बुधवार, 19 जनवरी 2011

छत्तीसगढ़ की खबरें

वैज्ञानिक फॉर्मूले से बचाएंगे वन भैंसे की नस्ल

रायपुर.छत्तीसगढ़ के राजकीय पशु वन भैंसा (वाइल्ड बफेलो) की खत्म हो रही नस्ल ने वन विभाग की चिंता बढ़ा दी है। उदंती अभयारण्य में मौजूद सात वन भैंसों में से सिर्फ एक मादा है और गर्भधारण के दोनों ही बार इसने नर को जन्म दिया है। ऐसे में अब उम्मीदें वैज्ञानिक फॉमरूले पर टिक गई हैं। विभाग ने इनकी वंश वृद्धि के लिए कृत्रिम गर्भाधान की योजना बनाई है।
वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट आफ इंडिया (डब्लूटीआई) ने कृत्रिम गर्भाधान के सिस्टम का खाका बना लिया है। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से हरी झंडी मिलने के बाद इसे अमल में लाया जाएगा।
राज्य के रिजर्व फॉरेस्ट उदंती में विचरण करने वाले वन भैंसे देश की इकलौती विशुद्ध नस्ल हैं। दूसरे अभयारण्यों में उनकी नस्ल बिगड़ चुकी है। यही वजह है कि डब्लूटीआई यहां के वन भैंसों की नस्ल को लेकर ज्यादा चिंतित है।
एकमात्र मादा के स्वास्थ्य ने बढ़ाई चिंता
एकमात्र मादा वन भैंसा के स्वास्थ्य की देखभाल के साथ-साथ सुरक्षित गर्भधारण करवाना वन विभाग के लिए बड़ी चुनौती है। इसे सुरक्षा देने के लिए उसे पिछले दो साल से बाड़े में रखा गया है। उसके लिए उदंती में पौने दो एकड़ में बाड़ा बनाया गया है। उसी बाड़े में नर भी है।
बाड़े में ही दो बार मां बनने के दौरान मादा वन भैंसा ने नर को जन्म दिया। अफसर इस बात को लेकर आशान्वित नहीं है कि तीसरी बार भी वह मादा वनभैंसा को जन्म देगी। अब उन्हें उसके स्वास्थ्य भी चिंता सताने लगी है। इस कारण भी वंश वृद्धि के लिए वैज्ञानिक तकनीक आजमाने का निर्णय लिया गया है।
शुद्धता पर नहीं पड़ेगा असर
डब्लूटीआई के छत्तीसगढ़ प्रभारी डा. राजेंद्र मिश्रा का कहना है कि वन भैंसों की नस्ल बढ़ाने के लिए यह फॉमरूला अपनाना जरूरी है। इसके जरिये पैदा होने वाली नस्ल बिलकुल शुद्ध होगी।
ऐसे बढ़ाया जाएगा वंश
उदंती में बाड़ के घेरे में बंद मादा वनभैंसा के अंडाणु को नर वनभैंसे के स्पर्म में मिलाया जाएगा। उसे पालतू मादा वन भैंसे में प्रविष्ट करवाकर गर्भधारण कराने के प्रयास होंगे। विशेषज्ञों के अनुसार 10-12 पालतू मादा वनभैंसों में यही फॉमरूला अपनाने से कोई न कोई मादा वनभैंसा को जन्म देगी। तीन-चार मादा वनभैंसों के जन्म के बाद नस्ल बढ़ाने में दिक्कत नहीं होगी।
उदंती में बाड़ के घेरे में बंद मादा वनभैंसा के अंडाणु को नर वनभैंसे के स्पर्म में मिलाया जाएगा। उसे पालतू मादा वन भैंसे में प्रविष्ट करवाकर गर्भधारण कराने के प्रयास होंगे। विशेषज्ञों के अनुसार 10-12 पालतू मादा वनभैंसों में यही फॉमरूला अपनाने से कोई न कोई मादा वनभैंसा को जन्म देगी। तीन-चार मादा वनभैंसों के जन्म के बाद नस्ल बढ़ाने में दिक्कत नहीं होगी।
"अभी पूरी योजना प्रारंभिक स्तर पर है। विशेषज्ञों से रायशुमारी के बाद इसका प्रोजेक्ट तैयार किया गया है। वन मंत्रालय से मंजूरी के बाद ही इस दिशा में आगे कदम उठाया जाएगा।"
-राकेश चतुर्वेदी, फील्ड डायरेक्टर वाइल्ड लाइफ

इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान में तलाशे जाएंगे बाघ
जगदलपुर/रायपुर.बीजापुर जिले के इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान में बाघ के होने के प्रमाण मिले हैं। वहीं इस टाइगर रिजर्व में बड़ी संख्या में चीतल, नीलगाय व कोटरी सहित वनभैंसे के होने की भी जानकारी सामने आई है।

नेशनल पार्क में माओवादी गतिविधियों के चलते बाहरी लोगों की आमदरफ्त न के बराबर होने और घास के मैदान की अधिकता से यहां की परिस्थितियां जंगली जानवरों के रहने के अनुकूल बताई गई है। हाल ही में भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के एडीजी राकेश डोगरा और नेशनल बोर्ड आफ वाईल्डलाइफ की सदस्य प्रेरणा बिंद्रा ने भी इस इलाके का दौरा किया। उन्हें बड़ी संख्या में जंगली जानवरों के मल और उनके पैरों के निशान दिखे हैं।
अनुकूल हैं घास के मैदान :
सीएफ वाइल्डलाइफ अरूण पांडे ने बताया कि अभयारण्य में घास के कई जंगल उपस्थित है। अब तक नौ स्थानों पर घास के मैदान मिले हैं, जो कई सौ हेक्टेयर में फैले हैं। इनमें इड़ेपल्ली, ताड़मेंड्री, सालेपल्ली, पिल्लूर, सागमेटा, पिनगुंडा, मुचनेर, गुंडापुरी और नेती काकले शामिल हैं। इन जंगलों में नीलगाय व चीतल के गोबर एक ही स्थान पर पाए गए हैं।
इनकी विशेषता होती है कि ये जानवर एक ही जगह पर आकर मलत्याग करते हैं। जिससे यहां गोबर का ढेर लग जाता है। ये घास के मैदान दरअसल शेर के लिए किचन का काम करते हैं। यहां शेर शिकार करने आता है और भोजन लेकर चला जाता है।
बैलों का शिकार किया, बाघ होने का प्रमाण
अभयारण्य में बाघ की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए ताड़मेंड्री इलाके को प्रमुख रूप से चुना गया है। यहां ग्रामीणों ने बाघ द्वारा बैलों को मारने की शिकायत की थी। जिसके बाद इस इलाके में इसके प्रमाण भी मिले हैं। अब ऐसे स्थान पर ऑप्टिकल कैमरे लगाए जा रहे हैं जहां जंगली जानवर पानी पीने के लिए पहुंचते हैं।
इसके अलावा सेंड्रा इलाके के अन्नापुर और मट्टीमारका क्षेत्र में कैमरे लगाए जाने की योजना है। यह कार्य शीघ्र ही पूरा कर लिया जाएगा जिसके बाद जंगली जानवरों की उपस्थिति के साथ ही उनकी गणना में भी आसानी होगी।

अब खनकेगा 150 रुपए का सिक्का


देश में पहली बार 150 रुपए कीमत का सिक्का जारी किया गया है। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की 150वीं जयंती वर्ष के मौके पर भारत सरकार ने यह सिक्का जारी किया है।
भारतीय स्टेट बैंक के विपणन कार्यपालक सुरेश शुक्ला ने बताया कोलकाता स्थित टकसाल द्वारा विशेष श्रंखला के तहत जारी 150 रुपए का सिक्का 40 मिलीमीटर व्यास का है और इसका वजन 35 ग्राम है।
चांदी,तांबा,निकेल और जिंक धातुओं के मिश्रण से निर्मित सिक्के में दातें (सिरेशन) की संख्या 200 है। इसी प्रकार 5 रुपए कीमत का टैगोर स्मृति विशेष श्रंखला सिक्का भी जारी किया गया है। इसका वजन 6 ग्राम और व्यास 23 मिलीमीटर है। इसमें 100 दातें हैं। यह सिक्का तांबा, निकेल एवं जिंक धातुओं के मिश्रण से बनाया गया है।
ये सिक्के भी होंगे जारी
इसी वर्ष भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना के 75 वर्ष पूर्ण होने पर 75 रुपए का विशेष सिक्का जारी किया जाएगा। कॉमनवेल्थ गेम्स की स्मृति में भी 100 रुपए का सिक्का जारी किया जा रहा है। इसी तरह इस साल देश में पहली बार 10 रुपए का पॉलीमर नोट लाया जा रहा है।

जहां बच्चे नहीं जानते पिता का नाम

सांवरडा गांव : बाड़मेर
गांव : बाड़मेर जिला का सांवरडा गांव
क्यों चर्चा में : यहां बच्चे अपने पिता का नाम तक नहीं जानते
कारण : नगरवधुओं का गांव है
कुल परिवारों की संख्या : 70
जीं हां बात आश्चर्यजनक लेकिन बाड़ेमेर जिले के सांवरडा गांव की कहानी तो यहीं कहती है। जब आप इस गांव में जाएंगे तो आपको यहां एक प्राथमिक स्कूल मिलेगा और यहां पढ़ने वाले बच्चे अपने पिता का नाम नहीं जानते। और कुछ सालों बाद इनकों जो मार्कशीट मिलेगी उस पर भी इनके पिता का नाम नहीं होगा क्योंकि स्कूल में भी इनकी पहचान इनकी माता के नाम पर ही दर्ज है। गांव में 70 परिवारों के करीब 45 बच्चों की जिंदगी का एक कड़वा सच है और ये बच्चे नहीं जानते कि वो पापा कहकर किसे बुलाएं।
दरअसल इस गांव में देह व्यापार में लिप्त एक जाति विशेष के लगभग सत्तर परिवार यहां रहते हैं इस बस्ती में देह व्यापार में लिप्त महिलाएं और उनके बच्चें निवास करते है।इन बच्चों को कभी पिता का नाम नहीं मिलता और ये बच्चे अपनी माताओं के नाम से ही जाने जाते है।
सत्तर परिवारों के इस गांव में 132 नगर वधुएं है और करीब 45 बच्चें है। इस गांव में प्राथमिक स्तर का एक विद्यालय है जिसमें इनके बच्चें शिक्षा ग्रहण करते है।

रविवार, 16 जनवरी 2011

छत्तीसगढ़ की खबरें

चाय-नाश्ते’ का पैसा दो तब होता है रजिस्ट्रेशन
राजधानी स्थित स्टेट फार्मेसी काउंसिल के कार्यालय में प्रदेशभर से रजिस्ट्रेशन और नवीनीकरण के लिए आने वाले छात्रों को लूटा जा रहा है। इन बेरोजगारों से दफ्तर के बाबू चाय-नाश्ते के नाम पर खुलेआम पैसा मांगते हैं। इसकी जानकारी जिम्मेदारों को भी है, लेकिन वे कार्रवाई के बदले बहाने कर रहे हैं।

डीबी स्टार टीम ने स्टिंग ऑपरेशन में गीतांजली नगर स्थित छत्तीसगढ़ स्टेट फार्मेसी काउंसिल के दफ्तर में खुलेआम चल रही घूसखोरी को पकड़ा है। यहां रोजाना प्रदेशभर से डी. फार्मेसी और बी. फार्मेसी के सैकड़ों छात्र रोजगार के लिए जरूरी रजिस्ट्रेशन व नवीनीकरण करवाने आते हैं। स्टिंग में सामने आया कि यहां शासन द्वारा निर्धारित फीस की रसीद देकर चाय-नाश्ते के नाम पर 500 से 1000 रुपए तक अधिक लिए जा रहे हैं। इनके द्वारा नया रजिस्ट्रेशन करवाने आए छात्रों से ही ज्यादा पैसों की मांग की जाती है। हद तो यह है कि यहां आने वाले छात्र व पालक जब तक बाबुओं (तृतीय और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी) को चढ़ावा नहीं चढ़ाते तब तक उनका काम अटकाकर ही रखा जाता है। इसके अलावा जल्द काम करवाने के नाम पर भी छात्रों और पालकों से अधिक पैसे ऐंठे जा रहे हैं।

इस तरह किया खुलासा
मिली शिकायत पर डीबी स्टार टीम 10 जनवरी 2011 को छत्तीसगढ़ स्टेट फार्मेसी काउंसिल के रजिस्ट्रार कार्यालय में पहुंची। इस दौरान रिपोर्टर अपने छोटे भाई को डी.फार्मा डिप्लोमाधारी बताकर रजिस्ट्रेशन करवाने की जानकारी ली। यहां बैठकर छात्रों से उगाही कर रहे बाबुओं ने पहले 100 रुपए का फॉर्म खरीदने को कहा। जब कर्मचारियों से पूछा गया कि कब तक काम हो जाएगा तो उन्होंने कहा फॉर्म के साथ पैसा लेकर आ जाना सब तुरंत हो जाएगा। कितना पैसा पूछा तो बोले, उसी समय बताएंगे। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान टीम ने देखा कि कर्मचारियों का रैकेट छात्रों से निर्धारित 300-350 शुल्क लेने के अलावा चाय-नाश्ते के लिए दोगुना पैसा तक ले लेते हैं।
पकड़े न जाएं इसलिए कर रखे हैं इंतजाम
बाबुओं ने पकड़े न जाने के लिए पुख्ता इंतजाम कर रखे हैं। वे छात्र के अंदर आते ही दरवाजा बंद कर देते हैं। छात्र या तो अकेले या अपने पालक के साथ ही अंदर जा सकता है। इस पर डीबी स्टार टीम ने कुछ छात्रों को हिडन वीडियो कैमरा देकर अंदर भेजा। इस दौरान हुई रिकॉर्डेड बातचीत..

?कर्मचारी- किसका नवीनीकरण करवाने आए हो, वह खुद क्यों नहीं आई?
—मेरी बहन का है, वह कॉलेज गई है इसलिए मैं ही आ गया हूं। उसके दस्तावेज के साथ मैं हस्ताक्षर के मिलान के लिए ड्राइविंग लाइसेंस और पैन कार्ड लेकर आया हूं।
?चलो इस बार तो करे दे रहा हूं पर दोबारा ऐसा नहीं चलेगा, तुम्हारी बहन को ही आना पड़ेगा?
—ठीक है सर।
(इसी दौरान वहां बैठे अनिरुद्ध नामक कर्मचारी ने युवक द्वारा निर्धारित फीस 300 रुपए दिए जाने के बाद चाय-नाश्ते के लिए और पैसे मांगे..)
—सर, अभी तो इतना ही लाया हूं। वैसे भी रजिस्ट्रेशन के समय तो आपने जितना मांगा था, उतना दिया ही। अब और क्या लेंगे।
अलाव से जल गईं दो बच्चियां
कवर्धा/रायपुर। शहर से 30 किमी दूर रानीदहरा गांव में दो बच्चियों की जलने से मौत हो गई, जबकि उनके दादा गंभीर रूप से झुलस गए। घटना के समय तीनों झोपड़ी में सो रहे थे। 60 वर्षीय लामू अपने खलिहान के पास बनी झोपड़ी में शुक्रवार रात सोने जा रहे थे।
उनकी पौत्री चार वर्षीय सीमा और 10 साल की श्यामवती भी साथ सोने चली गईं। ठंड से बचने के लिए लामू ने झोपड़ी के पास ही अलाव जला रखा था। 11 बजे के करीब अचानक झोपड़ी में आग लग गई। लामू किसी तरह बाहर निकला और आसपास के लोगों को आवाज लगाई। जब तक लोग आग बुझाने पहुंचे, दोनों बच्चियां दम तोड़ चुकी थीं। वहीं लामू की स्थिति चिंताजनक है। बोड़ला टीआई यूके वर्मा ने घटना की पुष्टि करते हुए बताया कि जलने से ही बच्चियों की मौत हुई है।
सौतेली थीं दोनों बच्चियां
मृत दोनों बच्चियां सौतेली बहनें थीं। पिता सुक्कलराम मेरावी ने दोनों बच्चियों को अपने पास ही रखा था।

सोमवार, 3 जनवरी 2011

बिछुड़े प्यार को भूल जाना बेहतर

- मानसी
NDहेलो दोस्तो! जब आप कोई पाठ याद करना चाहें तो कितनी मुश्किल होती है। बार-बार उसे दुहराना। थोड़ा समय बीतने पर फिर उसे याद करके चेक करना कि कहीं आप उसे भूल तो नहीं गए। याद रखने के लिए कई तरीके ईजाद किए गए हैं। कोई किसी रूखे-सूखे जवाब को तुकबंदी बनाकर याद करने की कोशिश करता है तो कोई बार-बार लिखकर या फिर तारीखों को अपनी निजी तारीखों से जोड़कर याद करता है।
आप किसी को भी थोड़ा-ज्यादा काम बता दें वह कुछ न कुछ भूल ही जाता है। दफ्तरों में भी लोग न जाने कितनी डायरी, कितने प्लैनर इसी काम के लिए भरते रहते हैं। फिर भी अपनों का जन्मदिन, शादी की सालगिरह आदि याद रखना आसान नहीं लगता है तो मोबाइल में रिमाइंडर लगाते हैं। ये सारे जतन बस इसलिए किए जाते हैं कि आप भूलें न।
पर उस समय आप हैरान रह जाते हैं जब एक मामूली सी, छोटी-सी बात भूलना चाहें और हजार कोशिश के बावजूद आप उसे भूल न पाएँ। उन बातों को जिसे आपको याद करने के लिए कोई प्रयास नहीं करना पड़ा पर उसे भुला पाना असंभव लग रहा हो। आप के लिए उस पीड़ा को बयान करना मुश्किल हो जाता है जब अनचाही यादें आ-आकर आपको बताती हैं कि आप उन्हें भूल नहीं पाओगे।
ऐसी ही यादों को पूरी तरह भूल जाना चाहते हैं महेश (बदला हुआ नाम)। महेश का प्यार टूटे दो वर्ष हो गए हैं पर अभी तक महेश एक पल के लिए भी अपनी दोस्त को नहीं भूल पाए हैं। महेश से अलग होने के बाद उनकी दोस्त ने एक बार भी पलट कर नहीं देखा। न कभी मिलने या बात करने की कोशिश की। दोनों के पहचान वालों के सामने भी कोई जिक्र नहीं छेड़ा। अलग होने के बाद ऐसी खामोश हुई मानो उसे जानती ही नहीं।
इधर महेश हैं कि अब भी उसका इंतजार कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि उनके गम से निजात और खुशी की वजह केवल उनकी दोस्त है, जो बस एक बार फिर मिल जाए।
महेश जी, आपको अपने-आप से भी शिकायत है कि वह इतनी बेदर्द है फिर भी आप उसे जी जान से चाहते हैं। दरअसल, यह आपका पहला प्यार था इसलिए आप हजार गिले-शिकवे के बाद भी वहीं अपना सुकून व मंजिल महसूस करते हैं। इस प्यार की तुलना करने के लिए आपके पास दूसरा कोई अनुभव भी नहीं है। आप लोगों के बीच क्यों झगड़ा हुआ, क्यों आप लोग अलग हुए, किस प्रकार का मन-मुटाव या गलतफहमी हुई इसके बारे में आपने कुछ नहीं लिखा है। पर, दो वर्ष तक उसे याद करके उदास होने से यह बात तो तय है कि आप में एक प्रकार का गहरा कमिटमेंट है और साथ ही शिकायतों को नजरअंदाज कर माफ करने की क्षमता भी है।
ऐसा मुमकिन नहीं है कि आपकी ये खूबियाँ आपकी दोस्त की नजरों से ओझल होंगी। आपके एकतरफा चाहत की बात भी उन तक पहुँचती होगी। आपके इंतजार की खबरें भी उन्हें मिलती होंगी। इसके बावजूद वह आपसे कोई संवाद नहीं रखना चाहती हैं तो इसका सीधा सा मतलब है कि वह इस अध्याय को बंद कर देना चाहती है। दो साल का अरसा बहुत बड़ा समय होता है। नाराजगी की बर्फ इस बीच पिघल जानी चाहिए थी।
ऐसा नहीं हुआ है तो इसका एक ही मतलब है कि वह अब कभी नहीं लौटेंगी। इसलिए किसी चमत्कार का इंतजार करना बेकार है। आप में सबसे अच्छी बात यह है कि आप जीवन जीना चाहते हैं, खुश रहना चाहते हैं। आपने लिखा, आपको दूसरा कोई और भाता नहीं है। शायद इसकी वजह यह हो कि आप अपनी दोस्त को गलत न समझते हों।
इसका एक ही मतलब है कि वह अब कभी नहीं लौटेंगी। इसलिए किसी चमत्कार का इंतजार करना बेकार है। आप में सबसे अच्छी बात यह है कि आप जीवन जीना चाहते हैं, खुश रहना चाहते हैं।हो सकता है, इस अलगाव की वजह के पीछे आप हों और उन्होंने आपकी इस भूल को आपकी तमाम खूबियों पर भारी माना। आप नौकरी करते हैं इसलिए आप व्यस्त रह सकते हैं। फिलहाल आप अपनी नौकरी यानी जिम्मेदारियों से प्यार करना शुरू कर दें। यदि आपकी कोई हॉबी हो जिसे आपने अभी तक ज्यादा समय नहीं दिया है तो उसे समय दें।
व्यायाम करें अपनी सेहत के बारे में सोचें। रोज सुबह टहलें और खाने-पीने में सुधार करें। फल-सब्जी, अंकुरित अनाज खाएँ। चाय-कॉफी कम कर दें। अपने पहनावे पर ध्यान दें। अच्छे स्टाइलिश कपड़े खरीदें। खुद को सँवारने-सजाने पर समय लगाएँ। सबसे अहम आप हैं। अपने आप से प्यार करें। दुनिया- जहाँ की खबरें देखें और अपना ज्ञान बढ़ाएँ। अपने कॅरिअर में आगे बढ़ने की सोचें।
यदि आपने ये सब पूरी लगन और गंभीरता से किया तो आपका व्यक्तित्व ही कुछ और हो जाएगा। आपको अपनी दोस्त की यादों से न केवल मुक्ति मिलेगी बल्कि आप अपने दम पर खुश होना सीख जाएँगे। जब आप अपने आपको सराहेंगे और दूसरे भी आपकी तारीफ करेंगे तो आपके खयालों में सोच के केंद्र बिंदु में आप होंगे।
दूसरी छवि गायब होती जाएगी और वह दिन दूर नहीं होगा जब आप फिर किसी और से भी प्यार या शादी की स्थिति में होंगे। आप नए अनुभव से डरते हैं क्योंकि आप हर समय, अपनी दोस्त से उसकी तुलना करते रहते हैं। अभी आप किसी प्रेम-प्रेमिका के बारे में न सोचें। कुछ दिन अकेले रहकर अपने-आप पर ध्यान दें, सब कुछ ठीक हो जाएगा।

बेवफाई हुई हाईटेक

प्यार और विश्वास हाइटेक हुआ हो या नहीं, बेवफाई जरूर इन दिनों हाइटेक हो गई है। वर्चुअल दुनिया विवाहेतर रिश्तों की राह सुगम बना रही है। जो सुविधाएँ दूरियों को कम करने के लिए जानी जाती हैं, वे ही अब रिश्तों में दूरियाँ बढ़ाने में भी योगदान कर रही हैं।
आशिमा (नाम परिवर्तित) की जिंदगी दफ्तर, घर और पति के बीच करीब-करीब इसी प्राथमिकता क्रम से चल रही थी, या कहें भागी जा रही थी। शादी को पाँच साल होने आए थे और आशिमा तथा उसका पति अश्विन अपना-अपना करियर बनाने में व्यस्त थे। सुबह से लेकर देर रात तक की व्यस्त दिनचर्या में उनके लिए एक-दूसरे के लिए समय निकालना बहुत मुश्किल था।
आशिमा एक दि‍न यह देखकर दंग रह गई कि अश्विन के मोबाइल में 'एस' नाम से सेव किए गए किसी नंबर से आए मैसेजेस का अंबार लगा था... और इन मैसेजेस के कंटेंट ने अश्विन के प्रति आशिमा के विश्वास को तार-तार कर दिया।
'एस' जो भी थी, वह अश्विन को लगातार आत्मीय, उत्तेजक यहाँ तक कि कामुक प्रकृति के संदेश भेज रही थी... और अश्विन की ओर से भी उसे वैसे ही बल्कि उससे भी दो कदम आगे के मैसेज जा रहे थे! उस दिन आशिमा ने खुद को हाइटेक बेवफाई के शिकार लोगों की बढ़ती फेहरिस्त में पाया।
NDनए मौके, नई सुविधाएँ
बेवफाई का सिलसिला यूँ तो उतना ही पुराना है जितना कि प्यार का लेकिन इन दिनों बेवफाई के लिए नए 'मौके', नई 'सुविधाएँ' उपलब्ध हैं। जिस टेक्नोलॉजी ने शहरों, देशों और महाद्वीपों की दूरियाँ समाप्त कर लोगों को पास लाने का काम किया है, वही टेक्नोलॉजी रिश्तों में दूरियाँ लाने में भी सहयोग करती देखी जा रही है।
मोबाइल के अलावा ईमेल, इंटरनेट के चैट रूम, स्काइप आदि ने बेवफाई के मौकों को नए आयाम दिए हैं। आज की युवा पीढ़ी टेक्नो-सैवी तो है ही, गला-काट प्रतिस्पर्धा और करियर बनाने की होड़ में वह अक्सर व्यक्तिगत भावनात्मक संबंध बनाने और निभाने में खुद को नाकाम होता पाती है।
जीवन के इस अहम पहलू के खालीपन को भरने के लिए नए जमाने के गैजेट्स उसे बड़ा सहारा देते हैं। अश्विन का जिस लड़की से अफेयर चल रहा था, उससे वह मिला तो था केवल दो-एक बार काम के सिलसिले में की गई यात्राओं के दौरान लेकिन फोन पर दोनों का अफेयर लगातार चला आ रहा था।
परंपरागत रूप से तब बेवफाई की गई मानी जाती है जब दंपत्ति में से कोई एक किसी और के साथ दैहिक संबंध बना ले या इस दिशा में बढ़े। आज इसकी परिभाषा बदल गई है। मूल मुद्दा है अपने पार्टनर के विश्वास को तोड़ना।
चाहे रिश्ता कितना ही लांग डिस्टेंस क्यों न हो, भले ही दूरियों के कारण या अवसरों की अनुपलब्धता के चलते दैहिक संबंध न बन पाए हों और न ही उनके बनने की संभावना हो लेकिन यदि आपने अपने पार्टनर का विश्वास तोड़ा है तो आपने बेवफाई की है।
सामान्य मित्रता की हद को लांघते हुए स्थापित किया गया कोई भी रिश्ता, भले ही वह वास्तविक न होकर 'वर्चुअल' हो, बेवफाई की जद में आता है। मैरिज काउंसलर बताते हैं कि यही वर्चुअल बेवफाई इन दिनों खास तौर पर महानगरों में बढ़ती हुई देखी जा रही है।

छुपने के रास्ते, बचने का तरीका
टेक्नोलॉजी न केवल शारीरिक उपस्थिति के बिना विवाहेतर संबंधों को बनाने की सुविधा दे रही है, बल्कि अपनी करतूतों को छुपाने के भी रास्ते उपलब्ध करा रही है। मोबाइल के कॉल लॉग और मैसेजेस को डिलीट कर अपने साथी से अपनी कारगुजारियाँ छुपाई जा सकती हैं।
नेट पर अपने परिचितों से बचकर, अपनी पहचान बदलकर चैटिंग की जा सकती है। सोश्यल नेटवर्किंग साइट्स गुमनाम रहकर अफेयर चलाने के लिए खुला मैदान मुहैया कराती हैं।
सौजन्य से - तरंग, नई दुनि‍या

रविवार, 2 जनवरी 2011

छत्तीसगढ़ की खास खबरें

फर्जी हस्ताक्षर कर दी 79 को सरकारी नौकरी
छत्तीसगढ़ के पंचायत विभाग में नौकरी देने के नाम पर बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है। इसमें विभाग के पुराने संचालक के हस्ताक्षर कर 79 लोगों की नियुक्ति और पदस्थापना के आदेश जारी कर दिए गए। महत्वपूर्ण बात यह है कि उक्त संचालक का तबादला 20 सितंबर को हो गया था, जबकि आदेश 8 दिसंबर की तारीख पर जारी किए गए हैं।
इस मामले में शनिवार को रायपुर के गोलबाजार थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी गई है। पंचायत विभाग के पूर्व संचालक जीएस धनंजय के हस्ताक्षर से राज्य के विभिन्न जिलों में सहायक आंतरिक लेखा परीक्षण एवं करारोपण अधिकारी के पद 79 लोगों की नियुक्ति की गई। इससे संबंधित फाइल जब पंचायत मंत्री रामविचार नेताम के पास गई तो उन्हें संदेह हुआ क्योंकि धनंजय का तबादला तो अक्टूबर माह में ही हो गया था। श्री नेताम ने विभाग के अफसरों को पूरे मामले की पड़ताल करने के आदेश दिए। उसके बाद आदेश की जांच की गई तो फर्जीवाड़ा सामने आ गया।
सामान्य प्रशासन विभाग के आदेश के अनुसार जीएस धनंजय के स्थान पर 20 सितंबर को बीएस अनंत को पंचायत का संचालक बनाया गया था। उसके बाद 26 नवंबर से आलोक अवस्थी विभाग के संचालक हैं। इसकी पूरी जानकारी मंत्री श्री नेताम को दी गई तो उन्होंने इस मामले में दोषी लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए। उसके बाद गोलबाजार थाने में लिखित में मामले की शिकायत की गई।

नौकरी के नाम पर उगाही का शक
अनुमान है कि इस खेल में लिप्त लोगों ने बेरोजगारों को नौकरी देने के नाम पर उगाही की होगी। जिन लोगों की नियुक्ति और पदस्थापना की गई है, उनमें से कोई भी विभाग का पुराना कर्मचारी नहीं है। इस कारण यह माना जा रहा है कि यह बेरोजगारों से ठगी का बड़ा मामला है।
जीएस धनंजय के नाम से पूर्व में जारी आदेश के उस हिस्से की फोटोकापी की गई जहां उनके हस्ताक्षर हैं। इसमें फोटोकापी में डेट बदलकर फिर नई फोटोकापी की गई जिसमें 8 दिसंबर की तारीख डाली गई।
फर्जी नियुक्ति पत्र के आधार पर किसी को नौकरी पर नहीं रखने के आदेश सभी जिलों में जारी कर दिए गए हैं। इसके अलावा सभी जिलांे में कलेक्टर और एसपी को भी ऐसे लोगों के सामने आने पर सीधे कानूनी कार्रवाई के लिए पत्र लिखा गया है।
आलोक अवस्थी, संचालक, पंचायत विभाग

बेघरों को मिला रैन बसेरा
बिलासपुर शहर में रहने वाले आवासहीन भिखारियों को मूलभूत सुविधाएं मुहैय्या कराने की संवेदनशील पहल करते हुए जिला प्रशासन द्वारा उन्हें रैन बसेरा उपलब्ध कराया गया है।
राज्य कीर स्थापना की दसवीं वर्षगांठ पर जिला प्रशासन द्वारा संवेदनशील पहल करते हुए रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, फुटपाथ पर जीवन गुजारने वाले गरीबों को ठंड, बरसात के मौसम में एक सुरक्षित ठिकाना उपलब्ध कराने के लिए अधिकारियों की एक टीम गठित कर सर्वे कराया गया।
टीम ने रात में 10 बजे से 12 बजे तक शहर में भ्रमण कर ऐसे लोगों को चिन्हित किया तथा 18 वर्ष से कम तथा 18 से 50 वर्ष और 50 वर्ष से उपर के निराश्रित लोगों की पृथक-पृथक सूची तैयार की। ऐसे व्यक्तियों में 174 पुरुष और 94 महिलाएं तथा 18 वर्ष तक के 27 बच्चे शामिल किए गए।
इन व्यक्तियों के लिए विभिन्न सामाजिक संगठनों के सहयोग से अस्थाई रूप से रैन बसेरा की व्यवस्था की गई तथा उन्हें ठंड से बचाने के लिए कंबल वितरित किया गया। रैनबसेरा में रहने वाले लोगों को प्रतिदिन भोजन की व्यवस्था भी इन्ही संगठनों के सहयोग से की जा रही है।

शतरंज खिलाड़ी ने लगाया अनाचार का आरोप
बिलासपुर शादी के मारपीट करने पर अंतरराष्ट्रीय शतरंज खिलाड़ी महिला ने खिलाड़ी पति पर बलात्कार का आरोप लगाते हुए पुलिस से शिकायत की है। कोनी पुलिस ने खिलाड़ी के खिलाफ जुर्म दर्ज कर लिया है।
कोनी कृष्ण विहार निवासी पीड़ित महिला की शिकायत के मुताबिक 6 माह पूर्व विदेश में अंतरराष्ट्रीय शतरंज स्पर्धा के दौरान झारखंड में रेलवे में पदस्थ शतरंज खिलाड़ी इमरान हुसैन से उसकी मुलाकात हुई।
इस दौरान दोनों के बीच प्रेम संबंध स्थापित हो गया। महिला का कहना है कि दोनों ने मर्जी से शादी भी कर ली। इसके बाद वह वापस आ गई और इमरान झारखंड चला गया। महिला के मुताबिक 28 दिसंबर को इमरान कोनी आया था।
इस दौरान उसके घर के सामने इमरान ने उससे मारपीट की थी। महिला दो माह से गर्भवती है। मारपीट की घटना के बाद महिला ने कोनी थाने में इमरान पर बलात्कार का आरोप लगाते हुए रिपोर्ट दर्ज कराई है। पुलिस ने जुर्म दर्ज कर लिया है।

अंकों के आधार पर जाने जाते हैं गांव
डीएनके प्रोजेक्ट के तहत बंगलादेश से विस्थापित बंग परिवारों को पखांजूर क्षेत्र में बसाया गया। तत्कालिक व्यवस्था के तहत गांवों का नामकरण अंकों के आधार पर कर दिया गया। 1986 में जब प्रोजेक्ट समाप्त कर राज्य शासन को स्थानांतरित किया तो राज्य शासन द्वारा इन गांवों का नामकरण किया गया लेकिन इतने वर्षों बाद भी गांवों का नाम प्रचलन में नहीं आ पाया है। आज भी अधिकांश लोग अपने या दुसरे गांवों को डीएनके के दौरान आबंटित अंकों के आधार पर ही जानते है।
1962 में क्षेत्र में विस्थापित बंग परिवारों को पुर्नवास कराने हेतु डीएनके प्रोजेक्ट की शुरूआत केंद्र शासन द्वारा की गई। 1972 तक डीएनके द्वारा नए गांव बसाए जाते रहे। इस तरह पीवी 1 से पीवी 133 तक कुल 133 गांव बसाए गए और क्रम से इन्हें नंबर दिया जाता रहा। कुछ गांव को अपवाद स्वरूप छोड़ दिया जाए तो सारे गांव क्रम से ही बसाए गए जिसकी शुरूआत कापसी क्षेत्र के पीवी 1 परलकोट गांव से 1 से हुई और अंत बांदे क्षेत्र में हुआ। इन अंको का सर्वाधिक फायदा यह है कि इससे उस गांव की भौगोलिक स्थिति जान सकते है कि यह गांव पखांजूर, कापसी या बांदे किस क्षेत्र में है। अंकनुमा गांव का नाम लोगों की जुबान पर कुछ ऐसा चढ़ा की राज्य शासन द्वारा दिए गए नाम प्रचलन में नही आ पा रहे है। प्रशासनिक कार्यों में अब राज्य शासन द्वारा आबंटित गांव का नाम जरूर लिखा जाता है किंतु उसके उस अंक भी लिख दिए जाते है। जब से ग्राम पंचायत व्यवस्था राज्य शासन ने लागू की है तब से पंचायत मुख्यालय का नाम जरूर लोगों द्वारा लिया जाने लगा है लेकिन आश्रित ग्राम आज भी अंकों के आधार पर ही जानेे जाते है।

शुरू होने से पहले ही बंद कॉल सेंटर
रायपुर.स्कूल में शिक्षक देर से आते हैं? पढ़ाई नहीं हो रही? कक्षा में बैठने के लिए जगह नहीं है? ऐसी शिकायतें टेलीफोन के माध्यम से सुनने के लिए शिक्षा संचालनालय में खोला जा रहा काल सेंटर खुलने के पहले ही ध्वस्त हो गया।
ऐसी योजना थी कि बच्चों के माता-पिता टोल फ्री नंबर पर फोन करके स्कूल से संबंधित सभी तरह की शिकायतें सीधे मुख्यालय में कर सकें। टोल फ्री नंबर इसलिए रखा गया ताकि कोई भी कहीं से भी फोन करें, उन्हें उसका शुल्क अदा न करना पड़े।
काल सेंटर के लिए मुख्यालय के एक बड़े कक्ष को खाली कराया गया। वहां 20 से ज्यादा कंप्यूटर लगाए गए। बीएसएनल से टोल फ्री नंबर के लिए संपर्क किया गया। साल भर की फीस के रुप में 68 हजार रुपए अदा किए गए।
काल सेंटर संचालित करने के लिए आफिस में स्टाफ नहीं था। अफसरों ने वित्त विभाग से चार आपरेटरों के नए पद मांगे। वित्त में प्रस्ताव भेजने के बाद क्या हुआ यह बात किसी को नहीं मालूम लेकिन विभागीय अधिकारियों की कवायद यहीं तक सीमित रही। नतीजन काल सेंटर का फामरूला अस्तित्व में आने के पहले ही ध्वस्त हो गया।
काल सेंटर के जरिए स्कूलों में पढ़ाई का स्तर सुधारने में खासी मदद मिल सकती थी। काल सेंटर अस्तित्व में आने के बाद प्रत्येक स्कूल के बाहर टोल फ्री नंबर बड़े-बड़े बोर्ड पर चस्पा करना तय किया गया।
ताकि स्कूली बच्चों के पालक आसानी से नंबर देख सकें। उसके बाद स्कूल में शिक्षकों के गायब रहने पर या पढ़ाई न होने पर बच्चों के पालक टोल फ्री नंबर के जरिये सीधे मुख्यालय में शिकायत कर सकते थे।
अभी दूर-दराज के इलाकों की शिकायतें महीनों मुख्यालय नहीं पहुंच पाती। यह मुख्यालय से संपर्क करने का सीधा साधन हो सकता था। इसके जरिये आला अफसरों को यह मालूम हो पाता कि कौन से स्कूल में पढ़ाई नहीं हो रही है। ऐसी दशा में उस समस्या का जल्द से जल्द निदान हो सकता था।
एक नजर में
> शासन ने योजना पर खर्च किए 3 लाख 75 हजार।
> कंप्यूटर और इनवर्टर खरीदा गया।
> बीएसएनएल के छह कनेक्शन लिए गए।
> मुख्यालय में कंप्यूटर लगाकर बकायता सिस्टम आन किया गया।
> पूरी तैयारी और रुपयों की हुई बरबारी।
> 2008-09 में बनी थी योजना।
> दिसंबर 2009 में पूरा सेटअप किया था तैयार।
"काल सेंटर क्यों बंद हैं? इस बारे में मुझे जानकारी नहीं है। जांच करवाई जाएगी।
अगर कोई तकनीकी दिक्कत है तो उसे दूर करने के प्रयास होंगे।"

संगीत के बीच होगा इलाज, गूंजेंगे सभी धर्मो के मंत्र
प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में अब मरीजों का इलाज संगीत के बीच किया जाएगा। यहां म्यूजिक सिस्टम लगाया जा रहा है जिससे मंत्र, गुरुबाणी व कुरान की आयतें गूंजेंगी।
पूरे अस्पताल में 350 माइक्रो स्पीकर लगाए जाएंगे। योजना को जनवरी में होने वाली स्वशासी समिति की बैठक में मंजूरी दी जाएगी। म्यूजिक सिस्टम लगने के बाद अपनी बारी का इंतजार कर रहे मरीजों को बोर नहीं होना पड़ेगा। इस पूरे सिस्टम पर पांच लाख लागत आएगी।
मधुर संगीत कई बीमारियों के इलाज में मददगार होता है। इसी बात के मद्देनजर अस्पताल प्रबंधन ने म्यूजिक सिस्टम लगाने का निर्णय लिया है। यह ओपीडी, आईपीडी, अधीक्षक, सहायक अधीक्षक व सीएमओ कार्यालय में लगेगा। ऑपरेशन थिएटर में भी म्यूजिक सिस्टम लगाने की योजना है।
माइक्रो स्पीकर के संचालन के लिए अधीक्षक कार्यालय व ओपीडी गेट के सामने मे आई हेल्प यू काउंटर के पास कंट्रोल रूम बनेगा। दोनों स्थानों से सभी माइक्रो स्पीकर संचालित होंगे।
माइक्रो स्पीकर से किसी भी समय टू वे बात की जा सकेगी। यह सिस्टम 24 घंटे काम करेगा। आपातकाल में माइक्रो स्पीकर काफी मददगार होंगे। उदाहरण के लिए अधीक्षक कार्यालय से एक साथ कैजुअल्टी व दूसरे वार्ड में बात की जा सकेगी।
किसी डॉक्टर को बुलाना हो तो फोन करने के बजाय माइक्रो स्पीकर के माध्यम से बुलाया जा सकता है। कोई मरीज गंभीर है तो संबंधित डॉक्टर को तत्काल बुलाया जा सकेगा। कंट्रोल रूम से जो बात होगी वह सभी माइक्रो स्पीकर में गूंजेगी।
कई बार फोन लाइन इंगेज रहने के कारण संबंधित डॉक्टर या अन्य व्यक्ति से तत्काल बात नहीं हो पाती। ऐसे में माइक्रो स्पीकर की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। प्रबंधन आपातकाल में डॉक्टरों को लाने के लिए चार पहिया वाहन की व्यवस्था पहले ही कर चुका है।
खाली समय में माइक्रो स्पीकर से विभिन्न धर्मो के मंत्र गूंजेंगे। गायत्री मंत्र के अलावा गुरुबाणी व कुरान की आयतें गूंजेंगी। साउंड इतना रहेगा जिससे दूसरों के काम में बाधा न पहुंचे।
प्रबंधन इस बात पर विशेष ध्यान देगा कि म्यूजिक सिस्टम से बहुद्देशीय कार्य लिया जाए। जानकारों के अनुसार मंत्रोच्चर मन को शांति देने वाला होती है। ऐसे में मरीज को दर्द में भी सुकून के दो पल मिलेंगे।
"लगभग पांच लाख रुपए की लागत से अस्पताल में 350 माइक्रो स्पीकर लगाए जाएंगे। दो कंट्रोल रूम के जरिए इसका संचालन होगा। जनवरी में मेडिकल कॉलेज में स्वशासी समिति की होने वाली बैठक में इसे मंजूरी मिलने की संभावना है। म्यूजिक सिस्टम आपातकाल में काफी मददगार होगा।"
डॉ. सुनील गुप्ता, सहायक अधीक्षक आंबेडकर अस्पताल

शनिवार, 1 जनवरी 2011

आलेख-1

खुशियाँ ढूँढिए अपने अन्दर!
हम चारों ओर खुशियों की तलाश में भटकते हुए सारा समय व्यर्थ कर देते हैं जबकि खुशी तो हमारे मन में ही बसी होती है। बस जरूरत होती है तो उसे बाहर निकालने की व दूसरों के साथ उन्हें बाँटने की।
खुशियाँ आपके दर पर खुद दस्तक नहीं देतीं। यह तो ईश्वर की तरफ से हरेक को दिया गया अनमोल उपहार है। पर अपने भीतर छिपे इस खजाने को स्वयं आपको खोजना होगा और इसे खोजने के लिए आपके पास कई उपाय हैं। स्वयं को हमेशा ऊँची नजर से देखना और अपने भीतर अपनी प्रतिष्ठा स्वयं बनाए रखने का प्रयास करना हमारी जीवन शैली को बेहतर बनाए रखने के लिए सर्वाधिक जरूरी है।
इसका अर्थ यह है कि आप अपने भीतर की शक्ति और अपनी कमजोरियों दोनों को स्वीकारें और स्वयं को हमेशा दूसरों के मुकाबले बराबरी का दर्जा देते हुए भी अपने भीतर उस ऊर्जा के स्रोत को पहचानकर निखारें, जो आपको दूसरों से अलग और विलक्षण बनाती है। शोध बताते हैं कि व्यायाम करने से हमारे शरीर में रक्त संचार नियमित होता है और हमारा शरीर अपने भीतर एक नई ताजगी और चेतना महसूस करता है। शरीर की यह ऊर्जा चमत्कारिक रूप से हमारे मस्तिष्क को प्रभावित करती है।
जीवन में जो बाँटेंगे, बदले में वही आपको वापस मिलेगा। इसलिए जब कभी आपको अपने भीतर एकाकीपन महसूस हो, अपने खालीपन को दूसरों के बीच भरने का प्रयास करें। इसी क्रम में किसी जरूरतमंद की मदद, किसी अस्पताल में रोगियों को दी गई सांत्वना की हल्की-सी थपकी आपके चेहरे की मुस्कान का कारण बन जाए तो कोई आश्चर्य नहीं। चीजों को दार्शनिक अंदाज से देखने और जिंदगी को बहते पानी की तरह मानने वाले लोग अपने जीवन को अधिक आनंदित बना पाने में सफल होते हैं।
एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि हममें से प्रत्येक को अपने जीवन को अपनी तरह से जीने की जिम्मेदारी समझनी चाहिए। मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं कि यदि एक बार हम निर्णय ले सकें कि हममें परिस्थितियों को बदलने की क्षमता है तो हमारे आसपास का परिवेश सचमुच बदल सकता है।
खुश रहने के लिए सबसे अहम पहलू यह है कि हमें सबसे पहले अपने आपसे अपनी पहचान कायम करनी होगी। हमारे पास जितना है, उसे स्वीकार करना हमारी संतुष्टि के लिए जरूरी है। जो नहीं है, उसे लेकर पीड़ा और संताप का अनुभव करते रहना हमें मानसिक रूप से बीमार बनाताहै। ईश्वर का दिया हमारे पास बहुत कुछ है- यह दृष्टिकोण हमारी प्रसन्नता की कुंजी है।
यूँ तो जीवन उतार-चढ़ावों से भरा है, परंतु आपका आपसी साहचर्य आपके जीवन की खुशियों का केंद्रबिंदु है। अपने साथी के साथ भरोसे और प्रेम का व्यवहार और एक-दूसरे के प्रति समझ आपको निराशा के घने अंधकार से बाहर निकाल सकती है। इसलिए अपने और अपने करीबी को समझने का प्रयास अवश्य करें।
प्रशंसा करना हमारे व्यक्तित्व का सबसे खूबसूरत पहलू है। पर यह काम सभी नहीं कर पाते। यह भी एक कला है, जो धीरे-धीरे ही पैदा होती है। दूसरों की तारीफ करने में हम प्रायः कंजूस हो जाते हैं। आप अपने आसपास के हर अच्छे काम की दिल खोलकर प्रशंसा करें। आप पाएँगे कि दूसरों के चेहरे पर आई मुस्कान आपको ताजगी से भर देती है।
याद रखिए कि घर हमारे जीवन का वह कोना है, जहाँ हम स्वर्ग-सा सुख महसूस करते हैं। इसलिए अपने घर को अपनी तरह से आरामदायक बनाएँ। कभी-कभी उसमें किया गया थोड़ा-सा परिवर्तन चाहे वह पलंग का कोई कोना हो, दीवार पर टँगी कोई तस्वीर या ताजे फूलों कागुलदस्ता, आपकी प्रसन्नता का कारण बन सकता है। इसके अलावा रंग भी हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं। हर रंग का अपना एक महत्व होता है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि नारंगी या केसरिया रंग हमारे विश्वास को बढ़ाता है। हमारी नकारात्मक सोच को अपने भीतर समेटकर हमें प्रफुल्लित और उत्साहित बनाए रखता है।
किसी भी प्रसन्नचित व्यक्ति के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है कि वह हमेशा अपना दृष्टिकोण आशावादी रखे। मनोचिकित्सकों का मानना है कि प्रसन्नता सिर्फ इस बात पर प्राप्त की जा सकती है, यदि हम अपने भीतर दोहराएँ कि हम प्रसन्न स्वभाव के व्यक्ति हैं और हमें हमेशा खुश रहना है। इस तरह की कल्पना करने पर हमारा मस्तिष्क इस संदेश को और इन्हीं भावों को अपने भीतर ग्रहण कर लेता है और हमारे शरीर के स्नायु तंत्रों को भी इसी तरह के निर्देश देता है, तब कल्पना में की गई आपकी धारणा वास्तविक रूप से आपको आनंदित बनाए रख सकती है।

परंपरा की जान है रस्‍में

आज भले ही जमाना बदला, लोगों के विचार बदले, लेकिन नहीं बदला तो वो शादी-विवाह में देवर द्वारा भाभी से चुहलबाजी करना, साली द्वारा जीजा से पैसों के लिए जिद करना, समधी द्वारा समधन से मजाक करना। अनेक रस्मों व रिवाजों के माध्यम से ये वैवाहिक समारोह अंजाम पर पहुँचते हैं, जिसमें वरपक्ष की खुशी व कन्या के अपने बाबुल से विग्रह की पीड़ा अनेक परंपराओं में सिमटती चली आती हैं। यही परंपराएँ दो पक्षों के गंठबंधन को मजबूती प्रदान करती हैं, उन्हें रिश्तों की डोर में बाँधे रखती हैं।
शगुन से शुरुआत
शादी तय होते ही नेग और दस्तूरों की शुरुआत हो जाती है। लड़की वाले ल़ड़के वालों के यहाँ फलदान लेकर जाते हैं तो शगुन के रूप में ससुराल वाले अपनी होने वाली बहु की ओली भरते हैं। इन रस्मों से शुरू हुआ दस्तूरों का सिलसिला विवाह पूर्ण होने के बाद भी कई दिनों तक चलता रहता है।
नई दुल्हन के घर आने पर कुछ घरों में भगवान की कथा की जाती है, तो नवविवाहिता को सुहाग की शुभकामनाएँ देने के लिए सुहागलों का आयोजन भी होता है।
जरूरी है बड़ों का आशीर्वाद
भारतीय परंपरा रही है कि बिना रिश्तेदारों और समाज के लोगों के आशीर्वाद के कोई शुभ कार्य पूरा नहीं होता। तो जब विवाह के रीति-रिवाज की बात हो तो भला हम अपनों के आशीर्वाद को कैसे भूल सकते हैं। नवयुगल को आशीर्वाद देने के लिए भी शादी में कई रस्में हैं।
जैसे कुछ घरों में फेरों के समय दूल्हा-दुल्हन के पाँव पूजे जाते हैं तो ज्यादातर लोग प्रीतिभोज में अपने करीबियों को न्यौता देकर उनका आशीर्वाद लेते हैं। इतना ही नहीं नवेली के घर में आते ही बहु की मुँह दिखाई की रस्म भी बड़ों का आशीष लेने का ही एक माध्यम है।
न खले अकेलापन
जब नई बहू अपने ससुराल आती है तो उसके लिए सभी कुछ नया होता है। नया माहौल, नए लोगों के साथ नये रीति-रिवाज। नई दुल्हन को नई जगह पर अकेलापन न खले इसी उद्देश्य से विवाह पश्चात भी ससुराल में कई छोटी-छोटी रस्में की जाती हैं, जैसे अंगूठी ढूँढना, बहू का नाम रखना और गीत-संगीत होना। जो भी रीति-रिवाज हैं उनका परिवार को जोड़े रखने में बहुत महत्व है। आजकल लोग नहीं मानते तभी घरों में वो अपनापन नहीं रह गया है।
शुभ होते हैं रीति-रिवाज
सदियों से चले आ रहे विवाह के ये रीति-रिवाज शुभ शगुन माने जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इन रस्मों से गुजरने के बाद ही विवाह संपूर्ण होता है। सविता तिवारी का मानना है कि हमारे बड़े बुजुर्गों ने जो हमारी शादी के वक्त रीति-रिवाज बताए थे, वही हम आज भी निभा रहे हैं। शगुन के रूप में की जाने वाली इन रस्मों के पीछे कई वैज्ञानिक और कई पौराणिक महत्व छिपे हुए हैं।
हल्दी बिना शादी अधूरी
चाहे कोई भी समाज हो या वर्ग, ज्यादातर लोगों में विवाह के समय हल्दी और तेल की रस्म बहुत महत्वपूर्ण है। कहीं सात सुहागनें दूल्हा-दुल्हन को हल्दी लगाती हैं, तो कहीं सात कुंवरियाँ हल्दी तेल की रस्म को पूरा करती हैं। राधा दुबे के अनुसार स्थान बदल जाते हैं। परिवेश बदल जाता है।
भाषा बोली में भी अंतर हो सकता है, लेकिन विवाह के रीति-रिवाज सभी जगह लगभग समान होते हैं। जैसे सगाई, फलदान, लगुन, हल्दी, तेल, कंगन, मंडप, मातृका पूजन, फेरे और उसके बाद बहू का द्वारचार, ये कुछ ऐसी रस्में हैं जो अमूमन हर घर और समाज में की जाती हैं। हो सकता है तरीकों में कुछ थोड़ा-बहुत अंतर जरूर हो।
आया है थोड़ा बदलाव
आजकल लोगों की व्यस्तताएँ इतनी बढ़ गई हैं कि हर काम की जल्दी रहती है। यही वजह है कि शादी ब्याह जैसे काम भी जल्दी में पूरे कर लिए जाते हैं। इन व्यस्तताओं के चलते विवाह के रीति-रिवाजों में थोड़ा बदलाव आ गया है। लोगों की मानसिकता में भी अंतर आया है।
यही कारण है कि अब शादियों के भी शॉर्ट-कट होने लगे हैं। पहले जहाँ शादियों में सप्ताह भर लगता था अब वह दो-तीन दिनों में ही हो जाती हैं।
सौजन्य से - नईदुनि‍या