सोमवार, 29 मार्च 2010

चूडियां

रंगीन चूडि़यों का सच
मेरे सामने चित्रा आ जाती है। .. यूकलिप्टस के पेड की तरह चिकनी कलाइयां.. रंग, जैसे दूध में किसी ने सिंदूर घोल दिया हो।
मुझे चूडियां पहना दो।
आज तो संडे है चित्रा। तुम्हें पता है न कि यहां रविवार को दुकानें बंद रहती हैं।
प्लीज रवि.., हमारी बात मत ठुकराओ। ..
हमने जब कहानी की फरमाइश की, तुमने लिखी। हमने जब भी..। शर्म से सिर झुकाकर मेरे करीब आ जाती है वह। मुझे लगता है, भीनी-भीनी खुशबू वाली अगरबत्ती जल रही है.. सुगंध की बांहें मुझे घेर रही हैं। मैं कमजोर पडता जा रहा हूं। ऐसा क्यों होता है? मैं उसकी बात टाल नहीं पाता।
प्लीज रवि। वह आंखों से मुसकराती है। मैं सोचते हुए कहता हूं, चूडीघर वाला मेरा दोस्त है। मकान ऊपर, दुकान नीचे। अब उठो। चूडी क्या, किसी दिन ताजमहल बनवा दूंगा।
लेखक जी, जब शहंशाह हो, प्यार के साथ ही ब्लैक-मनी भी हो तो ताजमहल भले न बने, पैलेसनुमा घर जैसा कुछ बन जाता है।
बहुत बातें करती हो, अब चलो भी।
हम चूडियां यहीं पहनेंगे-तुमसे। दैट्स ऑल।
पागल हो गई हो? मैं चूडीवाला दिखता हूं? एक लंबी-सी मुस्क ान उसके चेहरे पर फैल जाती है, जैसे मासूम-सी बच्ची, स्लेट पर लंबी-सी लकीर खींच दे-यहां से वहां तक। हां, तुम्हारे प्यार में सचमुच पागल हो गए हैं, इसीलिए आग्रह कर रहे हैं।
मुझसे चूडियां टूट जाएंगी। हाथ में खरोंच पड सकती है।

पडने दो। खून निकल आए तो और अच्छा।

प्यार में बहा खून रंग लाता है।

मैं उसका चेहरा देखता हूं।

हमें देखने में टाइम वेस्ट मत करो। जाओ, चूडियां ले आओ। एक भी सलामत गई, तो हम समझेंगे।
क्या समझोगी?

यही कि तुम लेखन के साथ ही चूडियों की दुकान भी खोल सकते हो। दाल-रोटी मजे से चल जाएगी। वह भागती लहरों की तरह चंचल हंसी हंसती है।
मैं उठता हूं, तुम?
हम यहीं गंगा के किनारे तुम्हारा इंतजार करेंगे।
अरे, कहां चल दिए?
चूडियां लाने।
सचमुच, आदमी प्यार में पागल हो जाता है। लेखक जी, आपको साइज मालूम है मेरा? सवा दो इंच। और हां, साबुन भी लेकर आना। नहाने वाला-कपडा धोने वाला नहीं। वह फिर हंसती है। लंबी-सी हंसी। यहां से वहां तक फैली हुई हंसी।
मैं ढेर-सारी चूडियां लेकर आता हूं।
वह सीढी के करीब जाकर पानी में कलाइयां डुबो देती है। मुझे लगता है, यूकलिप्टस के पेड के इर्द-गिर्द बाढ आ गई है।
साबुन लगाकर वह कलाइयां मेरे सामने बढा देती है, अब पहना दो।
मैं एक पहनाता हूं। वह दूसरा हाथ बढा देती है।
फिर एक पहना देता हूं।
अब बस, एक भी टूट गई तो।
और आ जाएंगी।
नहीं रवि।
वह गंभीर आवाज में कहती है, तुम पुरुष हो न, इसलिए इसके टूटने का दर्द तुम्हें मालूम नहीं। चूडियां कलाइयों में आकर इतिहास बन जाती हैं, टूटकर महा-इतिहास। तब औरत को लगता है, कांच का इंद्रधनुष बिखर गया। कबूतर के उडने वाले पंखों में कीलें ठोंक दी गई। जैसे ईसा मसीह के हाथों में..।
एक लंबे अरसे के बाद चित्रा का खत आया है। इस शहर के बडे से कॉलेज में आकर, हम बहुत छोटे से हो गए हैं। यहां ढेरों पत्रिकाएं आती हैं। हर लेखक चुनाव को लेकर लिख रहा है। तुम्हारी खामोश कलम हमें रोज छोटा बना रही है। प्लीज अलमारी खोलकर हमें याद करना। विश्वास है, कहानी बन जाएगी।
मुझे खयाल आता है अपनी किताबों का। वह अलमारी के पास आई थी, तुम्हारी किताब मेरे तकिये के नीचे रहेगी तो उस बडे से कॉलेज-हॉस्टल में हम अकेले नहीं रहेंगे। उसने अलमारी खोली थी। चौंककर कहा, तुम तो चर्च जाते नहीं, बाइबिल पढते हो?
हां, सुबह उठने के बाद। रात, सोने से पहले। वह कुछ सोचती रही।
फिर उसने दोनों चूडियां उतारकर बाइबिल पर रख दीं, अब तुम रोज दो बार हमें याद करोगे। चूडियां हटाकर बाइबिल पढोगे। बाइबिल रख कर, उस पर चूडियां रखोगे। सॉरी यार, मैथ कमजोर है। तुम तो सुबह और रात, दो टाइम पढते हो। यानी तब चार बार याद करोगे।
मैं उठकर अलमारी के पास जाता हूं। धीरे से खोलता हूं। बाइबिल पर चित्रा की चूडियां रखी हैं। तभी बाहर से एक आवाज गूंजती है, हरी-पीली-लाल चूडियां।
मैं अलमारी बंद कर बरामदे में आता हूं। चूडी वाली, भाभी और छोटी भतीजी हैं। भैया शतरंज खेल रहे हैं, शह बचो प्रोफेसर सहाय।
प्रोफेसर नई चाल चलते हैं, तुम फंस गए। भाभी चूडी वाली से कहती हैं, उन्हें क्या देख रही है, मेरी बेटी को चूडियां पहना। लाल नहीं, काली पहना, नजर न लगे।
तभी भैया ठहाका लगाते हैं, अब तो तुम घिर गए प्रोफेसर सहाय।
चूडी वाली पूछती है, कौन हैं?
भाभी गर्व से कहती हैं, मुन्नी के बाबू। कारगिल-युद्ध में लडे थे। कई मेडल मिले हैं। बायां हाथ काटा गया। गोली लगी थी।
मैं भाभी को देखता हूं। वह आंचल से आंसू पोंछती है, चल, बच्ची को चूडी पहना।
चित्रा की चिट्ठियां आती रहीं। हर बार कलम उठाकर भी मैं कहानी नहीं लिख सका। चित्रा की फरमाइश बासी रोटी की तरह सूखकर कडी हो गई थी। इस घटना पर मैंने कहानी बुननी शुरू की। हमेशा की तरह अगरबत्ती जलाई, पानी रखा।
लिखते-लिखते पानी पीने की आदत है। एक बार चित्रा ने कहा था, आज मैं तुम्हारे पानी पीने का रहस्य जान गई। तुम काग्ाज की जमीन पर, कलम की कुदाली चलाते हो। ईमानदारी के शब्द बोते हो, फिर गिलास के पानी से सींचते हो, इसीलिए तुम्हारी कहानियों से मुहब्बत की फसल पैदा होती है।
प्लीज, डिस्टर्ब मत करो। तुम तो जानती हो, लिखते वक्त मैं एकांत चाहता हूं।
वह चली गई थी।
बाद में उसका पत्र आया कि पापा के साथ वह शिमला में गर्मी की छुट्टियां बिताकर आएगी। लिखा था, मैं यहां के रोमांटिक माहौल का मजा लूंगी। तुम मेरी चूडियों को याद कर, एक प्यारी लव-स्टोरी लिख कर रखना।
अचानक मुझे लगा, चित्रा करीब खडी है। पलटकर देखा, कोई नहीं है। हंसी आई। वह तो पराये शहर में है। उसकी फरमाइश बंद लिफ ाफेकी तरह जस की तस पडी है। मैं कलम उठाता हूं किवे यानी नेताजी आ जाते हैं, ये क्या हो रहा है?
कहानी लिखने जा रहा था..।
यह लिखने का नहीं, जीवन-मरण का प्रश्न है-युद्ध क्षेत्र में उतरना है। उन्होंने कहा।
मगर युद्ध तो कबका समाप्त हो गया।
भाई मेरे, लडाई में गोली चलती है। चौकियों पर कब्जे किए जाते हैं। तिरंगा लहराया जाता है। लाशें गिरती हैं और चुनाव में भी गोलियां चलती हैं, बूथ कैप्चर होते हैं, लाशें गिरती हैं। जीतने पर, अपने दल के झंडों के साथ जुलूस निकाले जाते हैं। उस युद्ध और इस लडाई में बस जरा-सा फर्क है। वह युद्ध बाहर वालों से लडते हैं, यह लडाई अपने लोगों से लडते हैं।
जैसे झूठ और सच में जरा-सा फर्क होता है। झूठ की जेब भरी होती है, सच की खाली। लेकिन यह जरा-सा फर्क तब बडा बन जाता है, जब भरी जेब से बंगला बन जाता है।
वाह! इन्हीं बातों से हाईकमान आपको इतना मानते हैं। साफ कह दिया कि उन्हें कैसे भी लेकर आएं। सारे मैटर रवि जी से लिखवाएं। चुनाव जीतते ही आपको एमएलसी बना देंगे-साहित्यकार कोटे पर। चलिए अब चेहरा क्या देख रहे हैं। सीरियस प्रॉब्लम है। हाईकमान आपसे डिस्कस करना चाहते हैं।
कैसी प्रॉब्लम।
वे चिंतित हो गए। फिर बोले, अपोजीशन पार्टी ने एक लेडी को मैदान में उतारा है। लेडी के खिलाफ लेडी कैंडिडेट को उतारना होगा। नहीं तो टांय-टांय फिस।
मैं कागज समेटता हूं। लिखने का मूड खत्म हो गया। भाभी की चीख सुनकर मैं बाहर आया। देखा, आज फिर चूडी वाली बैठी है। भाभी कह रही हैं, जा, रंगीन चूडियां लेकर। किसके लिए खरीदूं? तुझे मालूम है मेरे पति को किसी ने गुप्त सूचना दी थी कि आतंकवादी राघव के घर में छिपे हैं। उसे व उसकी पत्नी को बंदी बना रखा है। डर से राघव कुछ कहता नहीं। वह सामान लाता है, उसकी पत्नी बनाती है। लगता है, हादसा करने की योजना है।
फिर? आश्चर्य से चूडी वाली ने पूछा।
फिर क्या! यह सुनकर मेरे पति का फौजी खून खौल उठा। अलमारी खोली और मेडल्स मुझे देकर अपने सलामत हाथ से जेब में रिवाल्वर रखकर मुझे देखा। तेजी से बाहर निकल गए। बाद में पता चला, राघव व उसकी पत्नी को वहां से निकालने में तो वे सफल हुए, लेकिन अपने प्राण गंवा बैठे। भाभी रोने लगीं..।
चूडी वाली उन्हें चुपचाप, एकटक देखती रही। भाभी ने धीरे से कहा, ये चूडियां नहीं, मेरे लिए कांच की सलीबें हैं। तू सुहागिन है, बेच सुहाग की निशानी कहीं और जाकर।
चूडी वाली बोली, यह सब मुझे पता था। मैं तो गर्व से उठा तुम्हारा सिर देखने आई थी। मैं निर्धन परिवार की हूं, लेकिन गर्व से सिर पर सुहाग की निशानी उठाकर बेचती हूं। जो कुछ कमाती हूं, उसका कुछ हिस्सा जवानों के लिए भेजती हूं। चूडियां मुझे सलीबें नहीं लगतीं।
भाभी ने चौंककर पूछा, तुम विधवा हो? हां। मैं अपने पति से प्यार करती हूं और करती रहूंगी। मैं परमवीर चक्र विजेता शहीद की पत्नी हूं।
चूडी वाली की बात सुनकर नेताजी को मानो मुंहमांगी मुराद मिल गई। खुशी से उछलकर बोले, अब विपक्षी दल छाती पीट-पीट कर रोएंगे। कहां से यह हीरा खोजकर ले आए। उनकी सीट तो गई रवि बाबू।
फिर चूडी वाली से मुखातिब होकर कहते हैं, बहन, हम तुम्हें चुनाव में खडा करेंगे। सुनो भैया, चूडी वाली धीरे से मुसकराती है, तुम्हारे जैसे लोग देशभक्त नहीं, मौकापरस्त नेता हैं, जो कुर्सी के लिए लडते-लडवाते हैं। अपने गांव-देहात में, अपने ही लोगों से मुझे लडाने की बात करते हो। सीमा पर नहीं तो कम से कम देश के भीतर घुसे आतंकवादियों से लडो। फिर वहां से लौटकर, किसी शहीद की पत्नी को लडवाने की बात सोचना।
वह टोकरी सिर पर रखकर उठने लगती है। भाभी उसका हाथ पकडकर बिठा लेती हैं। फिर बडे प्यार से, अपने दोनों हाथों से उसकी कलाइयां सहलाने लगती हैं। मेरे सामने चार नंगी कलाइयां उसी तरह चमकने लगती हैं, जैसे सीमा पर जमी बर्फ, सूरज की किरणों के पडने से जगमगा उठती हैं, ढेर सारी रंगीन चूडियों की तरह..।

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