सोमवार, 26 अप्रैल 2010

साहित्यिक कृतियां

खुशी
उसकी हालत बहुत गंभीर थी। सीने में बहुत तेज दर्द था। आई.सी.यू. में भर्ती हुये उसे पांच दिन हो गये, किन्तु हालत में कोई सुधार नहीं आया। पत्नी, भाई, बहन, बेटा सहित पूरा परिवार गुमसुम था। छठे दिन उसकी हालत और बिगडने लगी। उस समय उसकी पत्नी वहां नहीं थी। कुछ देर बाद जब वह अस्पताल आई तो उसके चेहरे पर एक मुस्कान थी। गेट पर अपने बेटे को देखकर वह हंसी, बेटा राहुल, आज मैं बहुत खुश हूं। बेटे ने खुशी का कारण पूछा तो उसने बताया- अपने पडोसी बिरजू का लडका इस बार भी पी.सी.एस. के साक्षात्कार में फेल हो गया।

चिडि़यां
वे जंगल में चिडियां मारने निकले थे। आसमान तकते-तकते उनकी आंखें थक गई मगर शिकार के लायक चिडिया कहीं दिख नहीं रही थी। उन्होंने अपनी बंदूकें नीची कर लीं। वे भूखे-प्यासे भी थे। एक ने कहा, यार, जरा देखो, आस-पास कुछ खाने-पीने को मिलेगा? दूसरा तलाश में निकल पडा। वहीं से चिल्लाया, बॉस, मिल गई! पहले ने पूछा, क्या? दूसरे ने हर्षोल्लास में कहा, चिडिया!!

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