सोमवार, 25 अगस्त 2014

मुख्यमंत्रियों की हूटिंग शुभ संकेत नहीं

पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभाओं में कुछ राज्यों के मुख्यमंत्रियों के खिलाफ हुई हूटिंग से जो परिस्थितियां बनी हैं वह देश के संघीय ढांचे को नुकसान पहुंचा रही हैं। केंद्र-राज्य संबंधों में खटास की बातें पहले भी सामने आती रही हैं लेकिन 'हूटिंग' के चलते संघर्ष की स्थिति बनना खतरनाक है। इस मुद्दे को लेकर राजनीति भी गर्मा गयी है क्योंकि अभी तक हूटिंग उन्हीं राज्यों में हुई है जहां कि जल्द ही चुनाव होने वाले हैं। विपक्ष के निशाने पर सीधे प्रधानमंत्री हैं तो सत्तारुढ़ दल हूटिंग का कारण जनता की स्थानीय नेताओं से नाराजगी बता रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत सप्ताह कैथल में हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपिन्दर सिंह हुड्डा के साथ एक सरकारी कार्यक्रम के दौरान मंच साझा किया। इस दौरान हुड्डा जब बोलने लगे तो लोगों ने उनके खिलाफ हूटिंग की। इस बात से नाराज हुड्डा ने आरोप लगाया कि यह सब भाजपा के इशारे पर उनका अपमान करने के लिए किया गया। साथ ही उन्होंने भविष्य में प्रधानमंत्री के साथ मंच साझा करने से इंकार कर दिया। इसके साथ ही कांग्रेस ने अपने सभी मुख्यमंत्रियों को सतर्क रहने का निर्देश जारी करते हुए सामान्य प्रोटोकाल का पालन करने और प्रधानमंत्री के साथ मंच साझा नहीं करने का निर्देश जारी कर दिया। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने नागपुर मेट्रो के शिलान्यास कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के साथ मंच साझा नहीं करने का ऐलान कर दिया। उन्होंने बाद में कहा कि वह तभी मंच साझा करेंगे जब प्रधानमंत्री इस बात का आश्वासन दें कि उनके खिलाफ हूटिंग नहीं होगी। गौरतलब है कि गत दिनों प्रधानमंत्री के साथ एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने ही सबसे पहले हूटिंग झेली थी। झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी मोदी के साथ मंच साझा करने के दौरान हूटिंग झेलनी पड़ी। उन्होंने आवेश में आकर इसे संघीय ढांचे का बलात्कार तक की संज्ञा दे डाली। सोरेन ने कहा कि उन्होंने इस कार्यक्रम में तभी भाग लिया था जब एक केंद्रीय मंत्री ने आश्वासन दिया था कि कार्यक्रम के दौरान ऐसा कुछ (हूटिंग) नहीं होगा। वाकई यह बड़ी ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि राज्यों के मुख्यमंत्री देश के प्रधानमंत्री के साथ मंच साझा करने से इंकार कर दें। मोदी ने आम चुनाव के दौरान नारा दिया था 'सबका साथ, सबका विकास'। अब वक्त है इस नारे पर अमल करने का। मोदी खुद एक राज्य के लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे हैं वह केंद्र से राज्य के संबंधों की महत्ता समझते हैं। उन्हें आगे बढ़कर ऐसी चीजों पर रोक लगाने की बात कड़ाई के साथ कहनी चाहिए। मोदी जानते हैं कि केंद्र की सरकार जिन योजनाओं को बनाती है उनमें से अधिकांश का कार्यान्वयन पूरी तरह राज्यों पर निर्भर है। इसलिए वह वाकई यदि अपने सपनों का भारत बनाना चाहते हैं तो दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सबको साथ लेकर चलना ही होगा। जनसभाओं में 'मोदी मोदी' के नारे आम चुनाव तक ठीक थे लेकिन अब मोदी प्रधानमंत्री बन चुके हैं और उनके आचरण से यह स्पष्ट संकेत मिलना ही चाहिए कि वह सभी को साथ लेकर चलना चाहते हैं। वैसे झारखंड में प्रधानमंत्री ने हूटिंग के दौरान हाथ से इशारा करते हुए जनता से शांत रहने को कहा था लेकिन हूटिंग जारी रही। भाजपा नेताओं ने बाद में तर्क दिये कि ऐसा मोदी की लोकप्रियता के कारण हो रहा है क्योंकि जनता स्थानीय नेताओं से तंग आ चुकी है और अपनी उम्मीदों को पूरा करने के बारे में मोदी की बात सुनना चाहती है। भाजपा का यह भी कहना है कि यह आरोप गलत है कि हूटिंग में उसका कोई हाथ है। पार्टी का कहना है कि जहां जहां हूटिंग हुई वहां हम अपने कार्यकर्ताओं को लेकर नहीं गये थे और यह सब कुछ स्थानीय लोगों ने ही किया। दूसरी ओर विपक्ष का कहना है कि आम चुनाव के दौरान भाजपा की ओर से प्रशिक्षित लोग ऐसी सभाओं में योजनाबद्ध तरीके से लाये जाते हैं ताकि वह माहौल भाजपामय बना सकें। हूटिंग विवाद की जो प्रतिक्रिया हुई वह लोकतंत्र को सही दिशा में ले जाती नहीं दिख रही। महाराष्ट्र में जहां कांग्रेस कार्यकर्ताओं की ओर से प्रधानमंत्री को काले झंडे दिखाये गये वहीं झारखंड में झामुमो कार्यकर्ताओं ने केंद्रीय मंत्रियों के कार्यक्रमों का विरोध करने के ऐलान के तहत खान मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को काले झंडे दिखाये जिस पर भाजपा-झामुमो कार्यकर्ताओं की भिडन्त में कई लोग घायल भी हो गये। झामुमो ने हूटिंग के विरोध में बंद का ऐलान भी किया था लेकिन यूपीएससी परीक्षा के चलते इसे वापस ले लिया गया। अभी जिन राज्यों में चुनाव होने हैं वहां पर भी यदि हूटिंग प्रकरण दोहराये गये तो संघर्ष बढ़ना संभव है। मोदी सरकार के 100 दिनों के भीतर केंद्र-राज्य संबंध जिस दिशा में जा रहे हैं, हालात ऐसे ही रहे तो पांच साल के दौरान क्या होगा, इसकी कल्पना करना मुश्किल नहीं है। यह निश्चित है कि अनुशासन प्रिय प्रधानमंत्री मोदी यदि कड़ा रुख अख्तियार कर लें तो हूटिंग की घटनाएं रुक सकती हैं। यहां भाजपा को यह सोचना चाहिए कि भले ऐसे प्रकरणों के पीछे उसका हाथ नहीं हो लेकिन यदि कोई अन्य पार्टी का मुख्यमंत्री सरकारी कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री के खिलाफ हूटिंग कराना शुरू कर दे तो बड़ी ही असहज स्थिति हो जाएगी और स्थिति को संभालने में कड़ी मशक्कत करनी होगी। सबका भला इसी में है कि इस पर शुरुआती दौर में ही पूरी तरह रोक लगा दी जाए। ऐसे प्रकरणों से संसदीय मर्यादाओं का उल्लंघन तो होता ही है साथ ही यह देश में लोकतंत्र की जड़ों को और मजबूत बनाने के लिहाज से सही भी नहीं है।

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