बुधवार, 9 जून 2010

प्रेम कथाएँ

बच्चों का खेल
नाम - मानिक अस्थाना, उम्र - लगभग पचास, पता - प्रेम नगर, दिल्ली। देखिए साहब बात यह है कि आज की दुनिया में सच सुनने का रिवाज नहीं है। सच सुनने को कोई तैयार नहीं। सच लिए घूमते रहिये, सूँघना तो दूर रहा आपकी तरफ कोई देखेगा भी नहीं। सच में झूठ की मिलावट कर दीजिए और देखिए मजा। थोड़ा नमक-मिर्च लगाकर बात करिये, सब सुनेंगे और आपकी तारीफ होगी। सचाई को सच तभी समझेंगे जब उसे कुछ बढ़ाकर पेश करिये या फिर उसमें से मनचाही चीजें घटाकर।

खैर यह तो दूसरी बात हुई। वैसे यह दूसरी बात भी उसी बात से जुड़ी हुई है जिससे मैंने अपनी बात शुरू की थी। यानी सच की सचाई। देखिए जी, आज बदली छाई हुई है। ठंडी मंद बयार बह रही है, छत पर अकेला पड़ा हूँ और रेडियो पर विविध भारती से लताजी की आवाज में जाने क्यूँ लोग मोहब्बत किया करते हैं... दिल के बदले... वाला गाना बज रहा है।

किसी पढ़े-लिखे बंदे से जरा पूछिए कि भाई तुम्हारी नजर में दुनिया का सच क्या है तो वह बाल में उँगली फेरते हुए कहेगा कि सच तो यह है कि हम सभी को एक न एक दिन मरना है। कोई और कहेगा कि यह दुनिया फानी है, क्षण-भंगुर है। उसी बात को कोई और सज्जन घुमा फिराकर कहेंगे - सच तो यह है कि यहाँ सब कुछ परिवर्तनशील है, अस्थायी है, टेम्पररी है - यहाँ तक कि हमारे दुख भी। आप वाह-वाह कर उठेंगे और सच का नया-पुराना नुस्खा लेकर अपने घर का रुख करेंगे।

अब जरा मेरी स्थिति पर गौर फरमाएँ। मेरे इलाके में आज कैसा मौसम है? बदली छाई है, ठंडी-ठंडी बयार बह रही है। मैं कहाँ हूँ? छत पर अकेले... फुर्सत से विविध भारती सुन रहा हूँ - जाने क्यों लोग मोहब्बत किया करते हैं... दिल के बदले दर्दे-दिल लिया करते हैं। ऐसे में कोई मुझसे पूछे, अच्छा बताइए आपकी नजर में दुनिया का सच क्या है।

आप सोच रहे होंगे मैं तपाक से कहूँगा - प्रेम, मोहब्बत, इश्क...। जी नहीं, मैं भी बात को घुमाना जानता हूँ। मैं कहूँगा दुनिया में एक नहीं, दो सच हैं और वह हैं औरत और मर्द। शुद्ध हिन्दी में कहेंगे दुनिया में दो शाश्वत सत्य हैं - स्त्री और पुरुष। आपका मुँह खुला का खुला रह गया न! इतना बोरिंग जवाब, घिसा-पिटा सा।

अगर मैं कहता प्रेमी-प्रेमिका या आशिक-माशूक तो यह जवाब थोड़ा फिल्मी तो लगता लेकिन स्त्री-पुरुष से बेहतर होता, विशेषकर मेरी स्थिति को ध्यान में रखते हुए कि मैं कहाँ हूँ, क्या कर रहा हूँ और मेरी तरफ मौसम कैसा है।

भाइयों, यह दुनिया एक भूलभुलैया है दोनों इसी में चक्कर काटते रहते हैं। लेकिन हम भूलते कुछ नहीं। भूल जाने का भ्रम पालते रहते हैं या उसका नाटक करते रहते हैं। मैं जरा दिमाग पर जोर देता हूँ तो एक-एक करके वे सारी लड़कियाँ-स्त्रियाँ याद आने लगती हैं जो मुझे मिलीं और अच्छी लगीं। आपको ताज्जुब होगा कि जब मैं बहुत छोटा था - सात या आठ साल का। और दो या तीन में पढ़ता था तो शर्मिला नाम की एक हमउम्र लड़की मुझे बहुत अच्छी लगती थी।

उसकी मम्मी भी मुझे बहुत अच्छी लगती थीं। हालाँकि उन्होंने कभी मुझसे बात नहीं की। वह शर्मिला को टिफिन खिलाकर चली जाती थी। उन दोनों की शक्ल मुझे अभी तक हू-ब-हू याद है। अगर मैं बताने लगूँ कि शर्मिला और उसकी मम्मी के बाद कब कब कौन मुझे अच्छा लगा और किसने-किसने मुझे आकर्षित किया - कहाँ-कहाँ मेरी भावनाएँ अटकीं तो आप हँसेंगे। मेरा मजाक उड़ाएँगे।

दरअसल आप सच का मजाक उड़ाएँगे। लेकिन कई लोग ऐसे भी होंगे जिन्हें मेरा यह कुबूलनामा पढ़कर हिम्मत बँधेगी और वे अपना कलेजा टटोलने लगेंगे। उनके सामने भानुमती का पिटारा खुलने लगेगा। मैं गलियों, सड़कों या बाजार में घूम रहा होता हूँ तो कभी-कभी महिलाओं को दूसरी ही नजर से देखता हूँ। वह ऐसे कि अरे ये कितना हँसते-बोलते मस्ती करते, या फिर किसी बात पर चिंता-मग्न फिक्र करते हुए अकेले या सहेलियों के साथ या फिर पति बच्चों और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ चली जा रही हैं। लेकिन जब कमसिन थीं तो किसी से प्रेम करती थीं... प्रेम-पत्र लिखती थीं... उसके लिए रोती-गाती थीं। उसी के साथ जीवन-भर साथ रहने के सपने देखती थीं।

प्रेम क्या होता है?
खिड़की के बाहर गर्मी की रात बिखरी हुई है, गर्मी की गुनगुनी-सी रात। खिड़की से सटकर लगी हुई रातरानी की झाड़ी के फूलों की मादक गंध खिड़की के परदे से अठखेलियाँ कर रही हवा के साथ कमरे में आ रही है। खिड़की के छज्जे पर लदी हुई रंगून क्रीपर की तलर भी लाल, सफेद और गुलाबी गुच्छों के कारण झुकी जा रही है।

खिड़की के पार दूर आसमान में आधा अधूरा चाँद टंका हुआ है। ग्रीष्म की धूप को दिन भर सहन करने के बाद झुलसे पेड़ों की पत्तियों और शाखाओं को रात की ठंडी हवा सहला रही है। हवा का स्पर्श पाकर पत्तियाँ कृतज्ञतावश झुकी जा रही हैं। गर्मी के मौसम की सबसे बड़ी विशेषता उसकी रात होती है। जितना तपता हुआ, जलता हुआ दिन उतनी ही सुहानी रात।

खिड़की से हटकर सोनू अंदर आ गया और अपनी कविता की डायरी लेकर कुर्सी पर बैठ गया। लड़का अभी भी उसी प्रकार सो रहा है। सोनू गौर से उस लड़के के चेहरे को देखने लगा। चौदह-पंद्रह वर्ष की मासूमियत से भरा हुआ चेहरा, जिस पर जवानी ने होठों के ऊपर कल्ले की तरह फूट रहे मूँछों के बारीक़-बारीक़ रोम के रूप में अभी दस्तक देना प्रारंभ ही किया है। गुलाबी होंठ जिनको बीमारी ने भले ही सुखा दिया है मगर अभी भी उनमें ताजगी है। बीमारी के बाद भी चेहरे पर किशोरावस्था की चमक और स्निग्धता बिखरी है।

सोनू को यहाँ लड़के की देखभाल के लिए रखा गया है। वैसे वो एक निजी अस्पताल का कर्मचारी है जिसके मालिक लड़के के पिता के करीबी दोस्त हैं उनके ही कारण सोनू को यहाँ भेजा गया है। लड़के को दवा देना उसे पलंग से उठाकर टहलाना, खाना खिलाना सबकी व्यवस्था सोनू को करनी होती है। लड़के की माँ नहीं है केवल पिता ही हैं, जिनको कारोबार के सिलसिले में घर से बाहर रहना पड़ता है। इससे ज्यादा न सोनू को पता है, न ही उसको पूछने की इजाजत है। उसे बस ये पता है कि यहाँ से उसे अच्छा पैसा मिलेगा जो कॉलेज की परीक्षा फीस भरने में काम आ जाएगा। यहाँ पर जब तक है तब तक कविता लिखने का भी समय है उसके पास।

अस्पताल की नौकरी वह केवल अपनी कॉलेज की पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए ही कर रहा है, मगर अस्पताल में काम करते समय कविता? सोचा ही नहीं जा सकता।

सोनू भैय्या! लड़के की आवाज सुनकर सोनू की तंद्रा टूटी।
'हाँ बोलो।' सोनू ने कुर्सी से उठकर पलंग की तरफ जाते हुए कहा। 'पानी चाहिए सोनू भैया।'
लड़के ने उत्तर दिया। 'देता हूँ तुम लेटे रहो।' फिर घड़ी देखते हुए कहा, 'दवा लेने का टाइम भी तो हो गया है।' कहते हुए सोनू दवा निकालने लगा।
चलो उठकर बैठ जाओ दवा लेना है।' सोनू के कहते ही लड़का धीरे-धीरे उठा और तकिये से टिककर बैठ गया। दवा देने के बाद जब सोनू वापस कुर्सी पर बैठने लगा तो लड़के ने कहा, सोनू भैया यहीं बैठ जाओ न पलंग पर, आपसे बातें करूँगा, अब नींद तो आएगी नहीं।'

लड़के के अनुरोध पर सोनू वहीं बैठ गया। पलंग के पास रखी टेबल पर से कंघी उठा कर लड़के के बाल ठीक करने लगा। गर्मी की मस्त हवा के कारण लड़के के बाल बिखर-बिखर जा रहे हैं। शाम को नहाते समय लड़के ने जिद करके शैम्पू लगाया था और देर तक नहाता रहा था।

'सोनू भैया।' लड़के के सिर पर गिर रही एक लट को जब वो पीछे कर रहा था तब लड़के ने कहा, 'हूँ... कंघी को टेबल पर रखते हुए कहा सोनू ने। कुछ देर तक लड़का चुप रहा फिर बोला, 'ये प्रेम क्या होता है..?' लड़के के प्रश्न से सोनू कुछ चौंका फिर मुस्कराता हुआ बोला, 'प्रेम...? अभी तीन चार साल रुक जाओ, सब पता चल जाएगा।'
कहते हुए उसने लड़के के बालों को हल्के से बिखरा दिया।
तीन चार साल रुक पाऊँगा मैं...?'
लड़के ने उदासी से पूछा। लड़के के पूछते ही कमरे की हवा रुक गई।
क्या होता है प्रेम सोनू भैय्या...!?' सोनू को चुप देखकर लड़के ने फिर पूछा।
'प्रेम वह होता है जो हमें किसी दूसरे से जोड़ता है।' सोनू ने कुछ टालने वाले अंदाज में कहा।
'किससे?' लड़के ने फिर पूछा।
किसी से भी, उन सबसे जो हमें अच्छे लगते हैं, हमारे माँ-बाप, हमारे भाई-बहन, हमारे दोस्त।' सोनू ने जवाब दिया।
माँ तो मेरे पास नहीं है पापा हैं पर वो भी... भाई बहन भी नहीं हैं।'
कहते-कहते लड़का फिर चुप हो गया। लड़के की आँखें अचानक नम हो गई थीं। सोनू को लगा उसकी पलकों के किनारे झिलमिला भी रहे हैं।
उसने लड़के को सहज करने के लिए कहा, 'और सबसे खास प्रेम हमें किसी एक खास से भी होता है।' सोनू के इतना कहते ही लड़के के चेहरे के भाव अचानक बदल गए, मानो सोनू ने उसके मन की बात कह दी हो।
'कौन खास सोनू भैया?' उसने उत्सुकता से पूछा।
ये जो बाहर चाँद नजर आ रहा है न, आधा अधूरा-सा चाँद, इसको देखकर न तो रात की रानी के फूल झूम रहे हैं न पेड़ों की पत्तियाँ इठला रही हैं। क्योंकि ये सब एक खास चाँद से प्रेम करते हैं। पूर्णमासी के पूरे चाँद से। अभी दो दिन बाद जब ये चाँद पूरा हो जाएगा तब से सब उस खास के प्रेम में पागल हो जाएँगे। सोनू ने उत्तर दिया।
सचमुच? लड़के ने उत्सुकता से फिर पूछा।
हाँ बिल्कुल दिखाऊँगा। सोनू ने ‍उत्तर दिया।
लड़का गौर से खिड़की के पार के चाँद को देखने लगा। उसके चेहरे के भाव पल-पल बदल रहे थे। कुछ देर तक देखते रहने के बाद लड़का फिर उदास हो गया।
तुम्हें मिला कोई खास? सोनू ने लड़के का मूड बदलने के लिए फिर पूछा।
लड़के ने सोनू की तरफ देखा। सोनू ने देखा उन दो नन्ही आँखों में सितारे झिलमिला रहे थे। फिर अचानक वो शरमा गया और चादर के धागे खींचने लगा।
हूँ... मतलब मिली है।' सोनू ने मजाक के अंदाज में पूछा।
'है नहीं थी..।' लड़के ने उसी तरह झुके हुए कहा पर उसकी आवाज डूबी हुई थी।
'कब? सोनू ने पूछा।
जब मैं स्कूल जाता था। लड़के के स्वर में उदासी थी। उसकी आवाज ऐसी थी मानो किसी सुनसान रात में पहाड़ पर लगे पेड़ों पर बर्फ गिर रही हो।
कौन थी..? सोनू ने फिर पूछा।
'मेरे साथ ही पढ़ती थी और मेरे साथ वही होता था जो अभी आपने कहा ना कि पूर्णमासी के चाँद को देखकर पेड़ों को हो जाता है।' लड़के ने धीरे से कहा।
हूँ... खूब बात-वात होती होंगी तब तो उससे।' सोनू ने शरारत के लहज़े में पूछा।
नहीं, बात तो एक बार भी नहीं हुई। लड़के ने सिर उठाकर उत्तर दिया।
अरे..! क्यों? सोनू ने पूछा।
हिम्मत नहीं होती थी और वो भी शायद बात करना नहीं चाहती थी। लड़के की आँखें बुझ गई थीं।
चलो अब जब स्कूल जाना शुरू करो तो सबसे पहले उससे जाकर बात करना और नहीं कर पाओ तो मुझे ले चलना मैं तुम्हारी तरफ से बात कर लूँगा। सोनू ने लड़के के सिर पर हाथ रखते हुए कहा।

