रविवार, 12 दिसंबर 2010

चटपटी खबरें

दो सहेलियों ने की ख़ुशी से एक लड़के से शादी
पाकिस्तान डायरी. यह तो आप जानते होंगे कि पाकिस्तान में शराब पर पाबंदी ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने लगवाई। शुरू में यह पाबंदी इस क़दर ‘सख्त’ थी कि शराब की वो बोतल, जो 500 रुपए में मिलती थी, वो एक हज़ार में बिकती थी। उस ज़माने में कुछ लोगों ने सप्लाई का धंधा शुरू कर दिया।
उसमें वो रोज़ाना बहुत रुपए कमा लेते थे। वो अपनी स्कूटर में सब्ज़ी का थैला लटका कर उसके अंदर बोतल रखते थे और ऊपर से हरी-भरी सब्ज़ियां रखकर, अपने ग्राहक के घर तक बोतल पहुंचा देते थे। इस काम के बदले हर बोतल पर सौ-पचास रुपए टिप पाते और सब्ज़ी उनके घर में पकाई जाती थी। फिर शराब के परमिट क्रिश्चियनों और हिंदुओं को मिलने लगे और मुस्लिम उनसे वो परमिट महंगे दामों पर ख़रीदने लगे। आहिस्ता-आहिस्ता सख्तियां कम होती गईं।
अब सुना है कि कराची, लाहौर और इस्लामाबाद के अलावा कई बड़े होटलों के बाहर भी शराब मिलती है और कई बड़े रेस्टोरेंट ऐसे हैं, जहां आने वाले अपना ‘सामान’ साथ लाते हैं और रेस्टोरेंट वाले ख़ुशी-ख़ुशी उन्हें उनकी लाई हुई विलायती पिलाते हैं और भारी बख्शीश पाते हैं।
इन दिनों एक नया हंगामा मच गया है। हंगामा तो ख़ैर हमारे यहां हर रोज़ और हर बात पर होता है। इस मर्तबा इसकी वजह यह हुई कि हमारी सीनेट (जैसे आपकी राज्य सभा है) में टूरिÊम की एक स्टैंडिंग कमेटी है, जिसकी चेयरपर्सन नीलोफ़र ब़िख्तयार हैं।
वो जनरल मुशर्रफ़ के ज़माने में वज़ीर (मंत्री) थीं। इन दिनों वो यूरोप गईं और वहां उन्होंने पैराशूट जंपिंग के एक मुक़ाबले में पैराशूट से एक एक्सपर्ट के साथ जंप किया, तो वापसी पर उनकी वज़ारत (मंत्री पद) चली गई। पाकिस्तान में उनके विरोधी का कहना था कि उन्होंने एक ग़ैर-मर्द के साथ पैराशूट से कूद कर इस्लामी इमेज को तबाह किया है।
नीलोफ़र बख़्ितयार इस कंट्रोवर्सी की वजह से कई दिनों तक ख़बरों में रही थीं। कुछ मौलवियों का कहना था कि उनकी सीनेट की मेंबरशिप ख़त्म कर देनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ था। उनके हवाले से इस मर्तबा उठने वाला हंगामा बहुत बड़ा है।
इसकी वजह यह कि टूरिज्म की सीनेट स्टैंडिंग कमेटी में जब इस पर बात चल रही थी कि पाकिस्तान में टूरिज्म का हाल इतना ख़राब क्यों है और टूरिस्ट यहां का रुख़ क्यों नहीं करते। नीलोफ़र बख्तियार ने कमेटी की चेयरपर्सन के तौर पर यह कहा कि पाकिस्तान टूरिÊम डेवलपमेंट कॉपरेरेशन को नुक़सान से निकालने के लिए इस कॉपरेरेशन के तहत चलने वाले होटल्स में ग़ैर-मुल्की पर्यटकों को शराब उपलब्ध कराने की सुविधा होनी चाहिए।
इस ख़बर का छपना था कि अख़बारों में हंगामा मच गया। एक मौलवी साहब ने कहा कि नीलोफ़र ने पहले पैराशूट से एक ग़ैर-मर्द के साथ पैराशूट से कूद कर मुल्क की इज्जत ख़ाक में मिलाई थी और अब वो शराब से पाबंदी हटाने की मांग कर रही हैं।
नीलोफ़र अब अलग-अलग मौलवियों से बात करके यह कह रही हैं कि उनके बयान का ग़लत मतलब लिया गया है। बेचारी नीलोफ़र हमेशा इस क़िस्म के झगड़ों में फंस जाती हैं। बात यह है कि उन्होंने मुल्क से शराब की पाबंदी ख़त्म करने को नहीं कहा था।
उनका कहने का मतलब सिर्फ़ यह था कि जिस तरह फाइव स्टार होटलों को इजाज़त है कि वो ग़ैर-मुस्लिम और ग़ैर-मुल्की मेहमानों को शराब दे सकते हैं, इसी तरह पाकिस्तान टूरिÊम के मोटल्ज में ग़ैर-मुस्लिम पर्यटकों को शराब ख़रीदने की इजाज़त दी जाए।
अब नीलोफ़र की पार्टी से कहा जा रहा है कि वो उनकी सीनेट सीट फ़ौरन कैंसिल कर दें। मेरे ख्याल में उनकी सीनेट की सीट कैंसिल नहीं होगी और वो अपनी मुद्दत पूरी करेंगी। वो एक दिलचस्प ख़ातून हैं और अपने बयानात से पाकिस्तानी सियासत में फुलझड़ियां छोड़ती रहती हैं।
ऐसी ही दिलचस्प ख़बर मुल्तान से आई है। एक साहब हैं, जिनका नाम कसूर हैदरी है। वो मुल्तान और आस-पास के शहरों में थियेटर करते हैं। बैठे-बैठे उन्होंने अपने घर में ड्रामा कर दिया, जिसकी सारे मुल्क में चर्चा है। सुना है कि यह ख़बर हिंदुस्तान वालों को भी मिल गई है।
बात इतनी-सी है कि कसूर हैदरी ने एक रोज़ अपने इक़लौते बेटे अज़हर से कहा कि तुम्हें अपनी दो कज़िंस से शादी करनी है। पहले तो उसकी समझ में कुछ नहीं आया, लेकिन उसके बाप ने कहा कि मैं एक या दो दिन के फ़र्क़ से तुम्हारी दो शादियां करना चाहता हूं, एक तुम्हारे चाचा की बेटी से होगी और दूसरी तुम्हारी ख़ाला (मौसी) की बेटी से होगी।
इस तरह तुम्हारा ननिहाल भी ख़ुश रहेगा और ददिहाल भी। आप तो जानते हैं कि मुसलमानों में एक या दो नहीं चार शादियां की जा सकती हैं। लीजिए जनाब अज़हर साहब के तो मज़े आ गए। महंगाई के इस दौर में जहां उनके दोस्तों की एक शादी होना मुश्किल है, वहां अज़हर के अब्बा ने उनके लिए दो रिश्ते ढूंढ़ लिए।
अज़हर के अब्बा थियेटर के आदमी हैं। उन्होंने बहुत सोच-समझकर, अपने बेटे की इन दो शादियों की ख़बर अख़बार वालों को दे दी। अख़बार में इस ख़बर का छपना था कि तमाम पाकिस्तानी टीवी चैनल अपने-अपने कैमरे लिए अज़हर के घर की तरफ़ दौड़ पड़े। इसके बाद दोनों लड़कियों की क्या वीडियो फुटेज बनी। दोनों एक-दूसरे के हाथों में मेंहदी लगा रही हैं।
दोनों कैमरे के सामने यह कह रही हैं कि हम तो सहेलियां हैं और एक ही शख़्स से शादी करने के बाद सहेलियां रहेंगी। एक-दूसरे के साथ सौतनों वाला व्यवहार नहीं करेंगे। अलग-अलग सियासी पार्टी वालों ने भी दूल्हा और दुल्हनों को मुबारकबाद दी।
मुल्क भर से उनके लिए तोहफ़े आए। आप ख़ुद ही सोचें कि जब नौ बहनों ने इकलौते भाई की शादी के गीत गाए होंगे और उनके साथ मोहल्ले और शहर की दूसरी लड़कियां भी गा रही होंगी, तो क्या रौनक मेला होगा।

अल्ला जाने क्या होगा आगे.. आमीन!
अमजद पंजाब के एक छोटे क़स्बे में एक छोटा-सा ढाबा चलाता है। ढाबे के साथ ही एक छप्पर है, जिसके नीचे कुछ चारपाइयां पड़ी हुई हैं। क़स्बे में किसी काम से आने वालों की अगर आख़िरी बस छूट जाए या किसी वजह से उन्हें रात रुकना पड़े, तो वे चंद रुपए देकर इस छप्पर के नीचे बिछी चारपाइयों पर सो जाते हैं। उस रोज़ रात हो गई थी और छप्पर के नीचे कई लोग लेटे हुए थे। उनमें से एक श़ख्स के साथ उसके चार बच्चे भी थे, जो बेख़बर सो रहे थे, छप्पर के बराबर में ढाबे वाला अपना ढाबा बंद कर रहा था। उसे मालूम था कि इतनी रात को अब भला कौन कुछ खाने आएगा। यूं भी देग़चियों में दाल और सब्ज़ी बाक़ी नहीं बची हुई थी, तंदूर भी ठंडा हो गया था।
इतने में एक श़ख्स झूमता हुआ आ पहुंचा, वो शराब के नशे में धुत था। वो ढाबे में दाख़िल हुआ, तो अमजद ने उससे कहा कि ढाबा बंद हो चुका है। यह सुनते ही उसने जेब से पिस्तौल निकाली और अमजद से कहा कि अगर उसे फ़ौरन खाने के लिए कुछ नहीं दिया, तो गोली मार देगा। अमजद की तो जान पर बन आई थी। उसने बेटे को फ़ौरन घर दौड़ाया कि खाने के लिए घर में जो भी हो, ले आए। बेटा दौड़ता घर गया और एक प्लेट में दाल और चार रोटियां ले आया। खाना उस श़ख्स के सामने रख दिया गया। पहले तो उसने दाल को देखकर मुंह बनाया, लेकिन कुछ कहे बग़ैर रोटी का एक निवाला दाल से खाया और इसके साथ ही उसने चीख़-पुकार शुरू कर दी। उसका कहना था कि दाल ठंडी है और उसने ज़िंदगी में ठंडी दाल नहीं खाई। अमजद ने यह कहना चाहा कि वह चूल्हा जलाकर दाल गर्म कर देता है, लेकिन शराबी में इतनी बर्दाश्त नहीं थी कि वो अमजद की बात सुन लेता। उसने पिस्तौल से दनादन फायर शुरू कर दिए। वो लोग जो बराबर के छप्पर के नीचे लेटे हुए थे और सोने की अदाकारी कर रहे थे, फायरिंग शुरू होते ही डर कर भागे। गोलियों की आवाज़ सुनकर क़रीब से गुज़रती हुई एक पुलिस पार्टी वहां पहुंच गई। शराबी साहब के हाथों में हथकड़ियां डालते ही उसका नशा हिरन हो गया। मालूम हुआ कि क़रीब के इलाक़ों में दो क़त्ल करके फ़रार हुए हैं और इलाक़े की पुलिस कई महीनों से उन्हें तलाश रही थी। शायद उस व़क्त उसे यह बात समझ में आई हो कि अगर ख़ामोशी से ठंडी दाल खा लेता और शोर न मचाता, तो पुलिस के हाथ न लगता। अब इलाक़े का थानेदार मूंछों पर ताव देकर कह रहा है कि मैंने एक क़ातिल को पकड़ा।
इस फायरिंग से याद आया कि चंद दिनों पहले उर्दू के शायर हबीब जालिब के बेटों के दरमियान भी गोली चल गई। सुना है कि दोनों बेटों के बीच रुपए-पैसों का कुछ मसला चल रहा था। जालिब की शायरी ने उन्हें क्या हिंदुस्तान, क्या पाकिस्तान और क्या यूरोप, सबकी आंखों का तारा बना रखा था। वो जहां जाते थे, हाथोहाथ लिए जाते थे। पाकिस्तान के सभी मंत्रीगण उनके सामने सर झुकाते थे। वो चाहते, तो हर हुकूमत से प्लाट और परमिट लेते, लेकिन जालिब को न दौलत से मुहब्बत थी और न ही वो किसी राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री की तारीफ़ में छंद लिख सकते थे। इसीलिए जालिब ने सारी ज़िंदगी फ़क़ीरी में बसर की और उनके घर में दाल ही पकती रही। जालिब ऐसे शख़्स थे कि बड़े और दौलतमंद लोगों की तारीफ़ मुश्किल से करते थे, लेकिन फ़न के बड़े क़द्रदान थे। मैडम नूरजहां भी जालिब पर बहुत मेहरबान थीं। वो जब बीमार हुए, तो मैडम अक्सर उनकी ख़ैरियत पूछने के लिए जाया करती थीं और उनकी शायरी की बहुत बड़ी क़द्रदान थीं।
इस व़क्त मैडम नूरजहां के ज़िक्र पर एक और नूरजहां याद आ गईं, जो पंजाब की मशहूर रियासत भावलपुर के नवाब सादिक़ की बेटी थीं और मलका नूरजहां कहलाती थीं। नवाब सादिक़ ने अपनी मलका नूर को १८७५ में एक महल तोहफ़े में दिया, जो तीन बरसों में बनाया गया था और जिसे नूरमहल का नाम दिया गया था। नूरमहल की बुनियादों में सिक्के रखने के अलावा रियासत के ऩक्शे भी रखे गए थे। यह महल इटालियन और इस्लामी आर्किटेक्चर का शानदार नमूना है।
नवाब साहब जिस तख़्त पर बैठते थे, वह सोने का बना हुआ था, जबकि सामने रखी हुई कुर्सियां चांदी की थीं। महल में लगे रंग-बिरंगे शीशे इंग्लैंड से आए थे। दीवारों पर लगे आईने इटली से मंगवाए थे। नवाब सादिक़ ने मलका को अपनी मोहब्बत का सुबूत पेश करने के लिए हैंबर्ग (जर्मनी) से एक पियानो मंगवाकर तोहफ़े में दिया। वह पियानो आज भी महल में मौजूद है। पहले ज़माने में क़िलों और महलों में तहख़ाने भी बनाए जाते थे, जिनमें क़ैदियों को रखा जाता था, लेकिन इन तहख़ानों को गर्मी कम करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। इनमें नहर से पानी छोड़ने का इंतज़ाम किया गया था। तहख़ाने को छत की बजाय, तांबे के जाल से ढंका गया था। हवा एक दरवाज़े से आती और दूसरे से बाहर निकलती थी और ऊपर से खुला होने की वजह से ठंडक पूरे महल में फैल जाती थी।
बेशुमार दौलत और हज़ारों मज़दूरों की मेहनत के बाद नूरमहल जब बनकर तैयार हुआ, तो इस महल में नवाब सादिक़ की चहकती बेग़म नूर सिर्फ़ एक रात ठहरी थीं। हुआ यह जब अगली सुबह मलका महल के इर्द-गिर्द लगे हुए बाग़ात का नज़ारा करने के लिए छत पर गईं, तो महल के सामने के इलाक़े में फैले हुए क़ब्रिस्तान को देखकर, उनका मिज़ाज बिगड़ गया। उन्होंने इस बात को सख़्त नापसंद किया कि आख़िर यह महल क़ब्रिस्तान के क़रीब क्यों बनवाया गया है। इस बात पर उन्हें इतना ग़ुस्सा आया कि मलका ने वहां अगला घंटा भी गुज़ारना पसंद नहीं किया। नवाब साहब उनकी मिन्नतें करते रह गए, लेकिन मलका वहां से चली गईं और दोबारा कभी उस महल में नहीं आईं।

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