मे दैनिक राष्ट्रीय हिंदी मेल का सम्पादक हूँ.खुल्लम खुल्ला मेरी अभिव्यक्ति है .अपना विचार खुलेआम दुनिया के सामने व्यक्त करने का यह सशक्त माध्यम है.अरुण बंछोर-मोबाइल -9074275249 ,7974299792 सबको प्यार देने की आदत है हमें, अपनी अलग पहचान बनाने की आदत है हमे, कितना भी गहरा जख्म दे कोई, उतना ही ज्यादा मुस्कराने की आदत है हमें...
बुधवार, 9 जुलाई 2014
पाठशाला में मोदी की कुछ खरी-खरी बातें
नवनिर्वाचित सांसदों को उनके दलों द्वारा प्रशिक्षित किये जाने के लिए शिविर लगाना वैसे तो कोई नई बात नहीं है लेकिन हरियाणा के सूरजकुंड में लगी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो दिवसीय पाठशाला में जरूर कुछ नई बातें सामने आयीं। इस पाठशाला में भाजपा के नवनिर्वाचित सांसदों को जो पाठ पढ़ाया गया वह कुछ अलग किस्म का था। अब तक देखा गया है कि नवनिर्वाचित सांसदों को ऐसे शिविरों के माध्यम से संसदीय कार्य से जुड़ी गतिविधियों, नियमों तथा आचरण संबंधी ज्ञान प्रदान किया जाता था लेकिन मोदी की पाठशाला में सांसदों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा, नैतिकता और जिम्मेदारी का पाठ तो पढ़ाया ही गया साथ ही मीडिया से दूर रहने और सोशल मीडिया से जुड़ने का गुरु मंत्र भी प्रदान किया गया।
नरेंद्र मोदी जो सबसे अलग कार्यशैली के लिए जाने जाते हैं उन्होंने अपने सांसदों को जो मंत्र दिये हैं वह हैं- पद की लालसा रखे बिना अपनी जिम्मेदारी निभाएं, निजी सचिव रखते समय पूरी सावधानी बरतें, सवाल पूछने और सांसद निधि के उपयोग में सतर्कता बरतें, किसी भी विषय में विशेषज्ञ बनें, सोशल मीडिया का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें, मीडिया से निश्चित दूरी बनाएं, क्षेत्र को अधिकतम समय दें, भ्रष्टाचार, अहंकार से दूर रह मिशन-विज्ञान के साथ काम करें, विधानसभा चुनाव की तैयारी करें, समस्या पर मीडिया की बजाय जनता के बीच जाएं, सभापति की अनुमति के बिना सदन में कुछ न करें, अच्छे कामों की सूचना जनता के बीच जाकर दें, नए दोस्त बनाएं और एक दूसरे से सीखें, करीब 100 साथी सांसदों का नंबर रखें और हर हाल में विकास करें।
इन गुरु मंत्रों पर निगाह डालने से कुछ बातें एकदम साफ हो जाती हैं। पहली यह कि पिछली लोकसभा में भारी हंगामे और पूरे के पूरे सत्रों के बेकार चले जाने से संसद की जो खराब छवि बनी थी उसे ठीक करने की सरकार ने ठानी है। यदि सभी सदस्य सभापति की बात मानकर आचरण करने लगें तो संसदीय कार्यवाही बड़े ही सहज ढंग से चलेगी जिससे हर छोटे बड़े मुद्दे पर विस्तृत चर्चा हो सकेगी, कोई भी गंभीर विधेयक बिना चर्चा के पारित कराने की नौबत नहीं आएगी। इसके अलावा सभी सदस्यों को अपने अपने क्षेत्र की समस्याओं को उठाने और उनका निराकरण करने की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करने का पूरा मौका मिल सकेगा। साथ ही सदन में माइक तोड़ने, कुर्सी फेंकने, मिर्च पाउडर स्प्रे, मारपीट, विधेयक फाड़ने जैसी घटनाएं सिर्फ अतीत का हिस्सा बनकर रह जाएंगी।
