रविवार, 31 अक्तूबर 2010

प्रेम कहानी-४

रेत के कणों का मिलन

(webdunia.com)
गरम हवाएँ चल रहीं थीं। आकाश में धूल छा रही थी। एक युवा यात्री रेगिस्तान से गुजर रहा था। उसे रास्तों का भी ठीक से पता नहीं था। रेतीला तूफान इतना तेज था कि उसे अपने घोड़े के कान भी नहीं दिख रहे थे। उसने सोचा मेरे यही ठीक रहेगा कि मैं हवा की दिशा के साथ ही चलूँ। यदि मैं रुकता हूँ तो तेज जहरीली गर्म हवा मेरे फेफड़े ही जला देगी और मेरा शरीर रेत से ढँक जाएगा। और यदि मैं विपरीत दिशा में जाता हूँ तो रास्ता भटक जाऊँगा और मर जाऊँगा।

इसलिए उसने अपने चेहरे को कपड़े से ढँक लिया और हवा की दिशा में चल पड़ा। कुछ समय बाद उसे एक मीनार दिखाई पड़ी। 'आखिर मैंने शैतान हवा से बचने के लिए आश्रय पा ही लिया!' उसने घोड़े सहित मीनार में प्रवेश किया। जब वह अपने चेहरे से रेत झाड़ रहा था तब उसे एक आवाज सुनाई दी-'तुम इंसान हो, जिन्न हो या हवा की शैतानी शक्ति हो?'

युवा यात्री का नाम अली था उसने उत्तर दिया-'मैं मनुष्य हूँ। आप कौन हैं?'अली ने देखा चाँद से चेहरे और गुलाब की पंखड़ी सी नाजुक, लताओं की तरह खूबसूरत लड़की सामने आई। उसे देखते ही अली का मन खिल गया और दिल खो गया। लड़की बोली-'मैं भी मनुष्य हूँ और तूफान में खो गई हूँ। हवा में भटक गई हूँ इस तूफानी मंजर में यहाँ तक आ पहुँची हूँ।'

अली ने उस सुंदरी से कहा-' यहाँ हमें तब तक शरण लेनी पड़ेगी जब तक तूफानी हवा थम नहीं जाती। मुझे अपना नाम तो बताओ।'
'तुम्हें मेरे नाम से क्या मतलब? तुम एक अनजान मुसाफिर हो मुझे तुमसे बात नहीं करनी चाहिए।' अली का मन उस लड़की का नाम जानने को बेताब हो रहा था और उससे ढेर सारी बातें करने का भी हो रहा था। उसने मीनार के दरवाजे से बाहर इशारा करते हुए कहा-
'देखो हवा में रेत के कण ही कण हैं। ऐसी कोई जगह ही नहीं जहाँ रेत के कण न हों।' 'हाँ तुम्हारी बात सही है।' लड़की ने कहा।
'क्या एक रेत के कण को दूसरे रेत के कण से डरना चाहिए? और एक दूसरे के साथ से बचना चाहिए? रेत के कणों को एक दूसरे से डरना ही नहीं चाहिए क्योंकि वो तो हवा के कारण उड़ रहे हैं। मैं और तुम और कुछ नहीं बस रेत के कण हैं जो हवा में साथ उड़ गए हैं। हमें एक दूसरे से डरना नहीं चाहिए और न ही एक दूसरे से बचना चाहिए क्योंकि हमारे भाग्य में यही लिखा था।'युवा लड़की ने सोचा कि अली ठीक ही कह रहा है। उसने शर्माते हुए कहा-'मेरा नाम सलमा है और मेरे पिता का नाम हुसैन है।'

अली और सलमा ने पूरा दिन दिल खोलकर बातें कीं। तूफान अपने तेवर दिखाता रहा पर उन्हें खबर नहीं थी। घंटों बीत गए, शाम हुई और रात ढलने लगी और अली की आँख लग गई। जब अली उठा तो गहरा अँधियारा फैला हुआ था और सलमा का कहीं पता नहीं था। वह मीनार के दरवाजे पर गया, देखा तो हवा बह रही थी पर तूफान थम गया था। उसने सलमा के पैरों के निशान ढूँढने की बहुत कोशिश की लेकिन कुछ भी नजर नहीं आया।

अली बहुत दुःखी हो गया फिर भी वह रोना नहीं चाहता था। उसे चिंता भी हो रही थी कि सलमा कहाँ चली गई। उसने सोचा -'वह अरब की बेटी है और रेगिस्तान में अरब लोग तो रेत के कणों की तरह फैले हुए हैं। रेत केकणों की बात याद आते ही उसे सलमा के साथ गुजारा वक्त याद आ गया, वह और भी बेचैन हो गया। मैं सलमा को कैसे ढूँढ सकूँगा? कितने लोग होंगे जिनका नाम हुसैन होगा और उनकी बेटियों का नाम सलमा होगा। अब मैं क्या करूँ? उसने मुझे बताया भी नहीं कि वो कहाँ रहती है। दो रेत के कण तूफान में मिले और बिछुड़ गए। अब उन्हें फिर से कौन मिलाएगा?'

अली सलमा की तलाश में पागलों की तरह भटकने लगा। जहाँ-तहाँ सलमा के बारे में पूछता। सलमा के विछोह में वह बेहद दुखी हो गया। उसके बाल उलझ गए, कपड़े फट गए दाढ़ी लंबी हो गई। जिस भी गाँव जाता लोगों से एक ही प्रश्न पूछता-'हुसैन यहीं रहते हैं? जिनकी बेटी का नाम सलमा है?' लोग समझते यह आदमी पागल हो गया है और उसका मजाक बनाते- 'कितने लोग होंगे जिनका नाम हुसैन होगा और उनकी बेटी का नाम सलमा होगा। अब हमें क्या पता यह किस सलमा को तलाश कर रहा है?'

अली शहर से शहर और कस्बे से कस्बे घूमता रहा। न तो उसने कोई काम किया न ही कोई व्यवसाय अपनाया, बस वह तो अपने खोए प्यार के बारे में ही सोचता रहता। वह बहुत दुबला हो गया और उसके घोड़े की भी हालत खराब थी। एक दिन जोर की बरसात आई। नदी में पानी नहीं समाया और बाढ़ आ गई। अली और उसका घोड़ा पानी में डूबते-उतराते एक टीले पर चढ़ गए। उसके फेफड़ों में पानी भर गया था और भूख के मारे उसके पेट में खिंचाव हो रहा था। टीले पर पहुँचकर लगा कि अब उसके प्राण गए, उसे बेहोशी आने लगी। लेकिन तभी एक युवा लड़की ने उसके पेट से पानी निकाला और उसके घोड़े को भी खींचकर बचा लिया।

अली ने जब आँखें खोली तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा उसे बचाने वाली और कोई नहीं सलमा ही थी। वह अली के चहरे को एकटक देख रही थी। वह मुस्कराई और बोली-'जब रेत के दो कण हवा उड़ा ले जाती है और वही हवा उन्हें जुदा भी करती है। लेकिन जब दो रेत के कण एक दूसरे को पा लेते हैं तो वे हमेशा एक दूसरे के साथ रहते हैं और कभी जुदा नहीं होते!'

प्रेम कहानी -३

इलोजी-होलिका
हम लोग होलिका को एक खलनायिका के रूप में जानते हैं लेकिन हिमाचल प्रदेश में होलिका के प्रेम की व्यथा जन-जन में प्रचलित है। इस कथा को आधार मानें तो होलिका एक बेबस प्रेयसी नजर आती है जिसने प्रिय से मिलन की खातिर मौत को गले लगा लिया।

हिरण्यकश्यप की बहन होलिका का विवाह इलोजी से तय हुआ था और विवाह की तिथि पूर्णिमा निकली। इधर हिरण्यकश्यप अपने बेटे प्रहलाद की भक्ति से परेशान था। उसकी महात्वाकांक्षा ने बेटे की बलि को स्वीकार कर लिया।

बहन होलिका के सामने जब उसने यह प्रस्ताव रखा तो होलिका ने इंकार कर दिया। फिर हिरण्यकश्यप ने उसके विवाह में खलल डालने की धमकी दी। बेबस होकर होलिका ने भाई की बात मान ली। और प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठने की बात स्वीकार कर ली। वह अग्नि की उपासक थी और अग्नि का उसे भय नहीं था।

उसी दिन होलिका के विवाह की तिथि भी थी। इन सब बातों से बेखबर इलोजी बारात लेकर आ रहे थे। और होलिका प्रहलाद को जलाने की कोशिश में स्वयं जलकर भस्म हो गई। जब इलोजी बारात लेकर पहुँचे तब तक होलिका की देह खाक हो चुकी थी।

इलोजी यह सब सहन नहीं कर पाए और उन्होंने भी हवन में कूद लगा दी। तब तक आग बुझ चुकी थी। अपना संतुलन खोकर वे राख और लकड़ियाँ लोगों पर फेंकने लगे। उसी हालत में बावले से होकर उन्होंने जीवन काटा। होलिका-इलोजी की प्रेम कहानी आज भी हिमाचल प्रदेश के लोग याद करते हैं।

प्रेम कहानी-2

उनकी बाँहों में...

रोमा
मैं हमेशा एक ऐसे आदर्श व्यक्ति की चाह रखती थी जो कुछ गंभीर तो कुछ बुद्धू सा हो, जिम्मेदार होने के साथ हाजिरजवाब हो और प्यार देने के मामले में भी बिल्कुल सच्चा हो। और बहुत से लोगों से मिलने के बाद मेरी आशाएँ और भी बढ़ गई थीं।

यहाँ गोआ में कितने खूबसूरत समुद्र तट हैं, चारों ओर सुंदरता मानो बिखरी हुई है। मनोहारी सूर्यास्त के दृश्य और गुजारा गया समय तो बहुत ही बेहतरीन है। अपने प्रियतम की बाहों में सिमटकर सूर्यास्त देखते हुए मुझे एक पल को अकेलापन महसूस नहीं हुआ। सुबह उसकी मुस्कान के साथ होती है तो दोपहर की गर्माहट को हम हाथों में हाथ डालकर घूमते हुए महसूस करते हैं।

उस पल को याद करती हूँ जब हम बस में सफर कर रहे थे और मैं बीच में फँसी बैठी थी। मेरे पड़ोस में कौन बैठा है इसका पता मुझे तब चला जब मेरी सहेली ने धूप से बचने के लिए खिड़की बंद की। वह मेरी ओर देखकर मुस्कराया, वैसे तो मैं अनजान लोगों की तरफ देखना भी पसंद नहीं करती लेकिन न जाने क्या बात थी उस निश्चल मुस्कान में कि मैं भी जवाब में मुस्करा दी। फिर उसने हैलो कहा मैंने जवाब दिया। इसके बाद बातचीत में घंटों ऐसे बीत गए जैसे हम बरसों से एक दूसरे को जानते हों। थोड़ी देर बाद बस रुकी और वह घूमने के लिए नीचे उतरा। मेरी सहेली ने चुटकी ली 'अरे मैं भी साथ में हूँ मुझसे तो बात ही नहीं की आपने और लगीं है उसे अजनबी से बतियाने में।' सहेली की बात मुझे लग गई। जब वह वापिस आया तो जानबूझकर मैंने अपना मुँह एक किताब में गड़ा लिया। जब भी किताब से नजरें हटाकर देखती तो पाती कि वह मुझे ही देख रहा है।

बस से हम लोग साथ ही उतरे। उसे उसी शहर की किसी और कॉलोनी में जाना था। फोन नंबर और घर के पतों का आदान-प्रदान पहले ही हो चुका था। मुझे लग तो रहा था कि वह फोन जरूर करेगा। उसने फोन किया, फिर से बहुत सी बातें हुई और यह सिलसिला चल निकला। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि यूँ ही सफर के दौरान इतने अच्छे व्यक्ति से मुलाकात हो जाएगी। अरे उसका नाम तो मैंने बताया ही नहीं? उसका नाम है अवनीश। अवनीश बेहद अच्छा इंसान है स्वार्थ तो उसके मन में रत्ती भर भी नहीं है। वह हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहता है। अपने लिए उसके पास समय नहीं है लेकिन दूसरों के लिए समय निकाल ही लेता है।

अभी जब हम गोआ में हैं तब भी वह अपने कंप्यूटर पर लगा है और मुसीबत में पड़े दोस्तों की मदद कर रहा है। कभी-कभी तो वह दूसरों के लिए रात भर भी जागता है लेकिन सुबह उठकर जब भी मेरे साथ बीच पर हाथों में हाथ लिए टहलता है तो मुझे लगता है कि सारे जहाँ की खुशियाँ सिमटकर मेरे हाथों में आ गई हैं।

मुझे तो भरा पूरा परिवार मिला है पर उसने परिवार की खुशियाँ नहीं देखीं। उसके पिता बहुत अच्छे थे लेकिन उसने उन्हें बहुत जल्दी खो दिया। माँ भी उसे प्यार नहीं दे पाई क्योंकि वे मानसिक रोग से पीड़ित हैं। वह माँ की सेवा भी करता है। उसने जीवन में बहुत कठिनाइयाँ देखीं हैं और अब मैंने उसे अपनी कोमल बाँहों का सहारा दिया है। आज हमारी सगाई हो चुकी है और हम सोचते हैं कि उस दिन बस में मुलाकात नहीं होती तो क्या होता? आज हम गोआ में हैं और एक दूसरे से बहुत खुश हैं। वह कुछ भी ज्यादा नहीं चाहता पर मैं उसे सब कुछ देना चाहती हूँ।

प्रेम कहानी

हल्की भूरी आँखों का जादू

अमर

अपने ऑफिस के कमरे में बैठा मैं हमेशा की तरह काम में मशगूल था। मुझे खनकती हँसी सुनाई दी, यह हँसी पहले तो इस ऑफिस में कभी भी नहीं सुनाई दी? आखिर किसकी हँसी है यह, छनकते घुँघरुओं सी? मैं अपने आपको रोक नहीं पाया और केबिन खोलकर बाहर झाँकने पर मजबूर हो ही गया। देखा तो केबिन के सामने एक डेस्क छोड़कर ही वह बैठी थी, हल्की भूरी बड़ी-बड़ी आँखें, गोरा रंग, चेहरे पर बच्चों सा भोलापन। वह फोन पर किसी से बात कर रही थी। मुझे इस तरह देखता हुआ पाकर वह सहम गई। वह नई-नई नियुक्त हुई थी, फिर किसी न किसी काम को लेकर बातें होती रहीं।

एक दिन शाम को जाते-जाते उसका स्कूटर खराब हो गया, मैं भी निकल ही रहा था। मैंने मदद करने की बहुत कोशिश की पर स्कूटर ने चालू होना गवारा नहीं किया। मैंने उसे लिफ्ट का प्रस्ताव दिया और वह मान गई। मैं उसे लेकर उड़ चला।

बस उस दिन के बाद से हमारी दोस्ती ने उड़ान भरना शुरु कर दी। मुलाकातें शुरु हुई और फिर प्यार का इजहार हुआ। 21 फरवरी 1994 का वह दिन आज मुझे याद है जब हम दोनों ने पवित्र अग्नि के फेरे लिए। विवाह-बंधन ने हमारे प्रेम को मजबूती दी। मैं अपने आपको इस दुनिया का सबसे भाग्यशाली पुरुष मान रहा था, और बाद में भी यही हुआ। उसने मुझ पर अपनी सारी खुशियाँ कुर्बान कर दी और बदले में मैंने उसे कभी दुःख न देने का वादा किया। आज इतने वर्ष बीत गए लेकिन हमारा प्यार आज भी वही है, वैसा ही जैसा सालों पहले था।

कुछ समय से मैं काम में बहुत मसरूफ हो गया और समय नहीं निकाल पाया। उसने मुझसे कुछ भी नहीं कहा, कभी कोई शिकायत नहीं की। फिर भी मैं उसके मन के भावों को जान गया। वह कुछ उदास सी रहने लगी थी। मैंने ऑफिस से आठ दिन की छुट्टी के लिए आवेदन दिया और केरल का टूर बुक कराया। केरल की हरी-भरी खूबसूरती उसे बेहद भाती है, यह मुझे पता था। दो दिन पहले जब मैंने उसे यह बात बताई तो वह खुशी से उछल पड़ी। हम यात्रा पर चल पड़े, ट्रेन में खिड़की के पास बैठकर जब वह बाहर का नजारा देख रही थी तो मैं उसे देख रहा था। मैंने देखा उसकी बड़ी-बड़ी भूरी आँखों में बच्चों की सी चमक फिर से जिंदा हो उठी है।

शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

बलात्‍कार रोकने का हथियार

वैज्ञानिकों ने बनाया बलात्‍कार रोकने का हथियार
दुनिया में बढ़ती बलात्‍कार की घटना को देखते हुए वैज्ञानिकों ने एक ऐसा कंडोम तैयार किया है जिससे महिलाओं के साथ हो रहे बलात्‍कार जैसी घटना पर रोक लगेगी।
डॉ सोन्नेट एहलर्स ने ‘रेप एक्स’ नामक यह कंडोम बनाया है। इस कंडोम में दांत जैसी आकृतियां हैं और यह यौन क्रिया के दौरान पुरुष के जननांग से चिपक जाता है और इसे सर्जरी के द्वारा ही निकाला जा सकता है।
विशेषज्ञ का कहना है कि यह जब तक यह लगा रहेगा तब तक अपराधी घूम भी नहीं सकता है। व्‍यक्ति इसे खुद नहीं हटा सकता है। यह काफी पेनफुल होता है। विशेषज्ञों को उम्मीद है कि इससे बलात्कारी को पकड़ने में मदद मिलेगी।

बदल गयी तकदीर

पहले थी कॉलगर्ल अब डॉक्टर
बचपन की बातें तो मुझे याद नहीं लेकिन जब एक दिन मैं छोटे से गंदे कमरे में सो रही थी तो अचानक मेरी नानी ने मुझे एक व्‍यक्ति से मिलाया। कहा, यह तुम्‍हारा पहला ग्राहक है। उस समय मैं ग्राहक का मललब नहीं समझती थी। अंधेरे कमरे में मैं उसे ठीक से देख भी नहीं पाई।

पहला अनुभव मेरे लिए सदमे से कम नहीं था। उस दिन मुझे पता चला कि मैं एक वेश्‍यालय में रहती हूं। इसके बाद यह सिलसिला जारी रहा। ग्राहक पर ग्राहक आते रहे और मैं घुटती रही।
यह कहानी है मध्‍यप्रदेश की रीना की जो बेडिया समुदाय की है। इस समुदाय की महिलाएं यह कार्य सदियों से करती आई है। रीना भी इस परंपरा की हिस्‍सा बनी। रीना का कहना है कि जब तक मां जिंदा रही मुझे इस पेशे से दूर रखी। लेकिन उसकी मौत के बाद मेरे पिता ने मुझे इस पेशे में डाल दिया। मैं पढ़ना चाहती थी। मैं बचपन से एक प्रतिभाशाली बच्‍ची थी।
किस्‍मत बदलते देर नहीं लगती। एक दिन रीना वहां से भागने में कामयाब रही और एनजीओ की मदद से मेडिकल की पढ़ाई कर रही है।

रविवार, 24 अक्तूबर 2010

मनोरंजन

लतीफे
पहला, ‘एक जमाना था जब मैं सिर्फ दस रुपए में ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर के लायक सामान ले आता था। लेकिन अब कितनी महंगाई हो गई है।’ दूसरा, ‘ये बात नहीं है, दरअसल अब सभी दुकानों पर सीसीटीवी कैमरे लग गए हैं।’
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एक दर्जी अपनी दुकान बंद कर के भाग गया। उसके सभी ग्राहक दुकान के बाहर खड़े एक दूसरे से बातें कर रहे थे। कोई कहता कि वो उसकी पेंट का कपड़ा ले गया तो कोई कहता कि शर्ट का कपड़ा। एक आदमी कुछ दूर खड़ा रो रहा था। जब उससे रोने का कारण पूछा गया तो वो बोला, ‘वो मेरा नाप ले गया।’
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एक आदमी रेस्तरां में बैठा था। उसने देखा कि कुछ दूर खड़ा वेटर बार-बार खुजली कर रहा है। उसने वेटर को बुलाया और पूछा, ‘खुजली है क्या?’ वेटर, ‘साहब, मेन्यु में लिखी होगी तो जरूर मिलेगी।’
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एक चूहे ने हाथी से कहा, ‘यार अपनी शर्ट दो दिनों के लिए देना।’ हाथी हंसकर बोला, ‘हा.हा.हा. पहनेगा क्या ?’ चूहा, ‘नहीं, घर में शादी है, तंबू लगवाना है।’
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एक आदमी अपनी पत्नी के साथ रात का खाना खाकर टहलने निकलता है। पान की दुकान के पास जाकर एक मीठा पान पत्नी के लिए खरीदता है, यह देखकर पत्नी कहती है, ‘एक पान अपने लिए भी खरीद लो?’ उस आदमी ने जवाब दिया, ‘तुम ही खाओ, मैं पान के बिना भी चुप रह सकता हूं।’
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दो मेढ़क साथ-साथ बैठे थे। पहला बोला, ‘टरर्र..’ दूसरा, ‘टरर्र..’ पहला, ‘टरर्र..’ दूसरा, ‘टरर्र..’ पहला, ‘टरररर्र..’ दूसरा, ‘यार टॉपिक चेंज न कर।’
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टीचर ने बच्चों की कॉपी पर नोट लिखकर भेजा - कृपया बच्चों को नहला कर भेजा करें। बच्चों की माँ ने नोट जवाब में लिखा - कृपया बच्चों को पढ़ाया करें, सूंघा न करें।
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नया कर्मचारी, ‘तुम इस दफ्तर में कब से काम कर रहे हो?’ पुराना कर्मचारी, ‘जब से बॉस ने मुङो निकालने की धमकी दी है।’
अन्य फोटो गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010 को मुंबई में ब्रेस्ट कैंसर के प्रमोशन का हिस्सा बनने पहुचे बॉलीवुड अभिनेता राहुल खन्ना और अभिनेत्री लीसा रे।
टीचर, ‘तुमने पाठ याद किया ?’ स्टूडेंट, ‘मैडम मैं कल पढ़ने बैठा तो लाइट चली गई। बाद में मैं इस डर से पढ़ने नहीं बैठा कि लाइट फिर न चली जाए।’
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वकील, ‘तलाक करवाने के पांच हजार रुपए लगेंगे।’ मुवक्किल, ‘कैसी बात कर रहे हैं वकील साहब, पंडित जी ने शादी तो 51 रुपए में करवा दी थी!’ वकील, ‘सस्ते काम का नतीजा देख लिया न?’
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पति, ‘कल तुम्हारे मायके जाने के बाद चोर घर में घुस आए थे और उन्होंने मुझे खूब मारा।’ पत्नी, ‘तो तुमने शोर क्यों नहीं मचाया ?’ पति, ‘मैं कोई डरपोक हूं जो शोर मचाऊंगा!’
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एक आदमी मंडी में सब्जी लेने गया। सब्जीवाला सब्जियों पर पानी छिड़क रहा था। काफी देर तक वो पानी ही छिड़कता रहा। जब वह रुका तो खरीदारी करने आया आदमी बोला, ‘अगर इन्हें होश आ गया हो तो एक किलो आलू दे दो।’
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एक आदमी ने अपना मोबाइल फोन समंदर में फेंक दिया और बोला, ‘आ..आ.. ऊपर आ।’ दूसरा, ‘फोन अपने आप कैसे ऊपर आएगा?’ पहला, ‘डॉल्फिन जो है।’
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लड़का, ‘चल शादी कर के भाग जाते हैं या भाग कर शादी कर लेते हैं?’ लड़की, ‘फटे हुए चप्पल से मार खाएगा या चप्पल फटने तक मार खाएगा?’
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पति, ‘तुम्हारी गर्दन पर यह कितनी अजीब सी चीज है जिसे देखकर डर लगता है।’ पत्नी, ‘वो क्या ?’ पति, ‘तुम्हारा मुंह।’

शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

दे दनादन

हम किसी से कम नहीं
कामनवेल्थ में हमारे खिलाड़ी साबित कर रहे है,कि क्रिकेट में ही नहीं दूसरे खेलों में हम बेस्ट है.आइये उन्हें बधाई दें ,उनका हौसला बढाएं .पहलवानों निशानेबाजों ने अपना जौहर दिखाया है.एथलीट में सुधार की जरुरत है.

रविवार, 3 अक्तूबर 2010

राष्ट्रमंडल खेलों का आगाज

जियो, उठो, बढ़ो, जीतो...यारों ये है इंडिया!!!
देश के सबसे बड़े आयोजन 19वें राष्ट्रमंडल खेलों का आगाज पारंपरिक ढंग से शंखनाद के साथ हुआ। भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल और इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ के प्रतिनिधि प्रिंस चार्ल्स के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में पधारने के बाद पूरा मैदान शंखनाद से गूंज उठा।
देश के सबसे बड़े खेल आयोजन को सफल बनाने दिल्लीवासी बड़ी संख्या में स्टेडियम पहुंचे। कार्यक्रम की शुरुआत हुई शंखनाद से। उसके बाद स्कूली बच्चों ने नृत्य की प्रस्तुती से सबका मनमोह लिया। राष्ट्रमंडल खेलों का उद्घाटन समारोह तस्वीरों में कुछ ऐसा दिखाई दिया-