लव इज लाइफ
प्यार का हकीकत बन जिंदगी में रस घोलना केवल किस्मतवालों के साथ ही होता है। बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जो सही समय पर सही फैसला लेकर अपने प्यार को अपना लेते हैं वरना कई लोग तो बदनामी के डर से उसे बीच राह में ही छोड़कर किनारा कर लेते हैं।
कहते हैं जब प्यार हो ही गया है तो उसे जमाने से छिपाने से क्या फायदा? जमाने के डर से अगर आपने अपने प्यार का इजहार नहीं किया तो कहीं ऐसा न हो जाए कि आपका प्यार आपका इंजार करते-करते मायूस होकर अपना इरादा न बदल दे।
मुझसे शादी करोगे
शारीरिक आकर्षण में आकर लड़के-लड़कियाँ एक-दूसरे के साथ अतिशीघ्र संबंध तो बना लेते हैं किंतु उस आकर्षण के खत्म होते ही उतनी ही जल्दी संबंध विच्छेद भी कर लेते हैं। इस पर उनका तर्क होता है कि अब तुममें वो बात नहीं रही, जो पहले थी।
यदि आप प्यार करते हो, तो आपमें उस रिश्ते को जीवनभर निभाने की हिम्मत भी होनी चाहिए। आजकल के युवाओं का प्यार तो उस बदलते मौसम की तरह होता है, जो शादी की कोंपलों के खिलने से पूर्व ही अपनी तपिश का अहसास कराते हुए उन्हें जलाकर नष्ट कर देता है और अपना रुख पलट लेता है।
प्यार करने के बाद शादी की बात तो बहुत कम युवा करते हैं बाकी तो मौज-मस्ती करके भूल जाते हैं। यदि आपका साथी आपको अपनाने को राजी है तथा वो इस रिश्ते को शादी के पवित्र बंधन में बाँधना चाहता है तो इसमें हर्ज ही क्या है?
निभाना नहीं आसान
नासमझी में व लोगों की वाहवाही लूटने के लिए ऐसे प्रेमी जल्दबाजी में शादी तो कर लेते हैं परंतु जब मधुर दांपत्य जीवन की शीतल बयार में दुख के थपेड़े लगते हैं तब वे अपने फैसले पर पछताते हैं और इस सुंदर रिश्ते को प्यार, मोहब्बत से जीने के बजाय बोझ समझकर बेमन से ढोने लगते हैं। आखिर यह क्या है? आपने तो प्यार किया है। अपनी मर्जी से अपना जीवनसाथी चुना है फिर जीवन में इतनी असंतुष्टि क्यों?
आपका साथी भला-बुरा कैसा भी हो, यदि आपके प्यार में ताकत है तो वो उसको पूरी तरह से बदल देगा। याद रखें जीवन में सभी को सबकुछ मिल जाए यह संभव नहीं है। समझौता तो हर इंसान को करना पड़ता है और यदि थोड़ा सा समझौता व नम्रता आपके संबंधों को मधुर बनाता है तो उस समझौते में हर्ज ही क्या है?
प्यार में जरूरी है डिवोशन
प्यार क्या है? एक खूबसूरत एहसास जिसे डिफाइन करने के लिए लेखकों और कवियों ने शब्दों की कई नदियाँ बहाई हैं। फिर भी प्यार ऐसी खुशबू है, जो शब्दों के दायरे में नहीं बँधती। डेडिकेशन, सेल्फलेसनेस, म्युचुअल अंडरस्टेन्डिंग और मन के तारों के जुड़ाव से पैदा होता अफेक्शन और डिवोशन। यही भाव असल में सच्चे प्यार को स्वयं से गूँथे रखता है। इसकी किसी से तुलना नहीं।
प्यार यानी एक ही डायरेक्शन सोचना
सुमन की शादी तय हो चुकी थी। एक दिन बातों ही बातों में उसके भावी पति बोले, 'प्यार का अर्थ एक-दूसरे की ओर देखते रहना नहीं, बल्कि एक ही दिशा में देखना व सोचना है।' उनकी इस समझदारीभरी बात ने सुमन को अभिभूत कर दिया। सच ही तो है कि किसी भी विवाहित जोड़े को जब कई महत्वपूर्ण निर्णय लेने पड़ते हैं, तब उनके सोच की तारतम्यता उस निर्णय को आसान बना देती है। यह आपसी समझ ही दोनों को स्नेह के अटूट बंधन में बाँधती है।
सब ढूँढते हैं सच्चा प्यार
प्यार, जीवन की नाव को चलाने के लिए पतवार का काम करता है। यह सिर्फ कोरी भावनाओं पर नहीं टिकता, बल्कि समझदारी, ट्रस्ट और रिस्पेक्ट आधारित होता है। हम सब इसी सच्चे प्यार को अपने जीवन में खोजते हैं। प्रेम सिर्फ कल्पना, किताबों, उपन्यासों और फिल्मी पात्रों में सिमटी भावुकता नहीं है। प्रेम, इंसान के दिल की शुभ तरंगों से भरी वह अवस्था है, जब वह आंतरिक खुशी और प्रसन्नता से लबरेज हो जाता है।
पारखी बनें
हमारा प्यार हमारे पास ही होता है, लेकिन वह होता है फिल्मी अंदाज से बिलकुल जुदा। जब कोई पति अपनी बीमार पत्नी की देखभाल करता है, तब उसमें पत्नी के प्रति उसका प्यार ही छुपा होता है। वेलेन्टाइन-डे पर कार्ड, तोहफे और गुलाब भेंट कर देना ही प्यार नहीं है। प्यार तो परवाह, देखभाल, सहेजने और साथी का ध्यान रखने का नाम है। इसलिए जब साथी से यह देखभाल सहज ही मिल जाए तो उसे 'फॉर ग्रांटेड' न लें, उसके स्रोत को पहचानें।
लुक मैटर नहीं करता
मीनाक्षी एक बेहद खूबसूरत और पढ़ी-लिखी लड़की है। जब उसके लिए परेश के परिवार की ओर से विवाह प्रस्ताव आया तब उसने परेश की साँवली रंगत और सामान्य कद की वजह से उसे ठुकरा दिया। परेश की छवि उसके सपनों के राजकुमार से मेल जो नहीं खाती थी। मीनाक्षी की माँ अनुभवी थीं, उन्होंने दुनिया देखी थी। उन्होंने मीनाक्षी को समझाया, 'बेटा! रंग-रूप तो किसी के हाथों में नहीं होता। परेश एक गुणी लड़का है, नेक है। तू उसके गुण और काबिलियत देख।' मीनाक्षी ने माँ की बात पर गौर किया और परेश के साथ विवाह बंधन में बँध गई। कहना न होगा कि आज वह अपने जीवन से बहुत खुश और संतुष्ट है। सच्चे प्यार का अर्थ समझ चुकी है।
प्यार सबसे मीठा एहसास
सच्चा प्यार करने वाला और पाने वाला दोनों ही खुशनसीब होते हैं और आज के आपाधापी के दौर में खुशी का ठौर पा लेते हैं। प्यार की सौंधी खुशबू से जीवन की माटी महकने लगती है। तो हम भी अपने आसपास के रिश्तों में प्यार को तलाश लें। इसकी खुशबू अपने जीवन में बसाकर खुद भी महकें और अपने परिवेश को भी महकाएँ।
सुखी दांपत्य के मूलाधार
अधिकांश दंपति इस बात से सहमत होंगे कि सुखी वैवाहिक जीवन के लिए समय और शक्ति दोनों लगाने पड़ते हैं। वैवाहिक जीवन टेढ़ी खीर है, लेकिन सर्वाधिक सुखी दंपति अपने संबंधों के प्रति अलग नजरिया रखते हैं। आइए जानें कैसे-
* वैवाहिक जीवन बस यूँ ही सुखी नहीं हो जाता। एक-दूसरे की इच्छाओं को समझने और जानने के बाद उस अनुसार आचरण भी करना चाहिए। संबंध का अच्छा या बुरा होना इस बात पर निर्भर करता है कि दो लोग एक-दूसरे के प्रति अच्छे या बुरे समय में व्यवहार आखिर कैसा करते हैं?
प्रेम मिटता नहीं : अधिकांश दंपति मन ही मन डरते हैं कि उनके संबंध कहीं जड़ न हो जाएँ। याद रखें कि प्रेम कभी नहीं मरता वह विलुप्त अवश्य लग सकता है और वह भी इसलिए क्योंकि हम इस पर दूसरी भावनाओं का ग्रहण लग जाने देते हैं। वैवाहिक जीवन में गड़बड़ी होने पर दोनों साथियों को बचाव करना चाहिए। जिनके बीच अच्छे संबंध होते हैं वे इस बात को बखूबी समझते हैं कि तूफान के बाद सौहार्द भी लौट आएगा।
* अपने प्रति प्रेम का होना भी रिश्तों में जरूरी है। सबसे सुखी दंपति वे हैं जो अपने वैवाहिक संबंधों को अटूट बनाने के लिए अपने आप से प्रेम करते हैं। आपके संबंध कितने भी घनिष्ठ क्यों न हों? ये मत भूलिए की पहले आप एक व्यक्ति भी हैं।
* प्रेम किसी को बदलने का अधिकार नहीं देता लेकिन फिर भी हम मूर्खतावश इसी बात पर विश्वास करते हैं। हम अपने साथी की कमियों को दूर करने का प्रयास करने लगते हैं। चाहे इस प्रक्रिया में हम उसकी उन खूबियों को ही क्यों न कम कर दें, जिसके कारण वह हमें प्यारा है? सचमुच सुखी दंपति जानते हैं किसी व्यक्ति की बदलने की इच्छा उसके इसी बोध से जाग्रत होती है कि वह जैसा भी है उसी रूप में स्वीकार भी किया जाता है।
अंतर्यामी नहीं होते सहचर : प्रेम से जुड़ा एक भ्रम यह भी है कि हमारा साथी हमारे अंतर को, विचारों को और स्वप्नों को बखूबी समझता है। हमारा साथी जब इस स्थिति को नहीं समझ पाता है तो हमें दुःख व निराशा का अनुभव होता है। जो लोग यह मानते हैं कि उनका साथी उन्हें समझता या समझती है, वे यह जानते हैं कि अपने आप को समझाने, बताने का दायित्व भी स्वयं उन्हीं पर ही है।
अच्छे संबंध समयानुसार परिवर्तनशील : हममें से अधिकांश यह मानते हैं कि ठोस संबंध-सालों साल यथावत रहते हैं। सच तो ये है कि दांपत्य संबंध अनिवार्य रूप से बदलते हैं। परिवर्तनों का सामना कर वे ही संबंध बचे रहते हैं जो पहले ही इन परिवर्तनों को समझ कर इनका सामना सकारात्मक ढंग से करते हैं।
प्रेम दोष नहीं मढ़ता - विवाह उपरांत हम अक्सर अपने साथी पर दोषारोपण करते हैं कि मैं यदि दुखी हूँ तो सिर्फ तुम्हारे कारण। हमारे दुःखों की जड़ क्या है? ये ढूँढने से उत्तम अपने साथी के कामों में दोष ढूँढना है। जबकि विवाह पूर्व हम दोष अपने कर्मों पर थोपते हैं। अपने अच्छे-बुरे के लिए अपने आप को जितना अधिक उत्तरदायी समझेंगे उतने ही अधिक सुखी आप और आपका जीवन साथी होंगे।
प्रेम निस्वार्थ होता है : सहज निःस्वार्थ भाव ही प्रेम का सार होता है। सच्चे प्रेम का आग्रह है कि हम अपनी आवश्यकताओं की अपेक्षा अपने साथी की अपेक्षाएँ पूरी करें बशर्ते उनकी उचित सीमा हो। सबसे उत्तम साथी जीवन में शत-प्रतिशत देते हैं और बदले में शत-प्रतिशत पाते हैं। अंततः प्रेम का सबसे महत्वपूर्ण सूत्र यह है कि अपने और अपने साथी के प्रति केवल ऐसा व्यवहार करें जिससे आपको अपनी सुपात्रता और ईमानदारी का बोध हो। शादी जैसे मजबूत बंधन को बाँधने के लिए सिर्फ सात फेरे काफी नहीं, बल्कि जीवनपर्यंत मजबूत और ठोस विचारधारा की भी जरूरत है।
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