गुरुवार, 25 मार्च 2010

फर्क

स्वतंत्रता और स्वच्छंदता में फर्क कीजिए!
विवाह पूर्व यौन संबंधों को जायज करार देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले में आधुनिकतावादी अपनी 'जीत' देख रहे हैं। उनकी नजर में इसके आलोचक पुरुष प्रधान मानसिकता और अहंकार से ग्रसित हैं। जाहिर है, बुद्धिजीवियों के हाथ महिलाओं के हक में पुरुषों को कोसने का नया मौका लग गया है।
सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट की दलील को हथियार बनाकर पुरुषों पर प्रहार करने वालों को उसकी तहरीर पर गौर फरमाना चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने अपनी टिप्पणी महज दक्षिण भारतीय अभिनेत्री खुशबू के उस बयान के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दी है, जिसमें उन्होंने विवाह पूर्व यौन संबंध बनाने की बात कही थी। शीर्ष अदालत ने इसमें केवल इतना कहा है कि ऐसा करना कानूनन कोई अपराध नहीं है।
इसका यह मतलब कतई नहीं है कि इसे सामाजिक रूप से भी स्वीकार किया जाना चाहिए। इसे सच और झूठ के उदाहरण से समझते हैं। झूठ बोलना कानूनन कोई अपराध नहीं है, लेकिन हमारे शास्त्रों में झूठ बोलने को भी गलत माना गया है। इसका अर्थ हुआ जो चीज वैधानिक भले ही हो, लेकिन व्यवहार में उसे लाया जाय यह बिल्कुल भी जरूरी नहीं।
जो लोग इस फैसले की आड़ में लिव इन रिलेशनशिप और विवाह पूर्व सेक्स को सही ठहरा रहे हैं, वे असल में स्वच्छंदता और स्वतंत्रता के बीच की रेखाGet Fabulous Photos of Rekha मिटा देना चाहते हैं। वे हर उस आचरण को बंदिश मानते हैं, जिसमें किसी अनुशासन, संयम या बंधन का प्रावधान हो। गोया कि इनसान के रूप में मानव प्राणियों की तरह जीवन जीना चाहता है।
...तभी तो महिलाओं को गरिमा और मर्यादा में रहने की सीख देने वाली हर बात 'नादानों' को समूचे वामा समुदाय पर अत्याचार जान पड़ती है। उनके लिए शादी, ब्याह, समाज, सभ्यता और शुचिता जैसे शब्द केवल महिलाओं के पैरों में बेड़ियाँ डालने के लिए ही बने हैं।
वे तो सिर्फ इतना जानते हैं कि पुरुष महिला का दुश्मन है। इसलिए वे इसी कोशिश में रहते हैं कि जैसे भी हो, महिलाओं से जुड़े सभी मसलों में 'अधिकार', 'समानता', 'परिवर्तन प्रकृति का नियम' और इन जैसे कुछ और लच्छेदार शब्द जोड़ कर बुराई को भी अच्छाई का जामा पहनाकर पेश किया जाए।
कुछ लोगों का मानना है जब पुरुष के लिए वेश्यालय हो सकते हैं, वह एक से अधिक महिलाओं से संबंध रख सकता है तो महिलाओं के मामले में इतनी पाबंदियाँ क्यों? महिला हितों के नाम पर 'पूरब' की थाती पश्चिम को परोसने वाले ये बुद्धिजीवी शायद यह नहीं जानते कि वेश्यावृत्ति आज भी हिंदुस्तान में हेय दृष्टि से देखी जाती है, इसीलिए सरकार ने उसे कानूनी मान्यता नहीं दी है।
यहाँ तक कि दुनिया के तमाम देश जहाँ समलैंगिक शादी के सर्टिफिकेट जारी कर रहे हैं, वहाँ भारत में इसे उच्च न्यायालय द्वारा गैरआपराधिक कृत्य कहने के बावजूद सरकार कानून बनाने में हिचपिचा रही है। इसके समर्थन में खड़े होने वाले इससे अनिभज्ञ हैं कि क्यों संसद इसे लेकर मौन है।
जाहिर है, सरकार भी इस मुद्दे की संवेदनशीलता और गुण-अवगुण से भलीभाँति परिचित है, वरना वह सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखने में इतनी सावधानी नहीं बरतती।
वैसे भी वेश्यावृत्ति में प्रवृत्त होने वाली हर महिला के पीछे मजबूरी का अंधेरा होता है। इसके चलते ही वह 'नरक' को अपनाती है। कोई भी महिला शौक से यौनकर्मी नहीं बनती। ऐसी महिलाओं पर गैरसामाजिक संगठनों की आए दिन जारी होती रिपोर्टों से इस सच तक पहुँचा जा सकता है।
हाँ, यह सही है कि कानून के नाम पर पुलिस और दूसरे लोग यौनकर्मियों का शोषण करते हैं, लेकिन इसके लिए उनका पुनर्वास ही बेहतर विकल्प है। कानूनी मान्यता देने से तो महिलाओं के शोषण में इजाफा ही होगा। इससे किसी भी प्रकार से महिलाओं का भला होने वाला नहीं है।
समाज में अगर विवाह पूर्व सेक्स स्वीकार कर लिया गया तो इसके नतीजे क्या होंगे, इसका अंदाजा इसके पैरोकारों को रत्तीभर भी नहीं है। क्या उन्हें यह इल्म है कि ऐसा हुआ तो विवाह संस्था, जिस पर भारतीय समाज का तानाबाना टिका है, ध्वस्त हो जाएगी। अगर सभी स्वच्छंद रहेंगे तो परिवार जैसी जिम्मेदारी कौन उठाएगा?
क्या एक पिता अपनी बेटी के लिए अच्छा वर तलाश पाएगा? क्या एक माँ अपने बेटे के लिए अच्छी बहू ढूँढ पाएगी? क्या तब भी हम अपनी गौरवशाली परंपरा और संस्कृति का यशोगान कर पाएँगे? क्या भारत पश्चिम की नजर में उतना ही सम्माननीय रह पाएगा, जितना आज वह है?
बहरहाल, विवाह पूर्व यौन संबंध की हिमायत करने वालों को इसकी आड़ में पुरुषों की आलोचना से बाज आना चाहिए। उन्हें यह मानना चाहिए कि यह किसी भी व्यक्ति का व्यक्तिगत फैसला है। चाहे वह महिला हो या पुरुष। आधुनिकता और फैशन के नाम पर बदी को सरे आम सर उठाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। कभी भी नहीं...।

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