मुँह से बोल नहीं फूट रहे थे।
आम-जामुन की पत्तियाँ असमय सूख कर गिर रही थीं। जमीन में ये बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गई थीं। नलों की टोंटियाँ सूखे के दर्द से कराह रही थीं। धूप में इतनी तेजी थी कि अगर दाल-चावल में पानी डालकर पतीला खुले में रख दो तो घड़ीभर बाद खिचड़ी तैयार मिलती।
टीले के परली तरफ, जहाँ अब्बू और सुहानी अपनी अम्मी-दादू के साथ रहते, यही हालत थी। लेकिन दोनों बच्चों की चटर-पटर के कारण उनके टीन-टापरे के नीचे खुशनुमा माहौल बना रहता। दादू कहते कि गर्मी तो प्रकृति का फेर है। आज गर्मी है तो कल वर्षा होगी, फिर सर्दी आएगी। इसलिए खुश रहो। दादू का कहा मानकर अम्मी खुश रहती।

घर में जिस दिन जो है उसे ठीक-ठीक सबको परोस देती। यानी बच्चों को थोड़ा ज्यादा, बापू को ज्यादा। उसके बाद कम-ज्यादा कहने के लिए बचता ही बहुत थोड़ा। फिर भी यह देखकर खुश रहती कि सब खुश हैं।

ऐसे ही एक दिन सुबह अब्बू और सुहानी चाय-रोटी का नाश्ता कर रहे थे। गर्मी अभी बढ़ी नहीं थी। अब्बू और सुहानी लाल फूलों से लदे सेमल के नीचे बैठे थे। छोटी-छोटी चिड़ियाँ हल्की-मीठी चहकती टहनियों पर फुदक रही थीं। अब्बू को लगा कि उसने कहीं घंटियों को बजते हुए सुना।

यह आभास नहीं था क्योंकि सुहानी को भी घंटियों की आवाज सुनाई दी और साथ में गीत की पंक्तियाँ भी- आओ मेरे साथ चलो, जहाँ मैं जाऊँ तुम भी साथ रहो। न रहो तुम यदि संग तो, जान न पाओगे कभी जगह वो॥ यह अपने आप में काफी अटपटा गीत था, खासकर जिस तरह से इसे गाया जा रहा था। शरारती और सुनने वाले को बहकाता सा हुआ।

पहले तो अब्बू और सुहानी इसे सुनते रहे फिर हकबका कर अहाते के दरवाजे की ओर भागे। बाहर सड़क पर से कोई गुजर रहा था जो घंटियाँ बजाते हुए इस गीत को गा रहा था। सदर दरवाजे से बाहर निकल कर दोनों ने देखा कि एक साइकल रिक्शा धीमे-धीमे दूर होता जा रहा है। चार साँसों में वह सड़क मोड़ पर आँखों से ओझल हो गया।

इस इलाके में साइकल रिक्शा यों भी कभी नजर नहीं आता था। रंग-बिरंगी पताकाओं से सजा यह एक अजूबा था। मानो किसी दिलखुश राजकुमारी की सवारी हो। अब्बू और सुहानी कुछ दूर उस रिक्शा के पीछे दौड़े लेकिन जल्दी ही उन्हें समझ में आ गया कि ऐसा करना बेकार है।

घर लौटने के बाद उन्होंने हाँफते हुए दादू और अम्मी को अनोखे रिक्शे के बारे में बताया। धूप तेज होने से पहले दादू को काम जाना था सो वे मुस्कुराए और घर से बाहर निकल गए। अम्मी वैसे ही खुश, मुस्कुराती रहती थी इसलिए उनके चेहरे पर खास बदलाव नहीं आया। दिन चढ़ आने के बाद रोज की तरह अब्बू और सुहानी इमली सर्कस पहुँचे।

पहाड़ी का ऊपरी हिस्सा सुनसान रहता था। वहाँ इमली का एक बहुत बड़ा पेड़ था। अभी तक किसी ने उसकी पतली से पतली टहनी तक काटी नहीं थी। इसलिए इमली का यह पेड़ इतना विशाल हो गया था मानो सर्कस का तंबू हो। हालाँकि कल्पनापुरम में कभी कोई सर्कस नहीं आया था, न ही किसी बच्चे ने देखा था। यह नाम ताऊ मास्टर का दिया हुआ था।

ताऊ-मास्टर कस्बे के सबसे बूढ़े व्यक्ति थे। कस्बे की इकलौती पाठशाला में वे पढ़ाते और गर्मी की छुट्टियों में बकरियाँ चराने के लिए इस पेड़ की छाँव में आ बैठते। कितने ही तरह के फुरसती जीव गर्मी की दोपहर काटने के लिए इस पेड़ तले इकठ्ठा होते और सर्कस-सा मजमा लग जाता।

पहले तो बच्चे इस वाकए को मजेदार सपना मानकर सुनते रहे। ऐसा सच में हुआ होगा। मानने के लिए कोई तैयार न हुआ। इस घटना को लेकर सब बच्चे ताऊ-मास्टर के पास पहुँचे। ताऊ-मास्टर ने पहले सारी बात ध्यान से सुनी और चुपचाप अपनी सफेद मुलायम दाढ़ी पर हाथ फेरते रहे।

काफी देर बाद उन्होंने अपना गला साफ किया। फिर आहिस्ता से बोले-यदि अब्बू और सुहानी ने सच में ऐसा कोई रिक्शा देखा है तो वह रिक्शा सच है। अगर बाकी बच्चे सोचते हैं कि रिक्शा एक सपना है तो वह सपना है।

ताऊ मास्टर का कहा किसी को समझ में नहीं आया और सब बच्चे यहाँ-वहाँ बिखर गए और थोड़ी ही देर में रिक्शे वाली बात आई-गई हो गई। अब्बू और सुहानी बड़े निराश हुए। चेहरों पर छाई उदासी देखकर माँ ने उन्हें समझाया- देखो, यदि वह रिक्शा सच में है तो वह तुम्हें फिर से दिखाई देगा। और ऐसा ही हुआ। एक सुबह फिर से घंटियों के स्वर गूँजने लगे।
अब्बू और सुहानी अपनी चाय-रोटी छोड़कर बाहर की ओर भागे। सड़क पर रिक्शा आगे बच्चे पीछे भाग रहे थे। देखने में तो रिक्शा धीमे-धीमे और बच्चे तेज भाग रहे थे फिर भी वे उसे पकड़ नहीं पा रहे थे। थोड़ी दूर तक भागने के बाद सुहानी थक कर रुक गई।

अब्बू दौड़ता रहा। वह नहीं चाहता था कि रिक्शा छूट जाए और सपना बनकर रह जाए।

सब कुछ भूलकर, या यों कहें कि भुलाकर अब्बू रिक्शे के पीछे दौड़ता जा रहा था। धीरे-धीरे वह कल्पनापुरम से दूर होता गया। सड़क की दोनों ओर के सूखे खेत खत्म हुए और बंजर जमीन आ गई। कहीं-कहीं चरती हुई गाय-भैंसें और गधे दिखाई दे रहे थे, वे भी गायब हो गए। निर्जन रास्ते पर वे दोनों ही थे। आते-जाते ताँगे और बैलगाड़ियाँ भी नहीं।

अब्बू को ध्यान में ही नहीं आया कि आसपास की सारी वस्तुएँ-नजारे कब अदृश्य हो गए और चारों ओर नीला-नीला छा गया। अब्बू को लगा मानो वह बादलों पर बैठा है। तभी जोर की गड़गड़ाहट होने लगी। बिजलियाँ चमकने लगीं और वर्षा होने लगी। वर्षा के साथ हवा में तैरते हुए अब्बू नीचे आने लगा। आश्चर्य की बात यह रही कि वह ठीक कल्पनापुरम में जा उतरा।

वर्षा आने की खुशी में नाच-गा रहे लोगों के ऐन बीच में। लोग उत्तेजित थे कि उनका अपना अब्बू आकाश से पानी लेकर आया है। सुहानी नाच रही थी कि उनकी बातों को अब कोई झूठ नहीं कहेगा। अब्बू के दोस्त पानी में भीगते हुए कूद रहे थे।

दूर खड़े दादू-अम्मी के चेहरों पर वैसी ही खुशी दिखाई दे रही थी। फिर भीड़ में से ताऊ-मास्टर निकले। धीरे-धीरे वे अब्बू के पास आए। अपनी दाढ़ी पर से पानी की बूँदें सोरते हुए उन्होंने कहा कि तुम अगर सपने को सच मानते हो तो वह सच होकर ही रहेगा।

होली की मस्ती
अमिताभ बच्चन
होली रंग और मस्ती का त्योहार है और मुझे लगता है कि यह सिर्फ रंग का उत्सव ही नहीं, बल्कि इंसानों के बीच आपसी रिश्तों को जोड़ने वाला त्योहार है। फिल्मी परदे पर भी मैं होली की मस्ती को अपने किरदार में इसलिए ढालने में सफल रहा हूँ क्योंकि मुझे वास्तविक जिंदगी में यह त्योहार काफी खुशी प्रदान करता रहा है । रंगों में पुते रंगे चेहरों में एक आत्मीयता का बोध होता है। हम एक-दूसरे के चेहरे पर रंग गुलाल लगाकर, पिचकारियों से रंग छोड़कर उत्साहित ही नहीं होते, वरन अपनी आत्मीयता का प्रदर्शन भी करते हैं। क्योंकि यह एक दिन ऐसा होता है जिसमें रंग के स्पर्श, गंध और गुलाल-अबीर से आपसी रिश्तों की अनुभूति होती है। मैं होली अपने ढंग से मनाता रहा हूँ। मुझे और मेरे परिवार के सभी सदस्यों को बचपन से ही होली पसंद रही है और हम सब इसका भरपूर आनंद उठाते हैं।
सुष्मिता सेन
जब से मुंबई में हूँ, होली के दिन घर पर ही रहना ज्यादा पसंद करती हूँ। हाँ, कुछ दोस्त आ जाते हैं। एक-दूसरे को शुभकामनाएँ देने के साथ गाल पर अबीर-गुलाल लगा लेते हैं लेकिन दिल्ली में तो होली के दिन सुबह से दोपहर तक अपने दोस्तों की टोली के साथ रंगों में ही डूबी रहती थी। रंग और गुलाल की मस्ती ऐसी चढ़ती थी कि भूख-प्यास भी नहीं लगती थी। मुंबई में एकाध बार होली खेली जरूर, पर वह आनंद और मस्ती नजर नहीं आई जिसे कभी दिल्ली में रहकर मैंने उठाया था ।
प्रियंका चोपड़ा
मेरे लिए हर त्योहार का दिन खास होता है, चाहे वह होली हो या दिवाली। स्कूल और कॉलेज के दिनों में मैंने होली में खूब मस्ती की है, होली के तीन-चार दिन पहले से ही यह मस्ती शुरू हो जाती थी। पिता के आर्मी में होने के कारण जहाँ भी उनकी पोस्टिंग रही, सारे अधिकारियों के परिवार वालों के साथ खूब मस्ती की। लेकिन जबसे फिल्मी दुनिया में आई हूँ मस्ती जरूर कम हो गई है। लेकिन होली के दिन रंग-गुलाल खेलना छूटा नहीं हैं। मुझे होली का त्योहार बहुत ही पसंद है क्योंकि यह एक ऐसा त्योहार है जिसमें आप छोटे-बड़े का फर्क नहीं करते।
अक्षय कुमार
होली का त्योहार मेरे लिए अब अपने बच्चों की खुशी में तब्दील हो गया है। इसलिए होली का त्योहार मेरे लिए कुछ वर्षों से अलग महत्व रखता है। घई साहब और अमित जी के यहाँ होली के दिन अलग ही माहौल में मैंने रंग खेला और रही आरके की होली की बात तो मैंने उनकी होली देखी नहीं, उसके बारे सुना और पढ़ा जरूर हूँ। लेकिन अपने बच्चों और सोसाइटी के लोगों के साथ होली खेलता हूँ। मुझे सूखे रंगों अबीर और गुलाल से होली खेलना पसंद है।

रितिक रोशनमुझे तो सबसे पहले यह कहना है कि होली के दिन जो लोग नशा करते हैं और फिर नशे की हालत में ऊल-जुलूल हरकतें करते हैं उन पर मुझे बहुत ज्यादा गुस्सा आता है। होली खुशी का त्योहार है, रंग खेलिए अबीर-गुलाल लगाइए। न कि नशा कीजिए। इसीलिए मैं केवल रंगों की मस्ती में शामिल होता हूँ और मुझे रंगों में डूबना अच्छा भी लगता है। अमित जी के बंगले में बचपन से ही मैं होली के दिन जाता रहा हूँ। प्रतीक्षा में अभिषेक ने हर बार मुझे रंगों के टब में डुबोया है और हमने एक-दूसरे को खूब रंग भी लगाया है। मुझे दूसरों को रंग लगाने में भी बड़ा मजा आता है।

फिल्मों में होली
अब जिस तरह की फिल्में बन रही हैं, उनमें दिलों को जोड़ने वाले पर्वों को दिखाने की गुंजाइश बहुत है लेकिन ऐसा बहुत कम हो रहा है। फिल्मों का शौक रखने वाले युवा वर्ग की रूचि भी बदल रही है। शायद यही वजह है कि फिल्मों से होली कहीं दूर जाती नजर आ रही है।
होली हो और फिल्मों की बात न हो, ऐसा संभव नहीं। होली के रंग अकसर रूपहले पर्दे पर बिखरे दिखाई देते हैं। बॉलीवुड के कई निर्देशकों ने फिल्मों में होली का रंग डाला है। कई फिल्मों में होली के गीत इतने लोकप्रिय हुए कि आज भी होली के दिन वह दिनभर सुनाई देते हैं।
दिलीप कुमार की पहली फिल्म ‘ज्वार भाटा’ में होली नजर आई। फिल्म के निर्देशक अमिय चक्रवर्ती ने 1944 में होली का दृश्य शूट करके एक इतिहास रचा। फिल्मों में होली का रंग दिखाने में फिल्मकार यश चोपड़ा ने सभी निर्देशकों को पीछे छोड़ दिया।
यश चोपड़ा ने ‘सिलसिला’ में ‘रंग बरसे भीगे चुनर वाली’ के रूप में बॉलीवुड को होली का लोकप्रिय गाना दिया। इसके बाद ‘मशाल’ में ‘होली आई, होली आई, देखो होली आई रे’, ‘डर’ में ‘अंग से अंग लगाना’ और बाद में ‘मोहब्बतें’ में ‘सोनी-सोनी अंखियों वाली, दिल दे जा या दे जा तू गाली’ से चोपड़ा ने बड़े पर्दे पर होली के भरपूर रंग बिखेरे।
फिल्मों में होली का रंग बिखेरने वाले अभिनेताओं में बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन का नाम सबसे आगे आता है। रेखा के साथ ‘सिलसिला’ में रंग बरसाने के लंबे समय बाद अमिताभ ने हेमा मालिनी के साथ ‘बागबां’ में ‘होली खेले रघुवीरा’ के जरिए एक बार फिर पर्दे को रंगीन कर दिया। अमिताभ, विपुल शाह की ‘वक्त’ में अक्षय कुमार और प्रियंका चोपड़ा के साथ ‘डू मी ए फेवर, लेट्स प्ले होली’ गाते हुए भी खासे जँचे।
बॉलीवुड की एक और जोड़ी, धर्मेंद्र और हेमा मालिनी ने होली को फिल्मों में ऐतिहासिक बनाया है। इस जोड़ी पर फिल्माया फिल्म ‘शोले’ का गीत ‘होली के दिन दिल खिल जाते हैं’ आज भी होली की मस्ती में चार चाँद लगा देता है। इसके बाद इस जोड़ी ने फिल्म ‘राजपूत’ में ‘भागी रे भागी रे भागी ब्रजबाला, कान्हा ने पकड़ा रंग डाला’ गाकर भरपूर होली खेली।
बॉलीवुड ने होली के साथ होली के आयोजन का कारण रहे भक्त प्रहलाद को भी फिल्मों में कई बार दिखाया है। भक्त प्रहलाद पर पहली बार 1942 में एक तेलुगु फिल्म ‘भक्त प्रहलाद’ के नाम से बनी, जिसे चित्रपू नारायण मूर्ति ने निर्देशित किया। इसके बाद भक्त प्रहलाद पर वर्ष 1967 में इसी नाम से एक हिंदी फिल्म का भी निर्माण हुआ।
बॉलीवुड में ‘होली’ नाम से अब दो, ‘होली आई रे’ नाम से एक और ‘फागुन’ नाम से दो फिल्मों का निर्माण हो चुका है।
होली से जुड़ा एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि कुछ फिल्मकारों ने इसे कहानी आगे बढ़ाने के लिए उपयोग किया, तो कुछ ने टर्निंग प्वाइंट लाने के लिए। कुछ ऐसे भी थे, जिन्होंने इसे सिर्फ मौज-मस्ती और गाने फिट करने के लिए फिल्म में डाला।
फिल्मकार राजकुमार संतोषी ने अपनी फिल्म ‘दामिनी’ में होली के दृश्य का उपयोग फिल्म में टर्निंग प्वाइंट लाने के लिए किया, जबकि ‘आखिर क्यों’ के गाने ‘सात रंग में खेल रही है दिल वालों की होली रे’ और ‘कामचोर’ के ‘मल दे गुलाल मोहे’ में निर्देशक ने इनके जरिए फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाया।
कई फिल्मों में होली के दृश्य और गाने फिल्म की मस्ती को बढ़ाने के लिए डाले गए। ऐसी फिल्मों में पहला नाम ‘मदर इंडिया’ का आता है, जिसका गाना ‘होली आई रे कन्हाई’ आज भी याद किया जाता है। इसके अलावा ‘नवरंग’ का ‘जा रे हट नटखट’, ‘फागुन’ का ‘पिया संग होली खेलूँ रे’ और ‘लम्हे’ का ‘मोहे छेड़ो न नंद के लाला’ गाने ने भी होली का फिल्मों में प्रतिनिधित्व किया।
कई फिल्मों में नायक रंगों के त्योहार होली के माध्यम से नायिकाओं के जीवन में रंग भरने की कोशिश करते भी दिखे। फिल्म ‘धनवान’ में राजेश खन्ना ने रीना रॉय के लिए ‘मारो भर-भर पिचकारी’ गाया’, तो वहीं ‘फूल और पत्थर’ में धर्मेंद्र, मीना कुमारी के लिए ‘लाई है हजारों रंग होली’ गाते दिखे। इसी तरह फिल्म ‘कटी पतंग’ में राजेश खन्ना पर फिल्माए गाने ‘आज न छोड़ेंगे बस हमजोली’ ने आशा पारेख को अपने अतीत की याद दिला दी।
कई फिल्में ऐसी भी रहीं, जिनमें होली के सिर्फ कुछ दृश्य दिखाए गए। केतन मेहता की फिल्म ‘मंगल पांडे’ में आमिर खान होली खेलते दिखे, तो वहीं विजय आनंद ने ‘गाइड’ में ‘पिया तोसे नैना लागे रे’ गाने में ‘आई होली आई’ अंतरा डाला।

नई जनरेशन और होली
देश के प्रमुख त्योहारों में होली बहुत ही विशेष है। चूँकि इसे मनाने में गाँठ में पैसे होना जरूरी नहीं है अत: इसे देश का गरीब से गरीब आदमी भी मना सकता है। यदि यह भी कहा जाए कि 'ऊँचे लोग, ऊँची पसंद, भूलते जा रहे, होली के रंग' तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।होली और हास्य-मस्ती का चोली-दामन का साथ है। आइए आपको हँसाने के लिए चंद क्षणिकाओं से रूबरू करवाता हूँ।

मुफ्त पिचकारी
मुफ्त पिचकारी का ऑफर पाकर
बच्चे और माँ-बाप दौड़े चले आए।
विक्रेता ने दी मुफ्त पिचकारी और कहा
कृपया इसमें भरे पानी की कीमत चुकाएँ।

मोबाइल
दूर से हमने समझा कि
उनके हाथ में है मोबाइल
रंगे जाने के बाद पता चला
पिचकारी की थी वह नई स्टाइल।
मंडप में खुद आओगी
लिखा है खत में तुमने कि
होली पर नहीं मिलोगी
घर पर ही रहकर
मेरे फोटो को रंगों से रंगोगी।
मुझे गिला नहीं यदि तुम
होली इस तरह मनाओगी
मगर वादा करो शादी के लिए
खुद मंडप में आओगी।
जिस तरह वेलेंटाइन डे जैसे प्यार के दिन को हम भारतवासियों ने अपनाया है उसी तरह होली जैसे त्योहार का भरपूर प्रचार विदेश में रह रहे भारत के नागरिकों को करना चाहिए। इन पंक्तियों के माध्यम से मैं अपनी बात रखना चाहूँगा कि
होली के रंग
रक्षाबंधन के धागे
संक्रांति की पतंग
दिवाली के पटाखे
साथियों खूब खुलकर
वेलेंटाइन डे मना‍ओ
मगर भारतीय त्योहारों को भी तो
जरा विदेशों में पहुँचाओ।
आजकल लड़कियों को बड़ा डर रहता है कि रंग उनकी कोमल त्वचा और बालों को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
देखिए इस बारे में ये पंक्तियाँ क्या कहती हैं-
खराब न हो जाएँ
तुम्हारे गेसू
रंगों के लिए इसलिए मैं
जंगल से लाया टेसू
हमारी आधुनिक जनरेशन को टेसू के बारे में बता दें कि यह जंगल में उगने वाला एक फूल है जिसे गर्म पानी में बॉइल करके नेचरल कलर बनाया जाता है जो स्किन फ्रेंडली होता है।
तो फिर देर किस बात की। तुरंत अपने प्रियतम या अपनी प्रेयसी को चेतावनी भरे ये एसएमएस कर दें -
प्रेयसी को,
मेरे रंग तुम्हारा चेहरा
होली के दिन बिठाना पहरा।
दिल तुम्हारा पास है मेरे
अब बचाना अपना चेहरा।

प्रियतम को,
अपने आपको मेरे रंग में
चाहते थे तुम रंगना
यह डियर एसएमएस नहीं चेतावनी है
होली के दिन मुझसे बचकर रहना।

अंत में
रंग यस
भंग यस
रंग में भंग
बस-बस।
यदि आपको होली की उक्त शायरी अच्छी लगी तो अधिक के लिए विजिट करें...।

बजट भाषण में शेरो-शायरी
प्रश्न : दद्दू, लगभग हर रेल और वित्त मंत्री अपने बजट भाषण में शेरो-शायरी को क्यों सम्मिलित करते हैं?
उत्तर- क्योंकि शेरो-शायरी उन्हें विपक्ष की भी तालियाँ दिला देती है।
तीन कंजूस फ्रेंड्‍स
तीन कंजूस फ्रेंड्‍स एक रोज प्रवचन सुनने के लिए गए। प्रवचन के बाद संत ने किसी सत्कार्य के लिए सभी से चंदा देने की अपील करते हुए कहा कि हरेक व्यक्ति कुछ न कुछ जरूर दें।
जैसे-जैसे चंदे वाला थाल कंजूसों के नजदीक आता गया, वे बेचैन हो उठे। यहाँ तक कि उनमें से एक बेहोश हो गया और बाकी दो उसे उठाकर बाहर ले गए।

रमन का पॉकेट
रमन- अपनी पॉकेट में चार-पाँच पत्थर लेकर घूम रहा था।
चमन ने पूछा- तुमने अपनी पॉकेट में पत्थर क्यों रखे हुए हैं।
रमन- क्या तुम्हें नहीं पता, यहाँ जिसका पॉकेट भारी होती है उसी की चलती है।

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

प्यार तो होना ही था

सिर्फ पाना ही प्यार नहीं...

ऑफिस में आज ही नई लड़की आई है सुजाता। अंदर घुसते ही उस पर निगाह पड़ी अविनाश की। कट्‍स इतने अच्छे निगाह ही नहीं हटी और दिल में मची अजीब सी हलचल। लेकिन शायद पहली बार मची है किसी को देखकर।
सुजाता आकर बगल वाली सीट पर बैठ गई। अविनाश से ही पहली बात हुई। स्वाभाविक है कुछ भी मदद की जरूरत होती है तो अविनाश से ही कहती है। घर से ऑफिस आती है सिटी बस से और वापस अपने भाई के साथ चली जाती है।
एक दिन काफी वेट करने के बाद भी जब उसका भाई नहीं आया और अविनाश के जाने का समय हुआ तो उसने पूछ लिया क्या मैं तुम्हें घर छोड़ दूँ, तुम्हारा घर मेरे रास्ते में ही आता है। खुशी-खुशी दोनों साथ चले गए।
ऐसे मौके कई बार आए। धीरे-धीरे बढ़ती यह दोस्ती प्यार में बदल गई और अविनाश के लिए सुजाता से सूजी हो गई। छुट्‍टी के दिन मिलना-जुलना पार्क में घूमना उनका शगल बन गया। दोनों का ही पहला-पहला प्यार है और प्यार के बारे में सोच भी एक जैसी है।
आजकल लड़के का कई लड़कियों और इसी तरह लड़कियों का अनेक लड़कों से मिलना, घूमना-फिरना और इसको प्यार का नाम देना इन दोनों को पसंद नहीं। घोर नफरत है इस काम से उन्हें। सुबह लड़का किसी और लड़की के साथ था शाम को किसी और के साथ और उधर लड़की भी 8 दिन में कितने ही ब्वॉयफ्रेंड बदल रही है। ऐसे लोगों के बारे में बातें सुनना भी पसंद नहीं।
धीरे-धीरे जब इनका प्यार परवान चढ़ने लगा। तब एक दिन सुजाता ने बताया कि मेरे घर वालों ने बिरादरी के ही एक घर में मेरा रिश्ता पक्का कर‍ दिया है। ‍अविनाश बोला बधाई हो। लड़का क्या करता है। शादी कब कर रही हो। सूजी को विश्वास नहीं हुआ कि इतनी सहजता से अविनाश ने यह सब बातें कैसे कह दीं। फिर सुजाता ने सँभलते हुए कहा कि अभी तो इतनी जानकारी मुझे भी नहीं है। कहकर बात आई-गई जैसी हो गई।
एक दिन कॉफी हाउस में सुजाता ने अंतरजातीय विवाह के बारे में अविनाश के विचार जानने चाहे। अविनाश बोला सूजी मुझे लगता है कि शादी एक ऐसा बंधन है जिसमें लड़का-लड़की के ऊपर अच्छी-खासी जिम्मेदारियाँ होती हैं और इन जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए दोनों का टेंशन फ्री होना बहुत जरूरी है। चंद दिनों की चाहत में अपनी मर्जी से शुरू में विवाह तो कर लेते हैं लेकिन या तो बाद में आपस में तकरार शुरू हो जाती है या फिर परिजनों से बनती नहीं है। ऐसी हालत में विवाह का तो पूरा मजा ही किरकिरा हो जाता है।उदाहरण के लिए मेरे भैया को ही देखता हूँ उन्होंने अंतरजातीय विवाह किया। मन मसोसकर मम्मी-पापा ने उनकी खुशी के लिए शादी की इजाजत तो दे दी लेकिन अब उनकी ससुराल वालों से अनबन चला ही करती है। भाभी की घर में किसी से पटरी नहीं बैठती। कई बार तो उनके घर छोड़ने की भी नौबत आ गई। तो इन हालातों में दोनों तो परेशान रहते ही हैं, उनके 2 बच्चे अलग इसमें पिस रहे हैं। इसलिए मैं इसके पक्ष में कम ही रहता हूँ। आखिर तुम्हारे माँ-बाप कोई तुम्हारा बुरा थोड़े ही चाहेंगे वह तुम्हारे लिए लड़का या लड़की ढूँढते हैं। कुछ सोच-समझकर ही तुम्हारी शादी करेंगे।
ठीक कहा अविनाश तुमने। लेकिन मेरा मानना है कि शादी के बाद का जीवन लड़का-लड़की को आपस में बिताना होता है ‍न कि अपने माँ-बाप के साथ। इसलिए उनको इतनी आजादी तो मिलना ही चाहिए न कि अपनी पसंद का जीवनसाथी अपना सकें। खैर बात यहीं खत्म कर दोनों घर आ गए।
समय बीतता रहा। एक दिन सुजाता ने अविनाश से कहा। तो क्या हमारा प्यार अपने माता-पिता की खुशी के कारण अधूरा रह जाएगा? तुम्हें क्या लगता है सूजी कि इंसान का प्यार पूरा हो गया। क्या उसकी एक सीमा होती है। अपने प्यार के साथ शादी करना, बच्चों की पर‍वरिश करना और अंत में इस दुनिया को अलविदा कह देना। क्या सिर्फ यही प्यार है। कल यदि हमारी शादी अलग-अलग घरों में हो जाएगी तो क्या यह हमारा प्यार, प्यार नहीं रहेगा? उसे भी समझ में आ गया था कि अब वह चाहकर भी अपने प्यार को प्रत्यक्ष रूप से पा नहीं सकती अविनाश के गले लगकर सुजाता खूब रोई। उसके आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। प्यार की कोई सीमा नहीं होती। वह तो हर दिन बगिया में खिलने वाले फूलों की तरह अपनी महक फैलाता है, प्यार को पा लेना ही तो सब कुछ नहीं, प्यार का दूसरा नाम जुदाई भी तो है। अविनाश बोलता जा रहा था और उसकी सूजी सिर्फ सुनती जा रही थी।
वह खुद जानता था कि यह बातें बोलना और उस पर अमल करना हर किसी के लिए आसान नहीं। अविनाश ने परिस्थितियों में अपने आपको ढालना सीख लिया था और आज वह अपने प्यार को भी जीवन की सत्यता से वाकिफ करना चाहता था।
वह दोनों जानते थे कि अब उनका मिलना किसी भी तरह मुमकिन नहीं भलाई सिर्फ इसमें है कि वह खुशी-खुशी एक दूसरे को अलविदा कह दे। पर ? सुजाता बोली..। (अविनाश बीच में ही बोला)
देखो सूजी प्यार कभी कोई सवाल नहीं करता। जहाँ पर भी सवाल और शंकाएँ हों वहाँ प्यार कभी हो ही नहीं सकता। तुम जीवन भर मेरे दिल के कोने में रहोंगे जहाँ पर तुम आज भी हो। मैं तुम्हें कभी भी मन से अलग नहीं करूँगा यह मेरा वादा है। अब तुम भी अपने माता-पिता का वादा निभाओ और उनकी खुशी के लिए वह जो चाहते हैं वैसा ही करो।
उसे भी समझ में आ गया था कि अब वह चाहकर भी अपने प्यार को प्रत्यक्ष रूप से पा नहीं सकती आखिरी बार अविनाश को अपने गले लगाकर सुजाता खूब रोई। उसके आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।
आज उस बात को 2 साल हो गए हैं। कहते हैं ना जो सच्चा प्यार करते हैं उसे ऊपरवाला सच्चा जीवनसाथी जरूर देता है। सुजाता का पति सूजी को ढेर सारा प्यार करता है और अविनाश की पत्नी भी अविनाश को। दोनों ने अपने अतीत से जुडी हुई एक भी बात उनसे नहीं छुपाई शायद इसलिए ही आज उन चारों का प्यार परवान चढ़ा है।

दिल ही नहीं, काया भी साफ रखें

साफ-सुथरा रहने से जीवन में कामयाबी मिलती है
अरुण बंछोर
हेलो दोस्तो! प्यार के बारे में बहुत सी गहरी और गूढ़ अर्थों वाली बातें तो होती ही रहती हैं। इसकी वजह यह है कि यह रिश्ता बहुत ही जटिल होता है। प्यार से संबंधित भावनाएँ बहुत ही नाजुक होती हैं, उनकी अभिव्यक्ति में भी खूब सावधानी से काम लेना पड़ता है। कई बार नीयत तो साफ होती है पर इजहार के तरीके से पासा उलटा पड़ जाता है।
जिस प्रकार हम अपनी अंदरूनी भावना ठीक से पेश न करें तो सही संवाद नहीं बन पाता है। ठीक उसी तरह अगर प्रेमियों की बाहरी प्रस्तुति सही न हो तो भी साथी को खुशी नहीं मिलती। एक आम धारणा है कि गंदे कपड़े, उलझे बाल, अस्त-व्यस्त दिखना, प्यार में डूबे रहने की निशानी है और साथी को इससे खुशी मिलती है पर यह सच नहीं है। हर साथी, दूसरे साथी को स्वस्थ और साफ-सुथरा देखना चाहता है।
आम तौर पर लड़कों में साफ-सफाई की कमी पाई जाती है और वे अपने कपड़ों, नाखूनों, बालों और इस्तेमाल करने वाले सामानों को लेकर बेहद लापरवाह होते हैं पर यह रवैया कोई बहुत अच्छा प्रभाव नहीं छोड़ता है। अगर आप साफ-सुथरे और व्यवस्थित हैं तो आपकी उपस्थिति बहुत ही स्वीकार्य व प्यारी लगती है। आपका व्यक्तित्व निखर कर आता है। आप शांत एवं विश्वसनीय लगते हैं। आपके साथी को आप पर यकीन होता है और आप भरोसे के लायक लगने लगते हैं। आपके साथी के मन में धारणा यह बनती है कि व्यक्ति यदि सुलझा हुआ है तो मेरी जिंदगी भी सुलझा सकता है।
जब आसपास की निगाहें आप पर हों तो आपके आत्मविश्वास को कौन तोड़ सकता है। आपकी इस लोकप्रियता से सबसे ज्यादा जो खुश होता है वह है आपका साथी। जब दोनों अंदर से खुश व स्वस्थ हों तो जीवन में बस-बसा रहता है प्यार ही प्यार! यही हमारा मानव स्वभाव है कि हमें जो चीज नजर आती है हम उसी के अनुरूप अपना मानस बना लेते हैं। अगर सामने वाला अस्त-व्यस्त दिखता है तो कई बार उसके साथ हमारा व्यवहार उतना संजीदा नहीं होता। उसकी कुछ बातें हम टालू अंदाज में भी ले सकते हैं। कोई वायदा निभाने में चार दिन की देर भी हो गई तो क्या फर्क पड़ेगा। एक गंदे एवं अव्यवस्थित व्यक्ति से आत्मविश्वास की वह खुशबू नहीं आती है जो साफ-सुथरे एवं व्यवस्थित व्यक्ति से आती है। कई प्रेमियों के हाथ-पाँव और जूते, कपड़े आदि इतने गंदे होते हैं कि उनकी गर्लफेंड उनके ज्यादा नजदीक आना पसंद नहीं करती हैं। कई बार उनसे आने वाली बदबू से बेचारी दूर ही भागी रहती है। जिस प्रकार लोग अपना गुस्सा, जरा-जरा सी बात पर चिल्लाना, अपनी अनेक सनकी आदतें छोड़ने या बदलने को तैयार नहीं होते हैं, ठीक उसी तरह अपना शारीरिक गंदापन भी समाप्त नहीं करना चाहते हैं।

दोनों के पीछे एक ही मूल भावना होती है कि यदि सचमुच प्यार है तो हमें झेलो पर ऐसी हठ से वह प्यार नहीं मिल सकता है जो कि बदलाव लाने से मिल सकता है। कोई अपना है तो इनसान उसकी कमियाँ बर्दाश्त कर ही लेता है। उसे निभाने की कोशिश करता है पर कोई यदि खुद अपनी कमियाँ सुधार कर अपने साथी को खुशी देना चाहे तो मिलने वाले प्यार की गुणवत्ता बढ़ जाती है।
बाहरी साफ-सफाई का संबंध सीधा स्वास्थ्य से जुड़ा होता है। प्यार में स्वस्थ रहना आपका फर्ज बनता है क्योंकि आपकी जिम्मेदारी केवल आपके प्रति नहीं है बल्कि आपके साथी के प्रति भी आपका कर्तव्य बनता है । अगर आप सेहतमंद और फिट रहेंगे तभी अपने साथी का भी ख्याल रख पाएँगे।
मेरी माने तो रोज नहाना, धुले हुए कपड़े पहनना, व्यायाम करना और संतुलित भोजन करना आपको बहुत ही आकर्षक बना देगा। दूसरों को प्यार करने के लिए हर व्यक्ति को पहले स्वयं को प्यार करना पड़ता है। आप किसी और की अमानत हैं, इस नजरिए से भी आपको अपना ध्यान रखना चाहिए। साफ-सुथरा एवं स्वस्थ्य व व्यवस्थित रहने से जीवन के हर मोड़ पर कामयाबी मिलती है। आप अपने अंदर ऊर्जा एवं आनंद महसूस करते हैं। एक खुश व्यक्ति अपने आसपास के माहौल को गुलजार बनाए रहता है। एक खुशमिजाज व्यक्ति के पास हर कोई खिंचा चला आता है। उससे सभी को स्फूर्ति मिलती है और वह आकर्षण का केंद्र बना रहता है।जब आसपास की निगाहें आप पर हों तो आपके आत्मविश्वास को कौन तोड़ सकता है। आपकी इस लोकप्रियता से सबसे ज्यादा जो खुश होता है वह है आपका साथी। जब दोनों अंदर से खुश व स्वस्थ हों तो जीवन में बस-बसा रहता है प्यार ही प्यार! ज्यादा और पक्का प्यार पाने का यही लव मंत्र है कि अपने स्वास्थ्य, खान-पान, साफ-सफाई का ध्यान रखें। प्यार की खुशबू से आपका जीवन भर जाएगा।

पर्यटन

शिव का धाम महाकेदारेश्वर मंदिर
एक बार जिस पर शिव भक्ति का रंग चढ़ जाता है, वो व्यक्ति फिर कहीं नहीं भटकता क्योंकि शिव ऐसे भक्तों को अपनी भक्ति का आशीर्वाद देकर उन्हें अपनी शरण में ले लेते हैं। हमारे आसपास ऐसे कई शिव मंदिर है, जो कई वर्षों पुराने व चमत्कारी हैं।
अभी पुण्य कर्मादि करने का पवित्र श्रावण मास चल रहा है, ऐसे में शिव मंदिरों में भक्तों का मेला ना लगे, ऐसा कैसे हो सकता है। यदि आप भी शिवभक्ति में अपने मन को रमाना चाहते हैं तो हमारे साथ महाकेदारेश्वर चलिए।
आज हम आपको ले चलते हैं मध्यप्रदेश के ग्राम सैलाना के एक प्राचीन शिव मंदिर में, जिसका महत्व वहाँ के राजा-रजवाड़ों की इस मंदिर में चहलकदमी की बात से ही प्रतीत होता है। सैलाना का महाकेदारेश्वर मंदिर लगभग 278 वर्ष पुराना है।
समय-समय पर यहाँ के राजाओं ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया, जिसकी वजह से आज यह मंदिर अपने अस्तित्व को बचाए रखे है। महाराज जयसिंह, दुलेसिंह, जसवंत सिंह आदि राजाओं ने समय-समय पर इस मंदिर के जीर्णोद्धार में अपना सहयोग प्रदान किया।
मंदिर के पास स्थित कुंड में जब ऊँचाई से झरना गिरता है, तो इसका नजारा बहुत ही खूबसूरत होता है। कुंड के इसी जल में पादप्रक्षालन कर श्रद्धालु शिव मंदिर में दर्शन के लिए पहुँचते हैं। भारी बरसात के कारण कई बार यह कुंड बरसाती जल से लबालब भर जाता है। हर तरफ है सुंदर नजारे :
चारों तरफ हरियाली से घिरी सड़कों के बीच रतलाम से महाकेदारेश्वर का 14 किलोमीटर लंबा सफर शुरू होता है। इस सफर के बीच-बीच में पड़ाव के रूप में आपको दो-तीन गाँव मिलेंगे, जो अब धीरे-धीरे शहरी सभ्यता की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। शहरी लोगों के लिए तो गाँव की छोटी-बड़ी झोपडि़यों व ग्रामीणों के जन-जीवन को करीब से देखने का यह अच्छा अनुभव होता है।
यदि आप बरसात के मौसम में यहाँ आते हैं तो आपका यह सफर वाकई में एक शानदार सफर सिद्ध होगा, क्योंकि इस मौसम में पक्की सड़कों के आसपास हरियाली के सुंदर नजारों की छटा आपकी शिव धाम महाकेदारेश्वर की इस यात्रा को यादगार यात्रा बना देगी।
चट्टानों की तलहटी में विराजे शिव
बरसात के मौसम में महाकेदारेश्वर मंदिर की खूबसूरती हरितिमा की चादर ओढ़ी चट्टानों से ओर भी अधिक बढ़ जाती है। मध्यप्रदेश के आदिवासी अंचल के ग्राम सैलाना से लगभग 3 से 4 किलोमीटर की दूरी पर महाकेदारेश्वर का मंदिर स्थित है। यह मंदिर चट्टानों की तलहटी में स्थित है।
जहाँ पहुँचने के लिए आपको प्रवेश द्वार से चट्टानों के बीच बनी पक्की सड़क से लगभग 1 किलोमीटर की दूरी तय करना पड़ेगी। इस दौरान आपको ऊँची-ऊँची चट्टानों से फिसलते छोटे-छोटे झरनों के खूबसूरत नजारे देखने को मिलेंगे।

यह रास्ता तय करने के बाद मंदिर तक पहुँचने के लिए आपको कई सीढ़ियाँ उतरकर नीचे की ओर जाना पड़ेगा। उसके बाद के नजारे की खूबसूरती तो आपके लिए बहुत ही लाजवाब होगी। आसपास की चट्टानों से रिसता पानी जब छोटी-छोटी नालियों के रूप में एक वृहद झरने का रूप लेता है तो उसकी खूबसूरती ओर भी अधिक बढ़ जाती है।
यहाँ मंदिर के पास स्थित कुंड में जब ऊँचाई से झरना गिरता है, तो इसका नजारा बहुत ही खूबसूरत होता है। कुंड के इसी जल में पादप्रक्षालन कर श्रद्धालु शिव मंदिर में दर्शन के लिए पहुँचते हैं। लगभग प्रतिवर्ष भारी बरसात के कारण कई बार यह कुंड बरसाती जल से इस कदर लबालब भर जाता है कि जल कुंड से बाहर निकलकर बहने लगता है।
बरसात के मौसम में यहाँ जिस तरह से झरने का आकार और उसमें जल की मात्रा बढ़ती जाती है, उसी तरह से इस झरने की झर-झर का शोर भी बढ़ता जाता है। जो हमें प्रकृति के एक सुंदर दृश्य के दर्शन कराता है।
यह मंदिर बहुत सालों पुराना है, जिसका अंदाजा यहाँ के शिवलिंग व अन्य मूर्तियों को देखने से प्रतीत होता है। यहाँ स्थित शिवलिंग भी प्राकृतिक है। शिव दर्शन के बाद जब आप मंदिर से बाहर निकलकर आसपास की खूबसूरत चट्टानों को देखते हैं तो नि:संदेह आपके मुख से भी यही वाक्य निकलेगा कि 'वाह क्या नजारा है।'
किस मौसम में जाएँ केदारेश्वर :
वैसे तो आप हर मौसम में यहाँ जा सकते हैं परंतु बरसात का मौसम यहाँ जाने का सबसे उपयुक्त मौसम होता है।
सैलाना के महाराज का महल, पुराना केदारेश्वर मंदिर, कैक्टस गार्डन, खरमोर पक्षी अभयारण्य, कीर्ति स्तंभ आदि। इसी के साथ ही महाकेदारेश्वर के आसपास रतलाम, जावरा आदि स्थानों पर कई प्राचीन मंदिर व दर्शनीय स्थल है।

नर्मदा के घाटों का अलौकिक सौंदर्य
उद्गम से लेकर सागर समागम तक नर्मदा का जो तेज, जो सौंदर्य, जो अठखेलियाँ और जो अदाएँ दिखाई देती हैं वे जबलपुर के अलावा अन्यत्र दुर्लभ हैं। प्रकृति ने तो इस क्षेत्र में नर्मदा को अतुलित सौंदर्य प्रदान किया ही, स्वयं नर्मदा ने भी अपने हठ और तप से अपने सौंदर्य में वृद्धि इसी क्षेत्र में की है। यहाँ नर्मदा ने हठ और तप से रास्ता भी बदला है। पहले कभी वह धुआँधार से उत्तर की ओर मुड़कर सपाट चौड़े मैदान की ओर बहती थी। उसकी धार के ठीक सामने का सौंदर्य संभवतः नर्मदा को भी आकर्षित करता होगा।
तभी तो लगातार जोर मारती लहरों से चट्टानों का सीना चीरकर हजारों वर्ष के कठोर संघर्ष के बाद नर्मदा ने यह सौंदर्य पाया है जिसे निहारने देश ही नहीं, विदेशी पर्यावरण प्रेमी भी खिंचे चले आते हैं। संगमरमरी चट्टानों के बीच बिखरा नर्मदा का अनूठा सौंदर्य देखते न तो मन अघाता है और न आँखें ही थकती हैं। भेड़ाघाट, तिलवाराघाट के आस-पास के क्षेत्र का इतिहास 150 से 180 करोड़ वर्ष पहले प्रारंभ होता है। कुछ वैज्ञानिक इसे 180 से 250 करोड़ वर्ष पुरानी भी मानते हैं।
उद्गम से लेकर सागर समागम तक नर्मदा का जो तेज, जो सौंदर्य, जो अठखेलियाँ और जो अदाएँ दिखाई देती हैं वे जबलपुर के अलावा अन्यत्र दुर्लभ हैं। प्रकृति ने तो इस क्षेत्र में नर्मदा को अतुलित सौंदर्य प्रदान किया है।
भेड़ाघाट के नाम को लेकर अनेक किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। प्राचीन काल में भृगु ऋषि का आश्रम इसी क्षेत्र में था। इस कारण भी इस स्थान को भेड़ाघाट कहा जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार इसी स्थल पर नर्मदा का बावनगंगा के साथ संगम होता है।
लोक भाषा में भेड़ा का अर्थ भिड़ना या मिलना है। इस मत को मानने वालों के अनुसार इसी संगम के कारण इस स्थान का नाम भेड़ाघाट हुआ।
एक अन्य मत के अनुसार यह स्थान 1,700 वर्ष पूर्व शक्ति का केंद्र था। शैव मत वालों के अलावा शक्ति के उपासक भी यहाँ आते थे इसलिए निश्चय ही यह स्थान कभी भैरवीघाट रहा होगा और बाद में अपभ्रंश होकर भेड़ाघाट हो गया। गुप्तोत्तर काल में संभवतः इस मंदिर का विस्तार किया गया और इसमें सप्त मातृकाओं की प्रतिमाएँ स्थापित की गईं थीं।
ये प्रतिमाएँ आज भी भेड़ाघाट स्थित चौंसठ योगिनी मंदिर में हैं। लगभग 10 वीं शताब्दी में त्रिपुरी के कल्चुरि राजाओं के शासनकाल में इस मंदिर का और विस्तार किया गया। इन सभी मतों के पीछे तर्क और प्रमाण का आधार है। इनमें इतना तो सच है कि इस स्थान को नर्मदा ने अतुलित सौंदर्य प्रदान किया है।
748 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला यह क्षेत्र आज शैव, वैष्णव, जैन तथा अन्य मत-मतांतर मानने वालों के लिए आस्था का केंद्र है। पर्यटन और सौंदर्य की दृष्टि से तो यह महत्वपूर्ण है ही। इस क्षेत्र में नौका विहार द्वारा भ्रमण करते समय नर्मदा के अलौकिक सौंदर्य के दर्शन होते हैं। बंदरकूदनी तक पहुँचते-पहुँचते पर्यटक संगमरमरी आभा से अभिभूत होता है और रंग-बिरंगे पत्थर उसे मुग्ध कर देते हैं।
जबलपुर के भेड़ाघाट में जहाँ से नौका विहार शुरू होता है वहाँ स्थित है पचमढ़ा का प्रसिद्ध मंदिर। यहाँ एक ही प्रांगण में चार मंदिर हैं। दो सौ साल पुराने इन मंदिरों का सौंदर्य अद्वितीय है। ये सभी मंदिर शिव को समर्पित हैं। जबलपुर में इसके अलावा भी अनेक ऐसे स्थान हैं जो नर्मदा क्षेत्र के पर्यटन में चार चाँद लगाते हैं। इनमें ग्वारीघाट, तिलवाराघाट, लम्हेटाघाट, गोपालपुर, घुघुआ फॉल, चौंसठ योगिनी मंदिर और पंचवटीघाट जैसे सौंदर्य से परिपूर्ण स्थल हैं।
इन क्षेत्रों में भी सौंदर्य की अपनी छटा है पर भेड़ाघाट के सौंदर्य के आगे सब फीके नजर आते हैं। जबलपुर में नर्मदा की आस्था का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र है ग्वारीघाट।
शाम होते ही यहाँ का सौंदर्य अद्भुत होता है। घाट पर खड़े होकर नर्मदा की जलराशि में तैरते असंख्य दीप ऐसे लगते हैं मानो पूरा आकाश ही धरती पर उतर आया हो। नर्मदा की मद्धिम लहरों में झिलमिलाते दीपों का प्रकाश मन को प्रसन्न कर देता है।
रोज शाम को दीपदान करने वालों का रेला यहाँ पहुँचता है। नदी के बीच में देवी नर्मदा का मंदिर श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण है। नाव से वहाँ तक पहुँचकर पूजा करना रोमांचक अनुभव है। इसके अलावा घाट पर अनेक मंदिर हैं, जिनमें कुछ प्राचीन हैं तो कुछ हाल के वर्षों में बने हैं। घाट से दूर जाने पर माँ काली का प्राचीन और सिद्ध मंदिर है।
विभिन्न संतों के आश्रम भी आस-पास होने के कारण यहाँ श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता है। कहते हैं नर्मदा के दर्शन से ही सारे पाप नष्ट होते हैं। इसलिए यहाँ दर्शनार्थियों का भी ताँता लगता है। ग्वारीघाट में नौका विहार की भी सुविधा है।

नर्मदा का दूसरा महत्वपूर्ण घाट है तिलवाराघाट
। यहाँ लगने वाला मकर संक्रांति का मेला बड़ा प्रसिद्ध है। इस मेले का इतिहास भी प्राचीन है। यहाँ स्थित मंदिर भी बहुत प्राचीन है। पुराने समय से गोपालपुर स्थित मंदिर की बाहरी छटा अत्यंत सुंदर है।

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

पर्यटन

नर्मदा का उद्गम : अमरकंटक
1065 मीटर की ऊँचाई पर विंध्य और सतपुड़ा पर्वतमालाओं के बीच स्थित हरा-भरा अमरकंटक प्रसिद्ध तीर्थ और नयनाभिराम पर्यटन स्थल है। भारत की प्रमुख सात नदियों में से अनुपम नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकंटक है और यह मध्यप्रदेश के शहडोल जिले की पुष्पराजगढ़ तहसील के दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थित अमरकंटक भारत के पवित्र स्थलों में गिना जाता है।
नर्मदा और सोन नदियों का यह उद्गम आदिकाल से ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रहा है। नर्मदा का उद्गम यहाँ एक कुंड से तथा सोनभद्रा के पर्वत शिखर से है। यहाँ का वातावरण इतना सुरम्य है कि यहाँ सिर्फ तीर्थयात्रियों का ही नहीं बल्कि प्रकृति प्रेमियों का भी ताँता लगा रहता है।
नर्मदा उद्गम
यहाँ नर्मदा के उद्गम पर पवित्र मंदिर है जहाँ तीर्थयात्रियों की कतारें लगी रहती हैं।

सोनमुडा
यह सोन नदी का उद्गम है।
भृगु कमंडल
यहाँ एक प्राचीन कमंडल है जो हमेशा पानी से भरा रहता है।
धूनी पानी
यहाँ घने जंगल में गर्म पानी का सोता है।
दुग्धधारा
यह 50 फीट ऊँचा प्रपात है जो दूध की तरह सफेद दिखाई देता है।
कपिलधारा
यह बेहद खूबसूरत पिकनिक स्थल है और यहाँ जल प्रपात भी है।
माई की बगिया
यहाँ मंदिर के साथ-साथ एक खूबसूरत बगीचा है। अमरकटंक के मंदिरों की संख्या 24 हैं। कबीरा चौरा, भृगु कमण्डल और पुष्कर बाँध भी देखने योग्य हैं। घाटों में बसे अमरकंटक के ग्राम में भव्य शिखरों वाले मंदिर और कई धर्मशालाएँ हैं।
कैसे पहुँचेः-
वायु सेवा- जबलपुर (228 किमी) एवं रायपुर (230 किमी) निकटतम हवाई अड्डे हैं। जबलपुर का हवाई अड्डा आजकल बंद है।रेल सेवा- दक्षिण-पूर्व रेलवे के कटनी-बिलासपुर रेल मार्ग पर पेन्ड्रा रोड (42 किमी) निकटतम रेलवे स्टेशन हैं।
सड़क मार्ग- अमरकंटक के लिए रीवा, इलाहाबाद, मंडला, सिवनी, रायपुर, बिलासपुर, शहडोल, कटनी एवं जबलपुर से सीधी बस सेवा उपलब्ध है।
कब पहुँचे
पूरे वर्ष में आप कभी भी यहाँ जा सकते हैं।
ठहरने के लिए- मध्यप्रदेश पर्यटन निगम के होटल, विश्राम गृह, नगर पंचायत की धर्मशाला एवं कई अन्य धर्मशालाएँ तथा आश्रम भी हैं।

पाती प्रेम की

एक पत्र प्रेम की खातिर

प्रिय .......
हमारी शादी को नौ बरस बीत गए हैं। हमारे पास सब कुछ है- बच्चे, गाड़ी, बंगला और अच्छी आमदनी। फिर भी मैं खुश नहीं हूँ। कुछ है जो हमारे रिश्तों के बीच से गायब है, वह क्या है?तुम खुद ही समझ जाओ, इस इंतजार में मैंने सालों गुजार दिए हैं, लेकिन अब मैं समझती हूँ कि और प्रतीक्षा करना बेकार रहेगा। इसलिए मैं खुद ही तुम्हें बताती हूँ कि आखिर एक विवाहित महिला क्या चाहती है? यह बात मैं तुमसे जबानी भी कह सकती थी, लेकिन मैं समझती हूँ कि लिखित बात अधिक प्रभावी होती है और इसे तुम तसल्ली से पढ़कर मेरी ख्वाहिश के प्रति सकारात्मक रुख अपना सकते हो।
तुम्हें याद होगा कि कोई तीन माह पहले मैंने तुमसे सवाल किया था कि क्या तुम्हें मुझसे प्यार है? इस पर तुम्हारा जवाब था, तुमसे शादी करने का अर्थ ही यह है कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ। वैसे भी यह बात मैंने तुम्हें शादी के बाद ही बता दी थी। तुम्हारे इस जवाब से ही जाहिर है कि तुम अभी तक यह नहीं समझ पाए हो कि एक औरत आखिर चाहती क्या है? तो इसलिए सुनो- हम विवाहित महिलाएँ चाहती हैं कि हमारे पति निरंतर अपने इश्क का इजहार करते रही। हमें किसी पुष्टि की भी जरूरत नहीं है। इसके लिए हम सिर्फ यह अहसास करना चाहती हैं कि अगर मौका पड़ा तो हमारे पति फिर से भी हमीं से शादी करना चाहेंगे।
तुमने जो जवाब दिया था उस पर मैं यह कहना चाहती हूँ कि जिस तरह एक विधायक या सांसद फिर से चुने जाने के लिए अपने मतदाताओं का निरंतर ख्याल रखता है उसी तरह से एक पति को भी अपनी पत्नी का ख्याल रखना चाहिए। इसका अर्थ यह नहीं है कि तुम दिन निकलते ही या साँझ ढले आई लव यू कहो या फिर वेलेन्टाइन-डे पर चॉकलेट से भरा डिब्बा मुझे पेश करो।
तुम्हारा यह सवाल स्वाभाविक होगा कि यह नहीं तो फिर वूइंग (प्रणय निवेदन करना) के तौर पर महिलाएँ क्या चाहती हैं? हर औरत चाहती है रोमांटिक सरप्राइज। काश! कभी ऐसा हो कि मैं अपने जन्मदिन पर सो रही हूँ और तुम मुझे बिना बताए किचन में व्यस्त रहो। मैं जब आँखें खोलूँ तो तुम अपने द्वारा बनाए गए केक को मेरे सामने रखकर कहो- हैप्पी बर्थ डे। या फिर हमारी शादी की सालगिरह हो, तुम मुझे एक सुंदर सा गुलदान देते हुए कहो- यह वह गुलदान है जिसे मैं तुम्हारे लिए शादी की हर सालगिरह पर फूलों से भरा करूँगा। या कभी तुम मुझे एक रोमांटिक इंडोर पिकनिक से सरप्राइज कर दो, जो कंबल और मोमबत्तियों से पूर्ण हो और तुम खाने में मेरी पसंदीदा कढ़ाई-प्लेट डिश को ऑर्डर करना न भूले हो।
मैं जानती हूँ कि शादी के बाद पत्नी को रिझाना या पटाना थोड़ा-सा मुश्किल जान पड़ता है। शादी से पहले डेटिंग के दौरान हम सभी क्लोज-अप की मुस्कान और दफ्तर के एक्जिक्यूटिव के से तौर-तरीके लिए होते हैं। साथ ही योजनाओं में बाधा डालने के लिए बच्चे भी नहीं होते। पानी और बिजली के बिल और कार लोन की किस्तें भी दरमियान में नहीं होंती। लेकिन इन हालात के बावजूद जब पति अपनी पत्नी को वू करता है तो वह इस जानकारी के साथ करता है कि बिना मेकअप के सुबह दाँत साफ करती हुई उसकी पत्नी कैसी दिखाई देती है। जाहिर है कोई सुंदर दृश्य नहीं होता। इसलिए शादी के बाद की वूइंग हम महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
मेरी एक सहेली है, वह जब दफ्तर के लिए निकलती है तो उसका पति दरवाजे पर छाता पकड़ाना नहीं भूलता ताकि वह अपने आपको धूप से बचा सके। यह कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन इससे पता चलता है कि उसका पति उसकी जरूरतों का कितना ख्याल रखता है।

निखिल, क्या मेरी हसरतें एक टूटा हुआ सा ख्वाब ही बनकर रह जाएँगी? अगर नहीं तो कुछ नए अंदाज से मुझे कभी वू करो ताकि मुझे अहसास हो जाए कि तुम मेरी परवाह करते हो और हमारा रोमांस हमारे वैवाहिक जीवन में भी जारी रहे। इस उम्मीद के साथ कि तुम मेरी इन बातों पर गौर करोगे, तुम्हें हमेशा प्यार करने वाली,
तुम्हारी .......

