रविवार, 25 अप्रैल 2010

मंच अपना

ग्रीष्मावकाश में भी भेदभाव
गरमी का पारा जैसे ही ऊँचा चढ़ा,शिक्षा विभाग के अधिकारियों को स्कूल के बच्चों की सुध आई। झटपट स्कूल बंद करने का फरमान तो निकाल दिया गया मगर यहाँ भी झोल। आदेश दिया गया कि सारे सरकारी स्कूल तो तुरंत बंद कर दिए जाए, हाँ किसी भी निजी और सीबीएससी स्कूल पर यह निर्णय मानने की बाध्यता नहीं है।
तर्क यह दिया गया कि सरकारी स्कूलों में आधारभूत सुविधाओं के अभाव के रहते बच्चों के बीमार होने की आशंका ज्यादा है। अब ज़रा इन अधिकारियों से कोई यह पूछे कि क्या गरमी बच्चे पर प्रहार करने से पहले यह पूछेगी कि बेटा, सरकारी में पढ़ते हो या निजी में?
यूँ भी सरकारी स्कूल केवल एक शिफ्ट के समय में यानी कुल चार घंटे लगते हैं जबकि सभी निजी स्कूलों का कम से कम समय 5 या 6 घंटे हैं। सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे ज्यादातर आसपास के इलाकों के ही होते हैं जबकि निजी स्कूलों में बच्चे (किसी सही नीति के अभाव में) 10 से 15 किमी. की दूरी का सफ़र तय करके भी आते हैं। यह सफ़र किसी वातानुकूलित गाडी में नहीं वरन तपती बस में तय किया जाता है। क्या उनके बीमार होने की आशंका नहीं होगी?
निजी स्कूलों में नर्सरी, केजी. की कक्षाएँ भी चलती है और ये नन्हें-मुन्ने तपती-जलती गरमी में स्कूल जाने पर विवश हैं क्योंकि सिलेबस का पहाड़ खडा है। क्या इन्हें गरमी प्रभावित नहीं करती? सरकारी स्कूलों में न तो बच्चों को नियमित उपस्थित रहने पर दबाव बनाया जाता है और न ही शिक्षा का स्तर ऐसा होता है कि उनके न जाने से विशेष नुकसान होता हो।
यह लिखते हुए क्षमा चाहूँगी मगर सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे अपने साधारण जीवन स्तर के चलते हर प्रतिकूलता (गरमी की भयंकरता भी) के आदी होते है मगर निजी स्कूलों के छात्र सुविधाओं के चलते परेशानी महसूस कर सकते हैं। जो बातें साधारण व्यक्ति सोच सकता है, वो अधिकारी न सोच पाए ऐसा हो नहीं सकता।
वास्तविक कसरत है इन बेलगाम निजी स्कूलों पर दबाव बनाना। जिसमें सभी स्वयं को असमर्थ पाते हैं और इसके चलते हर आदेश केवल सरकारी स्कूल पर लागू कर छुट्टी पा लेते हैं क्योंकि हर निजी स्कूल के पीछे किसी रसूखदार का नाम जुड़ा है। जिसे छेड़ने में अधिकारी भी डरते है।
इसी के चलते इन स्कूलों में सरकार के आदेशों (विशेषकर अवकाशों का) की जमकर अवहेलना की जाती है और प्रशासन चुप रहता है। गरमी का मुद्दा सारे बच्चों के लिए एक जैसा है अतः इसे स्कूल विशेष का मामला न बनाकर हर स्कूल पर लागू करना चाहिए।

भोग से योग की ओर
भोग की आदत के चलते दुनिया भर में कब्ज और मोटापा एक महारोग हो चला है। यदि भोजन के प्रति अत्यधिक इच्छा बनी रहती है तो फिटनेस के सारे फंडे व्यर्थ है। खाने की इस अति प्रवृत्ति के चलते ही युवा अब युवा कम ही नजर आते हैं। चर्बीयुक्त बॉडी, फास्टफूड और चाय-कॉफी की दुर्गंथ के अलावा सिगरेट और पॉऊच के तो कहने ही क्या। आज का युवा बाजार में कुछ भी खाने के लिए स्वतंत्र हैं, जैसे पानीपुरी, पाऊच, वड़ापाव, हॉटडॉग, अंडे, पोहे, जलेबी, इडली दोसा और न जाने क्या-क्या।

योग कहता है कि योग करने से पूर्व या योग के अनुशासन में आने के लिए आपको अपनी भोगवादी प्रवृत्ति पर रोक लगाना होगी अन्यथा योग का कोई महत्व नहीं। व्यर्थ में कुछ भी खाते रहने से पेट को गंदा टेंक न बनाएँ। आज व्यक्ति कब्ज सहित पेट के बहुत से रोग से तो पीड़ित है ही साथ ही वह अन्य गंभीर रोगों से भी जकड़ चुका है। इसका कारण व्यक्ति की अनियमित जीवन शैली तथा लगातार मसालेदार भोजन के अलावा मद्यपान और अत्यधिक भोजन करने की प्रवृति।

नुकसान : यदि कब्ज या मोटापा है तो इससे वायु प्रकोप और रक्त विकार होता है। सिरदर्द, अनिद्रा, चक्कर और भूख न लगने की शिकायत भी बनी रहती है। कब्ज बने रहने से ब्लड प्रेशर भी शुरू हो जाता है। बड़ी आँत में मल जमा रहने से उसमें सड़ांध लग जाती है, जिससे आँतों में सूजन और दाँतों में सड़न जैसे रोग भी उत्पन्न होते है। सड़ांध बनी रहने से मसूड़े भी कमजोर होने लगते हैं। यह किडनी के लिए भी खराब स्थिति है।

कंट्रोल पावर : सर्वप्रथम तीन दिन तक भोजन त्यागकर सिर्फ घी मिली खिचड़ी खाएँ। इसके बाद चाय, कॉफी, धूम्रपान व मादक वस्तुओं से परहेज तो करें ही साथ ही गरिष्ठ, बासी व बाजारू खाद्य पदार्थों का सेवन करना छोड़ दें। रोज रात्रि में हरड़ और अजवाइन का बारीक चूर्ण एक चम्मच फाँककर एक गिलास कुनकुना पानी पीएँ। बेड-टी को छोड़कर बेड-वाटर लेने की आदत डालें। पानी लेने के बाद पेट का व्यायाम करें।

अन्न ही ब्रह्म है : हिंदू धर्मग्रंथ वेद में कहा गया है कि अन्न ही ब्रह्म अर्थात ईश्वर है। अन्न होना चाहिए सात्विक और साफ। अन्न को अच्‍छी भावदशा, ऊर्जावान, साफ-सुथरी तथा शांतिमय जगह पर ग्रहण किया जाए तो वह अमृत समान असरकार होता है। अन्यथा अन्न ही जहर समान फल देने लगता है। अन्न में कई तरह के रोग उत्पन्न करने की शक्ति है और यही हर तरह के रोग और शोक मिटा भी सकता है।
यौगिक आहार को जानें : योगाचार्यों द्वारा यौगिक आहार के तीन प्रकार बताए गए हैं:- मिताहार, पथ्यकारक और अपथ्यकारक।
मिताहार : मिताहार का अर्थ सीमित आहार। जितना भोजन लेने की क्षमता है, उससे कुछ कम ही भोजन लेना और साथ ही भोजन में इस्तेमाल किए जाने वाले तत्व भी सीमित हैं तो यह मिताहार है। मिताहार के अंतर्गत भोजन अच्छी प्रकार से घी आदि से चुपड़ा हुआ होना चाहिए। मसाले आदि का प्रयोग सिर्फ इतना ही हो कि भोजन की स्वाभाविकता बनी रहे।अपथ्यकारक भोजन : यदि आप योगाभ्यास कर रहे हैं तो निम्नलिखित प्रकार के भोजन का सेवन नहीं करें- कड़वा, खट्टा, तीखा, नमकीन, गरम, खट्टी भाजी, तेल, तिल, सरसों, दही, छाछ, कुलथी, बेर, खल्ली, हींग, लहसुन और मद्य, मछली, बकरे आदि का माँस। ये सभी वस्तुएँ अपथ्यकारक हैं। इसके अलावा बने हुए खाने को पुन: गरम करके भी नहीं खाना चाहिए। अधिक नमक, खटाई आदि भी नहीं खाना चाहिए।

पथ्यकारक भोजन : योग साधकों द्वारा योगाभ्यास में शीघ्र सफलता प्राप्त करने के लिए कहा गया है कि भोजन पुष्टिकारक हो, सुमधुर हो, स्निग्ध हो, गाय के दूध से बनी चीजें हों, सुपाच्य हो तथा मन को अनुकूल लगने वाला हो। इस प्रकार के भोजन योग के अभ्यास को आगे बढ़ाने में सहायक तत्व होते हैं।

योगाभ्यासी को निम्नलिखित प्रकार के भोजन करना चाहिए- अनाज में गेहूँ, चावल और जौ। तुवर की दाल छोड़कर दाल में मूँग, हरा चना, बटले की दाल आदि। शाक-सब्जियों में जीवन्ती, बथुआ, चौलाई, मेघनाद, पुनर्नवा, पालक, मैथी, चनाभाजी, लोकी, टमाटर, कद्दु आदि हरी तरकारियाँ। स्निग्ध पदाथों में दूध, घी, खाण्ड, मक्खन, मिसरी और मधु का सेवन करना चाहिए। फलों में सेवफल, पपीता, अँगुर, खरबूजा, मौसम्बी, नारंगी, अनार, नासपाती आदि मौसमी फलों का सेवन करें।

ध्यान रखने योग्य : भोजन करते समय ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करें। भोजन तरल, सुपाच्य, पुष्टिकारक और सुमधुर हो। गाय के दूध से बनी चीजें हों। इस प्रकार के भोजन से योग के अभ्यास में सहायता मिलती है तथा व्यक्ति आजीवन निरोगी बना रहता है। यौगिक नियमानुसार आहार करने से योगाभ्यास में स्फूर्ति बनी रहती है। व्यक्ति शीघ्र ही अपने अभ्यास में सफलता पाने लगता है।

योग पैकेज : सर्वप्रथम सूर्य नमस्कार में पारंगत हो जाएँ। फिर अर्ध-मत्स्येन्द्रासन या वक्रासन करें। धनुरासन या भुजंगासन करें। सुप्त पादअँगुष्‍ठासन, बालासन या हलासन करें। विपरीतकर्णी या सुप्तवज्रासन करें। इसका अलावा मौसमानुसार प्राणायाम का चयन कर लें।

भस्त्रिका प्राणायाम के लाभ
भस्त्रिका का शब्दिक अर्थ है धौंकनी अर्थात एक ऐसा प्राणायाम जिसमें लोहार की धौंकनी की तरह आवाज करते हुए वेगपूर्वक शुद्ध प्राणवायु को अन्दर ले जाते हैं और अशुद्ध वायु को बाहर फेंकते हैं। इस प्राणायाम को करने से पहले पदाधीरासन का अभ्यास करना चाहिए।

प्राणायाम जीवन का रहस्य है। श्वासों के आवागमन पर ही हमारा जीवन निर्भर है। ऑक्सीजन की अपर्याप्त मात्रा से रोग और शोक उत्पन्न होते हैं। प्रदूषण भरे महौल और चिंता से हमारी श्वासों की गति अपना स्वाभाविक रूप खो देती है जिसके कारण प्राणवायु संकट काल में हमारा साथ नहीं दे पाती।

क्यों जरूरी भस्त्रिका : व्यक्ति जैसे-जैसे बड़ा होता है पेट तक श्वास लेना छोड़ता जाता है। यही नहीं बल्कि अत्यधिक सोच के कारण वह पूरी श्वास लेना भी छोड़ देता है। जैसे-तैसे श्वास फेफड़ों तक पहुँच पाती है। इसी कारण शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती। ऑक्सीजन की कमी के कारण जल और भोजन के लाभकारी गुण और तत्वों का भी हमें लाभ नहीं मिल पाता।

क्रोध, भय, चिंता, सेक्स के विचार से जहाँ हमारी श्वासों की गति परिवर्तित होकर दिल और दिमाग को क्षति पहुँचाने वाले तत्व ग्रहण करती है वहीं यह अस्वाभाविक गति हममें नकारात्मक ऊर्जा का लगातार संचार कर हमें जीवन के आनंद से अलग कर देती है। प्राणायाम से दिल और दिमाग को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती है इसके कारण यह सेहतमंद बने रहते हैं जोकि जीवन की सफलता और लंबी आयु के लिए आवश्यक है। यहाँ हम जानते हैं कि भस्त्रिका प्राणायाम हमें किस तरह लाभ पहुँचा सकता है।

विधि : सिद्धासन में बैठकर कमर, गर्दन और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए शरीर और मन को स्थिर रखें। आँखें बंद कर दें। फिर तेज गति से श्वास लें और तेज गति से ही श्वास बाहर निकालें। श्वास लेते समय पेट फूलना चाहिए और श्वास छोड़ते समय पेट पिचकना चाहिए। इससे नाभि स्थल पर दबाव पड़ता है।

इस प्राणायाम को करते समय श्वास की गति पहले धीरे रखें, अर्थात दो सेकंड में एक श्वास भरना और श्वास छोड़ना। फिर मध्यम गति से श्वास भरें और छोड़ें, अर्थात एक सेकंड में एक श्वास भरना और श्वास छोड़ना। फिर श्वास की गति तेज कर दें अर्थात एक सेकंड में दो बार श्वास भरना और श्वास निकालना। श्वास लेते और छोड़ते समय एक जैसी गति बनाकर रखें।

वापस सामान्य अवस्था में आने के लिए श्वास की गति धीरे-धीरे कम करते जाएँ और अंत में एक गहरी श्वास लेकर फिर श्वास निकालते हुए पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें। इसके बाद योगाचार्य पाँच बार कपालभाती प्राणायाम करने की सलाह देते हैं।

सावधानी : भस्त्रिका प्राणायाम करने से पहले नाक बिल्कुल साफ कर लें। भ्रस्त्रिका प्राणायाम प्रात: खुली और साफ हवा में करना चाहिए। क्षमता से ज्यादा इस प्राणायाम को नहीं करना चाहिए। दिन में सिर्फ एक बार ही यह प्राणायाम करें। प्रतिदिन करने के लिए योगाचार्य की सलाह लें। प्राणायाम करते समय शरीर को न झटका दें और ना ही किसी तरह से शरीर हिलाएँ। श्वास लेने और श्वास छोड़ने का समय बराबर रखें।

नए अभ्यासी शुरू में कम से कम दस बार श्वास छोड़ तथा ले सकते हैं। जिनको तेज श्वास लेने में परेशानी या कुछ समस्या आती है तो प्रारंभ में श्वास मंद-मंद लें। ध्यान रहे कि यह प्राणायाम दोनों नासिका छिद्रों के साथ संपन्न होता है। श्वास लेने और छोड़ने को एक चक्र माना जाएगा तो एक बार में लगभग 25 चक्र कर सकते हैं।

उक्त प्राणायाम को करने के बाद श्वासों की गति को पुन: सामान्य करने के लिए अनुलोम-विलोम के साथ आंतरिक और बाहरी कुंभक करें या फिर कपालभाती पाँच बार अवश्य कर लें। योग प्रशिक्षक की सलाह अनुसार भस्त्रिका प्राणायाम करने से पहले एक गिलास पानी अवश्य पी लें।

चेतावनी : उच्च रक्तचाप, ह्रदय रोग, हार्निया, दमा, टीबी, अल्सर, पथरी, मिर्गी, स्ट्रोक से ग्रस्त व्यक्ति तथा गर्भवती महिलाएँ इसका अभ्यास न करें। फेफड़ें, गला, हृदय या पेट में किसी भी प्रकार की समस्या हो, नाक बंद हो या साइनस की समस्या हो या फिर नाक की हड्डी बढ़ी हो तो चिकित्सक से सलाह लेकर ही यह प्रणायाम करना या नहीं करना चाहिए। अभ्यास करते समय अगर चक्कर आने लगें, घबराहट हो, ज्यादा पसीना आए या उल्टी जैसा मन करे तो प्राणायाम करना रोककर आराम पूर्ण स्थिति में लेट जाएँ।

इसके लाभ : इस प्राणायाम से शरीर को प्राणवायु अधिक मात्रा में मिलती है जिसके कारण यह शरीर के सभी अंगों से दूषित पदार्थों को दूर करता है। तेज गति से श्वास लेने और छोड़ने के क्रम में हम ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन लेते हैं और कॉर्बन डॉयऑक्साइड छोड़ते हैं जो फेफड़ों की कार्य क्षमता को बढ़ाता है और हृदय में रक्त नलिकाओं को भी शुद्ध व मजबूत बनाए रखता है। भस्त्रिका प्राणायाम करते समय हमारा डायाफ्राम तेजी से काम करता है, जिससे पेट के अंग मजबूत होकर सुचारु रूप से कार्य करते हैं और हमारी पाचन शक्ति भी बढ़ती है।

मस्तिष्क से संबंधित सभी विकारों को मिटाने के लिए भी यह लाभदायक है। आँख, कान और नाक के स्वास्थ्य को बनाए रखने में भी यह प्राणायाम लाभदायक है। वात, पित्त और कफ के दोष दूर होते हैं तथा पाचन संस्थान, लीवर और किडनी की अच्छे से एक्सरसाइज हो जाती है। मोटापा, दमा, टीबी और श्वासों के रोग दूर हो जाते हैं। स्नायुओं से संबंधित सभी रोगों में यह लाभदायक माना गया है।

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