शुक्रवार, 5 मार्च 2010

पर्यटन

कला-शिल्प का अद्भुत संगम : खजुराहो
खजुराहो के मंदिर भारतीय कला का एक उत्कृष्ट नमूना है। इन मंदिरों की दीवारों पर उकरी देवी-देवताओं की विभिन्न मुद्राओं की मनोहारी प्रतिमा अपने आप में दुलर्भ है, जिसके समान कोई ओर नहीं है। मध्यप्रदेश में स्थित खजुराहो पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है।
हर साल लाखों की संख्या में देशी व विदेशी पर्यटक खजुराहों आते हैं व यहाँ की खूबसूरती को अपनी स्मृति में कैद करके ले जाते हैं। यहाँ शाम के वक्त होने वाले लाइट शो में खजुराहो के मंदिरों की खूबसूरती का चरम देखने को मिलता है, जो एक यादगार व अविस्मरणीय अनुभव होता है।
भारतीय कला व संस्कृति के संगम स्थल खजुराहों के आसपास भी कई ऐसे स्थान है, जो आपकी खजुराहो यात्रा को पूर्णता प्रदान करते हैं। इनमें खजुराहो से 25 किमी दूर स्थित राजगढ़ पैलेस (हैरिटेज होटल), रंगून झील (पिकनिक स्पॉट), पन्ना राष्ट्रीय उद्यान आदि स्थल है।
खजुराहो को प्यार का प्रतीक भी कहा जाता है। यहाँ काम मुद्रा में मग्न देवताओं की भी मूर्तियाँ है, जो अश्लीलता नहीं बल्कि सौंदर्य और प्यार की प्रतीक हैं। प्यार के साक्षी इन्हीं मंदिरों में प्रतिवर्ष कई जोड़े परिणय सूत्र में बँधकर अपने दांपत्य जीवन की शुरुआत करते हैं।
खजुराहो एक पर्यटक स्थल होने के साथ-साथ मंदिरों के गाँव के रूप में भी विख्यात है। यहाँ के मंदिर लगभग 1000 सालों से भी अधिक पुराने हैं, जिन्हें मध्यभारत के चंदेल राजपूत राजाओं ने बनवाया था।
वर्तमान में प्राचीन 85 मंदिरों में से मात्र 22 मंदिर ही सुरक्षित बचे हैं। शेष मंदिर आज खंडहर के रूप में तब्दील होकर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं। खजुराहो के प्रसिद्ध मंदिर पूर्वी, पश्चिमी व दक्षिणी आदि तीन भागों में विभाजित हैं।
पश्चिमी भाग के मंदिर :-
खजुराहो में पश्चिमी भाग के मंदिरों में प्रमुख मंदिर कंडरिया महादेव मंदिर, चौंसठ योगिनी मंदिर (ग्रेनाइट से बना सुंदर मंदिर), काली माँ का मंदिर, देवी जगदंबा मंदिर आदि प्रमुख हैं। इन मंदिरों के उत्तर में चित्रगुप्त मंदिर (सूर्य देवता का मंदिर), विश्वनाथन मंदिर (तीन मुखी ब्रह्मा की प्रतिमा तथा 6 फीट ऊँची नंदी प्रतिमा), मटंगेश्वर मंदिर (8 फीट ऊँचा शिवलिंग) आदि स्थित है।
मंदिरों में स्थित प्रतिमाओं की जर्जर स्थिति को देखते हुए इनमें से कई मंदिरों में पूजा करना प्रतिबंधित है। इनमें से केवल ममटंगेश्वर मंदिर में ही अब तक पूजा करना जारी है।

पूर्वी भाग के मंदिर :-
इस भाग में हिंदू व जैन दोनों के देवी-देवताओं की दुर्लभ प्रतिमाएँ स्थित हैं। मंदिरों का यह भाग खजुराहो गाँव के समीप स्थित है। पूर्वी भाग का सबसे बड़ा मंदिर जैन तीर्थंकर 'भगवान पार्श्वनाथ जी का मंदिर' है। इसके बाद दूसरा जैन मंदिर 'घाटी मंदिर' है। इस मंदिर के उत्तर में 'आदिनाथ मंदिर' हैं। मंदिरों के इस समूह में ब्रह्मा, वामन आदि हिंदू देवताओं के मंदिर भी शोभायमान है।
दक्षिणी भाग के मंदिर :-
मंदिरों का यह समूह खजुराहो गाँव से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इनमें सबसे अच्छा मंदिर 'चित्रभुज मंदिर' है। इस भाग के मंदिरों से कुछ दूरी पर सड़क के उस पार जैन मंदिरों का एक समूह है, जिनमें कई जैन तीर्थंकरों के सुंदर व आकर्षक मंदिर है।

खजुराहो के आसपास :-
भारतीय कला व संस्कृति के संगम स्थल खजुराहों के आसपास भी कई ऐसे स्थान है, जो आपकी खजुराहो यात्रा को पूर्णता प्रदान करते हैं। इनमें खजुराहो से 25 किमी दूर स्थित राजगढ़ पैलेस (हैरिटेज होटल), रंगून झील (पिकनिक स्पॉट), पन्ना राष्ट्रीय उद्यान (34 किमी दूर) आदि रमणीय स्थल हैं।
भारत की इस विरासत को देखना मात्र ही अपने आप में भारतीय कला से रूबरू होना है, जो अपने आप में अनूठी है, प्राचीन है व गौरवशाली है। आप भी मंदिरों के इस गाँव की सुंदरता को निहारने एक बार अवश्य खजुराहों जाएँ।

