प्यार ही काफी नहीं
मैट्रीमोनियल लॉयर श्री रविंद्र गडिया का मानना है कि जब कोई दंपती अपने रिश्ते से किनारा करने का फैसला लेकर हमारे पास आता है, तब तक वह हर उपाय अपना चुका होता है। काउंसलिंग हो या कम्युनिकेशन, स्पेस देने का सवाल हो या कोई अन्य। सभी तरीके अपनाने के बाद जब ऐसा लगता है कि अब रिश्ते को आगे बनाए रखने का कोई उपाय नहीं बचा तो तलाक एकमात्र विकल्प होता है।
हालांकि जब भी ऐसे मामले आते हैं, सोचने पर मजबूर होना पडता है कि क्या था जो इन रिश्तों को साथ चलने पर बाध्य न कर सका? कहां क्या कमी रह गई? एक बार कोई कपल मेरे पास आया तो मैंने समझा कि ये भी अन्य लोगों की तरह अपनी समस्या लेकर आए होंगे। लेकिन मैं तब हैरान रह गया, जब उन्होंने मुझसे यह बताने को कहा कि आखिर संबंधों में खतरे की घंटी कब बजती है? घंटी बजे, इससे पूर्व ही कैसे सजग होना चाहिए? उनकी बात ने मुझे लॉयर से अलग एक सलाहकार की भूमिका में ला खडा कर यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर कौन सी वजह रिश्तों को टूटने की तरफ ले जाती है।
अपने को इंपोज करना
यह कहना काफी हद तक सही है कि रिश्ते की सफलता के लिए प्यार ही काफी नहीं होता। जिम्मेदारियों के बीच प्यार कहींगुम हो जाता है। अधिकार जमाते-जमाते कब हम दूसरे पर हावी हो जाते हैं, पता भी नहीं चलता। जब यह भावना इतनी बढ जाती है कि दूसरे का दम घुटने लगे तो स्थिति बिगड जाती है।
सोनी और राहुल का प्रेम विवाह था। शुरू में सोनी को लाने-छोडने की जिम्मेदारी सहजता से राहुल ने ले ली। सोनी कामकाजी थी, कई बार उसका समय राहुल के साथ मैच नहींहो पाता। एक-दूसरे को समय न दे पाने से धीरे-धीरे तकरार बढी। राहुल ऑफिस के बाहर खडे होकर लगातार फोन बजाता और वह काम में उलझी होती, गुस्सा आता और सबके बीच मजाक भी बनता। क्या पहनना है, क्या खाना बनेगा से लेकर कहां जाना है तक हर बात में मर्जी राहुल की चलती। सही हो या गलत उसे ही मानना पडता। ऐसे जीवन में खुशी कहां बचती।
विश्वास सबसे जरूरी
प्यार से ज्यादा जरूरी है विश्वास। यदि आपको अपने साथी पर भरोसा है तो कई बातें अनदेखी हो सकती हैं। यदि भरोसा नहीं तो मुश्किलेंआ सकती हैं। सुप्रिया सी.ए. है। उसके आने-जाने व काम करने का समय नियत नहीं। रोज वह कैसे बताए कि कब काम खत्म होगा, वह कैसे घर लौटेगी। कैब की सुविधा है, लेकिन न कैब वाले पर भरोसा है, न सहकर्मियों पर, अब कैसे आए-जाए? इसका कोई जवाब उसके इंजीनियर पति के पास नहीं था। रोज-रोज की खिटपिट से अछा था कि दोनों अपने रास्ते अलग-अलग कर लें। हर क्षेत्र की अपनी डिमांड होती है। यह काम करने वाला ही समझ सकता है। सुप्रिया कहती है कि यदि पति को विश्वास होता तो शायद यह नौबत नहीं आती।
आपसी समझ
एक-दूसरे की इछाओं, भावनाओं और जरूरतों को समझना किसी भी रिश्ते के लिए महत्वपूर्ण होता है। जब यह समझ विकसित नहीं होती, तो परेशानियां शुरू होती हैं। पति-पत्नी बनते ही प्यार सेकंडरी हो जाता है और रोजमर्रा की जरूरतें उस पर हावी हो जाती हैं। ऐसे में एक-दूसरे को समझना बेहद जरूरी है। शहरों में तेज भागती जिंदगी ने चैन छीन लिया है। समझदारी न हो तो अलग होते देर नहीं लगती। एकल परिवारों ने समस्याओं को बढा दिया है। अब घर-परिवार, बचों के साथ वर्कप्रेशर का भी सामना करना पडता है।
सम्मान न खोएं
रिश्तों में सम्मान का भाव नहींखोना चाहिए। ज्यादा अपेक्षाएं रखने से तनाव बढता है। जरूरी नहीं कि हर अपेक्षा पूरी हो। रिश्ते पॉवर-गेम नहीं हैं। इसलिए आदेश नहीं, निवेदन करें और अपेक्षाएं उतनी ही रखें जितनी पूरी हो सकती हों। आप साथी का सम्मान करेंगे, तभी आपके बचे और घर के दूसरे लोग भी उसका सम्मान करेंगे।
अन्य मुद्दे
ईगो कम करें
विवादों की सबसे कॉमन वजह है ईगो। इस भावना का खुशहाल वैवाहिक जीवन में कोई स्थान नहीं। संभ्रांत व्यवसायी की पुत्री अलका विवाह के बाद कभी भी ससुराल में सामंजस्य नहीं बैठा पाई। नौकर-चाकरों के बीच पली-बढी अलका को यहां हर काम स्वयं करना पडता। उस पर गुमान इतना कि नाक पर मक्खी भी नहीं बैठने देती। ससुराल वालों ने बहुत कोशिश की कि किसी प्रकार लाडली सुपुत्री को एडजस्ट होने का समय दें व सहयोग करें, लेकिन उसका दिमाग जमीन पर आने के बजाय आसमान में ही बना रहा। आखिर तंग आकर एक दिन संबंध कटघरे में जा खडा हुआ। परिवार मैं नहीं, हम के सिद्धांत पर चलता है। यहां आप अकेले नहीं, आपके साथ पूरा परिवार, आपका व आपके साथी का भी है। दोनों के संगी-साथी व समाज भी साथ में हैं। अकेले बीन बजाने से कुछ हासिल नहीं होगा। वह तभी संभव है जब आप स्व से ऊपर उठें।
जिम्मेदारियां बांटें
तेजी से बदलती लाइफस्टाइल में जब दोनों कामकाजी हों तब यह बहुत जरूरी हो गया है कि घर-बाहर की जिम्मेदारियों को ईमानदारी से बांटा जाए। दोनों एक-दूसरे को सहयोग करें और मिलकर गृहस्थी की गाडी खींचें। बढती व्यस्तता और जिम्मेदारियों के बोझ तले कब रिश्तों में प्रॉब्लम हो जाती है पता भी नहीं चलता। हिना ने बहुत कोशिश की अपने सीधे-सादे पति से कोपअप करने की। लेकिन वह थे कि सुधरने का नाम नहीं लिया। सुबह से रात तक भागते-भागते वह जब थक कर बेड पर जाती तो बेहोश जैसी पडी होती। ये भी कोई जिंदगी है? ऐसे कब तक चल सकेगा यही सोच कर उसने अलग होने का फैसला लिया। घर वाले हैरान थे कि इतना सीधा पति है, फिर कहां मुश्किल है। उसका कहना था आओ देखो, सहयोग करना तो दूर, यह खुद भी बोझ है मुझ पर। बिल जमा करने से लेकर घर संभालने और नौकरी करने तक के सारे काम मुझे ही करने पडते हैं। उस पर अपने काम भी वह नहीं करते। न जगह पर तौलिया होगा, न कपडे। यदि हाथ में पर्स न पकडाओ तो उसके बिना ही चले जाएंगे साहब। इतना निरपेक्ष रहकर गृहस्थी नहीं चल सकती। हिना कहती है कि ऐसे लोगों को एकला चलो रे के सिद्धांत पर अमल करना चाहिए।
प्यार
अब प्यार के बिना तो कोई रिश्ता न बनता है, न पल्लवित होता है। लेकिन शादी के बाद लडने-झगडने के बीच प्यार कहां गायब हो गया, यह आभास भी नहीं होता। इसे खोने न दें, जो भी छोटे-छोटे पल आपको मिल रहे हैं, उन्हें समय से चुरा लें।
सेक्स
रिश्ते का एक और महत्वपूर्ण हिस्सा है सेक्स। व्यस्तता में भले ही एक-दूसरे के लिए समय न मिल रहा हो, लेकिन आपसी रिश्ते घनिष्ठ बनाने के लिए इससे बेहतर उपाय अन्य नहीं।
संयुक्त परिवार
विशेषज्ञों का कहना है कि एकल परिवार भी बडा कारण है समस्याएं बढने का। पहले संयुक्त परिवारों में बडे-बूढे घर के भीतर ही समस्याएं सुलझा लेते थे। डांट-डपट या समझाकर सबको सही रास्ते पर ले आते थे। लेकिन अब न कोई समझाने वाला बचा, न रास्ता दिखाने वाला। सारी समस्याएं सबको खुद ही सुलझानी हैं।
सखी फीचर्स
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