पिता का उपहार है कन्या रत्न
माज में कई भ्रांतियाँ इतनी गहरी जड़ें जमा लेती हैं कि वे मान्यताओं का विशालकाय बरगद नजर आती हैं। उन्हीं में से एक यह धारणा कि अगर लड़का नहीं पैदा हुआ तो वंश समाप्त हो जाएगा।
दरअसल वंश क्या है? अपना अंश। पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे जीवंत रहता आनुवांशिक तंत्र। लड़का या लड़की दोनों ही माता-पिता के वैसे ही प्रतिनिधि हैं जैसे सिक्के के दो पहलू। चिट या पट। सिक्का उछालने पर हम ऐसा तो नहीं मानते कि चिट आए तो सही और पट आए तो गलत। या कि चिट आए तो सिक्का खरा और पट आए तो खोटा। हम सब इस बात को अच्छे से झते हैं कि उछाले हुए सिक्के के गिरने पर दो ही बातें हो सकती हैं। और वे दोनों हैं बराबर बराबर। पचास-पचास प्रतिशत। या तो हेड या टेल।
जितनी सरल है उपरोक्त संभावना उतनी ही सरल है यह बात भी कि होने वाली संतान लड़का होगी या लड़की। यह संभावना क्यों नहीं समझ में आती? क्यों कहा जाता है कि वंश सिर्फ लड़कों से चलता है? इस धारणा को कौन बल देता है?
अब समय आ गया है कि इस तरह की घातक मान्यताओं पर फिर से विचार किया जाए। अब जबकि देश में शिक्षा का प्रसार तेजी से हो रहा है। विशेषकर लड़कियाँ लड़कों से बेहतर परिणामों के साथ विद्यालयीन शिक्षा में बाजी मार रही हैं। ऐसी स्थिति में इस बात को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाना चाहिए कि वंश की बरकरारी बेटा और बेटी दोनों से एक समान होती है।
NDआज विज्ञान द्वारा हमें भली भाँति ज्ञात है कि प्राकृतिक रूप से हर माँ अपनी हर संतान को समभाव से एक्स गुणसूत्र ही देती है। या कहें दे सकती है। दूसरी तरफ संयोगवश प्राकृतिक रूप से पिता से प्राप्त एक्स या वाई गुणसूत्र (क्रोमोसोम) के कारण ही संतान लड़का या लड़की होती है। यही प्रकृति की अनुपम व्यवस्था है। इस व्यवस्था के तहत यदि संतान में एक्स, एक्स गुणसूत्र आ गए तो कन्या रत्न और यदि एक्स, वाई आ गए तो कुमार रत्न!!
ऐसे में यह मानना कितना हास्यास्पद है कि यदि माता से प्राप्त एक्स और पिता से प्राप्त वाई गुणसूत्रों के मिलान से पुत्र पैदा हुआ तो वंश सतत माना जाएगा। और यदि माता से प्राप्त एक्स और पिता से प्राप्त एक्स गुणसूत्रों के मिलान से पुत्री पैदा हो गई तो वंश समाप्त माना जाएगा! भई क्यों? अरे! इस तरह तो हम पिता द्वारा प्रदत्त एक्स गुणसूत्र का ही अपमान करते हैं। प्रकारांतर से यह सरासर पिता का ही अपमान करना हुआ।
संतान का बेटा या बेटी होना संतान को पिता का प्राकृतिक, वंशानुगत उपहार है। उपहार जो संयोग से देता पिता है। निर्देशित ईश्वर करता है। बेटा या बेटी दोनों वंश को आगे बढ़ाते हैं। दोनों ही माता-पिता के बराबर के अंश होते हैं।
जब सच्चाई इतनी सहज, सरल और निर्मल प्रांकुर है तो फिर भ्रांति क्यों कर बरगद बन गई? कदाचित यह सामाजिक व्यवस्था से कालांतर में उपजा पार्श्व प्रभाव है। साइड इफैक्ट। चूँकि लड़की को दूसरे घर ब्याह दिया जाता है। कन्यादान कहा जाता है। इसलिए यह माना जाने लगा कि कन्या विदा हुई तो वंश से संबंध खत्म। वंश समाप्त। वास्तव में यह एक सुंदर सामाजिक व्यवस्था की स्थूल, भौतिक, पदार्थवादी व्याख्या है। आनुवांशिक, वैज्ञानिक और आत्मिक व्याख्या नहीं है। पदार्थवादी व्याख्या, जिससे हर विदाई के बाद भ्रांति के बरगद में एक जड़ और लटकी प्रतीत होती है।
भई कन्या गई तो विचार कीजिए साथ में एक्स एक्स गुणसूत्रों का वंश-बैलेंस भी लेकर गई। और बहू आई तो वह भी वैसा ही वंश-बैलेंस लेकर आई। इस तरह सामाजिक व्यवस्था में तो बराबरी का वंश-विनिमय हुआ। वंश समाप्त कहाँ हुआ? क्या आपका पुत्र या आपका दामाद अपने-अपने तथाकथित वंश को बिना आपकी क्या या बहू के सहयोग से आगे बढ़ा सकते हैं? बिल्कुल नहीं। यह बात इकलौती कन्या होने या इकलौते पुत्र होने पर भी सोलह आने सच है। वंशानुगति तो बहती नदी है। बहना उसका धर्म है। संतति उसके किनारे हैं। घाट हैं। एक ही नदी के इधर के घाट का पानी मीठा और उधर के घाट का कड़वा तो नहीं होता।
तो क्यों न हम जहाँ कहीं यह सुनें कि बेटे के बिना गति नहीं होगी कि मरे बाद मुखाग्नि कौन देगा? कि पुत्र के न होने पर वंश समाप्त हो जाएगा। वहाँ उन्हें इस प्राकृतिक, वेद सम्मत और विज्ञान प्रमाणित सच्चाई से अवगत कराएँ कि ऐसा नहीं है। वंश कभी समाप्त नहीं होता है। दशा और दिशा भर बदल देता है। बेटा और बेटी दोनों से समान रूप से चलता है। अकेला बेटा होने पर भी और अकेली बेटी होने पर भी।
यही नहीं यदि तार्किक दृष्टि से परखा जाए तो जब कोई निसंतान दंपत्ति बच्चा गोद लेते हैं। तो वे एक तरह से वंश संरक्षण का पुनीत कार्य करते हैं। उनके न रहने के बाद दत्तक वंश की संतति ठीक उसी तरह पल्लवित होती रहती है जैसे सामान्य वंश की संतति।
अगर प्रत्येक साधारण व्यक्ति इस बात को आत्मसात कर ले तो समाज से बहुत सी बुराइयाँ मिट सकती हैं। जैसे भ्रूण हत्या, लड़का लड़की में भेदभाव, दहेज प्रथा और संपत्ति के विवाद आदि।
याद रखें वंश मतलब अंश। अंश कुछ भी हो लड़का या लड़की। हमेशा बढ़ाता है वंश।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें