रविवार, 28 नवंबर 2010

सत्य वचन

पांच साल की पारीए मुश्किल है दूसरी बारी
मध्य प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान की ताजपोशी के पाँच साल निर्विघ्न पूरे होने की खुशी में भाजपा राजधानी में पूरे जोशोखरोश के साथ जश्न मनाने की तैयारियों में जुटी है। केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी की तर्ज पर राज्य में शिवराज सिंह प्रदेश की गैर काँग्रेसी सरकार के पहले ऎसे मुख्यमंत्री हैं ए जो पाँच साल की लम्बी पारी खेलने में कामयाब रहे हैं। इससे पहले तक बीजेपी की सरकारों में आयाराम.गयाराम का दौर ही देखा गया है। ऎसे में बीजेपी का जश्न मनाना तो हक बनता है ! लेकिन बीजेपी शिवराजसिंह को जिस तरह से सिर माथे पर बिठाकर ष्गौरव दिवसष् मनाने पर आमादा हैएवो पार्टी नेतृत्व की सोचएसमझ और क्षमताओं पर ही सवाल खड़े करता है । सरकार के जश्न में डूबने से ज्यादा बेहतर है कि पार्टी यह विचार करे कि शिवराजसिंह के नेतृत्व में प्रदेश ने क्या पाया और क्या खोया

शिवराज सिंह के अब तक के कामकाजएघोषणाओंए दौरों और वायदों के पिटारों को खोल कर देखा जाये ए तो वे राजनीति की ष्राखी सावंतष् से इतर नज़र नहीं आते । वही तेवर और वही लटके.झटके । क्वींस बैटन से लेकर ओबामा और स्थानीय से लेकर अंतरराष्ट्रीय मसलों पर त्वरित बयान देने की उनकी अदा पर मीडिया भी फ़िदा है । पिछले पाँच वर्षों में उनके द्वारा की गई घोषणाओं पर सरसरी निगाह डालेंए तो चंद चाटुकार अधिकारियों की मदद से मीडिया को खरीद कर बनाई गई छबि पल भर में छिन्न.भिन्न होती दिखाई देती है। घोषणाओं के भूसे में योजनाओं की ज़मीनी हकीकत सुई की मानिंद हो चुकी है । मीठा.मीठा गप्प कर खामियों का ठीकरा केन्द्र के सिर फ़ोड़ने की राजनीति के चलते शिवराजसिंह लगातार केन्द्र के खिलाफ़ सत्याग्रहए धरनेए प्रदर्शन कर जनता को भरमाने की कोशिश करते रहे हैं। दरअसल वे अब तक ना तो सूबे के मुखिया की भूमिका को ठीक तरह से समझ सके हैं और ना ही आत्मसात करने का प्रयास करते नज़र आते हैं। वे अब भी प्रदेश के विकास के लिये समग्र दृष्टिकोण विकसित कर सकारात्मक राजनीति को अपनाने में नाकाम हैं। वास्तव में शिवराज अपनी काबिलियत के बूते नहींए बीजेपी की अँदरुनी कलह और शीर्ष नेतृत्व में मचे घमासान के बीच प्रदेश में ष्अँधों में काना राजाष् की कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं । दिल्ली में बैठे सूरमाओं की ताल पर थिरकते शिवराज सिंह प्रदेश में बीजेपी मजबूरी बन गये हैं।

शिवराजसिंह की पाँच साल की इस निर्बाध पारी का श्रेय काफ़ी हद तक काँग्रेस के प्रादेशिक नेताओं को भी जाता है। जिन्होंने गंभीर मुद्दों को जनता के बीच नहीं ले जाकर एक तरह से मुख्यमंत्री का ही साथ दिया। जब.जब शिवराज की कुर्सी पर किन्हीं भी कारणों से संकट के बादल मँडरायेएविपक्षी पार्टी ने हमेशा पर्दे के पीछे से अपना ष्मित्र धर्मष् बखूबी निभाया। शिवराजसिंह ने कुर्सी सम्हालते ही अपनी विशिष्ट प्रवचनकारी शैली में जनता के बीच जाकर यह स्वीकार किया था कि प्रदेश में सात तरह के माफ़ियाओं का राज है और वे जनता को इससे मुक्ति दिलाकरही दम लेंगे। लेकिन राजधानी भोपाल से लेकर दूरदराज़ के इलाकों में हो रही आपराधिक घटनाएँ प्रदेश में फ़ैले गुंडाराज की कहानी खुद बयान करती है। आज आलम ये है कि भूमाफ़ियाओं के खिलाफ़ कार्रवाई की हुँकार भरने वाली सरकार ज़मीन के सौदागरों के फ़ायदों को ध्यान में रखकर ही नीतियाँ बना रही है।
भयए भूख और भ्रष्टाचार से मुक्ति का नारा बुलंद करने वाली भाजपा आज खुद इन्हीं व्याधियों से बुरी तरह घिर चुकी है। बिजलीए पानी और सड़क के मुद्दे पर सत्ता में आई भाजपा के सात साल के शासनकाल में ये बुनियादी सुविधाएँ ष्ढूँढ़ते रह जाओगेष् के हालात में पहुँच गई हैं । केन्द्र से मिलने वाले कोयले को घटिया क्वालिटी का ठहराकर गाँधीजी की दाँडी यात्रा;नमक सत्याग्रहद्ध की तर्ज़ पर कोयला सत्याग्रह का चोंचला कर सुर्खियाँ बटोरने वाली सरकार बिजली संकट से निपटने का कोई तोड़ नहीं ढूँढ पाई है। राष्ट्रीय राजमार्गों की दुर्दशा के लिये केन्द्र को कठघरे में खड़ा करने वाली सरकार शहरों की सड़कों की बदहाली के लिये किसे ज़िम्मेदार ठहराएगी घ् प्रदेश में लोगों को पीने का पानी भले ही मय्यसर नहीं होए मगर हर दस कदम पर शराब मिलना तय है। पूरे प्रदेश में भूजल स्तर में गिरावट की स्थिति आने वाले वक्त की भयावह तस्वीर पेश करती हैएमगर टेंडरएकरारनामों और सरकारी ज़मीनों की बँदरबाँट से ष्तरष् सरकार आम जनता की परेशानियों से बेखबर है।
पंचायत लगाने के शौकीन मुख्यमंत्री किस्म.किस्म की महापंचायतों के माध्यम से अब तक करीब एक दर्जन से ज़्यादा मर्तबा भोपाल में मजमा जुटा चुके हैं। सरकारी योजनाओं के मद की राशि से लगाई गई इन पंचायतों का शायद ही किसी को कोई फ़ायदा मिला हो। ष्आगे पाठ पीछे सपाटष् के फ़ार्मूले पर अमल कर आगे बढ़ रहे शिवराजसिंह खुद भी भूल चुके हैं कि इन पंचायतों में की गई घोषणाओं पर अमल हुआ भी या नहीं घ् पंचायत प्रेम के अलावा तरह.तरह की यात्राओं की शिगूफ़ेबाज़ी से भी जनता को बरगलाने में मुख्यमंत्री का कोई सानी नहीं है। कभी साइकलए तो कभी मोटरसाइकल की सवारी कर आम जनता से नाता जोड़ने की कवायद के बाद शिवराज ने ष्स्वर्णिम मध्यप्रदेशष् का शोशा छोड़ा । १ नवम्बर १९५६ को गठित मध्यप्रदेश के विभाजन को भी एक दशक गुज़र चुका है लेकिन मुख्यमंत्री ने ष्आओ बनायें अपना मध्यप्रदेशष् की मुहिम छेड़ रखी है। मध्यप्रदेश कितना और कैसा बना कह पाना मुश्किल है मगर प्रादेशिक अखबारए न्यूज़ चौनल और विज्ञापन एजेंसियों के साथ अधिकारियों और नेताओं की ज़रुर बन आई है। मंत्रियों से लेकर छुटभैये नेताओं की शानोशौकत देखकर एक बारगी यकीन करने को जी चाहता है कि वाकई मध्यप्रदेश ष्स्वर्णिमष् बन रहा है । जनता कुछ समझ पाती इसके पहले ही वे इन दिनों वनवासी सम्मान यात्रा के बहाने जगह.जगह स्वयं का सम्मान कराते घूम रहे हैं।
बच्चों के बीच पंडित जवाहरलाल नेहरु की ष्चाचाजीष् वाली लोकप्रिय छबि से प्रेरित शिवराज ष्मामाजीष् के तौर पर मकबूल होने की हर मुमकिन कोशिश में जुटे हैं । मगर पौराणिक गाथाओं की मानें और भारतीय संस्कृति पर गौर करें तो मामाओं का घर.परिवार में ज़्यादा दखल कभी भी सुखद नहीं माना गया है। नरेन्द्र मोदीए सुषमा स्वराज जैसे दिग्गजों को पीछे छोड़ खुद को प्रधानमंत्री पद का प्रबल दावेदार साबित करने की जुगत में जुटे तेज़ रफ़्तार शिवराज ने हाल ही में बाल दिवस पर भोपाल के मॉडल स्कूल में आयोजित समारोह में बच्चों से ष्प्रधानमंत्री कब बनोगेष् सवाल पुछवा कर अपनी दावेदारी ठोक दी है । उनकी आसमान छूती परवाज़ और मंज़िल तक पहुँचने की जल्दबाज़ी देखकर तो यही लगता है कि आने वाले सालों में मौका मिलने पर वे विश्व की चौधराहट का दावा पेश करने से भी नहीं चूकेंगे।
छोटे किसान के घर से मुख्यमंत्री निवास तक पहुँचने के सफ़र में शिवराज सिंह चौहान का एक ही सपना था कि प्रदेश का किसान खुशहाल हो। सत्ता हाथ में आते ही उन्हें कुछ बड़े घरानों ने अपने मोहपाश में ऐसा फांस लिया है कि वे उन पर जरूरत से ज्यादा मेहरबान हैं। एक तरफ सरकार वन भूमि को कुछ बड़े घरानों को विकास के नाम पर बाँट रही हैए वहीं पूँजीपतियों को उपकृत करने की खातिर संरक्षित वन्य क्षेत्रों और अभयारण्यों से जुड़े तमाम नियम.कायदों को ताक पर रख दिया गया है। जिस सरकार पर राज्य की संपत्ति बचाने और बढ़ाने की जिम्मेदारी हैए वही राज्य की संपत्ति लुटाने में जुटी है। प्रदेश भर की सैकड़ों एकड़ बेशकीमती जमीन के मुकदमे हार कर भी सरकार बेफ़िक्र है। वोट बैंक की खातिर विभिन्न सामाजिक संगठनों को खुले हाथों से सरकारी ज़मीन लुटाने में भी कोई गुरेज़ नहीं है। राजधानी भोपाल की ऎतिहासिक इमारत मिंटो हॉल सहित प्रदेश की कई ऎतिहासिक धरोहरों को औने.पौने में व्यापारिक घरानों को देने की पहल भी सरकार के मंसूबों को साफ़ करती है। किसान खादएपानीएबिजली और बीज के लिये परेशान है और खेती को लाभ का धंधा बनाने का नारा देने वाली सरकार हर खामी का दोष केन्द्र सरकार के सिर मढ़कर अपनी ही धुन में मदमस्त है। अवैध खनन के ज़रिये प्राकृतिक संसाधनों की लूट करने वालों की तो जैसे पौ.बारह हो गई है। वन मंत्री ने हाल ही में बयान दिया था कि मुख्यमंत्री के गृह ज़िले सीहोर और बुधनी में सागौन की अवैध कटाई तथा रेत खनन का काम तेज़ी से फ़लफ़ूल रहा है।
दोबारा सत्ता में आते ही पचमढ़ी में कॉर्पाेरेट कल्चर की सीख का असर मंत्रियों पर कुछ ऎसा तारी हुआ कि कमोबेश सभी ने औद्योगिक घरानों के रंग.ढ़ंग अपनाना शुरु कर दिया । अब प्रदेश के ज़्यादातर महकमों के मंत्री और नौकरशाह किसी व्यापारिक घराने से कमतर नहीं हैं । हाल के सालों में बच्चों की शिक्षाएस्वास्थ्यए पोषणए दलितों और महिलाओं की सुरक्षा जैसे मुद्दे गौण हो चुके हैं । आँकड़ों की ज़ुबान समझने वालों का कहना है कि विकास के पैमाने पर प्रदेश की हालत उत्तरप्रदेश और बिहार से भी बदतर हो चली हैए जबकि दलित अत्याचारए महिला उत्पीड़नए अपहरणए हत्याए लूटए चोरीए डकैतीए फ़िरौती जैसी आपराधिक गतिविधियों का ग्राफ़ लगातार कुलाँचे मार रहा है। प्रदेश में बने अराजकता के माहौल में उच्च शिक्षा का हाल भी बुरा है । ज़्यादातर विश्वविद्यालय राजनीति का अखाड़ा बन गये हैं और अधिकांश कुलपतियों को लेकर कैंपस में घमासान मचा है । बेरोज़गारी का ग्राफ़ रफ़्तार पकड़ रहा हैएमगर इन्वेस्टर मीटस की रेलमपेल के बीच आत्ममुग्ध मुख्यमंत्री करारनामों पर हस्ताक्षरों को ही सफ़लता का पैमाना मान बैठे हैं । इन सबके बीच रातोंरात कंपनियाँ बनाकर सस्ती ज़मीन हथियाने और एमओयू के नाम पर बैंकों से कर्ज़ लेकर दूसरे धंधों में लगाने का कारोबार ज़ोरों पर है।
तीन करोड़ रुपये की होली जलाकर अक्टूबर में खजुराहो में की गई ग्लोबल इन्वेस्टर मीट में हुए अरबों रुपयों के करारनामों की हकीकत तो गुज़रते वक्त के साथ ही सामने आ सकेगी । बहरहाल विधानसभा में उद्योगमंत्री द्वारा दिये गये आँकड़े अब तक के सरकारी प्रयासों की कलई खोलने के लिये काफ़ी हैं । बीते पांच वर्षाे में चार विदेश यात्राएंए 20 करारनामों ;एमओयूद्ध पर हस्ताक्षरए नौ करारनामों का क्रियान्वयन नहींए करार करने वाली एक कंपनी की परियोजना में रुचि ही नहींए सिर्फ दो पर काम शुरू। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा पिछले पांच वर्षाे में विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए किए गए प्रयासों के ये नतीजे सामने आए हैं। कांग्रेस विधायक गोविंद सिंह द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने बताया कि मुख्यमंत्री ने वर्ष 2005 में दोए 2007 एवं 2008 में एक.एक विदेश यात्रा की । इन यात्राओं के दौरान विदेशी कारोबारियों के साथ कुल 20 करारनामों पर हस्ताक्षर हुए। इनमें से 2005 में ग्यारहए 2007 में चार और 2008 में पांच करारनामों पर मध्य प्रदेश सरकार तथा विदेशी कंपनियों के बीच हस्ताक्षर हुए थे।
उद्योग मंत्री के मुताबिक वर्ष 2005 से 2009 के बीच हुईं विदेश यात्राओं पर कुल दो करोड़ चार लाख रुपये खर्च हुए हैं। मध्य प्रदेश में निवेश के लिए विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने सहित अन्य मसलों को लेकर मुख्यमत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में 19 सदस्यीय दल ने 13 से 23 जून 2010 तक जर्मनीए नीदरलैण्ड और इटली की यात्रा कीए जिस पर 1 करोड़ 30 लाख रुपए खर्च हुए। श्री विजयवर्गीय के अनुसार इस यात्रा का मकसद सिर्फ विदेशी निवेशकों को पूंजी निवेश के लिए आकर्षित करना ही नहीं थाए बल्कि प्रौद्योगिकी अवलोकन और हस्तांतरणए व्यावसायिक सहयोगए प्रदेश की ब्रांडिंग तथा विदेश से निवेशकों को खजुराहो ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट 2010 के लिये आमंत्रित करना भी था।
प्रदेश में गरीबी मिटाने के सरकार चाहे जितने दावे करेए लेकिन हकीकत कुछ और है। गरीबी यहाँ तेजी से पैर पसार रही है। इसके गवाह आठ जिलों के लोग हैंए जिनकी प्रतिदिन आय मात्र 27 रुपये है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भिंडए श्योपुर कलांए शिवपुरीए टीकमगढ़ए रीवाए पन्नाए बड़वानी और मंडला वे जिले हैंए जहां प्रति व्यक्ति सालाना औसत आय 10 हजार रुपये से भी कम है। इन इलाकों के लोगों की औसत आय प्रतिमाह 833 रुपये है। हालांकिए सरकार गरीबी दूर करने के लिए कई योजनाएं चला रही हैए लेकिन गरीबी कम होने की बजाय बढ़ती जा रही है। गरीबों के लिए चलाई जा रही योजनाओ में व्याप्त भ्रष्टाचार प्रदेश में गरीबी बढ़ने की मूल वजह है। वहीं प्रदेश और केंद्र सरकार के बीच लड़ाई में भी गरीब पिस रहे हैं। कर्मचारियों को छठे वेतनमान देने के मुद्दे पर पैसे की तंगी का रोना रोने वाली राज्य सरकार विधायकों और मंत्रियों के ऎशो आराम पर दिल खोलकर खर्च रही है।
भाजपा के पुरोधा और पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी जैसी सर्वमान्य छबि गढ़ने के फ़ेर में शिवराजसिंह इन दिनों मुख्यमंत्री निवास को धार्मिक समारोहों का आयोजन स्थल बनाने पर तुले हैं । एक दौर वो भी था जब शिवराज सार्वजनिक मंचों पर कैलाश विजयवर्गीय के सुर में सुर मिलाकर पुराने नगमे गुनगुनाया करते थे । लेकिन ष्लागा चुनरी में दागष् गाकर महफ़िल लूटने वाले कैलाश विजयवर्गीय से दामन छुड़ाकर अब वे रंजना बघेलए गोपाल भार्गव और लक्ष्मीकांत शर्मा की मंडली के साथ ज़िलों के दौरों के वक्त भजन.कीर्तन करते नज़र आने लगे हैं। वैसे विजय शाह के साथ गले में ढ़ोल लटका कर लोकधुनों पर झूमने का शौक भी इन दिनों परवान चढ़ रहा है । पेंशन और ज़मीन घोटाले के आरोप में फ़ँसे कैलाश विजयवर्गीय की राह में काँटे बोकर शिवराज एक मशहूर वाशिंग पाउडर के विज्ञापन ष्तो दाग अच्छे हैंष् की तरह अपने दामन पर लगे ष्डंपर कांडष् के दाग को भी ष्जस्टिफ़ाईष् कर रहे हैं। वास्तव में सूबे के मुखिया के तौर पर शिवराजसिंह का कार्यकाल अब तक के सभी मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल पर भारी पड़ रहा है। उनकी पाँच साल की गौरवगाथा का बखान करने में कई साल लग सकते हैं। बहरहाल इस अनंतकथा को कम शब्दों में बखान करने के लिये फ़िलहाल इतना कहना ही काफ़ी होगा .ष्हरि अनन्त हरि कथा अनन्ताए बहु बिधि कहहिं सुनहिं सब सन्ता।ष्

शनिवार, 27 नवंबर 2010

ज़रा सोचें

आखिर यह रफ्तार क्यों

उस दिन गाड़ी चलाते हुए डर लगने लगा था। कम भीड़-भाड़ वाली सड़क पर पीछे से आ रही एक कार लगभ
ग 100 की स्पीड से बहुत सी गाडि़यों को बायीं ओर से क्रॉस करती हुई आगे एक टर्न पर अपना बैलेंस खो बैठी और फुटपाथ से जा टकराई। शुक्र है कि कार चलाने वाले युवक को मामूली चोट आई और पास के अस्पताल से ही उसकी मरहम-पट्टी भी हो गई। लेकिन गाड़ी की जो दशा थी उसके लिए युवक का जवाब था- बीमा कंपनी देख लेगी।
ऐसे दृश्य अक्सर हमें देखने-सुनने को मिल जाते हैं। जिस दुर्घटना की बात मैं कर रहा हूं, उसमें तीन गाडि़यां और भी आपस में टकराई। क्या इसे फिल्मी दृश्य मानकर भूल जाना चाहिए? मैं उन युवकों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं रख सकता जो अपने वाहन की, चाहे वह कार हो या बाइक, आवश्यकतानुसार स्पीड पर नियंत्रण नहीं रख सकते। उनसे बात करो तो जवाब मिलता है कि एक लाख की बाइक पर चींटी सी चाल चलने में मजा नहीं आता। ऐसे ही बड़ी और लंबी गाड़ी की शान का अर्थ तेज गति माना जाता है। मेरी समझ में यह नहीं आता कि दस लाख की गाड़ी चलाने वालों को दस सेकंड रुकना भी भारी क्यों लगता है? वह क्यों अगले दस मिनट के बारे में नहीं सोचते? सड़क पर चलने वाले दस लोगों के बारे में भी वह क्यों नहीं सोचते? लगता है नोएडा, गुड़गांव और दिल्ली में खुली सड़कों और हाई-वे पर स्टंट करने वाले युवकों को न तो अपने जीवन से प्यार है न ही अपने परिवार के सदस्यों की चिंता।
युवावस्था में जोश रहता है, जीवन के प्रति उमंग और उत्साह रहता है। हो सकता है इसकी अभिव्यक्ति युवा तेज गति से गाड़ी चलाकर करते हों। लेकिन इसमें कई बार वे अति कर डालते हैं और जीवन को दांव पर लगा देते हैं। पर क्या इसके लिए हम सब भी जिम्मेदार नहीं हैं? जीवन में इस तेज गति का जो नशा उनमें दिख रहा है, वह समाज की ही देन है। वे अपने घर और परिवार में देख रहे हैं कि किस तरह की आतुरता हर किसी में समाई हुई है। महानगरों में खासतौर से यह बात है। एक तो इन शहरों का स्वरूप ही ऐसा है कि जीवन में अपने आप भागदौड़ आ जाती है। लेकिन हम व्यावहारिक वजहों से ही दौड़धूप नहीं कर रहे, गति हमारे जेहन में समा चुकी है। लोग जल्दी से जल्दी सब कुछ पाना चाहते हैं। किसी को रातोंरात समृद्धि चाहिए किसी को प्रसिद्धि चाहिए। एक युवा यह सब अपने तरीके से ग्रहण कर रहा होता है। वह रफ्तार को ही जीवन का निर्णायक तत्व मान लेता है। धीमा चलना उसके लिए पिछड़ेपन का पर्याय बन जाता है। सड़क पर पिछड़ने को वह जीवन में असफलता के रूप में देखने लग जाता है। दिक्कत यह है कि हम युवाओं से संवाद भी नहीं कर रहे हैं। नई पीढ़ी को हम गंभीरता से समझा नहीं पा रहे कि रफ्तार सफलता की अनिवार्य शर्त नहीं है। तेज चलने से ही सब कुछ नहीं हासिल हो जाता।

बुधवार, 24 नवंबर 2010

आलेख

‘मेरी दुनिया भी बदली है’
सब यही कहते हैं कि लड़की की ज़िंदगी में शादी एक बहुत बड़ा बदलाव ला देती है। लेकिन कभी लड़के से कोई पूछता है कि उसे क्या महसूस होता है? चूंकि उसका घर नहीं बदला, नाम नहीं बदला, परिवेश वही रहा, उसके रहन-सहन में कोई नज़र आने वाला परिवर्तन नहीं दिखा, तो क्या कुछ नहीं बदला? या सिर्फ सिंदूर लगाने से ही परिवर्तन देखे और समझे जा सकते हैं? चलिए, दूल्हे के मन में झांककर देखते हैं कि वहां क्या खलबली मची है। उसका एक अलिखा खत पढ़ते हैं, जिसमें सदियों से अबोली बातों का अच्छा-खासा सिलसिला दिख रहा है। यह बातें लड़की के देखे जाने वाले दिन से ही शुरू हो गई थीं-
‘पिछले हफ्ते जिस लड़की को हमने देखा, उसकी उम्र तो बहुत कम थी। पर सबने मुझे चुप करा दिया, यह कहके कि तुमको यह सब नहीं देखना। जो पूछना हो, वो पूछ लो। मुझे फर्क पड़ता है। हमारी उम्र में बहुत फासला होगा, तो सोच-समझ में भी अंतर आएगा। तब निबाह करने को भी मुझसे ही कहेंगे। खुद के किए का दोष तब मेरे सिर मढ़ दिया जाएगा। लड़की की पढ़ाई का भी ऐसा ही असर है। पर अभी इनकी नज़र सिर्फ खूबसूरती पर जा रही है। खैर, आज जिसे मिला, वह मुझे बातचीत से ठीक लगी। लेकिन उसे ज्यादा सवाल नहीं पूछने दिए गए। क्यों?
वह पूछती, तो हमारे बीच ऐतबार बनता। मुझे लगता कि मेरी खूबियां या कमियां उसके लिए मायने रखती हैं। और अब तो शादी की तारीख भी पक्की हो गई है। मैं अपनी होने वाली पत्नी से बातें करता हूं। उसे जानने लगा हूं, पर हर पल एक अनजानी असुरक्षा बनी रहती है। क्या मैं उसकी उम्मीदों पर खरा उतर पाऊंगा? वह तो बताती है कि उसके लिए काफी तैयारियां शुरू हो गई हैं, कभी-कभी हिचकते हुए पूछ लेती है कि हमारे घर में उसके लिए क्या कुछ किया जा रहा है। दबी ज़ुबान से पसंद-नापसंद भी बता जाती है, मुझे अच्छा ही लगता है। पर मेरे लिए कहां कुछ हो रहा है, नहीं समझ पाता। उल्टे मैं तो कहूंगा कि एक सांस्कृतिक अंतर्विरोध की स्थिति है। मेरे भाई-बहन, माता-पिता, दोस्त तक यही मानकर चल रहे हैं कि मैं बस कुछ ही दिनों में बदल जाऊंगा। उन्हें समय नहीं दूंगा, पैसे नहीं दूंगा, उनका ध्यान नहीं रखूंगा, यहां तक कि उनकी तरफ नज़र डालना भी कम हो जाएगा।
वहीं उसका फोन आता है, तो कहती है ‘शाम तो हमारी होगी न। हफ्ते में एक दिन तो हम साथ में घूमने जा सकते हैं न!!’ संतुलन तो अभी से गड़बड़ाने लगा है। एकाएक मैं महत्वपूर्ण हो उठा हूं या यह परिवर्तन सबको असुरक्षित बना रहा है? मेरे परिवार में तो वंशावली साफ है, पिता-मां बड़े, भाई-बहन छोटे। इनके लिए मेरे दायित्व और स्नेह की अपनी डोरियां हैं। अब एक रिश्ता समानता का बनने वाला है, उससे निबाह का तरीका क्या चुनूं कि इन वंशानुगत रिश्तों पर फर्क न पड़े? अपनी उलझनें किसे बताऊं?
शादी के समय अजीब स्थितियां हुईं। मैं काम करूं, तो कहते कि बड़ा बढ़-चढ़कर अपनी शादी में काम कर रहा है। न करूं, तो कहते, ज़िम्मेदारी कब सीखोगे। घर में रहता, तो कहते कि घर में रहना सीख रहे हो? बाहर जाऊं, तो कहते आज देख लो इन्हें, कल से तो दिखाई ही कम देंगे।
घर से विरासत से जुड़ा हूं और पत्नी से वचनों से। टूटन का डर, दरकने का खतरा मेरे हर कदम को डिगाने पर आमादा है। और मैं अपनी शादी की खुशी में नाच रहा हूं। नाचने को कहा गया है। शादी की रस्मों में भी डर साफ झलक रहा था। ‘जीजाजी को आज घेर लो, बाद में पैसे नहीं देंगे’- जैसी बातें साफ सुनाई देती रहीं। अब घर में आ गए हैं। मुझे खुद झिझक होती है अपने ही कमरे में जाने में। मैं सजग रहता हूं। नापा-तौला जो जा रहा है मुझे। क्या बदल गया मुझमें, सब यही समझने में लगे रहते हैं। पगफेरे के बाद पत्नी को लेने गया, तो भी इसी फिक्र में रहा। वहां सारे लोग मेरे खाने की थाली में क्या है, कितना है, क्या खाया, कैसे खाया, इस सब की नापजोख तक में लगे रहे।
‘क्या मिला, कितना मिला’- यह सवाल भी लाज़िमी से हैं। इनकी प्रतिक्रिया बड़ी आरोपों भरी है। ‘बस, इतना ही दिया नेग में?’ ‘अरे वाह, बहुत सारा मिल गया तुझे तो।’ मानो, किसी और की जेब कतर ली हो मैंने।घर से बाहर कदम निकालता हूं, तो कहा जाता है ‘पत्नी का ख्याल नहीं है क्या?’ न जाऊं, तो कहते हैं कि ‘औरतों की तरह घर में ही घुसा रहता है।’ पत्नी से बातें करना या घरवालों को समय देना, मैं बाज़ीगर की तरह बहुत नाजुक-सी रस्सी पर झूलता रहता हूं।

सोमवार, 22 नवंबर 2010

ये कैसा इन्साफ

अगले जनम...बिटिया न कीजौ
उत्तरी राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में एक दलित ने अपनी पत्नी और चार बेटियों के साथ मौत को गले लगा लिया। स्थानीय पुलिस के एक अधिकारी को लगता है कि चौथी बेटी घर में आने के बाद घर का मुखिया ओमप्रकाश अवसाद में था।

हनुमानगढ़ जिले के रोडावाली गाँव में एक साथ गमगीन माहौल में छह लोगों का अंतिम संस्कार किया गया। उधर राज्य के शेखावाटी अंचल में पिछले तीन माह में नवजात बच्चियों को लावारिस छोड़ने के चौदह मामले सामने आए हैं।
महिला संगठनों को लगता है ये बेटियों के लिए खतरे की घंटी है। रोडावाली गाँव में रविवार को उस समय रुलाई फूट पड़ी जबएक के बाद एक छह शव गिने गए।
पुलिस ने जब 33 वर्षीय ओमप्रकाश नायक के घर का दरवाजा खोला तो वो ओमप्रकाश, उसकी 30 वर्षीय पत्नी चुकली, आठ साल की बेटी पूजा, छह साल की अर्चना, चार साल की नंदिनी एक माह पहले दुनिया में आई मुन्नी मरे हुए पाए गए।
हनुमानगढ़ के पुलिस अधीक्षक का कहना था, ‘इन लोगों ने जहर खा कर अपनी जान दे दी। ऐसा लगता है कि वो चौथी बेटी पैदा होने के बाद से अवसाद में था। परिवार की आर्थिक हालत भी ठीक नहीं थी।’
पुलिस को ओमप्रकाश के भाई ने तब सूचित किया जब दिन निकलने के बाद भी ओमप्रकाश के घर का दरवाजा नहीं खुला और कोई हरकत नहीं दिखाई दी। ये खबर ऐसे समय आई जब राजस्थान की एक बेटी कृष्णा पुनिया कॉमनवेल्थ खेलो में तमगा लेकर आई और लोग बेटियों पर नाज कर रहे थे।
लावारिस बेटियाँ : सामाजिक कार्यकर्ता कविता श्रीवास्तव कहती है, ‘समाज में बेटों को तरजीह देने का रुझान खतरनाक तरीके से उभरा है। इसमें बेटियों की बेकद्री हो रही है। हमें लगता है जनगणना के आँकड़े आएँगे तो हालात की बहुत ही चिंताजनक तस्वीर सामने होगी। बेटियों की चाहत बुरी तरह घटी है।’
शेखावाटी में सीकर के पुलिस अधीक्षक विकास कुमार ने बीबीसी से कहा, ‘हाँ पिछले कुछ माह में सीकर और झूंझुनु जिलों में नवजात पुत्रियों को लावारिस छोड़ने के एक दर्ज़न मामले सामने आए हैं।’
नू के सामाजिक कार्यकर्ता राजन चौधरी ने पुत्रियों को लावारिस छोड़े जाने की घटनाओं को दर्ज किया है।
उन्होंने बीबीसी को बताया, 'सितंबर माह से लेकर अब तक दो ज़िलों में चौदह नवजात कन्याओं को कहीं कुएँ में फेंका गया, कहीं सड़क पर लावारिस छोड़ा गया। सीकर में रविवार को भी एक नवजात कन्या ने अपनी किलकारी से लावारिस छोड़े जाने की सूचना दी।'
इन चौदह में से चार नवजात बालिकाएँ जिन्दा रह गई। एक नन्ही जान तो इतनी बलवान निकली कि एक सौ पाँच फुट गहरे कुएँ में गिराए जाने के बाद भी जीवित रह गई। लेकिन उसका हाथ टूट गया।
चौधरी कहते हैं, ‘विडम्बना ये है कि अजन्मी और नवजात बालिकाओं को मारे जाने की घटनाएँ उन परिवारों मे ज्यादा हो रही है जो शिक्षित है। झुंझुनू शिक्षा में बहुत आगे है। हमें लगता है इन तीन जिलों में लड़का-लड़की अनुपात बहुत ही खतरनाक मुकाम पर पहुँच रहा है।ये एक हजार लड़कों के मुकाबिले सात सौ से आठ सौ लड़कियों की इत्तिला दे रहा है।’
नवजात बेटियों को निर्जन स्थान पर बिसरा देने की घटनाएँ ऐसे मौसम और माहौल में आई है जब वो कहीं तमगे ला रही है, अन्तरिक्ष में जा रही है और फलक पर सितारों की मानिंद चमक रही है।

रविवार, 21 नवंबर 2010

ज्योतिषीय और वैज्ञानिक लाभ

अंगुठियां क्यों पहनते हैं?
हम और हमारे आसपास अधिकांश लोग अपने हाथों में अंगूठी पहनते हैं। वैसे तो आज के समय अंगुठियों को आभूषण के रूप में देखा जाता है लेकिन अंगूठी पहनने के कई ज्योतिषीय और वैज्ञानिक लाभ भी हैं।

पुराने समय से ही अंगूठी पहनने की परंपरा चली आ रही है। लड़के हो या लड़कियां सभी को अंगूठी पहनना काफी पसंद होता है। हाथों में अंगूठी पहनने के पीछे यह ज्योतिषीय कारण हैं कि अंगूठी में नग या रत्न जड़वाकर पहना जाता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कुंडली में यदि कोई ग्रह अशुभ फल देने वाला है तो उसके निदान के लिए अंगूठी में रत्न लगवाकर पहनाया जाता है।
हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार हमारे हाथों की अंगुलियां अलग-अलग ग्रहों का प्रतिनिधित्व करती हैं। हमारी कुंडली में जो ग्रह अशुभ होता है उस ग्रह का प्रतिनिधित्व करने वाली अंगूली में संबंधित रत्न धारण कर लिया जाता है। अंगूठी में रत्न पहनने के बाद अशुभ ग्रह का बुरा प्रभाव कम हो जाता है।
अंगूठी पहनने से उसकी धातू के सभी गुण हमारी त्वचा से शरीर में प्रवेश करते हैं। जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी होते हैं।
अंगुठियों में कीमती रत्न जड़वाकर पहने जाते हैं, इससे हाथों की सुंदरता बढ़ती है। अन्य लोगों पर इसका अच्छा प्रभाव पड़ता है। कोई भी नया व्यक्ति इसके आकर्षण से आपसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। रत्न धारण करने के लिए अंगुठियां पहनने का चलन आज फैशन बन गया है। इन्हीं सब फायदों की वजह से अंगुठियां पहनी जाती हैं।

शनिवार, 20 नवंबर 2010

पुराने प्यार की याद

पुराने प्‍यार की उष्‍मा को ऐसे जलाएं
रोमांटिक गाने अक्सर हमें पुराने प्यार की याद दिलाते हैं। अतीत को यादकर दिल तड़पने लगता है। लेकिन जब एक दिन आपकी मुलाकात अचानक पुराने प्रेमी से होता है तो कुछ कहने के लिए शब्‍द नहीं होता। प्रसन्नता को आप अंदर ही अंदर महसूस करते हैं। लेकिन जुबान से कुछ कहने से घबराते हैं। बात कैसी हो तक सीमित रह जाती है।

इस दौरान अगर आप किसी रिश्‍ते में नहीं बंधे हैं तो एक बार फिर पुराने प्‍यार को पाने की कोशिश कर सकते हैं। लेकिन दिक्‍कत तब आती है जब किसी एक पार्टनर को पुराने प्‍यार में रूचि नहीं रह जाती। ऐसी स्थिति में पुराने प्‍यार को अपनाने के लिए ये टिप्‍स अपनाएं।
पुरानी बातों को भूलकर नए सिरे से दोस्‍ती की शुरुआत करें। गलती के लिए माफी मांगे।
लंबे अंतराल के बात मिल रहे हैं तो जाहिर सी बात है कि वह पहले जैसी नहीं होगी। इस दौरान आप दोनों में काफी बदलाव आया होगा। उससे यह कभी न कहें कि तुम पहले जैसी नहीं रही या वो दिन ज्‍यादा अच्‍छे थे।
उसे नाश्ता या दोपहर का भोजन करने के बजाय रात के खाने के लिए आमंत्रित करें। दिन में साथ लंच करना रोमांस का संकेत नहीं है। ऐसे में आप दोनों को करीब आने में काफी समय लग सकता है। शु‍रूआती दौर में लाइट मूड की बातें करें। बॉडिंग बनने में थोड़ा समय लगेगा।
अब आप दोनों परिपक्व हो गए हैं इसलिए टीन एज जैसा व्‍यवहार न करें। दोनों साथ साथ समय बिताएं। रोमांटिक गाने सुने और फिल्‍में देखे। पिछली बार जिस गलती के कारण रिश्‍ता टूट गया था उसे दोहराने की गलती न करें।

लाइफ स्‍टाइल

थोड़ी थोड़ी पीया करो
वाइन पीना लाइफ स्‍टाइल का एक हिस्‍सा बन गया है। लेकिन अभी भी महिलाएं इससे परहेज करती हैं। लेकिन हाल ही में वैज्ञानिकों ने कहा है कि जो महिलाएं सप्‍ताह में एक-दो गिलास वाइन पीती हैं उन्‍हें बुढ़ापे में होने वालीं स्वास्थ्यगत परेशानियां कम होती हैं और आघात का खतरा भी कम होता है।

हार्वर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने 200,000 से ज्यादा महिलाओं पर शोध किया। अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि 1,4999 महिलाएं कैंसर, दिल की समस्या, शारीरिक परेशानी या याददाश्त की समस्या के बिना 70 साल की आयु तक का जीवन जीया।
महिलाओं के जीवन पर विश्‍लेषण करने पर उन्‍होंने पाया कि ये महिलाएं यंग एज में सप्ताह में तीन चार दिन एक या दो गिलास वाइन लेती थी। शोधकर्ताओं ने पाया कि उनका जीवन ऐसा न करने वाली महिलाओं की तुलना में 28 प्रतिशत ज्यादा बेहतर था।

शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

रोमांस

बिछुड़े प्यार को भूल जाना बेहतर
- मानसी
NDहेलो दोस्तो! जब आप कोई पाठ याद करना चाहें तो कितनी मुश्किल होती है। बार-बार उसे दुहराना। थोड़ा समय बीतने पर फिर उसे याद करके चेक करना कि कहीं आप उसे भूल तो नहीं गए। याद रखने के लिए कई तरीके ईजाद किए गए हैं। कोई किसी रूखे-सूखे जवाब को तुकबंदी बनाकर याद करने की कोशिश करता है तो कोई बार-बार लिखकर या फिर तारीखों को अपनी निजी तारीखों से जोड़कर याद करता है।
आप किसी को भी थोड़ा-ज्यादा काम बता दें वह कुछ न कुछ भूल ही जाता है। दफ्तरों में भी लोग न जाने कितनी डायरी, कितने प्लैनर इसी काम के लिए भरते रहते हैं। फिर भी अपनों का जन्मदिन, शादी की सालगिरह आदि याद रखना आसान नहीं लगता है तो मोबाइल में रिमाइंडर लगाते हैं। ये सारे जतन बस इसलिए किए जाते हैं कि आप भूलें न।
पर उस समय आप हैरान रह जाते हैं जब एक मामूली सी, छोटी-सी बात भूलना चाहें और हजार कोशिश के बावजूद आप उसे भूल न पाएँ। उन बातों को जिसे आपको याद करने के लिए कोई प्रयास नहीं करना पड़ा पर उसे भुला पाना असंभव लग रहा हो। आप के लिए उस पीड़ा को बयान करना मुश्किल हो जाता है जब अनचाही यादें आ-आकर आपको बताती हैं कि आप उन्हें भूल नहीं पाओगे।
ऐसी ही यादों को पूरी तरह भूल जाना चाहते हैं महेश (बदला हुआ नाम)। महेश का प्यार टूटे दो वर्ष हो गए हैं पर अभी तक महेश एक पल के लिए भी अपनी दोस्त को नहीं भूल पाए हैं। महेश से अलग होने के बाद उनकी दोस्त ने एक बार भी पलट कर नहीं देखा। न कभी मिलने या बात करने की कोशिश की। दोनों के पहचान वालों के सामने भी कोई जिक्र नहीं छेड़ा। अलग होने के बाद ऐसी खामोश हुई मानो उसे जानती ही नहीं।
इधर महेश हैं कि अब भी उसका इंतजार कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि उनके गम से निजात और खुशी की वजह केवल उनकी दोस्त है, जो बस एक बार फिर मिल जाए।
महेश जी, आपको अपने-आप से भी शिकायत है कि वह इतनी बेदर्द है फिर भी आप उसे जी जान से चाहते हैं। दरअसल, यह आपका पहला प्यार था इसलिए आप हजार गिले-शिकवे के बाद भी वहीं अपना सुकून व मंजिल महसूस करते हैं। इस प्यार की तुलना करने के लिए आपके पास दूसरा कोई अनुभव भी नहीं है। आप लोगों के बीच क्यों झगड़ा हुआ, क्यों आप लोग अलग हुए, किस प्रकार का मन-मुटाव या गलतफहमी हुई इसके बारे में आपने कुछ नहीं लिखा है। पर, दो वर्ष तक उसे याद करके उदास होने से यह बात तो तय है कि आप में एक प्रकार का गहरा कमिटमेंट है और साथ ही शिकायतों को नजरअंदाज कर माफ करने की क्षमता भी है।
ऐसा मुमकिन नहीं है कि आपकी ये खूबियाँ आपकी दोस्त की नजरों से ओझल होंगी। आपके एकतरफा चाहत की बात भी उन तक पहुँचती होगी। आपके इंतजार की खबरें भी उन्हें मिलती होंगी। इसके बावजूद वह आपसे कोई संवाद नहीं रखना चाहती हैं तो इसका सीधा सा मतलब है कि वह इस अध्याय को बंद कर देना चाहती है। दो साल का अरसा बहुत बड़ा समय होता है। नाराजगी की बर्फ इस बीच पिघल जानी चाहिए थी।
ऐसा नहीं हुआ है तो इसका एक ही मतलब है कि वह अब कभी नहीं लौटेंगी। इसलिए किसी चमत्कार का इंतजार करना बेकार है। आप में सबसे अच्छी बात यह है कि आप जीवन जीना चाहते हैं, खुश रहना चाहते हैं। आपने लिखा, आपको दूसरा कोई और भाता नहीं है। शायद इसकी वजह यह हो कि आप अपनी दोस्त को गलत न समझते हों।
इसका एक ही मतलब है कि वह अब कभी नहीं लौटेंगी। इसलिए किसी चमत्कार का इंतजार करना बेकार है। आप में सबसे अच्छी बात यह है कि आप जीवन जीना चाहते हैं, खुश रहना चाहते हैं।हो सकता है, इस अलगाव की वजह के पीछे आप हों और उन्होंने आपकी इस भूल को आपकी तमाम खूबियों पर भारी माना। आप नौकरी करते हैं इसलिए आप व्यस्त रह सकते हैं। फिलहाल आप अपनी नौकरी यानी जिम्मेदारियों से प्यार करना शुरू कर दें। यदि आपकी कोई हॉबी हो जिसे आपने अभी तक ज्यादा समय नहीं दिया है तो उसे समय दें।
व्यायाम करें अपनी सेहत के बारे में सोचें। रोज सुबह टहलें और खाने-पीने में सुधार करें। फल-सब्जी, अंकुरित अनाज खाएँ। चाय-कॉफी कम कर दें। अपने पहनावे पर ध्यान दें। अच्छे स्टाइलिश कपड़े खरीदें। खुद को सँवारने-सजाने पर समय लगाएँ। सबसे अहम आप हैं। अपने आप से प्यार करें। दुनिया- जहाँ की खबरें देखें और अपना ज्ञान बढ़ाएँ। अपने कॅरिअर में आगे बढ़ने की सोचें।
यदि आपने ये सब पूरी लगन और गंभीरता से किया तो आपका व्यक्तित्व ही कुछ और हो जाएगा। आपको अपनी दोस्त की यादों से न केवल मुक्ति मिलेगी बल्कि आप अपने दम पर खुश होना सीख जाएँगे। जब आप अपने आपको सराहेंगे और दूसरे भी आपकी तारीफ करेंगे तो आपके खयालों में सोच के केंद्र बिंदु में आप होंगे।
दूसरी छवि गायब होती जाएगी और वह दिन दूर नहीं होगा जब आप फिर किसी और से भी प्यार या शादी की स्थिति में होंगे। आप नए अनुभव से डरते हैं क्योंकि आप हर समय, अपनी दोस्त से उसकी तुलना करते रहते हैं। अभी आप किसी प्रेम-प्रेमिका के बारे में न सोचें। कुछ दिन अकेले रहकर अपने-आप पर ध्यान दें, सब कुछ ठीक हो जाएगा।