बुधवार, 13 नवंबर 2013

लड़कियों को सेक्‍स ताकत बढ़ाने वाली दवा देकर नारायण साईं के पास भेजती थीं गंगा-जमुना!

बलात्‍कार के आरोपी नारायण साईं की तलाश में पुलिस देशभर में छापेमारी कर रही है। भगोड़ा घोषित किए जाने के बाद भी उसका अभी तक पता नहीं चल सका है। खबर है कि वह दिल्‍ली से सटे ग्रेटर नोएडा में देखा गया है। वहीं, नारायण साईं के खिलाफ एक के बाद एक सनसनीखेज खुलासे भी हो रहे हैं। नारायण साईं पर ताजा आरोप यह है कि उसकी सेविकाएं आश्रम में आने वाली लड़कियों को सेक्‍सवर्धक दवाएं देती थीं। इस बीच, नारायण सांई की करीबी साधिका गंगा के फ्लैट से पुलिस को सांई के दस्तखत वाले छह कोरे चैक मिले हैं। ये एक राष्ट्रीयकृत बैंक के हैं। एक सिमकार्ड भी बरामद हुआ है। मंगलवार को अहमदाबाद में गंगा उर्फ धर्मिष्ठा के फ्लैट पर छापा मारने के बाद पुलिस ने यह कार्रवाई की। छापेमारी के दौरान गंगा व उसका पति प्रमोद मिश्रा भी पुलिस के साथ था। उधर, दुष्कर्म मामले में सांई की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई बुधवार को जारी रहेगी। पुलिस ने याचिका का विरोध करते हुए छह गवाहों के बयान अदालत में पेश किए हैं। उसने इन गवाहों को ए-बी-सी-डी के नाम से दर्शाया है। मंगलवार को सरकारी वकील की दलीलें पूरी होने पर सांई के वकील ने अपना पक्ष रखना शुरू किया। बुधवार को बचाव पक्ष की दलीलें होंगी। नारायण सांई के एक साधक ने सांई के डीएनए टेस्ट की मांग की है। उसने पुलिस को दिए बयान में बताया कि उसके चाचा सांई के सेवक थे। सांई ने चाचा का विवाह अपनी एक सेविका से करा दिया। विवाह के बाद सेविका ने एक बच्चे को जन्म दिया। साधक को लगा कि यह लड़का उसके चाचा का नहीं बल्कि सांई का है। उसने इंदौर की एक अदालत में आवेदन लगाकर सांई के डीएनए टेस्ट की मांग की। इस पर अभी कोई फैसला नहीं आया है। इंदौर स्थित फॉर्म हाउस में बुलाई थीं नौ लड़कियां : ए सांकेतिक नाम के गवाह का आरोप है कि-दस साल पहले सांई ने उसे इंदौर स्थित फॉर्म हाउस में बुलाया था। वहां कुछ समय में नौ लड़कियां आईं। सभी फॉर्म हाउस के ऊपरी मंजिल पर चली गईं, जहां सांई थे। गवाह के मुताबिक पूरी रात सांई ने रंगरेलियां मनाईं। तड़के साढ़े तीन बजे सभी लड़कियां चली गईं। इसके बाद सांई ने नीचे आकर कमरा साफ करने का निर्देश दिया। गवाह के मुताबिक जब वह कमरे में गया तो वहां शराब की बोतल, कोल्ड ड्रिंक आदि पड़ी थीं।

शनिवार, 2 नवंबर 2013

भाजपा में मोदी युग

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की आपत्ति के बावजूद जिस तरह प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया है वह दर्शाता है कि 'पार्टी विद ए डिफरेंस' की छवि से भाजपा बिलकुल बाहर आ चुकी है। साथ ही आरएसएस का जिस तरह इस बार भाजपा पर दबाव रहा वह दर्शाता है कि वह किस तरह पार्टी को नियंत्रित करता है। ऐसे में भाजपा की ओर से कांग्रेस पर लगाये जाने वाले इन आरोपों का औचित्य नहीं समझ आता कि सरकार दस जनपथ से नियंत्रित होती है। यदि ऐसा है तो यह भी सिद्ध हो चुका है कि भाजपा नागपुर से नियंत्रित होती है। बहरहाल, जिन परिस्थितियों में मोदी की उम्मीदवारी का ऐलान किया गया है वह पार्टी की चुनावी संभावनाओं को क्षति पहुंचा सकते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि मोदी का बड़ा जनाधार है लेकिन वह लोकतांत्रिक नहीं माने जाते। भाजपा में नये युग का आरंभ हो चुका है। देखना होगा कि अटल-आडवाणी युग से मोदी-राजनाथ युग कितना भिन्न साबित होता है।

शनिवार, 26 अक्तूबर 2013

bahas karen

kya narendra modi ko desh ki kamaan soupanee chahiye

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस की सधी चालें

कांग्रेस ने चुनावों को दृष्टिगत रखते हुए अपनी चालें बेहद सधे अंदाज में चलनी शुरू कर दी हैं। संसद के मानसून सत्र से पहले जहां तेलंगाना गठन का निर्णय कर एक बड़े विवाद को खत्म करने की दिशा में कदम उठाया गया वहीं सत्र में कांग्रेस 'गेम चेंजर' माने जा रहे अपने दो महत्वपूर्ण विधेयकों खाद्य सुरक्षा विधेयक और भूमि अधिग्रहण विधेयक को पास करवाने में सफल रही। हालांकि अभी इन विधेयकों को राज्यसभा की मंजूरी मिलना बाकी है लेकिन लोकसभा में जिस आसानी से यह विधेयक पास हो गये उसे देखते हुए राज्यसभा में इन्हें किसी प्रकार की मुश्किल पेश आने की उम्मीद नहीं है। अब संसद सत्र के बाद तेलंगाना गठन की प्रक्रिया में तेजी आएगी जिसके तहत गृह मंत्रालय कैबिनेट के समक्ष एक नोट प्रस्तुत करेगा और फिर नए राज्य के गठन को लेकर आंध्र प्रदेश विधानसभा में प्रस्ताव भेजा जाएगा। एकीकृत आंध्र समर्थकों की मांगों पर विचार के भी पार्टी ने संकेत दिये हैं। कांग्रेस का प्रयास है कि संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान लोकपाल विधेयक को पास करा लिया जाए ताकि विपक्ष के पास सरकार को घेरने के लिए मुद्दों का अभाव हो जाए। विपक्ष कांग्रेस नीत संप्रग सरकार को मुख्यतः भ्रष्टाचार, आतंकवाद के प्रति कथित नरम रुख और महंगाई के मोर्चे पर घेरता रहा है। भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों के खुलासों ने निश्चित ही सरकार की छवि को ठेस पहुंचाई है लेकिन समय समय पर सरकार की ओर से कार्रवाई के माध्यम से यह संकेत दिया जाता रहा है कि वह भ्रष्टाचारियों को नहीं बख्शेगी। हालांकि कोयला खदान आवंटन संबंधी फाइलें गायब हो जाना सरकारी महकमे में व्याप्त भ्रष्टाचार को और बड़े नेताओं का नाम आने पर कैसे मामले को दबाने को प्रयास किया जाता है, यह दर्शाता है। आतंकवाद के मोर्चे पर सरकार को जरूर कुछ कामयाबी मिली है। कुछ बड़े आतंकवादियों को सुनाई गई सजा ए मौत के आदेश पर अमल किया गया तथा कुछ भागते फिर रहे बड़े आतंकवादी गिरफ्त में आए, जिससे सरकार को कुछ राहत मिली। जहां तक अर्थव्यवस्था की बात है तो यह बात खुद प्रधानमंत्री ने मानी है कि यह मुश्किल घड़ी है। विपक्ष जहां इस हालत के लिए सरकारी नीतियों को दोषी ठहरा रहा है तो वहीं सरकार इसके लिए बहुत हद तक वैश्विक हालात को जिम्मेदार मानती है। सरकार ने हाल ही में विभिन्न क्षेत्रों में एफडीआई नियमों में ढील प्रदान की है और इस प्रयास में है कि लोकसभा चुनावों से पहले यह निवेश देश में आए और इसके सकारात्मक प्रभाव दिखने लगें। सरकार के समक्ष पिछले दो तीन वर्षों में बड़ी चुनौती बन कर उभरे कुछ समाजसेवियों और सामाजिक संगठनों के आंदोलन भी अब ठंडे पड़ चुके हैं। शुरू में सरकार के हठ के चलते ही इन आंदोलनों को गति मिली थी लेकिन बाद में सरकार की कूटनीति के चलते यह आंदोलन खुद ही शांत होते चले गये। संप्रग सरकार के समक्ष इस बार बड़ी चुनौती है क्योंकि दस वर्षों के उसके कार्यकाल में सकारात्मक बातें भी हुईं तो नकारात्मक बातें भी खूब रहीं। जनता के मन के बारे में कई सर्वेक्षणों का कहना है कि वह बदलाव के मूड में है। शायद यह भी एक कारण हो कि संप्रग सरकार अपने वादों को पूरा करने में बेहद जल्दबाजी दिखा रही है। ऐसे समय में जबकि कई आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि अर्थव्यवस्था की खराब हालत के चलते खाद्य सुरक्षा विधेयक लाना सही नहीं है, संप्रग सरकार इसे मजबूती के साथ लेकर आई है। भूमि अधिग्रहण विधेयक को भी वाणिज्यिक संगठनों ने पीछे ले जाने वाला कदम बताया है। लेकिन कांग्रेस जानती है कि उसे अभी कारपोरेट जगत या विशेषज्ञों की सराहना की नहीं बल्कि जनता के उस वर्ग के वोटों की सख्त जरूरत है जोकि मतदान करने जरूर जाता है। कांग्रेस ने केंद्रीय स्तर पर और कई प्रदेशों में संगठन में बदलाव कर भी चुनावी तैयारियों को गति प्रदान की है। पार्टी ने आजकल काफी चर्चित हो रहे सोशल मीडिया में अपने पिछड़ने को स्वीकार कर इस दिशा में कई कदम उठाये हैं। पिछले दिनों पार्टी ने 'खिड़की' नाम से ऑनलाइन सामाजिक मंच तैयार किया जहां लोगों को अपने विचार प्रकट करने की और विभिन्न मुद्दों पर चर्चा आयोजित करने की पूरी आजादी है। पार्टी ने प्रवक्ताओं का एक बहुत बड़ा पैनल भी तैयार किया है जिसको ऑनलाइन सामाजिक मंचों पर पार्टी की उपस्थिति मजबूत करने के लिए हाल ही में कांग्रेस मुख्यालय में गूगल और टि्वटर के भारतीय प्रमुखों ने सुझाव भी दिये। कांग्रेस जनता को आरटीआई जैसा बड़ा हथियार देने, पारदर्शिता बरतने और चुनाव सुधार के नाम पर बड़े बड़े दावे और वादे तो करती है लेकिन हाल ही में केंद्रीय कैबिनेट ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दागियों के चुनाव लड़ने पर लगाई गई रोक हटाने को मंजूरी दे दी। इसके अलावा मंत्रिमंडल ने राजनीतिक दलों को सूचना उपलब्ध कराने से सुरक्षा प्रदान करने के लिए आईटीआई कानून में संशोधन को भी मंजूरी प्रदान की। यह सही है कि इन दोनों मामलों में कैबिनेट पर सभी दलों का दबाव था लेकिन सरकार के पास यह एक मौका था जब वह अपनी छवि को सुधार सकती थी। संप्रग अपने वर्तमान स्वरूप के साथ ही चुनाव में जायेगा यह तो तय हो चुका है और सीटों के बंटवारे पर भी अंदरखाने चर्चा शुरू हो चुकी है। लेकिन कुछ राज्यों के बारे में स्थिति बिलकुल स्पष्ट नहीं है जैसे कि कांग्रेस को अभी यह तय करना है कि वह उत्तर प्रदेश में सिर्फ रालोद के साथ ही सीटों का बंटवारा करे या फिर सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में से किसी के साथ मिलकर चुनाव लड़े। बिहार में भी स्थिति साफ नहीं है। वहां कांग्रेस ने पिछला चुनाव अपने बलबूते लड़ा था इस बार उसे चयन करना है कि संभावित सहयोगी जनता दल यू के साथ मिलकर लड़ें या फिर पुराने सहयोगियों लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान के साथ ही चुनाव मैदान में उतरा जाए। पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में भी ऐसी ही तसवीर है। बंगाल में ममता साथ आने को तैयार नहीं हैं ऐसे में कांग्रेस के समक्ष 'एकला चलो' की मजबूरी है वहां वामपंथी दल चुनाव बाद सरकार को सहयोग कर सकते हैं। आंध्र प्रदेश में कांग्रेस मानकर चल रही है कि तेलंगाना में तो वह टीआरएस के साथ मिलकर लाभ में रहेगी और आंध्र में वाईएसआर कांग्रेस का सहयोग लेने पर माथापच्ची जारी है। बहरहाल, बहुत कुछ राजनीतिक समीकरण टिके हैं इस वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजों पर। दिल्ली और राजस्थान में जहां कांग्रेस के समक्ष सत्ता में वापसी की चुनौती है तो वहीं मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में वह दस वर्षों बाद सत्ता में आने के प्रयास में है। यह विधानसभ चुनाव चूंकि नवंबर माह में होने हैं ऐसे में कांग्रेस के पास बेहद कम समय है मतदाताओं को लुभाने के लिए।