मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

डोर रिश्तों की

रिश्ते महकाती है भावनाएँ
सुशीला परगनिहा
कई बार मन में ख्याल आता है कि प्रेम का मधुर जीवन जीने वाले दंपति क्या उन दंपतियों से अलग होते हैं, जो प्रेम का सुख नहीं भोग पाते हैं? फिर दिल से आवाज आती है हाँ, बरसों तक वैवाहिक जीवन जीने के बाद भी जो पति पत्नी एक-दूसरे से प्यार करते हैं, वे वस्तुतः कभी भी यह नहीं सोचकर चलते कि उनके संबंध तो बने रहने के लिए ही हैं। इसके बारे में अब क्या सोचना! बल्कि वे अलग-अलग रूपों में एक-दूसरे के प्रति हर दिन अपना स्नेह और प्यार जताते रहते हैं।
कहते हैं, मुझे तुमसे प्यार है
वे अपने प्रेम को शब्दों से भी जाहिर करते रहते हैं। इस बहस में नहीं पड़ते और यह नहीं कहते यदि मुझे तुम से प्यार नहीं होता तो मैं तुमसे विवाह क्यों करता? ये बच्चे, बच्चे भी तो हमारे है ना! फिर! बल्कि वे इस चीज को समझते हैं कि प्यार के दो बोल बोलना अपने आप में सुख जैसा है। बोलने वाले और सुनने वाले दोनों के लिए...।

देह भी होती है माध्यम
प्रेम पगे दंपति प्रायः एक-दूसरे से स्पर्श के लिए सचेष्ट रहते हैं। वे कभी हाथ पकड़ लेंगे, कभी आलिंगन कर लेंगे। वे स्पर्श की भाषा को कभी नहीं भूलते। नवजात शिशु को प्रेम का प्रथम अनुभव स्पर्श से ही होता है और इस मामले में हम अभी तक उस वय से अलग नहीं हो पाए हैं। वे यह जानते और मानते हैं कि प्रगाढ़ आलिंगन भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना बातें करना अथवा समागम।

तारीफ व धन्यवाद
सुखी दंपति एक-दूसरे के गुणों व खूबियों की परख बखूबी करते हैं और उनकी सराहना करने से नहीं चूकते। मेरी तो सबसे अच्छी श्रोता अथवा दर्शक मेरी पत्नी है। मैंने चाहे जैसे भी कपड़ों का चयन किया हो, किसी पार्टी में कोई मीठी-सी चुटकी ली हो या कोई मजेदार जोक सुनाया हो उसकी नजरों से कुछ भी तो नहीं चूकता।

यह कहना है एक पति का तो उनकी पत्नी भी तुरंत बोल पड़ी, मैं घर में जैसा भी खाना बनाती हूँ, वे चाव से खाते हैं व तारीफ करते हैं। फिर मैं भी अपनी चाहत और सराहना को शब्द देने से नहीं चूकती। एक बात बताऊँ, प्यार पाना संसार की बड़ी चीज तो है, पर दूसरे नंबर की! उससे बड़ी बात है किसी को प्यार करना।

दुराव-छुपाव नहीं
सुखी दंपति एक-दूसरे के साझीदार होते हैं। एक-दूसरे से वे कुछ भी नहीं छिपाते। वे भावों, विचारों, आशाओं और आकांक्षाओं के भी उतने ही भागीदार होते हैं जितना हानि, क्रोध, तड़प तथा लज्जाजनक एवं दर्दभरी यादों और अनुभूतियों के। हाँ, ऐसा भी होता है कि कभी-कभी पति-पत्नी में से कोई एक अपने अंतरंग विचारों और गूढ़ अनुभूतियों की अभिव्यक्ति नहीं कर पाता, पर कम बोल पाने वाला व्यक्ति भी अपने जीवनसाथी की परेशानी किसी और की अपेक्षा ज्यादा अच्छे से समझता है।

