शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

भव्य शादी करने से पहले जरा सोचिए!

- वि‍शाखा दत्त
करीबी सहेली ने अपने घर का एक किस्सा सुनायाः उसके मौसाजी बैंक में साधारण-सी नौकरी करते थे। उन्होंने अपनी बेटी को बड़े लाड़-प्यार से पाला। जब उसकी शादी का वक्त आया तो बरसों से मन में संजोए सपने को साकार करने के लिए बड़ी 'धूमधाम' से लोन लेकर शादी की।

कुछ दिनों बाद वे इतने बीमार हो गए कि समय पूर्व रिटायरमेंट लेकर नौकरी छोड़ना पड़ी। पीएफ का आधा पैसा बीमारी के इलाज में लग गया। शादी की धूमधाम के लिए लिया लोन उनके लिए अब तक मुसीबत बना हुआ है। इस किस्से को सुन स्मृतियों में सुप्त एक विवाह समारोह बरबस ही याद आ गया।
6 माह पहले मेरे एक रिश्तेदार के बेटे ने आर्थिक संपन्नता के बावजूद अपनी शादी बहुत ही सादे तरीके से की। शादी में करीबी रिश्तेदारों के बीच फेरे की रस्म हुई। महँगे परिधानों, आभूषणों, रोशनी से जगमगाते मैरिज हॉल के बिना घर पर ही हुए एक सादा समारोह को देखकर मन को बहुत सुकून मिला।
वर निकासी न होने के कारण न तो ट्रैफिक जाम हुआ, न शादियों के आठ दिन पहले से शुरू होने वाले गीत-संगीत से पड़ोसी को परेशानी और न ही रिसेप्शन में भरी की भरी थालियों में छोड़ी गई जूठन से भोजन की बर्बादी हुई। साथ ही यह शादी पर्यावरण हितैषी भी लगी, क्योंकि उसमें डिस्पोजेबल का इस्तेमाल भी सीमित मात्रा में ही हुआ था। मन में पूरे समय यही विचार आता रहा कि काश देश में इस ढंग से शादियाँ करने का चलन बढ़े!
कुछ दिनों पूर्व एक राजनेता के बेटे को उपहार में हेलिकॉप्टर मिला और यह भव्य शादी अखबारों की सुर्खियों में छाई रही। भारत में अक्सर उद्योगपतियों, राजनेताओं और प्रसिद्घ व्यक्तियों की शादियाँ चर्चा का विषय बनती हैं। इन भव्य शादियों में करोड़ों रुपए शानो-शौकत और दिखावे पर पानी की तरह बहाए जाते हैं।
शादियों की भव्यता अब संपन्न परिवारों तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि यह मध्यमवर्गीय परिवारों तक भी पहँच चुकी है। फिर भले ही इस भव्यता के शामियाने 'लोन' लेकर खड़े किए गए हों या फिर जिंदगीभर मेहनत से की गई गाढ़ी कमाई से।

भारत एक उत्सवप्रिय देश है। लोग दिल खोलकर उत्सवों में पैसा खर्च करते हैं, फिर चाहे वह उत्सव नवरात्रि का हो या शादी। इन भव्य शदियों की भव्यता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। ये उस देश की सचाई है, जहाँ आज भी लाखों लोग भूखे पेट सोते हैं और कइयों को सिर्फ एक वक्त भोजन करके गुजारा करना पड़ता है, देश का आम आदमी आज भी आधारभूत सुविधाओं के लिए संघर्षरत है।
अब देश के युवाओं के लिए यह बात विचारणीय है कि शादियों पर इस तरह की फिजूलखर्ची कितनी जायज है? कुछ लोगों का मत है कि शादी जीवन में एक बार होती है तो कंजूसी क्यों की जाए! धूमधाम से शादी के फेर में ही लड़की के माता-पिता जिन्दगीभर कष्ट उठाते हैं।
सोचिए, गर शादियाँ सादगीपूर्वक होने लगें तो लोग बेटियों को भी बोझ नहीं समझेंगे। जन्म से ही उन्हें बेटी की शादी में होने वाले खर्च की चिंता नहीं सताएगी। इससे कन्या भ्रूण हत्याओं में भी कमी आएगी। युवाओं को चाहिए कि वे अपनी शादियों के भव्य तमाशे में पैसा बहाने की अपेक्षा समझदारी से पैसा खर्च करें। इसके लिए अपने माता-पिता से भी इस बात पर विचार करें। शादी में बेवजह दिखावे पर पैसा बर्बाद करने से तो बेहतर है कि किसी जरूरतमंद की मदद कर दी जाए।
शादी-ब्याह के मामले में लोग सोचते हैं कि अगर साधारण रूप से शादी कर दी तो समाज के लोग बातें बनाएँगे या इससे उनकी प्रतिष्ठा कम हो जाएगी। प्रतिष्ठा की चिंता किए बगैर आप अच्छे कार्य की पहल तो कीजिए, फिर समाज वाले भी आपका अनुकरण करने लगेंगे।
आप चाहें तो शादी के कुछ ऐसे नए रिवाज भी शुरू कर सकते हैं, जैसे संपन्न नवदंपति एक जरूरतमंद को पढ़ाई या प्रोफेशनल कोर्स करवाने में मदद करें, किसी को रोजगार मुहैया करवाएँ।
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