मे दैनिक राष्ट्रीय हिंदी मेल का सम्पादक हूँ.खुल्लम खुल्ला मेरी अभिव्यक्ति है .अपना विचार खुलेआम दुनिया के सामने व्यक्त करने का यह सशक्त माध्यम है.अरुण बंछोर-मोबाइल -9074275249 ,7974299792 सबको प्यार देने की आदत है हमें, अपनी अलग पहचान बनाने की आदत है हमे, कितना भी गहरा जख्म दे कोई, उतना ही ज्यादा मुस्कराने की आदत है हमें...
सोमवार, 7 जुलाई 2014
एकदम सही फैसला
शरीयत अदालतों को कानूनी दर्जा नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने आज अपने अहम फैसले में कहा कि फतवों को कानूनी मान्यता नहीं है और किसी दारुल कज़ा को तब तक किसी व्यक्ति के अधिकारों के बारे में फैसला नहीं करना चाहिए जब तक वह खुद इसके लिए संपर्क नहीं करता है। देश की सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा कि शरीयत अदालतों को कानूनी दर्जा नहीं है।
कोर्ट ने निर्दोष लोगों के खिलाफ शरीयत अदालतों द्वारा फैसला दिए जाने पर आपत्ति जताते हुए कहा कि कोई भी धर्म निर्दोष लोगों प्रताड़ित करने की इजाजत नहीं देता है। जज ने इमराना केस का हवाला देते हुए कहा कि फतवा किसी शख्स के व्यक्तिगत अधिकारों को अपूरणीय क्षति पहुंचा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिल्ली के वकील विश्व लोचन मदन की याचिका पर दिया है। विश्व लोचन ने अपनी याचिका में दारुल कज़ा और दारुल इफ्ता जैसे संस्थानों द्वारा समानांतर अदालतें चलाए जाने को चुनौती दी थी। उन्होंने अपनी याचिका में कहा था, 'ये अदालतें समानांतर कोर्ट के तौर पर काम करती हैं और मुस्लिमों की धार्मिक व सामाजिक आजादी निर्धारित करती हैं, जो कि गैर-कानूनी है।'
फरवरी में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को सुरक्षित रखते हुए कहा था कि यह लोगों की आस्था का मामला है। इसी वजह से अदालत इसमें दखल नहीं दे सकती। तत्कालीन यूपीए सरकार ने कोर्ट से कहा था कि वह मुस्लिम पसर्नल लॉ के मामले में तब तक हस्तक्षेप नहीं करेगी, जब तक किसी के मौलिक अधिकारों का हनन न हो।
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