सोमवार, 19 अप्रैल 2010

साहित्यिक कृतियां

सम्मान
राजीव और संजीव दोनों मित्र थे। एक दिन वे कहीं जा रहे थे कि रास्ते में उनके पुराने विद्यालय के गुरू जी मिल गए। राजीव ने उनका अभिवादन करते हुए चरणस्पर्श किए लेकिन संजीव खडा मुंह देखता रहा। इधर इस पर राजीव को तो आश्चर्य हो ही रहा था, साथ ही उनके गुरू जी को भी। कुछ दूर चलने पर राजीव ने अपने मित्र से गुरू जी का सम्मान न करने का कारण पूछा। इस पर संजीव ने कहा कि, भले ही वे हमारे गुरू रहे हैं लेकिन मैं ऐसे गुरुओं का सम्मान नहीं करता जो ट्यूशन के नाम पर छात्रों का शारीरिक, मानसिक और आर्थिक शोषण करते हैं और जिनमें भेदभाव करने की आदत हो। कुछ दूरी पर खडे गुरू जी ने भी यह सुन लिया था। यह सुनकर राजीव तो सकते में रह ही गया साथ ही गुरू जी का भी सिर अपने आप ही झुक गया था।

अध्यात्म का अहंकार
आत्म-परमार्जन के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति को अहंकार के खतरे के प्रति सावधान रहना चाहिए। यहां तक कि सत्यवादिता एवं अहिंसा के महान गुणों का अभ्यास करते हुए भी एक व्यक्ति अपने अहं को पोषित कर सकता है। आध्यात्मिकता के साम्राज्य से संबंधित अहं व्यक्ति की सांसारिक सफलता से संबंधित अहं से कहीं ज्यादा धूर्त एवं खतरनाक होता है।

साधना की अवधि के दौरान सहजभाव की अपेक्षा करते हुए शिष्य अधिक विद्वान बन सकता है, इसके विपरीत तथ्यों की उपेक्षा करते हुए वह बहुत भावनात्मक बन सकता है। भावुकता उतनी की खतरनाक है जितनी कि बुद्धिमता, दोनों अहं को पोषित करते हैं।

एक व्यक्ति अपने अहं का दास बन जाता है जब वह व्यक्तिगत लाभों के विषय में सोचता है। एकस्वार्थी व्यक्ति संदेह की स्थिति में वास करता है, चूंकि उसकी चेतना उसे निरंतर उसके गलत दृष्टिकोण (वृत्ति) का स्मरण कराती रहती है। एक तरफवह अपनी स्वार्थी इच्छाओं द्वारा घसीटा जाता है एवं दूसरी तरफ वह अपनी आंतरिक आवाज के द्वारा सचेत किया जाता है। वह इन दो शक्तियों के मध्य टूटकर रह जाता है।

किसी भी प्रकार से कभी भी अपनी निंदा मत कीजिए। अपनी प्रशंसा एवं सराहना करना सीखिए, परंतु यह देखते रहिए कि आप अपने अहं का पोषण नहीं कर रहे हैं। साधना के मार्ग का यह एक धूर्त दुश्मन है, यद्यपि इसे कुछ प्रयासों के द्वारा ठीक किया जा सकता है।

अपने दुर्बल बिंदुओं को स्वीकार कीजिए, विवेक की शक्ति को आपके अहं को सुझाव देने दीजिए एवं अपनी दुर्बलताओं से ऊपर उठने की एक दृढ प्रतिज्ञा कीजिए। दुर्बलताओं को समाप्त करने का कार्य करते समय आपको बहुत ही अधिक सावधान रहना पडता है। अहं अपनी दुर्बलताओं को प्रकट नहीं होने देना चाहता है। आप दुर्बलताओं को जितना छिपाते हैं वे उतनी ही बढेंगी। अपने मन को यह स्मरण कराइए कि आप आत्म-शुद्धि एवं आत्म-खोज के मार्ग पर हैं। इसके लिए बहुत साहस की आवश्यकता होती है। इस आंतरिक युद्ध के दौरान अहं व उसके परिजनों को उखाडने की कीमत पर भी दृढ बने रहिए एवं अपनी आत्मा को सहारा दीजिए।

एक मानव दयनीय होता है यदि वह अपनी आंतरिक शक्तियों को प्रकट एवं प्रयोग करने में असफल होता है। आंतरिक शक्तियों को प्रकट करने के लिए उसे अहं को शुद्ध करना चाहिए अथवा इसे उच्चतर सत्यता के प्रति समर्पित कर देना चाहिए। अहं से दासता का परित्याग करने के बाद वह शरीर, इंद्रियों एवं मन के सीमा प्रांतों में प्रवेश कर सकता है।

मात्र ध्यान की गहन विधि ही अहं को शुद्ध करने में सहायता कर सकती है। एक विशुद्ध अहं बाधाओं को उत्पन्न नहीं करता है। ईमानदारीपूर्वक किए गए अभ्यास के द्वारा व्यक्ति मन की एकाग्रता को प्राप्त कर सकता है। वह सत्य बोल सकता है एवं वह दूसरों की सहायता कर सकता है, किंतु वह सत्यता की अनुभूति तब तक नहीं कर सकता जब तक वह अपने अहं को उच्चतर आत्म के प्रति समर्पित न कर दे। अहं केंद्रित जागरूकता से उठने के बाद ही व्यक्ति स्वयं के भीतरी जगत को पा सकता है। मात्र तब ही व्यक्ति बिना किसी को छोडे हुए सभी से प्रेम कर सकता है। वह जो अपने साथियों को प्रेम नहीं कर सकता है, ईश्वर को किसी भी प्रकार से प्रेम नहीं कर सकता। मानवता अहं से जन्मे विभेदों एवं असमानताओं से पीडित है। लोग अपने भाई-बहनों को मात्र धर्म, जाति अथवा वर्ण भेद के आधार पर विभेदित करते हैं। इन समस्याओं से मुक्त होने के लिए मात्र राजनीतिज्ञ समझौते ही पर्याप्त नहीं होते हैं।

सभी मनुष्य जब यह समझ जाएंगे कि उनकी पीडाएं उनके अहं द्वारा लाई गई हैं, केवल तभी वे अपनी सभी भिन्नताओं को दूर कर पाएंगे। वे वर्ण, जाति, धर्म एवं सांप्रदायिक भावनाओं के बंधनों को एक तरफफेंक देंगे। स्वयं को किसी समूह विशेष अथवा समुदाय के साथ पहचान बनाने के बजाय वे स्वयं की पहचान समस्त मनुष्य जाति के साथ बनाएंगे। वे सभी से अपने परिवार के सदस्यों की तरह प्रेम करेंगे।

संसार में कार्य के लिए अहं बहुत अधिक उपयोगी है, किंतु जहां तक गहन प्रसन्नता का संबंध है उसके लिए बहुत उपयोगी नहीं होता है। अहं वह है जो आपको वास्तविकता, सत्यता व वास्तविक स्रोत से विलग करता है। आत्म-विसर्जन की तरफबढने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कदम अहं को निकाल फेंकना है। इसे उच्चतर वास्तविकता के प्रति समर्पित कर देना है एवं फिर इस प्रकार विवेक एवं पवित्र आस्था के प्रकाश को प्राप्त करना है।

अहं एक बार जब स्वयं को उच्चतम सत्यता के प्रति समर्पित कर देता है तो आपने विजय प्राप्त कर ली है एवं आध्यात्मिक प्रकाश आपका है। अहं पर विजय के शीघ्र बाद ही अन्य समस्त गुण जैसे कि विनम्रता, प्रेम, नि:स्वार्थता, करुणा एवं दयालुता स्वभाविक रूप से प्रकट हो जाते हैं। ये गुण (स्व) आत्म-परमार्जन (रूपांतरण) के लिए जरूरी होते हैं। जब ये गुण खिलते हैं तो एक मनुष्य संत बन जाता है। ये संतमय गुण जीवन के ईश्वर की ओर एक मौन आमंत्रण भेजते हैं।

आध्यात्मिक हृदय

कहा जाता है कि मानव के तीन हृदय होते हैं। एक भौतिक है, जिसे शल्य चिकित्सक के चाकू से चीरा-फाडा जा सकता है। ब्रह्म-संबंधी हृदय वह जिसका व्यवस्थित मन द्वारा नेतृत्व किया जाता है। आध्यात्मिक हृदय का हृदय एवं मन दोनों के ऊपर नियंत्रण होता है। इसके लिए दुख, पीडा एवं कष्ट कोई मायने नहीं रखते।

मानव शरीर में ऊपरी एवं निचला दो गोला‌र्द्ध एवं सात प्रकोष्ठ हैं। जो इन दोनों गोला‌र्द्ध को जोडता है वह अनाहत चक्र कहलाता है। यह आध्यात्मिक हृदय है। यह दोनों स्तनों के मध्य होता है। इस चक्र को आपस में गुथे हुए दो त्रिभुजों द्वारा वर्णित किया जाता है। वह त्रिभुज जो ऊपर की ओर दिख रहा है मानवीय प्रयत्नों का प्रतिनिधित्व करता है एवं त्रिभुज जो नीचे की ओर दिख रहा है वह ईश्वरीय कृपा या नीचे की ओर लगने वाला बल है। जो ऊपर की ओर दिख रहा है वह ऊपर की ओर लगने वाला बल है। एक साथ ये एक तारे का निर्माण करते हैं। यहूदी परंपरा इसे पवित्र हृदय का चिन्ह कहती है एवं हिंदू परंपरा इसे अनाहत चक्र कहती है। जब मन को आध्यात्मिक हृदय पर केंद्रित किया जाता है तो यह एक गहन एकाग्रता की स्थिति को प्राप्त कर लेता है।

भावनाएं

आपकी सभी भावनाएं चार प्राथमिक स्रोतों से संबंधित होती हैं। इन चार इच्छाओं अथवा प्रेरणाओं से भावनाओं की छ: मुख्य धाराएं निकलती हैं। काम प्रथम इच्छा होती है। द्वितीय धारा क्रोध है, यदि एक इच्छा पूर्ण नहीं होती है तो आप गर्व, मद से फूल जाते हैं यही तीसरी धारा है। यदि इच्छा पूर्ण हो जाती है तो आप उस वस्तु के प्रति आसक्त हो जाते हैं, जिसने आपकी इच्छा पूर्ण की होती है। यह मोह है। अगली धारा लोभ है जिसका अर्थ है आप लालची बन जाते हैं एवं अधिक और अधिक चाहते हैं। जब लालच अपना अधिपत्य कर लेता है तो आप अहंकार (अहं) को पोषित करने के लिए सब कुछ करते हैं जो आपको आपके सत्य स्वरूप को जानने से वंचित रखता है।

अपने मन की शांति को प्रतिपल व प्रतिक्षण खोए बिना एक समान संतुलित स्वभाव बनाए रखना सीखिए। दु:ख एवं एकाकीपन साधना के मार्ग पर दो सहचर होते हैं। आपका मंत्र आपका सबसे बडा साथी है एवं आपको कभी भी निराशा के क्षण का सामना नहीं करना पडेगा।

भावनाओं को यदि उचित रूप से निर्देशित किया जाए तो यह आपको उच्चतम आनंद की स्थिति तक ले जा सकते हैं।

विज्ञान की आस्था

गणित को केंद्र मानते थे न्यूटन

ऑप्टिक्स, मेकैनिक्स और गणित- ये तीन ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें सर आइजक न्यूटन की प्रतिभा का लोहा पूरी दुनिया आज भी मानती है और इन क्षेत्रों में उनकी खोजों को कभी भुलाया नहीं जा सकता। खासकर गुरुत्वाकर्षण की खोज के लिए तो उन्हें हमेशा याद किया जाता रहेगा। वैसे रसायन विज्ञान में भी उनकी गहरी रुचि थी, लेकिन विज्ञान की सभी विधाओं में गणित को वह केंद्रीय मानते थे। शायद यह जानकर आपको ताज्जुब हो कि ऐसा वह कोई विज्ञान में उसकी उपयोगिता के कारण नहीं, बल्कि सृष्टि के विधान को समझने में सहयोगी लगने के कारण मानते थे। असल में न्यूटन वैज्ञानिक होने के साथ-साथ बेहद धार्मिक व्यक्ति भी थे और यहां तक कि आध्यात्मिक सिद्धियों में भी उनका पूरा विश्वास था।

पवित्र बाइबिल में वर्णित अंक विज्ञान की मान्यताओं और उनके आधारों पर भी उन्होंने काफी काम किया था। ईश्वर की योजना के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को समझने में वह न्युमरोलॉजी और धर्मशास्त्र को बहुत महत्वपूर्ण मानते थे। भौतिक विज्ञान के अपने सिद्धांत में प्रकृति और अंतरिक्ष की पूर्णता के लिए ईश्वर को वह बहुत जरूरी मानते हैं। अपनी पुस्तक प्रिंसिपिआ में वह कहते हैं, सूरज के साथ ग्रहों और सितारों की यह जो बेहद खूबसूरत व्यवस्था है, वह सिर्फउस सर्वज्ञ और सर्वशक्तिसंपन्न सत्ता की चाहत और बुद्धि का कमाल ही हो सकता है।

कंगन की आरी
तिलू के पिता ने यह फ्लैट बीस लाख में खरीदा था। एक दिन वह स्वर्ग सिधार गए। कुछ समय बाद शोक में डूबी मां भी चल बसीं। फ्लैट में उसके साथ भैया-भाभी भी रहते थे। झगडालू स्वभाव की भाभी से उसकी नहीं पटी। तिलू समझ गया कि उनके साथ नहीं रह पाएगा। फ्लैट छोडकर जाना ही बेहतर होगा। मगर वह जाए कैसे? फ्लैट पिता के नाम था। अब इस पर दोनों भाइयों का अधिकार था। बडे भैया के पास पैसा था। यदि वह दस लाख रुपये उसे दे दें तो वह फ्लैट छोड दे। भैया से बात करने की जरूरत थी, मगर कैसे कहे? वह बिजनेस करते थे। सुबह नाश्ता करके निकलते तो रात को ही घर लौटते। मगर वह समझदार थे, छोटे भाई की बेचैनी समझ गए। उन्होंने ही तिलू से कहा, तू फ्लैट खरीदकर चला जा। तुझे भी शांति मिलेगी, मुझे भी।

तिलू बोला, फ्लैट के लिए रुपये कहां हैं?

भैया बोले, कितने लाख चाहिए?

दस लाख पर्याप्त होंगे। उसने कहा।

दस लाख क्यों, और भी ले ले। मगर भाभी को पता न चले। फिर कुछ रुककर भैया बोले, एकसलाह देना चाहता हूं। याद रख, सारी लडकियां तेरी भाभी जैसी ही होंगी।

बडे भैया के सुझाव को ध्यान में रखकर तिलू ने फ्लैट खरीद लिया और अलग हो गया। अपने साथ वह पलंग, अलमारी, मेज और दो कुर्सियां ले गया। नए घर में उसने गैस का चूल्हा और कुछ बर्तन वगैरह खरीदे।

उसे खाना बनाना आता था, इसलिए असुविधा नहीं हुई। फ्लैट में टीवी, फ्रिज, वॉशिंग मशीन नहीं था, लेकिन उसे अफसोस नहीं था। सोते समय सिर पर पंखा घूमे, बस यही चाह थी। फ्लैट में फोन नहीं था। जान-बूझकर नहीं लगवाया। मोबाइल से काम चल जाता। भैया की सलाह से जीना चाहता था। शादी करने पर हजार चीजें चाहिए। अकेले रहना हो तो घर को जंजाल क्यों बनाए? अब तक मजे में था, बाकी जीवन भी ऐसा ही बीते तो क्या कहना!

मगर क्या इस संसार में सुकून मिल सकता है? अपार्टमेंट के अन्य लोगों की दिलचस्पी उसमें बढ गई। वे उसके यहां आ जाते, कई सवाल पूछते और घूम-फिरकर बात यहीं रुक जाती कि वह शादी कब करेगा? तिलू कहता वह तो अकेला खुश है तो लोग समझाते कि शादी जरूरी है। कुंवारे लोग जीते राजा की तरह भले ही हों, मगर मरते भिखारी की तरह हैं। तिलू बात टालता रहता। औरतों को ज्यादा दिलचस्पी थी। वे आती तो कम थीं, लेकिन बाहर अकेले मिलते ही सवाल करतीं।

दिन बीत रहे थे।

एक दिन दफ्तर में मोबाइल बजा।अनजाना नंबर था। उसने हेलो कहा तो दूसरी ओर से कोमल स्वर सुनाई पडा, आप तिलू राय हैं?

हां, कहिए?

आपके पास गाडी है?

नहीं।

हमने नई गाडी निकाली है-फूफू। चौरंगी में हमारा शोरूम है। यह छोटी भी है, सस्ती भी। एक लाख में पडेगी, पेट्रोल की जरूरत नहीं। बैटरी से चलती है। बस एडवांस चालीस हजार दीजिए, बाकी हर महीने किस्तों में देते रहें। चालीस हजार भी हम आपको दे सकते हैं। आप जरा फोन होल्ड रखिए।

कुछ पल बाद एक दूसरा स्वर आया, हेलो।

कहिए।

मैं बैंक से बोल रही हूं। आप यहां आ जाइए। यहां से पैसे लेकर गाडी खरीद लीजिए। हमारी ब्याज दर मामूली है, मगर यह दर सिर्फ फुफू गाडी के लिए ही है। अन्य गाडियों पर यह सुविधा नहीं मिलेगी। यह विशेष ऑफर है। फिर वह बोली, अब आप जरा इनसे बात कीजिए, फोन होल्ड रखें प्लीज।

थोडी ही देर में फिर पहली वाली लडकी की आवाज आई, ऑफर के बारे में सुन लिया?

जी हां।

तो अब एक दिन की भी देर मत कीजिए। पत्नी को लेकर शोरूम में आ जाइए।

मैंने तो शादी नहीं की है।

परेशान न हों, इसका हल भी हमारे पास है। मैं कल एक लडकी को आपके पास भेजूंगी। आप बस अपना पता लिखा दीजिए।

तिलू ने बेखयाली में पता बता दिया। बताते ही उसे समझ आ गया कि उसने गलती कर दी है। मगर अब क्या किया जा सकता था।

वह फिर बोली, लडकी कल सुबह नौ बजे वहां पहुंचेगी। उसने फोन रख दिया।

तिलू को खुद पर गुस्सा आया। उसे कह देना चाहिए था कि किसी को न भेजे, वह शादी नहीं करना चाहता। क्या इस नंबर पर दोबारा कॉल करके साफ मना कर दे। उसने थोडा हिचकिचाते हुए उसी नंबर पर फोन किया। फोन व्यस्त था। उसने फिर फोन किया, इस बार भी वह बिजी आ रहा था। कई बार मिलाने के बाद भी नंबर न लगा तो उसने गुस्से में नंबर ही डिलीट कर दिया।

अगले दिन नाश्ता करके वह अखबार पढने लगा। बुरी खबरों से भरा हुआ था अखबार। तभी घंटी बजी। दरवाजा खोला तो बाहर बीस-पचीस साल की एक लडकी खडी थी। तिलू समझ गया कि यह वही लडकी होगी। क्या कहे उसे? उल्टे पांव लौटा दे? या आने को कहे?

वह कुछ पूछे, इससे पहले ही लडकी बोली, मैं फूफू के दफ्तर से आ रही हूं। मेरा नाम शेफाली भट्टाचार्य है। आप तिलू राय हैं?

हां।

आपको पता है, मैं यहां क्यों आई हूं।

जी।

मैं कुछ कहना चाहती हूं।

कहिए।

मगर दरवाजे पर खडे होकर नहीं।

शिष्टाचारवश उसे अंदर आने को कहना पडा। शेफाली कमरे में आई। तिलू ने दरवाजा बंद नहीं किया। एक कुर्सी की ओर इशारा करके उसने लडकी को बैठने को कहा।

वह बैठ गई। चारों ओर निगाहें डालकर बोली, समझ आ गया कि आपकी शादी नहीं हुई है।

जवाब में वह धीरे से हंसा।

वह बोली, आजकल लोग शादी से कतराने लगे हैं। यह बुरी बात है।

तिलू ने पूछा, बुरा क्यों?

शादी न करने से देश के उद्योग-व्यापार पर असर पडेगा। सोफा-सेट, फ्रिज, वॉशिंग मशीन, अवन, वैक्यूम क्लीनर की बिक्री कम हो जाएगी। कल-कारखाने बंद हो जाएंगे। लाखों लोग बेरोजगार हो जाएंगे। चोरी, झपटमारी, डकैती, हत्याएं ज्यादा होंगी। आप यही चाहते हैं?

बिलकुल नहीं।

तो फिर शादी कर लीजिए मुझसे।

मैं अकेले खुश हूं।

आप मजे में नहीं है। जल्दी ही आप पर आफत आने वाली है।

कैसी आफत?

आप अकेले रहते हैं। सभी के मन में आपके प्रति संदेह होता है। लोग सोचते होंगे कि आपका चरित्र कहीं बुरा न हो। पुलिस सोचेगी, आतंकवादियों से आपके रिश्ते हैं। वह ऐसे मामलों में फंसा देगी कि बचना मुश्किल हो जाएगा। नौकरी भी चली जाएगी। कुंवारे रहने में कितने झमेले हैं।

शादी करके भी तो कई झमेले होंगे। आजकल शादी से सुख नहीं, आतंक मिलता है।

एकदम बकवास।

बकवास नहीं, सची बात है।

किस मायने में?

सरकार ने औरतों के हक में जो कानून बनाए हैं वे पुरुषों के लिए खतरनाक हैं।

जैसे?

शादी के बाद औरत मनमर्जी करे तो भी पति कुछ कह नहीं सकता। इसका अर्थ मुकदमे, जेल, गुजर-बसर का खर्च। मेहरबानी करें मुझ पर और यहां से चली जाएं।

शेफाली तिलमिलाकर खडी हो गई। बोली, यानी आप शादी नहीं करेंगे?

नहीं।

तब आपकी तकदीर में दु:ख ही लिखा है।

वह कहकर चली गई तो तिलू ने निश्चिंत होकर दरवाजा बंद कर दिया।

लेकिन आराम कहां था। रविवार की सुबह दस बजे एक लंबे-चौडे डीलडौल वाला सिपाही आ धमका। उसने सिपाही को बिठाया।

क्या आप तिलू राय हैं? सिपाही ने पूछा।

हां।

आपके खिलाफ आरोप हैं।

कैसा आरोप?

खतरनाक आरोप।

आखिर पता तो चले कि क्या आरोप है?

वही बताने आया हूं। मुझे भूख लगी है। पहले कुछ खिलाएंगे?

क्या खाएंगे?

आमलेट, दो टोस्ट, एक कप चाय जल्दी।

तिलू झटपट रसोई में घुसा। आमलेट बनाया, मक्खन लगाकर और काली मिर्च बुरककर दो टोस्ट उसे दे दिए। इसके बाद सिपाही ने पानी मांगा। फिर बोला, अब चाय पिलाइए।

तिलू चाय बनाकर ले आया।

चाय पीने के बाद उसने पूछा, अकेले हैं?

तिलू ने कहा, हां।

शादी नहीं की?

नहीं। तिलू ने जानना चाहा कि उसके खिलाफ आरोप क्या था? सिपाही ने गंभीर होकर पूछा, कुछ दिन पहले रेलवे स्टेशन पर जिन लोगों ने बम विस्फोट किए थे, उनसे आपका संबंध है?

तिलू न चौंककर पूछा, मेरा संबंध?

हां।

झूठ है..

मगर इसे अदालत में प्रमाणित करना होगा। जब तक प्रमाणित न हो, जेल में रहना होगा। जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं, लेकिन यह इतना आसान नहीं।

मगर..

मुझे पता है आरोप झूठा है। लेकिन इसे सच साबित करने में हमें दिक्कत नहीं होगी। दो राइफल, तीन पिस्तौल, पांच ग्रेनेड दिखाकर कहेंगे ये चीजें इस फ्लैट से मिली हैं। आपको प्रमाणित करना होगा कि ये चीजें आपकी नहीं हैं। आप इसे प्रमाणित कर पाएंगे?

डर से उसका चेहरा पीला पड गया। उसने कहा, मुझे बचाइए। मुझे क्या करना होगा।

सिपाही ने कहा, बचने की एक ही सूरत है।

बताइए।

शादी करनी पडेगी।

शादी क्यों?

सिपाही ने हंसते हुए कहा, आपने शादी नहीं की है। अकेले रहते हैं। अपार्टमेंट वाले थाने में फोन करते हैं कि आपका चरित्र ठीक नहीं है।

तिलू बोला, जिन्होंने शिकायत की है, उनके नाम बता सकते हैं?

सिपाही ने कहा, मुझे अपना दोस्त समझिए। जो सलाह दे रहा हूं, उसे मानिए।

शादी करनी पडेगी?

हां।

कोई दूसरा रास्ता नहीं है?

नहीं।

मगर अछी लडकी मिले, क्या गारंटी है? परेशान न हों। मैं आज शाम एक लडकी को भेजूंगा। आपसे वह मिल चुकी है। शेफाली भट्टाचार्य है उसका नाम।

नहीं, कोई दूसरी भेज दीजिए।

दूसरी क्यों? शेफाली ठीक है। नौकरी मिल नहीं पा रही है उसे। कम से कम शादी ही हो जाए। कहकर सिपाही चला गया।

तिलू ने सोचा कि शाम को दरवाजे पर ताला लगाकर चला जाए। बाद में सोचा, सिपाही नाराज हो जाएगा, शेफाली थाने चली जाएगी, पुलिस से शिकायत करेगी। लाचार होकर वह इंतजार करने लगा। फिर उसने खुद को समझाया कि क्या पता वह अछी लडकी निकले। अभी से इस बारे में चिंता क्यों करे।

ठीक वक्त पर शेफाली आ गई। हंसकर बोली, मैंने कहा था शादी कर लें, वर्ना दिक्कत होगी।

आपने नहीं सुना। अब तो सुनना होगा।

तिलू ने कहा, दुर्भाग्य की बात है।

वह नाराजगी से बोली, सौभाग्य कहिए।

सौभाग्य?

शादी के बाद मैं आपकी जीवनशैली बदल दूंगी।

फ्लैट में रौनक आ जाएगी। नई-नई चीजें आएंगी। आपको लगेगा कि आप जैसा सुखी प्राणी दूसरा कोई नहीं है। इतनी अछी पत्नी मिलने पर लोग आपसे ईष्र्या करेंगे।

वह बोला, मैं ईष्र्या की वजह क्यों बनूं?

आपके चाहने से कुछ होने वाला नहीं। ऐसा तो होगा ही। आपने शादी की तारीख तय की है?

शेफाली मुस्करा कर बोली।

नहीं

मैंने तय कर दी है। अगले महीने की पंद्रह तारीख को शादी होगी। पंजिका देखकर ही शुभ दिन निकाला है। शादी में किसी धूमधाम की जरूरत नहीं है। रजिस्टर्ड शादी होगी।

लेकिन..

लेकिन-वेकिन कुछ नहीं, जो कहती हूं, कीजिए। शेफाली उठ खडी हुई।

उसने पूछा, चाय-पानी लेंगी?

पेट ठीक नहीं है, कहकर वह चली गई।

...शादी के अगले दिन सुबह के दस बजे थे। तिलू अखबार पढ रहा था। शेफाली बोली, अखबार पढना बंद करो।

तिलू ने अखबार से मुंह उठाकर पूछा, क्यों?

मॉल जाना है।

किसलिए?

सामान खरीदेंगे।

कैसा सामान?

टीवी, वॉशिंग मशीन, म्यूजिक सिस्टम, वैक्यूम क्लीनर, माइक्रोवेव, मिक्सर-टोस्टर। इसके अलावा और भी चीजें खरीदनी होंगी।

करीब दो-तीन लाख का होगा।

तो क्या, घर-गृहस्थी के लिए जरूरी है। तुम्हारे पास क्रेडिट कार्ड है न?

नहीं।

ओह! सोचा था, एक ही दिन में सब खरीद लूंगी। अब क्या होगा?

तिलू ने शांत स्वर से कहा, यह सब खरीदने से क्या होगा। पैसा बर्बाद होगा। बैंक में पैसे रहेंगे तो भविष्य में काम आएंगे।

शेफाली खीजकर बोली, पहले वर्तमान को तो ठीक करो। सारा सामान मुझे चाहिए।

वह धीरे से बोला, ऐसे काम नहीं चलेगा?

शेफाली ऊंची आवाज में रोते हुए बोली, घर में सामान न रहे तो लोग क्या कहेंगे?

तिलू ने हैरानी से पूछा, रो क्यों रही हो?

वह बोली, रोऊंगी नहीं? इस तरह खाली फ्लैट में कोई रह सकता है?

तिलू ने कहा, ठीक है, सब आ जाएगा धीरे-धीरे। सबसे जरूरी है कि बेड खरीद लें, एक आलमारी और एक सोफा खरीद लें।

बाकी सब?

धीरे-धीरे हो जाएगा। हडबडी क्यों करनी?

शेफाली कुछ नहीं बोली।

..फ्लैट भर गया, मगर शेफाली का मन नहीं भरा। अब वह फूफू गाडी के लिए मचलने लगी, रोने लगी, फिर भूख हडताल कर दी। आखिर गाडी भी आई। ड्राइवर का इंतजाम करना पडा, क्योंकि उसे ड्राइविंग नहीं आती थी। तिलू को गाडी में बैठने का मौका नहीं मिलता था। शेफाली दिन भर गाडी लेकर घूमती। कभी शाम को घर पहुंचती तो कभी देर रात। कुछ पूछने पर बिगड जाती। अशांति की डर से तिलू चुप रहता था।

इस तरह एक साल और बीता। लेकिन शेफाली नहीं बदली, बल्कि और मनमानी करने लगी।

एक दिन तिलू ने पूछा, तुम कहां जाती हो?

शेफाली बोली, नहीं बताऊंगी।

क्यों?

मेरी मर्जी।

क्या मतलब? तुम मनमानी करोगी?

हां।

तुम ऐसा नहीं कर सकतीं।

धीरे-धीरे दोनों की आवाज ऊंची होने लगी। घर का माहौल असहनीय हो गया।

आखिर वह बोली, तुम्हारे साथ मेरा निबाह मुश्किल है। मुझे तलाक चाहिए।

तिलू बिगडकर बोला, मैं तलाक नहीं दूंगा।

तब तुम्हारी तकदीर में तकलीफेंही आएंगी। कहकर शेफाली सामान बांधने लगी।

तिलू गुस्से से कांपने लगा।

रात को शेफाली का फोन आया, मुझे तलाक चाहिए। दोगे या नहीं?

नहीं।

तो फिर कल थाने जाकर तुम्हारे खिलाफ एफ.आई.आर. कराऊंगी।

उसने कहा, ठीक है। मगर मैं पैसे नहीं दूंगा।

जो चीजें मैंने खरीदी हैं, वे मुझे चाहिए। पलंग, अलमारी से लेकर मिक्सर तक, सब।

ठीक है, ले जाओ। सब ले जाओ।

शेफाली सामान व गाडी लेकर चली गई। तब जाकर तिलू की जान में जान आई। तय किया कि अब दोबारा शादी नहीं करेगा।

सात दिन बाद अचानक कॉलबेल बज उठी।

दरवाजा खोलकर देखा तो बीस-पचीस साल की लडकी खडी थी, आप तिलू राय हैं? आपका तलाक हो गया है?

हां।

मेरा नाम मालती राय है। मैं आपसे शादी करना चाहती हूं।

अधेड़ावस्था का प्रेम

अधेडावस्था के प्रेम को भारतीय विद्वान तो मान्यता नहीं देते, लेकिन पश्चिमी विचारकों ने इसे अधिस्वीकृति प्रदान की है तथा इसके पक्ष में अछी-खासी दलीलें दी हैं। इसलिए मैंने पश्चिमी विद्वानों की बात को स्वीकार कर इस क्षेत्र में पांव धर दिया है। पांव भी वहीं रखा जाता है जहां स्कोप होता है। मुझे गुंजाइश दिखाई दी और मैंने प्रेम का पाजामा धारण कर लिया। वैसे यह अवश्य कहना चाहूंगा कि अधेडावस्था में दोनों ओर से परिपक्वता होने से प्रेम में धोखा नहीं होता तथा पूरी सावधानी से खेला जाता है यह खेल। जमाना तो खैर बैरी होता है, वह न तो युवाओं को छोडता है और न अधेडों को। भला मैंने और उसने पैंतालिस की अवस्था में जो प्रेम किया था, वह जमाने को कैसे सुहाता? लेकिन यह अनुभवसिद्ध बात है कि अधेडावस्था में आदमी में इतनी आत्मिक और आध्यात्मिक शक्ति संचित हो जाती है कि वह हाथी बनकर कुत्तों की परवाह नहीं करता। कुत्तों का काम भौंकना है, वे भौंकते रहेंगे-आप तो अपनी बंशी बजाते रहिए।

अवस्था तो अवस्था होती है। आदमी मन से युवा होता है, यदि मन ही जर्जर हो गया तो सारे प्रयत्न बेकार हैं। कहने को होती है अधेडावस्था लेकिन यह बात व्यावहारिकता के अत्यंत सन्निकट है कि अधेडावस्था में किया गया प्रेम कारगर रहता है तथा उसमें आकर्षण-भाव स्थायी न होने से तनाव नहीं बढता। तनाव पचास रोगों की जड है। इस उम्र के प्रेमी यह मानते हैं कि जो बात बन जाए तो ठीक है अन्यथा विद-ड्रा कर लेते हैं।

युवावस्था में पलायन अनुचित माना जाता है तथा उसमें लैला-मजनूं जैसी भूमिकाओं की पुनरावृत्ति की प्रबल संभावना रहती है। कई बार भावुकता में आदमी जवानी में आत्महत्या जैसा खतरनाक कार्य भी निष्पादित कर देता है, लेकिन यह अधेडावस्था ही है जो सारे वज्रपात हंसते-हंसते झेल जाती है। इस अवस्था में आदमी घुटकर शालिग्राम बन जाता है और जो चिकना हो गया, उस पर पानी नहीं ठहरता तथा बेशर्मी से हर हालात का सामना कर लेता है।

एक और महत्वपूर्ण बात! और वह है-आदमी के सामने तेल-नोन-लकडी का चक्कर पृथक से होता है, इसलिए वह समय पूरा नहीं दे पाता और वह इसे पार्ट-टाइम में अपनाता है और जो धंधा बन जाए उतना ही पाकर तसल्ली कर लेता है। भावुकता का इस उम्र में घोर अभाव होता है, संवेदनाएं चुक जाती हैं तथा मनुष्य जड हो जाता है। इस हालत में पत्थर से दिल लगाया और दिल पे चोट खाई वाली कहावत चरितार्थ होती रहती है।

