डॉल्फिन का दर्द बयाँ करती 'द कोव'
अरुण बंछोर
कभी परंपरा, कभी जरूरत तो कभी मनोरंजन के नाम पर इंसान ने हमेशा ही प्रकृति से मनमाना व्यवहार किया है। दूसरी प्रजातियों को हमेशा अपने से कमतर मानते हुए इंसान ने उनके साथ क्रूरतम बरताव किया है। 'द कोव' नामक डॉक्युमेंट्री हमें एक ऐसे ही जघन्य और क्रूर बरताव के बारे में बताती है।
दुनिया के एक धनी और विकसित देश जापान के होनशू द्वीप के ताइजी, वाकायामा में होने वाली एक सालाना रस्म 'ड्राइव हंटिंग' जिसमें उस इलाके की समुद्री खाड़ी में बनी कई गहरी खोह (कोव) में शरण लेने आई डॉल्फिनों व व्हेलों के अवैध शिकार के बारे में बताया गया है।
सर्वश्रेष्ठ वृत्तचित्र (फीचर) की श्रेणी में ऑस्कर पुरस्कार जीतने वाली फिल्म ‘द कोव’ में जापान में होने वाले डॉल्फिन के अवैध शिकार को दर्शाया गया है। सनडांस फेस्टिवल 2009 का अवार्ड जीत चुकी 'द कोव' को निर्देशित किया है नेशनल ज्योग्राफिक के फोटोग्राफर लुई सिहोयोस ने। प्रोड्यूसर हैं मार्क मोनेरो और म्यूजिक है जे. रॉल्फ का। लायंसगेट द्वारा डिस्ट्रीब्यूट की गई इस डॉक्युमेंटरी ने विश्व भर में लगभग 25 प्रतिष्ठित अवॉर्ड्स जीते हैं।
दरअसल इस डॉक्युमेंट्री का विचार दुनिया भर में डॉल्फिन संरक्षण के लिए मशहूर रिक ओ'बेरी से मिलने के बाद आया। 1960 में एक अमेरीकी डॉल्फिन ट्रेनर ओ'बेरी ने कुछ डॉल्फिनों को पकड़कर 'फ्लिपर' नामक हिट टीवी शो में करतब दिखाने के लिए प्रशिक्षित किया था। पॉप कल्चर से भरे इस शो ने जल्दी ही जोरदार शोहरत हासिल कर ली, लोग डॉल्फिन को बेहद पसंद करने लगे और मानो ओ'बेरी के लिए यह शो वरदान साबित हुआ।
पर यह वरदान ओ'बेरी के लिए तब एक अत्यंत पीड़ादायक लम्हा साबित हुआ जब उनकी एक डॉल्फिन ने उनकी बाँहों में दम तोड़ दिया। ओ'बेरी बताते है उन्हे ऐसा लगा कि इस डॉल्फिन ने मुक्त होने की उम्मीद में अपनी जान दे दी। इस घटना के बाद ओ'बेरी ने सभी डॉल्फिन को समुद्र में छोड़ दिया था और तब से वे डॉल्फिन संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं।
ताइजी का यह छोटा-सा शहर ऊपर से तो देखने में डॉल्फिन और व्हेल मछलियों के लिए स्वर्ग था, परंतु समुद्री खाड़ी में चेतावनी बोर्ड और जालियों से घिरे प्रतिबंधित क्षेत्र में बनी 'सीक्रेट केव्स' में एक भयानक राज छिपा हुआ था। ऐसा लगता था कि ताइजी के लोग डॉल्फिन पर आधारित इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री की आड़ में डॉल्फिन के माँस का करोड़ों डॉलर का अवैध व्यापार कर रहे थे।
इस डॉक्युमेंट्री को फिल्माने में लुई और उनकी टीम के फोटोग्राफ, डाईवर्स को बहुत मश्किलों का सामना करना पड़ा। उन्हें शहर के मेयर ने अप्रत्यक्ष धमकी दी, स्थानीय लोगों ने जरा भी सहयोग नहीं किया और अकसर उन पर स्थानीय पुलिस द्वारा कड़ी निगरानी रखी गई। यहाँ तक कि इसमें दिखाए गए अधिकतर दृश्य चोरी-छिपे फिल्माए गए हैं। इस काम में उनकी टीम को बहुत धैर्य और विशेष तकनीक इस्तेमाल में लाना पड़ी। अन्तत: लुई और उनकी टीम इस दुखद और खूनी सच को दुनिया के सामने ले ही आई।
इस फिल्म में जापान द्वारा कथित रूप से अवैधानिक तरीके से अंतरराष्ट्रीय व्हेलिंग कमीशन के वोट खरीदने की बात भी उठाई गई है। गौरतलब है कि अंटार्कटिक में मारी जाने वाली व्हेलों से भी ज्यादा संख्या में हर साल यहाँ डॉल्फिन का अवैध शिकार होता है। एक आँकड़े के अनुसार हर साल जापान में 27 हजार से ज्यादा डॉल्फिन और सूँस मारी जाती हैं।
जापान की एग्रीकल्चर, फॉरेस्ट और फिशरी मिनिस्टरी की हाल की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2007 में ताइजी में 1569 छोटी व्हेल तथा पूरे जापान में 13080 व्हेल ड्राइव हंटिंग के जरिए मारी गई हैं। इस रिपोर्ट को प्रोग्रेसिव (!) बताया गया है।
वैसे देखा जाए तो व्हेलिंग इंडस्ट्री 1979 में ही बंद हो चुकी है पर समुद्र में मछलियाँ पकड़ने वाले देशों को मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा जा सकता है - व्हेलिंग कंट्रीज और नॉन व्हेलिंग कंट्रीज और दोनों ही श्रेणी के देशों में इस मामले पर मतभेद बने रहते हैं।
पर्यावरण की नजर से देखा जाए तो व्हेल प्रजाति की मछलियाँ जिस प्लांकटन को खाती हैं उनमें प्रचुर मात्रा में प्रोटीन होता है और व्हेल के अपशिष्ट पर सैकड़ों प्रकार की मछलियाँ निर्भर रहती हैं। व्हेलों के खत्म होने से इनमें से अधिकतर प्रजातियाँ भी बच नहीं पाएँगी जिसमें से बहुत सी इंसान की भोजन श्रृंखला का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इसी तरह डॉल्फिन समुद्र की बहुत ही संवेदनशील प्राणी है। हाल की रिपोर्टों से पता चला है कि समुद्र में बढ़ते प्रदूषण से डॉल्फिन के माँस में पारे की अत्यधिक मात्रा पाई गई है।
इस डाक्युमेंट्री का सबसे उजला पक्ष है, वह यह है कि इसके प्रदर्शन के बाद ताइजी के स्कूलों में बच्चों दिए जाने वाले दोपहर के भोजन से डॉल्फिन का माँस गायब हो गया है। साथ ही दुनिया भर में डॉल्फिन को बचाने के लिए मुहिम और तेज हो गई। नि:संदेह लुई सिहोयोस इस फिल्म के लिए बधाई के पात्र हैं।
जिंदगी का मजा ले रही हैं कोल
रोहित बंछोर
पॉप स्टार चेरिल कोल अपने पति से अलग होने के बाद मुख्यधारा में लौट रही हैं और वे पूरी तरह जीवन का मजा उठाना चाहती हैं।
‘गर्ल्स अलॉउड’ की गायिका कोल अपने धोखेबाज फुटबालर पति एश्ले से अलग होने के बाद पहली बार एक कार्यक्रम पेश करने के लिए कोपनहेगन पहुँची।
कोल काफी खुश दिखाई दे रही थीं और ऐसा लग रहा था जैसे वे किसी बंधन से मुक्त हो गई हो। अब उन पर किसी के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं है और वे जिंदगी को एक बार फिर नए सिरे से शुरू करना चाहती हैं।
26 वर्षीय कोल ने कहा, ‘‘सब कुछ बेहतर है। मैं मजा ले रही हूँ।’’
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