शनिवार, 31 जुलाई 2010

रोमांस

प्यार में वादा निभाने की परीक्षा

हेलो दोस्तो! जब सालोंसाल कोई प्रेमी जोड़ा एक-दूसरे की चाहत में डूबा रहता है। तब उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि चाहे जीवन में कैसा भी तूफान क्यों न आ जाए वे जुदा नहीं होंगे। वे एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ेंगे। समाज, परिवार, धर्म और वर्ग आदि की सीमाएँ उन्हें आगे बढ़ने से नहीं रोक पाएँगी।
फिर चाहे किसी दूसरे को उनके इरादों पर विश्वास न भी हो पर वे खुद आँखें बंद कर अपने साथी पर विश्वास करते हैं। आपस में किए गए कसमों-वादों को गीता का वचन मानते हैं। उनकी इस प्रेम-भक्ति को देखते हुए ऐसा लगता है कि इनके प्रेम का स्रोत अनंतकाल तक बहता ही रहेगा। इसमें आई बाधा से ये अपनी जान ही दे देंगे। पर कई बार ऐसा होता है कि परिवारवालों के भावुक उलाहने और धमकी से कोई एक व्याक्ति पीछे हट जाता है। कभी अपनी माँ तो कभी समाज का दबाव बताकर साथ छोड़ देता है। उस समय दोस्तों, रिश्तेदारों, परिवारजनों को उतना आश्चर्य नहीं होता जितना कि ठुकराए गए साथी को।
क्योंकि ठुकराए गए साथी ने ही उस बेवफा की चाहत को पूरी शिद्दत से महसूस किया है, जाना है। उस बेवफा ने उससे हजारों बार कसमें ली हैं। उसके कदमों में गिरकर प्यार की भीख माँगी है। हमेशा प्यार बरसाते रहने की मिन्नतें की हैं और आज वह बड़ी आसानी से अपनी कोई मजबूरी दिखाकर पीछे हट रहा है। इसे ठुकराया गया साथी कैसे बर्दाश्त करे।
इसीलिए इस प्रकार के निर्णय से वह बेहद विचलित हो जाता है। उसका दिल इतनी बुरी तरह से टूट जाता है कि वह अवसाद में चला जाता है। कई बार उसका मानसिक संतुलन बिगड़ने लगता है और वह जीवन से निराश होकर आत्महत्या तक की कोशिश कर डालता है।
एक व्यक्ति के लिए वह प्यार जो वरदान था अभिशाप बन जाता है। प्रश्न यह उठता है कि इस प्रकार ठुकरा दिए जाने पर क्या अपनी जिंदगी को तबाह कर लेनी चाहिए? एक ऐसा व्यक्ति जिसने आपको ठुकराते समय रत्ती भर भी आपकी परवाह नहीं की क्या उसके लिए बाकी का जीवन भी भेंट चढ़ा देना उचित है? उस बेवफा की चाहे जो भी मजबूरी रही हो, भावनाओं की इतनी लंबी राह साथ तय करने के बाद इस प्रकार बीच से उसका भाग खड़ा होना माफ किया जा सकता है? ऐसे लोगों से प्यार की भीख माँगना, गुहार करना किसी भी प्रकार जायज नहीं है। वह व्यक्ति किस चरित्र का है, इसे विश्लेषण करने की जरूरत अब नहीं है।
अगर इस प्रकार के प्रेमी घरवालों के भावुक फैसले का सम्मान करते हुए पीछे हट जाते हैं तो इसका सीधा मतलब होता है वह अपने साथी की अपेक्षा अपने परिवारवालों को तरजीह दे रहा है। उसे आपकी नहीं, केवल अपनी परवाह है। आपके प्रति उसकी क्या भावना है वह इस निर्णय से ही साफ है।
जब इस प्रकार एक प्रेमी किसी निजी बहाने को आधार बनाकर बेवफाई करता है तो उसे बार-बार संपर्क नहीं करना चाहिए। उसे तंग करने पर वह कई बार यह कहकर पीछा छुड़ा लेता है कि कुछ साल इंतजार करो, सब ठीक होते ही हम एक साथ हो जाएँगे। क्या इन वादों पर भरोसा करना समझदारी होगी? जो शख्स सालों से दुहराते वादे को नहीं निभा सका वह अब कर रहा वादा कैसे निभाएगा। वह जा चुका है यह मान लेने में ही आपकी भलाई है।
जीवन में जब कोई भ्रम टूटता है तो उससे निराश होने के बजाय खुद को आशाओं से भरना चाहिए। प्रेम करना दरअसल परीक्षा देने के समान होता है। समय-समय पर भावना, विश्वास, समर्पण, चरित्र आदि की परीक्षा देनी ही पड़ती है।
किसी के लिए अपना जीवन समर्पित कर देने में कोई बुराई नहीं है पर वह पात्र भी उसका हकदार होना चाहिए। अपने-आपको बेवकूफ बनाए जाने की किसी को इजाजत देना किसी भी प्रकार सही नहीं है। ठुकराया गया व्यक्ति यही सोचता रहता है कि वह कितना अभागा है, उसकी तकदीर कितनी खराब है जो मेरा प्रेमी मुझे ठुकराकर चला गया। पर सच यह है कि आप भाग्यशाली हैं जो आपको उसकी नीयत का पता चल गया है। इसे आप ऐसे समझें कि आपके घर कोई व्यक्ति हमेशा आता था।
आप उस पर भरोसा करने लगे, धीरे-धीरे अपना घर-बार भी उस पर छोड़कर जाने लगे। आपकी ज्यादातर जमा-पूँजी के विषय में वह जानता है पर अभी भी आपने उसे बहुत सारी संपत्ति के बारे में नहीं बताया है। वह व्यक्ति किसी भी कारण से मजबूरीवश या चालाकी से आपका माल लेकर चंपत हो जाता है। संपर्क करने पर वह उचित जवाब नहीं दे पाता है। उसके इस धोखे व चालबाजी पर रोना चाहिए या जो कुछ बच गया है और आगे बच सकता है उस पर खुश होना चाहिए।
जीवन में जब कोई भ्रम टूटता है तो उससे निराश होने के बजाय खुद को आशाओं से भरना चाहिए। प्रेम करना दरअसल परीक्षा देने के समान होता है। समय-समय पर भावना, विश्वास, समर्पण, चरित्र आदि की परीक्षा देनी ही पड़ती है। आप यह समझें कि आप पास हो गए हैं और दूसरा फेल हो गया। क्या पास होने वाले को दुखी होना चाहिए। जिसने सच्चाई से अपनी मुहब्बत को निभाया है उसे जरूर उसका कद्रदान मिलेगा। जिसने गलत ढंग से दिल तोड़ा है उसे कभी सच्ची मुहब्बत नसीब नहीं होगी।
जीवन की सच्चाई को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ना ही आज का लव-मंत्र है। अपनी जिंदगी, अपने समय का सम्मान करें। यह लव-मंत्र एक ऐसी लड़की के जवाब में है जो बेवफा साथी से लौट आने की गुहार कर रही है और उसकी याद में अपना मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य खराब कर रही है।


मुझसे दोस्ती करोगे....?

जीवन की इस आपाधापी में, भीड़भाड़ में कभी न कभी, कहीं न कहीं, कोई एक शख्स ऐसा मिल जाता है, जिसके बारे में आप जानना चाहते हैं, दोस्ती करना चाहते हैं और चाहते हैं कि वह भी आपके बारे में वैसा ही सोचे और महसूस करे, जैसा आप उसके बारे में सोचते हैं और महसूस करते हैं....!

अपने दिल की बात उसके सामने कैसे रखें यह एक सबसे बड़ी समस्या है। तो आइए हम आपकी थोड़ी सहायता किए देते हैं :
यदि वह शख्स आपके कॉलेज या यूनिवर्सिटी का है तो आपके लिए उसके सामने अपने दिल का हाल सुनाने का सबसे अच्छा स्थान लाइब्रेरी या कैंटीन हो सकता है। यदि आप एक-दूसरे को जानते हैं तो अपनी बातचीत की शुरुआत हालचाल पूछने और पढ़ाई की बातों से कीजिए और यदि आप दोनों एक-दूसरे से वाकिफ नहीं हैं तो कोई बात नहीं!कैंटीन हो या लाइब्रेरी अपने बैठने के लिए ऐसे स्थान का चयन करें कि आपकी नजर उस पर सीधी पड़े और वह भी आपको बगैर किसी रुकावट के देख सके। ऐसे में नजरें मिलने की स्थिति में हौले से मुस्कुराना ही काफी होगा। और यदि फिर से नजरें मिलें तो कुछ देर तक उसकी आँखों में देखें और धीरे से नजरें चुरा लें। यदि उसकी आपमें रुचि है तो वह जरूर आपकी ओर अपनी दोस्ती का हाथ बढ़ाएगा।
यदि आप पुरुष हैं तो भी ऐसा ही करें लेकिन इस बात का ध्यान जरूर रखें कि वह आपमें रुचि ले रही है या नहीं अन्यथा लेने के देने पड़ जाएँगे।
यदि वह शख्स आपके फ्रेंड सर्कल या सोश्यल ग्रुप में है या फिर ऐसी जगह पर आपको मिला है, जहां आप दो-तीन घंटे बिताने वाले हैं तो उसे आकर्षित करने के लिए आप फिल्मी हथकंडे अपना सकते हैं लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि ये हथकंडे उसे आहत करने वाले न हों और बनावटी न लगें। इसके लिए यदि आप लड़की हैं तो अपनी अदाओं से उसे अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करें। याद रखें आपका व्यवहार शालीन तथा नम्र हो। पुरुष इसके लिए अपनी छुपी प्रतिभा के माध्यम से अपनी छवि बना सकते हैं।
किसी सामाजिक संस्था का सदस्य होने की स्थिति में संस्था के कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लें, ऐसे में आपकी अलग पहचान स्थापित होगी, जो आपको उसके करीब ले जाने में मददगार साबित होगी।
आपके सपनों का शहजादा या शहजादी आपको ऐसी जगह पर भी मिल सकता है, जहाँ आप अपने दिन का ज्यादातर हिस्सा व्यतीत करते हैं। ऐसी जगह आपका इंस्टीट्यूट, कोचिंग क्लास या ऑफिस भी हो सकता है। ऐसे में आप किसी न किसी बहाने उससे बात करने का मौका निकाल सकते हैं।
कॉलेज की पिकनिक या डिस्को ऐसे स्थल हैं, जहाँ आप उससे किसी न किसी तरह से बात कर सकते हैं या अपनी अदाओं से उसे अपने पर फिदा होने के लिए मजबूर कर सकते हैं। ऐसे स्थलों पर जाने से पहले इस बात का पता करें कि वह जाने के लिए तैयार है या नहीं! इसके बाद तैयारी कीजिए कि आप किस तरह से उसकी नजरों में आ पाएँगे। इस काम के लिए सबसे पहले आपको अपने ड्रेसअप पर ध्यान देना होगा।
पिकनिक पर जब अंताक्षरी आदि का दौर चल रहा हो तो हमेशा उसकी विरोधी पार्टी में शामिल हों, ऐसे में आप अपने दिल की बात गानों की शक्ल में उसके सामने रख सकते हैं। पिकनिक स्थल पर कोई ऐसी जगह ढूँढें, जहाँ आप उससे अकेले मिल सकें और हाले-दिल बयां कर सकें।
और यदि वो डिस्को में मिल रहे हों तो क्या बात है...? यहाँ आप अपनी डांस स्टेप्स के जरिए उसे इम्प्रेस कर सकते हैं। इसके अलावा आप डिस्को के डीजे से कहकर बॉल डांस या कोई और ऐसा म्यूजिक बजवा सकते हैं, जिसमें कपल की जरूरत हो। ऐसा करके आप उसे अपने करीब ला सकते हैं।
आपके सपनों का शहजादा या शहजादी आपको ऐसी जगह पर भी मिल सकता है, जहाँ आप अपने दिन का ज्यादातर हिस्सा व्यतीत करते हैं। ऐसी जगह आपका इंस्टीट्यूट, कोचिंग क्लास या ऑफिस भी हो सकता है। ऐसे में आप किसी न किसी बहाने उससे बात करने का मौका निकाल सकते हैं।
लेकिन इन सभी बातों के लिए एक बात का ध्यान जरूर रखें कि आप जहाँ कहीं भी अपने दिल की बात 'उनसे' कहें, आपका अंदाजे बयां कुछ ऐसा होना चाहिए कि किसी दूसरे को इसका जरा भी संदेह न हो। नहीं तो आपकी बात आगे बढ़ने से पहले ही उसकी कहानी बना दी जाएगी। ऐसे में चाहे-अनचाहे आपके कदम पीछे हटने लगेंगे।


प्रेम है एक मासूम अहसास
प्रेम है एक कोमल सी छुअन
जो बादल सी घुमड़ती है पल-पल
जो झरने सी झरती है झर-झर
जो बूँदों सी बरसती है झम-झम
या पायल सी खनकती है छम-छम।

प्रेम है एक मासूम अहसास
जो छुपा है सृष्टि के हर मन में
चँदा और बदली के आलिंगन में
धरती और गगन के मिलन में
या वृक्ष पर लता के आरोहण में।

प्रेम है एक शाश्वत सत्य
जो जीवन को देता है संबल
मन में जगाए विश्वास हर पल
जो हम फैलाए स्नेह का आँचल
तो ये धरती क्यों ना बने स्वर्ग-तल।

बुधवार, 21 जुलाई 2010

बहस-३

ये कैसा लोकतंत्र
बिहार विधानसभा मे जो कुछ हुआ .देश को शर्मशार करने के लिए काफी है.ऐसे जनप्रतिनिधियों को दोबारा चुनकर भेजना चाहिए .

सोमवार, 19 जुलाई 2010

बहस-२

ट्रेन हादसों के लिए जिम्मेदार है.
१.रेलवे की व्यवस्था

२.विभाग की लापरवाही

३.कर्मचारियों की मनमानी

हमारे देश मे हर महीने ट्रेन हादसे होतीं है.इसके लिए निश्चित ही रेल विभाग जिम्मेदार है.लेकिन व्यवस्था भी उतनी ही जिम्मेदार है.

रविवार, 18 जुलाई 2010

बहस-१

पाक से क्या बात करना चाहिए
भारत की सहृदयता के बाद भी पकिस्तान आखें दिखा रहा है. इसके बाद भी भारत वार्ता पर जोर दे रहा है.
क्या भारत को ऐसे मे बात करना चाहिए .या पकिस्तान को कड़ा जवाब देना चाहिए.

दोस्तों एवं पाठकों को न्योता

बहस मे भाग लीजिए
खुल्लम खुल्ला मे आज से हम बहस चालु कर रहे है .आप भी अपना विचार देवे .

सोमवार, 5 जुलाई 2010

सुरक्षा

कैसे करें छोटे कीड़ों से बचाव
इन दिनों कीड़े जो दिखाई नहीं देते वे भी शरीर को नुकसान पहुँचाते हैं। खुजली, सूजन और एलर्जी इन्हीं की देन है। ये अधिकतर नमी और गरम स्थानों पर डेरा डाले रहते हैं। इनसे बचने के लिए :
1. घर में धूल न जमने दें।
2. घर के हर कोने की नियमित सफाई करें।
3. बेडशीट, तकिए, गद्दे आदि को झटककर साफ करते रहें।
4. पायरेथ्रिन स्प्रे या पावडर छिड़कने से भी इनसे निजात मिल सकती है।
5. पालतू जानवरों को शैम्पू करने के बाद ही कमरों में लाएँ।
6. बिस्तर इस मौसम में नम हो जाते हैं इसलिए जैसे ही धूप निकले बिस्तर को धूप में रखें।

जीवन के रंगमंच से ...

बंद करो, यह बंद...!
स्मृति जोशी
बंद, यानी सब कुछ बंद। सब शांत और सड़कों पर पसरा सन्नाटा। मगर यह क्या? यह कैसा बंद है? बंद, जिसमें सब चल रहा है। सब बढ़ रहा है। बंद, जिसमें हिंसा चल रही है। बंद, जिसमें परेशानी बढ़ रही है। इस बंद में इतना शोर है, डर और आतंक है तो फिर यह कैसा बंद है? आज महँगाई के विरोध में भारत बंद का आह्वान है। हर छोटे-बड़े शहरों में बंद का असर देखा जा रहा है। जो बंद नहीं है उसे करवाया जा रहा है।
सवाल यह है कि किसी बात के विरोध का यह तरीका अगर स्वीकार्य है तो सिर्फ और सिर्फ इस शर्त पर कि सब कुछ शांतिपूर्ण और अनुशासन में होगा। लेकिन देश भर में ऐसे बंद कैसे और किस प्लानिंग के साथ अंजाम दिए जाते हैं यह हम जानते हैं। लेकिन बेबस हैं हम। यह बंद आखिर हमारे लिए ही तो हो रहा है।

इस बंद में जिस तरह की तस्वीरें सामने आ रही है, वह निहायत ही शर्मनाक है। ट्रेन और बस से उतरते यात्रियों के साथ बिना बात की मारपीट और बदतमीजी! आखिर किसने इन बंद समर्थकों को यह हक दिया कि सरेआम किसी के साथ अशोभनीय-असम्मानजनक व्यवहार करें? निहत्थे और निर्दोष यात्री कुछ समझे-संभले उससे पहले चाँटों की बरसात! कितना भद्दा लगता है यह सोचकर कि हमारे अपने ही देश में हम सुरक्षित नहीं। हमारी अपनी कोई इच्छा या जरूरत नहीं। हमारी अपनी कोई जिंदगी नहीं। हमें जो भी करना है किसी और के द्वारा रचे गए सत्ता के घिनौने खेल को देखते हुए करना है। यह कैसे शुभचिंतक हैं हमारे जो हमारे हक के लिए लड़ रहे हैं लेकिन हमसे ही लड़ रहे हैं। हमें ही पीट रहे हैं। बसों में तोड़फोड़, आगजनी, हाथापाई? ये कैसी असभ्यता पर उतर आते हैं तथाकथित 'सामाजिक' लोग?

बंद में जो वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं वह हैं यात्री। जिनकी ना जाने कौन-सी ऐसी मजबूरी थी कि घर से निकलना ही पड़ा है। हम नहीं समझते ऐसी किसी भी मजबूरी को। संवेदनशीलता के स्तर पर हमारी सोच वहाँ तक पहुँचती ही नहीं है जहाँ तक पहुँचना मानवीय होने की पहली शर्त है। परेशान होने वाले अन्य वर्ग में शामिल होते हैं महिलाएँ, बच्चे और मरीज।

बार-बार कहें और बार-बार लिखें, तब भी मानसिक रूप से लाचार उपद्रवी वर्ग को यह बात कभी समझ में नहीं आती कि शासन करने के लिए दबाव से दिलों में जगह नहीं बनाई जा सकती। सामान्य-जन के दिलों में स्थान बनाने के लिए उन्हें सम्मान और सुरक्षा की दरकार है। अगर महँगाई को कम करने की माँग के लिए हल्की हरकतें की जाती हैं तो बेहतर है कि महँगाई बनी रहे लेकिन सभ्यता सस्ती ना हो, संस्कार सस्ते ना हो और कानून सस्ता ना हो। 'बंद' अगर इतना 'खुला' है गलत गतिविधियों के लिए, तो बंद करो यह 'बंद'...!

देसी गर्ल

रोशनी चोपड़ा बनी देसी गर्ल

‘देसी गर्ल’ की विजेता का नाम घोषित होने से पहले कश्मीरा शाह का दावा सबसे मजबूत माना जा रहा था। दूसरा नाम इशिता अरुणा का था। तीसरी फाइनलिस्ट रोशनी चोपड़ा को कमजोर प्रतिद्वंद्वी कहा जा रहा था, लेकिन जो परिणाम घोषित हुआ उससे सब चौंक गए। रोशनी चोपड़ा ने ‘देसी गर्ल’ का खिताब अपने नाम कर लिया।
चंडीगढ़ के निकट सियाल्बा माजरी नामक गाँव में आठ लड़कियों ने ग्रामीण जिंदगी जी। चूल्हे पर खाना पकाया, गोबर उठाया, भैंसों को नहलाया और वो सभी काम किए जो गाँव में रहने वाली लड़की करती है। लेकिन लोगों का दिल जीतने में रोशनी कामयाब रहीं।
30 वर्षीय रोशनी को सियाल्बा माजरी के लोगों के अलावा पूरे भारत से सर्वाधिक वोट मिले।

सोनम कपूर

एक हीरोइन बहन-बेटी जैसी
अनिल कपूर की बेटी सोनम क्या कभी कोई बोल्ड भूमिका करेंगी? बोल्ड कपड़े पहनेंगी? बोल्ड संवाद अदा करेंगी? पर्दे पर वे हीरोइन कम और भले घर की बहन-बेटी अधिक जान पड़ती हैं। जाहिर है निर्देशकों को निर्देश रहते हैं कि सोनम पर कैमरा बहन-बेटी वाली नजर से घूमे। अभी तक सोनम की तीन फिल्में आई हैं और तीनों में सोनम बहन-बेटी ही लगी हैं। दर्शकों के अचेतन में यह बात बजती रहती है कि यह लड़की अनिल कपूर की बेटी है।

लड़कियों के प्रति फिल्म इंडस्ट्री का यह दोहरा रवैया है। जो लड़की किसी बड़े आदमी की बहन-बेटी नहीं है, उसे कैमरा गरीब की जोरू की तरह बेवजह यहाँ-वहाँ से घूरकर देखता है। मगर बड़े आदमी की बेटी सामने आते ही कैमरे की नजर पैरों के ऊपर नहीं जाती। यह गलत रवैया है। इस तरह के रवैए के साथ बड़े आदमी की बहन-बेटी दो-चार फिल्में तो कर सकती हैं, ज्यादा नहीं।

करिश्मा कपूर ने अपनी पहली ही फिल्म में बिकनी पहनी थी। करीना अपने बदन को अपनी मर्जी से ढँकती-उघाड़ती हैं। जहाँ जरूरी समझती हैं, वहाँ पीछे नहीं रहतीं और जहाँ जरूरी न हो, वहाँ उनसे कहने की किसी में हिम्मत भी नहीं है।

सोहा अली खान कुछ समय तक शर्मिला की बेटी और सैफ की बहन बनकर रहीं मगर हाल ही में आई एक फिल्म में उन्होंने चुंबन दृश्य भी दिए हैं। राजेश खन्ना की बेटी ट्विंकल और रिंकी खन्ना ने भी जितनी फिल्में की उनमें कहीं भी यह नहीं था कि ये हीरो-हीरोइन की बेटियाँ हैं। खुद काजोल की अपनी इतनी बड़ी पहचान बनी कि लोग उन्हें तनुजा की बेटी के रूप में याद नहीं करते।

कई लड़कियाँ आती हैं और वे सोचती हैं कि कैमरे के सामने कम कपड़ों में पेश होने से कामयाबी मिल जाएगी। अगर अंग-प्रदर्शन कामयाबी की जमानत नहीं है, तो बहनजी टाइप रहने से भी कामयाबी मिलेगी इसमें शक है।

कैमरे के सामने जब कोई लड़की हो, तो उसे यह भूल जाना चाहिए कि वह किसकी बेटी है, या किसकी बेटी नहीं है। वहाँ तो रोल के मुताबिक ही पोशाक और हाव-भाव होने चाहिए।

सोनम कपूर को देखकर एक किस्म की उलझन होती है। यह उलझन निर्देशक द्वारा बरते गए उस लिहाज से पैदा होती है जिसके तहत वे अनिल कपूर की बेटी को कपूर की टिकिया की तरह ढँककर, लपेटकर पेश करते हैं। हवा लगने से कपूर उड़ सकता है सोनम कपूर नहीं। आधुनिक कपड़े भी सोनम को पहनाए जाते हैं, तो यह ध्यान रखा जाता है कि "बेबी" वल्गर न लगे।

फिल्म "आई हेट लव स्टोरीज" में नायक के लिए दैहिक-संबंध कोई मायने नहीं रखते, मगर वह नायिका को पूजनीय ही बनाए रखता है। उसके साथ चुंबन तक की स्वतंत्रता नहीं लेता। सोनम कपूर इस तरह तो बहुत देर तक नहीं चल पाएगी। फिल्म इंडस्ट्री उन्हें अनिल कपूर की बेटी समझकर हमेशा लिहाज कर सकती है, पर दर्शक नहीं।

कुछ दिन बाद दर्शक सोनम कपूर का नाम सुनते ही अंदाजा लगा लेंगे कि उनका रोल किस तरह का होगा। यह सोनम कपूर के लिए भी खतरनाक है और उन्हें लेकर फिल्म बनाने वाले अन्य लोगों के लिए भी।