अधेडावस्था की प्रेमिका के अपने दृष्टिकोण होते हैं। संभव है उसने भी बेवकूफ बनाने की कोई योजना प्रस्तावित कर रखी हो। आदमी तो सोचता है कि वह डाल-डाल चल रहा है, लेकिन वह पात-पात चलती है। ऐसे में प्रेम की हानियां न के बराबर होती हैं। अगर प्रेम हो जाए तो ठीक वरना काम तो चल ही रहा है। भारत में ऐसे मामले बढ रहे हैं, इससे सद्भाव और शांति स्थापना की दिशा में सफलता मिल पाई है।

अब सवाल आता है कि इस ढाई आखर का जादू क्या-क्या गुल खिला सकता है? मेरा मानना है कि प्रेम का दीपक जलाने से पहले यह देख लेना चाहिए कि वह कितनी देर जल सकेगा, क्योंकि जले हुए दीपक बुझ सकते हैं और बुझे हुए दीपक पुन: जल सकते हैं। विज्ञान के आविष्कार में अब फ्यूज बल्ब फिर जलाने के प्रयास चल रहे हैं। ऐसे में यदि गुल नहीं भी लिखें तो बल्ब की रोशनी गुल हो सकती है। रतौंधी की संभावना प्रबल रहती है। रात में नहीं दिखना तो अधेडावस्था में प्रारंभ हो जाता है लेकिन प्रेम की अभिव्यक्ति के बाद उन्हें दिन में भी अंधता हो सकती है। वे सोचते हैं कि काम चल रहा है, लेकिन बैरी जमाना उन्हें ले उडता है। तब क्या गुल खिलेगा-यह उसी समय मालूम होता है। पहले नहीं बताया जा सकता है। लेकिन इससे आश्वस्त रहना होगा कि अधेड प्रेमिका के पतिदेव भी हो सकते हैं कहीं लौ लगाए बैठे हों, फिर परेशानी अपने आप न्यूनता को पा लेती है।

वैसे तो प्रेम करने में यहां का कोई नागरिक पीछे नहीं है-बस माका मिल जाए उसे। इसके लिए वह नाकों चने चबा लेगा, लेकिन उफ भी नहीं करेगा। यह यहां की मिट्टी का करिश्मा है। भले भरपेट रोटी नहीं मिले, लेकिन वह भरपेट प्रेम की पींग बढाना चाहता है। भूखे पेट भजन नहीं हो सकता है-लेकिन प्रेम हो जाता है। यहां हर आदमी प्रेम का भूखा है। एक-दूसरे से प्रेम चाहता है, यदि यह ललक इसी तरह बनी रही तो वह दिन दूर नहीं है,

जब हमारे सद्भावों की फसल लहलहाने लगेगी। हर धर्म-संस्कृति ने यही संदेश दिया है कि प्रेम करो, इस बात को गुन लिया है हर किसी ने। अब यह बात दीगर है कि प्रेम के वन साइडेड गेम में कई लोग परवान चढ गए तो विफलता ने उन्हें गले लगाया है। प्रेम अकेले नहीं होता, इसमें दो का होना जरूरी है। इसलिए मिलकर एक वातावरण बनाए जाने की आवश्यकता है। अधेडावस्था का प्रेम अलग ही होता है। इसमें रोग के कीटाणु पाए भी जा सकते हैं और नहीं भी। यह रोग इसलिए आमतौर पर नहीं बनता क्योंकि व्यक्ति परिपक्वता में इसे प्राप्त करता है, इसलिए फिसलन की संभावना नहीं रहती। जो लोग अनाडी हैं वे तो कुछ भी हो सकते हैं और रोगी भी बन सकते हैं। एक से एक सिरफिरा घूम रहा है, वह चलते-चलते अपना हाथ-पांव तुडवा ले तो कौन क्या कर सकता है?

वैसे अधेडावस्था संन्यास आश्रम की अवस्था है। लेकिन संन्यास आदि बीते जमाने की बात हो गई। अब न तो वे लोग रहे और न वह जमाना ही रहा जब आदमी अपने तरीके से गृहस्थ आश्रम से निवृत्त होकर साधु-संन्यासी बन जाया करते थे। अब तो जमाना उलट गया है, संन्यासी गृहस्थ बन रहे हैं। उन्हें, जितने दिन वे साधु रहे, उसका अफसोस हो रहा है।

सामाजिक स्थितियां अधेड लोगों के सर्वथा अनुकूल बन गई हैं तथा प्रेम के तमाम रास्ते आप ही प्रशस्त हो रहे हैं। नजर मारिए, कौन अधेडा आपकी प्रतीक्षा में नजरें बिछाए बैठी है। अब तो पहले वाले पडोसी भी नहीं रहे जो पडोस आदि में हाथ नहीं डालते थे। अब तो पडोसी ही पडोसी को धोखा दे रहा है। धोखा, ईमानदारी, इंसानियत सब अपनी अस्मिता खो चुके हैं। इस खोई हुई अस्मिता का लाभ अपने पक्ष में लेने के असीम प्रयास आज से शुरू कर दें। हो सकता है किसी की नजरे-इनायत हो जाए तो आपका जीवन भी संवर जाए। जीवन संवारने की बेला है, प्रेम करिए-क्योंकि आप अधेड हैं और अधेडावस्था का प्रेम धोखा नहीं देता- तो फिर बुरा क्या है?

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