शुक्रवार, 11 जून 2010

डायरी दिवस : 12 जून

दिल की कलम से...
12 जून, डायरी दिवस है। मेरी सबसे अच्छी दोस्त, मेरी सुख-दुख की साथी। हर गम में हर खुशी में मैंने अगर किसी को अपने सबसे करीब पाया है तो वह है मेरी डायरी। हर नए साल पर, हर दीपावली पर और हर जन्मदिन पर मेरी सबसे पहली शॉपिंग होती है- डायरी और कलम। हर डायरी के पहले पन्ने पर माँ शारदा को नमन करती हूँ कि मेरी लेखनी में, मेरी सोच में, मेरी अभिव्यक्ति में और मेरे मानस में वह सदैव विद्यमान रहे।

डायरी लिखने के किसी नियम को मैं नहीं मानती। किसी डूज एंड डोंट्स को मेरा कवि ह्रदय नहीं स्वीकारता। कायदा कहता है हमें डायरी में पर्सनल नहीं होना चाहिए, इसके नुकसान है। मैं कहती हूँ, कहीं कोई तो हो जिससे हम वह सब कह डालें जो किसी से नहीं कहा हो, बाद में डायरी छुपाना भी पड़े तो क्या हर्ज है।
अगर समाज और नियमों के अनुसार ही लिखना है तो मैं लिखूँ तो क्यों लिखूँ? फिर भला आलेख ही ना लिख डालूँ? अगर डायरी में अनुभूतियों को शब्दबद्ध किया है तो कोई पढ़े तो क्यों पढ़ें? क्या जरूरी नहीं कि किसी की निजता का, उसके 'पर्सनल स्पेस' का सम्मान किया जाए?
मेरी डायरी में बस मैं ही मैं नहीं होती। मेरी डायरी में होती है कहीं किसी भी पुस्तक में पढ़ी नाजुक काव्य-पंक्तियाँ, स्वर्णिम वचन, बोध-कथाएँ, सकारात्मक विचार, मर्मस्पर्शी संदेश और मेरे दोस्तों की भीनी-भीनी स्मृतियाँ। मेरी ज़‍िंदगी के अब तक के सफर में आए हर उस राही का जिक्र आपको मिलेगा, जो चाहे पल भर के लिए आया हो लेकिन अरबों गुना कीमती भावनात्मक सौगात दे गया। और नहीं मिलेंगे खोजने पर भी वे लोग, जो जीवन में आए लेकिन कड़वा आस्वाद बन कर रह गए।

जीवन के पथ में कुछ ऐसे मीत मिलें जो पल भर साथ रहे
दो-एक दिवस कुछ पथ करते आबाद रहे
कुछ ऐसे जिनकी कभी-कभी सुधि आती है
कुछ ऐसे जो अब तक मुझको याद रहे...!
मुझे डायरी लिखना किसी ने नहीं सिखाया। जैसे-जैसे उम्र की बेल परवान चढ़ीं, स्वयं को अनुभूतियों से लबरेज पाया। भला फिर कोई कैसे रोकता,झरना तो फूटना ही था। पहले रफ कॉपी के पिछले पन्ने, फिर फेयर कॉपी के चोर पन्ने और फिर तो बकायदा अलग से अनूठी-सी, प्यारी-सी पर्सनल डायरी।
मेरी डायरी को पता है, कब मुझे पहली बार ठंडी हवाओं ने अकारण गुदगुदाया, कब पहली बार मैं शीशे के सामने से चाहकर भी हट नहीं पाई, कब मेरी आँखों की चमक से मैं खुद शर्मा गई, कब जाना कि किसी का कक्षा में ना आना कितना तकलीफदेह होता है। आज के बच्चे 'क्रश' कहकर जिसे हँसी में उड़ा सकते हैं उसे मैं आज भी अपनी उम्र की पहली डायरी के 5 वें पेज पर महकता हुआ पाती हूँ। मेरी डायरी सब जानती है। उसे तारीख भी पता है और पल भी, समय भी और सौंधा-सौंधा संबंध भी।


NDमेरी डायरी ही है जिसने बचपन से लेकर तरूणाई और तरूणाई से लेकर परिपक्वता के पड़ाव तक हर कच्चे-पक्के, कठोर-कोमल कजरारे लम्हों को अपने कलेजे में दबाए रखा है, कभी किसी से कुछ नहीं कहा।

इतना विश्वास भला कौन निभा पाता है, और इतना विश्वास भला मैं किस पर, कैसे कर पाती? 12 जून को डायरी दिवस है यानी मेरी सबसे प्यारी और खूबसूरत सहेली का जन्मदिन। आज मेरे पास 16 खास डायरियाँ हैं, सब के भीतर मैं धड़कती हूँ और सब मुझमें महकतीं हैं। मेरे लुभावने अतीत का मधुर हिस्सा बनकर, मेरी साँवली-सलोनी स्मृतियों की रेशम डोर बनकर...!

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