बुधवार, 19 जनवरी 2011

छत्तीसगढ़ की खबरें

वैज्ञानिक फॉर्मूले से बचाएंगे वन भैंसे की नस्ल

रायपुर.छत्तीसगढ़ के राजकीय पशु वन भैंसा (वाइल्ड बफेलो) की खत्म हो रही नस्ल ने वन विभाग की चिंता बढ़ा दी है। उदंती अभयारण्य में मौजूद सात वन भैंसों में से सिर्फ एक मादा है और गर्भधारण के दोनों ही बार इसने नर को जन्म दिया है। ऐसे में अब उम्मीदें वैज्ञानिक फॉमरूले पर टिक गई हैं। विभाग ने इनकी वंश वृद्धि के लिए कृत्रिम गर्भाधान की योजना बनाई है।
वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट आफ इंडिया (डब्लूटीआई) ने कृत्रिम गर्भाधान के सिस्टम का खाका बना लिया है। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से हरी झंडी मिलने के बाद इसे अमल में लाया जाएगा।
राज्य के रिजर्व फॉरेस्ट उदंती में विचरण करने वाले वन भैंसे देश की इकलौती विशुद्ध नस्ल हैं। दूसरे अभयारण्यों में उनकी नस्ल बिगड़ चुकी है। यही वजह है कि डब्लूटीआई यहां के वन भैंसों की नस्ल को लेकर ज्यादा चिंतित है।
एकमात्र मादा के स्वास्थ्य ने बढ़ाई चिंता
एकमात्र मादा वन भैंसा के स्वास्थ्य की देखभाल के साथ-साथ सुरक्षित गर्भधारण करवाना वन विभाग के लिए बड़ी चुनौती है। इसे सुरक्षा देने के लिए उसे पिछले दो साल से बाड़े में रखा गया है। उसके लिए उदंती में पौने दो एकड़ में बाड़ा बनाया गया है। उसी बाड़े में नर भी है।
बाड़े में ही दो बार मां बनने के दौरान मादा वन भैंसा ने नर को जन्म दिया। अफसर इस बात को लेकर आशान्वित नहीं है कि तीसरी बार भी वह मादा वनभैंसा को जन्म देगी। अब उन्हें उसके स्वास्थ्य भी चिंता सताने लगी है। इस कारण भी वंश वृद्धि के लिए वैज्ञानिक तकनीक आजमाने का निर्णय लिया गया है।
शुद्धता पर नहीं पड़ेगा असर
डब्लूटीआई के छत्तीसगढ़ प्रभारी डा. राजेंद्र मिश्रा का कहना है कि वन भैंसों की नस्ल बढ़ाने के लिए यह फॉमरूला अपनाना जरूरी है। इसके जरिये पैदा होने वाली नस्ल बिलकुल शुद्ध होगी।
ऐसे बढ़ाया जाएगा वंश
उदंती में बाड़ के घेरे में बंद मादा वनभैंसा के अंडाणु को नर वनभैंसे के स्पर्म में मिलाया जाएगा। उसे पालतू मादा वन भैंसे में प्रविष्ट करवाकर गर्भधारण कराने के प्रयास होंगे। विशेषज्ञों के अनुसार 10-12 पालतू मादा वनभैंसों में यही फॉमरूला अपनाने से कोई न कोई मादा वनभैंसा को जन्म देगी। तीन-चार मादा वनभैंसों के जन्म के बाद नस्ल बढ़ाने में दिक्कत नहीं होगी।
उदंती में बाड़ के घेरे में बंद मादा वनभैंसा के अंडाणु को नर वनभैंसे के स्पर्म में मिलाया जाएगा। उसे पालतू मादा वन भैंसे में प्रविष्ट करवाकर गर्भधारण कराने के प्रयास होंगे। विशेषज्ञों के अनुसार 10-12 पालतू मादा वनभैंसों में यही फॉमरूला अपनाने से कोई न कोई मादा वनभैंसा को जन्म देगी। तीन-चार मादा वनभैंसों के जन्म के बाद नस्ल बढ़ाने में दिक्कत नहीं होगी।
"अभी पूरी योजना प्रारंभिक स्तर पर है। विशेषज्ञों से रायशुमारी के बाद इसका प्रोजेक्ट तैयार किया गया है। वन मंत्रालय से मंजूरी के बाद ही इस दिशा में आगे कदम उठाया जाएगा।"
-राकेश चतुर्वेदी, फील्ड डायरेक्टर वाइल्ड लाइफ

इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान में तलाशे जाएंगे बाघ
जगदलपुर/रायपुर.बीजापुर जिले के इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान में बाघ के होने के प्रमाण मिले हैं। वहीं इस टाइगर रिजर्व में बड़ी संख्या में चीतल, नीलगाय व कोटरी सहित वनभैंसे के होने की भी जानकारी सामने आई है।

नेशनल पार्क में माओवादी गतिविधियों के चलते बाहरी लोगों की आमदरफ्त न के बराबर होने और घास के मैदान की अधिकता से यहां की परिस्थितियां जंगली जानवरों के रहने के अनुकूल बताई गई है। हाल ही में भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के एडीजी राकेश डोगरा और नेशनल बोर्ड आफ वाईल्डलाइफ की सदस्य प्रेरणा बिंद्रा ने भी इस इलाके का दौरा किया। उन्हें बड़ी संख्या में जंगली जानवरों के मल और उनके पैरों के निशान दिखे हैं।
अनुकूल हैं घास के मैदान :
सीएफ वाइल्डलाइफ अरूण पांडे ने बताया कि अभयारण्य में घास के कई जंगल उपस्थित है। अब तक नौ स्थानों पर घास के मैदान मिले हैं, जो कई सौ हेक्टेयर में फैले हैं। इनमें इड़ेपल्ली, ताड़मेंड्री, सालेपल्ली, पिल्लूर, सागमेटा, पिनगुंडा, मुचनेर, गुंडापुरी और नेती काकले शामिल हैं। इन जंगलों में नीलगाय व चीतल के गोबर एक ही स्थान पर पाए गए हैं।
इनकी विशेषता होती है कि ये जानवर एक ही जगह पर आकर मलत्याग करते हैं। जिससे यहां गोबर का ढेर लग जाता है। ये घास के मैदान दरअसल शेर के लिए किचन का काम करते हैं। यहां शेर शिकार करने आता है और भोजन लेकर चला जाता है।
बैलों का शिकार किया, बाघ होने का प्रमाण
अभयारण्य में बाघ की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए ताड़मेंड्री इलाके को प्रमुख रूप से चुना गया है। यहां ग्रामीणों ने बाघ द्वारा बैलों को मारने की शिकायत की थी। जिसके बाद इस इलाके में इसके प्रमाण भी मिले हैं। अब ऐसे स्थान पर ऑप्टिकल कैमरे लगाए जा रहे हैं जहां जंगली जानवर पानी पीने के लिए पहुंचते हैं।
इसके अलावा सेंड्रा इलाके के अन्नापुर और मट्टीमारका क्षेत्र में कैमरे लगाए जाने की योजना है। यह कार्य शीघ्र ही पूरा कर लिया जाएगा जिसके बाद जंगली जानवरों की उपस्थिति के साथ ही उनकी गणना में भी आसानी होगी।

1 टिप्पणी:

डॉ० डंडा लखनवी ने कहा…

अरुण बंछोर जी!
पहली बार आपके ब्लाग पर आना हुआ। कई प्रस्तुतियाँ पढ़ी। रोचक एवं प्रभावकारी लेखन के लिए बधाई।
कृपया पर्यावरण और बसंत पर ये दोहे पढ़िए......
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गाँव-गाँव घर-घ्रर मिलें, दो ही प्रमुख हकीम।
आँगन मिस तुलसी मिलें, बाहर मिस्टर नीम॥
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शहरीपन ज्यों-ज्यों बढ़ा, हुआ वनों का अंत।
गमलों में बैठा मिला, सिकुड़ा हुआ बसंत॥
सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी