तुम कभी हार न मानना
सुशीला परगनिहा
रोज हम समाचार पत्र पढ़ते हैं और वही-वही घटनाएँ मन को अस्वस्थ कर जाती हैं। 'ससुराल वालों के अत्याचारों से तंग आकर बहू ने आत्महत्या की।' ऐसी कई घटनाएँ देश में रोज होती रहती हैं। फिर भी जब-जब ऐसी घटनाएँ सुनते-पढ़ते हैं, कई सवाल मन में तूफान मचाने लगते हैं?
क्या जिन महिलाओं ने आत्महत्या नहीं की, ससुरालवालों ने उन्हें कोई तकलीफ नहीं दी? क्या उनका जीवन कहानी की तरह सुंदर था। और वे खुशी-खुशी अपना जीवन जीने लगे। पुराना जमाना तो छोड़िए आज भी हमारे देश में पति और ससुरालवालों की ओर से बहू को कई तरह से प्रताड़ित किया जाता है। एक हद तक इसे सहा या नजरअंदाज भी किया जा सकता है, उसके बाद क्या?
आज लड़कियाँ पढ़ी-लिखी हैं। आत्मनिर्भर हैं, वे अपनी लड़ाई भी लड़ सकती हैं। अब जरूरी है कि वे दूसरों का भी सहारा बनें। माता-पिता का, उस सहेली का जो अपना जीवन समाप्त करने चली हो, या जिसे ससुराल वाले प्रताड़ित कर रहे हैं। उसमें लड़ने का आत्मविश्वास जगाएँ। हमें जब आवश्यकता थी, तब किसी सहेली, भाभी, मौसी, काकी ने हमारा साथ दिया था। आज उसे समाज को लौटाना होगा।
मायके की सर्वगुण संपन्न और सुशील लड़की, ससुराल आकर एकदम 'फेल' घोषित कर दी जाती है। उसको अचानक इतनी रोक-टोक में बाँध दिया जाता है मानो वह सुधारगृह में आ गई हो।
अब वो जमाने गए, जब लड़की का किसी कारणवश फिर से मायके में आकर रहना गलत माना जाता था। जहाँ डोली गई वहीं से अर्थी उठेगी...आदि ये वाक्य लड़की को सिखाए जाते थे। आज के माता-पिता को स्थितियों को देखते हुए अपनी बेटी के लिए घर के दरवाजे हमेशा खुले रखने चाहिए।
NDपति द्वारा पत्नी से किया हुआ गलत व्यवहार, फिर वो शारीरिक हो या मानसिक, यह घटना 'पर्सनल' नहीं है। अर्थात दोनों तक सीमित नहीं है। वह लड़की जिसके साथ अन्याय हो रहा है वह समाज का एक घटक है। उसके साथ होने वाला व्यवहार भी सामाजिक और सार्वजनिक प्रश्न है। लड़की शुरू में उसके साथ हो रहे व्यवहार को छिपाती है। पानी सिर के ऊपर जाने के बाद धीरे-धीरे माता-पिता को बताती है।
अक्सर माता-पिता भी घटनाओं को छिपाते हैं। बेटी की बदनामी से डरते हैं। इससे अत्याचार और बढ़ते जाते हैं। अतः आवश्यक है कि लड़कियाँ इस प्रकार की घटनाओं को छिपाएँ नहीं। कोई गलत कदम भी न उठाएँ। याद रखें कि हम आत्महत्या करने के लिए पैदा नहीं हुए हैं। कुछ अच्छा काम करके दुनिया से जाएँगे। इस जिद के साथ जीवन जिएँ। यह जीवन आपको ईश्वर की देन है इसका सदुपयोग करें।
इसके लिए सर्वप्रथम लड़कियों का शिक्षित होना आवश्यक है। दूसरा, नौकरी या व्यवसाय अवश्य करें। अपनी रुचि के अनुसार सामाजिक या सार्वजनिक काम के लिए समय अवश्य निकालें जिससे आपके अत्याचारों को जुबां मिलेगी। साथ ही अपनी रुचि का काम करने से दुगुनी शक्ति भी मिलेगी। मुझे किसी का सहारा मिले इसके साथ ही मैं किसी का सहारा बनूँ, यह लक्ष्य सामने रखें। यही जीवन है यही सच्चा आनंद है।
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