बुधवार, 1 दिसंबर 2010

विचार

जगन की चुनौती
नवभारत टाइम्स
कांग्रेस कह रही है कि आंध्र प्रदेश में जगन रेड्डी के इस्तीफे से वहां उसकी सरकार की सेहत पर कोई असर नही
ं पड़ेगा, लेकिन पहले से कई मुश्किलों में घिरी कांग्रेस के लिए वहां की स्थितियों को संभाल पाना बहुत आसान भी नहीं होगा। करीब 15 महीने पहले अपने पिता की विमान दुर्घटना के बाद से ही जगन आंध्र प्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने की महत्वाकांक्षा पाले हुए थे। लेकिन राजनीति में अनुभवहीन जगन को इतना बड़ा पद सौंपने में कांग्रेस को दुविधा महसूस हुई। उनकी जगह रोसैय्या को मुख्यमंत्री बना तो दिया गया पर कांग्रेस नेतृत्व जगन की मंशा पर लगाम लगाने में असफल रहा।
वह इतने दिनों तक उनकी पार्टी विरोधी गतिविधियां भी सहन करता रहा। हाल में जगमोहन ने अपने टीवी चैनल के जरिए भी मनमोहन सिंह, राहुल गांधी और सोनिया के खिलाफ मोर्चा खोला था। पर उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की जगह रोसैय्या से यह कहते हुए इस्तीफा ले लिया गया कि वह जगन की हरकतों पर लगाम नहीं लगा पाए। पार्टी ने रोसैय्या की जगह स्पीकर किरण रेड्डी को मुख्यमंत्री बनाया और जगन के चाचा वाई. एस. विवेकानंद रेड्डी को भी कोई शीर्ष पद या मंत्रालय देने की पेशकश कर दी।
इससे जगमोहन ने और आहत महसूस किया और आरोप लगाया कि इस तरह कांग्रेस उनके परिवार में फूट डालने की कोशिश कर रही है। राजनीति में जगन अनुभवहीन हैं, पर अपने पिता के कार्यों की वजह से राज्य में उन्हें कुछ सहानुभूति जरूर हासिल है। उनका दावा है कि 20-25 विधायक उनके साथ हैं। विधानसभा की 294 सीटों में से कांग्रेस के पास अभी 155 सीटें हैं, जबकि बहुमत के लिए 148 सीटें चाहिए। ऐसे में यदि 10 विधायक भी जगन के साथ चले जाते हैं, तो इससे प्रदेश सरकार अस्थिर हो सकती है।
जगन ने यूथ श्रमिक रैयत (वाईएसआर)-कांग्रेस के नाम से जल्द ही एक नई पार्टी बनाने की घोषणा भी की है। इस तरह आंध्र और देश की राजनीति में जगन कोई मुकाम भले ना बना पाएं, लेकिन इस तरह तात्कालिक रूप से वे कुछ हलचल अवश्य पैदा कर सकते हैं। कांग्रेस के लिए इस चुनौती से निपटना आसान नहीं है क्योंकि उसके लिए अकेले आंध्र प्रदेश ही समस्या नहीं है, दिल्ली और महाराष्ट्र में भी उसकी हालत ठीक नहीं है। वहां उसकी सरकारें करप्शन के आरोपों से जूझ रही हैं। बिहार में हाल के चुनावों में उसका जो हाल हुआ है, उससे भी पार्टी की छवि कमजोर हुई है। अगर कांग्रेस आंध्र प्रदेश के हालात संभालने में विफल रही, तो दक्षिण भारत में उसके अस्तित्व के लिए संकट पैदा हो सकता है, क्योंकि दक्षिण में आंध्र अकेला राज्य है जहां उसकी सरकार है।

कानून काफी नहीं
महिलाओं पर तेजाब फेंकने वालों के खिलाफ सरकार सख्त कदम उठाना चाहती है। केंद्रीय गृह मंत्रालय की एक उच्च
स्तरीय समिति ने इसके लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में संशोधन का प्रस्ताव रखा है। समिति ने एसिड अटैक करने वालों के लिए दस साल की कैद और दस लाख रुपये जुर्माने की सिफारिश की है। कहना मुश्किल है कि यह प्रस्ताव कब संसद में लाया जाएगा और कब इस पर कानून बन पाएगा। एसिड अटैक को लेकर सख्त कानून लाने की मांग अरसे से की जा रही है, मगर सरकार अन्य दूसरे मामलों की तरह इसे भी अपनी ही गति से निपटा रही है। ठीक है कि कानून बनाने की अपनी निश्चित प्रक्रिया होती है, मगर सरकार इस समस्या से अपने स्तर पर भी कड़ाई से निपट सकती है।
दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो पा रहा है। अपराध के तरीके नए हो रहे हैं, उन्हें रोकने वाला कानून बाबा आदम के जमाने का ही बना हुआ है। किसी लड़की के चेहरे को तेजाब से विकृत करना उसकी हत्या से भी ज्यादा खतरनाक है। तेजाब फेंकने के पीछे आम तौर पर बदला लेने की मानसिकता काम कर रही होती है। मनोवैज्ञानिक इसे सैडिज्म कहते हैं। सख्त कानून बना देने से आपराधिक प्रवृत्ति वाले लोगों में खौफ पैदा तो होगा, लेकिन प्रश्न यह है कि ऐसी हरकत करने की हिम्मत अभी भी लोग कैसे रहे हैं, जबकि वर्तमान में तेजाब फेंकने वालों के खिलाफ प्राय: हत्या की कोशिश का मामला बनता है, जिसमें कड़ी सजा का प्रावधान है। दरअसल मूल समस्या कानून की कमी नहीं है। हमारा वह तंत्र ही घोर लापरवाह और गैर जिम्मेदार है, जिस पर कानूनों को अमल में लाने की जवाबदेही है।
इस बात की क्या गारंटी है कि कानून को सख्त बना देने से एसिड अटैक के मामले रुक जाएंगे? कानून बनाने के साथ यह जरूरी है कि तमाम एजेंसियों को मुस्तैद बनाया जाए। महिला आयोग और कई सामाजिक संगठन यह मांग करते रहे हैं कि तेजाब फेंकने के मामले में कठोर सजा देने के प्रावधान के साथ पीडि़ता की आर्थिक मदद की व्यवस्था भी होनी चाहिए। गृह मंत्रालय की हाई लेवल कमिटी ने अभियुक्त से वसूली गई जुर्माने की राशि पीडि़ता को देने की बात कही है। यह पर्याप्त नहीं है। पीडि़ता की मदद के लिए विशेष नीति बनाई जानी चाहिए। एसिड अटैक सभ्य समाज पर कलंक है। इसे दूर करने के लिए स्वस्थ मानसिकता के प्रसार की जरूरत है। इसके लिए समाज को आगे आना होगा।

कोई टिप्पणी नहीं: