सोमवार, 27 सितंबर 2010

अपील

देश का अपमान
राष्ट्रीय नेटबाल टीम की खिलाड़ी प्रीती बंछोर के साथ जिस प्रकार का व्यवहार किया गया वह निंदनीय है.पहले प्रीती का चयन फिर टीम से बाहर करना प्रीती का ही अपमान नहीं ,पुरे छत्तीसगढ़ का अपमान है.प्रीती के स्थान पर एक कमजोर खिलाड़ी का चयन कर देश के साथ भी धोखा किया गया है.मेघा चौधरी का चयन सिर्फ इसलिए कर दिया गया कि वह एक चयनकर्ता की रिश्तेदार है.ऐसे चयन से क्या टीम मजबूत होगी चयन में रिश्ते नहीं प्रतिभा देखी जानी चाहिए.आइये हम प्रीती के साथ खड़े हों ओउर आवाज बुलंद करें.

रविवार, 26 सितंबर 2010

कहानी

दानवीर कर्ण का नियम
बात उन दिनों की है जब महाराज युधिष्ठिर इंद्रप्रस्थ पर राज्य करते थे। राजा होने के नाते वे काफी दान-पुण्य भी करते थे। धीरे-धीरे उनकी प्रसिद्धि दानवीर के रूप में फैलने लगी और पांडवों को इसका अभिमान होने लगा। कहते हैं कि भगवान दर्पहारी होते हैं। अपने भक्तों का अभिमान, तो उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं। एक बार श्रीकृष्ण इंद्रप्रस्थ पहुंचे। भीम व अजरुन ने उनके सामने युधिष्ठिर की प्रशंसा शुरू की। दोनों ने बताया कि वे कितने बड़े दानी हैं।

तब कृष्ण ने उन्हें बीच में ही टोक दिया और कहा, ‘लेकिन हमने कर्ण जैसा दानवीर और नहीं सुना।’ पांडवों को यह बात पसंद नहीं आई। भीम ने पूछ ही लिया, ‘भला वो कैसे?’ कृष्ण ने कहा कि ‘समय आने पर बतलाऊंगा।’ बात आई-गई हो गई। कुछ ही दिनों में सावन शुरू हो गए व वर्षा की झड़ी लग गई। उस समय एक याचक युधिष्ठिर के पास आया और बोला, ‘महाराज! मैं आपके राज्य में रहने वाला एक ब्राह्मण हूं।
आज मेरा व्रत है और हवन किए बिना मैं कुछ भी नहीं खाता-पीता। कई दिनों से मेरे पास यज्ञ के लिए चंदन की लकड़ी नहीं है। यदि आपके पास हो तो, कृपा कर मुझे दे दें। अन्यथा मैं हवन पूरा नहीं कर पाऊंगा और भूखा-प्यासा मर जाऊंगा।’ युधिष्ठिर ने तुरंत कोषागार के कर्मचारी को बुलवाया और कोष से चंदन की लकड़ी देने का आदेश दिया।
संयोग से कोषागार में सूखी लकड़ी नहीं थी। तब महाराज ने भीम व अजरुन को चंदन की लकड़ी का प्रबंध करने का आदेश दिया। लेकिन काफी दौड़-धूप के बाद भी सूखी लकड़ी की व्यवस्था नहीं हो पाई। तब ब्राह्मण को हताश होते देख कृष्ण ने कहा, ‘मेरे अनुमान से एक स्थान पर आपको लकड़ी मिल सकती है, आइए मेरे साथ।’ ब्राह्मण की आखों में चमक आ गई।
भगवान ने अजरुन व भीम को भी इशारा किया, वेष बदलकर वे भी ब्राह्मण के संग हो लिए। कृष्ण सबको लेकर कर्ण के महल में गए। सभी ब्राह्मणों के वेष में थे, अत: कर्ण ने उन्हें पहचाना नहीं। याचक ब्राह्मण ने जाकर लकड़ी की अपनी वही मांग दोहराई। कर्ण ने भी अपने भंडार के मुखिया को बुलवाकर सूखी लकड़ी देने के लिए कहा, वहां भी वही उत्तर प्राप्त हुआ।
ब्राह्मण निराश हो गया। अजरुन-भीम प्रश्न-सूचक निगाहों से भगवान को ताकने लगे। लेकिन वे अपनी चिर-परिचित मुस्कान लिए बैठे रहे। तभी कर्ण ने कहा, ‘हे देवता! आप निराश न हों, एक उपाय है मेरे पास।’ देखते ही देखते कर्ण ने अपने महल के खिड़की-दरवाज़ों में लगी चंदन की लकड़ी काट-काट कर ढेर लगा दी, फिर ब्राह्मण से कहा, ‘आपको जितनी लकड़ी चाहिए, कृपया ले जाइए।’ कर्ण ने लकड़ी पहुंचाने के लिए ब्राह्मण के साथ अपना सेवक भी भेज दिया। ब्राह्मण लकड़ी लेकर कर्ण को आशीर्वाद देता हुआ लौट गया। पांडव व श्रीकृष्ण भी लौट आए।
वापस आकर भगवान ने कहा, ‘साधारण अवस्था में दान देना कोई विशेषता नहीं है, असाधारण परिस्थिति में किसी के लिए अपने सर्वस्व को त्याग देने का ही नाम दान है। अन्यथा चंदन की लकड़ी के खिड़की-द्वार तो आपके महल में भी थे।’ इस कहानी का तात्पर्य यह है कि हमें ऐसे कार्य करने चाहिए कि हम उस स्थिति तक पहुंच जाएं जहां पर स्वाभाविक रूप से जीव भगवान की सेवा करता है।
हमें भगवान को देखने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए, बल्कि अपने को ऐसे कार्यो में संलग्न करना चाहिए कि भगवान स्वयं हमें देखें। केवल एक गुण या एक कार्य में अगर हम पूरी निष्ठा से अपने को लगा दें, तो कोई कारण नहीं कि भगवान हम पर प्रसन्न न हों। कर्ण ने कोई विशेष कार्य नहीं किया, किंतु उसने अपना यह नियम भंग नहीं होने दिया कि उसके द्वार से कोई निराश नहीं लौटेगा।

