मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

जलियाँवाला बाग हत्याकांड पर विशेष

आज भी मौजूद हैं गोलियों के निशान
13 अप्रैल के दिन के साथ बैसाखी के उल्लास के साथ ही जलियाँवाला बाग हत्याकांड की बेहद दर्दनाक यादें भी जुड़ी हैं, जब गोरी हुकूमत के नुमाइंदे जनरल डायर ने अंधाधुँध गोलियाँ बरसाकर सैकड़ों निर्दोष देशभक्तों को मौत की नींद सुला दिया।
इतिहास में 13 अप्रैल 1919 की जलियाँवाला बाग की घटना विश्व के बड़े नरसंहारों में से एक के रूप में दर्ज है, जब बैसाखी के पावन पर्व पर अंग्रेजों ने हिन्दुस्तानियों के खून से होली खेली।
इस संबंध में विशेषज्ञों का कहना है कि अंग्रेज आजादी की लड़ाई में हिन्दुओं और मुसलमानों की एकता को देखकर घबराए हुए थे, इसलिए उन्होंने दोनों समुदायों में धर्म के आधार पर नफरत की दीवार खड़ी करने की हजार कोशिशें कीं लेकिन इसके वजूद वे सफल नहीं हो पा रहे थे।
उन्होंने बताया कि अंग्रेजों ने जब रोलेट एक्ट लागू किया तो पूरे देश में आजादी की ज्वाला और भी भड़क गई। पंजाब में इसका कुछ ज्यादा ही असर था।
रोलेट एक्ट के विरोध में 13 अप्रैल 1919 को शांतिपूर्ण तरीके से अमृतसर के जलियाँवाला बाग में एक जनसभा रखी गई, जिसे विफल करने के लिए अंग्रेज जबर्दस्त हिंसा पर उतर आए। यह विरोध इतना जबर्दस्त था कि छह अप्रैल को पूरे पंजाब में हड़ताल रही और 10 अप्रैल 1919 को हिन्दू एवं मुसलमानों ने मिलकर बहुत बड़े स्तर पर रामनवमी के त्योहार का आयोजन किया।
हिन्दू-मुसलमानों की इस एकता से पंजाब का तत्कालीन गवर्नर माइकल ओडवायर घबरा गया। अंग्रेजों ने 13 अप्रैल की जनसभा को विफल करने के लिए साम, दाम, दंड, भेद के सभी तरीके अख्तियार कर लिए। अंग्रेजों ने खौफ पैदा करने के लिए लोगों के इस जमावड़े से कुछ दिन पहले ही 22 देशभक्तों को मौत के घाट उतार दिया।
10 अप्रैल 1919 को अंग्रेजों ने दो बड़े नेताओं डॉ. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू को बातचीत के लिए बुलाया, लेकिन धोखे से दोनों को वहीं गिरफ्तार कर लिया गया।
अंग्रेजों ने जलियाँवाला बाग की जनसभा में शामिल होने जा रहे महात्मा गाँधी को भी 10 अप्रैल के ही दिन पलवल रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया।
अपने नेताओं की गिरफ्तारी से लोग और भी भड़क उठे तथा वे 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन हजारों की संख्या में जलियाँवाला बाग पहुँच गए।
हिन्दू, सिख और मुसलमानों की एकता से अपना शासन खतरे में देख अंग्रेजों ने भारतीयों को सबक सिखाने की ठानी और माइकल ओडवायर के आदेश पर जनरल डायर सैनिकों के साथ जलियाँवाला बाग जा धमका। इस बाग में प्रवेश और निकास का छोटा सा सिर्फ एकमात्र रास्ता है।
डायर के सैनिकों ने इस रास्ते को अवरुद्ध कर सभा कर रहे निहत्थे लोगों पर गोलियाँ बरसाना शुरू कर दिया। अचानक से गोलीबारी होते देख लोगों में भगदड़ मच गई।
बहुत से लोगों ने जान बचाने के लिए जलियाँवाला बाग में मौजूद एक कुएँ में छलांग लगा दी, लेकिन पानी में डूबने से उनकी मौत हो गई।
इस नरसंहार में मरने वालों की संख्या ब्रितानिया सरकार ने 300 बताई, जबकि कांग्रेस की रिपोर्ट के अनुसार इसमें एक हजार से अधिक लोग मारे गए।
जलियाँवाला बाग में गोलियों के निशान आज भी मौजूद हैं, जो अंग्रेजों के अत्याचार की कहानी कहते नजर आते हैं। डायर ने हत्याकांड के बाद इस बाग को खत्म करने की कोशिश की, ताकि लोग वहाँ स्मारक स्थल न बना सकें लेकिन इसके लिए बने एक ट्रस्ट ने बाग मालिक से घटनास्थल वाली जमीन खरीदकर गोरे हुक्मरानों के इरादों को विफल कर दिया।
पिछले सालों में पंजाब सरकार ने जलियाँवाला बाग को पिकनिक स्थल में तब्दील करने की योजना बनाई, लेकिन नौजवान सभा देशभक्त यादगार कमेटी और पंजाब स्टूडेंट्स यूनियन जैसे संगठनों द्वारा बड़े पैमाने पर किए गए विरोध प्रदर्शनों की वजह से सरकार को कदम पीछे खींचने पड़े।
इन संगठनों का कहना है कि स्मारक स्थल मूल रूप में ही रहना चाहिए और इसे पिकनिक स्थल बनाया जाना शहीदों का अपमान होगा।

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