पुरुषोत्तम मास में मिलेगा पुण्य फल
पुरुषोत्तम मास गुरुवार, 15 अप्रैल से प्रारंभ हो चुका है। इस मास में जहाँ दान धर्म आदि करने का उल्लेख पुराणों में किया गया है वहीं विभिन्न यात्राएँ भी पुरुषोत्तम मास में होती है। इनमें सप्तसागर तथा चौरासी महादेव के साथ ही नौ नारायण यात्रा प्रमुख है।
धार्मिक नगरी उज्जैन में करीब 29 यात्राएँ होती हैं। इनमें से कुछ तो विलुप्त-सी हैं और कुछ ऐसी हैं जिनके बारे में नागरिकों को जानकारी कम है। जो लोग इन यात्राओं का महत्व जानते हैं वे ऐसी यात्राओं को करने के लिए पुरुषोत्तम मास का इंतजार करते हैं।
अन्य यात्राओं की तरह ही नौ (नव) नारायण की यात्रा होती है। नौ नारायण से तात्पर्य नौ स्थानों पर विराजित भगवान विष्णु से है। इनके मंदिर उज्जैन शहर के विभिन्न स्थानों पर हैं। इनमें अनंतनारायण, सत्यनारायण, पुरुषोत्तमनारायण, आदिनारायण, शेषनारायण, पद्मनारायण, लक्ष्मीनारायण, बद्रीनारायण तथा चतुर्भुजनारायण शामिल हैं। नौ नारायणों का उल्लेख स्कंद पुराण में भी मिलता है। ये भगवान विष्णु के दशावतार के स्वरूप भी माने जाते हैं। उल्लेखनीय है कि नौ नारायण सिर्फ उज्जैन में ही विराजित हैं।
- पुरुषोत्तम भगवान की लीला अपरंपार है। नौ नारायण यात्रा की शुरुआत पुरुषोत्तमनारायण से ही होती है।
- अनंत भगवान के चमत्कार किसी से छुपे नहीं हैं। मात्र दर्शन करने से ही मनोकामना पूरी हो जाती है।
- सत्यनारायण भगवान की जय बोलने से ही जब प्रतिफल मिल जाता है, फिर दर्शन या पूजा करने से तो उनका आशीर्वाद सदैव साथ रहता है।
- माखन मिश्री अर्पित करने वाले श्रद्घालुओं को सुख-समृद्घि मिलती है। मंदिर में नौ नारायण यात्रियों का आगमन होने लगेगा।
- आदिनारायण भगवान विष्णु का अद्भुत स्वरूप है। इनके दर्शन मात्र से दुःखों से छुटकारा मिल जाता है।
- नौ नारायण यात्रा में पद्मनारायण मंदिर का विशेष महत्व है। पुरुषोत्तम मास में यहाँ श्रद्घालुओं का ताँता लगा रहेगा।
- शेषनारायण की मूर्ति चमत्कारी है और यहाँ दर्शनों से मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
मलमास में मोक्ष की कामना
सर्वोत्तम मास यानी मलमास। इस माह में किसी शुभ काम की शुरुआत तो नहीं होती लेकिन धर्म-कर्म के लिए इस महीने को उत्तम माना गया है। हर मलमास में राजगीर भारतीय संस्कृति की रंगबिरंगी झलक का गवाह बनता है।
मगध साम्राज्य की प्राचीन राजधानी में ज्योतिष गणना और पौराणिक महत्व के आधार पर हर ढाई साल पर पवित्र नदियों तथा गर्म जलकुंडों के तट पर एकत्र होकर लाखों श्रद्धालु ऐसा विविधवर्णी और बहुआयामी चित्र प्रस्तुत करते हैं, जिसमें जाति-धर्म और रंगभेद की भावना मिटती दिखती है।
भारतीय जीवन परंपरा में त्याग के साथ भोग की बात की गई है। 'मृत्योर्मा अमृतम् गमय' का संदेश देने वाला सर्वोत्तम मास तो आदि काल से मनोकामना प्राप्ति का साधन रहा है। सांसारिक कर्मों में उलझे साधारण व्यक्ति के लिए सामान्यतया यह संभव नहीं होता है कि यह हठयोग की साधना करे, लिहाजा मलमास में राजगीर की ओर खिंचे चले आते हैं।
भारतीय ज्योतिष गणनाओं के आधार पर मलमास अधिक मास या तेरहवें मास के रूप में वर्णित है। सूर्य 12 राशियों में साल भर भ्रमण करते हैं, इसी क्रम में 32 महीना 16 दिन 4 घड़ी के बाद सूर्य की कोई संक्रांति नहीं होती है। जिस माह में सूर्य की संक्रांति नहीं होती है वह मलमास, अधिक मास कहलाता है।
मान्यता है कि मलमास का वर्ष 396 दिन का होता है, जबकि अन्य वर्ष 365 दिन 5 घंटे 45 मिनट और 12 सैकंड का होता है। धर्माचार्यों के अनुसार भारत में मलमास में केवल राजगीर ही पवित्र रहता है इसीलिए इस अवधि में राजगीर में तैंतीस कोटिदेवी-देवता निवास करते हैं।
इस अवधि में शादी-विवाह, मुंडन, उपनयन आदि को छोड़कर सभी तरह के शुभ कार्य केवल राजगीर में ही होते हैं। देवी भागवत में ऐसा वर्णन आया है कि मलमास में जो व्यक्ति धार्मिक नियमों का पालन करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पुरुषोत्तम मास के दान
पुरुषोत्तम मास में दिए जाने वाले दान धर्म आदि का अपना अलग ही महत्व है। इस मास तिथिनुसार दान करने से इस माह फल कई गुणा प्राप्त होता है।
पुरुषोत्तम मास में किए जाने वाले खास दान
- प्रतिपदा घी चाँदी के पात्र में
- द्वितीया काँसे के पात्र में सोना
- तृतीया चना या चने की दाल
- चतुर्थी खारक
- पंचमी गुड़ व तुवर की दाल
- षष्टी अष्ट गंध
- सप्तमी रक्त चंदन
- नवमी केशर
- दशमी कस्तुरी
- एकादशी गोरोचन या गौलोचन
- द्वादशी शंख
- त्रयोदशी घंटाल या घंटी
- चतुर्दशी मोती या मोती की माला
- पूर्णिमा माणिक रत्न
पद्मिनी (शुक्ल पक्ष) एकादशी व्रत कथा
धर्मराज युधिष्ठिर बोले- हे जनार्दन! अधिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मुझे बताइए।
श्री भगवान बोले हे राजन्- अधिक मास में शुक्ल पक्ष में जो एकादशी आती है वह पद्मिनी (कमला) एकादशी कहलाती है। वैसे तो प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिक मास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। अधिक मास या मलमास को जोड़कर वर्ष में 26 एकादशी होती है। अधिक मास में दो एकादशी होती है जो पद्मिनी एकादशी (शुक्ल पक्ष) और परमा एकादशी (कृष्ण पक्ष) के नाम से जानी जाती है। ऐसा श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इस व्रत की कथा बताई थी।
भगवान कृष्ण बोले- मलमास में अनेक पुण्यों को देने वाली एकादशी का नाम पद्मिनी है। इसका व्रत करने पर मनुष्य कीर्ति प्राप्त करके बैकुंठ को जाता है। जो मनुष्यों के लिए भी दुर्लभ है। यह एकादशी करने के लिए दशमी के दिन व्रत का आरंभ करके काँसी के पात्र में जौं-चावल आदि का भोजन करें तथा नमक न खावें। भूमि पर सोए और ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें। एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में शौच आदि से निवृत्त होकर दन्तधावन करें और जल के बारह कुल्ले करके शुद्ध हो जाए। सूर्य उदय होने के पूर्व उत्तम तीर्थ में स्नान करने जाए। इसमें गोबर, मिट्टी, तिल तथा कुशा व आँवले के चूर्ण से विधिपूर्वक स्नान करें। श्वेत वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु के मंदिर जाकर पूजा-अर्चना करें।
NDहे मुनिवर! पूर्वकाल में त्रेया युग में हैहय नामक राजा के वंश में कृतवीर्य नाम का राजा महिष्मती पुरी में राज्य करता था। उस राजा की एक हजार परम प्रिय स्त्रियाँ थीं, परंतु उनमें से किसी को भी पुत्र नहीं था, जो उनके राज्य भार को संभाल सकें। देवता, पितृ, सिद्ध तथा अनेक चिकित्सकों आदि से राजा ने पुत्र प्राप्ति के लिए काफी प्रयत्न किए लेकिन सब असफल रहे। एक दिन राजा को वन में तपस्या के लिए जाते थे उनकी परम प्रिय रानी इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न हुए राजा हरिश्चंद्र की पद्मिनी नाम वाली कन्या राजा के साथ वन जाने को तैयार हो गई। दोनों ने अपने अंग के सब सुंदर वस्त्र और आभूषणों का त्याग कर वल्कल वस्त्र धारण कर गन्धमादन पर्वत पर गए।
राजा ने उस पर्वत पर दस हजार वर्ष तक तप किया परंतु फिर भी पुत्र प्राप्ति नहीं हुई। तब पतिव्रता रानी कमलनयनी पद्मिनी से अनुसूया ने कहा- बारह मास से अधिक महत्वपूर्ण मलमास होता है जो बत्तीस मास पश्चात आता है। उसमें द्वादशीयुक्त पद्मिनी शुक्ल पक्ष की एकादशी का जागरण समेत व्रत करने से तुम्हारी सारी मनोकामना पूर्ण होगी। इस व्रत करने से पुत्र देने वाले भगवान तुम पर प्रसन्न होकर तुम्हें शीघ्र ही पुत्र देंगे।
रानी पद्मिनी ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से एकादशी का व्रत किया। वह एकादशी को निराहार रहकर रात्रि जागरण करती। इस व्रत से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। इसी के प्रभाव से पद्मिनी के घर कार्तिवीर्य उत्पन्न हुए। जो बलवान थे और उनके समान तीनों लोकों में कोई बलवान नहीं था। तीनों लोकों में भगवान के सिवा उनको जीतने का सामर्थ्य किसी में नहीं था।
सो हे नारद ! जिन मनुष्यों ने मलमास शुक्ल पक्ष एकादशी का व्रत किया है, जो संपूर्ण कथा को पढ़ते या सुनते हैं, वे भी यश के भागी होकर विष्णु लोक को प्राप्त होते है।
अधिक मास में लें विष्णु का नाम
पुरुषोत्तम मास चार साल में एक बार आता है। इसे स्वयं भगवान ने अपने नाम से जोड़ा था। यह मास धर्म और पुण्य कार्य करने के लिए सर्वोत्तम होता है क्योंकि इस माह में पूजन-पाठ करने से अधिक पुण्य मिलता है।
इस माह में श्राद्ध, स्नान और दान से कल्याण होता है। विधि-विधान के साथ अधिक मास में किए जाने वाले धर्म-कर्म से करोड़ गुना फल मिलता है। पितरों की कृपा प्राप्ति के लिए पुरुषोत्तम मास में पुण्य कर्म करना चाहिए।
इस संसार में मनुष्य माया से मुक्ति पाने के लिए जीवन भर भटकता रहता है पर उसे मुक्ति नहीं मिलती। जिस क्षण श्रीमद्भागवत व भगवान श्रीकृष्ण, भगवान विष्णु के प्रति उसके मन में भाव जागता है, उसी क्षण माया से मुक्ति मिल जाती है।
भगवान की भक्ति में लीन होकर प्राणी पापों से मुक्ति पाकर अपना लोक और परलोक दोनों सुधार लेता है। पुरुषोत्तम मास के महत्व को देखते में विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ और गणपति अथर्वशीर्ष मनुष्य को पुण्य की ओर ले जाते हैं।
स्वर्ग में सब कुछ मिल सकता है, पर भागवत कथा नहीं। भगवान मिल जाएँगे, लेकिन भगवान की कथा नहीं। भागवत कथा व पुरुषोत्तम मास का संयोग भी अपने आप में बहुत दुर्लभ है। अधिक मास अर्थात पुरुषोत्तम मास भगवान विष्णु ने मानव के पुण्य के लिए ही बनाया है। पुराणों में उल्लेख है कि जब हिरण कश्यप को वरदान मिला कि वह साल के बारह माह में कभी न मरे तो भगवान ने मलमास की रचना की। जिसके बाद ही नरसिंह अवतार लेकर भगवान ने उसका वध किया।
मलमास में भगवान विष्णु के नाम का जाप करना ही हितकर होता है। इस जाप से ही पापों से मुक्ति मिलती है। इस माह विष्णु पुराण ज्ञानयज्ञ का आयोजन करके सत्, चित व आनंद की प्राप्ति की जा सकती है।
विष्णु ने किया अधिक मास का निर्माण
वायु पुराण के अनुसार मगध सम्राट बसु द्वारा राजगीर में 'वाजपेयी यज्ञ' कराया गया था। उस यज्ञ में राजा बसु के पितामह ब्रह्मा सहित सभी देवी- देवता राजगीर पधारे थे। यज्ञ में पवित्र नदियों और तीर्थों के जल की जरूरत पड़ी थी। कहा जाता है कि ब्रह्मा के आह्वान पर ही अग्निकुंड से विभिन्न तीर्थों का जल प्रकट हुआ था।
उस यज्ञ का अग्निकुंड ही आज का ब्रह्मकुंड है। उस यज्ञ में बड़ी संख्या में ऋषि महर्षि भी आते हैं। सर्वोत्तम मास में यहाँ अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति की महिमा है। किंवदंती है कि भगवान ब्रह्मा से राजा हिरण्यकश्यप ने वरदान माँगा था कि रात-दिन, सुबह-शाम और उनके द्वारा बनाए गए बारह मास में से किसी भी मास में उसकी मौत न हो।
इस वरदान को देने के बाद जब ब्रह्मा को अपनी भूल का अहसास हुआ, तब वे भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने विचारोपरांत हिरण्यकश्यप के अंत के लिए तेरहवें महीने का निर्माण किया। इसी अधिक मास में मगध की पौराणिक नगरी राजगीर में प्रत्येक ढाई से तीन साल पर विराट मलमास मेला लगता है, जहाँ लाखों श्रद्धालु आते हैं।
वे पवित्र नदियों प्राची, सरस्वती और वैतरणी के अलावा गर्म जलकुंडों, ब्रह्मकुंड, सप्तधारा, न्यासकुंड, मार्कंडेय कुंड, गंगा-यमुना कुंड, काशीधारा कुंड, अनंत ऋषि कुंड, सूर्य-कुंड, राम-लक्ष्मण कुंड, सीता कुंड, गौरी कुंड और नानक कुंड में स्नान कर भगवान लक्ष्मी नारायण मंदिर में अराधना करते हैं। राजगीर में इस अवसर पर भव्य मेला भी लगता है।
राजगीर में मलमास के दौरान लाखों श्रद्धालुओं की मौजूदगी में दिखती है गंगा-यमुना संस्कृति की झलक। मोक्ष की कामना और पितरों के उद्धार के लिए जुटते हैं श्रद्धालु।
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