ज्यादा स्वस्थ पुरुष को चाहिए ज्यादा सेक्स
हट्टे-कट्टे मर्दों की तरफ हसीनाएँ ऐसे ही नहीं खिंची जातीं। वैज्ञानिकों का कहना है कि ज्यादा स्वस्थ मर्दों को ज्यादा काल तक ज्यादा सेक्स की जरूरत होती है। यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के अनुसंधानकर्ताओं के एक अध्ययन में यह बात सामने आई।
अध्ययन में कहा गया है कि बहुत अच्छी या शानदार सेहत वाले मर्द और औरत औसत या खराब सेहत वाले मर्द और औरतों के मुकाबले यौनिक रूप से ज्यादा सक्रिय हो सकते हैं।
अध्ययन में कहा गया है कि अच्छी सेहत वाले नर-नारी खराब सेहत वाले नर-नारी के मुकाबले सेक्स में 5 से 8 गुणा ज्यादा रुचि दिखा सकते हैं।
ऐसोसिएट प्रोफेसर स्टेसी टेस्लर लिंडाउ और रिसर्च असिस्टेंट नतालिया गावरीलोवा ने 25 से 85 साल के छह हजार से ज्यादा डेटा का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला।
अध्ययन में कहा गया है कि अधेड़ उम्र में और बाद के जीवन में यौनिक रूप से सक्रिय, यौन जीवन की गुणवत्ता और सेक्स में रुचि स्वास्थ्य से सकारात्मक रूप से जुड़े हैं।
पूज्यंते नारी, नई क्रांति
विश्व के लोकतांत्रिक इतिहास में मंगलवार को एक नया अध्याय जुड़ गया। हमारे गणतंत्र के 60 वर्ष पूरे होने के बाद देर से ही सही भारतीय संसद के उच्च सदन राज्यसभा ने भारी बहुमत से लोकसभा व विधान-सभाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने संबंधी संविधान संशोधन विधेयक को पारित कर दिया।
इस ऐतिहासिक पुनीत अवसर पर कुछ सांसदों द्वारा किए गए शर्मनाक अशोभनीय व्यवहार, नारेबाजी तथा राज्यसभा के सुरक्षा गार्ड के साथ भी हाथापाई की घटना से संसदीय घाव के निशान अवश्य बने। फिर भी देवी, माँ, बहन, भार्या, बेटी को सम्मान देने वाली भारतीय संस्कृति के पोषक भारतीयों के लिए आधुनिक लोकतंत्र का यह एक बड़ा उपहार है।
देश की पंचायतों और स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने से कई राज्यों में महिला सशक्तीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई थी।
राजीव गाँधी ने सबसे पहले लोकतंत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की पहल की। इस तरह 1986 से 2009 तक विभिन्न सरकारों ने महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए संसद में प्रस्ताव-विधेयक लाने की कोशिश की।
इंद्रकुमार गुजराल और अटल बिहारी वाजपेयी के सफल सुदृढ़ नेतृत्व के बावजूद राजनीतिक असहमतियों तथा दबाव के कारण विधेयक कभी पारित नहीं हुए। अब चौथी बार समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल, बहुजन समाज पार्टी के कड़े विरोध का एक बड़ा कारण क्षेत्रीय जातिगत समीकरण तथा राज्य विधानसभा के आगामी चुनाव रहे हैं।
यही नहीं इन दलों के प्रमुख नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के गंभीर मामलों को दबाने की वैयक्तिक राजनीति भी रही। इसी तरह ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने केंद्र में सत्ता की भागीदारी करते हुए पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यक समुदाय को भ्रमजाल में रखने के लिए अपनी असहमति बनाए रखी।
भारतीय जनता पार्टी, जनता दल (यूनाइटेड) तथा कांग्रेस में भी कुछ नेता महिला आरक्षण विधेयक पर थोड़ी मतभिन्नता रखते थे। लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने सरकार के बहुमत को दाँव पर लगाने का खतरा उठाते हुए अपनी सरकार और प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह को इस बार आगे बढ़ते रहने का फैसला-सा सुना दिया।
इस दृष्टि से यह इंदिरा गाँधी शैली की निर्णायक लड़ाई रही है। इस विधेयक को लोकसभा में भी पारित करवाने में थोड़ी कठिनाई आएगी, लेकिन आसार स्पष्ट हैं कि इस नई महिला क्रांति को रोका नहीं जा सकेगा।
एक तरह से सोनिया गाँधी ने राजीव गाँधी के बड़े सपने को साकार करने के लिए बड़ी चुनौती स्वीकार की। यदि इस राजनीतिक संघर्ष में उनकी सरकार अल्पमत में आकर गिर जाए अथवा मध्यावधि चुनाव की नौबत आ जाए, तो वे नया इतिहास ही बनाएँगी।
आने वाले 15 वर्षों में पंचायत से राष्ट्रीय स्तर तक जितनी महिलाएँ सत्ता व्यवस्था में भागीदार होंगी, उतनी दुनिया के किसी हिस्से में नहीं होंगी और एक तरह से उनकी संख्या योरप तथा अमेरिका की चुनिंदा प्रतिनिधियों से भी अधिक होगी। 'नारी पूज्यंते' के मंत्र की सार्थकता भारतीय समाज और लोकतंत्र के लिए वरदान साबित होगी।
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