पिछली दो लोकसभाओं में जिस प्रकार पैसे लेकर सवाल पूछने, सांसद निधि के दुरुपयोग, मीडिया की सुर्खियों में जगह बनाने के लिए सदन में हंगामा करने आदि घटनाओं के कारण सांसदों की छवि पर जो असर हुआ उसका ख्याल भी सरकार को है और इसीलिए उसने अपने सांसदों को नैतिकता का पाठ तो पढ़ाया ही है साथ ही स्टिंग ऑपरेशनों से भी सावधान रहने को कहा है। भाजपा पहली ऐसी राजनीतिक पार्टी है जिसे बंगारू लक्ष्मण मामले में स्टिंग ऑपरेशन से झटका लगा था बाद में पार्टी के कई अन्य सांसद भी विभिन्न स्टिंग ऑपरेशनों में फंसे। इन्हीं सबके चलते मोदी सरकार सतर्क रुख अपनाए रहना चाहती है।
प्रधानमंत्री ने इस पाठशाला में ही पाठ पढ़ाना शुरू किया हो ऐसा नहीं है। सरकार बनते के साथ ही उन्होंने इसकी शुरुआत कर दी थी। सभी मंत्रियों, सांसदों को निर्देश दिया गया कि वह निजी सचिव रखते समय सावधानी बरतें और अपने किसी रिश्तेदार को इस पद पर नियुक्त ना करें। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी से भाजपा सांसद ने जब इस निर्देश की अनदेखी कर अपने पिता को सांसद प्रतिनिधि बना दिया तो मोदी ने खुद फोन पर झिड़की लगाई और यह पद किसी और को दिया गया। आजाद भारत के राजनीतिक इतिहास में यह पहली बार है कि केंद्रीय मंत्रियों की हालत यह है कि वह खुद अपनी पसंद का सचिव नहीं रख पा रहे। गृह मंत्री राजनाथ सिंह जैसा कद्दावर नेता भी अपनी पसंद का निजी सचिव नहीं रख सका। हाल ही में राज्यमंत्री उपेन्द्र कुशवाहा के उस आग्रह को भी पीएमओ ने खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने एक अधिकारी के नाम की सिफारिश अपने निजी सचिव पद के लिए की थी।
मंत्रियों के निजी सचिव, कार्यालय स्टाफ तक पर पीएमओ की सीधी निगाह यकीनन मंत्रियों को अधिक कार्यकुशलता के साथ काम करने को बाध्य कर रही है। इसकी एक बानगी केंद्रीय खाद्य और सार्वजनिक वितरण राज्य मंत्री रावसाहेब दानवे के एक बयान से मिल जाती है। उन्होंने अपने नागरिक अभिनंदन समारोह में कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ काम करना आसान नहीं है। महाराष्ट्र के जालना से सांसद का कहना है कि मोदी के साथ काम करते समय महारथियों के भी पसीने छूट जाते हैं। उन्होंने कहा कि 35 साल के राजनीतिक कॅरियर में जब अब जाकर केंद्र में मंत्री पद मिला तो बड़ी प्रसन्नता हुई लेकिन मोदी के सख्त नियमों के चलते 18 घंटे लगातार काम करना पड़ रहा है और एक ही महीने में मेरा वजन चार किलो तक कम हो गया है। उन्होंने कहा कि नई कार खरीदने से लेकर हर चीज पर प्रधानमंत्री का नियंत्रण है और उन्हें फिजूलखर्ची पसंद नहीं है। उनकी पीड़ा इससे भी झलकी कि उन्होंने कहा कि काम इतना है कि घर तो दूर निर्वाचन क्षेत्र में भी जाने का अवसर नहीं मिल पा रहा।
अब तक लोग विभिन्न मुद्दों पर यह तो सुनते ही थे कि सरकार कोई सख्त कदम उठाने जा रही है लेकिन यह पहली बार है कि कोई सरकार सख्त तरीके से चल रही है। सरकार बने अभी महीना भर ही हुआ है कि आए दिन विभिन्न मुद्दों पर प्रधानमंत्री के समक्ष वरिष्ठ मंत्रियों की ओर से प्रेजेन्टेशन देकर समस्याओं और उनके समाधान की दिशा में उठाये जा रहे कदमों के बारे में बताया जा रहा है। खुद प्रधानमंत्री ने अपने लिए भी सख्त नियमों को लागू कर रखा है। अपनी सरकार के 30 दिन पूरे होने पर उन्होंने एक ब्लॉग के माध्यम से बताया कि उनकी सरकार ने हनीमून पीरियड़ का सुख भी नहीं लिया और पहले ही दिन से दिन-रात एक कर जनहित के कामों में खुद को लगा रखा है।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें