रविवार, 19 दिसंबर 2010

खास खबरें

प्रधान पाठक बने शिक्षाकर्मियों की नींद उड़ी
रायपुर शिक्षाकर्मियों को प्रधानपाठक बनाए जाने की प्रक्रिया पर बिलासपुर हाईकोर्ट के तीखे तेवरों से बलौदाबाजार शिक्षा जिले में नवनियुक्त प्रधान पाठकों के होश उड़े हुए हैं। इस परीक्षा में नियुक्ति के लिए दो करोड़ रुपए से ज्यादा के लेन-देन की खबरें आ रही हैं।
चयन के लिए लोगों ने एक से दो लाख रुपए दिए, ऐसी चर्चा है। पैसे देकर चुने गए शिक्षाकर्मियों को डर है कि चयन प्रक्रिया ही अदालत में रद्द हो गई, तो उनके पैसों का क्या होगा। दूसरी तरफ कोशिश हो रही है कि हाईकोर्ट का आदेश आने के पहले ही ज्यादातर लोगों की ज्वाइनिंग करवा दी जाए। राज्य शासन के निर्देश पर जिला शिक्षा अधिकारी बलौदाबाजार ने अपने जिले में प्रधान पाठकों के रिक्त पदों के लिए आवेदन मंगवाए थे। दो दिन पहले जनदर्शन में जिला पंचायत के सदस्य सुनील माहेश्वरी और मुरारी मिश्रा ने कई शिक्षाकर्मियों के साथ मुख्यमंत्री से लिखित शिकायत की थी। शिकायत में आरोप लगाया गया है कि परीक्षा में योग्य प्रत्याशियों का नाम काटकर अपात्रों को चुन लिया गया। परीक्षा में ६३ फीसदी अंक पाने वाले गंभीर सिंह ठाकुर, ५७ फीसदी वाले शैलेंद्र कुमार गजभिये, ५७ फीसदी वाली रानी कोसले का चयन नहीं किया गया। इनसे कम अंकों वाले लोग सलेक्ट हो गए। लिखित शिकायत के बावजूद आपत्ति का निराकरण नहीं किया गया। राज्य शासन ने जिला शिक्षा अधिकारी को छत्तीसगढ़ के राजपत्र में प्रकाशित 3 सितंबर 2008 और 13 अगस्त 2008 के भर्ती नियमों के आधार पर प्रधान पाठक बनाने को कहा था। चयन प्रक्रिया में राजपत्र के कई प्रावधानों का पालन नहीं किया गया।
इसमें सीधी भर्ती और चयन से संबंधित नियमों का विस्तार से जिक्र किया गया है। चयन प्रक्रिया को देखा जाए, तो इसमें राजपत्र में दिए गए कई प्रावधानों का पालन नहीं किया गया।
ये भी गड़बड़ी >
रामकुमार चंद्राकर नाम के एक परीक्षार्थी को दो स्कूलों में प्रधान पाठक बना दिया गया। > एक ऐसे शिक्षाकर्मी को प्रधान पाठक बनाया गया है, जो निलंबिन के बाद से विकास खंड शिक्षा अधिकारी धरसीवां में अटैच है। ब्लॉक शिक्षा अधिकारी ने इस शिक्षाकर्मी के आवेदन पत्र में उसके निलंबित होने का साफ जिक्र किया था।
नियम में था यह
1. सेवा में अभ्यर्थी का चुनाव चयन समिति द्वारा प्रतियोगी परीक्षा और साक्षात्कार के बाद किया जाना चाहिए थे।
हुआ ये
लिखित परीक्षा में गड़बड़ी हुई। साक्षात्कार के बिना ही प्रधानपाठकों की नियुक्ति और पोस्टिंग के आदेश जारी हो गए।
नियम में था यह
2. उपलब्ध रिक्त पदों में एससी, एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए क्रमश: १६, 20 और १४ फीसदी पद रखे जाने थे। महिला के 30 फीसदी पद रखे जाने चाहिए थे।
हुआ ये
अनुसूचित जनजाति के लिए 20 के स्थान पर १९ फीसदी को ही आरक्षण दिया गया। रोस्टर का भी पालन ठीक से नहीं किया गया।
नियम में था यह
३. आयु के बारे में राजपत्र में अलग-अलग वर्ग तय किए हैं, जिसमें अधिकतम सीमा का जिक्र है। अधिकतम आयु किसी भी तरह से ४५ साल होनी चाहिए।
हुआ ये
लवन इलाके की एक ऐसी शिक्षाकर्र्मी को भी प्रधान पाठक बना दिया गया, जो 46 साल आठ महीने की है। नियम विरुद्ध ज्यादा उम्र के कई और शिक्षाकर्मियों को प्रधानपाठक बना दिया गया।
नियम में था यह
४. चयन समिति में जिला शिक्षा अधिकारी उसके अध्यक्ष होते हैं। डाइट के प्राचार्य, ब्लॉक शिक्षा अधिकारी समेत अन्य सदस्यों कौन-कौन होंगे इसका साफ जिक्र नियमों में है।
हुआ ये
समिति को नियमों के हिसाब से नहीं बनाया गया। ऐसे लोग रखे गए, जो विरोध नहीं कर सकते थे। डाइट के प्राचार्य को चयन समिति में लगभग बाहर रखा गया।
नियम में था यह
५. राज्य शासन का साफ निर्देश है कि भर्ती में मध्यप्रदेश के समय जारी जाति प्रमाणपत्रों को मान्य नहीं किया जाएगा।
हुआ ये
20 फीसदी से ज्यादा परीक्षार्थियों ने मध्यप्रदेश सरकार के प्रमाणपत्रों को आवेदन पत्र में लगाया।
नियम में था यह
संविदा शिक्षा कर्मियों को प्रधान पाठक परीक्षा में पात्रता नहीं थी।
हुआ ये
शिक्षा अधिकारी के बेटे समेत कई लोग संविदा शिक्षक होने के बावजूद परीक्षा में न केवल शामिल हुए, बल्कि मेरिट लिस्ट में भी उनका
नाम आया।

ठंड से 6 नवजात लकड़बग्घों की मौत
रायपुर नंदनवन में लाए गए 6 नवजात लकड़बग्घों की अचानक मौत हो गई। उन्हें जगदलपुर जिले के एक गांव से लगे घने जंगलों से लाया गया था। इनके पालन-पोषण की यहां कोशिश की गई, लेकिन मौसम में आए अचानक बदलाव से यह बच नहीं पाए। अधिकारियों ने बताया कि जब इन्हें लाया गया तो ये महज चार दिन के थे। फिर दो हफ्ते तक ये जीवित रह पाए। मौत की खबर उच्च अधिकारियों को दे दी गई है।
नंदनवन के अफसरों ने बताया कि लकड़बग्घों के सभी 6 बच्चे कमजोर थे। छोटे होने की वजह से ये खाना नहीं खा सकते थे। लिहाजा इन्हें गाय का दूध पिलाने की कोशिश की जा रही थी। डाक्टरों का कहना है कि दूध भी ये ठीक से पी नहीं पाते थे, इसलिए इनका शरीर और भी कमजोर होता जा रहा था। हफ्ते भर पहले जब मौसम में अचानक बदलाव आया और पारा गिरा तो इनकी पल्स धीमी पड़ने लगी। 13 दिसंबर को पहले तीन की मौत हो गई, फिर अगले ही दिन बाकी के तीन ने भी दम तोड़ दिया। उन्हें बचाने के लिए सारी कोशिशें बेकार गईं। दवाइयां भी दी गईं, लेकिन वे ठंड सह नहीं पाए। अधिकारियों ने इसकी जानकारी उच्च स्तर पर दे दी है और बाकी जानवरों की देखभाल बढ़ा दी गई है।
ठंड नहीं बढ़ती, तो बच जाते :
नंदनवन के वेटनरी डाक्टर डा. जयकिशोर जड़िया ने कहा कि लकड़बग्घों के नवजात बच्चे महज चार दिन के थे। इन्हें कम से कम महीने भर तक मां के दूध की जरूरत पड़ती है। इसी से उनमें ठंड से लड़ने की क्षमता विकसित करनी होती है। उन्हें गाय का दूध पिलाया जा रहा था। इतनी कम उम्र में वे इसे पचा नहीं पाते। ऐसे में अगर मौसम ने साथ दिया होता तो बच्चे शायद बच जाते।
घायल नर लकड़बग्घा भी नहीं रहा : महासमुंद जिले के बागबहरा रोड के पास सड़क हादसे का शिकार हुआ नर लकड़बग्घा भी नहीं रहा। पांच दिन पहले उसकी भी मौत हो गई। डाक्टरों का कहना है कि उसकी कमर और पैरों की हड्डी हादसे में टूट गई थी। उसका इलाज किया गया और कुछ दिनों बाद वह स्वस्थ भी होने लगा था। ठंड बढ़ने से हड्डियों में दर्द बढ़ता गया और कमजोरी आने की वजह से उसने दम तोड़ दिया। डाक्टरों ने उसका पोस्टमार्टम कर रिपोर्ट विभाग को सौंप दी है।
तेंदुए के शावक अब तंदरुस्त: बागबहरा के जंगलों से लाए गए दो नन्हें तेंदुए के शावक अब स्वस्थ हैं। नंदनवन का अमला रविवार को इन्हें एक बड़े पिंजरे में शिफ्ट करेगा। इसकी तैयारियां की जा चुकी हैं। इनमें से एक नर और एक मादा है।
शुरुआत में दोनों बेहद बीमार थे। इनका बेहतर इलाज किया गया तो ये स्वस्थ्य होते गए। अब ये छोटे मांस के टुकड़े खाने लगे हैं। इन्हें मिलाकर नंदनवन में कुल आठ तेंदुए हो जाएंगे जिनमें से चार नर और बाकी मादा हैं।
लकड़बग्घे के बच्चे सिर्फ गाय का दूध पीते थे। मरने से पहले ऐसा ही एक बीमार बच्च दूध भी नहीं पी पा रहा था।
नवजात लकड़बग्घों को बचाने की बेहद कोशिश की गई, लेकिन वे दूध की फीडिंग नहीं कर पा रहे थे। गाय का दूध वे पचा नहीं पाते थे, जिससे उनका शरीर कमजोर होता गया और उनकी मौत हो गई।

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