सोमवार, 15 अक्तूबर 2018

माँ दुर्गा उपासना का माहौल और मी टू अभियान की गूँज

इन दिनों देश में नारी शक्ति की प्रतीक समझी जाने वाली देवी मां दुर्गा की उपासना हो रही है और इसी समय नारी का एक तबका यौन शोषण के मामले पर एकजुट हो रहा है। इन्हीं यौन शोषण के मामलों को उजागर करने के लिए अमेरिका में नाम से शुरू हुआ अभियान दुनिया के अन्य देशों में होता हुआ भारत में भी आया है। एक फिल्म अभिनेत्री के बयान से शुरू हुआ यह किस्सा भारत में इन दिनों सुर्खियां बना हुआ है। विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी स्त्रियां अपने साथ हुए यौन अत्याचार के ब्योरे दे रही हैं और कुछेक मामलों में दोषी को समाज से बहिष्कृत करने या उसे सजा देने की मांग भी कर रही हैं। इस तरह फिल्म, टीवी, मॉडलिंग, पत्रकारिता और साहित्य से लेकर राजनीति, समाजसेवा, व्यवसाय तक से जुड़े कई नामी-गिरामी चेहरों से पर्दा हट रहा है। स्त्रियों के हृदयविदारक किस्से समाज के असंवेदनशील एवं असभ्य होने को दर्शा रहे हैं। 
जहां पांव में पायल, हाथ में कंगन, हो माथे पे बिंदिया... इट हैपन्स ओनली इन इंडिया, जब भी कानों में इस गाने के बोल पड़ते हैं, गर्व से सीना चौड़ा होता है। लेकिन जब उन्हीं कानों में यह पड़ता है कि इन पायल, कंगन और बिंदिया पहनने वाली औरतों के साथ इंडिया के संभ्रांत एवं नामी-गिरामी चेहरे क्या करते हैं, उसे सुनकर सिर शर्म से झुकता है। पिछले कुछ दिनों में इंडिया ने कुछ और ऐसे मौके दिए जब अहसास हुआ कि फिल्मी दुनिया के साथ ही अन्य क्षेत्रों में यौन शोषण कितना पसरा हुआ है। ये बेहद चर्चित या फिर एक दायरे तक सीमित मामले सामने आए हैं वे तो महज बानगी भर हैं। यह सहज ही समझा जा सकता है कि यौन प्रताड़ना का शिकार हुई तमाम महिलाएं ऐसी होंगी जो अपनी आपबीती बयान करने का साहस नहीं जुटा पा रही होंगी। निःसंदेह यह #MeToo अभियान के प्रति भारतीय समाज के रुख-रवैये पर निर्भर करेगा कि यौन प्रताड़ना से दो-चार हुई महिलाएं भविष्य में अपनी आपबीती बयान करने के लिए आगे आती हैं या नहीं?  यौन-शोषण का आरोप लगाने से पहले महिलाओं को भी गंभीर होना होगा, क्योंकि अक्सर ऐसे मामलों में बदला लेने या अपने मन-माफिक न होने, या आर्थिक लाभ या अन्य लाभ के लिये झूठे आरोप भी लगाकर चर्चा में रहने की अनेक महिलाओं की मानसिकता होती है, ऐसी महिलाओं से इन आन्दोलन को नुकसान पहुंच सकता है। यह सावधानी एवं सतर्कता ही इस आन्दोलन को सार्थक एवं सफल बना सकती है। अब इसके लिये क्या किया जाना चाहिए, इस पर भी चिन्तन होना जरूरी है। कुछ मामलों में अपवाद भी हो सकता है जो स्त्री-पुरुष के सम्बन्धों के बीच अविश्वास पैदा करेगा। ऐसा होना भी एक बड़े असन्तुलन एवं इंसानी रिश्तों के बीच दूरियां पैदा कर देगा, जो अधिक घातक हो सकता है। स्त्री-पुरुष दोनों की रजामंदी से हुए यौन संबंध को अपने स्वार्थ के लिये 10-20 वर्ष बाद यौन-शोषण का नाम देना भी इस आन्दोलन की पवित्रता को धूमिल कर सकता है। ये ऐसे प्रश्न हैं जिन पर भी विचार किया जाना चाहिए। अभी तक फिल्म जगत से लेकर राजनीतिक व संगीत क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं ने अपने उन पुराने सहयोगियों पर यौन शोषण के आरोप लगाए हैं जो अपने क्षेत्र के शीर्ष व्यक्तित्व हैं, हस्ती हैं। परन्तु इस प्रकार की घटनाओं को उजागर करने को हम यदि कोई महिला आंदोलन समझने की भूल करते हैं तो यह प्रतिभाशाली महिलाओं के लिये ही अंततः नुक्सानदायक हो सकता है और समूचे कार्य क्षेत्रों में महिला कर्मियों के लिए अनावश्यक रूप से सन्देह पैदा कर सकता है। महिलाओं को लेकर ऐसा सन्देह, भय या दूरी का माहौल न बने, बल्कि उनकी अस्मिता अक्षुण्ण रहे, यह सोचना है। नारी का पवित्र आँचल सबके लिए स्नेह, सुरक्षा, सुविधा, स्वतंत्रता, सुख और शांति का आश्रय स्थल बने ताकि इस सृष्टि में बलात्कार, गैंगरेप, नारी उत्पीड़न, यौन-शोषण जैसे शब्दों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाए।
जो भी हो, यौन शोषण के हाल के जो मामले सामने आए हैं वे यही प्रकट कर रहे हैं कि अब महिलाएं चुप बैठने वाली नहीं हैं। वहशी एवं दरिन्दे लोग ही नारी को नहीं नोचते, समाज के तथाकथित ठेकेदार कहे जाने वाले और प्रतिष्ठित लोग भी नारी की स्वतंत्रता एवं अस्मिता को कुचलने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं, स्वतंत्र भारत में यह कैसा समाज बन रहा है, जिसमें महिलाओं की आजादी छीनने की कोशिशें और उससे जुड़ी यौन शोषण की त्रासदीपूर्ण घटनाओं ने बार-बार हम सबको शर्मसार किया है। मी टू अभियान नारी के साथ नाइंसाफी एवं यौन शोषण की स्थितियों पर आत्म-मंथन करने का है, उस अहं के शोधन करने का है जिसमें पुरुष-समाज श्रेष्ठताओं को गुमनामी में धकेल कर अपना अस्तित्व स्थापित करना चाहता है। 
प्रश्न है कि क्या उनकी मर्जी के खिलाफ नारी का यौन शोषण होता है? क्यों नारी के जिस्म को नोंचा जाता है ? किसी भी तरह से प्रभावपूर्ण स्थिति में पहुंच गए पुरुष यह मानकर चलते दिख रहे हैं कि उनके मातहत काम करने वाली कोई भी स्त्री उनकी यौन पिपासा की पूर्ति के लिए स्वाभाविक रूप से उपलब्ध है। अगर महिला आसानी से इसके लिए राजी नहीं होती तो वह लालच देकर या ताकत का इस्तेमाल करके अपनी ख्वाहिश पूरी करना चाहता है। वैसे यह बीमारी भारत जैसे सामंती मूल्यों वाले समाज में ही नहीं, विकसित और आधुनिक समझे जाने वाले अमेरिकी समाज में भी है। पिछले साल अमेरिका और यूरोप में चले  मी टू आन्दोलन ने हॉलीवुड समेत कई नामी-गिरामी दायरों को हिलाकर रख दिया था। अभिनेत्री एलिसा मिलानो ने प्रख्यात फिल्म निर्माता हार्वी वाइंस्टाइन पर यौन शोषण का आरोप लगाया था। इसके बाद तो कई अभिनेत्रियों ने अपनी पीड़ा बयान की।
इसी क्रम में यह हकीकत भी सामने आई कि स्त्री-पुरुष संबंधों के मामले में पुरुषों के दिमागी विसंगतियों एवं विकृतियों को दूर करने का काम आज भी पूरी दुनिया में बचा हुआ है। यह बड़ा काम है, जिसकी आवश्यकता भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में है। नारी का दुनिया में सर्वाधिक गौरवपूर्ण सम्मानजनक स्थान है। नारी धरती की धुरा है। स्नेह का स्रोत है। मांगल्य का महामंदिर है। परिवार की पीढ़िका है। पवित्रता का पैगाम है। उसके स्नेहिल साए में जिस सुरक्षा, शाीतलता और शांति की अनुभूति होती है वह हिमालय की हिमशिलाओं पर भी नहीं होती। सुप्रसिद्ध कवयित्रि महादेवी वर्मा ने ठीक कहा था- ‘नारी सत्यं, शिवं और सुंदर का प्रतीक है। उसमें नारी का रूप ही सत्य, वात्सल्य ही शिव और ममता ही सुंदर है। इन विलक्षणताओं और आदर्श गुणों को धारण करने वाली नारी फिर क्यों बार-बार छली जाती है, लूटी जाती है, यौन-शोषण की शिकार होती है। यह कहना कठिन है कि भारत में सहसा शुरू हुए अभियान का अंजाम क्या होगा, लेकिन महिलाओं को यौन शोषण से बचाए रखने वाले माहौल का निर्माण हर किसी की प्राथमिकता में होना चाहिए।