बवाल न मचाए आपकी जुबान
अरुण बंछोर
बोलने से पहले न तौलने की आदत कई बार बोलने वाले को काफी हास्यास्पद स्थिति में डाल देती है, तो कई बार बेवजह का बवाल भी पैदा कर देती है। इसीलिए बोलने से पहले सोचने का अक्सर सुझाव दिया जाता है। कई बार बोलने वाले का मंतव्य बड़ा सीधा होता है, लेकिन उसका असर उल्टा पड़ जाता है।

जैसा मेरी चचेरी बहन दिव्या के साथ हुआ। दिव्या की सास की मृत्यु हो गई सो तेरहवीं का कार्यक्रम था। काफी लोग आए हुए थे। सभी दुःखी-गमगीन बैठे हुए थे। अंत में कुछ इधर-उधर की बातें हुईं और सब उठकर जाने लगे तो एकाएक दिव्या बोली- 'इस जगह को अच्छे से देख लीजिएगा जिससे फिर कभी दोबारा आने में परेशानी न आए। काफी बड़ा हॉल है। सोच रही हूँ अपनी बेटी की शादी में लेडीज संगीत का कार्यक्रम इसी हॉल में कर दूँ अच्छा रहेगा।'

दिव्या का ऐसे माहौल में यह सब कहना सबको ही चौंका गया। खुद दिव्या को भी कहने के बाद अहसास हुआ कि वह गलत कह गई। शायद इस समय यह सब नहीं कहना चाहिए था, पर अब क्या किया जा सकता था? दिव्या की तरह ही कई लोग हैं, जो बिना सोचे-समझे कहीं भी कुछ भी बोल देते हैं। उनके दिल में कुछ गलत न होते हुए भी अन्य लोग उनके प्रति गलत धारणा बना लेते हैं और उनकी छवि गड़बड़ा जाती है। मेरी सहेली स्मिता की भी यही आदत है कि जो भी मन में आता है बिना देखे-भाले, जाने-समझे कह देती है।

एक बार ऐसे ही वह अपनी सास से बोली, 'मम्मी आप हीरे का बढ़िया-सा सेट इस दिवाली ले ही लो, आपके साथ-साथ मेरा भी फायदा हो जाएगा। आपके लिए तो पैसे खर्च करने से राहुल मना नहीं करेंगे, जो भी आप पसंद करेंगी दिला ही देंगे। थोड़े दिन आप पहनना फिर आपके बाद तो मुझे पहनना है ही!' बस, यही बात को उनको इतनी चुभ गई कि आज तक उनके मन में स्मिता को लेकर एक खराश बनी हुई है।

कई बार हमारे द्वारा बिना सूझे-बूझे आगे-पीछे जाने बिना ऐसा बोल दिया जाता है जिससे स्वयं की स्थिति खराब होने से कम पढ़े-लिखे, कम अक्ल और बेवकूफ होने का लेबल तो लगता ही है, साथ ही जरा-सी गलत बात संबंधों में खटास पैदा कर देती है। इसका यह मतलब कतई नहीं है कि आप बोलें ही नहीं। बोलें लेकिन कब, कहाँ, कैसे और क्या बोलना है इस पर ध्यान दें।

और हाँ, यदि कभी आपके साथ भी ऐसा हो जाए कि दूसरे आपकी कही बातों को गलत अंदाज में सोचें तो गलतफहमी से बचने के लिए जल्दी ही सामने वाले से स्पष्ट कर दें कि इसके पीछे ऐसा कोई मतलब नहीं था, न ही किसी तरह का कोई सार या तात्पर्य है जिससे किसी के दिल को ठेस पहुँचे या स्वयं मुझे ही भावनाहीन माना जाए, यकीन मानिए! यह सोचना कि मैंने तो ऐसा कुछ नहीं कह दिया कि दूसरे को बुरा लग जाए और फिर अहंकारवश अथवा ईगो के वशीभूत हो नजरें फेरकर चल देने से बहुत अच्छा यही रहेगा कि आप अपनी सफाई में जरूर कुछ कहें। इससे जहाँ एक ओर रिश्तों में मिठास बनी रहेगी वहीं दूसरी ओर आपकी साफगोई व स्पष्टवादिता भी औरों की नजरों में आपको प्रशंसा का पात्र बना देगी।

दो अक्षर और जादू सा असर
अरुण बंछोर
सॉरी वास्तव में बहुत ही प्यारा शब्द है। हर रिश्ते में कभी न कभी मतभेद हो ही जाते हैं। बेहतर यह है कि रिश्तों में अहंकार हावी न होने दें। विवादों या लड़ाई-झगड़ से दूर रहने का एक आसान उपाय है अहंकार छोड़ देना और सॉरी बोलना सीख लेना। हालांकि सॉरी बोलना भी एक कला है जो हर किसी को नहीं आती। यह भी एक हुनर की तरह ही है जिसे आप जितना जल्दी हो सके, सीख लें। आपके दोस्तों, पति-पत्नी, बॉस, माता-पिता आदि से अपने संबंधों को बनाए रखने के लिए यह बेहद जरूरी है।

अपनी ओर से विवादों को बढ़ने का मौका कभी नहीं देना चाहिए। रिश्ते में नाराजगी आने के बाद जीवन नरक की तरह लगने लगता है। कई बार हालात इस तरह के बन जाते हैं कि हम समझ नहीं पाते और संबंधों में कटुता बढ़ती चली जाती है लेकिन सॉरी बोलने से इसका समाधान किया जा सकता है।

लेकिन हमें पता ही नहीं होता कि सॉरी बोलें तो कैसे? सॉरी बोलने का सही तरीका आपके जीवन में आने वाली अनेक कठिनाइयों को दूर कर सकता है जिससे काफी हद तक रिश्तों में आई कड़वाहट कम हो सकती है। हम सॉरी बोलने से केवल इसलिए कतराते हैं कि कहीं हम गलत साबित न हो जाएं। लेकिन ऐसा नहीं है। जब हम सॉरी बोलते हैं तो वास्तव में हम महानता की और बढ़ते हैं।

हमें सॉरी इस तरह से कहनी चाहिए जिससे हमारे जीवनसाथी, दोस्त या रिश्तेदार को ऐसा लगे कि हम अपने किए पर वास्तव में शर्मिंदा हैं और हमें अपनी गलती का अहसास हो गया है। हम कई बार सॉरी बोलने में काफी असहजता महसूस करते हैं। लेकिन सॉरी बोलने से आत्मा तो पवित्र होती ही है, साथ ही मन की पीड़ा भी दूर हो जाती है।

आजकल के युवाओं में खासतौर से यह देखने को मिल रहा है कि वह अपनी गलती के लिए झट से सॉरी बोल देते हैं। जिससे उनके जीवन में अनेक खास पल पैदा हो जाते हैं। सॉरी बोलने के साथ आप अपने साथी या दोस्त को फूल या चॉकलेट देकर खुश कर सकते हैं।

देखने में आया है कि दोस्ती करने या विवादों का निपटारा करने के लिए कॉफी हाउस या रेस्तरां युवाओं की पहली पंसद बन गए हैं। अगर आपके लिए भी संबंधों से बढ़कर कुछ नहीं है तो सॉरी कहने में बिल्कुल भी देर न करें, क्योंकि रिश्तों से बढ़कर कुछ भी नहीं है। इंसान संबंधों को चलाने वाला प्राणी है।

जब संबंध ही न रहेंगे तो वह भी जानवर की ही जिंदगी जिएगा। इसलिए गलती किसी ने भी की हो, वजह चाहे जो भी हो, बीती बातों को भूलकर नई शुरुआत करनी चाहिए। यह शुरुआत करने के लिए सॉरी अपने आप में किसी जादू से कम नहीं है।

कोई टिप्पणी नहीं: