कम दिनों में 'दिल' की सैर
नए साल को सेलिब्रेट करने के लिए दिसंबर अंत में सबसे ज्यादा पर्यटक गोवा जाते हैं। लेकिन बुकिंग की परेशानी है फिर जेब का भी सवाल है। अगर आप किफायती बजट और एक सप्ताह से भी कम समय में नए साल का जश्न शहर से कहीं दूर मनाना चाहते हैं तो आप हिन्दुस्तान के दिल के किसी भी कोने में जा सकते हैं। यानी पूरे मध्यप्रदेश में ही ऐसे बीस से भी ज्यादा पर्यटन स्थल हैं जहाँ से आप चंद दिनों में ही अपने शहर लौट सकते हैं और आपकी जेब भी ज्यादा हल्की नहीं होगी। ऐसे करीब 12 पर्यटन स्थलों की जानकारी हम दे रहे हैं-
अमरकंटकविंध्य और सतपुड़ा पर्वतमाला के केंद्र में स्थित अमरकंटक एक तीर्थ स्थल है और नर्मदा नदी की उद्गम स्थली है। इस पर्यटन स्थल की खासियत यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता है। जबलपुर से अमरकंटक की दूरी 228 किलोमीटर है। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन पेंड्रा रोड है जो 42 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सड़क मार्ग से अमरकंटक जबलपुर, बिलासपुर और रीवा से जुड़ा है।
देखने के लिए खास
नर्मदा उद्गम - यहाँ नर्मदा नदी के उद्गम स्थल पर मंदिर बना है। जगह प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है।
सोनमुडा - सोन नदी का उद्गम स्थल
भृगु कमंडल - यहाँ एक प्राकृतिक पुरातन कमंडल बना हुआ है जो हमेशा पानी से लबरेज रहता है।
धुनी पानी - यहाँ घने जंगल में आप जल प्रपात का मजा ले सकते हैं।
दुग्ध धारा - यहाँ पचास फुट की ऊँचाई से गिरने वाला प्रपात है।
कपिल धारा - वॉटरफॉल होने के कारण यह पिकनिक स्पॉट के रूप में प्रसिद्ध है।
माँ की बगिया - यह एक खूबसूरत बाग है जहाँ एक मंदिर भी है।
बाँधवगढ़ नेशनल पार्क
बाघों का गढ़ बाँधवगढ़ 448 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है। शहडोल जिले में स्थित इस राष्ट्रीय उद्यान में एक मुख्य पहाड़ है जो बाँधवगढ़ कहलाता है। 811 मीटर ऊँचे इस पहाड़ के पास छोटी-छोटी पहाड़ियाँ हैं। पार्क में साल और बंबू के वृक्ष प्राकृतिक सुंदरता को बढ़ाते हैं। बाँधवगढ़ से सबसे नजदीक विमानतल जबलपुर में है जो 164 किलोमीटर की दूरी पर है। रेल मार्ग से भी बाँधवगढ़ जबलपुर, कटनी और सतना से जुड़ा है। खजुराहो से बाँधवगढ़ के बीच 237 किलोमीटर की दूरी है। दोनों स्थानों के बीच केन नदी के कुछ हिस्सों को क्रोकोडाइल रिजर्व घोषित किया गया है।
देखने के लिए खास
किला - बाँधवगढ़ की पहाड़ी पर 2 हजार वर्ष पुराना किला बना है।
जंगल - बाँधवगढ़ का वन क्षेत्र फ्लोरा और फना की प्रजातियों से भरा हुआ है। जंगल में नीलगाय और चिंकारा सहित हर तरह के वन्यप्राणी और पेड़ हैं।
वन्यप्राणी - इस राष्ट्रीय उद्यान में पशुओं की 22 और पक्षियों की 250 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। हाथी पर सवार होकर या फिर वाहन में बैठकर इन वन्यप्राणियों को देखा जा सकता है।
भेड़ाघाट
नर्मदा नदी के दोनों तटों पर संगमरमर की सौ फुट तक ऊँची चट्टानें भेड़ाघाट की खासियत हैं। यह पर्यटन स्थल भी जबलपुर से महज 23 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जबलपुर से भेड़ाघाट के लिए बस, टेम्पो और टैक्सी भी उपलब्ध रहती है।
देखने के लिए खास
संगरमर की चट्टानें - चाँद की रोशनी में भेड़ाघाट की सैर एक अलग तरह का अनुभव रहता है।
धुआँधार वॉटर फॉल - भेड़ाघाट के पास नर्मदा का पानी एक बड़े झरने के रूप में गिरता है। यह स्पॉट धुआँधार फॉल्स कहलाता है।
चौंसठ योगिनी मंदिर - भेड़ाघाट के पास ही यह मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है। दसवीं शताब्दी में स्थापित हुए दुर्गा के इस मंदिर से नर्मदा दिखाई देती है।
भीमबेटका
भोपाल से 46 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस पर्यटन स्थल की खासियत चट्टानों पर हजारों वर्ष पूर्व बनी चित्रकारी है। इस पर्यटन स्थल पर करीब 500 गुफाओं में चित्रकारी की गई है। यहाँ प्राकृतिक लाल और सफेद रंगों से वन्यप्राणियों के शिकार के दृश्यों के अलावा घोड़े, हाथी, बाघ आदि के चित्र उकेरे गए हैं। भोपाल नजदीक होने के कारण भीमबेटका में पर्यटकों के ठहरने की व्यवस्था नहीं है।
चित्रकूटचित्रकूट का पौराणिक महत्व इसलिए है, क्योंकि यहाँ भगवान राम ने अपने वनवास के 14 में से 11 वर्ष गुजारे थे। चित्रकूट से सबसे नजदीकी विमानतल खजुराहो में स्थित है। यह रेल और सड़क मार्ग से झाँसी से जुड़ा है।
देखने के लिए खास
रामघाट - मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित इस घाट पर धार्मिक गतिविधियाँ ज्यादा होती हैं।
कामदगिरी - यहाँ भरत मिलाप मंदिर है, जिसका रामायण में उल्लेख होने के कारण पौराणिक महत्व है।
सती अनुसुया - हिन्दु धर्माववलंबियों के लिए इस स्थल का महत्व इसलिए है, क्योंकि यह माना जाता है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश का यहाँ अत्री मुनी और उनकी पत्नि अनुसुया के तीन पुत्रों के रूप में पुनर्जन्म हुआ था।
स्फटिक शिला - यहाँ चट्टानों पर श्रीराम के चरणों के निशान देखे जा सकते हैं।
गुप्त गोदावरी - चित्रकूट से 18 किलोमीटर दूर स्थित इस स्थल में एक छोटी गुफा के बीच नदी के बहाव को देखा जा सकता है।
खजुराहो
मंदिरों की खूबसूरत स्थापत्य कला का एक नमूना खजुराहो के मंदिरों में देखा जा सकता है। यहाँ चंदेला राजपूतों के साम्राज्य में एक हजार वर्ष पूर्व 85 मंदिर बनाए गए थे। इनमें से वर्तमान में 22 मंदिर ही अच्छी स्थिति में हैं। हवाई मार्ग से खजुराहो दिल्ली और आगरा से जुड़ा है। रेल और सड़क मार्ग से यह महोबा, हरबालपुर, सतना और भोपाल से जुड़ा है।
देखने के लिए खास
चौंसठ योगिनी, देवी जगदंबे, चित्रगुप्त, विश्वनाथ, नंदी, लक्ष्मण, वराह, मतंगेश्वर, पार्श्वनाथ, आदिनाथ, ब्रह्म, चतुर्भुज आदि मंदिर खजुराहो के आसपास स्थित हैं। सभी मंदिर शताब्दियों पुराने हैं।
कान्हा किसली
कान्हा टाइगर रिजर्व 940 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला राष्ट्रीय उद्यान है। इसे देखने के लिए पर्यटक जीप किराए पर ले सकते हैं। टाइगर ट्रेकिंग के लिए हाथी पर सवार होकर भी उद्यान की सैर की जा सकती है। राष्ट्रीय उद्यान के भीतर दो स्थानों खतिया और मुक्की से जाया जा सकता है। कान्हा जबलपुर, बिलासपुर और बालाघाट से सड़क मार्ग के जरिए जुड़ा है। नजदीकी विमानतल और रेलवे स्टेशन जबलपुर है।
देखने के लिए खास
कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में वन्यप्राणियों की 22 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। पक्षियों की यहाँ 200 प्रजातियाँ हैं।
बामनी दादर - यह एक सनसेट प्वाइंट है। यहाँ से सांभर और हिरण जैसे वन्यप्राणियों को भी देखा जा सकता है। यहाँ लोमड़ी और चिंकारा जैसे वन्यप्राणी काफी कम देखे जाते हैं।
महेश्वरनगर महिष्मती के रूप में महेश्वर का रामायण और महाभारत में भी उल्लेख है। देवी अहिल्याबाई होलकर के कालखंड में बनाए गए यहाँ के घाट सुंदर हैं और इनका प्रतिबिंब नदी में और खूबसूरत दिखाई देता है। महेश्वर इंदौर से ही सबसे नजदीक है। इंदौर विमानतल महेश्वर से 91 किलोमीटर की दूरी पर है।
देखने के लिए खास
राजगद्दी और रजवाड़ा - महेश्वर किले के अंदर रानी अहिल्याबाई की राजगद्दी पर बैठी पर एक प्रतिमा रखी गई है।
मंदिर - महेश्वर में घाट के आसपास कालेश्वर, राजराजेश्वर, विठ्ठलेश्वर और अहिलेश्वर मंदिर हैं।
ओंकारेश्वरओंकारेश्वर भी नर्मदा नदी के तट पर स्थित एक कस्बा है। ज्योतिर्लिंग होने के कारण इस स्थल का धार्मिक महत्व है। इंदौर या महेश्वर से ओंकारेश्वर सड़क मार्ग से जुड़ा है। इंदौर से ओंकारेश्वर के बीच की दूरी 77 किलोमीटर है।
देखने के लिए खास
ओंकारेश्वर के ज्योतिर्लिंग मंदिर के अलावा सिद्धनाथ मंदिर और 24 अवतार मंदिर भी देखने लायक हैं।
पचमढ़ी-
प्राकृतिक सुंदरता के कारण हिलस्टेशन पचम़ढ़ी एक मशहूर पर्यटन स्थल के रूप में जाना जाता है। पचमड़ी भोपाल और पिपरिया से सड़क मार्ग से जुड़ा है। नजदीकी रेलवे स्टेशन पिपरिया है।
देखने के लिए खास
प्रियदर्शिनी - यह वह स्थल है जहाँ से वर्ष 1857 में पचमढ़ी की खोज की गई थी।
जमुना प्रपात - यह वह वॉटर फॉल जो पचमड़ी की जलापूर्ति करता है।
अप्सरा विहार - यह एक सुरक्षित पिकनिक स्पॉट है जहाँ जलप्रपात भी है।
रजत प्रपात, आयरेन पूल, जलावतरण, सुंदर कुंड, जटाशंकर मंदिर, धूपगढ़, पांडव गुफाएँ भी पर्यटन स्थल हैं।
पेंचटाइगर रिजर्व और मोगली सेंचुरी के कारण पेंच राष्ट्रीय उद्यान जाना जाता है। यह 757 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। यहाँ 1200 तरह के पेड़-पौधों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। 285 किस्म के पक्षी यहाँ चहचहाते हैं, इसलिए यह उद्यान बर्ड वॉचिंग के लिए एक उपयुक्त स्थान है। पेंच जबलपुर से सड़क मार्ग के जरिए जुड़ा है।
मांडू
परमार शासकों द्वारा बनाए गए इस नगर में जहाज और हिंडोला महल खास हैं। यहाँ के महलों की स्थापत्य कला देखने लायक है। मांडू इंदौर से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सड़क मार्ग से यह धार से भी जुड़ा हुआ है।
देखने के लिए खास
दरवाजे - मांडू में दाखिल होने के लिए 12 दरवाजे हैं। मुख्य रास्ता दिल्ली दरवाजा कहलाता है। दूसरे दरवाजे रामगोपाल दरवाजा, जहांगीर दरवाजा और तारापुर दरवाजा कहलाते हैं।
जहाज महल - जहाजनुमा आकार में इस महल को दो मानवनिर्मित तालाबों के बीच बनाया गया था।
हिंडोला महल - टेड़ी दीवारों के कारण इस महल को हिंडोला महल कहा जाता है।
होशंग शाह की मस्जिद, जामी मस्जिद, नहर झरोखा, बाज बहादुर महल, रानी रूपमति महल और नीलकंठ महल भी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
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