ऐतिहासिक स्थलों की नगरी शिवपुरी

हल्की-हल्की बूँदों की वर्षा हो रही थी। प्रभात ने घने काले बादल की चुनरी ओढ़ रखी थी। सखियों के साथ मैं टाटा सफारी में सवार होकर आगरा-मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग पर जा रही थी कि हमें एक ढाबा खुला दिखाई दिया। प्रातः पाँच बजे थे, मन कर रहा था कि हमें गरमागरम चाय मिल जाए तो सफर तय करना और भी आसान हो जाएगा।
गाड़ी ढाबे के पास रुकी, हमारी नज़र कोयले की आँच पर बन रही चाय से निकलते धुएँ पर पड़ी एवं उसके साथ-साथ नाश्ते के लिए बाजरे की रोटी तथा सब्जी मिली। ढाबे के चारों ओर हरियाली नज़र आ रही थी, रंग-बिरंगे महुए एवं पलास के फूल खिले हुए थे जिन पर वर्षा की बूँदें मोती की तरह चमक रही थीं।
इंदौर से शिवपुरी तक का सफर हम लगभग तय कर चुके थे। गुना क्षेत्र से हम गुजरते हुए शिवपुरी ज़िले में पहुँचे। हमारी नज़र यहाँ के पहा़डों पर पड़ी, जिन पर हरियाली थी एवं घने जंगल स्थित थे। वादियों के मध्य प्रकृति की गोद से झरने बह रहे थे एवं उठती सूर्य की किरणों के प्रकाश में वे झिलमिलाते, बलखाते हुए नदियों की ओर बह रहे थे।
गुना जिले से हम जब शिवपुरी नगर की ओर गाड़ी में सफर कर रहे थे तब हमने देखा कि सिंध नदी गुना से उत्तर दिशा से बहती हुई भिड़ से चंबल नदी से जा मिलती है। शिवपुरी की चार मुख्य नदियाँ हैं सिंध, कूनो, बेतवा एवं पार्वती।
कहते हैं कि शिवपुरी का माधव नेशनल पार्क, विभिन्न प्रकार के वन्यजीवों के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है। मुख्य रूप से नहार बाघ, तेंदुआ, लक्कड़ बग्घा, तरक्षु, भालू, सांभर आदि जानवर यहाँ पर पाए जाते हैं। वर्षा के आने से मोर अपने रंग-बिरंगे पंख को फैला देते हैं। उपस्थित जनता खूबसूरत दृश्य की प्रशंसा करने लगी तथा कैमरे से छायाचित्र लेने लगी। नेशनल पार्क में पक्षी एवं जानवरों का हमने जीवंत रूप देखा। माधव विलास महल में सिंधिया राजवंश ग्रीष्म काल के समय निवास करते थे। वन वाटिका के मध्य स्थित यह महल गुलाब के फूल के समान प्रतीत हो रहा था। महल के भीतर कला की सुंदर मूर्तियाँ प्रदर्शित थीं। सुंदर आकृतियों वाले महल की छत से शिवपुरी नगर एवं माधव नेशनल पार्क नजर आते हैं। खूबसूरत चित्रकला से महल के विभिन्न कक्षों को सजाया गया था। अब यह महल भारत सरकार के अधीन है।
शिवपुरी में पर्यटक महाराजा एवं राजकुमारों द्वारा बनाई गई छतरियों को देखने आते हैं। इस ऐतिहासिक स्थल पर विभिन्न गाथाएँ एवं प्राचीन कहानियाँ सुन सकते हैं। ये छतरियाँ संगमरमर की हैं एवं इन पर सुंदर आकृतियाँ उकेरी गई हैं। सिंधिया राजकुमारों ने इन्हें मुगल वाटिका में स्थापित किया था। इस स्थान पर माधवराव सिंधिया की छतरी स्थित है उसी तरह महारानी सँख्याराजे सिंधिया की सुंदर छतरी भी है। हिंदू एवं इस्लामी के वास्तुशिल्पीय मिश्रित रूप नजर आते हैं। राजपूत एवं मुगल परम्पराओं के वास्तुशिल्पीय को रूपांतर करती कला दर्शकों को अपनी ओर आकृष्ट करती है।
ऐतिहासिक स्थलों के दर्शन करने में काफी देर हो गई थी। सूरज ढलने वाला था कि हमारी दृष्टि जॉर्ज किले की ओर आकर्षित हुई। सँख्या सागर के तट पर स्थित इस किले को जीवाजीराव सिंधिया ने निर्मित किया था।
ऐतिहासिक स्थलों के दर्शन करने में काफी देर हो गई थी। सूरज ढलने वाला था कि हमारी दृष्टि जॉर्ज किले की ओर आकर्षित हुई। सँख्या सागर के तट पर स्थित इस किले को जीवाजीराव सिंधिया ने निर्मित किया था। परंतु इस किले की एक विशेषता है जो अक्सर आम किलों के स्थान पर देखी नहीं जाती, वह यह है कि यह महल माधव नेशनल पार्क के अंदर स्थित है। इसलिए महल की सुंदरता और निखर उठती है जब किले के चारों ओर घने जंगल स्थित हैं।
प्राचीन महलों एवं प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों के दर्शन कर जब हम वापस लौट रहे थे तब हमने वहाँ के स्थानीय रंगमंच एवं लोकगीत सुने जो आदिवासी लोगों ने पात्रों के माध्यम से दर्शाए थे। कार्यक्रम के अंत में हम होटल वापस लौट आए।

कोई टिप्पणी नहीं: