शनिवार, 6 मार्च 2010

विचार-मंथन

भारत-पाक के नक्शे बदल सकता है युद्ध
वर्ष 1947 से लेकर अब तक तीन युद्ध कर चुके भारत-पाकिस्तान पिछ्ले एक महीने से एक बार फिर युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं। जबानी जंग तो मुंबई पर हुए आतंकी हमले के बाद से ही जारी है।
तनाव के इस दौर में आतंकियों द्वारा किया गया कोई भी और हमला इन दो पड़ोसियों को युद्ध की आग में झोंकने के लिए काफी होगा। पर इस बात को ध्यान में रखना होगा की अगर युद्ध की स्थिति बनती है तो भारत और पाकिस्तान में क्या-क्या परिस्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं- रत पर क्या प्रभाव पड़ेगा : 2008 में हुए बम धमाके तथा 26/11 को मुंबई पर आतंकी हमले के बाद देश की आंतरिक सुरक्षा पर सवालिया निशान लग गया है। जनता में आतंकवादियों के खिलाफ भारी रोष है और पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों के विरुद्ध कार्रवाई (भले ही पाकिस्तान से युद्ध ही क्यों न करना पड़े) से अप्रैल-मई में होने वाले आम चुनाव में कांग्रेस को भारी जनसमर्थन मिलने की उम्मीद बन रही है। जनता का मूड भाँपकर भारतीय जनता पार्टी भी युद्ध की स्थिति में सरकार को पूर्ण समर्थन देने का संकेत दे चुकी है।
परमाणु करार कर चुके भारत और अमेरिका के संबंध प्रगाढ़ता की ओर हैं। मिसाइल तथा लड़ाकू विमानों द्वारा नियंत्रित कार्रवाई की स्थिति में अमेरिका द्वारा समर्थन देने से भारत तथा वॉशिंगटन के बढ़ते राजनयिक रिश्ते और भी मजबूत होने की उम्मीद है। पर नए-नवेले राष्ट्रपति बराक ओबामा की फिलहाल अपनी प्राथमिकता अफगानिस्तान और पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाके होगी और भारत-पाक युद्ध होने पर अमेरिका को अफगानिस्तान में अपनी फौजें बढ़ाना होंगी जो एक मुश्किल कदम साबित होगा। इस बीच के समय का फायदा उठाकर अल कायदा के अफगानिस्तान स्थित आतंकी कश्मीर में घुसपैठ कर भारतीय सेना के लिए मुश्किलें खड़ी करेंगे।
अफगानिस्तान में तैनात नाटो और अमेरिकी फौजों द्वारा इस्तेमाल में लाए जाने वाले अधिकतर सैन्य साजो-सामान को पाकिस्तान के बंदरगाहों तथा पेशावर स्थित सैन्य डिपो से ही अफगानिस्तान पहुँचाया जाता है। इन उपकरणों का इस्तेमाल भी पाकिस्तानी सेना भारत के विरुद्ध कर सकती है।
युद्ध होने की स्थिति में जम्मू-कश्मीर के कुछ स्थानीय आतंकी संगठन अल कायदा या तालिबान से मिलकर भारतीय सुरक्षा बलों पर आत्मघाती हमले तेज कर सकते हैं। प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह द्वारा सबसे बड़ा खतरा करार दिए गए 'नक्सलवादी' भी इस मौके का पूरा लाभ उठाकर नेपाल से लेकर तमिलनाडु तक अपना 'लाल गलियारा' स्थापित करने की कोशिश करेंगे। श्रीलंका में हाल ही की हार के बाद कमजोर पड़े लिट्टे विद्रोही भी तमिलनाडु में अपनी आखिरी शरणस्थली बना सकते हैं।
बरसों से अशांति फैला रहे उत्तर-पूर्व के अलगाववादी संगठन भी अपनी गतिविधियाँ तेज कर सकते हैं। इसी तरह पश्चिमी सीमा से बांग्लादेशी आतंकी भारत से लगी थल सीमा और समुद्र के रास्ते घुसपैठ कर ध्यान बँटाने के लिए देश में कोई बड़ी वारदात करने की फिराक में रहेंगे।
सीमाओं के साथ-साथ भारत को आंतरिक सुरक्षा पर भी खासा ध्यान देना पड़ेगा। भारत में आर्थिक विकास थम जाएगा पर युद्ध सामग्री का उत्पादन बढ़ने से रोजगार बढ़ने की भी उम्मीद है। जरूरी वस्तुओं की राशनिंग के चलते जमाखोरी तथा कालाबाजारी होगी। देश में एक बार फिर आपातकाल लगाने जैसी स्थिति से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।
दोनों देश परमाणु शक्ति सम्पन्न हैं और आशंका है कि इस बार युद्ध परंपरागत हथियारों से आगे बढ़कर परमाणु युद्ध में बदल सकता है। ऐसा होने पर हताहतों की संख्या गंभीर रूप से बढ़ सकती है जिसका खामियाजा पूरी दुनिया को भुगतना होगा। अमेरिकी रक्षा विभाग ने 1989 में
अर्ध-सरकारी विचार समूह (थिंक टैंक) रैंड कॉरपोरेशन द्वारा एक रिपोर्ट में पूर्वानुमान लगाया था कि भारत-पाकिस्तान के बीच जम्मू-कश्मीर में चल रही आतंकवादी गतिविधियों की वजह से संघर्ष होगा, जो परमाणु युद्ध के रूप में बदल जाएगा।
इसी तरह कई विदेशी सुरक्षा एजेंसियों द्वारा चिंता जताई जा चुकी है कि पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर पाकिस्तान के युद्ध हारने की सूरत में कट्टरपंथियों तथा आतंकियों द्वारा परमाणु हथियारों पर कब्जा करने का खतरा हर पल बना रहेगा।

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