रोमांटिक चुटकुले

खुशी के आँसू !
नीना (टीना से) - पता है मेरे पति के अलावा आज तक किसी गैरपुरुष ने मुझे किस नहीं किया।
टीना (नीना से) - तुम खुद पर गर्व कर रही हो या अफसोस?

चीनी किशन कन्हैया
एक दोस्त दूसरे दोस्त से, 'बिना शादी जुड़वाँ बच्चे पैदा करने पर चीनी प्रेमी-प्रेमिका उनके क्या नाम रखेंगे?
दूसरा दोस्त, 'जो हुआ, सो हुआ?

क्योंकि सास भी कभी बहू थी!
एक दोस्त दूसरे दोस्त से - बता दुनिया के सबसे सुखी और भाग्यशाली पति-पत्नी कौन थे?
दूसरा दोस्त पहले से- आदम और हौवा क्योंकि उनकी कोई सास नहीं थी।

बिना अकल की नकल!
एक लड़की को स्वेटर बुनने का बहुत शौक था। एक दिन वह एक चीनी रेस्तराँ में कॉफी पीने गई। उसने मेज पर पड़ा मीनू कार्ड देखा। मीनू कार्ड के अन्त में बना हुआ डिजाइन उसे इतना पसंद आया कि उसने उसे स्वेटर में बुनने के लिए कागज पर उतार लिया। जब वह उस डिजाइन वाले स्वेटर को पहन कर निकली तो उसे देखकर उसका ब्वाय फ्रेंड बहुत हँसा। लड़की के पूछने पर उसने बताया कि उसके स्वेटर पर चीनी भाषा में लिखा हुआ है 'बहुत ही स्वादिष्ट और बहुत ही सस्ती'।

प्रेम में परिवर्तन!
प्रेमिका (प्रेमी से) - सामने खिड़की में जो तोता-मैना बैठे हैं, दोनों रोज यहाँ आते हैं। साथ-साथ बैठते हैं, चहचहाते हैं और एक हम हैं कि हमेशा लड़ते ही रहते हैं।
प्रेमी- तुमने एक चीज पर ध्यान नहीं दिया। यहाँ बैठने वाले जोड़े में से तोता तो रोज वही होता है, पर मैना हमेशा नई होती है।

शरारत में रहस्य!
एक कुमारी का बचपन से ही कोई रोमांस नहीं हुआ था। एक दिन उसने रोमांचक सपना देखा- वह एक वन में घूमने जा रही है, तभी एक सुंदर तरुण साड़ी के पीछे से निकलकर उस पर झपटा। वह भागी लेकिन एक घने पेड़ की मधुर छाया में तरुण ने उसे पकड़ लिया।
तुम--तुम क्या करने जा रहे हो? वह हकबकाई।
शैतानी से मुस्कराकर वह बोला- तुम बताओ। यह तुम्हारा सपना है।
तो इस मादक प्रेम का परिणाम क्या है? सखी ने पूछा।
'आत्मसमर्पण' जिसका पहला छोर विवाह है, दूसरा मातृत्व। दूसरी सखी बोली।

अजब समस्या!
पत्नी - अजी, यह जो आप पैंट बार-बार ऊपर खींचते हो, वह बहुत बुरा लागता है।
पति - मेरा खयाल है अगर मैं पैंट ऊपर न खींचूँ तो और भी बुरा लगेगा।

पूँजी में वृद्धि !
शेयरों में डूबे धन का हिसाब किताब लगाते पति से मोटी सी पत्नी ने पूछा, 'सुनो, मैं बहुत मोटी हो गई हूँ, सोचती हूँ कुछ डायटिंग कर लूँ।
नहीं, तुम ऐसा कभी मत करना, तुम्हीं तो मेरी ऐसी पूँजी हो जो पहले से दोगुनी हुई है।

अनोखा उपहार!
एक प्रेमी ने सोचा कि प्रेमिका से विवाह का प्रस्ताव नए अंदाज में किया जाए। उसने एक दिन प्रेमिका से मुलाकात होने पर कहा, 'प्रिये, मैं स्वयं को तुम्हें भेंट करना चाहता हूँ।
मुझे घटिया तोहफे लेने की आदत नहीं हैं, प्रेमिका ने बुरा सा मुँह बनाकर कहा।

प्रेम कथाएँ

फ़कीर का हुस्न
एक सूफी संत अपने शिष्यों के साथ दुग्ध-धवल चाँदनी रात में अपने घर की छत पर ईश्वर आराधना में मग्न थे। कौतुकवश एक नवयुवक भी वहाँ आया और चुपचाप सत्संग में शामिल हो गया, उसे बड़ा आनंद आया। इतना सुकून, इतनी शांति तो उसे कभी नहीं मिली थी। संत ने भी उसे अपना आशीर्वाद दिया और कहा ‍कि बराबर आया करो।
कुछ दिन बाद अचानक युवक अनुपस्थित रहने लगा। कई सप्ताह, महीने गुजर गए। एक दिन वह आया और उदास मुख, जर्जर शरीर, उखड़े मन से सत्संग में बैठ गया, सबसे पीछे।
गुरु ने देखा और सब कुछ समझ लिया। उसे पास बुलाया। बेटे इतने दिन क्यों नहीं आए। मैंने तो तुम्हारा काफी इंतजार किया... ये दुनिया बड़ी मायावी और दिलकश है। मेरी तरफ देखो' संत ने अपनी दाढ़ी पर हाथ‍ फिराते हुए कहा,' क्या इससे ज्यादा खूबसूरती है कहीं दुनिया में।' युवक संत की भुवन मोहिनी मुस्कान के आगे नत था।
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सिन्दूर की शुरुआत
नई शादी हुई थी वीरजी भील की। धीरा उसकी पत्नी का नाम था। अत्यंत सुंदर और बहादुर औरत। तीर-कामठी (धनुष-बाण) लेकर वीर जी शिकार के लिए जंगल गया था, दिनभर घूमता रहा। शिकार न मिला। थककर चूर वह एक पत्‍थर पर सो गया।
गहरी साँस, रात घिर आई थी। आज की खुराक नसीब न हुई। वीरजी की तंद्रा टूटी, कंधे पर तीर-कामठी डाली, वह भारी पगों से घर की ओर चल पड़ा।
तभी क्षेत्र के एक दुर्दान्त डाकू कालू ने उसे ललकारा - कूँण है? काँ जाई रयो है? (कौन है, कहाँ जा रहा है?)
वीर जी ने मुठभेड़ टालनी चाही, लेकिन अपने क्षेत्र में बेरोकटोक घूमने वाले को दस्यु राज कैसे बर्दाश्त करता?
डाकू ने भरपूर वार किया अपने हथियार से। वीरजी धराशायी लुढ़क गया जमीन पर... संज्ञाहीन।
काफी रात बीत गई थी। अपने पति को खोजती धीरा उधर से गुजरी। वीरजी जमीन पर पड़ा था... खून की धार माथे से बह रही थी, दस्यु कालू वहीं खड़ा था अट्‍टाहस करता हुआ।
धीरा की रगों में बहादुर बाप का खून था। वह शेरनी की तरह झपटी और अपने दराँते से उसने कालू के सिर पर भरपूर वार किया। डाकू कराहता हुआ जमीन पर पड़ा था।
पति को तब तक होश आ गया था। उसने पहले सामने खड़ी पत्नी को, फिर घायल डाकू को देखा। वीरजी उठा और अपने खून से अपनी पत्नी धीरा की माँग भर दी। अंचल में इस शौर्य कथा को लेकर एक किंवदंती अब भी प्रचलित है। बुजुर्गों के अनुसार 'सिंदूर की शुरुआत' उसी दिन से हुई थी।

'दो पल का साथ'

इंदौर-मुंबई सेंट्रल अवंतिका एक्सप्रेस की बोगी नं. 5 बारातियों से भरी थी। शुभदा भारी बनारसी साड़ी में लिपटी सहमी सी बैठी थी जैसे ही ट्रेन ने इंदौर स्टेशन छोड़ रफ्तार पकड़ ली उसकी आँखों से बहती धाराओं ने भी गति बढ़ा दी। यूँ तो अनु दीदी भी उसके साथ थी पर ये शहर हमेशा के लिए छूटा जा रहा था।
शुभदा की माँ को गुजरे पाँच महीने बीत गए थे। नन्ही इशिता भी अब चार महीने की हो चुकी है। इस डिलेवरी के लिए ही तो अनुपमा भारत आई थी। इसी बीत माँ का देहान्त हो गया। तभी अनुपमा ने शुभदा की शादी कर देने व पिता को अपने साथ एमस्टरडम ले जाने का निर्णय कर लिया।पेशे से साफ्‍टवेयर इंजीनियर विजित रिश्ते में अनुपमा का चचेरा देवर था। कुछ समय बाद वह भी एमस्टरडम शिफ्ट होने वाला था। सब कुछ अनु का देखा भाला था। शुभदा भी विजित के मम्मी-पापा को पसंद थी पर विजित पाँच साल से फ्लोरिडा में था इसलिए दोनों ने एक-दूसरे को देखा नहीं था।
माँ के गुजरने के बाद शुभदा अनुपमा की जिम्मेदारी हो गई थी। इसलिए वो चाहती थी कि ये रिश्ता हो जाए तो शुभदा हमेशा उसकी आँखों के सामने रहेगी।
सब कुछ इतनी जल्दी हो जाएगा इसकी कल्पना भी शुभदा ने नहीं की थी। विजित पंद्रह दिनों की छुट्‍टी लेकर आया था। शुभदा पसंद आते ही उन्हीं पंद्रह दिनों में शादी की जिद पकड़ ली विजित के मम्मी-पापा ने।
अनुपमा भी यही चाहती थी। जल्द ही तैयारियाँ शुरू हो गईं। शुभदा की खामोशी को सबने माँ की कमी का खलना समझकर नजरअंदाज कर दिया। फिर शुभदा के पास भी कहाँ ऐसा कोई कारण था कि वो इस शादी से इंकार करती।
'शुभदा! क्या देख रही हो बाहर विजित तो अंदर है' - 'विजित की बहन हँसते हुए बोली' रतलाम आते ही खाने के पैकेट्‍स खुल गए थे। विजित भी बहाने से उठकर शुभदा के पास चला आया। उसने जब शुभदा की ओर देखा तो शुभदा की आँखों में अचानक वही अनजाना सा चेहरा उभर आया। उसे लगा कि अभी भी वो यहाँ से गुजर जाए तो उसे पहचानने में पल भर देर न लगेगी उसे।
पहली नजर का प्यार पहले एक सिरफिरी रोमांटिक कल्पना के अलावा कुछ न था शुभदा के लिए। वेलेंटाइन डे लोग क्यूँ मनाते हैं इतने उपहार क्यों खरीदते हैं उसे समझ में ही नहीं आता था।
एमएससी का आखिरी पेपर देकर नेट की तैयारी शुरू कर दी थी उसने। पर एक ही दिन में उसकी जिंदगी बदल गई थी। माँ को नींद में ही दिल का दौरा पड़ा और फिर वो कभी नहीं उठी। अनु दी की डिलेवरी नजदीक ही थी। तेरहवीं तक रुककर उसकी सास ने उसे अपने साथ मुंबई ले जाना ही ठीक समझा।
थोड़े समय बाद ही शुभदा एक प्यारी सी भांजी की मौसी बन गई। रोहित के एम्स्टरडम से आते ही उसका नामकरण था। इसी नामकरण में जाने के लिए ही तो शुभदा पिछली बार इस ट्रेन में सवार हुई थी 20 दिन पहले की बात है मगर लगता है एक युग बीत गया।
एक ठंडी साँस लेकर शुभदा ने ट्रेन के अंदर झाँका। बारातियों का शोर थमने लगा था। सब सोने की तैयारी में थे। शुभदा की आँखों में नींद नहीं थी, था तो वह 20 दिन पुराना सफर जो पूरी तरह अतीत नहीं हुआ था।
वह सफर माँ की यादों से भरा था। न उसे किसी से बात करने का मन था न बाहर कुछ देखने का। नींद भी ठीक से नहीं आई थी। सुबह पाँच बजे से ही मुंबई शुरू हो चुकी थी अपने दिनभर के सफर के लिए। रात का अँधेरा ऊँची इमारतों, फ्लायओवरों पर जलती स्ट्रीट लाइटों की रोशनी में घुला जा रहा था।
लोगों ने बर्थ के नीचे से अपना सामान निकालना शुरू कर दिया था। विरार...नाला सोपारा... वसई ... एक-एक स्टेशन तेजी से पीछे छूटता जा रहा था।
शुभदा भी उठ गई थी। फ्रेश होने के लिए जा रही थी कि सामान दरवाजे तक लाने के लिए धक्कामुक्की कर रहे लोगों को साइड देने के लिए एक कम्पार्टमेंट में थोड़ा अंदर मिडिल बर्थ पकड़ कर खड़ी हो गई।
उस बर्थ पर सोया हुआ व्यक्ति उठने की तैयारी में था शायद। उसका हाथ शुभदा के हाथ पर पड़ा अचानक ही और वह हड़बड़ाकर मुँह पर से चादर हटाते हुए उठकर बैठने लगा। और उसका सिर बर्थ से जा टकराया। शुभदा ने एक नजर उसे देखा और उसे हँसी आ गई। वह भी झेंप मिटाने के‍ लिए मुस्कुरा दिया।
बोरीवली में शुभदा को भी उतरना था। अत: औरों की तरह वह भी दरवाजे के पास वाली बर्थ पर आ बैठी। नीली ‍जर्किन पहने भरी कद-काठी का वह साँवला सा लड़का भी दरवाजे के बीच आकर खड़ा हो गया। वह कनखियों से कभी शुभदा को देखता तो कभी बाहर।
शुभदा को भी समझ में नहीं आ रहा था कि फास्ट लोकल के धड़धड़ करते हुए इतने पास से गुजर जाने पर उसकी धड़कन तेज हो जाती है या उस युवक के इस तरह देखने से।
बोरीवली आते ही गाड़ी प्लेटफार्म नं. 6 पर जाकर धीमी हो गई। बाहर खड़े लोग अपने रिश्तेदारों को ढूँढ़ते हुए उनकी बोगियों की तरफ दौड़ रहे थे। वह भी दादा कहकर किसी को आवाज देते हुए हाथ हिला रहा था। गाड़ी भी रुक गई थी।लोगों की धक्कामुक्की में वह भी ट्रेन से उतर गया। और उसका सामान अंदर ही रह गया। शुभदा ने अपने सामान के साथ धकेलकर उसका सामान दरवाजे तक ला पहुँचाया। गाड़ी ने व्हिसील दी। पीछे से धक्का लगा और घबराहट में शुभदा के हाथ से गाड़ी का हैंडिल छूट गया और सीढ़ियों से उसका पैर फिसल गया। शुभदा का हाथ थामकर उस लड़के ने उसे गिरने से तो बचा लिया पर फिर भी किसी सामान से टकराकर उसके पैर में चोट लग गई थी। उसने शुभदा को एक तरफ खड़ा कर दिया।
'आप यहीं रुकिए मैं कुछ लेकर आता हूँ' कहकर पीछे से आकर उसने बैग उठा लिए'
'जीजू वो.... शुभदा ने पैर के अँगूठे की तरफ इशारा कर दिया।
ओह... चलो गाड़ी में फर्स्ट एड बॉक्स है कहकर रोहित आगे बढ़ गए।
मजबूरी में शुभदा को भी कदम बढ़ाने पड़े। स्टेशन से निकलकर कार में बैठने तक भी शुभदा की नजरें उसे ही ढूँढ रही थी। उसने शुभदा को ढूँढा होगा क्या, उसका सामान भी तो वहीं था।
उसे अपने आप पर गुस्सा भी आया कि उसने उस लड़के का इंतजार क्यों नहीं किया। रोहित से कुछ कहा क्यों नहीं उसकी आँखों से आँसू बह निकले।रुक भी जाती तो क्या हो जाता, उन दो पलों में। क्या जरूरी है कि जो शुभदा के दिल में है वही उसके दिल में भी हो। फिर भी उसके हाथ का जो स्पर्श शुभदा के दिल को छू गया था, उसकी आँखों में जो अपनापन था उससे शायद वह अपने को अलग नहीं कर पा रही थी। गेटवे ऑफ इंडिया, महालक्ष्मी जहाँ भी जाती उसे लगता एक बार वो मिल जाए। पहली बार उसे लगा कि उसके साथ वेलेंटाइन डे मनाना कितना रोमांटिक होगा। उस अजनबी के साथ जिंदगी बिताना कितना सुखद होगा।
इशिता के नामकरण के साथ ही दोनों परिवारों में विजित और शुभदा की शादी को लेकर चर्चा चलने लगी थी। विजित के आते ही सब तय हो गया।
पर यहाँ कहाँ हमेशा रहना है देख लूँगी कभी यह कहकर वह विजित के साथ घूमने से बचती।
'शुभदा उठ बोरीवली आने वाला है' अनु दी उसे उठा रही थी' जाने कब उसकी आँख लग गई थी। उस दिन की तरह आज भी ट्रेन रुकी थी बोरीवली, पर आज शुभदा को सेंट्रल तक जाना था।
मुंबई सेंट्रल आते ही मेहमान व सामान कार से रवाना हो गए। बड़ी-बूढ़ी स्त्रियाँ आगे की रस्मों पर विचार कर रही थीं। कुछ तैयारियाँ बाकी थीं इसलिए शुभदा गृह प्रवेश नहीं कर सकती थी। अत: उसे सामने वाले फ्लैट में एक-दो घंटे रुकना था।
विजित ने जैसे ही बेल बजाई दरवाजा खोलने वाले व्यक्ति को देखकर शुभदा के पैर लड़खड़ा गए। दरवाजे की चौखट थामकर वह वहीं खड़ी हो गई। वह भी हतप्रभ सा उसे देख रहा था।'शुभदा ये आराध्य है मेरा पड़ोसी है और कॉलेज का फ्रेंड भी। हमारी शादी में नहीं आ सका क्योंकि 20 दिन पहले स्टेशन पर किसी लड़की को ढूँढते हुए सामान से भरी ट्राली से जा टकराया। लड़की तो मिली नहीं हाथ भी फ्रेक्चर हो गया। - 'विजित हँसते हुए बोला।
हाँ, उसको दुल्हन बनाकर इस घर में लाने का सपना एक बार मैंने भी देखा था। पर प्यार का मतलब सिर्फ पाना नहीं होता दोस्त वह जहाँ भी रहे खुश रहे कहकर उसने अपना बायाँ हाथ विजित की तरफ बढ़ा दिया, उसके दाएँ हाथ में फ्रेक्चर था।
शुभदा को अंदर आने के लिए कहकर वह एक तरफ हो गया। दुल्हन के रूप में अंदर कदम रखती शुभदा से उसकी आँखों की भीगी कोरें छुपी न रह सकी।

प्यार में है ईमानदारी जरूरी

हेलो दोस्तो! कई बार आप उस रास्ते की ओर बढ़ते जाते हैं जिसकी कोई मंजिल नहीं होती। हैरानी इस बात की होती है कि आपको उस रास्ते की रुकावटों का ज्ञान पूरी तरह होता है। फिर भी ताजी हवा की चाह में आप उसी तरफ बढ़ते जाते हैं। यह जानते हुए भी कि यहाँ जीवनदान देने वाली फिजा व आँखों को सुकून देने वाले नजारे आपके लिए हमेशा नहीं रहेंगे।
आप इसे खो देने के डर से इतने भयभीत हो जाते हैं कि जब तक मुमकिन हो इसका सुख नहीं छोड़ पाते। आप यह सोचना ही नहीं चाहते कि बहुत दूर निकल जाने पर वहाँ से लौटना कितना कठिन होगा। पर शायद किसी चमत्कार का इंतजार रहता है। शायद कोई जादुई करिश्मा हो जाए और उस अंतहीन सफर की एक मंजिल मिल जाए। पर जीवन के किसी भी क्षेत्र में कभी कोई चमत्कार जैसी चीज नहीं होती है।
हाँ, कुछ ऐसे खुशकिस्मत अवश्य होते हैं जिन्हें उनके मनमाफिक रास्ता मिलता जाता है पर अमूमन हर दिखने वाले चमत्कार के पीछे संघर्ष की लंबी पृष्ठभूमि होती है।
रिंकु जी, आप किसी चमत्कार की उम्मीद न ही करें तो अच्छा है। आप 25 वर्ष के हैं और आपकी दोस्त 18 वर्ष की है। आप लोग एक दूसरे को बेहद प्यार करते हैं। मुश्किल यह है कि आपकी दोस्त अपने घर वालों की मर्जी के बिना आपसे शादी नहीं कर सकती।
आप अपने परिवार की सहमति लेकर उससे शादी करने को तैयार हैं। आपकी दोस्त को अपने परिवार वालों के मान जाने की बिल्कुल ही उम्मीद नहीं है तभी वह यह दिलासा देती रहती है कि शादी के बाद भी वह आपसे मिलती रहेंगी और ध्यान रखेंगी। रिंकु जी, ऐसा बहुत कम होता है कि कोई साथी इतनी ईमानदारी से अपनी स्थिति सामने रखकर किसी से प्यार करे। अमूमन जाने-अनजाने ही लोग खुद भी और साथी को भी भ्रम में ही रखते हैं।
आपकी दोस्त जो इतनी कम उम्र की हैं फिर भी वह अपने रिश्ते के प्रति बेहद साफ नजरिया रखती हैं। अगर उसका यही फैसला है तो भी उसका आदर करें और इसे रिश्ते से पीछे हट जाएँ।

आपको इस रिश्ते से इसलिए भी पीछे हट जाना चाहिए क्योंकि आपकी दोस्त आपको उतना प्यार नहीं करती जितना आप उसे करते हैं। या यूँ कह लें कि आपकी दोस्त जितना अपने परिवार की चिंता करती हैं उतनी आपकी नहीं करती।
पर सबसे अच्छी बात यह है कि उन्होंने इस मामले में आपको धोखे में नहीं रखा है। वरना वह दोस्ती का चक्कर भी चलाती रहती और जब उसकी शादी हो जाती तो वह माफी माँगकर चलती बनती। पर उसने अपनी स्थिति आपके सामने बिल्कुल साफ रखी है। उसके बावजूद भी यदि आप जबरदस्ती उसके पीछे-पीछे भाग रहे हैं तो इसको कोरी नादानी ही कहा जाएगा।
शादी होने के बाद भी वह आपसे मिलती रहेगी ऐसी सांत्वना एक कच्ची उम्र की लड़की ही दे सकती है। हो सकता है आपके रोने-धोने से उसे दया आ जाती हो और वह इस प्रकार का दिलासा देकर आपका साहस बँधाना चाहती हो। एक तरह से तो यह उसकी समझदारी है। जो कुछ कर पाना उसके हाथ में नजर आता है वह उसका भरोसा दिला रही है। पर यह तो आप भी अच्छी तरह समझ रहे होंगे कि ऐसा कुछ संभव नहीं होगा।
अब आपके परिपक्वता दिखाने का समय है। आपको इस रिश्ते से फौरन पीछे हट जाना चाहिए। किसी को केवल भावनाओं में उलझाकर उसके मन के खिलाफ ले जाना उचित नहीं है। वह अपने माँ-बाप को प्यार करती है, उनका दिल नहीं दुखाना चाहती है इसमें बुराई क्या है। आप निश्चित जानें वह कभी आपके साथ नहीं रहेग और भेद खुलने पर वह इस रिश्ते से इन्कार भी कर देगी। यदि वह आपसे उतना प्यार नहीं करती है तो कायदे से उसे यही करना भी चाहिए
कहावत है, बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी। आप किस दिन का इंतजार कर रहे हैं। जब वह शादी करके चली जाए तब आप अपने लिए लड़की खोजने निकलेंगे। रिंकु जी, तब बहुत देर हो चुकी होगी। आप बहुत ज्यादा मायूस हो जाएँगे।।
सूनापन व अकेलापन आपका हौसला तोड़ देगा। तब आपमें वह ताकत नहीं बचेगी कि आप शांत मन से एक रिश्ते के बारे में निर्णय ले सकें। आप इतने अधिक अवसाद में चले जाएँगे कि किसी चीज में आप रुचि लेना नहीं चाहेंगे। नीरसता, उदासी आपके व्यक्तित्व का हिस्सा बन चुकी होगी। बेहतर यही है कि आप अभी से ही अन्य रिश्ते के विषय में सोचना शुरू कर दें। घर वालों की पसंद की लड़की से भी आप शादी कर सकते हैं।
अपनी दोस्त से मिलना-जुलना कम कर दें। इसी में आपकी भलाई है। यह रिश्ता बनाए रखना यानी कसाई की ओर खुद जाना और स्वयं को पेश करना है। आप समय रहते चेत जाएँ इसी में आपकी भलाई है। वरना मजनूँ की तरह यहाँ-वहाँ भटककर आप अपनी जिंदगी तबाह कर देंगे। इस मामले में आप अपनी ज्यादा बदनामी न करें तो अच्छा है। यह किस्सा ज्यादा खुल गया तो आपकी शादी होनी भी मुश्किल हो जाएगी। लोगों का यह मानस बन जाता है ‍कि पता नहीं वह भविष्य में अपने रिश्ते के साथ न्याय करेगा कि नहीं?उनका यह शक बेजा भी नहीं होता है। अक्सर लोग अपने नए रिश्ते में पुराने प्रेम की परछाईं तलाशने लगते हैं और उसमें निराशा ही हाथ लगती है। हर व्यक्ति अपनी तरह का होता है वह किसी और का प्रतिरूप नहीं हो सकता। उस वक्त किसी और की छवि को मन में बैठाकर किसी अन्य को उसमें खोज पाना असंभव सा हो जाएगा।
व्यावहारिकता का यही तकाजा है कि आप अपने भविष्य के लिए गंभीरता से विचार करें। इस रिश्ते को यहीं पर अलविदा कह डालें और आगे निकल चलें। अभी आपकी उम्र ही क्या है। किसी के चले जाने से बहारें नहीं रुकती। चमन खाली नहीं होता। आप इतने भाग्यवान हैं जो प्रेम की इतनी खूबसूरत व हसीन यादें आपको नसीब हुईं जो हमेशा आपको संपूर्णता का अहसास कराएगी।

सेहत

हेल्थ मिथ : कितने सच, कितने झूठ
खाइए सब, बस थोड़ा-थोड़ा
अगर आप शेल्फ पर रखी बेस्ट सेलिंग डाइट बुक्स पर नजर मारें तो घबराकर दो-चार चॉकलेट एक साथ खा जाएँगे। एक कहती है 'कार्बोहाइड्रेट्स खाओ' तो दूसरी कहती है 'कार्बोहाइड्रेट्स न खाएँ।' कोई कहेगी गेहूँ को हर सूरत में अपने आहार से निकाल दें। कोई कहती है गेहूँ के बिना लाइफ कैसी? अब आप क्या करें? सही क्या है? चलिए इन सब मिथों की हकीकत बताने में हम आपकी मदद करते हैं।
फैट के मोटे झूठ
एक मिथ यह है कि फैट कैलोरी आपको मोटा करती है। प्रोटीन कैलोरी आपको पतला करती है। हकीकत यह है कि कैलोरी तो कैलोरी ही होती है। लेकिन कैलोरी में प्रोटीन की तुलना में फैट ज्यादा होता है। एक ग्राम प्रोटीन चार कैलोरी के बराबर होती है। लेकिन एक ग्राम फैट नौ कैलोरियों के बराबर होता है। इसलिए प्रोटीन खाने की तुलना में व्यक्ति फैटी फूड्स खाकर आसानी से मोटा हो जाता है।
डेयरी प्रोडक्ट्स कितने शुद्ध
कहा जाता है कि अगर आप वजन कम करना चाह रहे हैं तो डेयरी प्रोडक्ट्स न खाएँ। तथ्य यह है कि लो-फैट डेयरी प्रोडक्ट आपको पौष्टिकता प्रदान करता है। अगर आप लैक्टोज को बर्दाश्त कर लेते हैं तो लो-फैट डेयरी अच्छी है। स्टडी से मालूम हुआ है कि जो युवा रोजमर्रा का आवश्यक कैल्शियम डेयरी फूड्स से हासिल करते हैं, वे दो साल में वास्तव में वजन और बॉडी फैट कम कर लेते हैं, चाहे एक्सरसाइज करें या न करें। आप जितने चाहें लो-फैट स्नैक्स खा लें फिर भी आपका वजन कम होगा। बहुत से लो-फैट फूड्स स्वाद व एक्स्ट्रा शुगर की पूर्ति करते हैं।
सैफ है सलाद
बताया जाता है कि अगर आप सलाद खा रहे हैं तो आप सुरक्षित हैं। सलाद आपका बहुत अच्छा फ्रेंड होता है। लेकिन जरूरी नहीं कि ऐसा ही हो। एक औसत डायटियर के लिए यह ऐसा है जैसे लैटूसी के ऊपर कुछ भी डाल दो, कैलोरी कम हो जाती है। लेकिन जरा गौर से देखें। यह ऑइली ड्रेसिंग में लिप्त होता है। अगर हम ग्रेप फ्रूट, सेलेरी और लैटूसी के अलावा कुछ न खाएँ तो वजन कम हो जाएगा। लेकिन हम बहुत बीमार भी हो जाएँगे, क्योंकि हमारे आहार में प्रोटीन या फैट नहीं होगा।
स्वीट है शुगर
कहा जाता है कि मोटापा बहुत अधिक शुगर खाने का नतीजा है, जबकि तथ्य यह है कि दोनों शुगर और फैट इसके लिए जिम्मेदार हैं। वैसे मोटापे की असल वजह ज्यादा खाना और पर्याप्त एक्सरसाइज न करना है। उक्त मिथ के चलते यह सुझाव भी दिया जाता है कि केला, अंगूर, चीकू, आम न खाया जाए, क्योंकि इनमें शुगर की मात्रा अधिक होती है। यह बेकार की बात है।
एक केले में 18 ग्राम शुगर होती है, आधा कप अंगूरों में 7 ग्राम और दोनों की कैलोरी प्रति सर्विंग 70 और 110 के बीच होता है। इनमें खूब फाइबर, कैरोटिनोइड्स, पोटेशियम और कोलेट होता है। इसलिए ये भी पोषक फूड हैं। हाँ, आप कितनी मात्रा में इन्हें खा रहे हैं, ये ज्यादा मायने रखता है। इसलिए खाइए सब, लेकिन बैलेंस में। एक्सरसाइज भी कीजिए और अनियमित दिनचर्या से भी बचिए।

सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

सुंदर तालों वाला भोपाल

सुंदर तालों वाला भोपाल
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में प्राकृतिक खूबसूरती भी है और समृद्ध अतीत भी। यह शहर प्राचीनता और नवीनता का अद्भुत संगम है। ग्यारहवीं सदी के भोजपाल तथा तत्पश्चात भूपाल नामक इस नगर को परमारवंशी राजा भोज ने बसाया था। एक बहुरंगी तस्वीर पेश करता है। एक ओर पुराना शहर है जहाँ लोगों की चहल-पहल के बीच बाजार है, पुरानी सुंदर मस्जिदें तथा महल हैं। दूसरी तरफ नया शहर बसा हुआ है। जिसके सुंदर पार्क और हरे-भरे वृक्ष गहरी राहत देते हैं। भोपाल पाँच पहाड़ियों पर बसा है तथा इसमें दो झीलें हैं। यहाँ की जलवायु सम है। कहा जाता है कि भोपाल को अफगान सैनिक दोस्त मोहम्मद ने बसाया था।
दर्शनीय स्थल : जामा मस्जिद
इस खूबसूरत मस्जिद की विशेषता हैं सुनहरी मीनारें। इसे 1837 में कुदसिया बेगम ने बनवाया था।

मोती मस्जिद
दिल्ली की जामा मस्जिद के आधार पर बनी इस मस्जिद को कुदसिया बेगम की बेटी सिकंदर जेहन ने 1860 में बनवाया था।

शौकत महल और सदर मंजिल
शौकत महल शहर के बीचोंबीच चौक क्षेत्र में स्थित है। यह भवन निर्माण कला का अनोखा नमूना है। आस-पास के इस्लामी भवनों से यह बिल्कुल अलहदा दिखाई देती है। कारण यह है कि इसे एक फ्रांसीसी द्वारा डिजाइन किया गया था। पुनर्जागरण काल की शैली के दर्शन इसमें सहज ही किए जा सकते हैं। इसी के पास है सदर मंजिल जो भोपाल के शासकों द्वारा बनवाया गया सार्वजनिक हॉल है।
ताज-उल-मस्जिद
यह एशिया की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है। इसे नवाब शाहजेहन ने बनवाया था। इसके चारों ओर दीवार है और बीच में एक तालाब है। इसका प्रवेश द्वार दो मंजिला है। जिसमें चार मेहराबें हैं और मुख्य प्रार्थना हॉल में जाने के लिए 9 प्रवेश द्वार हैं। पूरी इमारत बेहद खूबसूरत है। यहाँ लगने वाला तीन दिन का इज्तिमा पूरे देश के लोगों को आमंत्रित करता है।

गोहर महल
शौकत महल के सामने बड़ी झील के किनारे स्थित वास्तुकला का यह खूबसूरत नमूना कुदसिया बेगम के काल का है जिन्हें गोहर बेगम भी कहा जाता था। यह हिंदू और मुगल कला का अद्भुत संगम है।

भारत भवन
यह भारत की अनूठी राष्ट्रीय संस्था है। मुख्य रूप से यह प्रदर्शन कला और दृश्य कला का केंद्र है। इसे चार्ल्स कोरिया ने डिजाइन किया है। विशाल क्षेत्र में फैले इस भवन के आस-पास का प्राकृतिक सौंदर्य इसे और भी भव्य बनाता है। यहीं पर एक कला संग्रहालय, कला दीर्घा, फाइन आर्ट के लिए कार्यशाला, एक थिएटर, अंतरंग और बहिरंग ऑडिटोरियम, रिहर्सल कक्ष, भारतीय कविताओं का पुस्तकालय, शास्त्रीय और लोक संगीत संग्रहालय भी है। यह सोमवार के अलावा पूरे सप्ताह दोपहर 2 बजे से रात 8 बजे तक खुला रहता है।

इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय
यह एक अनूठा संग्रहालय है जो 200 एकड़ में श्यामला हिल्स पर बड़ी झील के सामने फैला है। यह एक प्रागैतिहासिक स्थल पर है और विश्व में अपनी तरह का एक ही संग्रहालय है जो प्रागैतिहासिक चित्रकला से सज्जित गुफाओं के समीप है। और इस तरह से यह वस्तुओं और परंपराओं से जीवंत रूप से जुड़ा हुआ है। लोक एवं आदिवासी कला व परंपरा यहाँ इर्द-गिर्द ही मौजूद हैं। यहाँ आदिवासी, समुद्र किनारे, रेगिस्तान और हिमालय के आवासों के नमूने भी बनाए गए हैं। यहाँ संग्रहालय में पुस्तकालय, दृश्य-श्रृव्य आर्काइव, कंप्यूटरीकृत कक्ष व प्रजातीय नमूनों को देखा जाता है।

शासकीय पुरातात्विक संग्रहालय
यहाँ मध्य प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से कला के खूबसूरत नमूने एकत्रित करके रखे गए हैं। संग्रहालय सोमवार को बंद रहता है।

लक्ष्मी नारायण मंदिर और संग्रहालय
यह अरेरा हिल्स पर स्थित है। इससे लगा हुआ एक संग्रहालय है जहाँ मध्यप्रदेश के रायसेन, सीहोर, मंदसौर और शहडोल जिले से एकत्रित कला नमूनों को रखा गया है। यह संग्रहालय भी सोमवार को छोड़कर पूरे सप्ताह 9 बजे से 5 बजे तक खुला रहता है।

वन-विहार
बड़ी झील से लगी पहाड़ी पर यह सफारी उद्यान स्थित है। यह 445 हैक्टेयर में फैला है। प्राकृतिक सुंदरता के बीच आप विभिन्न प्रकार के शाकाहारी और माँसाहारी प्राणियों को देखने का आनंद उठा सकते हैं। यह मंगलवार को छोड़कर हर दिन सुबह 7 से 11 और 3से 5 बजे शाम खुला रहता है।

क्षेत्रीय विज्ञान केंद्र
यह मूल रूप से विज्ञान संग्रहालय है जो श्यामला हिल्स की खूबसूरती के बीच स्थित है। यहाँ इन्वेंशन और फन साइंस गैलरी हैं और एक तारामंडल नाम का प्लेनेटेरियम भी है। यह सोमवार को छोड़कर हर दिन सुबह 10.30 से 6.30 तक खुला रहता है।

चौक

शहर के बीच स्थित चौक पुरानी मस्जिद, हवेलियाँ अतीत की स्मृति दिलाते हैं। सँकरी गलियों में स्थित दुकानें हैं जिनमें शिल्प के खजाने खुले हुए हैं। यहाँ आप चाँदी के आभूषण, बीडवर्क, कढ़ाई का काम और सीक्वन का काम खूबसूरत अंदाज में देख और खरीद सकते हैं।

छोटी झील और बड़ी झीलबड़ी झील छोटी झील से एक ओवरब्रिज से अलग होती है। म.प्र. पर्यटन बोट क्लब बड़ी झील में नौकायन भी करवाता है।

एक्वेरियम
छोटी झील में एक मछली के आकार का एक्वेरियम है।

कैसे पहुँचे :-
वायु सेवा- दिल्ली ग्वालियर, इंदौर और मुंबई से भोपाल के लिए नियमित विमान सेवा है।
रेल सेवा- भोपाल, दिल्ली-मद्रास मेन लाइन पर है। मुंबई से इटारसी और झाँसी के रास्ते दिल्ली जाने वाली मुख्य गाड़ियाँ भोपाल होकर जाती हैं।
सड़क मार्ग- भोपाल तथा इंदौर, मांडू, उज्जैन, खजुराहो, पचमढ़ी, ग्वालियर, साँची, जबलपुर और शिवपुरी के बीच नियमित बस सेवाएँ हैं।
ठहरने के लिए- मध्यप्रदेश पर्यटन विकास निगम के होटल तथा निजी होटल हैं।

कब जाएँ-
वर्ष में कभी भी आप यहाँ जा सकते हैं।
सपनों का शहर - ग्वालियर

गोपालचल से 100 मीटर की दूरी पर स्थित है ग्वालियरClick here to see more news from this city किला। 15वीं सदी में राजा मानसिंह ने यह किला बनवाया था। किले की ऊँचाई दस फीट है। तीन बीघा जमीन पर पूरा क्षेत्र स्थित है।
किले के अंदर कदम रखते ही वहाँ पर तीन मंदिर, छः महल एवं जलाशय स्थित हैं। मान्यता है कि उत्तर एवं केंद्र भारत में ग्वालियर किला बहुत ही सुरक्षित है।
राजपूतों का घर ग्वालियर में उनकी बनाई गई ऐतिहासिक इमारतें, स्मारकों, किले, भवन, महलों के रूप में देखे जाने लगे हैं। राजाओं, कवियों, योद्धाओं का शहर ग्वालियर अब आधुनिक एवं आर्थिक क्षेत्र में विकसित रूप में दिख रहा है।
तोमर, मुगल और मराठा ने इन किलों को बनाया था। किले में कई तरह के भव्य मंदिर स्थित है। इन मंदिरों में हजारों भक्त एकत्रित होते हैं। तेली-का-मंदिर में नौवीं सदी के द्रविड़ वास्तुशिल्प से प्रभावित होकर खूबसूरत स्मारक बनाए गए हैं।
ग्वालियर किले में भिन्न प्रकार के महल स्थित हैं जैसे कि करण महल, जहाँगीर महल, शाहजहाँ मंदिर एवं गुरजरी महल आदि।

ग्वालियर किले के पास स्थित हैं-

जय विलास महल एवं संग्रहालय : ग्वालियर शहर में सन् 1809 में बना जय विलास महल जैसा खूबसूरत महल स्थित है। कहते हैं कि यहाँ पर ग्वालियर के महाराजा रहा करते थे। यहाँ के 35 कमरों को संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है।
कमरों में प्रदर्शित खूबसूरत चीजों को प्रदर्शित किया गया है। सुसज्जित भवनों में इटली संस्कृति एवं वास्तुशिल्प की झलक देखने को मिलती है।
सूर्य मंदिर -
मोरार के निकट स्थित सूर्य मंदिर के वास्तुशिल्प कला कोणार्क मंदिर से प्रेरित होकर बनाई गई है।

तानसेन स्मारक -
तानसेन भारत के शास्त्रीय संगीत के महान संगीतकार थे। अकबर के नवरत्नों में से एक तानसेन के जीवन का अंतिम समय ग्वालियर में ही गुजरा था। यहीं उनका स्मारक बना हुआ है।

तेली का मंदिर -
आठ से ग्यारह सदी में निर्मित इस मंदिर को भगवान विष्णु को अर्पित किया गया है जो किले के अंदर निर्मित किया गया है। उस सदी का वास्तुशिल्प, मंदिरों एवं इमारतों में झलकती है।

गुरुद्वारा डाटा बंद्धी चोद्ध -

गुरु हरगोबिंद की स्मृति में बनाए गए गुरुद्वारे में हजारों भक्तजन भगवान से मन्नत माँगने आते हैं।
ग्वालियर के प्राचीन वास्तुशिल्प की एक झलक, गुरजरी महल सोलहवीं सदी में बनाया गया था। पंद्रहवी सदी में बनाया गया मान मंदिर महल एवं आठवी सदी में बनाया गया सूरज-कुंड। ग्वालियर किले में प्रवेश करने पर वहाँ के उरबई गेट में जैन तीर्थकरों को देख सकते हैं।

महलों के द्वार प्रात: आठ बजे से खुलकर शाम के पाँच बजे तक खुले रहते हैं।
सबसे अच्छा समय किला भ्रमण करने के लिए नवंबर से लेकर जनवरी महीने तक होता है।

कैसे पहुँचें :

हवाई अड्डाः ग्वालियर के निकट ही स्थित है, हवाई अड्डा जहाँ से आप मुंबई, दिल्ली एवं इंदौर से उड़ान भर कर ग्वालियर के हवाई अड्डे पर पहुँच सकते हैं।
रेल मार्गः ग्वालियर ही सबसे करीब रेल सेवा है। ग्वालियर, दिल्ली-मुंबई, दिल्ली-चेन्नई रेल सेवा मार्ग पर स्थित है। सड़क मार्गः आगरा, दिल्ली, भोपाल के राजमार्ग से ग्वालियर पहुँच सकते हैं।

पर्यटन

प्रकृति का स्वर्ग - स्विट्जरलैंड
स्विट्जरलैंड......प्रकृति की अनुपम देन......धरती का स्वर्ग। यहाँ एक तरफ बर्फ के सुंदर ग्लेशियर हैं । ये ग्लेशियर साल में आठ महीने बर्फ की सुंदर चादर से ठके रहते हैं। तो वहीँ दूसरी तरफ सुंदर वादियाँ हैं जो सुंदर फूलों और रंगीन पत्तियों वाले पेड़ों से ढकीं रहती हैं।
यूँ तो आपने यश चोपड़ा की फिल्मों में इस खूबसूरत देश के कई नयनाभिराम दृश्य देखें होंगे। जिन्हें देखने के बाद आपका मन भी इन खूबसूरत वादियों में खोने को करता होगा। अपने इस अंक में आप हमारे साथ सैर कर सकते हैं स्विट्जरलैंड की इन्हीं हसीन वादियों के।
खास आकर्षण -
इंटरलेकन ओस्ट - इस सफर की शुरूआत करते हैं इंटरलेकन ओस्ट से .........इंटरलेकन ओस्ट को बॉलीवुल की पसंदीदा जगह कहा जाता है। यहाँ पर दिलवाले दुल्हनियाँ ले जाएगें से लेकर ढाई अक्षर प्रेम के, जुदाई, हीरो जैसी फिल्में फिल्माईं गईं हैं। प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर इस शहर में आप स्विट्जरलैंड के इतिहास और वर्तमान दोनों से मुलाकात कर सकते हैं।
यदि आपके पास थोड़ा सा वक्त और हौसला हो तो सूर्योदय के समय यहाँ की पहाड़ियों पर चहलकदमी करना बेहद सुखद लगता है। यदि पैदल नहीं जा सकते तो यहाँ से एक ट्रेन सीधी पहाड़ी के ऊपर जाती है। बिना चूके उसका टिकट ले लीजिए। और पहाड़ी के ऊपर से सुंदर स्विट्जरलैंड का नजारा लीजिए।
जंगफ्रोज- शहर को घूमने के बाद आप रुख कर सकते हैं जंगफ्रोज की तरफ .....समुद्र तल से 3454 मीटर ऊँचाई पर बना यह यूरोप की सबसे ऊँची पर्वत श्रंखला है। इसी के साथ-साथ यहाँ यूरोप का सबसे ऊँचा रेलवे स्टेशन भी है। इंटरलेकन स्टेशन से यहाँ के लिए ट्रेन मिलती है। इस ट्रेन से अपना सफर शुरू कर खूबसूरत स्विट्जरलैंड को अपनी आँखों में कैद करते हुए आप जंगफ्रोज पहुँच जाएंगें। बर्फ के पहाड़ों को काटती हुई ऊपर जाती इस ट्रेन से आप नयनाभिराम दृश्य देख और अपने कैमरे में कैद कर सकते हैं। गर्मी के मौसम में यहाँ आईस स्कींग का लुफ्त उठाया जा सकता है। यहाँ की बर्फ पर पड़ती सूरज की तिरछी किरणों की आभा देखने का आनंद ही कुछ और है।
जंगफ्रोज में बॉलीवुड की इतनी फिल्में फिल्माईं गईं हैं कि यहाँ बॉलीबुड रेस्त्रां ही बना दिया गया है। यह रेस्त्रां 15 अप्रैल से 15 सितंबर के मध्य खुलता है। इसके अलावा आइस पैलेस भी जंगफ्रोज का खास आकर्षण है।
शिल्थॉर्न ग्लेशियर - जंगफ्रोज के अलावा शिल्थॉर्न ग्लेशियर का रास्ता भी इंटरलेकन ओस्ट से होकर जाता है। इसे विश्व के सबसे खूबृसूरत बर्फ के पहाड़ों में शुमार किया जाता है। यहाँ पाइन ग्लोरिया नामक राइड से आप पूरे ग्लेशियर का पैरोनामिक व्यू ले सकते हैं। यहाँ भव्य रेस्टोरेंट की श्रृंखला है। इन पड़ावों पर रुककर आप शिल्थॉर्न की खूबसूरती अपनी आँखों में कैद कर सकते हैं।
टिटलिस पर्वत श्रृंखला- वादियों के इस देश का अगला पड़ाव है टिटलिस पर्वत श्रृंखला। यहाँ आप केबल कार के जिरए पूरे टिटलिस ग्लेशियर का खूबसूरती को निहार सकते हैं। केबल कार के सफर में आप स्विट्जरलैंड से ही जर्मनी के ब्लैक फारेस्ट के नजारे भी देख सकते हैं। इसी के साथ यहाँ के ग्लैशियर पार्क में घूमता मत भूलिएगा। इस पार्क में आइस से जुड़ी कई फन पैक्ड राइड्स हैं। जिनका रोमांच अलग मजा देता है। यह पार्क मई से अक्टूबर के मध्य खुला होता है।
ग्लेशियर ग्रोटो- यदि आप स्विट्जरलैंड जाएँ तो ग्लेशियर ग्रोटो को निहारना मत भूलिएगा। यहाँ बर्फ में बनी सुंदर गुफाएँ हैं। इन गुफाओं की बर्फ की दीवारों पर 8,450 लेम्पस जगमगाते हैं। यहाँ “हॉल ऑफ फेम” भी है । जिसमें स्विट्जरलैंड आए प्रमुख हस्तियो के फोटों लगे हैं। यहाँ “ करिशमा कपूर, वीरेंद्र सहवाग से लेकर कई भारतीय हस्तियों के फोटो पारंपरिक स्विज पोशाक में लगे हुए हैं।”
मैटरहार्न- प्राकृतिक सुंदरता के अलावा यदि आप रोमांचक खेलों के शौकीन हैं तो मैटरहार्न जाना मत भूलिएगा। यदि आप खतरों के खिलाड़ी हैं और बेहद नजदीक से ग्लेशियरों का नजारा देखना चाहते हैं तो यहाँ के मैटरहार्न क्लाइंबर्स क्लब की सदस्यता आपका इंतजार कर रही है। यहीं पर यूरोप का सबसे बड़ा आईस स्कींग जोन भी है।
ग्रोरनरग्रेट- फिर ग्रोरनरग्रेट जिसे अल्पाइन का स्वर्ग कहते हैं की खूबसूरती जरूर निहारिए। सर्दियों में बर्फ से ढके रहने वाला यह ग्लेशियर गर्मियों में फूलों की घाटी में बदल जाता है। म्यूजिक लवर्स के लिए रिगी फोलकरोले का सफर बेहद यादगार रहेगा। हर जुलाई में यहाँ स्विज सरकार म्यूजिक प्ले करवाती है। जिसमें सात घंटे तक लगातार लाइव कांसर्ट होते हैं।
रिगी कुलम- यह ग्लेशियर नीली स्याही जैसी झीलों के लिए प्रसिद्द है। यहाँ तक आप ल्यूजरैन शहर से बाय बोट, बाय कार, बाय केबल कार जैसा आप चाहे पहुँच सकते हैं। पहुँचने के बाद स्टीम ट्रेन में सफर करना न भूले। बैली यूरोप सैलून रेल कार नामक यह ट्रेन आपको पचास के दशक के राजसी वैभव का अहसास कराएगी। यहाँ का एंटीक महोगनी फर्नीचर, ब्रांज वर्क, रेड कारपेट और बैकग्राउंड म्यूजिक आपको दूसरी दुनिया में ले जाएंगे।

कब जाएँ -
यूँ तो स्विट्जरलैंड बेहद खूबसूरत देश हैं। कुदरत हर मौसम में यहाँ अलग रंग दिखाती है । लेकिन यदि आप यहाँ जाना चाहते हैं तो ठंड के मौसम में न जाएं। इस मौसम में आप खूबसूरती की सही छटा नहीं देख पाएँगे। खास तौर पर आपका आइस स्कींग का लुफ्त उठाने का सपना अधूरा रह जाएगा।
स्विट्जरलैंड की सैर करते हुए आप जितने प्रयोग करें उतना अच्छा होगा। कहीं आप केबल कार से जाइए। कहीं बोट ,कहीं ट्रेन तो कहीं कार से। यहाँ किराए पर सुविधाजनक कारें आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। हर जगह अलग-अलग साधन अपनाने से आप धरती के इस स्वर्ग को बेहद करीब से इसके हर दिलकश रूप में निहार पाएंगें।
स्विट्जरलैंड के बारे में सबसे खास बात यह है कि जितनी खूबसूरती इसे प्रकृति ने बख्शी है उतना ही ध्यान यहां की सरकार भी रखती है। यहाँ के ऊंचे-ऊंचे ग्लेशियरों पर टूरिस्टों से जुड़ी हर सुख-सुविधा है। यहाँ के शहर चाहे वह ज्यूरिच हो, ल्यूजरेन हो या फिर इंटरलेकन हर जगह सर्वसुविधा युक्त टूरिस्ट सेंटर बने हैं। जहाँ से आप टूर्स से संबंधित सारी जानकारी हासिल कर सकते हैं। टूर्स बुक कर सकते हैं।

मुलाकात

सिनेमा ही मेरा पहला प्यार है- समीरा रेड्डी

समीरा रेड्डी ने जहाँ एक ओर ‘मुसाफिर’ और ‘नक्शा’ जैसी विशुद्ध कमर्शियल फिल्में की है वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित बुद्धदेब दासगुप्ता के साथ ‘कालपुरुष’ (बंगाली) जैसी गंभीर फिल्म भी की है। समीरा मुख्यधारा और समानांतर दोनों तरह की फिल्मों में श्रेष्ठ काम करना चाहती है। पेश है उनसे बातचीत :

* बुद्धदेब दासगुप्ता जैसे निर्देशक के साथ काम करने का अनुभव बिलकुल अलग तरह का रहा होगा?
- बिलकुल। वे काफी जानी-मानी शख्सियत है, खासकर अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह सर्किट में उनका खासा नाम है। उन्होंने कई पुरस्कार जीते है। शुरूआत में मैं थोड़ा घबराई हुई थीं, लेकिन बाद में सब कुछ आसान होता चला गया। उनसे मुझे ढेर सारी चीजें सीखने को मिली।

* एक बार फिर आप उनके साथ काम करने वाली है?
- दादा को मेरा काम बेहद पसंद आया और उन्होंने मुझे दूसरी फिल्म की स्क्रिप्ट थमा दी है। उन्होंने मुझसे कहा है कि वे मेरे साथ दूसरी फिल्म भी करना चाहते है।

* इस फिल्म में आप क्या किरदार निभा रही है?
- इसमें मेरा किरदार एक ऐसी लड़की का है जो एक छोटे शहर से फिल्मों में हीरोइन बनने का सपना लिए आती है। उसके सारे सपने बिखर जाते है जब उसका असल दुनिया से सामना होता है। बहुत ही खूबसूरती से रोल लिखा गया है। इसमें मेरे साथ अमिताभो नामक अभिनेता है जो कोलकाताClick here to see more news from this city से है।

* आप दक्षिण भारतीय है, क्या आपको बंगाली बोलने में तकलीफ नहीं होती है?
- मुझे बंगला नहीं आती, लेकिन मेरा मानना है कि यह बहुत ही प्यारी भाषा है। एक बार मैंने आठ पृष्ठों में लिखे संवादों को एक ही टेक में ओके किया था। यह सब बेहद कठिन होता है, लेकिन एक बार आप चरित्र में प्रवेश कर लेते है तो सारा काम आसान हो जाता है।
* बंगाली सिनेमा और हिंदी सिनेमा में से आप किसे प्राथमिकता देती है?
- बंगाली फिल्मों में अभिनय करने का बहुत स्कोप होता है, लेकिन हिंदी फिल्मों के लिए मुझे झटका-मटका टाइप रोल करना भी पसंद है। यदि कोई रिक्शेवाला मेरे किसी गीत पर झूमता है या लोगों मेरी फिल्में पसंद आती है तो मुझे अच्छा लगता है। कई बार मेरी मुलाकात ऐसे बच्चों से होती है जो आकर मेरे गानों के डांस स्टेप्स मुझे दिखाते है। उनकी यह बात मेरे दिल को छू जाती है। हिंदी फिल्म का क्षेत्र व्यापक है। बंगाली फिल्म की दुनिया अलग है और मुझे इससे प्यार है, पर मैं आज जो कुछ भी हूँ हिंदी फिल्मों की वजह से ही हूँ।

* आप मीरा नायर के साथ भी एड्स पर आधारित एक शार्ट फिल्म कर रही है?
- यह एक सीरिज है जिसमें चार शार्ट फिल्में बनाई जाएगी। मीरा नायर, विशाल भारद्वाज, फरहान अख्तर और संतोष सिवन इसे निर्देशित करेंगे। मीरा की फिल्म का नाम है ‘द माइग्रेशन’ जिसमें मैं एक गृहिणी की भूमिका में हूँ। एड्स से संबंधित मुद्दे इस फिल्म में उठाए गए है।

* मीरा के साथ काम करना कैसा लगा? - मैं मीरा को ‘मानसून वेडिंग’ के समय से जानती हूँ। मैं उस फिल्म में काम भी करने वाली थी, लेकिन बात नहीं बनी। उन्होंने ‘कालपुरुष’ में मेरा काम देखा और सराहा। उन्होंने कहा कि ‘द माइग्रेशन’ के रोल के लिए मैं तुम्हारे अलावा किसी अोर को सोच नहीं पा रही हूँ। मेरे लिए यह बहुत बड़ा कॉम्प्लिमेंट है।

* लगता है आप पैरेलल सिनेमा में काम ज्यादा कर रही है?- ऐसी बात नहीं है। मेरा पहला प्यार कमर्शियल सिनेमा ही है। लेकिन मैं ऐसी फिल्म करना चाहूँगी जो अर्थपूर्ण हो। जो युवाओंं को प्रभावित करें। मुझे कॉमेडी फिल्म करना भी पसंद है। मुझे रोने-धोने वाली भूमिकाएँ और फिल्में पसंद नहीं है।

* आपकी कौन-कौन ‍सी फिल्में आने वाली है?
- सबसे पहले फिरोज नाडियाडवाला की ‘फूल एण्ड फायनल’ आएगी। यह एक फन फिल्म है। इसमें मैं एक पंजाबी लड़की की भूमिका निभा रही हूँ जो दुबई में गुम हो जाती है। अब्बास-मस्तान की ‘रेस’ है जिसमें मेरे साथ सैफ अली, अक्षय खन्ना, कैटरीना कैफ और बिपाशा बसु है। ये दोनों फिल्में मल्टी स्टारर है। इसके अलावा तिगमांशु धुलिया की ‘गुलामी’ और अनीज बज्मी की ‘बेनाम’ है।

खबर-संसार

एंजलिना जोली का पिता से मेल
लंदन 22 फरवरी ।हॉलीवुड की सुपरस्टार एंजलिना जोली का एक बार फिर अपने पिता जॉन वायट से मेल हो गया और पिछले कई सालों में पहली दफा वे उनके साथ सार्वजनिक तौर पर नजर आईं।
कॉन्टेक्ट म्यूजिक की रिपोर्ट के अनुसार कंबोडिया से बेटे मेडोक्स को गोद लेने के बाद 2001 में उनके मानसिक स्वास्थ्य के बारे में की गई टिप्पणी को लेकर उन्होंने अपने पिता से नाता तोड़ लिया था।
उनके पिता ने जोली के साथ टूट गए रिश्तों को जोड़ने के लिए कई प्रयास किए और अब नवंबर में जोली ने फिर उनसे नाता जोड लिया।
लिजा की एक अनोखी डेटिंग
जब लिजा कोन्नेल को पता चला कि उन्हें ब्रेन ट्यूमर है जिसका ऑपरेशन होना संभव नहीं, तब उन्होंने एक अनोखा कदम उठाया।
लिजा ने निर्णय किया कि वह मरने से पहले अपने आपको बेच कर करीब 10 लाख पाउंड जमा करेंगी। इस रकम को वह इस तरह के ब्रेन ट्यूमर पर शोध के लिए देना चहती हैं।तीन वर्ष पहले जब लिजा को एक चीज दो-दो दिखने लगी तब उन्हें इस बीमारी के बारे में पता चला। 30 वर्षिया लिजा कहती हैं, 'डॉक्टर ने कहा कि मैं दोबारा कभी नहीं चल सकती हूँ।'
उत्तरी लंदन में रहने वाली लिजा कहती है कि ये जानकर 'मैंने माई स्पेस' नाम की वेबसाइट पर 10 हजार में डेटिंग पर जाने का अपना विज्ञापन दिया।
‘रेंट अ डेट फॉर चैरिटी’ से अब तक करीब 18,500 पाउंड जामा हो चुका है और लिजा को अभी कई डेट पर जाना है।
लिजा कहती हैं कि जब भी वे अस्पताल में न्यूरो सर्जन के पास जाती हैं, तो वे कहते हैं कि वे नहीं जानते कि उनके पास कितने दिन, कितने महीने या कितने दशक है।

इसराइली सेना की महिला सैनिक
याइल किड्रौन इसराइली सेना में अपने पुरुष साथियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर देश की रक्षा में तैनात हैं। नेगेव रेगिस्तान के इलाके में कराकल बटालियन उनका बेस है, जहाँ पुरुषों के साथ महिलाएँ भी तैनात हैं।
लड़ाकू दस्ते में शामिल होने की वजह बताते हुए याइल कहती हैं कि वो सिर्फ कागजी काम के बजाए पुरुषों की तरह शारीरिक तौर पर चुनौती पूर्ण काम करना चाहती थी।
पुरुषों की तरह : कराकल में महिला सैनिकों की भी वही जिम्मेदारियाँ होती हैं जो पुरुषों की हैं। याइल लड़ाकू सैनिक के सामने आने वाली सभी चुनौतियों से जूझना जानती हैं। उनका कहना है, 'बंदूक चलाना एक बेहद बेहतरीन अनुभव हैं जो मुझे बेहद पसंद है।'
याइल कहती हैं कि वे टैंटों में रहती हैं और अपने आरामदायक बिस्तर से निकल कर इस तरह की जिदगी जीना आसान नहीं हैं, लेकिन उन्हें ये भी पसंद है।
हर रोज सुबह उठते ही ये नहीं सोचना पड़ता कि आज कौन से कपड़े पहने जाएँ, क्योंकि वर्दी तो वही है, जैतून के रंग की पैंट और शर्ट।
वो कहती हैं, 'हम इस बटालियन में अपने हथियारों के नाम भी रखती हैं। मैंने अपनी बंदूक का नाम रखा है ब्लैक जैक, क्योंकि वो काले रंग की है। मुझे यही नाम पसंद है।' ये इसराइल में बनी एक मशीन गन है जिससे जबर्दस्त गोलीबारी होती है।
हथियार हर समय साथ : वो बताती हैं, 'ये हथियार आपका अपना होता है, हर समय साथ रहता है, यहाँ तक कि सोते समय भी इसे सर के पास रख कर सोना होता है।'ये महिलाओं का हथियार है ही नहीं, ये तो पुरुषों का हथियार है, लेकिन यही तो इस लड़ाकू दस्ते में शामिल होने का मजा है। आप ये भूल जाते हैं कि आप महिला हैं।
याइल मानती हैं कि इसराइली लड़ाकू दस्ते में महिलाओं का होना एक अच्छी बात है। और उन्हें पुरुषों के बराबर शारीरिक और चुनौती पूर्ण काम करने का मौका दिया जाता हैं।
फिलहाल इस दस्ते में महिलाएँ बंदूक भी चलाती है। डॉक्टर भी है, और अफसर भी। पायलट यूनिट में भी महिलाएँ हैं।
याइल का कहना है कि बाकी देशों को भी चाहिए कि वे अपनी सेना में महिलाओं की भरती करें क्योंकि महिलाएँ देश की रक्षा के लिए बहुत कुछ कर सकती है।

शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

मुलाकात

एक और अमृता

वर्ष 2006 में मिस अर्थ रह चुकी अमृता पटकी ‘हाइड एंड सीक’ के जरिये बॉलीवुड में अपनी शुरुआत की है। पेश है अमृता से बातचीत :
‘हाइड एंड सीक’ के लिए आपका चुनाव कैसे हुआ?निर्माता अपूर्व लखिया ने करीब एक दर्जन लड़कियों का ऑडीशन लिया, जिसमें से मैं एक थी। मैं चुन ली गई।
फिल्म ''हाइड एंड सीक'' के बारे में बताइए?
''हाइड एंड सीक'' एक रहस्यमय फ़िल्म है। शौन अरान्हा द्वारा निर्देशित इस फिल्म की कहानी 6 दोस्तों पर आधारित है। जब वे बच्चे थे तब क्रिसमस की ठंडी रात को एक खेल खेल रहे होते हैं। अभि, ओम, जयदीप, इमरान, गुनिता और ज्योतिका को बिल्कुल भी उम्मीद नहीं की थी कि क्रिसमस की वो रात और खेल उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल देगा। फिल्म में मेरे साथ पूरब कोहली, मृणालिनी शर्मा, समीर कोचर, अयाज खान, अर्जन बाजवा भी हैं।

सुना है आप ''हाइड एंड सीक'' की शूटिंग के दौरान बेहोश हो गई थी। क्या यह सच है?
उस समय अहामदाबाद में बहुत गर्मी थी। इतनी गर्मी में शूटिंग करने की वजह से मैं बेहोश हो गई।

किस तरह की फिल्में करना चाहती हैं?सभी तरह की फिल्मों में मैं काम करना चाहती हूँ, चाहे वो हास्य हो, लव स्टोरी हो या गंभीर कहानी हो।

खाली समय में क्या करती हैं?
मुझे किताबें पढ़ना व संगीत सुनना अच्छा लगता है।

अमृता सिंह

जो किसी 'मर्द' से नहीं डरी!
ओमप्रकाश बंछोर
फिल्म तारिकाओं का अलग-अलग दौर होता है। हर दौर में तरह-तरह की सुंदरता और प्रतिभा के कदम मायानगरी में पड़ते हैं। इन्हीं के बीच कई बार ऐसा लुक भी देखने को मिल जाता है, जो पारंपरिक हीरोइन की छवि से जुदा होता है। कुछ इसी तरह की बात हम अमृता सिंह के बारे में कह सकते हैं।
छरहरी, पतली काया वाली हीरोइनों के बीच थोड़ा भारी डील-डौल वाली अमृता ने ताजगी लेकर पर्दे पर कदम रखा। अपनी पहली ही फिल्म "बेताब" से धमाका करने के बाद वे स्टारडम तक पहुँच गईं। उनकी व्यक्तिगत पहचान जानें तो वे मशहूर लेखक खुशवंतसिंह की भतीजी हैं और अभिनेता अयूब खान की माँ तथा अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री बेगम पारा, अमृता की माँ रुखसाना सुल्ताना की मौसी थीं।
बेगम पारा के जेठ दिलीप कुमार हैं तथा उनके एक कजिन पाकिस्तान के पूर्व तानाशाह जनरल जिया उल हक थे! इस प्रकार अमृता की रिश्तेदारी बड़ी विविधतापूर्ण व रोचक है। अमृता सिख पिता व मुस्लिम माता की संतान हैं। उनके पिता शिविंदर सिंह अमिताभ के साथ एक ही कॉलेज में थे तथा माँ रुखसाना एक जमाने में युवक कांग्रेस की प्रभावशाली नेता थीं।
अमृता का फिल्मी सफरनामा ज्यादा मुश्किल नहीं रहा। उन्हें ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ा। उनकी माँ चाहती थीं कि अमृता अभिनेत्री बनें। इसी कारण उन्होंने लॉबिंग भी की। "निकाह" के लिए बीआर चोपड़ा नए चेहरे की तलाश में थे, तो रुखसाना ने यह रोल अमृता को दिलाने के भरसक प्रयास किए। जब सलमा आगा इस रोल के लिए सिलेक्ट हो गईं तो बताते हैं कि अमृता की माँ ने सलमा को धमकीभरे पत्र लिखे ताकि वे वापस लंदन भाग जाएँ और यह रोल अमृता को मिल जाए। अंत में क्या हुआ, यह तो आप जानते ही हैं।
खैर, अमृता को अगले ही वर्ष 1983 में "बेताब" में सनी देओल के साथ लांच किया गया। इस फिल्म ने धूम मचा दी और वे रातों-रात मशहूर हो गईं। उन्होंने अपने दौर के तमाम शिखर कलाकारों के साथ काम किया जिनमें अनिल कपूर और अमिताभ बच्चन भी शामिल थे। उनकी जोड़ी सनी देओल और संजय दत्तCool Photographs of Sanjay Dutt के साथ खूब जमी।
अपनी एक्टिंग और आवाज की बदौलत अमृता अलग ही नजर आती थीं। कमसिन और नाजुक हीरोइन के बजाए उन्हें रफ एंड टफ हीरोइन कहा जा सकता है। उनकी अदाएँ और रोल इसी बात को साबित करती हैं।
"मर्द" में किए गए रफ-टफ रोल के बाद तो लोगों ने उन्हें "मर्दसिंह" का खिताब तक दे डाला था! "बेताब", "सनी", "मर्द", "चमेली की शादी", "साहेब", "खुदगर्ज", "नाम" आदि फिल्मों ने उन्हें खूब कामयाबी दिलाई।
उनका काम कभी नए-नवेले खिलाड़ी की तरह नहीं रहा। प्रारंभ से ही वे आत्मविश्वास से लबरेज होकर ही काम करती रहीं, जो उनकी हर फिल्म में नजर आता है। उनमें मौजूद कॉमेडी की प्रतिभा उनकी पहली ही फिल्म "बेताब" में नजर आ गई थी। "चमेली की शादी" में उन्होंने इसे और निखारा। वहीं "साहेब", "नाम" और "वारिस" जैसी फिल्मों ने उनके गंभीर अभिनय के पक्ष को सामने रखा। "आईना" तथा "राजू बन गया जेंटलमैन" में नकारात्मक भूमिका में भी वे खूब जमीं। अभिनय में हर तरह के रंग को मिलाकर अमृता ने अच्छी फिल्में दर्शकों को परोसीं।सन्‌ 1991 में अमृता ने उम्र में १२ साल छोटे सैफ अली खान से शादी करके सबको चौंका दिया। इसके बाद उन्होंने फिल्मों को बाय-बाय कह दिया ताकि अपने परिवार को समय दे सकें। उनके दो बच्चे सारा और इब्राहीम हैं। 14 साल के वैवाहिक जीवन के बाद 2004 में दोनों में अलगाव हो गया। अलग होने के बाद दोनों बच्चे अमृता के साथ ही रहते हैं।
इस बारे में कई तरह की बातें लिखी गईं, पर अमृता का कहना है, "यह पूरी तरह से निजी मसला है। सच क्या है, केवल मैं और सैफ ही जानते हैं। मैं अपने बच्चों से बहुत प्यार करती हूँ। बाकी सारी बातें दूसरे नंबर पर आती हैं। अगर मेरे लिए एक रास्ता बंद हुआ है तो कई रास्ते खुल भी जाएँगे। मैं अपने और अपने बच्चों के भविष्य के लिए काम करूँगी।" पर आखिर क्या बात थी कि इतने साल साथ रहने के बाद दोनों के रिश्ते में दरार आई? इसके जवाब में उनका कहना है, "मेरे और सैफ के बीच कोई भी झगड़ा नहीं हुआ। हमने मर्जी से इस रास्ते को चुना है।"
अपने अतीत से उन्हें कोई शिकवा नहीं है। आमतौर पर इंसान को अपने बीते कल पर गुस्सा ही आता है और आने वाले कल पर बेपनाह प्यार। पर अमृता का कहना है, "फिल्मों ने मुझे बहुत कम उम्र में ही सब कुछ दे दिया। मेरी सारी जरूरतें पूरी हो गई थीं। एक्टर्स की कई पीढ़ियाँ मैंने आती-जाती देखी हैं। टॉप के कलाकारों के साथ काम किया, पर एक समय आया जब मुझे थकान हुई और मैंने अपना घर बसाना चाहा। मैंने सही वक्त पर काम छोड़ा। मैं शादी करना चाहती थी। जिंदगी में मुझे किसी बात का पछतावा नहीं है, न अपनी शादी का और न अपने करियर का। हर फैसले ने मुझे खुशियाँ ही दी हैं।"

छोटा पर्दा अमृता के लिए सफल वापसी का माध्यम बना। 2002 में उन्होंने फिल्म "23 मार्च 1931-शहीद" से बड़े पर्दे पर वापसी की, लेकिन सशक्त रूप से "कलयुग" में नजर आईं। इसमें उनकी नकारात्मक भूमिका बहुत असरदार थी। अभी वे कुछ फिल्मों में काम कर रही हैं और कुछ स्क्रिप्ट भी पढ़ रही हैं।

इतने वर्ष तक लाइमलाइट से दूर रहने के बाद वापसी करना आसान तो नहीं होता, पर उन्होंने छोटे पर्दे के साथ-साथ बड़े पर्दे पर भी मजबूती से वापसी की है। पहले धारावाहिक "काव्यांजलि" और उसके बाद फिल्म "कलयुग" और "शूटआउट एट लोखंडवाला" से री-एंट्री करके अमृता फिर से अभिनय के क्षेत्र में लौट आई हैं। अब सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि उनको कैसी भूमिकाएँ मिलती हैं। पर जो भी काम मिलेगा उसे वे पूरे दिल से करेंगी, इस बात का दावा वे खुद करती हैं।
आजकल उनकी जिंदगी पूरी तरह से काम और अपने दोनों बच्चों के बीच सिमट गई है। काम और परिवार के बीच बेहतर तालमेल के कारण वे आत्मविश्वास से भरी हुई हैं। उन्हें इस बात की बेहद खुशी है कि उम्र के इस दौर में भी उन्हें काम मिल रहा है जबकि नायिकाओं का करियर ज्यादा लंबा नहीं होता। अब वे अपनी जिंदगी में व्यस्त हैं और खुश हैं, उन्हें किसी और की जरूरत नहीं।

चिट्ठी-

तैयारी परीक्षा की
प्यारे बच्चों,

सभी की परीक्षाएँ शुरू होने वाली है और कुछ की शुरू हो चुकी हैं। उम्मीद है तुम सभी ने अपनी पढ़ाई ठीक तरह से कर ली होगी लेकिन कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो सालभर बिलकुल भी अपनी पढ़ाई पर ध्यान नहीं देते।
दिनभर खेलना-कूदना, टीवी देखना और खाने में समय बिताना यही उनका शेड्यूल रहता है। पर वे बच्चे यह नहीं जानते के इस प्रकार से समय व्यतीत कर वे अपने ही भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।
असल में पढ़ाई के बिना जीवन ही अधूरा है। आज का जमाना पुराने समय की तरह नहीं रहा। आज का युग प्रतिस्पर्द्धी युग है। जिसमें हर कोई आगे बढ़ने की चाह में लगा रहता है। लेकिन जो बच्चे अपने पढ़ाई के प्रति वफादार नहीं हैं उनसे मेरा यही कहना है कि वे सालभर जी तोड़ मेहनत करें, और परीक्षाओं के ऐनवक्त पर भी अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान लगाकर मन से पढ़ाई करें तो निश्चित ही अव्वल सूची में अपना स्थान बना सकते हैं। सो जुट जाओ परीक्षा की तैयारी में। गुड लक....!

तुम्हारा भैया
अरुण

बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

सितारों का अता-पता (डी-एच)

डेज़ी ईरानी
रूपकला, 16वाँ आरडी खार(पश्चिम),
मुंबई-52

दलिप ताहिल
दीपाली सेंट साइरिल आरडी.
बांद्रा (पश्चिम), मुंबई-50

डैनी
302, वीआईपी प्लाजा, ऑफ न्यू लिंक रोड.,
जुहू, मुंबई-49

दीपक पाराशर
बंगलो 1, क्रिस्टल पैलेस,
न्यू लिंक रोड, मलाड (पश्चिम),
मुंबई-54

दीपक काजिर
ए/303, धीरज रेसीडेंसी के सामने,
ओशिवारा डिपॉट, न्यू लिंक रोड,
गोरेगाँव (पश्चिम), मुंबई-104

दीपक तिजोरी
प्लॉट नंबर-58, फ्लैट-504
महाडा, ओशिवारा, अंधेरी (पश्चिम)
मुंबई-53

दीपिका देशपांडे
ए/24, वरसोवा हेवन, जेपी रोड,
वरसोवा, मुंबई-61

दीपशिखा
201/202, बेरी विंकले, दूसरी मंजिल,
प्लॉट नंबर 1086/बी. न्यू लिंक रोड,
मलाड (पश्चिम) मुंबई-64

दीप्ति भटनागर
42, अशोका अपार्टमेंट्‍स, गांधीग्राम रोड,
जुहू, मुंबई-49

दीप्ति नवल
603, ओसियेनिक-1, 7, बंगलोज,
वरसोवा, अंधेरी (पश्चिम)
मुंबई-61

फरदीन खान
एफके हाउस,
जसवाला वाडी, जुहू रोड,
मुंबई-49

सितारों का अता-पता (आई - एल)

ईला अरूण
401, पैराडाइज अपार्टमेंट्‍स, 7वाँ रोड,
सांताक्रूज, (ईस्ट), मुंबई-55

इंदर कुमार
403, गंगा अपार्टमेंट्‍स, यारी रोड,
वरसोवा, अंधेरी (पश्चिम),
मुंबई-58

इंद्राणी मुखर्जी
सनसेट हेट्‍स, 59, पाली हिल,
बांद्रा (पश्चिम),
मुंबई-50

ईशा देओल
17, जय हिंद सोसायटी, 12वाँ रोड,
जुहू-मुंबई-49

ईशा कोप्पिकर
7/71, बीच, टावर्स, पी.बालू मार्ग,
प्रभादेवी, मुंबई-25

जसपाल भट्‍टी
1212, मगरूम टावर, 12वीं मंजिल,
लोखंडवाला कॉम्प्लेक्स, अंधेरी (पश्चिम),
मुंबई-53

जावेद जाफरी
101/ए, ग्रीन गेट बिडग,
पेरी क्रॉस, रोड बांद्रा (पश्चिम),
मुंबई-50

जया बच्चन
20, श्री कृष्णा अपार्टमेंट्‍स, तरुण
प्रभात सोसायटक्ष, चकला, अंधेरी (ईस्ट),
मुंबई-99

जयंत कृपलानी
ए-114, कराची को-ऑपरेटिव सोसायटी,
न्यू लिंक रोड, अंधेरी (पश्चिम),
मुंबई-58

जयाप्रदा
202, जुहू प्रिंसेस जुहू बीच,
मुंबई-49
जीतेंद्र
26, ग्रेटर मुंबईClick here to see more news from this city को-ऑपरेटिव सोसायटी,
गुलमोहर क्रॉस रोड, नं-5
जेवीपीडी स्कीम, मुंबई-49

जिम्मी शेरगिल
308/बी, इंद्रलोक, लोखंडवाला कॉम्प्लेक्स, अंधेरी (पश्चिम),
मुंबई-53

जॉनी लीवर
151/152, ऑक्सफोर्ड टावर, यमुना नगर,
लोखंडवाला कॉम्प्लेक्स, अंधेरी (पश्चिम),
मुंबई-53

जुगल हंसराज
14/ए, क्वीन्स अपार्टमेंट्‍स पाली हिल,
बांद्रा (पश्चिम), मुंबई-50

जूही चावला
वीर भवन, रिडग रोड,
मलाबार हिल,
मुंबई-4

जूही बब्बर
प्लॉट नंबर 20, नेपथ्य, गुलमोहर
क्रॉस रोड, जेवीपीडी स्कीम,
मुंबई-49

कबीर बेदी
बी/4, बीच हाउस पार्क,
गाँधीग्राम रोड, जुहू,
मुंबई-49

कादर खान
102, राज कमल, दूसरी हसनबाद लेन,
सांताक्रूज (पश्चिम), मुंबई-54

काजोल
ए-61-62, वर्षा, चौथा गुलमोहर एक्स रोड,
जेवीपीडी स्कीम, जुहू,
मुंबई-49

कमल हासन
नंबर-4, एल्डीम्स रोड,
चेन्नई-18
कमल सदाना
101/ए, ओसियनिक को-ऑपरेटिव,
321, कार्टर रोड, बांद्रा (पश्चिम)

करीना कपूर
फ्लैट नंबर-2, पार्क एवेन्यू, ग्राउंड फ्‍लोर, 16वाँ रोड,
बांद्रा (पश्चिम), मुंबई-50

कश्मीरा शाह
604/ए, वुडलैंड, यमुना नगर,
लोखंडवाला कॉम्प्लेक्स, अंधेरी (पश्चिम),
मुंबई-53

किम शर्मा
603, अमित अपार्टमेंट्‍स, राउत लेन,
जुहू चर्च रोड,
मुंबई-49

किरण जुनेजा
बंगलो नंबर 22, इवोरी हेट्‍स,
2रा क्रॉस रोड, नेक्स्ट टू मैगनम टावर,
लोखंडवाला कॉम्प्लेक्स, अंधेरी (पश्चिम),
मुंबई-53

किरण खेर
जीआईजीआई अपार्टमेंट्‍स, जुहू बीच, जुहू,
मुंबई-49

किटु गिडवानी
24, कैलाश बिडग, पेडर रोड,
मुंबई-26

कृतिका देसाई
हेरिटेज, ए विंग, ए-302, चौथा क्रास रोड,
लोखंडवाला कॉम्प्लेक्स, अंधेरी (पश्चिम),
मुंबई-53

कुलभूषण खरबंदा
501, सिलवर केसकेड, माउंट मेरी रोड,
बांद्रा (पश्चिम), मुंबई-50

कुमार गौरव
डिम्पल, 7 पाली हिल,
बांद्रा (पश्चिम), मुंबई-50

कुणाल गोस्वामी
लक्ष्मी विला, ग्राउंड फ्‍लोर, 45
टैगोर रोड, सांताक्रूज (‍पश्चिम), मुंबई

कुनिका
बी/202, शिव पार्वती, एसवीपी नगर,
4, बंगलो, अंधेरी (पश्चिम),
मुंबई-53

सितारों का अता-पता (एम - आर)

मैक मोहन
गुलाब कॉटेज, 4 बंगलोज,
अंधेरी (पश्चिम),
मुंबई-53

माधुरी दीक्षित
विजयदीप, तीसरी ‍मंजिल, आयरिस पार्क, जुहू,
पोस्ट ऑफिस, एबी नायर रोड,
मुंबई-49

महेश भट्‍ट
बी-1, नित्यानंद अपार्टमेंट्‍स, ग्राउंड फ्लोर,
24/324, शिम्पोली रोड, बोरीवली (पश्चिम),
मुंबई-92

महिमा चौधरी
ए विंग, आर्शले कॉम्प्लेक्स, तीसरी मंजिल,
यारी रोड, वरसोवा, अंधेरी (पश्चिम),
मुंबई-61

माला सिन्हा
8, टर्नर रोड, बांद्रा (पश्चिम),
मुंबई-50

मंदिरा बेदी
रामा, प्लॉट नंबर 1116/डी, सेंट एनीस चर्च रोड,
ऑफिस शेरटे रंजन रोड,
बांद्रा (पश्चिम), मुंबई-50

मनीषा कोईराला
302, बीचवुड टावर्स, यारी रोड,
वरसोवा अंधेरी (पश्चिम) मुंबई-61

मनोज कुमार
45, लक्ष्मी विला, ग्राउंड फ्लोर,
टैगोर रोड, सांताक्रुज (पश्चिम), मुंबई-54

मनोज वाजपेयी
304, विक्टोरिया शास्त्री नगर,
लोखंडवाला रोड, अंधेरी (पश्चिम),
मुंबई-53

मयूरी कांगो
202, ए विंग केनमोर, दूसरी क्रॉसलेन,
लोखंडवाला कॉम्प्लेक्स,
अंधेरी (पश्चिम), मुंबई-53

सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

सितारों का अता-पता (A-C)

आमिर खान
धारिया हाउस, फर्स्ट फ्लोर
7 वाँ रास्ता, खार (वेस्ट) मुंबईClick here to see more news from this city - 52

आसिफ शेख
304/ए-1, मंगल नगर
बैंक ऑफ इण्डिया के सामने
यारी रोड, वर्सोवा, अंधेरी (वेस्ट) मुंबई - 61


अभिषेक बच्चन
प्रतीक्षा, 10 वाँ रास्ता जेवीपीडी स्कीम
जुहू, मुंबई - 49

एडम बेदी
बी/4, बीच हाउस पार्क
गाँधीग्राम रोड जुहू, मुंबई - 49

अदिति गोवात्रिकर
502, मेरीवेल, सेंट एंड्रयू रोड,
बांद्रा (वेस्ट), मुंबई - 50

आदित्य पंचोली
हेट बंगला, गाँधीग्राम रोड
जुहू, मुंबई - 49

आफताब शिवदासानी
22, मिस्त्री कोर्ट, सीसीआई क्लब के सामने
चर्चगेट, मुंबई - 20

ऐश्वर्या राय
12, लामेर, कांदेश्वरी रोड माउंट मेरी,
बांद्रा (वेस्ट) मुंबई - 50

अजय देवगन
ए/61, वर्षा, चौथा गुलमोहर एक्सटेंशन रोड
जेवीपीडी स्कीम जुहू, मुंबई - 49

आजिंक्य देव
ए-4, रितुराज अपार्टमेंट
एसएनडीटी कॉलेज के सामने,
जुहू रोड, सांताक्रुज (वेस्ट) मुंबई - 49

आकाश खुराना
19, डनहिल, डॉ अम्बेडकर रोड,
खार (वेस्ट), मुंबईClick here to see more news from this city - 52

अकबर खान
सोना विला, जस्सावाला वादी, एनक्लेव,
जे-49 डिस्को होटल के सामने
जुहू रोड, मुंबई - 49

अखिलेन्द्र मिश्रा
2-डी/602, पाटलीपुत्र नगर
जोगेश्वरी (वेस्ट), मुंबई - 102

अक्षय आनन्द
502/ए, चंचल बिल्डिंग कल्याण कॉम्पलेक्स,
यारी रोड, वर्सोवा अंधेरी (वेस्ट), मुंबई - 61

अक्षय खन्ना
13/सी, लिपालाजो, लिटिल गिब्स रोड,
मलाबार हिल्स, मुंबई - 6

अक्षय कुमार
सी विंग, स्कॉयपेन 11वीं मंजिल,
फ्लैट नं 1101 ओबेरॉय काम्पलैक्स
अंधेरी (वेस्ट) मुंबई - 53

आलोकनाथ
901, स्कॉयडेक, ओबेरॉय काम्पलैक्स लिंक रोड,
अंधेरी (वेस्ट) मुंबई - 58

अमन वर्मा
23/24, दूसरी मंजिल, सी विंग ट्रोयका,
तीसरा एक्सटेंशन रोड लोखंडावाला काम्पलैक्स
अंधेरी (वेस्ट), मुंबई - 53

अमर उपाध्याय
401, सुदर्शन नगर, खण्डेलवाल लेआउट एवरशाईन नगर,
लिंक रोड मलाड (वेस्ट), मुंबई - 64

अमिषा पटेल
शंकर बिल्डिंग, फ्लैट नंबर 51, पाँचवी मंजिल,
बी रोड चर्चगेट, मुंबई - 20

अमिता नांगिया
8 ए, सूर्यकिरण,
प्रताप सोसायटी के पीछे
अंधेरी (वेस्ट), मुंबईClick here to see more news from this city - 53

अमिताभ बच्चन
प्रतीक्षा, 10 वाँ रास्ता
जेवीपीडी स्कीम
जुहू, मुंबई - 49

अमोल पालेकर
401/402/जी, अलकनंदा शिवानंद गार्डन
कोथरुड, पुणे - 29

अनंग देसाई
3ए/302, ओकलैण्ड पार्क
यमुना नगर, लोखण्डवाला काम्प्लैक्स
अंधेरी (वेस्ट), मुंबई - 53

अनंत जोग
116/3977, गीत गोविन्द सोसायटी
तिलक नगर, चेम्बूर मुंबई - 89

अनंत महादेवन
बी/603, रत्नाकर, यारी रोड वर्सोवा,
अंधेरी (वेस्ट) मुंबई - 61

अनिल धवन
124, निभाना, पाली हिल
बांद्रा (वेस्ट) मुंबई - 50

अनिल कपूर
31, श्रृंगार प्रेसिडेंसी सोसायटी
7 वाँ रास्ता, जेवीपीडी स्कीम मुंबई - 49

अनिता गुहा
मिराबेले, लिंकिंग रोड
बांद्रा (वेस्ट) मुंबई - 50

अनिता कंवल
702/ए विंग,
ब्रोकहिल टॉवर्स क्रास रोड - 3,
लोखंडावाला काम्प्लैक्स
अंधेरी (वेस्ट), मुंबई - 53

अनिता राज
104, निभाना, पाली हिल
बांद्रा (वेस्ट), मुंबईClick here to see more news from this city - 50

अंजला झंवेरी
802, धनलक्ष्मी, एसवीपी नगर
म्हाडा कॉम्प्लैक्स
अंधेरी (वेस्ट) मुंबई - 53

अंजलि जठार
आनंद आश्रम, पहली मंजिल बिल्डिंग - 22,
पंडिता रामबाई रोड मुंबई - 7

अंजन श्रीवास्तव
बी/108, मनीष सोनल सोसायटी
38 मनीष नगर, 4 बंगला
अंधेरी (वेस्ट), मुंबई - 53

अंजना मुमताज
202, बीच हैवन
जुहू, मुंबई - 49

अंजू महेन्द्रू
पॉम ब्रीज़, प्लॉट 50, 9 वाँ रास्ता
जेवीपीडी स्कीम, मुंबई - 49

अन्नू कपूर
एफ/19, फ्लैट 504, ग्रीन क्रेस्ट
परसरामपुरा टॉवर के सामने यमुना नगर,
अंधेरी (वेस्ट) मुंबई - 53

अंतरा माली
88, 2री मंजिल म्हाडा कमर्शियल काम्पलैक्स
ओशिवारा, अंधेरी (वेस्ट)
मुंबई - 102

अनुपम खेर
जीआयजीआय अपार्टमेंट जुहू बीच,
जुहू मुंबई - 49

अनुराधा पटेल
1001, डी विंग, अभिषेक अपार्टमेंट
जुहू वर्सोवा रोड अंधेरी (वेस्ट) मुंबई - 58

अपर्णा सेन
सोनाली अपार्टमेंट, 8 वी मंजिल
बी/2, अलीपोर पार्क रोड
कोलकाता - 27

अपूर्व अग्निहोत्री
102/एफ, अमित नगर, यारी रोड वर्सोवा,
अंधेरी (वेस्ट) मुंबईClick here to see more news from this city - 61

अरबाज खान
3, गैलेक्सी अपार्टमेंट, बीजे रोड बैंडस्टेण्ड,
बांद्रा (वेस्ट) मुंबई - 50

अर्चना पूरनसिंह
702/बी-1, सुन्दरवन कॉम्प्लैक्स
लोखंडावाला रोड,
अंधेरी (वेस्ट) मुंबई - 53

आरिफ ज़कारिया
97, एलमेडा रोड
बांद्रा (वेस्ट) मुंबई - 50

अर्जुन रामपाल
17 वाँ डायमंड अपार्टमेंट
माउंट मैरी रोड
बांद्रा (वेस्ट), मुंबई - 50

अरूणा ईरानी
603-बी, गज़दर अपार्टमेंट जुहू होटल के पास
जुहू, मुंबई - 49

अरशद वारसी
903, शिव ज्योति, पाँच मार्ग
यारी रोड, वर्सोवा
अंधेरी (वेस्ट), मुंबई - 61

अरूण गोविल
305, अमरनाथ टॉवर यारी रोड
अंधेरी (वेस्ट) मुंबई - 53

आशा पारेख
ए/102, फेअरशोर अपार्टमेंट जुहू तारा रोड,
होटल सी प्रिंसेस के पास
जुहू, मुंबई - 49

आशीष विद्यार्थी
फ्लैट-213, युगधर्म सबकुछ सुपर मार्केट के पास
लिंक रोड, मलाड (वेस्ट) मुंबईClick here to see more news from this city - 95

अशोक सराफ
फ्लैट नंबर - 1305/1306 इंद्रदर्शन,
लोखंडावाला काम्प्लैक्स तारापोर गार्डन के पास
अंधेरी (वेस्ट) मुंबई - 53

आशुतोष राणा
503, पेलिकान अपार्टमेंट गुलमोहर गार्डन के सामने
यारी रोड, अंधेरी (वेस्ट)
मुंबई - 61

अश्विनी भावे
ए/9, ग्रीन व्यू, सबर्बन को-ऑप सोसायटी
शिव सृष्टि, कुर्ला (ईस्ट)
मुंबई - 24

असरानी
बी/3, बीच हाउसिंग सोसायटी
गाँधीग्राम रोड जुहू, मुंबई - 49

अतुल अग्निहोत्री
6, अश्विनी, पाली माला रोड
मुंबई - 50

अविनाश वाधवान
1901, धीरज गौरव हाईट्‍स ऑफ लिंक रोड,
हुंडाई शो रूम के पीछे
अंधेरी (वेस्ट), मुंबई - 61

अवतार गिल
प्लाट नं 1, रनवन शॉपिंग सेंटर 15 वाँ रास्ता,
चेम्बूर मुंबई - 1

आयशा जुल्का
186, आराम नगर नं 2, वर्सोवा
अंधेरी (वेस्ट) मुंबई - 61

अयूब खान
बी - 301, स्वप्न आकार,
फ्लैट नं 83/डी यारी रोड, वर्सोवा
अंधेरी (वेस्ट), मुंबई - 61