सोमवार, 27 दिसंबर 2010

संजय नहीं, शकुनी बन गए हैं पत्रकार

राजनीति के अपराधीकरण पर किए गए विभिन्न अध्ययनों के दौरान जो निष्कर्ष प्राप्त हुआ था वह आज पत्रकारों के राजनीतिकरण पर भी सटीक बैठ रहा है। मोटे तौर पर विधानमंडलों में अपराधियों की बढ़ती संख्या का कारण यह था कि पहले नेताओं ने अपने प्रतिद्वंद्वियों को दुश्मन समझ उसे निपटाने के लिए किराए के लिए बाहुबलियों की मदद लेना शुरू किया। बाद में उन आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को लगा कि जब केवल ताकत की बदौलत ही सांसद-विधायक बना जा सकता है तो बजाय दूसरों के लिए पिस्तौल भांजने के क्यों न खुद के लिए ही ताकत का उपयोग शुरू कर दिया जाए। नतीजा, वे सभी अपनी-अपनी ताकत खुद के लिए उपयोग करने लगे और ग्राम पंचायतों से लेकर संसद तक अपराधी ही अपराधियों की पैठ हो गई। अब चुनाव प्रणाली में नए-नए प्रयोगों के दौरान भले ही असामाजिक तत्वों पर कुछ अंकुश लगा हो लेकिन यह फॉर्म्युला अब पत्रकारों ने भी अपनाना शुरू कर दिया है।
हाल तक पत्रकारिता के लिए भी पेड न्यूज़ चिंता का सबब बना हुआ था। लेकिन राडिया प्रकरण के बाद यह तथ्य सामने आया कि कलम को लाठी की तरह भांजने वाले लोगों ने भी यह सोचा कि अगर केवल कलम या कैमरे से ही किसी की छवि बनाई या बिगाड़ी जा सकती हो तो क्यों न ऐसा काम केवल खुद की बेहतरी के लिए किया जाए? कल तक जो कलमकार नेताओं के लिए काम करते थे, अब वे नेता बनाने या पोर्टफोलियो तक डिसाइड करवाने की हैसियत में आ गए। अगर इस पर लगाम न लगाई गई तो कल शायद ये भी खुद ही लोकतंत्र को चलाने या कब्जा करने की स्थिति में आ जाएं।
2 G स्पेक्ट्रम घोटाले के खुलासे ने इस ओर ध्यान दिलाया है कि पत्रकारिता की सरांध को भी रोकने के लिए समय रहते ही कोशिश करनी होगी। यह सरांध केवल दिल्ली तक ही सिमटा नहीं है बल्कि कालीन के नीचे छुपी यह धुल, टर के ढक्कन के नीचे की बदबू राज्यों की राजधानियों और छोटे शहरों तक बदस्तूर फ़ैली हुई है।
संविधान द्वारा आम जनों को मिली अभिव्यक्ति की आज़ादी का सबसे ज्यादा उपयोग पत्रकारों को करने देकर समाज ने शायद एक शक्ति संतुलन स्थापित करना चाहा था। अपने हिस्से की आज़ादी की रोटी उसे समर्पित करके समाज ने यह सोचा होगा कि यह ‘ वॉच डॉग ’ का काम करते रहेगा। नई-नई मिली आज़ादी की लड़ाई में योगदान की बदौलत इस स्तंभ ने भरोसा भी कमाया था। लेकिन शायद यह उम्मीद किसी को नहीं रही होगी कि यह ‘ डॉग ’ भौंकने के बदले अपने मालिक यानी जनता को ही काटना शुरू कर देगा। हाल में उजागर मामले का सबसे चिंताजनक पहलू है समाज में मीडिया की बढ़ती बेजा दखलंदाजी।
निश्चित ही कुछ हद तक मीडिया की ज़रूरत देश को है। लेकिन लोगों में पैदा की जा रही ख़बरों की बेतहाशा भूख ने अनावश्यक ही ज़रूरत से ज्यादा इस कथित स्तंभ को मज़बूत बना दिया है। यह पालिका आज ‘ बाज़ार ’ की तरह यही फंडा अपनाने लगा है कि पहले उत्पाद बनाओ फ़िर उसकी ज़रूरत पैदा करो। सुधीश पचौरी ने अपनी एक पुस्तक में ‘ ख़बरों के भूख ’ की तुलना उस कहानी ( जिसमें ज़मीन की लालच में बेतहाशा दौड़ते हुए व्यक्ति की जान चली जाती है) के पात्र से कर यह सवाल उठाया है कि आखिर लोगों को कितनी खबर चाहिए? तो वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ख़बरों की बदहजमी रोकने हेतु उपाय किया जाना समीचीन होगा।
शास्त्रों में खबर देने वाले को मोटे तौर पर ‘ नारद ’ का नकारात्मक रूप देकर उसे सदा झगड़े और फसाद की जड़ बताया गया है। इसी तरह महाभारत के कथानक में संजय द्वारा धृतराष्ट्र को सबसे पहले आंखों देखा हाल सुनाने की बात आती है। लेकिन महाभारत में यह उल्लेखनीय है कि आंखों देखा हाल सुनाने की वह व्यवस्था भी केवल अंधे राजा के लिए की गई थी। इस निमित्त संजय को दिव्यदृष्टि से सज्जित किया गया था। आज के मीडियाकर्मियों के पास भले ही सम्यक दृष्टि का अभाव हो, कुछ भी विकल्प न मिलने पर या अन्य कोई काम कर लेने में असफल रहने की कुंठा में ही अधिकांश लोग पत्रकार बन गए हों लेकिन आम जनता को आज का मीडिया धृतराष्ट्र की तरह ही अंधा समझने लगा है। ऐसी मानसिकता के साथ कलम या कैमरे रूपी उस्तरे लेकर समाज को घायल करने की हरकत पर विराम लगाने हेतु प्रयास किया जाना आज की बड़ी ज़रूरत है।
लोकतंत्र में चूंकि सत्ता ‘ लोक ’ में समाहित है, अतः यह उचित ही है कि ख़बरों को प्राप्त करना हर नागरिक का मौलिक अधिकार रहे। लेकिन ‘ घटना ’ और ‘ व्यक्ति ’ के बीच ‘ माध्यम ’ बने पत्रकार अगर बिचौलिये-दलाल का काम करने लगे तो ऐसे तत्वों को पत्रकारिता से बाहर का रास्ता दिखाने हेतु प्रयास किए जाने की ज़रूरत है। जनता को धृतराष्ट्र की तरह समझने वाले तत्वों के आंख खोल देने हेतु व्यवस्था को कुछ कड़े कदम उठाने की ज़रूरत है। कोई पत्रकार अपने ‘ संजय ’ की भूमिका से अलग होकर अगर ‘ शकुनी ’ बन जाने का प्रयास करे, षड्यंत्रों को उजागर करने के बदले खुद ही साजिशों में संलग्न हो जाय तो समाज को चाहिए कि ऐसे तत्वों को निरुत्साहित करें।
अव्वल तो यह किया जाना चाहिए कि हर खबर के लिए एक जिम्मेदारी तय हो। अगर खबर गलत हो और उससे किसी निर्दोष का कोई नुकसान हो जाए तो उसकी भरपाई की व्यवस्था होना चाहिए। इसके लिए करना यह होगा कि ‘ पत्रकार ’ कहाने की मंशा रखने वाले हर व्यक्ति का निबंधन कराया जाय। कुछ परिभाषा तय किया जाए, उचित मानक पर खड़े उतडने वाले व्यक्ति को ही ‘ पत्रकार ’ के रूप में मान्यता दी जाए। कुछ गलत बात सामने आने पर उसकी मान्यता समाप्त किए जाने का प्रावधान हो। जिस तरह वकालत या ऐसे अन्य व्यवसाय में एक बार प्रतिबंधित होना के बाद कोई पेशेवर कहीं भी प्रैक्टिस करने की स्थिति में नहीं होता, उसी तरह की व्यवस्था मीडिया के लिए भी किए जाने की ज़रूरत है।
अभी होता यह है कि कोई कदाचरण साबित होना पर अगर किसी पत्रकार की नौकरी चली भी जाती है तो दूसरा प्रेस उसके लिए जगह देने को तत्पर रहता है। राडिया प्रकरण में भी नौकरी से इस्तीफा देने वाले पत्रकार को भी अन्य प्रेस द्वारा अगले ही दिन नयी नौकरी से पुरस्कृत कर दिया गया। जब तक इस तरह के अंकुश की व्यवस्था नहीं हो तब तक निरंकुश हो पत्रकारगण इसी तरह की हरकतों को अंजाम देते रहेंगे।
जहां हर पेशे में आने से पहले उचित छानबीन करके उसे अधिसूचित करने की व्यवस्था है वहाँ पत्रकार किसको कहा जाए यह मानदंड आज तक लागू नहीं किया गया है। आप देखेंगे कि चाहे वकालत की बात हो, सीए, सीएस या इसी तरह के प्रफेशनल की। हर मामले में कठिन मानदंड को पूरा करने के बाद ही आप अपना पेशा शुरू कर सकते हैं। डॉक्टर-इंजिनियर की तो बात ही छोड़ दें, एक सामान्य दवा की दूकान पर भी एक निबंधित फार्मासिस्ट रखने की बाध्यता है। कंपनियों के लिए यह बाध्यता है कि एक सीमा से ऊपर का टर्नओवर होने पर वो नियत सीमा में पेशेवरों को रखे और उसकी जिम्मेदारी तय करे। लेकिन बड़ी-बड़ी कंपनियों का रूप लेते जा रहे मीडिया संगठनों को ऐसे हर बंधनों से मुक्त रखना अब लोकतंत्र पर भारी पड़ने लगा है। आज़ादी के बाद, खास कर संविधान बनाते समय पत्रकारों के प्रति एक भरोसे और आदर का भाव था सो संविधान के निर्माताओं ने इस पेशे में में आने वाले इतनी गिरावट की कल्पना भी नहीं की थी। ज़ाहिर है इस तंत्र पर लगाम लगाने हेतु उन्होंने कोई खास व्यवस्था नहीं की। लेकिन अब बदली हुई परिस्थिति में यह ज़रूरी है कि पत्रकारों के परिचय, उसके नियमन के लिए राज्य द्वारा एक निकाय का गठन किया जाए, अन्यथा इसी तरह हर दलाल खुद को पत्रकार कह लोकतंत्र के कलेजे पर ‘ राडिया ’ दलता रहेगा।
पंकज झा

न्यू ईयर एक जनवरी को ही क्यों

एक जनवरी नजदीक आ गई है। जगह-जगह हैपी न्यू ईयर के बैनर व होर्डिंग लग गए हैं। जश्न मनाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं। जनवरी से प्रारंभ होने वाली काल गणना को हम ईस्वी सन् के नाम से जानते हैं जिसका संबंध ईसाई जगत् व ईसा मसीह से है। इसे रोम के सम्राट जूलियस सीजर द्वारा ईसा के जन्म के तीन वर्ष बाद प्रचलन में लाया गया था।
भारत में ईस्वी संवत् का प्रचलन अंग्रेज शासकों ने वर्ष 1752 में शुरू किया। अधिकांश राष्ट्रों के ईसाई होने और अंग्रेजों के विश्वव्यापी प्रभुत्व के कारण ही इसे अनेक देशों ने अपना लिया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद नवम्बर 1952 में हमारे देश में वैज्ञानिक और औद्योगिक परिषद द्वारा पंचांग सुधार समिति की स्थापना की गई। समिति ने 1955 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में विक्रमी संवत को भी स्वीकार करने की सिफारिश की थी। मगर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के आग्रह पर ग्रेगेरियन कैलंडर को ही सरकारी कामकाज के लिए उपयुक्त मानकर 22 मार्च 1957 को इसे राष्ट्रीय कैलंडर के रूप में स्वीकार कर लिया गया।
ग्रेगेरियन कैलंडर की काल गणना मात्र दो हजार वर्षों के काफी कम समय को दर्शाती है। जबकि यूनान की काल गणना 3579 वर्ष, रोम की 2756 वर्ष, यहूदियों की 5767 वर्ष, मिस्र की 28670 वर्ष, पारसी की 198874 वर्ष चीन की 96002304 वर्ष पुरानी है। इन सबसे अलग यदि भारतीय काल गणना की बात करें तो भारतीय ज्योतिष के अनुसार पृथ्वी की आयु एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 109 वर्ष है। जिसके व्यापक प्रमाण हमारे पास उपलब्ध हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथों में एक-एक पल की गणना की गई है। जिस प्रकार ईस्वी संवत् का संबंध ईसाई जगत से है उसी प्रकार हिजरी संवत् का संबंध मुस्लिम जगत से है। लेकिन विक्रमी संवत् का संबंध किसी भी धर्म से न हो कर सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिद्धांत व ब्रह्मांड के ग्रहों व नक्षत्रों से है। इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना व राष्ट्र की गौरवशाली परंपराओं को दर्शाती है।
भारतीय संस्कृति श्रेष्ठता की उपासक है। जो प्रसंग समाज में हर्ष व उल्लास जगाते हुए हमें सही दिशा प्रदान करते हैं उन सभी को हम उत्सव के रूप में मनाते हैं। राष्ट्र के स्वाभिमान व देशप्रेम को जगाने वाले अनेक प्रसंग चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से जुडे़ हुए हैं। यह वह दिन है, जिससे भारतीय नव वर्ष प्रारंभ होता है। यह सृष्टि रचना का पहला दिन है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्मा जी ने जगत की रचना प्रारंभ की। विक्रमी संवत् के नाम के पीछे भी एक विशेष विचार है। यह तय किया गया था कि उसी राजा के नाम पर संवत् प्रारंभ होगा जिसके राज्य में न कोई चोर हो न अपराधी हो और न ही कोई भिखारी। साथ ही राजा चक्रवर्ती भी हो।
सम्राट विक्रमादित्य ऐसे ही शासक थे जिन्होंने 2067 वर्ष पहले इसी दिन अपना राज्य स्थापित किया था। प्रभु श्रीराम ने भी इसी दिन को लंका विजय के बाद अयोध्या में अपने राज्याभिषेक के लिए चुना। युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है। विक्रमादित्य की तरह शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना।
प्राकृतिक दृष्टि से भी यह दिन काफी सुखद है। वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है। यह समय उल्लास - उमंग और चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरा होता है। फसल पकने का प्रारंभ अर्थात किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है। नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् नए काम शुरू करने के लिए यह शुभ मुहूर्त होता है। क्या एक जनवरी के साथ ऐसा एक भी प्रसंग जुड़ा है जिससे राष्ट्र प्रेम का भाव पैदा हो सके या स्वाभिमान तथा श्रेष्ठता का भाव जाग सके ? इसलिए विदेशी को छोड़ कर स्वदेशी को स्वीकार करने की जरूरत है। आइए भारतीय नव वर्ष यानी विक्रमी संवत् को अपनाएं।
विनोद बंसल

रविवार, 26 दिसंबर 2010

खास खबर

शहरों में हिंसा फैलाना चाहते थे राजद्रोही
रायपुर। डा. बिनायक सेन, नारायण सान्याल और पीजूष गुहा पर ढाई साल चले राजद्रोह के मुकदमे के बाद जज एडीजे बीपी वर्मा ने फैसला सुनाया तो उन्होंने साफ लिखा है कि आरोपी नक्सलियों के शहरी नेटवर्क को बढ़ावा देकर शहरों में हिंसक वारदात करवाना चाहते थे।