क्यों मजाक करते हो सोनू भैय्या, अब कहाँ जा पाऊँगा मैं स्कूल? अब तो शायद मम्मी के पास चला जाऊँगा। कहते हुए लड़के ने सिर पर रखा सोनू का हाथ लेकर गोद में रख लिया और दोनों हाथों में दबा लिया। सोनू ने दूसरे हाथ से लड़के की आँखों में आई नमी को अपनी अँगुलियों में समेटते हुए कहा। लड़के ने कोई उत्तर नहीं दिया उसी तरह लेटा रहा। सोनू उसके बालों को सहलाता रहा। कुछ देर बाद जब उसको लगा कि लड़का सो गया है तो उसने आहिस्ता से लड़के का सिर अपनी गोद से उठाकर तकिये पर रखा उसे चादर ओढ़ाई और आकर अपने पलंग पर लेट गया।

अगले दिन से लड़के की तबीयत बिगड़ने लग गई थी। तेज बुखार में बड़बड़ाता रहता था। सोनू ने सुना कि उसकी बड़बड़ाहट में बार-बार मम्मी शब्द आ रहा है। नर्सिंग होम से कई बार डॉक्टर आकर लड़के को देखकर जा चुके थे।

बुखार के तीसरे दिन जब डॉक्टर सिन्हा लड़के को देखकर वापस जा रहे थे तब सोनू ने पूछा था, कोई डरने की बात तो नहीं है न सर।'
डरने की बात तो है, अब इसे अस्पताल में शिफ्ट करना ही पड़ेगा, ये रिकवर हो ही नहीं पा रहा है। इसके पिता कब तक आ जाएँगे?' डॉक्टर सिन्हा ने कहा था। 'बस शायद परसों तक आ जाएँगे, सर्वेंट बता रहा था कि उनका फोन आया था।' सोनू ने उत्तर दिया।

'ठीक है उनके आते ही इसे शिफ्‍ट कर देंगे, तब तक ध्यान रखना कुछ भी हो तो तुरंत खबर करना। कहते हुए डॉक्टर सिन्हा चले गए। सोनू आकर लड़के के सिरहाने बैठ गया और धीरे-धीरे उसका सिर दबाने लगा। कुछ देर बाद लड़का कसमसाया और उसने आँखें खोल दीं। सोनू को देखा तो मुस्करा दिया।

'उठ गए, चलो अच्छा किया, शाम भी हो गई है।' सोनू ने कहा।
लड़का कुछ देर तक सोनू को देखता रहा फिर बोला, 'सोनू भैया क्या अब मैं उसको कभी नहीं देख पाऊँगा?'
क्यों नहीं देख पाओगे? मुझे उसका पता, टेलीफोन नंबर दो अभी बुला लेता हूँ।' सोनू ने उत्तर दिया।
वो तो मुझे कुछ भी नहीं पता। लड़के ने उदासी के साथ कहा।
चलो मैं कल स्कूल जाकर पता कर लूँगा और उसको बुला लाऊँगा। सोनू ने लड़के का उत्साह बढ़ाने के लिए कहा। लड़का फिर अचानक बोला, 'सोनू भैया आज पूर्णिमा है ना? आज आपने कुछ दिखाने को कहा था।'
'हाँ भाई दिखा दूँगा रात तो होने दो।'
सोनू भैया मैं अपनी मम्मी को भी देखना चाहता था पर नहीं देख पाया, ये सब मेरे साथ ही..' कहते-कहते लड़का चुप हो गया।
चलो आज दिखा दूँगा जब चाँद पूरा होगा ना तब उसमें तुमको अपनी मम्मी भी दिखेंगी और वो भी। वो सब दिखेंगे, जिनको तुम प्रेम करते हो। सोनू ने कहा।
'सच...।' लड़के ने उत्साह में भरकर कहा।
बिल्कुल सच! सोनू ने उत्तर दिया।
पर मैं उनको छू तो नहीं पाऊँगा न?' लड़का फिर उदास हो गया।
क्यों नहीं छू पाओगे? जब चाँद को देखो तो मेरी इस हथेली को छू लेना तुमको ऐसा लगेगा कि तुम उन सबको छू रहे हो जिनको तुम प्रेम करते हो। सोनू ने अपनी हथेली दिखाते हुए कहा।
ठीक है। लड़का फिर उत्साह में भर गया।
पर देखो जब चाँद में तुम्हारी वो खास नजर आए तो उसे देखकर शरमा मत जाना।
सोनू ने लड़के की कमर में गुदगुदी करते हुए कहा लड़का खिलखिला उठा।
रात को लड़का सोनू ने गोद में उठाकर खिड़की पर बैठा दिया था क्योंकि तब उसके चलने-फिरने की ताकत बिल्कुल क्षीण हो गई थी।
'देखो वो पूरा पील चाँद।' अमलतास के दो पेड़ों के ऊपर दिख रहे चाँद की ओर इशारा करते हुए सोनू ने कहा। लड़के ने सिर उठा कर चाँद को देखा।
'देखो उसमें अपनी मम्मी को। दिख रही हैं ना? सोनू ने पूछा, लड़के ने हाँ में सिर हिलाया।

ठीक है अब आँखें बंद करके मेरी इस हथेली को छुओ। सोनू के कहते ही लड़के ने वैसा ही किया। थोड़ी देर बाद लड़के ने हथेली को खींचकर अपने चेहरे से सटा लिया। कुछ ही देर में सोनू की हथेली भीग गई।
सोनू ने लड़के की आँखें पोंछीं और फिर कहा, चलो अब फिर देखो चाँद को, अब वो दिखेगी। लड़के ने फिर चाँद को देखा।
‍दिखी? सोनू ने पूछा। लड़के ने फिर हाँ में सिर हिलाया और आँखें बंद कर लीं और सोनू की हथेली को फिर चेहरे से लगा लिया। अबकी बार सोनू को हथेली पर नमी की जगह आँच का एहसास हुआ लड़के की गर्म साँसों की आँच का एहसास। आँच धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी। बढ़ते-बढ़ते अचानक एकदम ठंडी हो गई और हथेली पर साँसों के टकराने का एहसास भी बंद हो गया। सोनू ने देखा दूर आसमान पर एक सितारा टूटा और रोशनी की लकीर छोड़ता हुआ चाँद की तरफ बढ़ा। चाँद के ठीक पास आकर वो सितारा बुझ गया मानो चाँद को छूकर खामोश हो गया हो।
सोनू ने आहिस्ता से लड़के का चेहरा हथेली पर से हटाया, लड़का उसकी बाँहों में झूल गया। हवा बिल्कुल ठहर गई थी मगर रात रानी के छोटे-छोटे फूल चुपचाप आँसुओं की तरह टप-टप करके जमीन पर टपक रहे थे।

तीस साल बाद
कपिल चाय की चुस्कियाँ लेते हुए अखबार पढ़ रहा था। तभी गोपाल ने सूचना दी कि दो महिलाएँ मिलने आई हैं। कपिल टॉयलेट से फारिग होकर ही किसी आगंतुक से मिलना पसंद करता है। उसने खिन्न होते हुए कहा, 'इतनी सुबह? मुवक्किल होगी। दफ्तर में श्रीवास्तव आ गया हो, तो उससे मिलवा दो।'
वे आपसे ही मिलना चाहती हैं। शायद कहीं बाहर से आई हैं।'
'अच्छा! ड्राइंगरूम में बैठाओ, मैं आता हूँ।'

कपिल टॉयलेट में घुस गया। इतमीनान से हाथ मुँह धोकर जब वह नीचे आया, तो उसने देखा- सोफे पर बैठी दोनों महिलाएँ चाय पी रही थीं। एक सत्तर के आसपास होगी और दूसरी पचास के।
एक का कोई बाल काला नहीं था और दूसरी का कोई बाल सफेद नहीं था, मगर दोनों चश्मा पहने थीं। कपिल को आश्चर्य हुआ, कोई भी महिला उसे देखकर अभिवादन के लिए खड़ी नहीं हुई। बुजुर्ग महिला ने अपने पर्स से कागज निकाला और कपिल के हाथ में थमा दिया।
यह खत आपने लिखा था? उसने कड़े स्वर में पूछा।
कपिल ने कागज ले लिया और चश्मा पहनकर पढ़ने लगा। भावुकता और शेर-ओ-शायरी से भरा एक बचकाना मजमून था। उस कागज को पढ़ते हुए सहसा कपिल के चेहरे पर खिसियाहट भरी मुस्कान फैल गई। बोला, 'यह आपको कहाँ से मिल गया? बहुत पुराना खत है। तीस बरस पहले लिखा गया था।'
पहले मेरी बात का जवाब दीजिए, क्या यह खत आपने लिखा था। बुजुर्ग महिला ने उसी सख्‍त लहजे में पूछा।
'हैंडराइटिंग तो मेरी ही है। लगता है, मैंने ही लिखा होगा।'
अजीब आदमी हैं आप। कितना कैजुअली ले रहे हैं आप इस बात को।' बुजुर्ग महिला ने लगभग पत्र छीनते हुए कहा।
कपिल ने दूसरी महिला की ओर देखा, जो अब तक नि‍र्द्वंद्व बैठी थी, पत्थर की तरह। कपिल को यों, अस्त-व्यस्त देखकर वह मुस्कराई। उसके सफेद संगमरमरी दाँत पलभर में सारी कहानी कह गए।
'अरे सरोज, तुम!' कपिल जैसे उछल पड़ा, इतने वर्ष कहाँ थी?
मैं विश्वास नहीं कर पा रहा हूँ, तीस साल बाद तुम अचानक मेरे यहाँ आ सकती हो, कहाँ गए बीच के साल?
'कहो, कैसे हो, कैसे बीते इतने साल?'
'तुम तो ऐसे कह रही हो, जैसे साल नहीं, दिन बीते हों। तीस साल एक उम्र होती है। मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि तुमसे इस जिंदगी में कभी भेंट होगी।'
क्या अगले जन्म में मिलने की सोच रहे थे?
यही समझ लो।
इस एक कागज के टुकड़े के कारण तुम मेरे बहुत करीब रहे, हमेशा, मगर इसे कभी गलत मत समझना।
इतने में कपिल की पत्नी भी नीचे उतर आई। वह जानती थी, नाश्ते के बाद ही कपिल नीचे उतरता है, चाहे कितना बड़ा मुवक्किल क्यों न आया हो।
यह मेरी पत्नी है, मंजुला। देश के चोटी के कलाकारों में इसका नाम है। अब तक बीसियों रिकॉर्ड आ चुके हैं।
जानती हूँ। सरोज बोली, नमस्कार।
नमस्कार। मंजुला ने कहा और 'एक्सक्यूज मी' कहकर दुबारा सीढ़ियाँ चढ़ गई। उसने सोचा होगा, कोई नई मुवक्किल आई है। मंजुला की उदासीनता का कोई असर दोनों महिलाओं पर नहीं हुआ।
बच्चे कितने बड़े हो गए हैं? सरोज ने पूछा।
उसी उम्र में हैं, जिस उम्र में मैंने यह खत लिखा था।
शादी हो गई या अभी खत ही लिख रहे हैं? सरोज ने ठहाका लगाया, कपिल ने साथ दिया।
'बड़े की शादी हो चुकी है, दूसरे के लिए लड़की की तलाश है।
क्या करते हैं? बुजुर्ग महिला ने पूछा।
बड़ा बेटा जिलाधिकारी है बहराइच में और छोटा मेरे साथ वकालत कर रहा है, मगर वह भी कम्पीटिशन में बैठना चाहता है। सरोज की माँग में सिन्दूर देखकर कपिल ने पूछा,
