बेटों को भी बचाइए
भारत के गृह मंत्रालय द्वारा एक मसौदा तैयार किया जा रहा है जिसके तहत बलात्कार व यौन प्रताड़ना संबंधी कानूनों को अधिक कारगर बनाया जा सके। स्त्रियों को यौन प्रताड़ना से बचाने के लिए इसमें नए प्रावधानों की चर्चा तो है ही साथ ही पुराने कानूनों की कमजोरियों को हटाने के तरीकों पर भी विवेचन और उपायों की चर्चा है। लेकिन इस मसौदे की सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि यह जेंडर-न्यूट्रल है। यौन प्रताड़ना यदि किसी लड़के की भी हुई है तो उस पर भी संज्ञान लिया जाना है। यह कदम बेहद सराहनीय है। क्योंकि लड़कों के प्रति यौन अपराधों की भी अपनी दुनिया है।
रूस और अफगानिस्तान के युद्ध में जो बच्चे अनाथ हुए थे उनमें बच्चियों को तो बूढ़ों तक ने अपनी तीसरी-चौथी बीवी बनाकर घर में रख लिया था। अनाथ लड़के संस्थानों में पले बढ़े जहाँ उनके साथ अन्य पुरुषों द्वारा यौन दुराचार हुआ और एक खास तरह के सोच के लिए ब्रेन वॉश भी। इनमें से अधिकांश लड़के आगे चलकर तालिबान बने। उन समाजों में भी जहाँ स्त्री-पुरुष बिलकुल पृथक रखे जाते हैं या धार्मिक वजह से तथाकथित ब्रह्मचर्य और स्त्री मात्र से दूरी का आग्रह किया जाता है वहाँ भी मासूम लड़के अक्सर समलैंगिक यौन प्रताड़ना का शिकार बन जाते हैं।
भारत में भी कई पर्यटन स्थलों से दबी-छुपी रिपोर्टें आती हैं कि विदेशी पर्यटक नन्हे गरीब लड़कों के साथ यौन दुराचार करते हैं। कॉलेजों की रैगिंग में भी जूनियर लड़के यौन प्रताड़ना के शिकार होते हैं फिल्म 'थ्री इडियट्स' में बड़े सूक्ष्म तरीके से इस समस्या की ओर ध्यान दिलाया गया है, 'जहाँपनाह तोहफा कबूल है' जूनियर अपने रैगिंग लेते सीनियर्स को कहते हैं। फिल्म के प्रोमो में तो तीन कुर्सियाँ दिखाई गई हैं वह ऊपर से तो नटखट शैतानी लगती हैं, मगर बारीक तौर पर किसी और बात की ओर भी इंगित करती हैं।
Dभारतीय समाज अब बदल रहा है। ऐसा नहीं कि पुराने जमाने में ऐसा कुछ नहीं होता था या सब अच्छा ही अच्छा था। मगर बदली परिस्थितियों में नन्हे लड़कों के भी शिकार बनने की संभावनाएँ बढ़ गई हैं। एकल परिवार और कामकाजी माँ-बाप के चलते अब वे दादी-नानी, चाची-ताई या परिवार के अन्य सदस्यों के साथ नहीं रहते। जरूरत पड़ने पर बच्चों की देखभाल के लिए अंजान लोगों की सेवा ली जाती है।
बच्चे अब होते भी एक या दो हैं और चचेरे-ममेरे भाई-बहनों के झुंड में भी नहीं रहते अतः उन्हें अकेला पाकर वारदात करने की संभावनाएँ भी बढ़ जाती हैं। इन परिस्थितियों में जरूरी है कि माँ-बाप बेटियों के साथ ही नन्हे बेटों को भी अच्छे और खराब स्पर्श के बारे में समझाएँ। उन्हें अच्छे-बुरे की जानकारी दें और बच्चे के विश्वासपात्र बनें ताकि आपातकाल में वे बात को दबाने के बजाए माता-पिता से साझा करें। कानून और समाज दोनों की ओर से यह जेंडर-न्यूट्रल पहल आज के हालात में जरूरी है।
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