शुक्रवार, 27 मई 2011

अपनी आमदानी का उपयोग ऐसे करें...

पं. विजयशंकर मेहता
अपने लिए तो सभी कमाते हैं, पर हमारी कुछ कमाई ऐसी होना चाहिए जो सेवा के रूप में बदल सके। आजकल सेवा भी हथियार बना ली गई है। धंधा बना ली गई थी यहां तक तो ठीक था, लेकिन अब शस्त्र के रूप में सेवा और खतरनाक हो जाती है।
जो दुनियादारी के सेवक हैं, यह अक्सर ऐसे ही काम करते हैं। कोई सेवक कहता है कि मैं हिन्दू धर्म को संगठित करना चाहता हूं। कोई कह रहा है मैं इस्लाम की सेवा करना चाहता हूं। कोई ईसा की सेवा में घूम रहा है। नेता कह रहे हैं कि हम देश की सेवा कर रहे हैं। यह सब समाजसेवा तो हो सकती है, लेकिन इससे भीतर परमात्मा पैदा नहीं होता।
जब चित्त में ईश्वर या कोई परम शक्ति होती है तो सेवा का रूप बदल जाता है। हिन्दू धर्म के साधु-संतों की, इस्लाम के ठेकेदारों की, क्रिश्चनिटी के पादरियों की और हमारे राष्ट्र के नेताओं की सेवा के ऐसे परिणाम नहीं आते, जैसे आज धर्म के नाम पर मिल रहे हैं। इसलिए सेवा के ईश्वर वाले स्वरूप को समझना होगा। अभी सेवा चित्त के आनंद से वंचित है। परमात्मा का एक स्वरूप है सत्य।
ईमानदारी से देखा जाए तो चाहे धर्म हो या राजधर्म, जो लोग सेवा का दावा कर रहे हैं उनके भीतर से सत्य गायब है। धर्म का चोला ओढ़ लें यहां तक तो ठीक है, अब तो लोगों ने भगवान का ही चोला ओढ़ लिया है। वेष के भीतर से जब विचार समाज में फिंकता है तो लोग सिर्फ झेलने का काम करते हैं। वे यह समझ नहीं पाते कि सत्य कहां है। इसलिए दूसरे जो कर रहे हैं उनसे सावधान रहें और हमें जो करना है उसके प्रति ईमानदार रहें। लगातार प्रयास करें कि भीतर परमात्मा जागे और तब बाहर हमारे हाथ से सेवा के कर्म हों।
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1 टिप्पणी:

डॉ० डंडा लखनवी ने कहा…

bilkul sahi pharmaaya hai -aapne janab.