'तुम्हारे बच्चे कितने बड़े हैं?'
दो बेटियाँ हैं। एक डॉक्टर है, दूसरी डॉक्टरी पढ़ रही है।
क्या किसी डॉक्टर से शादी हो गई थी? कपिल ने पूछा।
बड़े होशियार हो। सरोज ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।
तुम भी कम होशियार नहीं थी, कपिल ने कहा।
कपिल के दिमाग में वह दृश्य कौंध गया, जब कक्षा की पिकनिक के दौरान नौका-विहार करते हुए सरोज ने एक फिल्मी गीत गाया था - तुमसे आया न गया, हमसे बुलाया न गया।
तुमने इनका परिचय नहीं दिया। कपिल ने बुजुर्ग महिला की ओर संकेत करते हुए कहा।
इन्हें नहीं जानते? मेरी माँ हैं।
कपिल ने हाथ जोड़कर अभिवादन किया।
अब भी सिगरेट पीते हो?
'पहले की तरह नहीं, कभी-कभी।'
कपिल के दिमाग में वह दृश्य कौंध गया, जब कक्षा की पिकनिक के दौरान नौका-विहार करते हुए सरोज ने एक फिल्मी गीत गाया था - तुमसे आया न गया, हमसे बुलाया न गया। सरोज ने एक विदेशी सिगरेट का पैकेट और एक लाइटर उसे भेंट किया। तुम्हारे लिए खरीदा था यह लाइटर, कोई दस साल पहले। इस बार भारत आई, तो तुम्हारे लिए लेती आई।'
क्या विदेश में रहती हो?' कपिल ने लाइटर को उलट-पुलट कर देखते हुए पूछा।
'हाँ, मॉन्ट्रियल में। मेरे पति भी तुम्हारे ही पेशे में हैं।'
कनाडा के लीडिंग लॉयर। सरोज की माँ ने जोड़ा। कपिल ने लाइटर से सिगरेट सुलगाई। जब तक लाइटर जला, उससे संगीत भी सुनने को मिला।
लगता है, तुम्हारी जिंदगी में वकील ही लिखा था। कपिल के मुँह से अनायास निकल गया। अक्सर वह नपे-तुले शब्दों में ही बोला करता था। उसे लगा, उससे कोई गलती हो गई है।
'मतलब?'
तुम्हारी तार्किक क्षमता को देखकर कह रहा हूँ।
कपिल ने किसी तरह भूल-सुधार की।
'सरोज उसकी बात का निहितार्थ समझ गई थी और उसकी भूल का मजा ले रही थी।
तुम्हारे दाँत अभी तक उतने ही उजले हैं।'
'मेरे पति को भी मेरे दाँत बहुत प्रिय हैं।'
'मुझे उनसे ईर्ष्या हो रही है।'
सरोज ने अपने पति की तस्वीर दिखाई।
एक खूबसूरत शख्स की तस्वीर थी। तेजस्वी चेहरा। राजकपूर स्टाइल की मूँछें और दिलीप कुमार का हेयर स्टाइल। चेहरे से लगता था कि कोई वकील है या न्यायमूर्ति। कपिल भी कम सुदर्शन नहीं था, मगर उसे लगा, वह उसके पति से उन्नीस ही है।
कपिल कहना चाहता था कि क्या तुम्हारे पति राजकपूर के दीवाने रहे हैं, मगर उसने फोटो लौटाते हुए कहा, 'लक्की हो। कब हुई थी, तुम्हारी शादी?'
'एक युग बीत गया।' सरोज ने सिर झटकते हुए कहा।
'तुम्हारे पति भी आए हैं?'
'नहीं, उन्हें फुर्सत कहाँ?' सरोज बोली, बाल की खाल न उतारने लगो, इसलिए बताना जरूरी है कि मैं उनके साथ बहुत खुश हूँ। आई एम हैप्पीली मैरिड।'
दो बार अकेले विश्व भ्रमण कर आई है। अबकी बार मुझे साथ ले जाना चाहती है, मगर इसके भाई तैयार ही नहीं हो रहे। सरोज की माँ ने बताया।

तभी कपिल का पोता आँखें मलता हुआ नमूदार हुआ और सीधा उसकी गोद में आ बैठा।
'मेरा पोता है, आजकल बहू आई हुई है।'
कपिल ने बताया।
'बहुत प्यारा बच्चा है, क्या नाम है?'
'बंटू।' बंटू ने नाम बताकर अपना चेहरा छिपा लिया।
'बंटू बेटे, हमारे पास आओ, चॉकलेट खाओगे।
'खाएँगे।' उसने कहा और चॉकलेट का पैक मिलते ही अपनी माँ को दिखाने दौड़ गया।
'कोर्ट कब जाते हो?' उसने पूछा।

'तुम इतने साल बाद मिली हो। आज नहीं जाऊँगा।' कपिल बोला, आज तुम्हारा कोर्ट मार्शल होगा।'
'मैंने क्या गुनाह किया है?' सरोज ने कहा, 'गुनाहों के देवता तो तुम्हीं पढ़ा करते थे, तुम्हीं जानो। अच्छा, यह बताओ, जब मेरी दीदी की शादी हो रही थी, तो तुम दूर खड़े रो क्यों रहे थे?'
कपिल सहसा इस हमले के लिए तैयार नहीं था, वह अचकचा कर रह गया, 'अरे कहाँ से कुरेद लाई हो इतनी सारी सूचनाएँ और वह भी इतने वर्षों बाद। तुम्हारी स्मृति की दाद देता हूँ - तीस साल पहले की घटना ऐसे बयान कर रही हो, जैसे कल की बात हो।'
यह याद करके तो आज भी गुदगुदी हो जाती है कि तुम रोते हुए कह रहे थे कि एक दिन सरोज की डोली भी उठ जाएगी और तुम हाथ मलते रह जाओगे। अच्छा यह बताओ, तुम कहाँ थे, जब मेरी डोली उठी थी?'
'कम ऑन सरोज।' कपिल सिर्फ इतना कह पाया। कपिल को याद आया, जिस दिन सरोज की दीदी की शादी थी, उसने उर्दू के एक हमउम्र शायर के साथ पहली बार शराब पी थी। आज कपिल देश का जितना बड़ा वकील है, वह शायर भी देश का उतना बड़ा शायर है। इसे संयोग ही कहा जाएगा कि उस शायर से भी कपिल की तीस बरसों से भेंट नहीं हुई। मंजुला भी उसकी दो-एक ग़ज़लें गा चुकी है।
'मुझे निशा से तुम्हारी खबरें बराबर मिल जाया करती थीं। उसका भाई सुरेश तुम्हारा दोस्त था।'
कपिल ने दिमाग पर बहुत जोर डाला, मगर न वह सुरेश को स्मृति में ला पाया, न निशा को, मगर यह सच था, सरोज की दीदी की शादी में वह जी भर कर रोया था।
यह बताओ बेटे कि सरोज को इतना ही चाहते थे, तो कभी बताया क्यों नहीं उसे?'
सरोज की माँ ने चुटकी ली।
खत लिखा तो था। कपिल ने ठहाका लगाया, इसने जवाब ही नहीं दिया।'
खत तो इसने उसी दिन मेरे हवाले कर दिया था। सरोज की माँ ने बताया, 'जब तक रिश्ता तय नहीं हुआ था, बीच-बीच में मुझसे माँग कर तुम्हारा खत पढ़ा करती थी।
मेर लिए बहुत स्पेशल है यह खत। जिंदगी का पहला और आखिरी प्रेम पत्र। शादी को इतने बरस हो गए, मेरे ‍पति ने कभी पत्र नहीं लिखा, प्रेम-पत्र क्या लिखेंगे। वह सेल्यूलर कल्चर के आदमी हैं। हमारे घर में सभी ने पढ़ा है यह प्रेमपत्र। यहाँ तक कि मेरे पति, मेरी बेटियों को भी पढ़ कर सुना चुके हैं यह पत्र। मेरे पति ने कहा था, इस बार अपने ब्वॉयफ्रेंड से मिलकर आना।'
इसका मतलब है, पिछले तीस बरस से तुम सपरिवार मेरी मुहब्बत का मजाक उड़ाती रही हो।'
यह भाव होता, तो मैं क्यों आती तीस बरस बाद तुमसे मिलने! इन तीस बरसों में तुमने मुझे कितनी बार याद किया?'
सच तो यह था, पिछले तीस बरसों में कपिल को सरोज की याद आई ही नहीं थी। वह अपने पत्र का उत्तर न पाकर कुछ दिन दारू के नशे में शायद मित्रों के संग गुनगुनाता रहा था कि 'जब छोड़ दिया रिश्ता तेरी जुल्फे स्याह का, अब सैकड़ों बल खाया करे, मेरी बला से' और देखते-देखते इस प्रसंग के प्रति उदासीन हो गया था।

'तुम्हारा सामान कहाँ है?' कपिल ने अचानक चुप्पी तोड़ते हुए पूछा।
बाहर टैक्सी में। सोचा था, नहीं पहचानोगे, तो इसी में चंडीगढ़ लौट जाएँगे।
आज दिल्ली में ही रुको। शाम को कमानी में मंजुला का कन्सर्ट है। आज तुम लोगों के बहाने मैं भी सुन लूँगा। दोपहर को पिकनिक का कार्यक्रम रखते हैं। सूरजकुंड चलेंगे और बहू को भी घुमा लाएँगे और फिर मुझे तुम्हारी आवाज में वह भी तो सुनना है - तुमसे आया न गया, हमसे बुलाया न गया। याद है या भूल गई हो?
सरोज मुस्कराई, 'कम्बख्‍त यादगार ही तो कमजोर नहीं है।'
कपिल ने गोपाल से सरोज का सामान नीचे वाले बेडरूम में लगाने को कहा।
बाहर कोयल कूक रही थी।
'क्या कोयल को भी अपने साथ लाई हो?'
कोयल तो तुम्हारे ही पेड़ की है।
यकीन मानो, मैंने तीस साल बाद यह कूक सुनी है। कपिल शर्मिंदा होते हुए फिलासफाना अंदाज में फुसफुसाया, 'यकीन नहीं होता, मैं ही वह कपिल हूँ, जिससे तुम मिलने आई हो और मुद्‍दत से जानती हो। कुछ देर पहले तक तुमसे मिलकर लग रहा था, वह कपिल कोई दूसरा था, जिसने तुम्हें खत लिखा था।
'टेक इट ईजी मैन।' सरोज उठते हुए बोली, 'ज्यादा फिलॉसफी मत बघारो, यह बताओ टॉयलेट किधर है?'
कोयल ने आसमान सिर पर उठा लिया था।

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