भागवतः 77

कर्कश वाणी सभी दु:खों का कारण है
पं. विजयशंकर मेहता

मनु महाराज के पुत्र उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव ने जब अपने पिता को सिंहासन पर बैठा देखा तो वह भी राजसिंहासन पर चढऩे का प्रयास करने लगा। पांच साल के बालक ने कोशिश की कि अपने पिता की गोद में बैठ जाए। उत्तानपाद ने सोचा इसको गोदी में बैठा लेता हूं लेकिन जैसे ही प्रयास करने लगे, उनकी दूसरी पत्नी सुरुचि अड़ गई। सुरुचि ने कहा ध्रुव तू पिता की गोद में नहीं बैठ सकता। उसने कहा- क्यों मां? वह बोली यदि तुझे पिता की गोद में बैठना है तो तुझे सुरुचि के गर्भ से जन्म लेना पड़ेगा, नहीं तो भगवान की पूजा कर फिर वही देखेंगे।
सौतेली मां ने ऐसी कर्कश वाणी बोली जिसे सुन ध्रुव परेशान हो गया। रोने लगा और चूंकि राजा उत्तानपाद सुरुचि के प्रभाव में थे तो पत्नी को मना भी नहीं कर सके, क्योंकि वो जानते थे कि अगर मैंने ध्रुव को गोदी में उठाया तो ये सारा घर माथे पर उठा लेगी। वह सुरुचि का स्वभाव जानते थे। ध्रुव रोते-रोते अपनी मां सुनीति के पास चला गया। उसने कहा मां से- मैं आज पिताजी की गोद में बैठने गया तो मां ने मुझे बैठने नहीं दिया और ऐसा कहा है कि जा तू भगवान को पा ले तो तू अधिकारी बनेगा। मां भगवान कहां मिलते हैं।
सुनीति ने कहा ध्रुव तू सौभाग्यशाली है कि तेरी सौतेली मां ने तुझसे यह कहा कि जा भगवान को प्राप्त कर। तेरा बहुत सौभाग्य है। तू भगवान को प्राप्त कर। वो यह सीखा रही है। पांच साल का बच्चा जंगल में चल दिया। ऐसा कहते हैं जब वो जंगल की ओर जा रहा था उसके मन में विचार आ रहा था कि भगवान कैसे मिलते हैं, भगवान कहां मिलेंगे, कैसे प्राप्त होंगे और चल दिया।
यहां एक बात ग्रंथकार कह रहे हैं घर-परिवार में सुरुचि ने कर्कश वाणी बोली और ध्रुव का दिल टूट गया। समाज में, परिवार में, निजी संबंधों में कर्कश वाणी का उपयोग न करें। ये बहुत घातक है । शब्दों का नियंत्रण रखिए। जीवन में कभी भी कर्कष वाणी न बोलिए। भक्त की वाणी हमेशा निर्मल होती है इसलिए ध्रुव चला जा रहा है और भगवान को ढूंढ़ रहा है। उसे मार्ग में नारदजी मिल गए।

