दंतेवाड़ा जिले में नक्सलियों के हमले ने इस बात को रेखांकित किया है कि नक्सल विरोधी अभियान में कोई बुनियादी गलती है। नक्सली आंदोलन देश के सामने सबसे गंभीर चुनौती बन गया है। यह चुनौती लश्कर-ए-तोइबा से भी अधिक खतरनाक है।
इसमें कोई शक नहीं है कि नक्सली हिंसा हमारी 60 सालों की राजनीतिक और प्रशासनिक असफलता का नतीजा है। केंद्र सरकार की यह सोच पूरी तरह गलत है कि राज्य सरकारें अपने स्तर पर नक्सली हिंसा का मुकाबला कर सकती हैं।
सात राज्यों के लगभग 150 जिलों में नक्सली हिंसा फैल चुकी है। राज्य सरकारों की प्रशासनिक निष्क्रियता ने एक बड़े भू-भाग को नक्सलियों के हवाले कर दिया गया है। नक्सली आंदोलन जम्मू-कश्मीर और पूर्वोतर के राज्यों की तरह अलगाववादी आंदोलन नहीं है। लेकिन देश के बाहरी शत्रु इस ताक में जरूर बैठे हैं कि किस तरह नक्सली हिंसा को हवा देकर भारत में अस्थिरता का वातावरण निर्मित किया जाए।
नक्सली जब भी हिंसा की किसी बड़ी घटना को अंजाम देते हैं तो यह माँग उठने लगती है कि सेना का इस्तेमाल करके नक्सलियों को नेस्तनाबूत किया जाए।
नए थलसेना प्रमुख ने हाल ही में इस बात को दोहराया था कि हम अपने देश के लोगों के खिलाफ सेना का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। मैं थलसेना प्रमुख की इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ, लेकिन यदि नक्सली तत्व बाहरी समर्थन से देश में अस्थिरता फैलाने की कोशिश करें तो स्थिति पूरी तरह बदल जाएगी।
फिलहाल इस तरह के संकेत नहीं है कि नक्सली तत्व देश के दुश्मनों की शह पर हिंसा फैला रहे हैं। राज्यों के पास इतनी क्षमता नहीं है कि वे नक्सलवाद की चुनौती का सामना कर सकें।
मैं यह जानना चाहता हूँ कि इस हमले में मरने वालों में सीआरपीएफ के कितने अधिकारी शामिल थे? अलगाववादियों के खिलाफ जारी अभियान में सेना के अधिकारी अग्रिम पंक्ति में नेतृत्व करते हैं और बड़ी संख्या में शहीद भी हुए हैं। यदि सीआरपीएफ की टुकड़ी में किसी अधिकारी का नेतृत्व नहीं था, तो यह बड़ी भारी भूल थी।
माओवादियों में हावी होता गगन्ना का गुट
हिंसक घटनाओं को अंजाम देने के लिए पहले भी गगन्ना ही फैसले ले रहा था, लेकिन राजधानी एक्सप्रेस को बंधक बनाने के कांड के बाद से किशनजी का गुट काफी हद तक खुद फैसले लेने लगा था। उस दौरान ट्रेन को बंधक बनाकर मीडिया में हल्ला मचाया गया था जबकि गगन्ना का गुट हमेशा से तोड़फोड़, सुरक्षा बलों को अधिक से अधिक नुकसान पहुँचाने की थ्योरी पर बल देता रहा है।
मीडिया से दूर रहकर जंगलों में हमेशा यह गुट गुरिल्ला अंदाज में सुरक्षा बलों पर हमले करता है। दूसरी ओर, लालगढ़ को केंद्र बनाकर बंगाल-झारखंड-उड़ीसा में सक्रिय माओवादी कमांडर एम. कोटेश्वरराव उर्फ किशनजी और उनका गुट मीडिया के भी संपर्क में रहता है और राजनीतिक दलों के भी। सुरक्षा बलों पर हमला या उनके साथ मुठभेड़ इस गुट की कार्यशैली रही है।
किशनजी के गुट का मुख्य उद्देश्य इलाकावार समानांतर शासन कायम करना रहता है। माओवादियों की मिलिट्री कमांड में दो गुट होने का संकेत कोलकाता y में दो मार्च को गिरफ्तार किए गए केंद्रीय कमेटी के नेता वेंकटेश्वर रेड्डी उर्फ तेलुगु दीपक के द्वारा अदालत में दिए गए बयानों में मिला है। साथ ही, तेलुगु दीपक की निशानदेही पर लालगढ़ के विभिन्न ठिकानों से किशनजी और गगन्ना के बीच आदान-प्रदान किए गए कई पत्र जब्त किए गए हैं।
इन पत्रों में माओवादी गुरिल्लों की कार्यशैली को लेकर मिलिट्री कमांड के दो शीर्षस्थ नेताओं के बीच काफी नोक-झोंक का संकेत मिला है। दरअसल, गगन्ना और उसके साथी पिछले छह-आठ महीने से संगठन की केंद्रीय कमेटी के नेताओं की गिरफ्तारी को लेकर बेहद चिंतित बताए जाते हैं। पोलित ब्यूरो के 14 में से 6 नेता जेल में हैं।
अतीत में नक्सलियों ने कई दफा अपहरण कर कुछ नेताओं को छुड़वाने की कोशिश की, लेकिन विफल रहे। ऐसे में किशनजी की कार्यशैली पर संगठन में ही लगातार सवाल उठ रहे थे।
तेलुगु दीपक के अनुसार, जंगल के इलाकों में सुरक्षा बलों की सक्रियता के चलते कई दफा पोलित ब्यूरो के नेताओं की बैठकें रद्द करनी पड़ीं। बंगाल-उड़ीसा-छत्तीसगढ़ और झारखंड के जंगलों में सुरक्षा बलों के बढ़ते दबाव से माओवादियों का शीर्ष नेतृत्व बौखलाने लगा था।
लालगढ़ में अल्प समय में पैठ बनाकर मजबूत हुए किशनजी और उनके साथी इस दबाव से उबरने का रास्ता ढूँढने में नाकाम रहे। उल्टे हाल के दिनों में लालगढ़ में सुरक्षा बलों के अभियान के चलते उन्हें ही भागते फिरना पड़ रहा है। ऐसे में गगन्ना के गुट ने नए सिरे से दबाव बनाना शुरू कर दिया था।
माओवादियों की मौजूदा कमान : भाकपा (माओवादी) की केन्द्रीय कमेटी का सदस्य मुपाला लक्ष्मण राव उर्फ वासव राव उर्फ गगन्ना को मिलिट्री कमीशन (एमसी) का चीफ बनाया गया है। वह अतीत में श्रीलंका जाकर तमिल अतिवादी संगठन लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) और नेपाल के नक्सली गुरिल्लों से प्रशिक्षण प्राप्त कर चुका है।
आंध्र में सक्रिय होने के बाद गगन्ना को मिलिट्री कमीशन खड़ा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। गगन्ना के ही जिम्मे भाकपा (माओवादी) के पोलित ब्यूरो के महासचिव और अन्य सदस्यों की सुरक्षा है।
खर्च का ब्योरा : ओवादियों के लिए धन की कमी कभी नहीं रही है। 2007 में हथियारों की खरीद पर 17.5 करोड़ रुपए खर्च किए गए। एके-47, बारूदी सुरंगें और रॉकेट लांचर तक खरीदे गए। खुफिया एजेंसियों की यह भी रिपोर्ट है कि एक ऑस्ट्रेलियाई कंपनी के जरिए 2008 के दिसंबर में नक्सलियों ने दो सौ एके-47 राइफलें खरीदी थीं जिसे मलेशिया के रास्ते पश्चिम बंगाल भेजा गया था। पिछले दिनों नक्सलियों की छः बटालियनों के लिए कपड़ा खरीद के दस्तावेज बरामद किए गए। कपड़ा मुंबई की एक मिल से खरीदा गया था।
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