फैसले में इस बात का उल्लेख किया गया है कि नारायण सान्याल नक्सली माओवादियों की सबसे बड़ी संस्था पोलित ब्यूरो का सदस्य है, वह बिनायक सेन व पीजूष गुहा के माध्यम से जेल में रहकर ही शहरी क्षेत्रों में हिंसक वारदातों को अंजाम देने की कोशिश में था। पुलिस को जब यह पता चला तो सबसे पहले शहर में बाहर से आने वाले संदिग्ध व्यक्तियों के बारे में होटल, लाज, धर्मशाला व ढाबों पर दबिश दी गई। दबिश के कारण ही पीजूष गुहा पुलिस के हत्थे चढ़ा।यह भी पाया गया है कि बिनायक सेन नारायण सान्याल के पत्र पीजूष गुहा को गोपनीय कोड के माध्यम से प्रेषित किया करता था। तीनों अभियुक्तों की मंशा नक्सलियों के खिलाफ चल रहे आंदोलन सलवा जुड़ूम को समाप्त करने की भी थी। फैसले में सुनवाई के दौरान गवाह के रूप में आए दंतेवाड़ा व कांकेर में कलेक्टर के पद पर रहे के आर पिस्दा ने नक्सलियों की मंशा की पुष्टि की है। फैसले के अनुसार पूरा दंतेवाड़ा जिला नक्सल प्रभावित क्षेत्र है।कांकेर आंशिक नक्सली प्रभावित क्षेत्र है। नक्सली समस्या इलाके में 30 साल पहले ही अपनी जड़ें जमा चुकी थी। शुरूआत में नक्सलियों ने अपने आपको आम जनता के समक्ष उनके हितचिंतक एवं हितैषी के रूप में प्रस्तुत किया। इससे उन्हें आम जनता का सहयोग एवं समर्थन भी मिला। जनता के इसी सहयोग के बल पर नक्सलियों ने पूरे क्षेत्र में अपने संगठन का विस्तार किया। नक्सली संगठन जैसे-जैसे मजबूत होते गए, वैसे वैसे आदिवासियों का उनके जीवन में हस्तक्षेप बढ़ता गया। इसके बाद नक्सलियों ने अवैध चंदा उगाही शुरू की। आदिवासियों को संगठन में भर्ती करने लगे। विकास के कामों को रोकने की पूरी कोशिश की। इन गतिविधियों से नक्सलियों के खिलाफ बढ़ रहा आक्रोश भी नजर आने लगा। नक्सलियों की बात नहीं मानने पर गांवों वालों को नक्सली जन अदालत लगाकर सजा दी जाती थी। नक्सलियों का आतंक व प्रताड़ना इतनी अधिक बढ़ गई कि आदिवासियों के बीच जीवन मरण का प्रश्न उत्पन्न हो गया। इन्हीं कारणों से जून 2005 में नक्सलियों के खिलाफ सलवा जुडूम आंदोलन शुरू किया गया।
डा. बिनायक सेन के मकान की तलाशी में नारायण सान्याल का लिखा पत्र, सेंट्रल जेल बिलासपुर में बंद नक्सली कमांडर मदन बरकड़े का डा. सेन को कामरेड के नाम से संबोधित किया पत्र व 8 सीडी जिसमें सलवा जुडूम की क्लीपिंग व नारायणपुर के गांवों में डा. सेन के द्वारा गांव वासियों व महिलाओं के मध्य बातचीत के अंश मिले हैं।
6 फ्रंट संगठनों पर लगाया प्रतिबंध
दंतेवाड़ा में जो नक्सली संगठन काम करता है उसे सीपीआई माओवादी के नाम से जाना जाता है। ये जोनल कमेटी, दलम कमेट, एरिया कमेटी व अन्य संगठन बनाकर नक्सल गतिविधियों का संचालन करते हैं। छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा अधिनियम 2005 एक्ट के लागू होने के बाद 12 अप्रैल 2007 को 6 फ्रंट संगठनों को विधि विरूद्ध संगठन घोषित किया गया। > भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी माओवादी > दंडकारण्य आदिवासी किसान मजदूर संघ > क्रांतिकारी आदिवासी महिला संघ > क्रांतिकारी आदिवासी बालक संघ > क्रांतिकारी किसान कमेटी > महिला मुक्ति मंच।

अब तो खोल दीजिए खिड़की
बिलासपुर। रेल प्रशासन को आम यात्रियों की समस्याओं से कोई सरोकार नहीं है। शायद यही वजह है कि सेंट्रल इंक्वायरी के तीनों नंबर बंद करने के बाद भी रेलवे स्टेशन के पूछताछ काउंटर की दूसरी खिड़की नहीं खोली जा रही है। पूछताछ करने वालों की संख्या दोगुनी हो गई है और यात्रियों को जानकारी के लिए लंबी लाइन लगानी पड़ रही है।
बिलासपुर रेल मंडल में मेनुअल इंक्वायरी सिस्टम के बंद होने से रेलवे स्टेशन के पूछताछ काउंटर में भीड़ बढ़ने लगी है। औसतन हर दिन 5 हजार यात्रियों को जानकारी देने वाले पूछताछ काउंटर में अब 7 हजार यात्री जानकारी लेने पहुंच रहे हैं। यह संख्या आगे और भी बढ़ेगी। भीड़ के अनुरूप रेलवे स्टेशन में जानकारी देने की समुचित व्यवस्था नहीं है। प्लेटफार्म नंबर एक पर खुले पूछताछ काउंटर में दो खिड़की है। पहली खिड़की प्लेटफार्म की ओर तो दूसरी प्लेटफार्म के बाहर की ओर है। इंक्वायरी काउंटर में दो खिड़की देने के पीछे रेल प्रशासन की मंशा यही रही कि यात्रियों को जानकारी लेने के लिए लंबी लाइन न लगानी पड़े। यह व्यवस्था चंद दिनों में ही दम तोड़ गई। दरअसल इंक्वायरी काउंटर पर इतना स्टाफ ही नहीं होता कि दोनों खिड़कियों से यात्रियों को जानकारी दी जा सके। यहां दो-दो कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई जाती है, जिनके जिम्मे यात्रियों को जानकारी देने के अलावा अनाउंसमेंट, कंप्यूटर में कोच की स्थिति दर्ज करना, ट्रेनों के आने-जाने का समय रजिस्टर में दर्ज करने से लेकर दर्जनों कागजी कार्रवाई करना होता है। इंक्वायरी काउंटर की स्थिति ऐसी रहती है कि एक कर्मचारी कागजी कार्रवाई में तो दूसरा जानकारी देने में जुटा रहता है। इन कर्मचारियों ने रेल प्रशासन से स्टाफ बढ़ाने की मांग की है, ताकि दोनों ओर की खिड़कियों को खोला जा सके। रेल प्रशासन ने इंक्वायरी काउंटर को दो से ज्यादा कर्मचारी देने से मना कर दिया है। बहरहाल आम यात्री को ट्रेन संबंधी छोटी-छोटी जानकारियों के लिए परेशान होते देखा जा रहा है।
समस्या क्यों
बिलासपुर रेल मंडल ने मेनुअल इंक्वायरी की सुविधा 18 दिसंबर को बंद कर दी है। पूछताछ के लिए लगाए गए फोन नंबर 411183, 411184 और 411185 बंद कर दिए गए हैं। रेल प्रशासन का कहना है कि इंक्वायरी सिस्टम को हाईटेक किया जा रहा है, इसके लिए यात्रियों को 139 की सुविधा दी गई है। रेल प्रशासन इस बात को मानने से इंकार करता है कि सेंट्रल इंक्वायरी नंबर बंद करने से यात्रियों की परेशानी बढ़ेगी। इधर मेनुअल इंक्वायरी बंद होने से रेलवे स्टेशन के पूछताछ काउंटर में भीड़ दिन-ब-दिन बढ़ते ही जा रही है।

गुरुवार, 23 दिसंबर 2010

बीरगांव चुनाव में छलका उत्साह

रायपुर। बीरगांव नगर पालिका चुनाव में 35 वार्ड पार्षद के 166 और अध्यक्ष के पांच प्रत्याशियों की किस्मत मतपेटियों में बंद हो गई। मंगलवार को सभी 73 मतदान केंद्रों में कुछेक विरोध को छोड़कर चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हो गए। शांतिपूर्ण मतदान के लिए पुलिस की तगड़ी व्यवस्था की गई थी। सुबह 8 बजे मतदान शुरू होते ही मतदाताओं की लंबी लाइन लग गई। दोपहर 12 बजे तक 27 फीसदी से ज्यादा मतदान हो गया।

कई मतदान केंद्रों में धीमे मतदान की वजह से लोगों को घंटों इंतजार करना पड़ा। इस बात पर प्रत्याशियों और उनके समर्थकों ने शोर भी मचाया। देर शाम तक मिली जानकारी के अनुसार नगर पालिका में 58 फीसदी लोगों ने अपने वोट का उपयोग किया। बीरगांव नगर पालिका के हर क्षेत्र में उत्साह का माहौल दिखाई दिया। लोग टोलियों में वोट देने के लिए घरों से निकले। मतदाताओं की सुविधा के लिए प्रत्याशियों की ओर से मतदान केंद्रों के बाहर पंडाल लगाए गए थे। यहां मतदाता पर्ची ढूंढने का काम अंतिम समय तक चलता रहा।
मतपेटियां पहुंचीं स्ट्रांग रूम : शाम 5 बजे मतदान खत्म होने के बाद मतपेटियों को सील किया गया। पीठासीन अधिकारियों ने सभी मतपेटियों को आडवाणी आर्लिकान स्कूल बीरगांव में बने स्ट्रांग रूम में पहुंचाया। स्कूल के तीन कमरों को विशेष पुलिस सुरक्षा व्यवस्था में स्ट्रांग रूम बनाया गया है। यहां चौबीसों घंटों पुलिस की सुरक्षा रहेगी।
फर्जी मतदान को लेकर हंगामा : आडवाणी आर्लिंकान स्कूल के मतदान केंद्र क्रमांक 47 में निर्दलीय प्रत्याशी सत्यप्रकाश सिन्हा के समर्थकों ने फर्जी मतदान का आरोप लगाया। इस बात को लेकर कुछ देर तक अन्य प्रत्याशियों के साथ उनकी बहस भी हुई। समर्थकों का आरोप था कि कोई भी परिचय पत्र नहीं दिखाने के बावजूद लोगों को वोट डालने दिया जा रहा है। टीआई शमशेर खान को मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा।
कोई और वोट डाल गया
मतदान केंद्र 46 की वोटर लिस्ट में 709 नंबर में नीतू राजपूत का नाम था। वो जब वोट डालने पहुंचीं तो अधिकारियों ने बताया कि उनका वोट हो चुका है। उन्होंने बताया कि उन्होंने अभी तक अपना वोट नहीं डाला है। इस पर देर तक उनके घरवालों की अधिकारियों के साथ बहस भी होती रही।
धीमे मतदान से लोग नाराज : आडवाणी स्कूल में बने मतदान केंद्र 44, 45 और प्राथमिक स्कूल रावांभाटा में बने मतदान केंद्रों में धीमे मतदान की वजह से लोग नाराज दिखाई दिए। धीमे मतदान की वजह से यह लोगों की लंबी लाइन लगी रही। कई मतदाता इन केंद्रों से बिना वोट डाले भी लौटे।
आउटर में सुरक्षा व्यवस्था कम
मतदान केंद्रों में पुलिस की सबसे तगड़ी व्यवस्था आडवाणी स्कूल के मतदान केंद्रों में की गई। यहां चार मे से तीन अतिसंवेदनशील मतदान केंद्र बनाए गए थे। एसपी दीपांशु काबरा भी निरीक्षण के लिए इसी मतदान केंद्र पहुंचे। आउटर के मतदान केंद्रों में कम पुलिस सुरक्षा की वजह से कई जगह अव्यवस्था का आलम रहा। कई मतदान केंद्रों में प्रत्याशियों के समर्थक मतदान केंद्रों में प्रचार करते भी नजर आए।
24 को मतगणना
बीरगांव चुनाव की मतगणना 24 दिसंबर को सुबह 8 बजे से आडवाणी आर्लिकान स्कूल में होगी। इसके लिए सभी तरह की व्यवस्था कर ली गई है। अलग-अलग टेबलों में 35 वार्डो के लिए डाले गए वोटों की गिनती होगी। इसके साथ ही अध्यक्ष पद के लिए डाले गए वोटों की भी गिनती होगी। मतपत्रों का उपयोग होने की वजह से नतीजे शाम से ही आने शुरू होंगे।

प्रधानमंत्री लाचार, पवार मजबूर


सरोज पांडेय
रायपुर.भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय मंत्री एवं सांसद सरोज पाण्डेय ने प्याज के बढ़ते दाम को लेकर केन्द्र सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि महंगाई बढ़ने के लिए कांग्रेस गठबंधन यूपीए सरकार ही जिम्मेदार है।

उन्होंने यूपीए सरकार की नीतियों को जनविरोधी नीति करार देते हुए महंगाई को गलत आर्थिक नीतियों का परिणाम बताया। दुर्भाग्य की बात है कि कोई कदम उठाने की बजाए हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह लाचार और भविष्यवाणी करने वाले केन्द्रीय मंत्री शरद पवार मजबूर साबित हुए हैं।
सरोज पांडेय ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि यूपीए की अध्यक्षा होने के नाते श्रीमती सोनिया गांधी को भीषण महंगाई की बिल्कुल भी चिंता नहीं है। यह कांग्रेस गठबंधन सरकार का असली चेहरा है। खुद कांग्रेसी और उनके बड़बोले महासचिव राहुल गांधी महंगाई मुद्दा नहीं मानते हैं।
इन गलत नीतियों के परिणाम रूवरूप देश की आंतरिक स्थिति और भी खतरनाक हो सकती है। पेट्रोलियम पदार्थो से लेकर रसोई गैस के दाम अचानक बढ़ जाते हैं और देश की जनता को यह सब विवश होकर झेलना पड़ता है।
सामान्य उपयोग और खाने पीने की चीजों का लगातार महंगा होना वाकई शर्मनाक है। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री का मूल्यवृद्धि और महंगाई को लेकर कोई नियंत्रण नहीं है, जिससे अचानक कभी भी देश का वातावरण बिगड़ जाता है। यह चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि अनियंत्रित यूपीए सरकार ने सत्ता में रहने क अधिकार बिल्कुल खो दिया है।
उन्होंने कहा कि वास्तव में कांग्रेस को आम आदमी की चिंता नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी का डर समा गया है। बिहार चुनाव में राहुल गांधी नाकाम साबित हुए, जबरदस्त शिकस्त के बाद कांग्रेस को भाजपा के बढ़ते जनाधार का भय सता रहा है।
इसलिए उन्होंने अपने राष्ट्रीय अधिवेशन में सिर्फ और सिर्फ भारतीय जनता पार्टी को कोसने का काम किया है। एक ओर पूरे देश में महंगाई ने हाहाकार मचा दिया है और कांग्रेस सरकार हाथ पर हाथ रखकर बैठी है।

मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

छत्तीसगढ़ की खबरें

विकास से उखाड़ेंगे नक्सलियों के पैर
केंद्रीय योजना आयोग ने इंटीग्रेटेड वर्कप्लान के तहत छत्तीसगढ़ के 10 जिलों के लिए 550 करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत की है। यह जिले धुर नक्सल प्रभावित हैं। वहां नक्सलियों की पैर उखाड़ने के लिए विकास पर जोर दिया जा रहा है। इस वर्कप्लान के लिए कलेक्टर की अध्यक्षता में एक समिति गठित होगी। इसमें एसपी और डीएफओ भी शामिल रहेंगे। अपर मुख्यसचिव सरजियस मिंज ने सोमवार को विकास भवन में इसके क्रियान्वयन के लिए बैठक ली।

बैठक में 10 जिलों के सीईओ सहित अन्य अधिकारी शामिल हुए। नक्सल प्रभावित जिला बस्तर, बीजापुर, दक्षिण बस्तर (दंतेवाड़ा), जशपुर, उत्तर बस्तर (कांकेर), कबीरधाम, कोरिया, नारायणपुर, राजनांदगांव और सरगुजा का चयन किया गया है। चालू वित्तीय वर्ष 2010-11 के लिए प्रत्येक जिले को 25 करोड़ मिलेंगे। अगले वित्तीय वर्ष 2011-12 के लिए हर जिले को 30 करोड़ की राशि प्रदान की जाएगी।
श्री मिंज ने कहा कि एकीकृत कार्य योजना के तहत कार्यो का अनुमोदन जिला स्तर पर गठित समिति से कराने के बाद ही शुरू किया जाए। योजना के तहत सार्वजनिक अधोसंरचना और सेवा संबंधी कार्यो में तात्कालिक आवश्यकता अनुसार स्कूल भवन, आंगनबाड़ी केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, पेयजल, ग्रामीण सड़क तथा सार्वजनिक स्थल जैसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और स्कूलों आदि में विद्युतीकरण के कार्य कराए जाएं। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य योजना मंडल द्वारा वामपंथ उग्रवाद से प्रभावित सात जिलों के लिए चार हजार 652 करोड़ रूपए की एकीकृत कार्य योजना प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया है।

रविवार, 19 दिसंबर 2010

खास खबरें

प्रधान पाठक बने शिक्षाकर्मियों की नींद उड़ी
रायपुर शिक्षाकर्मियों को प्रधानपाठक बनाए जाने की प्रक्रिया पर बिलासपुर हाईकोर्ट के तीखे तेवरों से बलौदाबाजार शिक्षा जिले में नवनियुक्त प्रधान पाठकों के होश उड़े हुए हैं। इस परीक्षा में नियुक्ति के लिए दो करोड़ रुपए से ज्यादा के लेन-देन की खबरें आ रही हैं।
चयन के लिए लोगों ने एक से दो लाख रुपए दिए, ऐसी चर्चा है। पैसे देकर चुने गए शिक्षाकर्मियों को डर है कि चयन प्रक्रिया ही अदालत में रद्द हो गई, तो उनके पैसों का क्या होगा। दूसरी तरफ कोशिश हो रही है कि हाईकोर्ट का आदेश आने के पहले ही ज्यादातर लोगों की ज्वाइनिंग करवा दी जाए। राज्य शासन के निर्देश पर जिला शिक्षा अधिकारी बलौदाबाजार ने अपने जिले में प्रधान पाठकों के रिक्त पदों के लिए आवेदन मंगवाए थे। दो दिन पहले जनदर्शन में जिला पंचायत के सदस्य सुनील माहेश्वरी और मुरारी मिश्रा ने कई शिक्षाकर्मियों के साथ मुख्यमंत्री से लिखित शिकायत की थी। शिकायत में आरोप लगाया गया है कि परीक्षा में योग्य प्रत्याशियों का नाम काटकर अपात्रों को चुन लिया गया। परीक्षा में ६३ फीसदी अंक पाने वाले गंभीर सिंह ठाकुर, ५७ फीसदी वाले शैलेंद्र कुमार गजभिये, ५७ फीसदी वाली रानी कोसले का चयन नहीं किया गया। इनसे कम अंकों वाले लोग सलेक्ट हो गए। लिखित शिकायत के बावजूद आपत्ति का निराकरण नहीं किया गया। राज्य शासन ने जिला शिक्षा अधिकारी को छत्तीसगढ़ के राजपत्र में प्रकाशित 3 सितंबर 2008 और 13 अगस्त 2008 के भर्ती नियमों के आधार पर प्रधान पाठक बनाने को कहा था। चयन प्रक्रिया में राजपत्र के कई प्रावधानों का पालन नहीं किया गया।
इसमें सीधी भर्ती और चयन से संबंधित नियमों का विस्तार से जिक्र किया गया है। चयन प्रक्रिया को देखा जाए, तो इसमें राजपत्र में दिए गए कई प्रावधानों का पालन नहीं किया गया।
ये भी गड़बड़ी >
रामकुमार चंद्राकर नाम के एक परीक्षार्थी को दो स्कूलों में प्रधान पाठक बना दिया गया। > एक ऐसे शिक्षाकर्मी को प्रधान पाठक बनाया गया है, जो निलंबिन के बाद से विकास खंड शिक्षा अधिकारी धरसीवां में अटैच है। ब्लॉक शिक्षा अधिकारी ने इस शिक्षाकर्मी के आवेदन पत्र में उसके निलंबित होने का साफ जिक्र किया था।
नियम में था यह
1. सेवा में अभ्यर्थी का चुनाव चयन समिति द्वारा प्रतियोगी परीक्षा और साक्षात्कार के बाद किया जाना चाहिए थे।
हुआ ये
लिखित परीक्षा में गड़बड़ी हुई। साक्षात्कार के बिना ही प्रधानपाठकों की नियुक्ति और पोस्टिंग के आदेश जारी हो गए।
नियम में था यह
2. उपलब्ध रिक्त पदों में एससी, एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए क्रमश: १६, 20 और १४ फीसदी पद रखे जाने थे। महिला के 30 फीसदी पद रखे जाने चाहिए थे।
हुआ ये
अनुसूचित जनजाति के लिए 20 के स्थान पर १९ फीसदी को ही आरक्षण दिया गया। रोस्टर का भी पालन ठीक से नहीं किया गया।
नियम में था यह
३. आयु के बारे में राजपत्र में अलग-अलग वर्ग तय किए हैं, जिसमें अधिकतम सीमा का जिक्र है। अधिकतम आयु किसी भी तरह से ४५ साल होनी चाहिए।
हुआ ये
लवन इलाके की एक ऐसी शिक्षाकर्र्मी को भी प्रधान पाठक बना दिया गया, जो 46 साल आठ महीने की है। नियम विरुद्ध ज्यादा उम्र के कई और शिक्षाकर्मियों को प्रधानपाठक बना दिया गया।
नियम में था यह
४. चयन समिति में जिला शिक्षा अधिकारी उसके अध्यक्ष होते हैं। डाइट के प्राचार्य, ब्लॉक शिक्षा अधिकारी समेत अन्य सदस्यों कौन-कौन होंगे इसका साफ जिक्र नियमों में है।
हुआ ये
समिति को नियमों के हिसाब से नहीं बनाया गया। ऐसे लोग रखे गए, जो विरोध नहीं कर सकते थे। डाइट के प्राचार्य को चयन समिति में लगभग बाहर रखा गया।
नियम में था यह
५. राज्य शासन का साफ निर्देश है कि भर्ती में मध्यप्रदेश के समय जारी जाति प्रमाणपत्रों को मान्य नहीं किया जाएगा।
हुआ ये
20 फीसदी से ज्यादा परीक्षार्थियों ने मध्यप्रदेश सरकार के प्रमाणपत्रों को आवेदन पत्र में लगाया।
नियम में था यह
संविदा शिक्षा कर्मियों को प्रधान पाठक परीक्षा में पात्रता नहीं थी।
हुआ ये
शिक्षा अधिकारी के बेटे समेत कई लोग संविदा शिक्षक होने के बावजूद परीक्षा में न केवल शामिल हुए, बल्कि मेरिट लिस्ट में भी उनका
नाम आया।

ठंड से 6 नवजात लकड़बग्घों की मौत
रायपुर नंदनवन में लाए गए 6 नवजात लकड़बग्घों की अचानक मौत हो गई। उन्हें जगदलपुर जिले के एक गांव से लगे घने जंगलों से लाया गया था। इनके पालन-पोषण की यहां कोशिश की गई, लेकिन मौसम में आए अचानक बदलाव से यह बच नहीं पाए। अधिकारियों ने बताया कि जब इन्हें लाया गया तो ये महज चार दिन के थे। फिर दो हफ्ते तक ये जीवित रह पाए। मौत की खबर उच्च अधिकारियों को दे दी गई है।
नंदनवन के अफसरों ने बताया कि लकड़बग्घों के सभी 6 बच्चे कमजोर थे। छोटे होने की वजह से ये खाना नहीं खा सकते थे। लिहाजा इन्हें गाय का दूध पिलाने की कोशिश की जा रही थी। डाक्टरों का कहना है कि दूध भी ये ठीक से पी नहीं पाते थे, इसलिए इनका शरीर और भी कमजोर होता जा रहा था। हफ्ते भर पहले जब मौसम में अचानक बदलाव आया और पारा गिरा तो इनकी पल्स धीमी पड़ने लगी। 13 दिसंबर को पहले तीन की मौत हो गई, फिर अगले ही दिन बाकी के तीन ने भी दम तोड़ दिया। उन्हें बचाने के लिए सारी कोशिशें बेकार गईं। दवाइयां भी दी गईं, लेकिन वे ठंड सह नहीं पाए। अधिकारियों ने इसकी जानकारी उच्च स्तर पर दे दी है और बाकी जानवरों की देखभाल बढ़ा दी गई है।
ठंड नहीं बढ़ती, तो बच जाते :
नंदनवन के वेटनरी डाक्टर डा. जयकिशोर जड़िया ने कहा कि लकड़बग्घों के नवजात बच्चे महज चार दिन के थे। इन्हें कम से कम महीने भर तक मां के दूध की जरूरत पड़ती है। इसी से उनमें ठंड से लड़ने की क्षमता विकसित करनी होती है। उन्हें गाय का दूध पिलाया जा रहा था। इतनी कम उम्र में वे इसे पचा नहीं पाते। ऐसे में अगर मौसम ने साथ दिया होता तो बच्चे शायद बच जाते।
घायल नर लकड़बग्घा भी नहीं रहा : महासमुंद जिले के बागबहरा रोड के पास सड़क हादसे का शिकार हुआ नर लकड़बग्घा भी नहीं रहा। पांच दिन पहले उसकी भी मौत हो गई। डाक्टरों का कहना है कि उसकी कमर और पैरों की हड्डी हादसे में टूट गई थी। उसका इलाज किया गया और कुछ दिनों बाद वह स्वस्थ भी होने लगा था। ठंड बढ़ने से हड्डियों में दर्द बढ़ता गया और कमजोरी आने की वजह से उसने दम तोड़ दिया। डाक्टरों ने उसका पोस्टमार्टम कर रिपोर्ट विभाग को सौंप दी है।
तेंदुए के शावक अब तंदरुस्त: बागबहरा के जंगलों से लाए गए दो नन्हें तेंदुए के शावक अब स्वस्थ हैं। नंदनवन का अमला रविवार को इन्हें एक बड़े पिंजरे में शिफ्ट करेगा। इसकी तैयारियां की जा चुकी हैं। इनमें से एक नर और एक मादा है।
शुरुआत में दोनों बेहद बीमार थे। इनका बेहतर इलाज किया गया तो ये स्वस्थ्य होते गए। अब ये छोटे मांस के टुकड़े खाने लगे हैं। इन्हें मिलाकर नंदनवन में कुल आठ तेंदुए हो जाएंगे जिनमें से चार नर और बाकी मादा हैं।
लकड़बग्घे के बच्चे सिर्फ गाय का दूध पीते थे। मरने से पहले ऐसा ही एक बीमार बच्च दूध भी नहीं पी पा रहा था।
नवजात लकड़बग्घों को बचाने की बेहद कोशिश की गई, लेकिन वे दूध की फीडिंग नहीं कर पा रहे थे। गाय का दूध वे पचा नहीं पाते थे, जिससे उनका शरीर कमजोर होता गया और उनकी मौत हो गई।

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

छत्तीसगढ़ की खास खबरें

किसको दें सम्मान, नहीं मिला किसान!
रायपुर.छत्तीसगढ़ कृषि के क्षेत्र में भले नए मुकाम हासिल कर रहा हो पर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय को अब तक प्रदेश में एक भी किसान नहीं मिला, जिसे वह सम्मानित कर सके।

जबकि पं. रविशंकर शुक्ल विवि डॉ. नारायण भाई चावड़ा को खेती-किसानी में उनके बेहतरीन काम के लिए डी-लिट् की मानद उपाधि दे चुका है। 23 साल पहले स्थापित कृषि विवि का पांचवा दीक्षांत समारोह 20 जनवरी को होने जा रहा है।
उत्तरप्रदेश और पंजाब के कृषि वैज्ञानिकों को डी-लिट् की उपाधि दी जाएगी। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक और केंद्रीय कृषि मंत्रालय के सचिव रहे डॉ. मंगला राय को इसके लिए चुना गया है।
दूसरे वैज्ञानिक फिलीपींस स्थित इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट के डॉ. जीएस खुश हैं। दोनों ही राइस ब्रिडर हैं। कुलपति डॉ. एमपी पांडेय ने दोनों के नामों का प्रस्ताव रखा था। डॉ. मंगला राय मूलत: उत्तरप्रदेश के हैं।
उन्होंने बनारस विवि से पीएचडी की है, जबकि डॉ. जीएस खुश की पढ़ाई पंजाब यूनिवर्सिटी की है। खुश अबतक दो सौ से ज्यादा धान की किस्में तैयार कर चुके हैं। 1967 में वे फिलीपींस चले गए थे।
कम नहीं प्रदेश के किसान
छत्तीसगढ़ में कई ऐसे किसान हैं जिनकी बराबरी किसी वैज्ञानिक से की जा सकती है। प्रदेश के किसानों ने ही अब तक धान की 23 हजार किस्में तैयार की हैं। डॉ. आरएस रिछारिया ने इसे संग्रहित कर रखा है।
पं. रविशंकर शुक्ल विवि ने गोमची के किसान नारायण भाई चावड़ा को मानद उपाधि दी थी। उन्होंने धान सहित सब्जियों की कई किस्में विकसित की।
दुर्ग जिले के कई किसानों को टमाटर, शिमला मिर्च, गोभी, कुंदरू सहित अन्य सब्जिी उत्पादन में दक्षता हासिल है। प्रदेश में और भी कई किसान हैं, जो नई किस्में इजाद करने में जुटे हैं, लेकिन महत्व नहीं मिलने के कारण उनका नाम पिछड़ा हुआ है।
किसानों के नाम खारिज
मानद उपाधि देने के लिए कृषि विवि ने अपने सभी संबंधित कालेजों और रिसर्च स्टेशन से नाम मंगाए थे। मानद उपाधि के लिए गठित समिति की बैठक में एक दर्जन नाम आए थे। इनमें जांजगीर-चांपा के किसान का भी नाम था।
डॉ. नारायण भाई चावड़ा के नाम का भी प्रस्ताव आया, लेकिन उन्हें सिरे से खारिज कर दिया गया। कुछ अधिकारियों ने मुख्यमंत्री तो कुछ ने कृषि मंत्री के नाम आगे बढ़ाए। अंत में समिति ने सात वैज्ञानिकों के नाम प्रबंध मंडल में रखा।

केवल अधिकारियों के नाम
कृषि विवि के प्रबंध मंडल की बैठक में मानद उपाधि देने के लिए सात लोगों के नाम का प्रस्ताव अनुशंसा समिति ने रखा। ये सभी शासकीय पदों पर नियुक्त रहे हैं। इनमें दो अधिकारी डा. एसके दत्ता और डा. अरविंद कुमार आईसीएआर में पदस्थ हैं।
आईसीएआर कृषि विश्वविद्यालयों को मानिटरिंग और अनुदान देने वाली संस्था है। बैठक में नेशनल बायोडायवर्सिटी अथारिटी चेन्नई के चेयरमेन डा. पीएल गौतम और नई दिल्ली के एग्रीकल्चरल साइंस रिक्रूटमेंट बोर्ड के चेयरमेन डा. पीडी मई का नाम भी था।
इसमें इंदिरा गांधी कृषि विवि के पूर्व कुलपति डा. कीर्ति सिंह को मानद उपाधि देने का प्रस्ताव था। कुलपति डा. एमपी पांडेय की अध्यक्षता में डा. मंगला राय और डा. जीएस खुश को मानद उपाधि देने का निर्णय लिया गया।
"प्रदेश में उत्कृष्ट कार्य करने वाले किसानों को भी मानद उपाधि दी जा सकती है, लेकिन किसी ने उनके नाम का प्रस्ताव नहीं दिया। "- एसआर रात्रे, कुलसचिव कृषि विवि
"प्रबंध मंडल ने मानद उपाधि के लिए दो नामों का चयन कर लिया है। अभी प्रबंध मंडल में पारित प्रस्ताव मिनिट्स में नहीं आए हैं, इसलिए मैं कुछ नहीं कहूंगा। "- डॉ. एमपी पांडेय, कुलपति कृषि विवि

राज्य में बनेगा एलीफेंट रिजर्व
बिलासपुर.प्रदेश में हाथियों के आक्रमण से हो रहे जान-माल के नुकसान को रोकने और हाथियों को सुरक्षित स्थान पर रहने की सुविधा देने के लिए कारीडोर बनाने के साथ ही अचानकमार सहित तीन अभयारण्य को जोड़कर एलीफेंट रिजर्व बनाया जाएगा। छत्तीसगढ़ राज्य वन्य जीव बोर्ड की बैठक में यह निर्णय लिया गया।

जंगली हाथियों की समस्या से निपटने के लिए वन विभाग ने रणनीति बना ली है। बैठक में वन्य जीव, जैव विविधता, बाघ संरक्षण और अन्य विषयों पर चर्चा की गई। प्रदेश के सरगुजा जिले में हाथियों के हिंसक होने से कुछ सालों में जान-माल की हानि के साथ ही वनग्रामों के रहवासियों का जीना दूभर हो गया है।
इस समस्या से निपटने की दिशा में उपाय किए जा रहे हैं। प्रदेश के तीन ऐसे अभयारण्य जहां हाथियों की संख्या अधिक है, वहां कारीडोर बनाया जाएगा और उन्हें जोड़कर एलीफेंट रिजर्व बनाया जाएगा, जहां हाथी सुरक्षित तरीके से रह सकें।

इस प्रस्ताव को कैबिनेट की अगली बैठक में रखा जाएगा। बैठक में वन मंत्री विक्रम उसेंडी, डीजीपी विश्वरंजन, मुख्य वन्य प्राणी अभिरक्षक रामप्रकाश, वन्य प्राणी विशेषज्ञ डॉ. सुशांत चौधरी, नितिन देसाई, प्राण चड्डा, संदीप पौराणिक, हाथी विशेषज्ञ डा. पीएस ईशा, एसजी चौहान सहित अन्य सदस्य शामिल हुए।
इसी तरह हाथियों की समस्याओं से निपटने के लिए बोर्ड के सदस्यों के सुझाव पर एक उप समिति गठित करने का निर्णय लिया गया। इसमें हाथी विशेषज्ञ, वन विभाग के अधिकारी और संबंधित क्षेत्र के स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाएगा।
केरल और कर्नाटक की तर्ज पर यहां ऐसे क्षेत्रों में जहां हाथियों का आवागमन सर्वाधिक होता हैं, वहां लगभग एक सौ किलोमीटर क्षेत्र में सोलर पॉवर फेंसिंग लगाई जाएगी। विशेषज्ञों ने बताया कि इन सोलर पॉवर फेंसिंग से वन्य प्राणियों को केवल हल्का झटका लगता है व विशेष हानि नहीं होती है।
फेंसिंग के समानांतर हाथी अवरोधक खाई बनाई जाएगी, जिससे जन-धन हानि कम की जा सके। बैठक में उपस्थित विशेषज्ञों द्वारा सुझाव दिया गया कि हाथी आवागमन के गलियारे में धान और गन्ने की फसल के स्थान पर मिर्च, अदरक सहित अन्य नगदी फसलें ली जाएं जिसे हाथी नुकसान ना पहुंचा सकें।
बैठक में अचानकमार से होकर गुजरने वाली सड़क को आवागमन के लिए बंद नहीं करने पर भी सदस्यों ने चिंता जताई। बैठक में मांग की गई कि अचानकमार से होकर गुजरने वाली सड़क की जगह रतनपुर, केंदा, मझपानी, केंवची से होकर जाने वाले वैकल्पिक मार्ग को दुरस्त कर चालू किया जाए।

जंगली भैंसे के संरक्षण की बनी योजना
राज्य पशु जंगली भैंसों के संरक्षण के लिए अंजोरा स्थित पशु चिकित्सा महाविद्यालय में उपलब्ध अत्याधुनिक तकनीक की सहायता लेने का निर्णय लिया गया। बैठक में बताया गया कि जंगली भैंसों का जेनेटिक प्रोफाइल विश्लेषण सेन्टर फॉर सेलुलर एवं मॉलीक्यूलर बॉयलाजी हैदराबाद में कराया गया, वहां की रिपोर्ट में वनभैंसे की प्रजाति सर्वाधिक शुध्द नस्ल का बताया गया।

कुशल वकीलों का पैनल बनेगा
प्रदेश में वन्य प्राणियों से संबंधित अपराधों पर अंकुश लगाने और वन अपराधियों को कड़ी सजा दिलाने के लिए वन विभाग की ओर से कुशल वकीलों का पैनल तैयार करने का निर्णय लिया गया।
बैठक में बताया गया कि अचानकमार टाइगर रिजर्व के छह गांवों को नजदीक स्थित बसाहटों में व्यवस्थापित किया गया है और प्रति परिवार उनके विकास के लिए दस लाख रुपए खर्च किए गए। वर्ष 2010-11 में इसके लिए 7.24 करोड़ रुपए की राशि दी गई।
बार नवापारा अभयारण्य में स्थित तीन गांवों के व्यवस्थापन की कार्ययोजना भी बना ली गई है। अचानकमार टाइगर रिजर्व और सीतानदी-उदंती अभयारण्य में रिक्त पदों को शीघ्र भरने के निर्देश दिए गए।
कोटमी सोनार में बढ़ी मगरमच्छों की संख्या
राज्य वन्य जीव बोर्ड की बैठक में जानकारी दी गई कि कोटमी सोनार में एक ही तालाब में रखे गए मगरमच्छों की संख्या बढ़ने के कारण उनके हिंसक होने का खतरा बढ़ गया है।
सौ से अधिक मगरमच्छ होने के कारण उनसे आसपास के स्थानों में रहने वाले लोगों पर आक्रमण करने का खतरा बढ़ गया है। इन पर निगरानी रखने के लिए ग्रामीणों का सहयोग लेने का भी निर्णय लिया गया।

गिरौदपुरी जैतखाम होगा यूनेस्को की विश्व धरोहरों के समकक्ष
रायपुर.छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 145 किलोमीटर की दूरी पर अठारहवीं सदी के महान समाज सुधारक गुरू बाबा घासीदास की जन्म भूमि और तपोभूमि गिरौदपुरी में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के जरिए बन रहा 243 फीट की ऊंचाई का जैतखाम दुनिया में आधुनिक भारतीय इंजीनियरिंग प्रतिभा का एक शानदार उदाहरण होगा।
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली स्थित लगभग आठ सौ वर्ष पुराना 237.8 फीट (72.5 मीटर) ऊंची कुतुब मीनार भारतीय इतिहास और पुरातत्व की बहुमूल्य धरोहर के रूप में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्मारक सूची में शामिल है, जिसकी ऊंचाई छत्तीसगढ़ के गिरौदपुरी में 51 करोड़ रूपए से भी अधिक लागत से बन रहे विशाल जैतखाम से लगभग पांच मीटर कम है। गिरौदपुरी में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा बनवाए जा रहे इस गगन चुम्बी जैतखाम की ऊंचाई 243 फीट (करीब 77 मीटर) होगी।
इस प्रकार कुतुब मीनार से करीब पांच मीटर ऊंचे इस जैतखाम का निर्माण पूर्ण होने पर इसकी गिनती भी इतिहास और आधुनिक स्थापत्य कला की दृष्टि से दुनिया की एक अनमोल धरोहर के रूप में होने लगेगी और यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्मारकों के समकक्ष आ जाएगा।
सतनाम पंथ के प्रवर्तक बाबा गुरू घासीदास का जन्म गिरौदपुरी में लगभग ढाई सौ साल पहले, 18 दिसम्बर 1756 को हुआ था।
उन्होंने इसी गांव के नजदीक छाता पहाड़ में कठिन तपस्या की और अपने आध्यात्मिक ज्ञान के जरिए देश और दुनिया को सत्य, अहिंसा, दया, करूणा, परोपकार जैसे सर्वश्रेष्ठ मानवीय मूल्यों की शिक्षा देकर सत्य के मार्ग पर चलने का संदेश दिया।
इसके फलस्वरूप यह गांव विशेष रूप से छत्तीसगढ़ की जनता की आस्था का प्रमुख केन्द्र बन गया, जहां बाबा घासीदास के महान विचारों के साथ-साथ उनकी यश-कीर्ति को जन-जन तक पहुंचाने और दूर-दूर तक फैलाने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में राज्य सरकार के लोक निर्माण विभाग ने गिरौदपुरी में करीब तीन वर्ष पहले कुतुब मीनार से भी ऊंचे इस विशाल जैतखाम का निर्माण शुरू किया था, जो अब तेजी से पूर्णता की ओर अग्रसर है।

खेती में राष्ट्रीय औसत से आगे है छत्तीसगढ़ प्रदेश
देश की औसत रफ्तार से काफी आगे चल रहा है। छत्तीसगढ़ में कृषि पांच प्रतिशत की दर से आगे बढ़ रही है जबकि राष्ट्रीय औसत तीन प्रतिशत है।

राज्य निर्माण के बाद खेती में जबर्दस्त बदलाव आया है। यही वजह है कि राज्य निर्माण के समय की कुल पैदावार 58 लाख 27 टन अब बढ़कर 80 लाख टन से अधिक हो गई है।
प्रदेश की 80 फीसदी आबादी की अर्थव्यवस्था खेती से ही संचालित होती है। छत्तीसगढ़ में इस समय करीब 44 लाख हेक्टेयर में खेती हो रही है। इसमें धान का रकबा करीब 35 लाख हेक्टेयर है। खेती के क्षेत्र में रमन सरकार के पिछले सात सालों में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिले हैं।
उन्नत तकनीक पर काम हुआ है और किसानों को आधुनिक खेती अपनाने के लिए प्रेरित किया गया है। सरकार ने किसानों की मानसून पर निर्भरता कम करने की दिशा में कई अहम निर्णय लिए।
इसको इन आंकड़ों से भी समझा जा सकता है कि जब राज्य बना तब छत्तीसगढ़ मे मात्र 72 हजार सिंचाई पंप कनेक्शन थे लेकिन आज राज्य के 2 लाख 40 हजार से अधिक किसानों के पास सिंचाई पंप हैं।
सिंचाई का रकबा बढ़ाने की दिशा में भी ठोस काम हुआ। इसके चलते सिंचित क्षेत्र 23 से बढ़कर 31 प्रतिशत से अधिक हो गया है। राष्ट्रीय औसत 48 प्रतिशत की ओर यह तेजी से बढ़ रहा है।
सरकार द्वारा समर्थन मूल्य पर धान खरीदी की ठोस व्यवस्था किए जाने के कारण किसानों के मन में खेती के प्रति उत्साह बढ़ा है। पिछले साल 40 लाख टन खरीदने के बाद इस वर्ष किसानों से 50 लाख टन धान खरीदने का लक्ष्य रखा गया है।
सबसे कम ब्याज दर पर ऋण :
सरकार ने किसानों को तीन प्रतिशत की किफायती ब्याज दर पर लोन देने की व्यवस्था की है। यह कृषि ऋण खरीफ एवं रबी की विभिन्न फसलों के बीज, खाद, कृषि यंत्र सहित पौध संरक्षण, औषधि आदि के लिए उपलब्ध कराया जा रहा है।
यह सुविधा वित्तीय वर्ष 2008-09 से दी जा रही है। किसानों को इतनी कम ब्याज दर पर खेती के लिए ऋण सुविधा देने वाला छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है।
नदियों के पानी को रोकने के उपाय
छत्तीसगढ़ में नदियों का पानी काफी मात्रा में बह जाता है। इस पानी को रोककर खेतों की प्यास बुझाने की दिशा कदम उठाए गए हैं। बड़ी सिंचाई परियोजनाओं की मंजूरी में समय लगता है, इस कारण नदियांे पर छोटे-छोटे एनीकट बनाकर पानी रोकने का इंतजाम किया जा रहा है।
ऐसे 593 एनीकट बनाने का निर्णय लिया जा चुका है। इनमें से करीब एक तिहाई बन चुके हैं। इनके अलावा लघु सिंचाई योजनाओं को सरकार हाथ में ले रही है।
लघु सिंचाई योजनाओं की भागीदारी
राज्य में सर्वाधिक 70 प्रतिशत सिंचाई नहरों से होती है। वर्षा की अनिश्चितता, अतिवृष्टि-अनावृष्टि आदि परिस्थितियों से निपटने और तालाबों और कुंओं से सिंचाई रकबे में बढ़ोतरी के लिए सिंचाई के नये साधनों के रूप में कुंआ, छोटे तालाब, नलकूप सहित सिंचाई की छोटी परियोजनाओं पर भी तेजी से काम हुआ है।
लघु सिंचाई नलकूप योजना के तहत 22 हजार 207 नलकूप खनन कर पम्प स्थापना के लिए आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई गई है।
"कृषि की विकास दर को बनाए रखना बड़ी चुनौती है। इस दर को आगे बढ़ाने के उपाय किए जा रहे हैं। इसके लिए एलायड सेक्टर पर भी काम किया जा रहा है। इसमें पशुधन विकास भी शामिल है।"
चंद्रशेखर साहू,कृषि मंत्री, छत्तीसगढ़ शासन

मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

इंटरनेट से मनोरंजन

इंटरनेट ने बदले मनोरंजन के मायने
- वंदना
आप दुनिया के किसी भी हिस्से में जाएँ सिनेमा ऐसा नशा है जिसका जादू सर चढ़कर बोलता है। इंटरनेट यानी तारों का जाल और इस जाल से मनोरंजन की दुनिया भी बच नहीं पाई हैं। फिल्म और संगीत के रिलीज से लेकर उसके प्रदर्शन और प्रचार तक के कई पहलूओं को इंटरनेट ने बदल कर रख दिया है।
यहाँ तक कि यू ट्यूब से लोगों को हॉलीवुड-बॉलीवुड में ब्रेक मिल रहा है। इंटरनेट विज्ञापनों की भी नई दुनिया बन गई है। आजकल तो फिल्म रिलीज हुई नहीं कि लोग उसकी प्राइरेटिड कॉपी तुरंत ही अवैध तरीके से इंटरनेट के जरिए यू ट्यूब पर डाल देते हैं और घर पर बैठे-बैठे ही फिल्म देख लेते हैं-फर्स्ट डे फर्स्ट शो।
फिल्म पा के रिलीज के दिन हिंदी फिल्मों के शहंशाह अमिताभ बच्चन के साथ क्या हुआ वे खुद बताते हैं, 'पा जिस दिन रिलीज हुई उसी दिन किसी ने ये फिल्म यू ट्यूब पर डाल दी। हमने यू ट्यूब को कई नोटिस भेजे। वे फिल्म इंटरनेट से हटा देते थे, लेकिन तुरंत कोई फिल्म दोबारा अपलोड कर देता था। मेरी समझ में नहीं आ रहा कि क्या करना चाहिए।'
यहाँ मानो अमिताभ भी कहते नजर आए कि इंटरनेट के जाल से निकलना मुश्किल ही नहीं नामुमिकन-सा है।
वेबसाइट पर देखिए फिल्में और सिरीयल: इंटरनेट तो मानो अब ऐसा पिटारा बन गया हैं जहाँ आप जो चाहें जब चाहें देख सकते हैं। इसी बाजार का फायदा उठाने के लिए कई कंपनियों ने अपनी-अपनी बेबसाइटें खोली हैं।
'मैंने प्यार किया' और 'हम आपके हैं कौन' जैसी सुपरहिट फिल्में बनाने वाले राजश्री बैनर ने भी अब इस दिशा में कदम बढ़ाएँ हैं और राजश्री डॉट कॉम खोला है। इतने बड़े बैनर ने आखिरकार क्या सोचकर इंटरनेट और ऑनलाइन की दुनिया में कदम रखा।
राजश्री मीडिया के मैनेजिंग डाइरेक्टर और सीईओ रजत बड़जात्या कहते हैं, 'हमने देखा कि कई फिल्में लोग अवैध तरीके से इंटरनेट पर डाल रहे थे, पाइरेसी हो रही थी और लोग देख भी रहे थे। तभी हमने सोचा कि क्यों न हम खुद ये काम करें ताकि लोग लीगल या वैध तरीके से ये फिल्में देख पाएँ। बहुत सारी फिल्में मुफ्त में देख सकते हैं। अगर कोई इसे डाउनलोड करना चाहता है तो वो उसे चंद डॉलर की फीस देकर डाउनलोड भी कर सकता है।
रजत बड़जात्या बताते हैं कि कुछ साल पहले राजश्री की फिल्म विवाह इंटरनेट पर रिलीज की गई थी जिसकी काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिली। इसके बाद राजश्री ने जी, स्टार, यू ट्यूब वगैरह से पार्टरनशिप की जो धारावाहिक भी उनकी वेबसाइट पर डालते हैं। यहाँ तक कि बीबीसी मोशन गैलरी से कुछ वीडियो और रिपोर्टें भी इस बेवसाइट पर हैं जो कहीं- कहीं ही देखने को मिलती है।
वे कहते हैं, 'राजश्री की वेबसाइट खोलने का दूसरा कारण है कि आने वाले कल में लैपटॉप, आईपॉड जैसे उपकरण लोगों के हाथों में जा रहे हैं। इंटरनेट के ज़रिए इन्हीं पर लोग फिल्में देखेंगे। तो हमने डिजिटल वेंचर खोला और यू ट्यूब पर हमारे 11 चैनल हैं अलग-अलग भाषाओं में।'
इरोस इंटरनेशनल ने भी ऐसी ही वेबसाइट शुरू की हुई है। यकीन मानिए ऐसी वेबसाइटें किसी भी फिल्म प्रेमी के लिए किसी खजाने से कम नहीं। देवदास शाहरुख से लेकर दादा मुनी अशोक कुमार तक की फिल्में, सिरीयल आप यहाँ देख सकते हैं।
आप सोचेंगे कि इससे इन वेबसाइटों को क्या फायदा। रजत बड़जात्या बताते हैं, 'मुनाफा हमें विज्ञापनों से मिलता है जो इंटरनेट पर कंपनियाँ हमारी वेबसाइट पर डालती हैं। फिर फिल्में आदि डाउनलोड करने के लिए लोग फीस देते हैं। उससे भी आमदनी होती है। तीसरा जरिया है कि हमारा यूट्यूब, अमेजॉन वगैरह से अनुबंध है जो हमारे फिल्में, सिरीयल लेते हैं। यू ट्यूब पर हमारे 21.5 करोड़ वीडियो डाले हुए हैं।
यू ट्यूब से मिली हॉलीवुड फिल्म: इंटरनेट ने फिल्म रिलीज करने का तरीका भी बदल दिया है। रंग दे बसंती से मशहूर हुए अभिनेता सिद्धार्थ की हिंदी फिल्म स्ट्राइकर पिछले महीने थिएटरों के साथ-साथ पूरी दुनिया में एक साथ इंटरनेट पर रिलीज हुई (भारत को छोड़कर)।
जब भारत में लोग इंटरवल के दौरान पॉपकॉर्न खरीद रहे थे तो उसी दौरान हीरो साहब ऑनलाइन थे और दुनिया भर के उन फैन्स के साथ चैट कर रहे थे जो फिल्म को रिलीज के दिन विभिन्न देशों में ऑनलाइन देख रहे थे और ये इंटरनेट का ही कमाल था।
इंटरनेट ने दुनिया के सामने अपनी सृजनशीलता दिखाने के भी नए दरवाजे खोल दिए हैं। जरा इस किस्से पर गौर कीजिए। उरुग्वे के एक निर्माता फेडे अल्वारोज ने पिछले साल नवंबर में करीब पाँच मिनट की एक लघु फिल्म बना यू ट्यूब पर अपलोड की। और चंद दिन बाद उन्हें हॉलीवुड के लिए फिल्म बनाने का प्रस्ताव मिल गया।
बीबीबी से बातचीत में अल्वरारोज बताते हैं, 'मेरी इस हॉलीवुड फिल्म को प्रायोजित करेंगे सैम राइमी जो स्पाइरमैन और एवल डेड जैसी फिल्में बान चुके हैं। ये अदभुत था, हम सब चकित थे। अगर कोई निर्देशक यू ट्यूब पर इंटरनेट के जरिए फिल्म डालकर हॉलीवुड की फिल्म हासिल कर सकता है तो फिर ये किसी के लिए भी मुमकिन है।'
वहीं नई अभिनेत्री और शक्ति कपूर की बेटी श्रद्धा को तीन पत्ती में अपना पहला रोल इंटरनेट के जरिए ही मिला। निर्माता ने उनकी तस्वीरें फेसबुक पर देखीं और बुला लिया ऑडिशन के लिए।
संगीत और इंटरनेट: संगीत के क्षेत्र में भी इंटरनेट के कारण नए प्रयोग हो रहे हैं। गायक लकी अली ने अपनी ताजा एल्बम सीडी के जरिए नहीं बल्कि ऑनलाइन बाजार में रिलीज की है।
क्यों, खुद लकी बताते हैं, 'दरअसल जब आप सीडी रिलीज करते हैं तो उसमें रिकॉर्ड कंपनियाँ शामिल हो जाती हैं। लेकिन गायक को पूरा फायदा नहीं मिलता। वो सोचता रह जाता है कि एलबम की बिक्री तो अच्छी है फिर मुझे पैसे क्यों नहीं दे रहे। आपको सिस्टम से लड़ना पड़ता है, हिसाब माँगना पड़ता है। ये कलाकार की फितरत नहीं है कि वो हिसाब माँगे। मैं नाम नहीं लूँगा पर मेरा अनुभव कंपनियों के साथ अच्छा नही रहा। इसिलए मैंने इस बार एलबम ऑनलाइन रिलीज की।'
इस माया जाल का एक बड़ा नुकसान ये जरूर है कि इंटरनेट पर बिना कानूनी अधिकार के लोग अवैध रूप से दूसरों की फिल्में, गाने और दूसरी चीजें डाउनलोड करते हैं, लेकिन हर सिक्के के दो पहलू तो होते ही हैं।
राजश्री के रजत बड़जात्या कहते हैं कि जल्द ही तारों का ये जाल इतना फैल जाएगा कि लोग अपने कंप्यूटर पर ही नहीं अपने मोबाइल, टीवी और यहाँ तक की घड़ियों जैसे उपकरणों पर भी इंटरनेट के जरिए फिल्में देख पाएँगे।
अपनी बात समेटते हुए वे बड़े आत्मविश्वास से कहते हैं कि मनोरंजन जगत में भविष्य का माध्यम इंटरनेट ही है और इस क्षेत्र में बहुत कुछ नया होना अभी बाकी है।

सोमवार, 13 दिसंबर 2010

मुफलिसी के गुबार से निकली हौसलों की उड़ान

हाल के खेल आयोजनों में महिला खिलाड़ियों का प्रदर्शन आशा से अधिक कामयाब रहा है। वे किसी बड़े शहर से नहीं, बल्कि छोटे-छोटे गांवों और कस्बों से निकली हैं। घर में ही नहीं, खेल के मैदान में भी उन्हें दोहरा संघर्ष करना पड़ता है, इस बार पेश है इन जांबाज लड़कियों की दास्तान

घना जंगल, नंगे पैर ही स्कूल जाया करती थी
अश्विनी चिदानंदा अकुंजी (400 मी. बाधा और 4 गुणा 400 मीटर रिले-स्वर्ण)

घर से तीन किलोमीटर दूर था अश्विनी का स्कूल। पिता किसान हैं। घर कर्नाटक के उडुपी जिले के कुंडापुरा के जानसेल गांव में हैं। घर के चारों ओर घना जंगल है। बेटी रोजाना नंगे पैर ही स्कूल जाया करती थी। ऊबड़-खाबड़ सड़कों से होते हुए मस्ती-मस्ती में रोजाना तीन किलोमीटर स्कूल जाना और वहां से वापस आना अश्विनी की दिनचर्या थी। अश्विनी की इसी दिनचर्या ने उसे इतना मजबूत बना दिया है कि वह एक सफल एथलीट बन कर उभरीं। पिता के साथ गाय चराने के लिए भी जंगल में जाया करती थी अश्विनी। गायों को पकड़ने के लिए दौड़ लगाना भी उसकी रोजमर्रा की जिंदगी में शुमार था। अचानक एक दिन अश्विनी के पिता के दोस्त ने उसे एथलेटिक्स में करियर बनाने का सुझाव दिया। हां, दिल्ली कॉमनवेल्थ खेलों से पहले तक अश्विनी की कोई पहचान नहीं थी। इसके बाद एशियाई खेलों में तो अश्विनी चिदानंदा सितारे के समान उभर कर सामने आईं। इतना ही नहीं अश्विनी के परिवार वाले तो कॉमनवेल्थ खेलों में उसकी सफलता को टी.वी. पर भी नहीं देख पाए थे। क्योंकि उस समय घर में बिजली नहीं थी। काफी मुफलिसी में जीवन बिताया है अश्विनी ने। खाने के लिए उसे सिर्फ सब्जियां या फिर चावल का पानी ही मिलता था।
प्रस्तुति-संजीव

जूते तक खरीदने को पैसे नहीं थे

कविता राउत
(10 हजार मीटर-रजत पदक)

कविता की सफलता की कहानी भी काफी रोमांचक है। कविता नासिक के पास के ट्राइबल क्षेत्र से हैं। कविता ने दौड़ना इसलिए शुरू किया था क्योंकि इसके लिए पैसे की जरूरत नहीं थी और बिना जूते पहने दौड़ा जा सकता था। यहां तक कि एक समय उनके पास जूते तक खरीदने के लिए पैसे नहीं थे।

कहावत है कि असली भारत गांवों में ही बसता है। अन्य मामलों में यह कहावत कितनी सच है पता नहीं लेकिन खेलों के मामले में जरूर सोलह आने सच साबित हो रही है। दिल्ली में हुए कॉमनवेल्थ खेल हों या फिर हाल ही में ग्वांगझू, चीन में सम्पन्न हुए एशियाई खेल। गांवों की पृष्ठभूमि से निकले और मुफलिसी में जीवन गुजारने वाले एथलीटों ने भी खूब तिरंगा लहराया।

एशियाई खेलों में भारत की शानदार सफलता में महिला एथलीटों की खास भूमिका रही है। वे किसी बड़े शहर से नहीं थीं बल्कि छोटे-छोटे गांवों और कस्बों से निकली हैं। ट्रैक एंड फील्ड में महिला एथलीटों की सफलता का ग्राफ 1986 से चढ़ना शुरू हुआ। 1986 से पहले के चार एशियाई खेलों में भारतीय पुरुष एथलीटों का ही दबदबा था। पुरुषों ने जहां 56 पदक जीते थे, वहीं महिला एथलीट सिर्फ बारह। 1986 से 2006 दोहा एशियाई खेलों तक जहां पुरुष एथलीटों ने केवल 16 पदक जीते थे, वहीं महिला एथलीटों ने 40 पदक अपने नाम किए। यही सिलसिला 2010 एशियाई खेलों में भी जारी रहा। भारतीय महिला एथलीटों के शानदार प्रदर्शन से खेल की दुनिया के लोग चकित रह गए। एथलेटिक्स में मिले 11 में से 10 पदक महिला एथलीटों के खाते में गए। इतना ही नहीं पांच स्वर्ण पदकों में से 4 स्वर्ण पदक तो हमारी इन छोटे-छोटे कस्बों और गांवों से निकली महिला एथलीटों ने अपने नाम किए। एथलेटिक्स में भारत को स्वर्ण दिलाए प्रीजा श्रीधरन (10 हजार मीटर रेस), सुधा सिंह (3000 मीटर स्टीपलचेज), अश्विनी चिदानंदा अकुंजी (400 मीटर बाधा और 4 गुणा 400 मी रिले) ने। इन तीनों ही एथलीटों की सफलता की कहानी बड़ी ही दिलचस्प और परिस्थितियों के खिलाफ एलान-ए-जंग है।

रविवार, 12 दिसंबर 2010

छत्तीसगढ़ की खबरें

चुनाव में हेलिकॉप्टर का प्रयोग
रायपुर। नगरीय निकाय चुनाव ठीक तरह से करवाने के लिए निर्वाचन आयोग तैयारियों में जुटा है। कहीं पर आसानी से चुनाव हो जाएंगे तो कहीं सुरक्षा बलों के साथ ही हेलीकाप्टर का उपयोग भी करना पड़ सकता है। यानी आयोग जमीन से लेकर आसमान तक एहतियाती इंतजाम कर रहा है। निकाय चुनाव में सात लाख वोटरों के लिए 956 बूथों का इंतजाम किया गया है। 13 स्थानों पर वोटिंग 21 व बैकुंठपुर में 23 दिसंबर को होगी।
नक्सल प्रभावित बस्तर, दंतेवाड़ा, कांकेर और बीजापुर जिलों में भी चुनाव हो रहे हैं। निर्वाचन आयुक्त पी.सी. दलेई का कहना है कि चुनाव सीमित मैदानी इलाके में है इस वजह से परेशानी की संभावना नहीं है। फिर भी जरूरत पड़ी तो अलग से बल उपलब्ध करा दिया जाएगा। शासन ने बस्तर में पुलिस को हेलीकाप्टर दे रखा है। जरूरी हुआ तो उसका उपयोग किया जा सकेगा। पूर्व में हुए पंचायत चुनावों में कुछ स्थानों के लिए हेलीकाप्टर का उपयोग किया गया था। एक नगर निगम, छह नगर पालिक परिषद, सात नगर पंचायतों में आम निर्वाचन तथा कुछ वार्डो के लिए उपचुनाव हो रहे हैं।
आयोग ने करीब सात लाख वोटरों के लिए 956 बूथों का इंतजाम किया है। 13 स्थानों पर वोटिंग 21 व बैकुंठपुर में 23 दिसंबर को होगी। इसके लिए 1050 मतदान दल बनाए गए हैं। लगभग इतने ही वाहनों का इंतजाम किया जा रहा है । मतगणना 24 व 26 दिसंबर को होगी। इसके लिए अलग से अफसरों व कर्मचारियों को ट्रेनिंग दी जा रही है। महापौर या अध्यक्ष तथा पार्षद के लिए अलग-अलग रंग के मतपत्र छपवाए जा रहे हैं। 1200 से अधिक मतपेटियों से धूल झाड़कर दुरुस्त कर लिया गया है।
वोटिंग से पहले और नतीजों तक निर्वाचन आयोग की कड़ी परीक्षा होती है। तय समय पर चुनाव कराने समूचा अमला विभिन्न प्रकार की तैयारी में लग जाता है। थोड़ी सी भी चूक उसकी विश्वसनीयता पर बट्टा लगा सकती है इस वजह से फूंक-फूंक कर कदम रखना पड़ता है।

जनता की सड़क भी हुई भू-माफियाओं के हवाले
रायपुर।राजधानी के भाठागांव राजस्व निरीक्षक मंडल क्षेत्र में आने वाले महामाया वार्ड स्थित भैया तालाब से लगी निस्तारी और सरकारी जमीन पर कब्जा किया जा रहा है। रहवासियों का आरोप है कि भू-माफियाओं ने कुछ जमीन तो कब्जा कर बेच भी दी और अब उस पर लोग घर बनाकर रहने लगे हैं।
उनका यह भी कहना है कि निस्तारी की जमीन के अलावा सड़क को भी बेचा जा रहा है। इसके कारण अब यहां की सड़क सिर्फ राजस्व विभाग के नक्शे में ही शेष रह गई है।

इन्वेस्टीगेशन में यह भी सामने आया कि जब यह क्षेत्र विकसित नहीं हुआ था तब यहां श्मसान घाट हुआ करता था। इसके बाद भी प्रशासन की लापरवाही के कारण यहां की जमीन पर लगातार कब्जे हो रहे हैं। इसकी शिकायत नगर निगम आयुक्त से लेकर जिला प्रशासन के एस.डी.एम. तक की जा चुकी है, लेकिन कार्रवाई के बजाय वे अधिकारी चिट्ठी-पत्री में ही मामले को उलझाए हुए हैं। दो माह बाद भी अब तक जिम्मेदारों ने मौके पर जाकर वस्तुस्थिति का जायजा नहीं लिया है।
भैया तालाब के पास से शुरू होने वाली यह सड़क राजस्व विभाग के नक्शे में 40 फीट चौड़ी है। जबकि हकीकत में सड़क का अता-पता नहीं है। ऐसे में पुरानी बस्ती के लोगों को भैया तालाब क्षेत्र में आने-जाने के लिए बूढ़ा तालाब के पास से घूमकर जाना पड़ता है। इससे पांच कि.मी. का अतिरिक्त रास्ता तय करना पड़ रहा है।

35 लाख के झगड़े में बंद हुई सफाई
रायपुर। रायपुर नगर निगम और लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (पी.एच.ई.) के बीच उपजा एक विवाद आने वाले दिनों में राजधानी के लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है। जड़ में है ड्रेनेज सिस्टम जिसके मैंटेनेंस का पैसा न मिलने के कारण पी.एच.ई. अफसरों ने हाथ खड़े कर दिए हैं। उन्होंने अब निगम को ही इसका जिम्मा संभालने को कह दिया है।

दो विभागों के बीच जारी विवाद इस कदर बढ़ गया है कि चार महीने से रायपुर शहर का अंडरग्राउंड ड्रेनेज सिस्टम ठप है। अब तो खमतराई और टिकरा पारा स्थित उन पंपिंग स्टेशन पर भी ताला जड़ा जा चुका है जहां लगी मशीनों से सीवेज को बाहर पहुंचाया जा रहा था।
हमारे शहर के प्रति अधिकारियों के इस लापरवाह रवैये को देखते हुए डीबी स्टार टीम ने इन्वेस्टीगेशन किया। सामने आया कि पी.एच.ई. ने नगर निगम के सिस्टम को चलाने के लिए इस साल 44 लाख 50 हजार रुपए का प्रस्ताव बनाकर भेजा था। 10 मई को निगम प्रशासन ने इसमें से महज १क् लाख रुपए का चेक जारी किया, यह राशि जुलाई में ही खत्म हो गई। इसके बाद दोनों जिम्मेदार विभागों के अफसरों में बकाया को लेकर विवाद गहरा गया।
मामले ने इतना तूल पकड़ा कि पी.एच.ई. कार्यपालन अभियंता ओंकेश चंद्रवंशी ने नगर निगम कार्यपालन अभियंता ए.के. माल्वे को समूची व्यवस्था ही हस्तांतरण करने को लेकर पत्र भेज दिया। विवाद चरम पर है, ड्रेनेज सिस्टम ठप है, अधिकारी चिट्ठी-पत्री कर रहे हैं और इसकी खबर महापौर किरणमयी नायक तक को नहीं है। जब टीम ने उन्हें इन हालात से रूबरू करवाया तो वे चौंक गईं। पूछने लगीं- क्या शहर का अपना कोई ड्रेनेज सिस्टम भी है।
नगर निगम और पी.एच.ई.अफसरों के बीच ड्रेनेज सिस्टम चलाने को लेकर एक साल से विवाद जारी है। पंपिंग स्टेशन पर ताले जड़े जा चुके हैं, इसके बाद भी जिम्मेदारों ने महापौर को जानकारी तक देना मुनासिब नहीं समझा। डीबी स्टार टीम जब इस मसले पर बात करने के लिए उनसे मिली तो महापौर किरणमयी नायक बोलीं- कौन सी लाइन, कहां है, आप क्या बात कर रहे हैं, मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा।
जब उन्हें दस्तावेज और २२ साल पुराने ड्रेनेज सिस्टम का नक्शा दिखाया गया तो वे भी चौंक गईं। इसके बाद बोलीं- मुझे तो मेरे स्टाफ ने कभी इसके बारे में बताया ही नहीं। फिर निगम में जिस अधिकारी के जिम्मे यह व्यवस्था है को फोन कर वस्तुस्थिति के बारे में पूछा। बोलीं- समस्या को लेकर इसकी फाइलें मंगवाकर बैठक लेती हूं। वस्तुस्थिति जानूंगी कि आखिर कैसे शहर को संकट से उबारा जाए।

राहुल और पार्वती को मिलेगा राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार
बिलासपुर.अपनी जान की परवाह न करते हुए दूसरों की जान बचाने वाले राहुल और पार्वती को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार मिलेगा। गणतंत्र दिवस पर देश की राजधानी दिल्ली में होने वाले समारोह में राष्ट्रपति के हाथों उन्हें यह सम्मान मिलेगा।
साहस का परिचय देने वाले बच्चों को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान दिया जाता है। इसके लिए इस वर्ष जिले के दो बच्चों का चयन किया गया है। इसमें से राहुल र्कुे बिलासपुर के मंगला घाट, छोटी कोनी के रहने वाला है, वहीं पार्वती गौरेला विकासखंड में ग्राम कोटरिया की रहने वाली है।
दोनों को 26 जनवरी 2010 को राजधानी रायपुर में आयोजित समारोह में राज्य वीरता पुरस्कार से नवाजा जा चुका है।भास्कर 24 जनवरी के अंक में इन बच्चों की बहादुरी के साथ-साथ बदहाली को प्रशासन के सामने रखा था।
दोनों बच्चों को उनके अदम्य वीरता के कामों के लिए 26 जनवरी 2010 को राजधानी रायपुर में होने वाले समारोह में राज्य वीरता पुरस्कार दिया गया था। इसके बाद 30 सितंबर 2010 को दोनों बच्चों के नाम राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार के लिए भेजा गया था।उल्लेखीय है कि भास्कर ने इस वर्ष की शुरुआत में 24 जनवरी को जिले के बहादुर बच्चों पर विस्तृत खबर प्रकाशित की थी, और उनके रहन-सहन, आर्थिक स्थिति, वीरता पर उनके अभिभावकों के विचार जानने के साथ ही उनकी शिक्षा, लक्ष्य की भी जानकारी दी थी।

जज पति पीता है शराब, पराई लड़की संग करता है अय्याशी
कोरबा/रायपुर.पत्नी पर हत्या का प्रयास का मामला दर्ज कराने वाले जज केपी भदौरिया ने चार दिन बाद मीडिया के सामने खुद का बचाव करने की कोशिश की। उन्होंने पत्नी पर शादी के बाद से ही प्रताड़ित करने का आरोप लगाया।
पेट्रोल छिड़कने को लेकर अभी भी बयान विरोधाभासी है। जज का कहना है कि पत्नी ने उसे जलाकर मारने की कोशिश की लेकिन बच्चों के बताए अनुसार मामला पेचीदा हो गया है।

एक ने जज को खुद पर पेट्रोल डालना बताया जबकि दूसरे ने मां मन्नू भदौरिया द्वारा पेट्रोल डालना बताया। शुक्रवार को अपने सरकारी आवास में जज भदौरिया ने अपनी पत्नी मन्नू पर आरोप लगाते हुए कहा कि शादी के बाद से ही वह उन्हें प्रताड़ित करती आ रही है।
परिवार को बचाने के लिए मैं सब कुछ सहता रहा। जज बनने के बाद तो वह एक तरह से मुझे ब्लैकमेल करने लगी थी। मैं घर की बात बाहर रखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था, क्योंकि मैं एक जज हूं।
उसने जब पेट्रोल छिड़ककर मुझे जिंदा जलाने का प्रयास किया, तो मैंने हिम्मत जुटाकर उसके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई। इसके बाद से मुझे खलनायक के रूप में पेश किया जा रहा है।
अधिवक्ता संघ के विरोध मसले पर उन्होंने कहा कि मैंने हमेशा से पक्षकारों के पक्ष में फैसला दिया, इसलिए वकील मेरे खिलाफ हैं। मेरे फैसलों से नाखुश अधिवक्ता संघ मेरे खिलाफ हैं और मामले को तूल दे रहे हैं।
शिकायत पर हो रही है जांच:
मन्नू भदौरिया द्वारा गुरुवार देर शाम रामपुर चौकी में अपने पति के खिलाफ किए गए लिखित शिकायत के मामले में अभी तक किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं की गई है। इस संबंध में पुलिस अधिकारी कुछ बोलने को तैयार नहीं है।
एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मामला न्यायिक क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति का होने के कारण शिकायत पर जांच की जा रही है।
मन्नू के पक्ष में विधायक और नागरिक:
जज पति और पत्नी के बीच झगड़े ने यहां तूल पकड़ लिया है। अधिवक्ता संघ समेत विधायक जयसिंह अग्रवाल, पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष एवं वरिष्ठ भाजपा नेता बनवारी लाल अग्रवाल , समाज सेवी केएन सिंह समेत अन्य जनप्रतिनिधि एवं शहरवासी मन्नू भदौरिया के पक्ष में आ गए हैं।
सभी पीड़िता मन्नू भदौरिया को इंसाफ दिलाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। गुरुवार को जमानत मिलने के बाद जेल से छूटते ही मन्नू भदौरिया ने अपने पति के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
पापा अच्छे नहीं
भदौरिया दंपती के दोनों बच्चे पुत्री कुमारी मिली(९) एवं पुत्र हर्ष(5) निर्मला स्कूल में क्रमश: कक्षा तीसरी और केजी-1 में पढ़ते हैं। इन दोनों बच्चों ने अपने पिता द्वारा मम्मी से मारपीट करने की बात कही।
दोनों मासूमों ने पापा को अच्छा नहीं बताया जबकि वे मम्मी के साथ रहने की बात मीडिया के सामने कही। घटना के संबंध में मिली ने जहां पापा द्वारा स्वयं पर पेट्रोल छिड़कना बताया, वहीं हर्ष ने मम्मी द्वारा पापा पर पेट्रोल छिड़कने की बात कही।
इस संबंध में जज भदौरिया ने कहा कि गुरुवार की शाम जब मन्नू भदौरिया बच्चोंे से मिलने पहुंची थी तब खिड़की से बच्ची मिली को उसने बरगला दिया है।
महिलाओं को घर लाते थे जज : मन्नू
जज भदौरिया की पत्नी मन्नू भदौरिया ने बताया कि उसके पति शादी के बाद से उन्हें लगातार प्रताड़ित कर रहे थे। आए दिन मारपीट करते थे। शिकायत करने पर दबाव डालकर बयान बदलवाया जाता था।
भूखे रखने के साथ-साथ यातना दी जाती थी। कोरबा में आने के बाद वे (जज पति) शराब पीकर अय्याशी करने लगे। इसके साथ ही अन्य महिलाओं को साथ लेकर घर भी आ जाते थे। विरोध करने पर वे उससे मारपीट कर धमकाते थे। मन्नू ने कहा कि डर और बच्चों के लिए वह सब सहती रही।
बच्चों को प्राप्त करने का प्रयास:
शुक्रवार को मन्नू भदौरिया अपने परिजनों के साथ जिला न्यायालय पहुंची। यहां उसने अधिवक्ता संघ के सहयोग से बच्चों की सुपुर्दगी लेने का प्रयास किया। समाचार लिखे जाने तक बच्चों के सुपुर्दगी के लिए आवेदन न्यायालय में प्रस्तुत नहीं हो पाया था।

चटपटी खबरें

दो सहेलियों ने की ख़ुशी से एक लड़के से शादी
पाकिस्तान डायरी. यह तो आप जानते होंगे कि पाकिस्तान में शराब पर पाबंदी ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने लगवाई। शुरू में यह पाबंदी इस क़दर ‘सख्त’ थी कि शराब की वो बोतल, जो 500 रुपए में मिलती थी, वो एक हज़ार में बिकती थी। उस ज़माने में कुछ लोगों ने सप्लाई का धंधा शुरू कर दिया।
उसमें वो रोज़ाना बहुत रुपए कमा लेते थे। वो अपनी स्कूटर में सब्ज़ी का थैला लटका कर उसके अंदर बोतल रखते थे और ऊपर से हरी-भरी सब्ज़ियां रखकर, अपने ग्राहक के घर तक बोतल पहुंचा देते थे। इस काम के बदले हर बोतल पर सौ-पचास रुपए टिप पाते और सब्ज़ी उनके घर में पकाई जाती थी। फिर शराब के परमिट क्रिश्चियनों और हिंदुओं को मिलने लगे और मुस्लिम उनसे वो परमिट महंगे दामों पर ख़रीदने लगे। आहिस्ता-आहिस्ता सख्तियां कम होती गईं।
अब सुना है कि कराची, लाहौर और इस्लामाबाद के अलावा कई बड़े होटलों के बाहर भी शराब मिलती है और कई बड़े रेस्टोरेंट ऐसे हैं, जहां आने वाले अपना ‘सामान’ साथ लाते हैं और रेस्टोरेंट वाले ख़ुशी-ख़ुशी उन्हें उनकी लाई हुई विलायती पिलाते हैं और भारी बख्शीश पाते हैं।
इन दिनों एक नया हंगामा मच गया है। हंगामा तो ख़ैर हमारे यहां हर रोज़ और हर बात पर होता है। इस मर्तबा इसकी वजह यह हुई कि हमारी सीनेट (जैसे आपकी राज्य सभा है) में टूरिÊम की एक स्टैंडिंग कमेटी है, जिसकी चेयरपर्सन नीलोफ़र ब़िख्तयार हैं।
वो जनरल मुशर्रफ़ के ज़माने में वज़ीर (मंत्री) थीं। इन दिनों वो यूरोप गईं और वहां उन्होंने पैराशूट जंपिंग के एक मुक़ाबले में पैराशूट से एक एक्सपर्ट के साथ जंप किया, तो वापसी पर उनकी वज़ारत (मंत्री पद) चली गई। पाकिस्तान में उनके विरोधी का कहना था कि उन्होंने एक ग़ैर-मर्द के साथ पैराशूट से कूद कर इस्लामी इमेज को तबाह किया है।
नीलोफ़र बख़्ितयार इस कंट्रोवर्सी की वजह से कई दिनों तक ख़बरों में रही थीं। कुछ मौलवियों का कहना था कि उनकी सीनेट की मेंबरशिप ख़त्म कर देनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ था। उनके हवाले से इस मर्तबा उठने वाला हंगामा बहुत बड़ा है।
इसकी वजह यह कि टूरिज्म की सीनेट स्टैंडिंग कमेटी में जब इस पर बात चल रही थी कि पाकिस्तान में टूरिज्म का हाल इतना ख़राब क्यों है और टूरिस्ट यहां का रुख़ क्यों नहीं करते। नीलोफ़र बख्तियार ने कमेटी की चेयरपर्सन के तौर पर यह कहा कि पाकिस्तान टूरिÊम डेवलपमेंट कॉपरेरेशन को नुक़सान से निकालने के लिए इस कॉपरेरेशन के तहत चलने वाले होटल्स में ग़ैर-मुल्की पर्यटकों को शराब उपलब्ध कराने की सुविधा होनी चाहिए।
इस ख़बर का छपना था कि अख़बारों में हंगामा मच गया। एक मौलवी साहब ने कहा कि नीलोफ़र ने पहले पैराशूट से एक ग़ैर-मर्द के साथ पैराशूट से कूद कर मुल्क की इज्जत ख़ाक में मिलाई थी और अब वो शराब से पाबंदी हटाने की मांग कर रही हैं।
नीलोफ़र अब अलग-अलग मौलवियों से बात करके यह कह रही हैं कि उनके बयान का ग़लत मतलब लिया गया है। बेचारी नीलोफ़र हमेशा इस क़िस्म के झगड़ों में फंस जाती हैं। बात यह है कि उन्होंने मुल्क से शराब की पाबंदी ख़त्म करने को नहीं कहा था।
उनका कहने का मतलब सिर्फ़ यह था कि जिस तरह फाइव स्टार होटलों को इजाज़त है कि वो ग़ैर-मुस्लिम और ग़ैर-मुल्की मेहमानों को शराब दे सकते हैं, इसी तरह पाकिस्तान टूरिÊम के मोटल्ज में ग़ैर-मुस्लिम पर्यटकों को शराब ख़रीदने की इजाज़त दी जाए।
अब नीलोफ़र की पार्टी से कहा जा रहा है कि वो उनकी सीनेट सीट फ़ौरन कैंसिल कर दें। मेरे ख्याल में उनकी सीनेट की सीट कैंसिल नहीं होगी और वो अपनी मुद्दत पूरी करेंगी। वो एक दिलचस्प ख़ातून हैं और अपने बयानात से पाकिस्तानी सियासत में फुलझड़ियां छोड़ती रहती हैं।
ऐसी ही दिलचस्प ख़बर मुल्तान से आई है। एक साहब हैं, जिनका नाम कसूर हैदरी है। वो मुल्तान और आस-पास के शहरों में थियेटर करते हैं। बैठे-बैठे उन्होंने अपने घर में ड्रामा कर दिया, जिसकी सारे मुल्क में चर्चा है। सुना है कि यह ख़बर हिंदुस्तान वालों को भी मिल गई है।
बात इतनी-सी है कि कसूर हैदरी ने एक रोज़ अपने इक़लौते बेटे अज़हर से कहा कि तुम्हें अपनी दो कज़िंस से शादी करनी है। पहले तो उसकी समझ में कुछ नहीं आया, लेकिन उसके बाप ने कहा कि मैं एक या दो दिन के फ़र्क़ से तुम्हारी दो शादियां करना चाहता हूं, एक तुम्हारे चाचा की बेटी से होगी और दूसरी तुम्हारी ख़ाला (मौसी) की बेटी से होगी।
इस तरह तुम्हारा ननिहाल भी ख़ुश रहेगा और ददिहाल भी। आप तो जानते हैं कि मुसलमानों में एक या दो नहीं चार शादियां की जा सकती हैं। लीजिए जनाब अज़हर साहब के तो मज़े आ गए। महंगाई के इस दौर में जहां उनके दोस्तों की एक शादी होना मुश्किल है, वहां अज़हर के अब्बा ने उनके लिए दो रिश्ते ढूंढ़ लिए।
अज़हर के अब्बा थियेटर के आदमी हैं। उन्होंने बहुत सोच-समझकर, अपने बेटे की इन दो शादियों की ख़बर अख़बार वालों को दे दी। अख़बार में इस ख़बर का छपना था कि तमाम पाकिस्तानी टीवी चैनल अपने-अपने कैमरे लिए अज़हर के घर की तरफ़ दौड़ पड़े। इसके बाद दोनों लड़कियों की क्या वीडियो फुटेज बनी। दोनों एक-दूसरे के हाथों में मेंहदी लगा रही हैं।
दोनों कैमरे के सामने यह कह रही हैं कि हम तो सहेलियां हैं और एक ही शख़्स से शादी करने के बाद सहेलियां रहेंगी। एक-दूसरे के साथ सौतनों वाला व्यवहार नहीं करेंगे। अलग-अलग सियासी पार्टी वालों ने भी दूल्हा और दुल्हनों को मुबारकबाद दी।
मुल्क भर से उनके लिए तोहफ़े आए। आप ख़ुद ही सोचें कि जब नौ बहनों ने इकलौते भाई की शादी के गीत गाए होंगे और उनके साथ मोहल्ले और शहर की दूसरी लड़कियां भी गा रही होंगी, तो क्या रौनक मेला होगा।

अल्ला जाने क्या होगा आगे.. आमीन!
अमजद पंजाब के एक छोटे क़स्बे में एक छोटा-सा ढाबा चलाता है। ढाबे के साथ ही एक छप्पर है, जिसके नीचे कुछ चारपाइयां पड़ी हुई हैं। क़स्बे में किसी काम से आने वालों की अगर आख़िरी बस छूट जाए या किसी वजह से उन्हें रात रुकना पड़े, तो वे चंद रुपए देकर इस छप्पर के नीचे बिछी चारपाइयों पर सो जाते हैं। उस रोज़ रात हो गई थी और छप्पर के नीचे कई लोग लेटे हुए थे। उनमें से एक श़ख्स के साथ उसके चार बच्चे भी थे, जो बेख़बर सो रहे थे, छप्पर के बराबर में ढाबे वाला अपना ढाबा बंद कर रहा था। उसे मालूम था कि इतनी रात को अब भला कौन कुछ खाने आएगा। यूं भी देग़चियों में दाल और सब्ज़ी बाक़ी नहीं बची हुई थी, तंदूर भी ठंडा हो गया था।
इतने में एक श़ख्स झूमता हुआ आ पहुंचा, वो शराब के नशे में धुत था। वो ढाबे में दाख़िल हुआ, तो अमजद ने उससे कहा कि ढाबा बंद हो चुका है। यह सुनते ही उसने जेब से पिस्तौल निकाली और अमजद से कहा कि अगर उसे फ़ौरन खाने के लिए कुछ नहीं दिया, तो गोली मार देगा। अमजद की तो जान पर बन आई थी। उसने बेटे को फ़ौरन घर दौड़ाया कि खाने के लिए घर में जो भी हो, ले आए। बेटा दौड़ता घर गया और एक प्लेट में दाल और चार रोटियां ले आया। खाना उस श़ख्स के सामने रख दिया गया। पहले तो उसने दाल को देखकर मुंह बनाया, लेकिन कुछ कहे बग़ैर रोटी का एक निवाला दाल से खाया और इसके साथ ही उसने चीख़-पुकार शुरू कर दी। उसका कहना था कि दाल ठंडी है और उसने ज़िंदगी में ठंडी दाल नहीं खाई। अमजद ने यह कहना चाहा कि वह चूल्हा जलाकर दाल गर्म कर देता है, लेकिन शराबी में इतनी बर्दाश्त नहीं थी कि वो अमजद की बात सुन लेता। उसने पिस्तौल से दनादन फायर शुरू कर दिए। वो लोग जो बराबर के छप्पर के नीचे लेटे हुए थे और सोने की अदाकारी कर रहे थे, फायरिंग शुरू होते ही डर कर भागे। गोलियों की आवाज़ सुनकर क़रीब से गुज़रती हुई एक पुलिस पार्टी वहां पहुंच गई। शराबी साहब के हाथों में हथकड़ियां डालते ही उसका नशा हिरन हो गया। मालूम हुआ कि क़रीब के इलाक़ों में दो क़त्ल करके फ़रार हुए हैं और इलाक़े की पुलिस कई महीनों से उन्हें तलाश रही थी। शायद उस व़क्त उसे यह बात समझ में आई हो कि अगर ख़ामोशी से ठंडी दाल खा लेता और शोर न मचाता, तो पुलिस के हाथ न लगता। अब इलाक़े का थानेदार मूंछों पर ताव देकर कह रहा है कि मैंने एक क़ातिल को पकड़ा।
इस फायरिंग से याद आया कि चंद दिनों पहले उर्दू के शायर हबीब जालिब के बेटों के दरमियान भी गोली चल गई। सुना है कि दोनों बेटों के बीच रुपए-पैसों का कुछ मसला चल रहा था। जालिब की शायरी ने उन्हें क्या हिंदुस्तान, क्या पाकिस्तान और क्या यूरोप, सबकी आंखों का तारा बना रखा था। वो जहां जाते थे, हाथोहाथ लिए जाते थे। पाकिस्तान के सभी मंत्रीगण उनके सामने सर झुकाते थे। वो चाहते, तो हर हुकूमत से प्लाट और परमिट लेते, लेकिन जालिब को न दौलत से मुहब्बत थी और न ही वो किसी राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री की तारीफ़ में छंद लिख सकते थे। इसीलिए जालिब ने सारी ज़िंदगी फ़क़ीरी में बसर की और उनके घर में दाल ही पकती रही। जालिब ऐसे शख़्स थे कि बड़े और दौलतमंद लोगों की तारीफ़ मुश्किल से करते थे, लेकिन फ़न के बड़े क़द्रदान थे। मैडम नूरजहां भी जालिब पर बहुत मेहरबान थीं। वो जब बीमार हुए, तो मैडम अक्सर उनकी ख़ैरियत पूछने के लिए जाया करती थीं और उनकी शायरी की बहुत बड़ी क़द्रदान थीं।
इस व़क्त मैडम नूरजहां के ज़िक्र पर एक और नूरजहां याद आ गईं, जो पंजाब की मशहूर रियासत भावलपुर के नवाब सादिक़ की बेटी थीं और मलका नूरजहां कहलाती थीं। नवाब सादिक़ ने अपनी मलका नूर को १८७५ में एक महल तोहफ़े में दिया, जो तीन बरसों में बनाया गया था और जिसे नूरमहल का नाम दिया गया था। नूरमहल की बुनियादों में सिक्के रखने के अलावा रियासत के ऩक्शे भी रखे गए थे। यह महल इटालियन और इस्लामी आर्किटेक्चर का शानदार नमूना है।
नवाब साहब जिस तख़्त पर बैठते थे, वह सोने का बना हुआ था, जबकि सामने रखी हुई कुर्सियां चांदी की थीं। महल में लगे रंग-बिरंगे शीशे इंग्लैंड से आए थे। दीवारों पर लगे आईने इटली से मंगवाए थे। नवाब सादिक़ ने मलका को अपनी मोहब्बत का सुबूत पेश करने के लिए हैंबर्ग (जर्मनी) से एक पियानो मंगवाकर तोहफ़े में दिया। वह पियानो आज भी महल में मौजूद है। पहले ज़माने में क़िलों और महलों में तहख़ाने भी बनाए जाते थे, जिनमें क़ैदियों को रखा जाता था, लेकिन इन तहख़ानों को गर्मी कम करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। इनमें नहर से पानी छोड़ने का इंतज़ाम किया गया था। तहख़ाने को छत की बजाय, तांबे के जाल से ढंका गया था। हवा एक दरवाज़े से आती और दूसरे से बाहर निकलती थी और ऊपर से खुला होने की वजह से ठंडक पूरे महल में फैल जाती थी।
बेशुमार दौलत और हज़ारों मज़दूरों की मेहनत के बाद नूरमहल जब बनकर तैयार हुआ, तो इस महल में नवाब सादिक़ की चहकती बेग़म नूर सिर्फ़ एक रात ठहरी थीं। हुआ यह जब अगली सुबह मलका महल के इर्द-गिर्द लगे हुए बाग़ात का नज़ारा करने के लिए छत पर गईं, तो महल के सामने के इलाक़े में फैले हुए क़ब्रिस्तान को देखकर, उनका मिज़ाज बिगड़ गया। उन्होंने इस बात को सख़्त नापसंद किया कि आख़िर यह महल क़ब्रिस्तान के क़रीब क्यों बनवाया गया है। इस बात पर उन्हें इतना ग़ुस्सा आया कि मलका ने वहां अगला घंटा भी गुज़ारना पसंद नहीं किया। नवाब साहब उनकी मिन्नतें करते रह गए, लेकिन मलका वहां से चली गईं और दोबारा कभी उस महल में नहीं आईं।

शनिवार, 11 दिसंबर 2010

विचार मंथन

साख का सवाल
साभार नवभारत टाइम्स
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्य सचिव नीरा यादव को नोएडा जमीन घोटाले में चार साल की कैद दिए जाने का फैसला ऐ
से समय में आया है जब देश में करप्शन का मामला गरमाया हुआ है। एक के बाद एक घोटाले उजागर हो रहे हैं और ऐसा लगने लगा है कि हमारा सिस्टम भ्रष्टाचार की गिरफ्त में पूरी तरह फंस चुका है और इससे मुक्ति का फिलहाल कोई रास्ता नहीं है। लेकिन नीरा यादव को सजा दिए जाने से उम्मीद बंधी है कि गड़बड़ी करने वाले समर्थ लोगों पर भी देर-सबेर कानून का शिकंजा कस सकता है। नौकरशाहों के खिलाफ कई मामले शुरू हुए लेकिन उनमें से ज्यादातर अंजाम तक पहुंचने के पहले ही भटक गए या भटका दिए गए।

दिक्कत यह है कि हमारे देश में भ्रष्टाचार का मामला सामने आते ही उसे लेकर शोर-शराबा राजनेताओं पर केंद्रित हो जाता है। और प्राय: सरकार या राजनीतिक पार्टियां नेताओं को पद छोड़ने जैसे प्रतीकात्मक दंड देकर लोगों का आक्रोश शांत कर देती हैं। इस तरह मामला ही दब जाता है और उसमें शामिल नौकरशाह भी निशाने पर आने से बच जाते हैं। यह आम धारणा बन गई है कि राजनीतिक नेतृत्व ने अपने हित के लिए ब्यूरोक्रेसी का इस्तेमाल किया और नौकरशाहों को भ्रष्ट बनाया है।

यह बात एक हद तक सही है। लेकिन इससे अफसरों का अपराध कम नहीं हो जाता। सचाई यह है कि जिस तरह पॉलिटिकल लीडरशिप ब्यूरोक्रेट्स का इस्तेमाल करती है, उसी तरह नौकरशाही भी अपने फायदे के लिए राजनीतिक संरक्षण हासिल करती है और अपने संरक्षकों को हर तरह की मदद पहुंचाती है। अगर नौकरशाहों ने एकजुट होकर करप्शन का विरोध किया होता तो शायद यह हालत नहीं होती। कुछ ईमानदार अफसर इसके लिए जरूर आगे आए पर वे अकेले पड़ गए। कॉमनवेल्थ गेम्स में गड़बड़ी का मामला हो या आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाला या फिर होम लोन स्कैम- सभी में अफसरों की संदेहास्पद भूमिका रही है।

अनेक अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षणों में भारतीय नौकरशाही को लेकर जो निष्कर्ष सामने आए हैं, वे कई सवाल खड़े करते हैं। हांगकांग की पॉलिटिकल एंड इकनॉमिक रिस्क कंसल्टेंसी ने पिछले साल एशिया की 12 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की नौकरशाही को लेकर किए एक सर्वे में भारतीय ब्यूरोक्रेट्स को सबसे निकम्मा बताया था। वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम ने 49 देशों के अफसरों के कामकाज के अपने एक सर्वेक्षण में भारतीय नौकरशाही को एकदम नीचे 44 वां स्थान दिया था। देश का एक प्रबुद्ध तबका मानता है कि भारतीय नौकरशाही अपने मकसद से भटक चुकी है लिहाजा इसका स्वरूप बदला जाना चाहिए।

इन्फोसिस के संस्थापक एन. आर. नारायणमूर्ति का तो कहना है कि आईएएस को समाप्त कर देना चाहिए। आज राजनीतिक नेतृत्व और नौकरशाही की साख पर सवालिया निशान लगा हुआ है जो भारतीय जनतंत्र के लिए शुभ लक्षण नहीं है। इन्हें दृढ़ इच्छाशक्ति दिखानी होगी और अपने भीतर के भ्रष्ट तत्वों को बेनकाब करना होगा, उन्हें सजा दिलानी होगी। सीबीआई और दूसरी जांच एजेंसियों को चाहिए कि वे करप्शन के सभी मामलों को तत्परता से निपटाएं।

रविवार, 5 दिसंबर 2010

बिग बॉस की नौटंकी

'मनोज का दर्द, मेरा श्वेता से कोई रिश्ता नहीं है'
भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार मनोज तिवारी हाल ही में रिएलिटी शो 'बिग बॉस 4' से बाहर हुए हैं। वह स्वीकार करते हैं कि अभिनेत्री श्वेता तिवारी के साथ सम्बंधों के चलते उनकी पत्नी उनकी निष्ठा पर संदेह करती हैं लेकिन वह स्पष्ट करते हैं वह श्वेता को केवल व्यवसायिक तौर पर जानते हैं।

मनोज ने कहा, "मेरे वैवाहिक जीवन में कुछ परेशानियां है। मेरी पत्नी हमेशा श्वेता के साथ मेरे सम्बंधों को लेकर संदेह में रहती हैं लेकिन 'बिग बॉस' में मुलाकात से पहले तक मैंने श्वेता को इस बारे में नहीं बताया था। मुझे उन्हें यह बताने की जरूरत महसूस नहीं हुई क्योंकि हम मुश्किल से ही कभी मिलते हैं। मैं हमेशा से उन्हें व्यवसायिक तौर पर ही जानता हूं।"
मनोज अभिनेता, गायक और निर्देशक भी हैं। वह पिछले कुछ महीनों से अपनी पत्नी व बेटी से अलग रह रहे हैं। वह कहते हैं कि यदि उनके व श्वेता के बीच किसी भी तरह का प्रेम सम्बंध होता तो वह 'बिग बॉस' जैसे शो में छुपा हुआ नहीं रह सकता था।
उन्होंने कहा, "'बिग बॉस' के घर में हम 24 घंटे कैमरे के सामने रहते थे. और हमेशा अपनी भावनाओं को छुपाए रखना सम्भव नहीं हो सकता। इसलिए यदि हमारे बीच कुछ होता तो वह शो में कभी न कभी सामने आता। श्वेता और मेरे बीच न पहले ही कुछ था और न अब है।" मनोज ने 'ससुरा बड़ा पैसे वाला' और 'दारोगा बाबू आई लव यू' जैसी फिल्मों में अभिनय किया है।
श्वेता को 'कसौटी जिंदगी की' धारावाहिक में अभिनय के बाद ख्याति मिली थी। वह अपने पति राजा चौधरी से अलग हो गई हैं और अब बेटी पलक के साथ रहती हैं।
मनोज इस बात को अब भी पचा नहीं पा रहे हैं कि 'बिग बॉस' से बाहर जाने के लिए वह और अश्मित पटेल साथ में नामांकित हुए और अश्मित को उनसे ज्यादा वोट मिले।
उन्होंने कहा, "मुझे आश्चर्य हुआ कि अश्मित को मुझसे ज्यादा वोट मिले। मैं अब भी इस पर विश्वास नहीं कर सकता लेकिन मुझे लगता है कि अश्मित-वीना मलिक की कहानी के चलते चैनल ने उन्हें अंदर रखने का निर्णय लिया है।"


अफ़सोस है मनोज तिवारी को
भोजपुरी स्टार मनोज तिवारी लगता है अभी तक बिग बॉस के घर से बाहर जाने का गम भूले नहीं भूल रहा है|उन्हें इतनी जल्दी शो से बाहर जाने की उम्मीद बिलकुल नहीं थी|मगर उनका अति आत्मविश्वास उन्हें ले डूबा और अश्मित पटेल के मुकाबले मनोज हार गए और उन्हें शो से बाहर जाना पड़ा|

मनोज इस बात को अब भी पचा नहीं पा रहे हैं कि 'बिग बॉस' से बाहर जाने के लिए वह और अश्मित पटेल साथ में नामांकित हुए और अश्मित को उनसे ज्यादा वोट मिले।अब मनोज बिग बॉस के वोटिंग सिस्टम पर ही सवाल उठाने लगे|
उन्होंने कहा, "मुझे आश्चर्य हुआ कि अश्मित को मुझसे ज्यादा वोट मिले। मैं अब भी इस पर विश्वास नहीं कर सकता लेकिन मुझे लगता है कि अश्मित-वीना मलिक की कहानी के चलते चैनल ने उन्हें अंदर रखने का निर्णय लिया है।"उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि उन्हें इस शो में जाने का हमेशा अफ़सोस रहेगा|


कहीं अपने जाल में खुद ही न फंस जाएं मनोज
भोजपुरी स्टार मनोज तिवारी भले ही बिग बॉस के घर में हुए नॉमिनेशंस में भारी पड़ गए हों मगर अश्मित के प्रवक्ता डेल भाग्वावर का मानना है कि पिछले दो महीनों में मनोज के फैन्स की संख्या काफी कम हो गयी हैं वहीँ अश्मिटी के फैन्स की संख्या काफी बढ़ चुकी है|
डेल इससे पहले शिल्पा शेट्टी की पब्लिसिटी का भी काम देख चुके हैं जो बिग बॉस के मूल वर्जन बिग ब्रदर का हिस्सा रही थीं और शो के दौरान उनपर काफी नस्लीय कमेन्ट हुए थे|डेल ने कहा कि मनोज शो में काफी समय से अश्मित के पीठ पीछे बुराई कर रहे हैं और उनके खिलाफ षड़यंत्र रचते रहते हैं|
अश्मित के खिलाफ उनकी चालें तब और साफ़ हो गयी जब उन्होंने एमएमएस स्केंडल को लेकर अश्मित पर एक बार फिर कमेन्ट करना चाहा|मनोज को अब दर्शक अच्छी तरह से समझ चुके हैं इसलिए वह अब अश्मित का ज्यादा साथ दे रहे हैं|ऐसे में मनोज कि चालें कहीं उलटी न पड़ जाएं और अश्मित के बजाए कहीं खुद ही उन्हें बिग बॉस से बाहर न जाना पड़े |


वीना के लिए अश्मित ने सारा को पीटा!
अश्मित की शख्सियत का पता लगाना बड़ा ही मुश्किल है। उसके मन में क्या चल रहा है और वो आगे क्या करेगा कोई नहीं जान सकता। ठीक ऐसा ही कुछ हुआ सोमवार की रात 'बिग बॉस' के घर में जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था।
दरअसल रात में अश्मित ने वीना मलिक को नॉमिनेट करने के लिए सारा खान को बुरी तरह पीटा जबकि अगर देखा जाए तो घर में अश्मित सबसे करीबी सारा खान के ही माने जाते रहे हैं। पटेल का कहना था कि सारा ने वीना के खिलाफ वोट करके अच्छा नहीं किया क्योंकि वीना हमेशा उसे अपनी छोटी बहन की तरह मानती थी और हमेशा उसकी पक्ष लेकर खड़ी होती थी।
वीना को भी जब यह बात पता चली कि सारा ने उसके खिलाफ वोट किया है तो उसको काफी बुरा लगा। सारा और अश्मित के रिश्ते शो के शुरूआती दिनों से अजीबो-गरीब नजर आए हैं। शुरूआत में तो वो प्रेमी युगल की तरह रहते नजर आते थे। सारा ने भी उसके लिए प्यार का इजहार किया था लेकिन बाद में सारा के पति अली के बिग बॉस में आते ही सबकुछ बदल गया। सारा ने अश्मित को अपना भाई मान लिया तो वहीं पटेल ने भी उसे अपनी छोटी बहन कबूल कर लिया।
अब वीना दुविधा में हैं और अश्मित और ऋशांत में किसी एक को चुन नहीं पा रही हैं। इस बीच हफ्ते के नामांकन प्रक्रिया में घर के लोगों ने अश्मित पटेल और मनोज तिवारी का नाम चुना है।

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

ख़ास खबर

दाँतों के लिए मारे जा रहे हैं हाथी
(अरुण बंछोर)
पिछले दो महीनों में छत्तीसगढ़ के उत्तरी इलाके में दो हाथियों को करंट लगाकर मारा जा चुका है। एक मामले में तो जंगल विभाग के अधिकारियों ने हाथी के शिकार का मामला दर्ज किया है लेकिन दूसरे मामले में उनका कहना है कि वह शिकार का मामला नहीं है और दुर्घटनावश वह हाथी मारा गया।

लेकिन वन्य संरक्षण में लगे कार्यकर्ताओं का कहना है कि दोनों ही मामले हाथी के शिकार के हैं और दोनों ही हाथियों को उनके दाँतों के लिए मारा गया। ये और बात है कि दोनों ही मामलों में शिकारी दाँत निकालने में सफल नहीं हो सके और इससे पहले ही अधिकारियों को इसका पता चल गया।
उल्लेखनीय है कि हाथी के दाँतों की अंतरराष्ट्रीय बाजार में बहुत कीमत मिलती है। जानकार लोगों का कहना है कि भारत में ही दो दाँतों की कीमत दो से तीन लाख तक मिल जाती है।
करंट : ताजा मामला छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से कोई ढाई सौ किलोमीटर दूर स्थित जंगलों का है। यह इलाक़ा कोरबा से कोई पचास किलोमीटर दूर है।
वाइल्ड लाइफ एसओएस की कार्यकर्ता मीतू गुप्ता के अनुसार इस हाथी को करंट लगाकर 29 नवंबर की रात मारा गया था, लेकिन इसका पता 30 नवंबर को लगा। पहली दिसंबर को हुए पोस्टमॉर्टम के अनुसार इस हाथी की मौत करंट लगने से हुई और इस जख्म की वजह करंट लगना ही है।
मीतू गुप्ता का कहना है कि जहाँ हाथी मरा हुआ पाया गया है वहाँ मिले एल्यूमिनियम के तार के टुकड़ों और हाथी के शरीर में लगी चोटों से स्पष्ट है कि उसे मारने के लिए ही शिकारियों ने जाल बिछाया था।
इस इलाके के असिस्टेंट कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट (एसीएफ) प्रभात मिश्रा ने बीबीसी से हुई बातचीत में स्वीकार किया कि यह करंट से हाथी मारने का है और 30 नवंबर को यह मामला दर्ज कर लिया गया है।
उन्होंने कहा, 'अभी अंतिम निर्णय पर हम नहीं पहुँचे हैं, लेकिन आरंभिक तौर पर यह करंट लगाकर हाथी को मारने का मामला है और इसमें शिकार का मामला होने से इनकार नहीं किया जा सकता।'
इससे पहले अक्टूबर के पहले सप्ताह में उत्तरी छत्तीसगढ़ के ही धरमजयगढ़ में एक हाथी मरा हुआ पाया गया था। यह हाथी भी दंतैल हाथी था।
उस इलाके के डीएफओ मसीह ने बीबीसी को बताया कि एक हाथी करंट लगने से मारा गया था लेकिन उन्होंने इसे शिकार का मामला मानने से इनकार किया।
उनका कहना था, 'किसानों ने खेत में सूअर आदि से बचने के लिए करंट लगाया होगा और उसमें हाथी दुर्घटनावश मारा गया। उसे सीधे-सीधे शिकार का मामला नहीं कहा जा सकता।'
लेकिन मीतू गुप्ता ने का कहना है कि वह भी शिकार का मामला था क्योंकि उस हाथी के दाँत निकालने के लिए टंगिए से वार किए गए थे जो बाद में स्पष्ट दिखाई दे रहे थे।
समस्या : छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ बरसों में हाथियों की समस्या बढ़ी है। इसकी वजह वही है जो पूरे देश की है। जंगलों की कटाई और जंगल के इलाकों में खदानों का कार्य होना। इससे हाथियों के प्राकृतिक वास में बाधा आई है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने हाथियों के संरक्षण के लिए एक कॉरिडोर के निर्माण का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा था और केंद्र सरकार ने इसे मंजूरी भी दे दी थी। लेकिन उसी इलाक़ों में कोयले के भंडार मिलने के बाद राज्य की रमन सिंह सरकार ने उस इलाक़े को हाथियों का कॉरिडोर अधिसूचित नहीं कर रही है।
पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार को कोयला तो लाभ का मामला दिखता है लेकिन हाथी नहीं। दूसरी ओर हाथियों की बढ़ती संख्या की वजह से किसानों को होने वाला फसलों का नुकसान बढा़ है और उनके बीच टकराव भी बढ़ा है।
लेकिन ताजा मामले फसल के नुकसान के नहीं हैं क्योंकि जिस समय इन हाथियों को मारा गया है उस समय खेतों में फसल नहीं थी।

बुधवार, 1 दिसंबर 2010

भोपाल गैस त्रासदी पर विशेष

भोपाल गैस त्रासदी के 26 बरस!

यूनियन कार्बाइड कारखाने से 2 दिसंबर 1984 की रात जहरीली मिथाइल आइसोनेट गैस के रिसाव की दुर्घटना के बाद भोपाल की हवाएं जैसे थम-सी गईं, जीवन भी जैसे थम-सा गया और जिसने जीने के लिए सांस ली वह मौत के मुंह में समा गया। इस दुर्घटना में तत्काल 3,500 लोगों की मौत हुई थी। दुर्घटना के प्रभाव से हजारों लोग बीमार और विकलांग हुए। स्वयंसेवी संगठनों के अनुसार दुर्घटना के 72 घंटों के भीतर 10,000 लोगों की मौत हुई और अब तक 25,000 लोगों की मौत हो चुकी है। जो लोग जिंदा बचे उनके बच्चे शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग पैदा हुए।

एक जवानी, जो बूढ़ी हो गई!
यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड की स्थापना वर्ष 1969 में हुई थी। इसकी 50.9 प्रतिशत हिस्सेदारी यूनियन कार्बाइड के पास और 49.1 प्रतिशत हिस्सेदारी भारतीय निवेशकों के पास थी। इसमें सार्वजनिक क्षेत्र के वित्तीय संस्थान भी शामिल थे। जिस रात गैस रिसाव हुआ तबसे आज तक उसका मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमेरिकी नागरिक वॉरेन एंडरसन को गिरफ्तार नहीं किया जा सका है। पीड़ितों को आज तक उचित न्याय नहीं मिला है। 25 बरस बीत गए, एक जवान पीढ़ी बूढ़ी हो गई, बूढ़ी पीढ़ी खत्म हो गई, लेकिन इंसाफ किसी को नहीं मिला!
01 2009

हमारा क्या कसूर था?

ये वे बच्चे हैं, जिनके मां-बाप आज से पच्चीस बरस पहले बच्चे हुआ करते थे। जहरीली गैस कुछ इस तरह से उनके खून में घुल गई कि न जाने कितनी पीढ़ियां इस तरह मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर पैदा होंगी? लेकिन जीवन मिला है तो उसका जतन तो करना ही होगा, कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं ऐसे बच्चों को फीजियोथेरैपी करवाती हैं, ताकि कुछ तो राहत मिले इस मुश्किल सफर में। अस्पतालों में 6000 हजार लोग प्रतिदिन पहुंचते हैं। मुआवजे के नाम पर कुछ ज्यादा नहीं मिला है। इतना ही नहीं गैस पीड़ित कई तरह की गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं।

पथरा गई हैं आंखें, सुख के इंतजार में!
भोपाल गैस त्रासदी के 26 साल बाद भी यूनियन कार्बाइड संयंत्र परिसर में जमा रासायनिक पदार्थों ने भोपाल की जमीन और भू-जल को प्रदूषित कर रखा है। नई दिल्ली के अनुसंधान और आंदोलन संगठन एवं सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि संयंत्र से तीन किलोमीटर दूर तक के भू-जल में भारतीय मानक से 40 गुना अधिक तक कीटनाशक हैं। ये कीटनाशक लोगों के शरीर में धीमा जहर घोलने का काम कर रहे हैं। और लोग जोड़ों के दर्द, सांस लेने में परेशानी और अन्य समस्याओं से दो-चार हैं। पच्चीस बरस से इलाज का यह सिलसिला चल रहा है और राहत का कहीं नाम नहीं।

यह कैसा बचपन!

अपने बच्चों को स्वस्थ व खुश रखने के लिए माता-पिता क्या नहीं करते! लेकिन गैस त्रासदी ने सात साल के इस बच्चे के पैरों में खेलने की तो क्या चलने की शक्ति तक नहीं छोड़ी है। सरकार और यूनियन कार्बाइड के बीच हुए समझौते में पीड़ितों के लिए 47 करोड़ अमेरिकी डॉलर दिए गए। यह समझौता एक लाख पांच हजार पीड़ितों और मृतकों की संख्या तीन हजार मानकर किया गया था, जबकि हकीकत में पीड़ितों की संख्या पांच लाख 70 हजार और मृतकों की संख्या 25 हजार थी।
01 2009

रंगों में उतर आया है दर्द!

यूनियन कार्बाइड संयंत्र के बाहर म्युरल बनाकर अपने दर्द को बयान करती एक कलाकार। भोपाल गैस त्रासदी के 25 साल होने पर दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में तीन दिवसीय फिल्म महोत्सव का आयोजन किया गया। इस अवसर पर फोटो और कला प्रदर्शनियों के अलावा एक रैली का भी आयोजन किया गया। पीड़ितों की सहायता के लिए काम करनेवाले संगठनों ने लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार और राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी को इस आशय से संबंधित एक पत्र लिखा है कि दोनों सदनों में पीड़ितों को श्रद्धांजलि दी जाए।

हक की लड़ाई तो लड़नी ही होगी!
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यूनियन कार्बाइड संयंत्र के बाहर खड़ी महिलाएं गुहार कर रही हैं कि 25 बरस हो जाने के बावजूद सरकार ने उन्हें अब तक उचित मुआवजा नहीं दिया है। मुआवजा लेने के लिए और गुनाहगारों को सजा दिलवाने के लिए विभिन्न संगठन अपनी तरह से संघर्ष कर रहे हैं। भोपाल के शाहजहां पार्क में हर शनिवार को पीड़ित मिलते हैं और लड़ाई जारी रखने का संकल्प लेते हैं। ऐसे और भी कई आंदोलन लगातार चल रहे हैं, लेकिन सरकारों के कान पर जूं तक नहीं रेंगती।


अब तक कम नहीं हुए जख्म
विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी भोपाल गैसकांड को हुए 26 बरस हो गए हैं। आधी रात हुए इस हादसे में 15 हजार लोगों की मौत हो गई, जबकि 5 लाख से ज्यादा लोगों का जीवन दूभर कर दिया है। हालात यह हैं कि अब तक गैस के दुष्प्रभाव का सटीक आकलन तक नहीं किया जा सका है। 20 पीड़ित बस्तियाँ जहरीला पानी पीने को मजबूर हैं और कई लोग इलाज के लिए भटक रहे हैं। 2 और 3 दिसम्बर 1984 की मध्य रात्रि में यूनियन कार्बाइड के टैंक नंबर 610 में से हुआ गैस का रिसाव आज भी भोपालियों को साल रहा है।
हर जख्म समय के साथ भर जाते है, लेकिन गैसकांड की हर बरसी पर भोपाल के जख्म ताजा हो जाते हैं। हजारों लोगों के लिए इलाज और राहत की उम्मीद एक साल पुरानी हो जाती है। आँकड़ों की मानें तो इस हादसे में कुल 5 लाख 74 हजार लोग घायल हुए। मुआवजे को आधार बनाए तो कुल 15 हजार 274 लोगों की जान गई, जबकि मृतकों का सरकारी आंकडा 3000 से अधिक है।
गैर सरकारी संगठनों के अनुसार गैस ने 30 हजार लोगों की जान ली है। मुआवजे के लिए कुल 10 लाख 29 हजार 515 प्रकरण मिले, जिनमें से 5 लाख 75 हजार लोगों को 1536 करोड़ का मुआवजा दिया गया।
25 साल बाद अब हालात यह हैं कि मामले के मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन की गिरफ्तारी नहीं हो पाई है। दूसरी तरफ गैस पीड़ित नित नई बीमारियों के शिकार हो रहे है। गाँधी मेडिकल कॉलेज ने इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च को एक दर्जन से ज्यादा शोध प्रस्ताव भेजे हैं, लेकिन एक पर भी अनुमति नहीं मिली है।
अब तक तो गैस के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर घातक असर का पूरा आकलन भी नहीं हो पाया है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद और तय समय सीमा पूरी हो जाने के 5 साल बाद भी गैस पीड़ित बस्तियों में शुद्ध पेयजल पाइप लाइन से नहीं पहुँचाया जा सका है।

विचार

जगन की चुनौती
नवभारत टाइम्स
कांग्रेस कह रही है कि आंध्र प्रदेश में जगन रेड्डी के इस्तीफे से वहां उसकी सरकार की सेहत पर कोई असर नही
ं पड़ेगा, लेकिन पहले से कई मुश्किलों में घिरी कांग्रेस के लिए वहां की स्थितियों को संभाल पाना बहुत आसान भी नहीं होगा। करीब 15 महीने पहले अपने पिता की विमान दुर्घटना के बाद से ही जगन आंध्र प्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने की महत्वाकांक्षा पाले हुए थे। लेकिन राजनीति में अनुभवहीन जगन को इतना बड़ा पद सौंपने में कांग्रेस को दुविधा महसूस हुई। उनकी जगह रोसैय्या को मुख्यमंत्री बना तो दिया गया पर कांग्रेस नेतृत्व जगन की मंशा पर लगाम लगाने में असफल रहा।
वह इतने दिनों तक उनकी पार्टी विरोधी गतिविधियां भी सहन करता रहा। हाल में जगमोहन ने अपने टीवी चैनल के जरिए भी मनमोहन सिंह, राहुल गांधी और सोनिया के खिलाफ मोर्चा खोला था। पर उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की जगह रोसैय्या से यह कहते हुए इस्तीफा ले लिया गया कि वह जगन की हरकतों पर लगाम नहीं लगा पाए। पार्टी ने रोसैय्या की जगह स्पीकर किरण रेड्डी को मुख्यमंत्री बनाया और जगन के चाचा वाई. एस. विवेकानंद रेड्डी को भी कोई शीर्ष पद या मंत्रालय देने की पेशकश कर दी।
इससे जगमोहन ने और आहत महसूस किया और आरोप लगाया कि इस तरह कांग्रेस उनके परिवार में फूट डालने की कोशिश कर रही है। राजनीति में जगन अनुभवहीन हैं, पर अपने पिता के कार्यों की वजह से राज्य में उन्हें कुछ सहानुभूति जरूर हासिल है। उनका दावा है कि 20-25 विधायक उनके साथ हैं। विधानसभा की 294 सीटों में से कांग्रेस के पास अभी 155 सीटें हैं, जबकि बहुमत के लिए 148 सीटें चाहिए। ऐसे में यदि 10 विधायक भी जगन के साथ चले जाते हैं, तो इससे प्रदेश सरकार अस्थिर हो सकती है।
जगन ने यूथ श्रमिक रैयत (वाईएसआर)-कांग्रेस के नाम से जल्द ही एक नई पार्टी बनाने की घोषणा भी की है। इस तरह आंध्र और देश की राजनीति में जगन कोई मुकाम भले ना बना पाएं, लेकिन इस तरह तात्कालिक रूप से वे कुछ हलचल अवश्य पैदा कर सकते हैं। कांग्रेस के लिए इस चुनौती से निपटना आसान नहीं है क्योंकि उसके लिए अकेले आंध्र प्रदेश ही समस्या नहीं है, दिल्ली और महाराष्ट्र में भी उसकी हालत ठीक नहीं है। वहां उसकी सरकारें करप्शन के आरोपों से जूझ रही हैं। बिहार में हाल के चुनावों में उसका जो हाल हुआ है, उससे भी पार्टी की छवि कमजोर हुई है। अगर कांग्रेस आंध्र प्रदेश के हालात संभालने में विफल रही, तो दक्षिण भारत में उसके अस्तित्व के लिए संकट पैदा हो सकता है, क्योंकि दक्षिण में आंध्र अकेला राज्य है जहां उसकी सरकार है।

कानून काफी नहीं
महिलाओं पर तेजाब फेंकने वालों के खिलाफ सरकार सख्त कदम उठाना चाहती है। केंद्रीय गृह मंत्रालय की एक उच्च
स्तरीय समिति ने इसके लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में संशोधन का प्रस्ताव रखा है। समिति ने एसिड अटैक करने वालों के लिए दस साल की कैद और दस लाख रुपये जुर्माने की सिफारिश की है। कहना मुश्किल है कि यह प्रस्ताव कब संसद में लाया जाएगा और कब इस पर कानून बन पाएगा। एसिड अटैक को लेकर सख्त कानून लाने की मांग अरसे से की जा रही है, मगर सरकार अन्य दूसरे मामलों की तरह इसे भी अपनी ही गति से निपटा रही है। ठीक है कि कानून बनाने की अपनी निश्चित प्रक्रिया होती है, मगर सरकार इस समस्या से अपने स्तर पर भी कड़ाई से निपट सकती है।
दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो पा रहा है। अपराध के तरीके नए हो रहे हैं, उन्हें रोकने वाला कानून बाबा आदम के जमाने का ही बना हुआ है। किसी लड़की के चेहरे को तेजाब से विकृत करना उसकी हत्या से भी ज्यादा खतरनाक है। तेजाब फेंकने के पीछे आम तौर पर बदला लेने की मानसिकता काम कर रही होती है। मनोवैज्ञानिक इसे सैडिज्म कहते हैं। सख्त कानून बना देने से आपराधिक प्रवृत्ति वाले लोगों में खौफ पैदा तो होगा, लेकिन प्रश्न यह है कि ऐसी हरकत करने की हिम्मत अभी भी लोग कैसे रहे हैं, जबकि वर्तमान में तेजाब फेंकने वालों के खिलाफ प्राय: हत्या की कोशिश का मामला बनता है, जिसमें कड़ी सजा का प्रावधान है। दरअसल मूल समस्या कानून की कमी नहीं है। हमारा वह तंत्र ही घोर लापरवाह और गैर जिम्मेदार है, जिस पर कानूनों को अमल में लाने की जवाबदेही है।
इस बात की क्या गारंटी है कि कानून को सख्त बना देने से एसिड अटैक के मामले रुक जाएंगे? कानून बनाने के साथ यह जरूरी है कि तमाम एजेंसियों को मुस्तैद बनाया जाए। महिला आयोग और कई सामाजिक संगठन यह मांग करते रहे हैं कि तेजाब फेंकने के मामले में कठोर सजा देने के प्रावधान के साथ पीडि़ता की आर्थिक मदद की व्यवस्था भी होनी चाहिए। गृह मंत्रालय की हाई लेवल कमिटी ने अभियुक्त से वसूली गई जुर्माने की राशि पीडि़ता को देने की बात कही है। यह पर्याप्त नहीं है। पीडि़ता की मदद के लिए विशेष नीति बनाई जानी चाहिए। एसिड अटैक सभ्य समाज पर कलंक है। इसे दूर करने के लिए स्वस्थ मानसिकता के प्रसार की जरूरत है। इसके लिए समाज को आगे आना होगा।