चमत्कार

ऐसे बुलाएंगे तो दौड़े आएंगे भगवान
पं. विजयशंकर मेहता

भगवान ऐसी व्यवस्था का नाम है जिसमें भरोसा रखो तो उसे देख भी सकते हैं और अगर भरोसा नहीं हो तो लाख पुकारें वो नहीं आएंगा। भगवान किसी मंत्र या पूजा से कभी खुश नहीं हो सकता जब तक की उसमें भावनाओं का प्रसाद नहीं चढ़ाया गया हो। भगवान को पुकारना है तो दिल में ऐसी भावनाओं को जगाना पड़ेगा फिर पुकारिए, भगवान खींचे चले आएंगे।
जिनका शरीर, सांस और मन पर नियंत्रण है उनका ध्यान घटना है और यह ध्यान की अवस्था उन्हें सिद्ध योगी सा बना देती है। ऐसी दिव्य स्थिति में उनसे जो कृत्य होते हैं फिर वो चमत्कार की श्रेणी में आते हैं।अबुलहसन उच्च दर्जे के मुस्लिम फकीर हुए हैं। इनके मुंह से जो अलफाज निकलते थे वो सच हो जाते थे। जिनके जीवन में ध्यान सही रूप से उतर जाए तो उनकी वाणी सिद्ध हो जाती है। एक बार हज यात्रियों को अपने ऊपर खतरा लगा। उन्होंने अबुल हसन के पास जाकर कहा कोई ऐसी दुआ बता दीजिए जिससे सफर में हमारे ऊपर कोई खतरा न रहे। फकीर ने जवाब दिया जब कोई मुसीबत हो तो अबुल हसन को याद कर लेना। कुछ को विश्वास आया कुछ ने बात हंसी में उड़ा दी। रास्ते में डाकू आ गए। एक धनवान को अबुल हसन की बात याद आ गई और उसने फकीर को याद किया। कहते हैं वह ओझल हो गया, डाकुओं को नजर नहीं आया। डाकुओं के जाने के बाद वह फिर नजर आ गया। उसका धन बच गया।
जब सबने पूछा तो उसने कहा मैंने फकीर अबुल हसन को याद कर लिया था। लोगों ने बाद में अबुल हसन से पूछा हमने खुदा को याद किया और इस धनवान ने आपको याद किया था। ये बच गया हम लुट गए ऐसा क्यों? फकीर ने जवाब दिया आप लोग खुदा को जुबान से याद करते हो और मैं दिल से बस उसी का फर्क था।दिल से इबादत ऐसे ही नहीं हो जाती है। उसके लिए शरीर, सांस और मन में एकसाथ शांति लाना पड़ती है। इसका नाम ध्यान होता है।

पार्वण श्राद्ध

जब पितरों की मृत्यु तिथि याद न हो..
श्राद्ध पक्ष यानि पार्वण श्राद्ध में पूर्वजों और मृत परिजनों की मृत्यु तिथि पर जल से तर्पण और श्राद्ध करते हैं। श्राद्ध सही तिथि और समय पर किया जाना पितरों की तृप्ति के लिए बहुत महत्व रखता है। किंतु अनेक लोग श्राद्ध की सही तिथि से जुड़ी धर्म परंपराओं को नहीं जानते। इसलिए यहां बताया जा रहा है श्राद्धपक्ष की किस तिथि पर किन पितरों का श्राद्ध पितृशांति के लिए शुभ होता है-

- अगर किसी परिजन की मृत्यु किसी माह की चतुर्दशी या चौदस तिथि को स्वाभाविक रुप से हुई है तो उनका श्राद्ध पितृपक्ष की तेरस यानि त्रयोदशी तिथि या अमावस्या को करें।
- परिवार के किसी युवा सदस्य की मौत आत्महत्या, एक्सीडेंट, हत्या, सांप के काटने या किसी हथियार से हुई है तो ऐसी अकाल मृत्यु के लिए श्राद्धपक्ष की चतुर्दशी को ही श्राद्ध करना चाहिए।
- श्राद्धपक्ष की नवमी तिथि पिता के जीवित रहते माता और परिवार की विवाहित महिला की मृत्य के बाद किए जाने वाले श्राद्ध के लिए श्रेष्ठ है।
- अगर माता की मृत्यु पूर्णिमा के दिन हुई हो तो अष्टमी, द्वादशी या अमावस्या पर किया जाना चाहिए।
- संन्यासी श्राद्ध यानि जिनके पिता ने संन्यास लेकर साधु बन गए हो उनका श्राद्ध द्वादशी तिथि पर किया जाता है।
- अगर किसी परिजन की मृत्य पूर्णिमा तिथि पर होती है तो उसका श्राद्ध सर्वपितृ अमावस्या पर किया जाना चाहिए। - अगर कोई परिवार पितृदोष से कलह और दरिद्रता से गुजर रहा हो और पितृदोष शांति के लिए अपने पितरों की मृत्यु तिथि मालूम न हो तो वह सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध करे।
- आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा या एकम तिथि पर नाना-नानी का श्राद्ध करना चाहिए।

बहस -७

देशद्रोही अरुंधती
अरुंधती देवी ने कहा है,कि कश्मीर कभी भारत का अंग नहीं था.इसे देशद्रोह माना जाना चाहिए.अरुंधती देवी का यह अपराध अछम्य है. कश्मीर भारत का अंग है. और हमेशा ही रहेगा.

रविवार, 19 सितंबर 2010

आज की बहस

बेशरम साधू संत
धर्म और कर्म के बहाने अपराधियों से पैसा लेने वाले या ठगने वाले साधू संतों
को कतई बख्शा नहीं जाना चाहिए.आज तक ने स्टिंग आपरेसन कर कुछ बड़े धर्म के
ठेकेदारों को बेनकाब किया है.बधाई के पात्र है. ऐसे साधू संतो का जनता बायकाट करे
आशा राम बापू ने पैसा लेने को छोड़कर सब कुछ स्वीकार कर लिया .जय हो आशाराम
दंड के हकदार हो..

शनिवार, 18 सितंबर 2010

कविता

जब सोचा था तुमने मेरे बारे में

फाल्गुनी

जब सोचा था तुमने
दूर कहीं मेरे बारे में
यहाँ मेरे हाथों की चूड़‍ियाँ छनछनाई थी।

जब तोड़ा था मेरे लिए तुमने
अपनी क्यारी से पीला फूल
यहाँ मेरी जुल्फें लहराई थी।

जब महकी थी कोई कच्ची शाख
तुमसे लिपट कर
यहाँ मेरी चुनरी मुस्कुराई थी।

जब निहारा था तुमने उजला गोरा चाँद
यहाँ मेरे माथे की
नाजुक बिंदिया शर्माई थी।

जब उछाला था तुमने हवा में
अपना नशीला प्यार
यहाँ मेरे बदन में बिजली सरसराई थी।

तुम कहीं भी रहो और
कुछ भी करों मेरे लिए,
मेरी आत्मा ले आती है
तुम्हारा भीना संदेश
मेरे जीवन में
प्यार के नाम पर बस यही है शेष।

एकतरफा इश्क

..... तो मजा देता है इश्क
कोचिंग में बी.कॉम फाइनल ईयर के कई छात्र एक साथ बैठकर पढ़ते हैं। पढ़ाई को लेकर गंभीरता तो केवल एग्जाम्स के दिनों में ही दिखाई देती है। खाली समय में गप्पे लड़ाते हुए चर्चा कौन सी लड़की सबसे सुंदर है, किसका फिगर अच्छा है, किसके कट्‍स अच्छे हैं और किस लड़के पर सबसे ज्यादा लड़कियाँ मर मिटने को तैयार हैं।

सागर को भी देखकर और उसके व्यवहार से कोई भी अप्रभावित नहीं रहा। अनुष्का को भी लगा जैसे कि वह उसी के लिए बना है। लेकिन लड़कियाँ उसके आगे-पीछे मक्खियों की तरह भिनभिनाती रहती हैं। वह इन लड़कियों को ज्यादा भाव भी नहीं देता। इससे अनुष्का को कोई फर्क नहीं पड़ता।

अनुष्का अपने मन मंदिर में बैठाकर उसी को पूजने लगी है। घर पर, क्लास में, उठते-बैठते हर घड़ी उसकी आँखों के सामने बस सागर का चेहरा छाया रहता है । वह खुद भी जानती है कि अन्य लड़कियों की तरह उसकी भी दाल गलने वाली नहीं।

करियर से खिलवाड़ करने वाली अनुष्का न घर की रही न घाट की। न तो प्यार मोहब्बत में सफल हो सकी और न ही पढ़ाई में मन लगा सकी।

महीनों तक सकारात्मक जवाब न मिलते देख अवसाद की स्थिति में चली गई। कई मनोचिकित्सकों की मदद से ठीक होने में 2-3 महीने का समय लगा और अंतत: उसने सच्चाई को स्वीकार किया। आपने किसी लड़के या लड़की को किसी भी कारण से पसंद किया और एक आयु वर्ग में ऐसा होना स्वाभाविक भी है। लेकिन यह जरूरी तो नहीं जिसे आप चाहें वह भी आपको चाहने लगे। इससे अच्‍छा है आप रिश्तों की हकीकत को समझें और खुले दिल से वास्तविकता को स्वीकार करें जैसा कि देर-सवेर अनुष्का ने किया।

शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

पहली नजर का प्यार

रूहानी प्यार कभी खत्म नहीं होता
कुलवंत हैप्पी
वो नजरें झुकाकर क्लासरूम की तरफ बढ़ रही है, उसने किताबें अपने सीने के साथ लगाई हुई हैं। जैसे कोई माँ अपने बच्चे को सीने से लगाकर चलती है। इतने में वो एक नौजवान लड़के के साथ टकरा जाती है और किताबें नीचे गिरती हैं, दोनों के मुँह में से एक ही अल्फाज सुनाई देता है सॉरी। बस इस दौरान दोनों की निगाहें एक दूसरे से टकराती हैं, और पहली ही नजर में प्यार हो जाता है। कुछ ऐसा ही दृश्य होता है हिन्दी फिल्मों में, बस जगह और हालात बदल दिए जाते हैं, किताबों की जगह कुछ और आ जाता है। मगर लड़का लड़की आपस में अचानक टकराते हैं और वहाँ से ही प्यार की ज्वाला भड़क उठती है। क्या इसे ही प्यार कहते हैं? मेरा जवाब तो नहीं है, औरों का क्या होगा पता नहीं।

पहली नजर में प्यार कभी हो ही नहीं सकता, वह तो एक आकर्षण है एक दूसरे के प्रति, जो प्यार की पहली सीढ़ी से भी कोसों दूर है। जैसे दोस्ती अचानक नहीं हो सकती, वैसे ही प्यार भी अचानक नहीं हो सकता। प्यार भी दोस्ती की भाँति होता है, पहले पहले अनजानी सी पहचान, फिर बातें और मुलाकातें। सिर्फ एक नए दोस्त के नाते, इस दौरान जो तुम दोनों को नजदीक लेकर आता है वह प्यार है। कुछ लोग सोचते हैं कि अगर मेरी शादी मेरे प्यार से हो जाए तो मेरा प्यार सफल, नहीं तो असफल। ये धारणा मेरी नजर से तो बिल्कुल गलत है, क्योंकि प्यार तो नि:स्वार्थ है, जबकि शरीर को पाना तो एक स्वार्थ है। इसका मतलब तो ये हुआ कि आज तक जो किया एक दूसरे के लिए वो सिर्फ उस शरीर तक पहुँचने की चाह थी, जो प्यार का ढोंग रचाए बिन पाया नहीं जा सकता था।

प्यार तो वो जादू है, जो मिट्टी को भी सोना बना देता है। प्यार वो रिश्ता है, जो हमको हर पल चैन देता है, कभी बेचैन नहीं करता, अगर कुछ बेचैन करता है तो वो हमारा शरीर को पाने का स्वभाव।मेरी नजर में तो प्यार वही है, जो एक माँ और बेटे की बीच में होता है, जो एक बहन और भाई के बीच में या फिर कहूँ बुल्ले शाह और उसके मुर्शद के बीच था। ज्यादातर लड़के और लड़कियाँ तो प्यार को हथियार बना एक दूसरे के जिस्म तक पहुँचना चाहते हैं, अगर ऐसा न हो तो दिल का टूटना किसे कहते हैं, उसने कह दिया मैं किसी और से शादी करने जा रही हूँ या जा रहा हूँ, तो इतने में दिल टूट गया। सारा प्यार एक की झटके में खत्म हो गया, क्योंकि प्यार तो किया था, लेकिन वो रूहानी नहीं था, वो तो जिस्म तक पहुँचने का एक रास्ता था, एक हथियार था। अगर वो जिस्म ही किसी और के हाथों में जाने वाला है तो प्यार किस काम का।

सच तो यह है कि प्यार तो रूहों का रिश्ता है, उसका जिस्म से कोई लेना देना ही नहीं, मजनूँ को किसी ने कहा था कि तेरी लैला तो रंग की काली है, तो मजनूँ का जवाब था कि तुम्हारी आँखें देखने वाली नहीं हैं। उसका कहना सही था, प्यार कभी सुंदरता देखकर हो ही नहीं सकता, अगर होता है तो वह केवल आकर्षण है, प्यार नहीं। माँ हमेशा अपने बच्चे से प्यार करती है, वो कितना भी बदसूरत क्यों न हो, क्योंकि माँ की आँखों में वह हमेशा ही दुनिया का सबसे खूबसूरत बच्चा होता है।

प्यार तो वो जादू है, जो मिट्टी को भी सोना बना देता है। प्यार वो रिश्ता है, जो हमको हर पल चैन देता है, कभी बेचैन नहीं करता, अगर कुछ बेचैन करता है तो वो हमारा शरीर को पाने का स्वभाव। जिन्होंने प्यार के रिश्ते को जिस्मानी रिश्तों में ढाल दिया, उन्होंने असल में प्यार का असली सुख गँवा दिया। आज उनको वह पहले की तरह उसका पास बैठकर बातें करना बोर करने लगा होगा, अब उसको निहारने की इच्छा मर गई, क्योंकि उसके शरीर को पाने के पहले तो उसको निहारते ही आए हैं, अब उसमें नया क्या है, जिसको निहारें।

एक वो जिन्होंने प्यार को हमेशा रूह का रिश्ता बनाकर रखा, और जिस्मानी रिश्तों में उसको ढलने नहीं दिया, उनको आज भी वो प्यार याद आता है, उसकी जिन्दगी में आ रहे बदलाव उनको आज भी निहारते हैं। उसको कई सालों बाद फिर निहारना आज भी उनको अच्छा लगता है। रूहानी प्यार कभी खत्म नहीं होता। वो हमेशा हमारे साथ कदम दर कदम चलता है। वो दूर रहकर भी हमको ऊर्जावान बनाता है।

जब किसी से प्यार होता है

दोस्ती के बीच में आ जाता है प्यार
एक अध्ययन में पाया गया है कि जब आपको किसी से प्यार होता है तो आप अपने कम से कम दो दोस्त खो देते हैं। हम सब यह जानते हैं कि जब किसी से प्यार होता है तो हमारे पास दूसरों के लिए बहुत कम समय बचता है, लेकिन अब इस बात को वैज्ञानिकों ने भी प्रमाणित कर दिया है।
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने लोगों से उनके क़रीबी दोस्तों और प्यार होने के बाद करीबी दोस्तों की संख्या में आए बदलाव के बारे में सवाल पूछे।
दोस्तों का दायरा : इस दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि प्रेमी या प्रेमिका के आने के बाद पाँच करीबी दोस्तों की संख्या घटकर तीन रह गई।
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में विकासवादी मानव विज्ञान के प्रोफेसर रॉबिन डुनबर इसका विश्लेषण करते हुए बताते हैं, 'वे लोग जो किसी से प्यार करते हैं, जिनके औसतन पाँच करीबी दोस्त हैं, प्रेम में पड़ने के बाद उनके चार दोस्त ही रह जाते हैं।'
वे कहते हैं, 'आपके जीवन ने जो नया व्यक्ति आया है, आप उसके बारे में ही सोचते रहते हैं, इसका मतलब यह हुआ कि आपने दो लोगों को खो दिया।'
इस अध्ययन को अस्टम में आयोजित ब्रितानी विज्ञान महोत्सव में पेश किया गया। इसे अभी हाल ही में प्रकाशित होने के लिए भी भेजा गया है।
प्रोफेसर डुनबर के समूह ने सामाजिक नेटवर्क का अध्ययन किया और देखा कि कैसे हम उसके आकार और संरचना का प्रबंधन करते हैं।
उन्होंने पहले ही यह बता दिया था कि किसी व्यक्ति के डेढ़ सौ तक दोस्त हो सकते हैं, सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि वहाँ हर व्यक्ति के 120-130 दोस्त हैं। दोस्तों की इस संख्या को चार और छह के छोटे-छोटे समूहों में विभाजित किया जा सकता है।
ये ऐसे लोग होते हैं जिन्हें हम हफ्ते में एक बार जरूर देखते हैं और संकट के समय हम इनके पास जाते हैं, इसके अगले घेरे में वे लोग आते हैं जिन्हें हम महीने में एक बार देखते हैं यानी कि 'हमदर्द समूह'।
ये ऐसे लोग हैं जिनकी अगर कल मौत हो जाए तो हमें दुख होगा और परेशान हो जाएँगे। अध्ययन में 18 साल से अधिक उम्र के 540 लोगों से सवाल-जवाब किए गए। उनसे उनके संबंधों पर रोमाटिंक रिश्ता शुरू होने के बाद पड़ने वाले दबाव के बारे में पूछा गया।

मंगलवार, 14 सितंबर 2010

मंत्री जी सीखो

ये क्या खेलमंत्री जी --
खेलमंत्री एम् एस गिल ने आज स्वर्ण पदक विजेता सुशील कुमार के गुरु का उनके ही सामने अपमान किया,जिन्होंने सुशील को इस मुकाम पर पहुचाया काफी दुःख हुआ यह समाचार देखकर .गिल को कोई हक़ नही बनता किसी को अपमानित करने का.एक पत्रकार होने के नाते मेरी गिल को सलाह है की माफी मांगकर बड़प्पन का परिचय दे.

शनिवार, 11 सितंबर 2010

एक किताब का दावा

ये कुरान असली नहीं

- जुबैर अहमद (वॉशिंगटन)

फ्लोरिडा में क़ुरान जलाए जाने के एक पादरी टेरी जोन्स की धमकी के बाद अब 21 सितंबर को अमेरिका में 'द टॉप सीक्रेट' नाम से एक उपन्यास छपने जा रहा है जिसमें मुसलमानों की इस पवित्र किताब के असली होने पर प्रश्न चिन्ह लगाया गया है।

मुसलमानों को दृढ़ विश्वास है कि क़ुरान अल्लाह के शब्द हैं जो उन्होंने पैगम्बर मोहम्मद के जरिए प्रकट किए हैं। लेकिन इस किताब की लेखिका टेरी केलहॉक कहती हैं कि क़ुरान को कई बार बदला गया है और जो क़ुरान इस समय मौजूद है वह इसका वास्तविक स्वरूप नहीं है। वर्जीनिया के कारी इरशाद को पूरा क़ुरान याद है।
वे कहते हैं, 'शुरू के जमाने से ही क़ुरान को कंठस्थ करने की परंपरा रही है इसीलिए इसमें बदलाव लाना संभव ही नहीं। लोगों ने कोशिश की, लेकिन वे कामयाब नहीं हुए।'
'हकीकत पर आधारित'
हालाँकि यह एक उपन्यास है, लेकिन लेखिका टेरी केलहॉक के अनुसार 'यह हकीकत पर आधारित है'। उनका कहना है, 'आज के मुसलमान क़ुरान का जो एडीशन पढ़ते हैं वो दरअसल 1924 में मिस्र की राजधानी काहिरा में प्रकाशित हुआ था। यह प्राचीन क़ुरान से अलग है।'
अपने दावों को सही साबित करने के लिए उन्होंने कहा कि बलात्कार पर पत्थर मारने और माँ का दूध पिलाने पर जो पंक्तियाँ प्रकट हुई थीं वो क़ुरान का हिस्सा नहीं हैं। इस तरह के दावे पहले भी किए जा चुके हैं, लेकिन इससे मुसलामानों के अकीदे पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
इमाम सैयद शहाब : वो कहती हैं, 'पैगम्बर के मरने के बाद अव्यवस्था के माहौल में यह पंक्तियाँ खो गईं। आयशा (पैगम्बर की पत्नी) के बिस्तर के नीचे यह पंक्तियाँ रखी थीं जो आयशा के अनुसार एक जानवर खा गया। तो बलात्कार करने पर पत्थर मारने की सजा शरिया का हिस्सा है, लेकिन क़ुरान से ये पंक्तियाँ गायब हैं।'
जब उनसे पूछा कि उनके इन दावों से मुसलामानों को ठेस नहीं पहुँचेगी तो उन्होंने कहा, 'यह सच है। इसे टेरी केलहॉक ने इजाद नहीं किया है तो सच से डरना कैसा?'
लेकिन उन्होंने साफ किया कि वो यह नहीं कह रही हैं कि क़ुरान के शब्द ईश्वरीय या खुदा के शब्द नहीं हैं पर इस उपन्यास के जरिए यह कोशिश कर रही हैं कि वो लोगों को बता सकें कि क़ुरान में कई बार फेरबदल किया गया है।
वॉशिंगटन के एक इमाम सैयद शहाब ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, 'इस तरह के दावे पहले भी किए जा चुके हैं, लेकिन इससे मुसलामानों के अकीदे पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।'
'द टॉपकैपी सीक्रेट' नाम की यह किताब अमेजन डॉटकॉम पर बिकनी शुरू हो गई है।

बुधवार, 8 सितंबर 2010

जिंदगी और खुशी

तनख्वाह बढ़ने से हो जाती हैं खुशियां कम!

कहते हैं कि पैसे से हर खुशी खरीदी जा सकती है। परंतु एक नए अध्ययन में इससे अलग दावा किया गया है। दावा यह है कि वेतन बढ़ने के साथ जिंदगी में खुशी के बढ़ने की भी एक सीमा है। अधिक वेतन पाने वाले लोगों की जिंदगी से खुशियां भी कम हो जाती हैं।

इस अध्ययन को अमेरिकी वैज्ञानिकों ने अंजाम दिया है। इसमें 1000 पेशेवर लोगों को शामिल किया गया। अध्ययन के दौरान इन लोगों के वेतन और इनकी जिंदगी की खुशियों के बारे में जाना गया। इसके बाद शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे कि खुशियों का बहुत ज्यादा ताल्लुक वेतन से नहीं है।
स्थानीय समाचार पत्र 'डेली मेल' के अनुसार इस अध्ययन में पाया गया कि 50,000 डॉलर प्रति वर्ष वेतन पाने वाले बेहद खुश और अपने जीवन से संतुष्ट दिखाई दिए। उनमें तनाव भी नहीं दिखा। वहीं 75,000 डॉलर प्रति वर्ष का वेतन पाने वाले अपेक्षाकृत कम खुश नजर आए और उनकी जिंदगी में तनाव ज्यादा था।
अध्ययन में कहा गया, ''जो लोग एक लाख अथवा ढेढ़ लाख का वेतन पाते हैं उनमें इन सबसे ज्यादा तनाव होता है। उन्हें अपनी जिंदगी में खुशियां तलाशने का वक्त नहीं मिलता। ये लोग 50,000 डॉलर वेतन पाने वाले से ज्यादा खुश नहीं पाए गए।''
इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डॉक्टर क्रिस ब्यॉस ने कहा, ''ज्यादा वेतन पाने वालों में खुशी के अभाव की वजह से उनमें आत्मसंतुष्टि की कमी भी है। अगर कोई व्यक्ति 10 लाख डॉलर सालाना की कमाई करता है और उसके दोस्त का वेतन 20 लाख डॉलर सालाना है तो वह खुश नहीं रह सकता।''

मंगलवार, 7 सितंबर 2010

भगवान गणेश पर विशेष

क्या दो देवता हैं गणेश और गणपति?
हिन्दू धर्म ग्रंथों में प्रसंग है कि भगवान शिव के विवाह में सबसे पहले गणपति की पूजा हुई थी। यह सुनकर मन में यह जानने कि उत्सुकता होती है कि जब भगवान गणेश शिव-पार्वती के पुत्र हैं तो उनके विवाह के पहले ही उनकी पूजा कैसे की गई। लोक मान्यताओं में भी गणेश और गणपति को एक देवता के रुप में जाना जाता है। किंतु धर्म ग्रंथ में गणेश और गणपति को अलग-अलग रुप के बारे में बताया गया हैं। जानते हैं अंतर को -

शास्त्रों के अनुसार गणेश का अर्थ है - जगत के सभी प्राणियों का ईश्वर या स्वामी। इसी तरह गणपति का मतलब होता है - गणों यानि देवताओं का मुखिया या रक्षक।
गणपति को शिव, विष्णु की तरह ही स्वयंभु, अजन्मा, अनादि और अनंत यानि जिनका न जन्म हुआ न ही अंत है, माना गया है।
श्री गणेश इन गणपति का ही अवतार हैं। जैसे पुराणों में विष्णु का अवतार राम, कृष्ण, नृसिंह का अवतार बताया गया है। वैसे ही गणपति, गणेश रुप में जन्में और अलग-अलग युगों में अलग-अलग रुपों में पूजित हुए। विनायक, मोरेश्वर, धूम्रकेतु, गजानन कृतयुग, त्रेतायुग में पूजित गणपति के ही रुप है। यही कारण है कि काल अन्तर से श्रीगणेश जन्म की भी अनेक कथाएं हैं।
सनातन धर्म में वैदिक काल से ही पांच देवों की पूजा लोकप्रिय है। इनमें गणपति पंच देवों में प्रमुख माने गए हैं। इन सब बातों में एक बात साफ है कि गणपति हो या गणेश वास्तव मे दोनों ही शक्ति का नाम है जो हर कार्य मे सिद्ध यानि कुशल और सफल बनाती है।

ऐसा रुप क्यों है गणेश का?

हर धार्मिक कर्म, पूजा, उपासना या शुभ और मंगल कार्यों में स्वस्तिक का चिन्ह बनाया जाता है। लोक भाषा में यह मंगल का प्रतीक है। लेकिन यहां जानते हैं कि वास्तव में शुभ कार्यों में स्वस्तिक बनाने का क्या कारण है -
दरअसल धार्मिक नजरिए से स्वस्तिक भगवान श्री गणेश का साकार रुप है। इसमें बाएं भाग में गं बीजमंत्र होता है, जो भगवान श्री गणेश का स्थान माना जाता है। इसकी आकृति में चार बिन्दियां भी बनाई जाती है। जिसमें गौरी, पृथ्वी, कूर्म यानि कछुआ और अनन्त देवताओं का वास माना जाता है।

स्वस्तिक के भगवान गणेश का रुप होने का प्रमाण दुनिया के सबसे पुराने ग्रंथ माने जाने वाले वेदों में आए शांति पाठ से भी होती है, जो हर हिन्दू धार्मिक रीति-रिवाजों में बोला जाता है। यह मंत्र है -
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा: स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा:
स्वस्तिनस्ता रक्षो अरिष्टनेमि: स्वस्ति नो बृहस्पर्तिदधातु
इस मंत्र में चार बार स्वस्ति शब्द आता है। जिसका मतलब होता है कि इसमें भी चार बार मंगल और शुभ की कामना से श्री गणेश का ध्यान और आवाहन किया गया है।
इसमें व्यावहारिक जीवन का पक्ष खोजें तो पाते हैं कि जहां शुभ, मंगल और कल्याण का भाव होता है, वहीं स्वस्तिक का वास होता है सरल शब्दों में जहां परिवार, समाज या रिश्तों में प्यार, सुख, श्री, उमंग, उल्लास, सद्भाव, सुंदरता और विश्वास का भाव हो। वहीं सुख और सौभाग्य होता है। इसे ही जीवन पर श्री गणेश की कृपा माना जाता है यानि श्री गणेश वहीं बसते हैं। इसलिए श्रीगणेश को मंगलकारी देवता माना गया है।

लाईफ बना दे ऐसी गणेश पूजा
भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि (इस बार 11 सितंबर) श्री गणेश का जन्मदिन होने से गणपति उपासना का विशेष महत्व है। इस विनायकी चतुर्थी पर भगवान श्री गणेश की प्रसन्नता के पूरी आस्था और श्रद्धा से व्रत, उपवास, पूजा-अर्चना की जाती है। जानते हैं इसी गणेश पूजा की सरल विधि -

- प्रात:काल स्नान एवं नित्यकर्म करें।
- मध्यान्ह के समय शुभ मुहूर्त देखकर अपनी शक्ति के सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान गणेश की प्रतिमा घर, कार्यालय या देवालय में स्थापित करें।
- श्रीगणेश पूजा स्वयं या फिर किसी विद्वान ब्राह्मण से कराएं। जिसमें संकल्प मंत्र के बाद षोड़शोपचार पूजन-आरती करें। इस पूजन में भगवान श्री गणेश को सोलह प्रकार की पूजन सामग्री अर्पित की जाती है। इनमें धूप, दीप, गंध, पुष्प, अक्षत के साथ विशेष रुप से सिंदूर, दूर्वा, लाल चंदन जरुर चढ़ाना चाहिए।
- पूजा में तुलसी दल भगवान श्री गणेश को नहीं चढ़ाना चाहिए। यह शास्त्रों में वर्जित बताया गया है।
- गणेशजी की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाएं। गणेश मंत्र बोलते हुए 21 दुर्वा-दल चढ़ाएं।
ऊँ गणाधिपायनम:। ऊँ उमापुत्रायनम:।
ऊँ विघ्ननाशायनम:। ऊँ विनायकायनम:।
ऊँ ईशपुत्रायनम:। ऊँ सर्वसिद्धिप्रदायनम:।
ऊँ एकदन्तायनम:। ऊँ इभवक्त्रायनम:।
ऊँ मूषकवाहनायनम:। ऊँ कुमारगुरवेनम:।
- भगवान गणेश का मंत्र ओम गं गणपतये नम: बोलकर भी दुर्वा चढाएं। इस मंत्र का 108 बार जप भी करें।
- गुड़ या बूंदी के 21 लड्डुओं का ही भोग लगाना चाहिए। इनमें से 5 लड्डू मूर्ति के पास चढ़ाएं और 5 ब्राह्मण को दें। बाकी लड्डू प्रसाद रूप में बांट दें।
- पूजा में भगवान श्री गणेश स्त्रोत, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक स्त्रोत आदि का पाठ करें। यह स्त्रोत इस साईट पर उपलब्ध है।
- ब्राह्मण भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा भेंट करने के बाद शाम के समय स्वयं भोजन ग्रहण कर सकते हैं। जहां तक संभव हो उपवास करें।
श्री गणेश की पूजा और आरती अगले दस दिनों तक पूरी श्रद्धा, भाव से करें। धार्मिक दृष्टि से श्री गणेश की ऐसी पूजा सभी भौतिक सुख, सफलता देने वाली होती है।