शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

सामयिक

ऐसे सिपाही होंगे तो गांधी कैसे नहीं रहेंगे
पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में आकर आजकल लोग जहां महात्मा गाधी को अप्रासंगिक करार दे रहे हैं, वहीं अहमदाबाद में एक शख्स ऐसा है जो वर्षो से अनवरत बापू के विचार जन-जन तक फैलाने में जुटा है। प्रवीण भाई भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन [इसरो] जैसी संस्था में कार्यरत होते हुए भी रोज सुबह तीन घंटे यात्रा कर गांधीवाद की अलख जगाते हैं।

जाड़ा हो, गर्मी या फिर बरसात- सुबह तड़के ही प्रवीण भाई खादी का कुर्ता-पायजामा पहने, सिर पर गाधी टोपी लगाए साइकिल उठा कर निकल पड़ते हैं। साइकिल पर गांधी जी का प्रिय भजन 'वैष्णव जन तो तैने कहिए..' बजाते हुए वह रोज जगह-जगह प्रभात फेरियां निकालते हैं। महात्मा गाधी की कहानियां सुन कर बड़े हुए प्रवीण भाई कहते हैं कि वह प्रभात फेरी के जरिए आज के युवाओं में सत्य, प्रेम और अहिंसा की उसी भावना को जगाना चाहते हैं, जिसके लिए बापू को दुनिया जानती है। वह कहते हैं कि गांधी का संदेश फैलाने के लिए यही तरीका अपनाने की प्रेरणा भी उन्हें बापू से ही मिली है। जिस तरह दाडी यात्रा के जरिए गाधीजी ने नमक कानून को तोड़ कर अंग्रेजों को चुनौती दी थी और वही संकल्प बाद में क्राति की ज्वाला बन गया था, उसी तरह प्रवीण भाई को भी उम्मीद है कि उनकी मुहिम रंग लाएगी। काफी पहले जब उन्होंने इस मुहिम की शुरुआत की थी, तब उन्हें कई लोगों के उपहास का पात्र भी बनना पड़ा था। पर अब हर किसी के मन में उनके लिए सम्मान है। गाधी आश्रम के ट्रस्टी अमृत मोदी मानते हैं कि प्रवीण भाई जैसे लोगों की बदौलत ही गांधीवाद कभी मिट नहीं सकता।

स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, गांधी जयंती, शहीद दिवस जैसे मौकों पर प्रवीण भाई का कार्यक्रम कुछ ज्यादा ही वृहत् हो जाता है। 60 साल की उम्र का इन पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। तभी तो शुक्रवार को भी ज्यादा लंबी यात्रा पर निकलने और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक गांधीवाद का संदेश पहुंचाने के लिए प्रवीण भाई तैयार हैं।

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