बुधवार, 21 मार्च 2012

मंदी के लिए रहिए तैयार,!

मनमोहन-प्रणव होंगे जिम्‍मेदार
वित्‍त मंत्री प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक बार फिर पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी के संकेत दे दिए हैं। वित्‍त मंत्री ने इशारा किया है कि बजट सत्र खत्‍म होने (31 मार्च) के बाद पेट्रोल-डीजल के साथ ही एलपीजी के दामों में भी बढ़ोत्तरी हो सकती है।
करीब साल भर पहले राजधानी दिल्‍ली में पेट्रोल 58.37 रुपये प्रति लीटर मिलता था। इसके दाम में आखिरी बार बढ़ोतरी पिछले साल एक दिसंबर को की गई थी। अभी यह 65.64 रुपये प्रति लीटर मिल रहा है। यानी साल भर में पेट्रोल की कीमतें करीब 12 फीसदी बढ़ गई हैं। सरकार ने जून 2010 में पेट्रोल की कीमतों पर से सरकारी नियंत्रण खत्‍म कर दिया था। तब से लगातार तेल कंपनियां पेट्रोल की कीमतें बढ़ाती रही हैं।
हाल के दिनों में वैश्विक स्‍तर पर तेल की कीमतों में बढ़ोतरी देखी गई है। यूएस क्रूड के मुताबिक कच्‍चे तेल की कीमतें 107 डॉलर प्रति बैरल तो ब्रेंट क्रूड के मुताबिक यह 125 डॉलर प्रति बैरल को छू गई है। अमेरिका में गैसोलिन की कीमत 4 डॉलर प्रति गैलन तक पहुंच गई है। इसका नतीजा बाकी चीजों पर उपभोक्‍ताओं के खर्च में कमी के रूप में सामने आ रहा है।
गोल्‍डमैच सैच का कहना है कि तेल की कीमतों में 10 फीसदी का इजाफा होने से देश की विकास दर पर करीब चौथाई फीसदी का नकारात्‍मक असर पड़ता है। जब लोगों का पेट्रोल पर खर्च बढ़ेगा तो बाकी जरूरी चीजों पर खर्च में कटौती होना भी स्‍वाभाविक है। यदि लोग कार चलाने के लिए ज्‍यादा खर्च करने लगेंगे तो उनके पास टीवी सेट खरीदने या छुट्टियों में सैर-सपाटे की इच्‍छाओं पर ‘ब्रेक’ लगाना पड़ेगा। इससे उपभोक्‍ताओं की खर्च करने की सीमा में कटौती होगी और विकास दर में रुकावट पैदा होगी। अमेरिका में ऐसा होने लगा है।
भारत में बीते साल भर में पेट्रोल की कीमत करीब 12 फीसदी बढ़ गई है। एचएसबीसी के इकोनॉमिस्‍ट फ्रेडरिक न्‍यूमैन ने ग्‍लोबल मार्केट में कच्‍चे तेल की कीमतें बढ़ने से भारत सहित एशियाई मुल्‍कों पर पड़ने वाले असर को कुछ इस तरह समझाया है। उनका कहना है कि कीमतें बढ़ने से पश्चिम के देशों को होने वाले निर्यात पर नकारात्‍मक असर पड़ेगा। एशियाई मुल्‍कों से पश्चिम को होने वाला निर्यात कम से कम आज के वक्‍त में बेहद संवेदनशील है। इसके अलावा इससे कुछ दिनों के बाद एशियाई देशों में मुद्रास्‍फीति की मार पड़ेगी।
क्‍या कर सकती है सरकार ?
सरकार कहती है कि उसके पास वैश्विक बाजार में पेट्रोल की बढ़ती कीमतों का मुकाबला करने के लिए इसकी कीमतें बढ़ाने के अलावा कोई विकल्‍प नहीं है। हालांकि ऐसा नहीं है। सरकार अगर चाहे तो अपने खर्च में कटौती के अलावा कुछ और विकल्‍प भी आजमा सकती है।
सीनियर इकोनॉमिस्ट और भारतीय राजस्‍व सेवा के अधिकारी रहे राव उपेंद्र दास कहते हैं, ‘सरकार अपना घाटा कम करने के लिए इस बजट में सारे विकल्प आजमा चुकी है इस बार बजट में लगभग सभी प्रकार के टैक्स को बढ़ा दिया गया। एक्साइज ड्यूटी, सर्विस टैक्स या सोने के आयात पर टैक्स सरकार ने सभी में इजाफा किया है। सरकार के पास कॉरपोरेट टैक्स को बढ़ाना अंतिम विकल्प हो सकता है।’
हालांकि यह विकल्‍प आजमाना सरकार के आसान नहीं होगा। उपेंद्र दास के मुताबिक ऐसा करने से सरकार के खिलाफ कॉरपोरेट जगत में विरोध के स्वर उभर सकते हैं। शायद यही वजह है कि सरकार इस बार बजट में इससे बचती दिखी।

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